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अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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Blog Entries posted by संयम स्वर्ण महोत्सव

  1. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ज्ञानसागर जी की ज्ञानसाधना प्रतियोगिता
    दिनांक 1 जुलाई 2018
     
    स्वाध्याय करे

    ज्ञानसागर जी ज्ञानसाधना प्रतियोगिता प्रारंभ
    https://vidyasagar.guru/pratiyogita/gyansadhna/
     
     
    इस प्रतियोगिता में आप 3 जुलाई तक भाग ले सकते हैं 
     
  2. संयम स्वर्ण महोत्सव
    गुरुशिष्य महामिलन
    बंधा जी क्षेत्र में हुआ पूज्य आचार्य भगवान श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज ससंघ से पूज्यवर मुनिश्री १०८ अभय सागर जी महाराज ससंघ का मंगल मिलन
    गुरुदेव नमोस्तु
     
     
  3. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चलो          ?           चलो 
    चेतन्य चमत्कारी बाबा 
           के दरबार   बंधा जी
    भव्य आगवानी,महामत्काभिषेक
        ?   ??    ?
        दिनाँक 30 जून शनिवार
          ?     ??    ?
    बुन्देलखण्ड के मध्य स्थित अनेकोनेक आतिशयों से युक्त ,चैतन्य चमत्कारी भगवान अजित नाथ जी  भोंयेरे बाले बाबा के दरबार मे  30 जून शनिवार की प्रातः बेला में शताब्दी संत श्रीमद आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महाराज बालयति संघ के साथ पधार रहे हैं।
    आचार्य भगवंत की आगवानी मुनि श्री अभय सागर जी महाराज ससंघ एवं बंधा जी  क्षेत्र के हजारों जैन जैनेतर भव्यता के साथ करेंगे। 
           बंधा जी क्षेत्र कमेटी अध्यक्ष श्री मुरली मनोहर जी द्वारा प्राप्त जानकारी अनुसार  हजारों की संख्या में अजेन आचार्य भगवंत की आगवानी को आतुर है। आस पास की विभिन्न भजन मंडली,अखाड़े, और हजारों कलशों के साथ आचार्य भगवंत की आगवानी की जावेगी। सम्पूर्ण मार्ग में बन्धनबार आगवानी के लिए सजाये गए है।
            प्रातः काल आगवानी के साथ ही ब्र. सुनील भैया जी के निर्देशन में  विभिन्न्न कार्यक्रम सम्पादित किये जावेगें।
    ?    1008 कलशों से श्री अजितनाथ भगवान का महामस्तकाभिषेक
    ? आचार्य श्री का संयम स्वर्ण महोत्सव , आचार्य भगवंत की दिव्य देशना।
     ? विद्योदय फ़िल्म का प्रदर्शन
        आदि विविध कार्यक्रम क्षेत्र कमेटी द्वारा आयोजित है।
    ????????
    श्री बंधा जी क्षेत्र के अतिशय कारी चेतन्य चमत्कारी बाबा अजितनाथ जी  के दरवार  में एक बार जो आ जाता है उसे बार बार आने का मन करता है। यह इस क्षेत्र का प्रथम अतिशय है।
     वर्ष 2017 और 2018 के जनवरी माह में आर्यिका श्रेष्ठ विज्ञानमती माता जी के सानिध्य में इस क्षेत्र पर विभिन्न कार्यक्रम  आयोजित हुये देश के कोने-कोने से बड़ी संख्या में आये श्रद्धालुओं ने कार्यक्रम में शिरकत की और बंधा जी क्षेत्र के भोंयेरे बाले बाबा के चमत्कार को साक्षात निहारा।
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      क्षेत्र कमेटी द्वारा आगन्तुको के आवास एवं भोजन की व्यवस्था रखी गयी है। 
        पधारकर सातिशय पुण्य लाभ अर्जित करें।
    ????????
        मुरली मनोहर जैन(अध्यक्ष बंधा जी क्षेत्र कमेटी) 8964977550  समस्त प्रबंध कार्यकारणी। क्षेत्रिय समाज
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  4. संयम स्वर्ण महोत्सव
    जुलाई १३, २०१८ 
     
    रात्रि विश्राम हवाई अड्डे के कम्युनिटी सेन्टर में होगा।  कल प्रातः 6.30 या 7.00 बजे खजुराहो में प्रवेश होगा।
     
     
    11 जुलाई 2018, 5:15 PM परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का मंगल विहार छतरपुर से खजुराहो मार्ग पर, आज दोपहर में हुआ।
    आज रात्रि विश्राम- ब्रजपुरा स्कूल भवन (छतरपुर से 11 किमी)
    कल की आहार चर्या- बसारी ग्राम (ब्रजपुरा से 8 किमी)
    8 जुलाई, रविवार।
    आज रात्रि विश्राम- खमा गाँव (4 किमी पूर्व नोगाव से)
    कल प्रातः 7 बजे- नोगाँव में भव्य मंगल प्रवेश।
    विशेष: छतरपुर में 11 जुलाई को सुवह मंगल प्रवेश संभावित।
     
