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अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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Blog Entries posted by संयम स्वर्ण महोत्सव

  1. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चलो          ?           चलो 
    चेतन्य चमत्कारी बाबा 
           के दरबार   बंधा जी
    भव्य आगवानी,महामत्काभिषेक
        ?   ??    ?
        दिनाँक 30 जून शनिवार
          ?     ??    ?
    बुन्देलखण्ड के मध्य स्थित अनेकोनेक आतिशयों से युक्त ,चैतन्य चमत्कारी भगवान अजित नाथ जी  भोंयेरे बाले बाबा के दरबार मे  30 जून शनिवार की प्रातः बेला में शताब्दी संत श्रीमद आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महाराज बालयति संघ के साथ पधार रहे हैं।
    आचार्य भगवंत की आगवानी मुनि श्री अभय सागर जी महाराज ससंघ एवं बंधा जी  क्षेत्र के हजारों जैन जैनेतर भव्यता के साथ करेंगे। 
           बंधा जी क्षेत्र कमेटी अध्यक्ष श्री मुरली मनोहर जी द्वारा प्राप्त जानकारी अनुसार  हजारों की संख्या में अजेन आचार्य भगवंत की आगवानी को आतुर है। आस पास की विभिन्न भजन मंडली,अखाड़े, और हजारों कलशों के साथ आचार्य भगवंत की आगवानी की जावेगी। सम्पूर्ण मार्ग में बन्धनबार आगवानी के लिए सजाये गए है।
            प्रातः काल आगवानी के साथ ही ब्र. सुनील भैया जी के निर्देशन में  विभिन्न्न कार्यक्रम सम्पादित किये जावेगें।
    ?    1008 कलशों से श्री अजितनाथ भगवान का महामस्तकाभिषेक
    ? आचार्य श्री का संयम स्वर्ण महोत्सव , आचार्य भगवंत की दिव्य देशना।
     ? विद्योदय फ़िल्म का प्रदर्शन
        आदि विविध कार्यक्रम क्षेत्र कमेटी द्वारा आयोजित है।
    ????????
    श्री बंधा जी क्षेत्र के अतिशय कारी चेतन्य चमत्कारी बाबा अजितनाथ जी  के दरवार  में एक बार जो आ जाता है उसे बार बार आने का मन करता है। यह इस क्षेत्र का प्रथम अतिशय है।
     वर्ष 2017 और 2018 के जनवरी माह में आर्यिका श्रेष्ठ विज्ञानमती माता जी के सानिध्य में इस क्षेत्र पर विभिन्न कार्यक्रम  आयोजित हुये देश के कोने-कोने से बड़ी संख्या में आये श्रद्धालुओं ने कार्यक्रम में शिरकत की और बंधा जी क्षेत्र के भोंयेरे बाले बाबा के चमत्कार को साक्षात निहारा।
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      क्षेत्र कमेटी द्वारा आगन्तुको के आवास एवं भोजन की व्यवस्था रखी गयी है। 
        पधारकर सातिशय पुण्य लाभ अर्जित करें।
    ????????
        मुरली मनोहर जैन(अध्यक्ष बंधा जी क्षेत्र कमेटी) 8964977550  समस्त प्रबंध कार्यकारणी। क्षेत्रिय समाज
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  2. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आचार्य श्री के संघस्थ ब्रह्मचारी सुनील भैया ने बताया खजुराहो में आचार्य श्री के चरण पढ़ने के पश्चात से ही प्रतिदिन विदेशी सैलानियों आचार्य श्री के दर्शनों का लाभ ले रहे हैं। आज स्पेन और इटली से आए सैलानियों ने आचार्य श्री से आशीर्वाद ग्रहण किया और सप्ताह में एक दिन मांसाहार न खाने का संकल्प लिया। आचार्य श्री ने उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया। साथ ही नार्वे से आये पर्यटक ने 5 साल तक शाकाहारी रहने का आचार्य श्री के समक्ष संकल्प लिया। इसके अलावा चीन, कोरिया, अर्जेंटीना, स्पेन, इटली मैक्सिको से आए 75 सैलानी सप्ताह में एक दिन मांस ना खाने का संकल्प ले चुके हैं । खजुराहो अंतरराष्ट्रीय पर्यटक स्थल है प्रतिदिन विदेशी लोग आचार्य श्री की चर्या के बारे में सुनकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। दिन में एक बार आहार और पानी लेना, नंगे पैर पद बिहार करना ,शक्कर नमक हरी सब्जियां आदि आहार में नहीं लेना आदि चर्या को सुनकर विदेशी सैलानी दांतो तले उंगली दबा लेते हैं और भारतीय संस्कृति और जैन धर्म के इतिहास के प्रति जागरुक हो रहे हैं|
     
