Jump to content
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

Administrators
  • Posts

    22,360
  • Joined

  • Last visited

  • Days Won

    894

 Content Type 

Forums

Gallery

Downloads

आलेख - Articles

आचार्य श्री विद्यासागर दिगंबर जैन पाठशाला

विचार सूत्र

प्रवचन -आचार्य विद्यासागर जी

भावांजलि - आचार्य विद्यासागर जी

गुरु प्रसंग

मूकमाटी -The Silent Earth

हिन्दी काव्य

आचार्यश्री विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम

विशेष पुस्तकें

संयम कीर्ति स्तम्भ

संयम स्वर्ण महोत्सव प्रतियोगिता

ग्रन्थ पद्यानुवाद

विद्या वाणी संकलन - आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के प्रवचन

आचार्य श्री जी की पसंदीदा पुस्तकें

Blogs

Events

Profiles

ऑडियो

Store

Videos Directory

Everything posted by संयम स्वर्ण महोत्सव

  1. जब पुराण पढ़ने की बात आती थी, तब आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ग्रन्थ के चयन की ओर चले जाते थे। चयन करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि पुराणों में श्रृंगार रस का भी वर्णन है। नये-नये वैरागी का, स्वाध्यायी का, अध्येता का कहीं वैराग्य घट न जाये श्रृंगार रस में बह न जाये। ऐसा ही एक बार विद्याधर के शुरुआत के दिनों में जब पुराण पढ़ने की बात आई तो आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज तत्त्व के मर्म को समझने वाले साधु परमेष्ठी ने विद्याधर को आदेश की भाषा में बुलाकर कहा उस समय ब्र. विद्याधर हाथ जोड़कर गुरु के सम्मुख बैठ गए फिर उन्हें गुरुदेव से आदेश प्राप्त हुआ कि आदिपुराण के पूर्वार्द्ध को एवं जयोदय को अभी तुम्हें नहीं पढ़ना तब शिष्य अपनी छोटी/अल्प बुद्धि से बड़ी बातें समझ गये और सिर झुकाकर अपने गुरुवर को स्वीकारता प्रदान कर दी। ऐसे आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज अनोखी प्रतिभा के धनी थे, जो पात्र को देखकर ग्रन्थ का चयन करते थे, जिससे पात्र में परिपक्वता आ जाती थी। मूलाचार प्रदीप वाचना पर ३०.०५.१९९९, रविवार,नेमावर
  2. कर्तव्य विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार https://vidyasagar.guru/quotes/anya-sankalan/kartavy/
×
×
  • Create New...