    6 जुलाई २०१८ 
    मंगल विहार जतारा से हुआ.........
    आचार्य भगवन संत शिरोमणि 108 विद्यासागर जी महामुनिराज का मंगल विहार हो गया है।
    संभावित रात्रि विश्राम सिमरा में होने की संभावना है 
    कल की आहार चर्या पलेरा में होने की संभावना है।

    5 जुलाई, 4:00PM
    लिथोरा ग्राम से हुआ विहार,
    गूंज उठी तब जय जयकार ।
    12 किमी है सीतापुर ग्राम,
    यहाँ संघ करेगा रात्रि विश्राम ।।
     
    कल प्रातः होगा मंगल विहार,
    जब सूरज का होगा उजियारा।
    नगर नागरिक झूम उठेंगे,
    कल मंगल प्रवेश होगा "जतारा" ।।

    4 जुलाई 2018
    आज बॅंधा जी  से आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का विहार हुआ । बम्होरी रात्रि विश्राम
    आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का विहार आज श्याम ४:२० बजे अतिशय क्षेत्र बंधा जी से बम्होरी (खजुराहो) की ओर हुआ
    आज आचार्यश्री ससंघ का रात्रि विश्राम बम्होरी में होने की संभावना है 
    संभावित दिशा- बम्होरी, जतारा, छतरपुर
    आज 28 जून अभी 3 बजे परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का मंगल विहार, टीकमगढ़ से अतिशय क्षेत्र श्री बंधा जी की ओर हुआ।
    आज रात्रि विश्राम: रामपुरा (11 किमी)
    कल की आहार चर्या: दिगौड़ा सम्भावित (रमपुरा से 13 किमी)
    आचार्यसंघ की अगवानी करेंगे मुनि संघ।
    पूज्य मुनिश्री अभय सागर जी महाराज ससंघ का बरुआ सागर से हुआ मंगल विहार। परसों 30 जून को प्रातःकाल पूज्य आचार्यसंघ की भव्य अगवानी करेंगे, पूज्य मुनिश्री अभय सागर जी ससंघ। वर्षो के अंतराल के उपरांत करेंगे गुरु दर्शन, मिलेंगे गुरुचरण।
     
     
     
    भव्य मंगल प्रवेश
    नन्दीश्वर कालोनी टीकमगढ़
    श्रीमद आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महाराज का बालयति संघ सहित भव्य मंगल प्रवेश नन्दीश्वर जिनालय टीकमगढ़ में आज 28 जून गुरुवार को प्रातः वेला में हुआ।  गत वर्ष नन्दीश्वर कालोनी में आर्यिका माँ विज्ञानमती माता जी ससंघ वर्षायोग सम्पन्न हुआ था। आर्यिका संघ के सानिध्य में त्रिकाल चौवीसी जिनालय का भूमिपूजन किया गया था।
     

     
    विद्या गुरु का मंगल विहार संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का अभी अभी ६.४० मिनट पर अतिशय क्षेत्र पपौरा जी से टीकमगढ़ के लिए हुए मंगल विहार आहरचार्य टीकमगढ़ संभावित
     

  5. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आगे की सुचना देखने के लिए यहाँ पर क्लिक करें
     
     
    पूज्य आचार्य भगवन ससंघ का हुआ मंगल विहार।

    आज 28 जून अभी 3 बजे परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का मंगल विहार, टीकमगढ़ से अतिशय क्षेत्र श्री बंधा जी की ओर हुआ।
    ◆ आज रात्रि विश्राम: रमपुरा (11 किमी)
    ◆ कल की आहार चर्या: दिगौड़ा सम्भावित (रमपुरा से 13 किमी)
    ■ आचार्यसंघ की अगवानी करेंगे मुनि संघ।
    पूज्य मुनिश्री अभय सागर जी महाराज ससंघ का बरुआ सागर से हुआ मंगल विहार। परसों 30 जून को प्रातःकाल पूज्य आचार्यसंघ की भव्य अगवानी करेंगे, पूज्य मुनिश्री अभय सागर जी ससंघ। वर्षो के अंतराल के उपरांत करेंगे गुरु दर्शन, मिलेंगे गुरुचरण।
     
     
     
    भव्य मंगल प्रवेश
    नन्दीश्वर कालोनी टीकमगढ़

             ???
    श्रीमद आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महाराज का बालयति संघ सहित भव्य मंगल प्रवेश नन्दीश्वर जिनालय टीकमगढ़ में आज 28 जून गुरुवार को प्रातः वेला में हुआ । 
           गत वर्ष नन्दीश्वर कालोनी में आर्यिका माँ विज्ञानमती माता जी ससंघ वर्षायोग सम्पन्न हुआ था। आर्यिका संघ के सानिध्य में त्रिकाल चौवीसी जिनालय का भूमिपूजन किया गया था।
     


    ????????
     