  3. संयम स्वर्ण महोत्सव
    President of India Ramnath Kovind, who will be visiting Nagpur on September 22 for various programmes, will also visit Jain pilgrimage place in Ramtek. The President will visit Shantinath Jain Mandir on the occasion of ongoing Chaurmas and seek blessings of Acharya Vidyasagar Maharaj who is camping at the temple since the past few months.
    The district administration and top police officials reviewed the arrangements for the VVIP visit. Superintendent of Police Shailesh Balkawde said that the President will be accompanied by a galaxy of ministers and other high-profile dignitaries. Kovid will reach Ramtek around 10.30 am and spend 45 minutes in the temple premises. Governor Ch Vidyasagar Rao, Chief Minister Devendra Fadnavis, Union Minister Nitin Gadkari, and other dignitaries will accompany the President during his Ramtek visit.
    source : http://www.nagpurtoday.in/president-kovind-to-visit-jain-temple-in-ramtek-during-his-nagpur-tour/09201530
     
     
  4. संयम स्वर्ण महोत्सव
    इस दुनियाँ में जड़ चेतन चीजों का जो कुछ डेरा है।
    मैं हूँ ज्ञाता दृष्टा केवल और न कुछ भी मेरा है ॥१८९॥
     
    यह शरीर भी भिन्न चीज है जिसमें लिया बसेरा है।
    सदा अरूपी चेतन मैं यह रूपादिक का डेरा है।।
    और सभी तो भिन्न धरा धन-धाम पुत्र सोदार दारा।
    आदिक दीख रहे हैं देखो इनमें क्या मेरा न्यारा ॥१९०॥
  5. संयम स्वर्ण महोत्सव
    अकेला न हूँ,
    गुरुदेव साथ हैं,
    हैं आत्मसात् वे।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  6. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि अखबार वाले दुनिया की खबर तो लेते हैं लेकिन आत्मा से बेखबर रहते हैं। न्यूज का अर्थ होता है नार्थ, ईस्ट, वेस्ट, साउथ, चारों दिषाओं की खबर को न्यूज कहते हैं। आचार्य श्री ने पद्म पुराण का सीता की अग्नि परीक्षा संबंधी प्रसंग सुनाया और कहा कि अग्नि परीक्षा नहीं थी कर्मों की सही परीक्षा थी वह धधकती अग्नि थी और जैसे ही प्रवेष हुआ वह जल कुण्ड में परिवर्तित हो गया सारी जनता देखते रह गयी और राम भी देखते रह गये और भवन की ओर चले गये। यह दृष्य महत्वपूर्ण था। यह पुण्य की परीक्षा थी । दिल्ली वाले टेªन की टिकिट लेकर आये हैं आने जाने की । ऐसे ही जिस भव में जाना है उसकी आयु बंध हो जाता है। रिजर्वेषन जैसा होता है। इसलिये अच्छे कर्म करते रहना चाहिये जिससे हमें देव आयु, मनुष्यायु का बंध हो । आप भगवान से सब कुछ मांगते हो, आज तक ऐसा नहीं सुना कि किसी ने कहा हो कि मेरा पूरा धन ले लो, यह क्यों नहीं कहते। मांगते तो सब कुछ हो देते नहीं हो। आँखे बंद करके ध्यान करो, भक्ति करो भगवान की सब ठीक हो जायेगा । पुण्य के उदय से रोग, शोक, संकट सब दूर हो जाते हैं। यह ध्यान रखे की हमारे कर्म ही सब करते हैं, पुरूषार्थ के द्वारा आयु कर्म को घटा बढ़ा सकते हैं लेकिन परिवर्तन नहीं होता है।
  7. संयम स्वर्ण महोत्सव
    तीव्र कषाय वाले के पास जाने से लोग डरते हैं। यह इन्द्रियों की दासता की कहानी की आदत पड़ी है। दूसरों के बारे में तो अचरज करता है लेकिन अपने बारे में अचरज नहीं करता। आपका इतिहास लाल स्याही से लिखा गया है वह पाँच पाप सहित है। करोड़पति होकर भी रोड़पति बन गये है। दरिद्रता रखो लेकिन कषाय की दरिद्रता रखो। ख्याति, पूजा, लाभ मिलने से कई लोगों के खून में वृद्धि हो जाती है। यह रस आत्मा को नहीं मन को मिलता है। डॉ. मान, सम्मान की खुराक नहीं दे पाते हैं। लागों को मान की खुराक होती है तो कहते हैं कि अखबार में मेरा नाम फ्रंट पर आना चाहिये और किसी का नाम नहीं आना चाहिये। ठंडे़ बस्ते में मन को रखना मोक्षमार्ग है। डॉ. को मन की दवाई भी ढूंढ़ लेना चाहिये। मन के विजेता इंद्रिय विजेता बनोगे तभी मोक्ष मार्ग के नेता बनोगे। मान – अपमान को जिसने समझ लिया उसने मोक्ष मार्ग को समझ लिया।
  8. संयम स्वर्ण महोत्सव
    प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {2 दिसंबर 2017}
     
    चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की आप लोग कहते हैं की अग्नि जल रही है जबकि अग्नि जलती नहीं जलाती है, जलता तो ईंधन है। इसी प्रकार गाड़ी अपने आप चलती नहीं है उसे ड्राईवर चलाता है। वैसे ही हमारी आत्मा हमारे शरीर को चलाती है और हमारा शरीर उसी के अनुसार कार्य करता है। इसे ही भेद विज्ञान कहा जाता है जो इसे समझ लिया उसे फिर कुछ और समझने की आवश्यकता नहीं होती है।
     
    यह शरीर उस आत्म तत्व के लिए एक जेल के सामान है वह इसके अन्दर कैदी की भांति कैद है। हम जो भी कार्य करते हैं उठते, बैठते, चलते – फिरते एवं आदि जो भी शरीर के द्वारा दैनिक क्रियाएँ करते हैं वह सब आत्म तत्व के द्वारा ही निर्देशित होता है शरीर तो केवल उसके अनुरूप कार्य करता है। हमें केवल अपने आत्म तत्व की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है।
    आज आचार्य श्री को आहार कराने का सौभाग्य ब्रह्मचारिणी उन्नति   दीदी, नरेश भाई जैन, जयसुख भाई जैन मुंबई  निवासी के यहाँ हुए |
     
    यह जानकारी चंद्रगिरि डोंगरगढ़ से निशांत जैन (निशु) ने दी है।
     
     
  9. संयम स्वर्ण महोत्सव
    अग्नि पिटती,
    लोह की संगति से,
    अब तो चेतो।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  10. संयम स्वर्ण महोत्सव
    पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि हमेशा अग्रिम पंक्ति में रहने बाले लोग अपने पीछे बाली पंक्ति के लोगों को बिसमृत कर देते हैं जबकि जो अधिकार आगे बालों को होते हैं बही अधिकार अंतिम पंक्ति के व्यक्ति को भी होते हैं परंतु आगे बाला हमेशा अपने को श्रेस्ठ साबित करने में लगा रहता है, जरूरी नहीं की जो ज्येष्ठ हो बही श्रेष्ठ हो। श्रेष्ठा का मापदंड बड़ेपन से नहीं बल्कि बड़प्पन से माना जाता है। जो बड़े होते हुए भी कभी अपने को बड़ा सिद्ध करने की होड़ में नहीं लगते उन्ही के भीतर से बड़प्पन झलकता है।
     
    उन्होंने कहा कि धर्म कभी भी ये नहीं सिखाता की अपने अधिकारों का दुरपयोग करो बल्कि वो तो हमेशा कर्तव्यों के पालन की सीख देता है। आप सभी अपने कर्तव्यों का निर्बाहन करना प्रारम्भ करें तो कभी अधिकारों की प्राप्ति के लिए संघर्ष नहीं करना पडेगा। समाज की अंतिम पंक्ति के योग्य व्यक्तियों को भी उतना ही संम्मान मिलना चाहिए जितना अग्रिम पंक्ति के व्यक्ति को दिया जाता है तभी सामान नागरिक सहिंता का सिद्धान्त लागु हो सकेगा।
     
