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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. शंका - गुरुवर! नमोऽस्तु। आज गुरुवर का स्वर्ण जयंती महोत्सव मनाया जा रहा है तो गुरुदेव! मैं आपसे और उनसे सम्बन्धित एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ। सुबह भी आपने उनके बारे में कई संस्मरण सुनाए, लेकिन बहुत जिज्ञासा है कि आप अपने से जुड़ी कोई घटना बताएँ जो आपको पूरी तरह से झिंझोड़ देती है। - श्री संजीव जैन, जयपुर समाधान - देखो! अभी एक घटना तो मैंने बताई जिसने मुझे पूरी तरह हिला दिया, मुझे पूरी तरह बदल दिया। आपने पूछा ऐसी कौन सी घटना है जिसने आपको झिंझोड़ा हो, भीतर तक प्रभावित किया हो। घटनाएँ कई हैं लेकिन जब कभी गुरुचरणों में आने के बाद मैं अपने अतीत और गुरु के सम्बन्धों को याद करता हूँ तो एक घटना आज भी मुझे बेहद प्रभावित करती है। मेरी आदत थी उनकी वैय्यावृत्ति करने की और मैं बिना वैय्यावृत्ति के सोता नहीं था। जब तक मैं संघ में रहा उनके चरणों में सोया हूँ। जब तक वे लेट नहीं जाते मैं लेटता नहीं था। कभी मेरा अन्तराय हो जाए, मैं थोड़ी जल्दी झपकी ले लूँ, वह देर से सामायिक से उठे तो मेरी जब भी नींद खुल जाए मैं उनके पाँव दबाता था। एक दिन उन्होंने मुझे बुलाया और मुझसे कहा- सुनो ! गुरु के प्रति भक्ति होनी चाहिए, मोह नहीं। तुम भक्ति करो, मोह मत करो। क्योंकि जिस प्रकार परिवार का मोह छोड़ना पड़ता है, उसी प्रकार गुरु का मोह भी छोड़ना पड़ता है। यह शब्द मुझे आज भी याद आते हैं। मैं गलत था, मुझे लगा कि गुरु शिष्य का निर्माण किस तरीके से करते हैं? अमिट छाप है, आज भी मेरा हृदय उनके प्रति समर्पित है। मेरा रोम-रोम समर्पित है। मैं अपनी भक्ति अपने शब्दों में कह नहीं सकता और बताने की आवश्यकता भी महसूस नहीं करता। लेकिन उनके उन शब्दों ने मुझे मोह से मुक्त कर दिया, वरना हो सकता था मैं गुरुमोही बनकर अपने ही रास्ते में अवरोध पैदा कर लेता।
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