     
    ?विद्या गुरु का मंगल विहार?
    संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का अभी अभी ६.४० मिनट पर अतिशय क्षेत्र पपौरा जी से टीकमगढ़ के लिए हुए मंगल विहार
    आहरचार्य ??टीकमगढ़ संभावित

     
  6. संयम स्वर्ण महोत्सव
    दिनाँक  आज 27 जून 2018 को
    अतिशय क्षेत्र पपौरा जी में स्थित दयोदय गौशाला मे  हथकरघा भवन का शिलान्यास आचार्य श्री के मंगल सानिध्य में हुआ
      "मेरी आस्था का नाम" भाग्योदय,प्रतिभास्थली, मातृभाषा के उन्नायक,गोधन पालक, हथकरघा को जीवंत करने वाले तपस्वी श्रेष्ठ चर्या के धारी आचार्य "श्री १०८ विद्यासागर सागर जी महाराज जी" महा मुनिराज जैसे साक्षात तीर्थंकर जैन धर्म में है
    गुरुदेव नमन
    रजत जैन भिलाई
     
    हथकरघा का शुभारंभ
    अतिशय क्षेत्र श्री पपौरा जी मे, परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ सानिध्य में, आज प्रातः गौशाला परिसर में हथकरघा केंद्र का शुभारंभ हुआ। यहाँ पर 162 X 45 फ़ीट का विशाल भवन बनकर तैयार हो रहा है। इसमे 108 हथकरघा स्थापित किये जायेंगे।



  7. संयम स्वर्ण महोत्सव
    कल प्रातःकाल की बेला में पूज्य आचार्य श्री जी ससंघ का पपौरा जी से होगा मंगल विहार। विहार दिशा को लेकर सब ओर उम्मीदें जागी।

    हथकरघा का शुभारंभ
    अतिशय क्षेत्र श्री पपौरा जी मे, परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ सानिध्य में, आज प्रातः गौशाला परिसर में हथकरघा केंद्र का शुभारंभ हुआ। यहाँ पर 162 X 45 फ़ीट का विशाल भवन बनकर तैयार हो रहा है। इसमे 108 हथकरघा स्थापित किये जायेंगे।
     
    होगा नवीन जिनालय का शिलान्यास
    कल 28 जून को प्रातः 6 से 7 बजे तक पपौरा जी मे नवीन मन्दिर जी का शिलान्यास का कार्यक्रम ब्र सुनील भैया जी के निर्देशन में सम्पन्न होगा ।
    कल प्रातःकाल मे ही होगा विहार
    पूज्य आचार्यसंघ का मंगल विहार कल प्रातः 7 बजे, पपौरा जी से टीकमगढ़ नगर की ओर होगा। पूज्य आचार्यसंघ की अगवानी टीकमगढ़ में 8 बजे होंगी। नन्दीश्वर कॉलोनी जिनालय टीकमगढ़ में श्री आदिनाथ भगवान की 13 फ़ीट की प्रतिमा आचार्य संघ के सानिध्य एवम प्रतिष्ठाचार्य श्री ब्र सुनील भैया के निर्देसन में वेदी पर प्रतिष्ठा की जाएगी।
     
    दोपहर में टीकमगढ़ से भी हो सकता हैं  मंगल विहार
     
  8. संयम स्वर्ण महोत्सव
    यह कृति आचार्य ज्ञानसागरजी ने उस समय सन् १९५६ में लिखी जब वे क्षुल्लक अवस्था में थे। यह कृति महत्त्वपूर्ण इसलिए नहीं कि इसके लेखक, वर्तमान के आचार्य विद्यासागरजी महाराज के गुरु हैं बल्कि यह इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि वर्तमान में भारत जहाँ जा रहा है, यदि इस पुस्तक के अनुसार चला होता तो स्वतंत्रता के बाद यह देश अपने इतिहास की स्वर्णिम अवस्था को पुनः प्राप्त कर चुका होता। अब भी अवसर है यदि देशवासी इन नीतियों का अनुकरण करें, तो वह दिन दूर नहीं जब यह देश सोने की चिड़िया की ख्याति को पुनः प्राप्त कर पायेगा। आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि यह कृति इसी वर्ष पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज व संघ के देखने, पढ़ने में आयी जबकि इसमें उल्लेखित विषयों को, आचार्य श्री विगत २५ वर्षों से प्रमुखता से प्रवचन में दे रहे हैं।
     
    भूमिका
     
    पूज्य क्षुल्लक श्री १०५ ज्ञानभूषणजी महाराज ने ‘पवित्र मानव जीवन’ काव्य लिखकर समाज का भारी कल्याण किया है। हम सुखी किस प्रकार हों, सामाजिक नाते से हमारा व्यवहार एक दूसरे से कैसे हो, हमारा आहार व्यवहार क्या हो ? हम किस प्रकार स्वस्थ रहें ? सामाजिक आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा किया जा सके? श्रमजीवी तथा पूँजीवादी व्यवस्था का समाज पर क्या प्रभाव होता है और समाज का किस प्रकार शोषण किया जाता है, इस ग्रन्थ में विस्तार पूर्वक किया गया है। गृहस्थधर्म के बारे में विवेचन करते हुए श्री क्षुल्लकजी लिखते हैं -
     
    ‘‘प्रशस्यता सम्पादक नर हो, मुदिर और नारी शम्पा।
    जहाँ विश्व के लिये स्फुरित होती हो दिल में अनुकम्पा॥”
     
    जो व्यक्ति आज भी महिलाओं को समान अधिकार देने के विरुद्ध हैं, उनकी ओर संकेत करते हुए लिखते हैं-
     
    महिलाओं को आज भले ही व्यर्थ बताकर हम कोशे।
    नहीं किसी भी बात में रही वे हैं पीछे मरदों से॥
    जहाँ कुमारिल बातचीत में हार गया था शंकर से।
    तो उसकी औरत ने आकर पुनः निरुत्तर किया उसे॥
     
    इसके अतिरिक्त माता-पिता का बच्चों के प्रति कर्तव्य, पुरातनकालीन तथा वर्तमान शिक्षाप्रणाली का तुलनात्मक विवेचन तथा गृहस्थाश्रम की मर्यादाओं पर बड़े सुन्दर और अनोखे ढंग से प्रकाश डाला गया है। यदि हम यों कहें कि भारतीय संस्कृति तथा आम्नाय के महान् ग्रन्थों के सार को सरल और सुबोध काव्य में रचकर समाज का मार्गदर्शन किया है तो इसमें कोई अत्युक्ति नहीं होगी। हम आशा करते हैं कि इस ग्रन्थ का अध्ययन करके पाठक जहाँ अपना जीवन सफल करेंगे, वहाँ समाज को सुखी बनाने के लिये इसका अधिक से अधिक प्रचार करेंगे।
     
    देवकुमार जैन
    सम्पादक - ‘मातृभूमि’ हिसार
    प्रथम संस्करण से साभार सन् १९५६ (वि. सं. २०१३)
  9. संयम स्वर्ण महोत्सव
    मानव जीवन इस भूतल पर उत्तम सब सुखदाता है।
    जिसको अपनाने से नर से नारायण हो पाता है।
    गिरि में रत्न तक्र में मक्खन ताराओं में चन्द्र रहे।
    वैसे ही यह नर जीवन भी जन्म जात में दुर्लभ है ॥१॥
     
    फिर भी इस शरीरधारी ने भूरि-भूरि नर तन पाया।
    इसी तरह से महावीर के शासन में है बतलाया॥
    किन्तु नहीं इसके जीवन में कुछ भी मानवता आई।
    प्रत्युत वत्सलता के पहले खुदगर्जी दिल को भाई ॥२॥
     
    हमको लडडू हों पर को फिर चाहे रोटी भी न मिले।
    पड़ौसी का घर जलकर भी मेरा तिनका भी न हिले॥
    हम सोवें पलंग पर वह फिर पराल पर भी क्यों सोवे।
    हमको साल दुसाले हों, उसको चिथड़ा भी क्यों होवे ॥३॥
     
    मेरी मरहम पट्टी में उसकी चमड़ी भी आ जावे।
    रहूँ सुखी मैं फिर चाहे वह कितना क्यों न दुःख पावे॥
    औरों का हो नाश हमारे पास यथेष्ट पसारा से।
    अमन चैन हो जावे ऐसी ऐसी विचार धारा से ॥४॥
     
    बनना तो था फूल किन्तु यह हुआ शूल जनता भर का।
    खून चूसने वाला होकर घृणा पात्र यों दर दर का॥
    होनी तो थी महक सभी के दिल को खुश करने वाली।
    हुई नुकीली चाल किन्तु हो पद पद पर चुभने वाली ॥५॥
     
    होना तो था हार हृदय का कोमलता अपना करके।
    कठोरता से रुला ठोकरों में ठकराया जा करके॥
    ऊपर से नर होकर भी दिल से राक्षसता अपनाई।
    अपनी मूँछ मरोड़ दूसरों पर निष्ठुरता दिखलाई ॥६॥
     
    लोगों ने इसलिए नाम लेने को भी खोटा माना।
    जिसके दर्शन हो जाने से रोटी में टोटा जाना॥
    कौन काम का इस भूतल पर ऐसे जीवन का पाना।
    जीवन हो तो ऐसा जनता, का मन मोहन हो जाना ॥७॥
     
    मानवता है यही किन्तु है कठिन इसे अपना लेना,
    जहाँ पसीना बहे अन्य का अपना खून बहा देना॥
    आप कष्ट में पड़कर भी साथी के कष्टों को खोवे।
    कहीं बुराई में फँसते को सत्पथ का दर्शक होवे ॥८॥
     
    पहले उसे खिला करके अपने खाने की बात करे।
    उचित बात के कहने में फिर नहीं किसी से कभी डरे॥
    कहीं किसी के हकूक पर तो कभी नहीं अधिकार करे।
    अपने हक में से भी थोड़ा औरों का उपकार करे ॥९॥
     
    रावण सा राजा होने को नहीं कभी भी याद करे।
    रामचन्द्र के जीवन का तन मन से पुनरुद्धार करे॥
    जिसके संयोग में सभी के दिल को सुख साता होवे।
    वियोग में दृगजल से जनता भूरि भूरि निज उर धोवे ॥१०॥
     
    पहले खूब विचार सोचकर किसी बात को अपनावे।
    तब सुदृढ़ाध्यवसान सहित फिर अपने पथ पर जम जावे॥
    घोर परीषह आने पर भी फिर उस पर से नहीं चिगे।
    कल्पकाल के वायुवेग से,भी क्या कहो सुमेरु डिगे ॥११॥
     
    विपत्ति को सम्पत्ति मूल कह कर उसमें नहि घबरावे।
    पा सम्पत्ति मग्न हो उसमें अपने को न भूल जावे॥
    नहीं दूसरों के दोषों पर दृष्टि जरा भी फैलावे।
    बन कर हंस समान विवेकी गुण का गाहक कहलावे॥१२॥
     
    कृतज्ञता का भाव हृदय अपने में सदा उकीर धरे।
    तृण के बदले पय देने वाली गैय्या को याद करे॥
    गुरुवों से आशिर्लेकर छोटों को उर से लगा चले।
    भरसक दीनों के दुःखों को हरने से नहि कभी टले॥ १३॥
     
    नहीं पराया इस जीवन में जीने के उजियारे हैं।
    सभी एक से एक चमकते हुये गमन के तारे हैं।
    मृदु प्रेम पीयूष पान बस एक भाव में बहता हो।
    वह समाज का समाज उसका, यों हो करके रहता हो॥ १४॥
  10. संयम स्वर्ण महोत्सव
    सामाजिक सुधार के बारे में हम आज बताते हैं।
    जो इसके सच्चे आदी उनकी गुण गाथा गाते हैं।
    व्यक्ति व्यक्ति मिल करके चलने से ही समाज होता है।
    नहीं व्यक्तियों से विभिन्न कोई समाज समझौता है॥ १५॥
     
    सह निवास तो पशुओं का भी हो जाता है आपस में।
    एक दूसरे की सहायता किन्तु नहीं होती उनमें॥
    इसीलिए उसको समाज कहने में सभ्य हिचकते हैं।
    कहना होती समाज नाम, उसका विवेक युत रखते हैं॥१६॥
     
    बूंद बूंद मिलकर ही सागर बन पाता है हे भाई।
    सूत सूत से मिलकर चादर बनती सबको सुखदाई॥
    है समाज के लिए व्यक्ति के सुधार की आवश्यकता।
    टिका हुआ है व्यक्ति रूप पैरों पर समाज का तख्ता॥ १७॥
     
    यदि व्यक्तियों का मानस उन्नतपन को अपनावेगा।  
    समाज अपने आप वहाँ फिर क्यों न उच्च बन पावेगा।
    इसीलिए यदि समाज को हम, ठीक रूप देना चाहें।
    तो व्यक्तित्व आपके से लेनी होगी समुचित राहें ॥१८॥
     
    नहीं दूसरे को सुधारने से सुधार हो पाता है।
    अपने आप सुधरने से फिर सुधर दूसरा जाता है।
    खरबूजे को देख सदा खरबूजा रंग बदलता है।
    अनुकरणीयपने के द्वारा पिता पुत्र में ढलता है ॥१९॥
     
    पानी को जिस रुख का ढलाव मिलता है बह जाता है।
    जन समूह भी जो देखे वैसा करने लग पाता है।।
    यदि हम सोच करें समाज का समाज अच्छे पथ चाले।
    तो हम पहले अपने जीवन में, अच्छी आदत डालें ॥२०॥
     
    मैं हूँ सुखी और की मेरे, को क्या पड़ी यही खोटी।
    बात किन्तु हों सभी सुखी, यह धिषणा होवे तो मोटी॥
    विज्ञ पुरुष निज अन्तरंग में, विश्व प्रेम का रंग भरे।
    सबके जीवन में मेरा जीवन है ऐसा भाव धरे ॥२१॥
     
    अनायास ही जनहित की बातों पर सदा विचार करे।
    भय विक्षोभ लोभ कामादिक दुर्भावों से दूर टरे॥
    आशीर्वाद बडों से लेकर बच्चों की सम्भाल करे।
    नहीं किसी से वैर किन्तु सब जीवों में समभाव धरे ॥२२॥
     
    क्योंकि अकेला धागा क्या गुह्याच्छादन का काम करे।
    तिनका तिनके से मिलकर पथ के काँटों को सहज हरे॥
    यह समाज है सदन तुल्य इसमें आने जाने वाले।
    लोगों के पैरों से उसमें कूड़ा सहज सत्त्व पाले ॥२३॥
     
    जिसको झाड़ पोछकर उसको सुन्दर साफ बना लेना।
    नहीं आज का काम सदा का उसको दूर हटा देना॥
    किन्तु यह हुआ पूर्व काल में संयमी जनों के कर से।
    जिनका मानस ढका हुआ होता था सुन्दर सम्वर से ॥२४॥
     
    इसीलिए वे समझ सोचकर इस पर कदम बढ़ाते थे।
    पाप वासनाओं से इसको, पूरी तरह बचाते थे।
    किन्तु आज वह काम आ गया, हम जैसों के हाथों में।
    फँसे हुए जो खुद हैं भैया, दुरभिमान की घातों में ॥२५॥
     
    तलाक जैसी बातों का भी, प्रचार करने को दौड़े।
    आज हमारी समाज के नेताओं के मन के घोड़े॥
    तो फिर क्या सुधार की आशा, झाडू देने वाला ही।
    शूल बिछावे उस पथ पर क्यों, चल पावे सुख से राही ॥२६॥
     
    साथी हो तो साथ निभावे क्यों फिर पथ के बीच तजे।
    दुःख और सुख में सहाय हो, वीर प्रभु का नाम भजे॥
    यही एक सामाजिकता की, कुंजी मानी जाती है।
    बढ़ा प्रेम आपस में समाज को, जीवित रख पाती है॥२७॥
     
    एक बात है और सुनो, हम चाहे अनुयायी करना।
    तो उनको पहले बतलावे, ऐहिक कष्टों का हरना॥
    प्यासे को यदि कहीं दीख, पावे सहसा जल का झरना।
    पहले पीवेगा पानी फिर, पीछे सीखेगा तरना ॥२८॥
     
    गाड़ी को हो वाङ्ग वगैरह, ताकि न कहीं अटक जावे।
    तथा ध्यान यह तो गढे में गिर करके न टूट पावे॥
    वैसे ही समाज संचालक, पाप पंक में नहीं फँसे।
    आवश्यकता भी पूरी हो, ताकि समय बीते सुख से ॥२९॥
  11. संयम स्वर्ण महोत्सव
    सबसे पहली आवश्यकता अन्न और जल की होती।
    उसके पीछे गृहस्थ लोगों की, टांगों में हो धोती॥
    इन दोनों के बिना जगत का, कभी नहीं हो निस्तारा।
    पेट पालने से ही हो सकता है भजन भाव सारा॥ ३०॥
  12. संयम स्वर्ण महोत्सव
    अन्न वस्त्र यह दो चीजें मानव भर को आवश्यक हैं।
    बिना अन्न के देखो भाई किसके कैसे प्राण रहें।
    अन्न और कपड़ा ये दोनों खेती से हो पाते हैं।
    इसीलिए खेती का वैभव हमें बुजुर्ग बताते हैं॥ ३१॥
     
    कर्मभूमि की आदि कल्पवृक्षों के विनष्ट होने से।
    करुणा पूर्ण हृदय होकर के आर्यजनों के रोने से॥
    सबसे पहले ऋषभदेव ने खेती का उपदेश दिया।
    जबकि उन्होंने भूखों मरते लोगों को पहचान लिया॥ ३२॥
     
    उनके सदुपदेश पर जिन लोगों ने समुचित लक्ष्य दिया।
    शाकाहारी रह यथावगत आर्य जनों का पक्ष लिया।
    हन्त जिन्होंने कृषि महत्त्व को फिर भी नहीं जान पाया।
    मांसाहारी हो लाचारी से म्लेच्छपना अपनाया॥ ३३॥
     
    ऐसे खेती करना माना गया प्रतीक अहिंसा का।
    इसकी उन्नति जहाँ वहाँ से हो निर्वासन हिंसा का॥
    क्या कपड़ा क्या मकान आदिक खेती मूलक हैं सारे।
    जहाँ नहीं खेती होती वे जङ्ग मचाते बेचारे॥ ३४॥
     
    अगर अहिंसा माता के सेवक होने का चारा है।
    तो खेती को उन्नति देना पहला काम हमारा है॥
    खेती के करने से हो तो तृण कण के भण्डार भरे।
    कण की है दरकार हमें तृण जहाँ हमारे बैल चरें॥ ३५॥
     
    यद्यपि आज जगत भर के, दिल में हीरों का आदर है।
    किन्तु अन्न के कण हीरों से भी बढ़कर यों याद रहे।
    एक ओर रत्नों की ढेरी दूजी ओर धान की हो।
    पहले धान बटोरेगा वह जिसमें बुद्धि आपकी हो ॥३६॥
     
    क्योंकि धान को खाकर जीवित रह सकता है तनुधारी।
    भूखे को है व्यर्थ भेंट में दी हो रत्नों की लारी॥
    रत्न खण्ड से अधिक सुरक्षित सदा अन्न का दाना हो।
    घर में जिससे अतिथि जनों का भी सत्कार सहाना हो ॥३७॥
     
    अहो अन्न की महिमा को हम कहो कहाँ तक बतलावें।
    जिसके बिना विश्व वैरागी ऋषिवर भी न रहन पावें॥
    सुख से अन्न भरोसे ही इस भारत का युग बीता है।
    किन्तु हमारा भारत प्यारा, आज अन्न से रीता है ॥३८॥
     
    जहाँ अन्न की लगी रहा करती सड़कों पर झंझोटी।
    इतर देश के निवासियों को, भी जो देता था रोटी॥
    आज उसी भारत में परदेशों से अगर अन्न आवे।
    तो यह भारत देश निवासी यथा पेट रोटी पावे ॥३९॥
     
    यह क्यों हुआ कि हुए अन्न तज हम कंकर लेने वाले।
    इसीलिए पड़ रहे हमारे लिए रोटियों के लाले॥
    जहाँ अन्न की कदर नहीं फिर खेती को क्यों याद करें।
    यों पर के मारक बनकर फिर सहसा अपने आप मरें॥४०॥
  13. संयम स्वर्ण महोत्सव
    खेती को देना बढ़वारी भू पर स्वर्ग बसाना है।
    खेती का विरोध करना, राक्षसता का फैलाना है॥
    खेती की उन्नति निमित पशुपालन भी आवश्यक है।
    जो कि हमें दे दूध घास खावे फिर हल की साथ रहे॥४१॥
     
    अहो दूध का नम्बर माना गया अन्न से भी पहला।
    हर मानव क्या नहीं दूध माँ के से शिशुपन में बहला॥
    दूध शाक ही खाद्य मनुज का पशु का भी दिखलाता है।
    लाचारी में वा कुसङ्ग में, पलभक्षी हो जाता है ॥४२॥
     
    अतः दूध की नदी बहे तृण कण की टाल लगे भारी।
    फिर से इस भारत पर ऐसी, खेती की हो बढ़वारी॥
    उत्पादन रक्षण रूपान्तर, करण यथा विधि खेती के।
    हमें बताये बड़े जनों ने तीन तरीके हैं नीके ॥४३॥
     
    पहला वैश्य जनों का दूजा, क्षत्रिय लोगों का धंधा।
    तीजा शूद्रवर्ग का जिसमें, लगता कन्धे से कन्धा॥
    एक दूसरे से हिलमिल यों, चलने से ही कार्य बने।
    जो इसमें विरुद्ध हो जावे, वह जनता के प्राण हने ॥४४॥
     
    कोई कहता हो कि कृषकता, तो हिंसा का साधन है।
    इसीलिए है पाप अहो व्यापार किये होता धन है॥
    किन्तु यहाँ पहले तो खेती बिना कहो व्यापार कहाँ।
    ब्याज बनेगा तभी कि जब कुछ,भी होवेगा मूल जहाँ ॥४५॥
     
    यद्यपि है व्यापार कारुपन खनिज चीज पर भी होता।
    किन्तु न जीवन दाता केवल चकाचौंध का समझौता॥
    अतः हमारे पूर्व जनों ने उसे दृष्टि में गौण किया।
    कृषि संश्रित व्यापार कारुपन को ही यहाँ महत्त्व दिया ॥४६॥
  14. संयम स्वर्ण महोत्सव
    किञ्च जीव मरना हिंसा हो, तो वे कहाँ नहीं मरते।
    ऋषियों के भी हलन चलन में, भूरि जीव तनु संहरते॥
    कहीं जीव मारा जाकर भी, हिंसा नहीं बताई है।
    यतना पूर्वक यदि मानव, कर्तव्य करे सुखदाई है ॥४७॥
     
    अस्त्र चिकित्सक घावविदारण करता हो सद्भावों से।
    मर जावे रोगी तो भी वह, दूर पाप के दावों से॥
    अगर किसी की गोली से भी, जीव नहीं मरने पाता।
    फिर भी अपने दुर्भावों से वह है हिंसक बन जाता ॥४८॥
  15. संयम स्वर्ण महोत्सव
    तो क्या बुरा विचार किसी के, प्रति भी होता किसान का।
    वह तो सन्तत भला चाहने वाला होता जहान का॥
    उदारता जो किसान में वह क्या बनिये में होती है।
    कारुपना तो कहा गया संकीर्ण भाव का गोती है ॥४९॥
     
    किन्तु हुआ व्यापार कारुपन पर ही आज लक्ष्य सारा।
    खेती से हो गई घृणा यों बनी बुरी विचारधारा॥
    बनने लगे कारखाने यन्त्रालय आगे से आगे।
    अतः व्यर्थ हो पशु बेचारे, जीवित ही कटने लागे ॥५०॥
  16. संयम स्वर्ण महोत्सव
    गो सेवा में दिलीप, ने अपना सर्वस्व लगाया था।
    बन गोपाल कृष्ण ने भारत को परमोच्च बनाया था।
    वृषभदास ने पशुपालन में था कैसा चित्त लगाया।
    हा उस भारत के लालों ने आज ढंग क्या अपनाया ॥५१॥
  17. संयम स्वर्ण महोत्सव
    देखो सोमदेव ने अपने नीति सूत्र में अपनाया।
    जहाँ कि होवे सहस्त्रांशु का, समुदय होने को आया॥
    शय्या से उठते ही राजा, पहले गो दर्शन करले।
    तब फिर पीछे प्रजा परीक्षण, में दे चित्त पाप हरले ॥५२॥
     
    अहो पुरातनकाल में रहा, पशु पालन पर गौरव था।
    हर गृहस्थ के घर में होता, पाया जाता गोरव था॥
    किसी हेतु वश अगर गेह में, नहीं एक भी गो होती।
    भाग्यहीन अपने को कहकर, उसकी चित्तवृत्ति रोती ॥५३॥
  18. संयम स्वर्ण महोत्सव
    सुख स्वास्थ्य मूलक होता जिसका इच्छुक है तनधारी।
    चैन नहीं रुग्ण को जरा भी यद्यपि हों चीजें सारी॥
    रोग देह में हुआ गेह यह नीरस ही हो जाता है।
    देखे जिधर उधर ही उसको अन्धकार दिखलाता है ॥५६॥
  19. संयम स्वर्ण महोत्सव
    मनोनियन्त्रण सात्त्विक भोजन यथाविधि व्यायाम करे।
    वह प्रकृति देवी के मुख से सहजतया आरोग्य वरे॥
    इस अनुभूत योग को सम्प्रति मुग्ध बुद्धि क्यों याद करे।
    इधर उधर की औषधियों में तनु धन वृष बर्बाद करे॥५७॥
     
    मन के विकार मदमात्सर्य क्रोध व्यभिचारादिक हैं।
    नहीं विकलता दूर हटेगी, जब तक ये उद्रित्त्क रहें।
    देखों काम ज्वर को वैद्यक में कैसा बतलाया है।
    जिसमें फँसकर कितनों ही ने, जीवन वृथा गमाया है॥५८॥
  20. संयम स्वर्ण महोत्सव
    सात्विकता में द्रव्य देश या काल भाव की विवेच्यता।
    द्रव्य निरामिष निर्मदकारक हो वह ठीक हुआ करता॥
    विहार आदिक में भातों का खाना ही अनुकूल कहा।
    मारवाड़ में नहीं, वहाँ तो मोठ और बाजरा अहा ॥५९॥
  21. संयम स्वर्ण महोत्सव
    सूर्योदय से घण्टे पीछे, घण्टे पहले दिनास्त से।
    भूख लगे जोर से तभी खाना निश्चित यह आगम से॥
    अरविकाल में भोजन करना मनुज देह के विरुद्ध है।
    जो कि रात्रि में भोजन करता उसको कहा निशाचर है॥६०॥

    मिट्टी कंकर आदि से रहित योग्य रीति से बना हुआ।
    यथाभिरूचि खाया जावे वह जिस का दुर्जर भाव मुवा॥
  22. संयम स्वर्ण महोत्सव
    है व्यायाम शरीर परिश्रम को विज्ञों ने बतलाया।
    समुदिष्ट वह एक, दूसरा सहजतया होता आया॥ ६१॥
     
    पहला दण्ड पेलना आदिक रूप से किया जाता है।
    दूजा घर धन्धों में अपने आप किन्तु हो पाता है।
    चून पीसना, पानी भरना, रोटी करना आदिक में।
    औरत लोग कहो क्या भैय्या श्रमित दीखती नहीं हमें॥६२॥
     
    बिनजी करना, लाङ्गल धरना, कुदाल आदि चलाने में।
    मानव भी तो थक रहता है, निज कर्तव्य निभाने में॥
    किन्तु इसी सादे सुन्दर जीवन से श्री प्रभु राजी है।
    और इसी से हम लोगों की तबियत रहती ताजी है॥ ६३॥
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