    गुरुवर ने कहा कि जो सेवा के कार्यों को प्राथमिकता देते हैं समाज में उन्हें स्वयं ही सम्मान मिलने लगता है। चातुर्मास में जो सेवा कार्यों में लगे रहे उनके कार्यों की सराहना की जानी चाहिए क्योंकि उन्होंने निस्वार्थ भाव से सेवा कार्य किया है। विशेष रूप से दूसरों को प्रेम से भोजन कराने बाले कार्यकर्त्ता साधुबाद के पात्र हैं। जो कार्यकर्ता बनकर कार्य करता है उसकी सदैव ही प्रशंसा की जाती है।
  11. संयम स्वर्ण महोत्सव
    एक ऐसी भारतीय हस्ती जिसकी पहचान शिक्षा, व्यवसाय, प्रबंध तथा सलाह के क्षेत्र में पूरे विश्व में है। जिसे दुनिया के पचास जाने-माने शिक्षा संस्थानों ने शैक्षणिक विशेषज्ञता प्रदान करने के लिए आमंत्रित किया है। आप अनेक अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के डॉयरेक्टर, प्रशिक्षक, सलाहकार हैं। आपके विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में 67 शोध आलेख प्रस्तुत हुए हैं। आप विश्व की 21 संस्थानों के मानद् सदस्य हैं तथा आप भारत की रिलायंस इंडस्ट्री में स्वतंत्र डॉयरेक्टर हैं
     

     
    सादगी, सरलता और धार्मिक आचरण के साक्षात जीवंत व्यक्तित्व वाले श्री दीपकचंद जी जैन (अमेरिका निवासी) को जब पिछले दिनों योगीश्वर, जगउपकारी विद्यासागरजी महा मुनिराज का परिचय मिला, तो आपके अंतर्मन मन से दर्शन हेतु भाव हुए। इसमें अनायास ही अर्पित पाटोदी (इंदौर) निमित्त बन गए।
    विविध क्षेत्रों में पहचान बना चुके अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त दीपकचंद जी ने ज़रा भी देर किए बिना रविवार 15 अक्टूबर 2017 को रामटेक, जहाँ आचार्य महाराज विराजमान हैं, वहाँ पहुंच गए। अर्पित पाटोदी ने एक दिन पहले पहुंचकर आचार्यश्री जी को आपकी विशेषज्ञता का परिचय बता दिया था।
     
    गुरुवर आचार्यश्री जी को आपने अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में चल रही शैक्षणिक विशेषताओं की जानकारियों से अवगत कराया। आचार्यश्री जी ने प्रतिभा-स्थली और देश में चल रही शिक्षा, शिक्षा का माध्यम, भारतीय संस्कृति और हस्तकरघा विषय पर चर्चा की। जो लगभग सवा घंटे तक चली। आपने आचार्यश्री जी के पहली बार साक्षात दर्शन किए। उनसे लंबी चर्चा का अवसर मिला। इस अविस्मरणीय अनुभूति को अपने मन में संजो लिया।
    बाद में आपने प्रतिभास्थली की प्रमुख दीदीयों से प्रतिभास्थली में चल रही गतिविधियों पर विस्तार से जानकारी प्राप्त की तथा अपना बहुमूल्य मार्गदर्शन दिया।
     
     
     
  12. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ☀☀ संस्मरण क्रमांक 32☀☀
               ? अंतर्बोध ?
    उस दिन शाम का समय था । आचार्य महाराज मन्दिर के बाहर खुली दालान में विराजे थे। थोड़ी देर तत्व-चर्चा होती रही। उस पवित्र और शान्त वातावरण में आचार्य महाराज का सामीप्य पाकर सभी बहुत खुश थे। फिर सामायिक का समय हो गया। आचार्य महाराज वह से उठकर भीतर मन्दिर में चले गए । बाहर किसी ने मुझसे कहा कि  भीतर भी बिजली जला आओ। आचार्य श्री ने यह बात सुन ली । मैंने जैसे ही भीतर कदम रखा कि भीतर से वे बोल उठे - " हाँ भाई, भीतर की बिजली जला लो।" 
    उनका आशय आन्तरिक आत्म- ज्योति के प्रकाश से था। मैं अवाक्. खड़ा रह गया । उनके द्वारा कही गई वह बात बोध- वाक्य बन गई, जो हमे आज भी आत्म-ज्योति जलाए रखने के लिए निरन्तर प्रेरित करती हैं।
    कुण्डलपुर (१९७७)
    ? आत्मान्वेषी पुस्तक से साभार?
    ? मुनि श्री क्षमासागर जी महाराज
     
  13. संयम स्वर्ण महोत्सव
    अति मात्रा में,
    पथ्य भी कुपथ्य हो,
    मात्रा माँ सी हो।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  14. संयम स्वर्ण महोत्सव
    अति संधान,
    अनुसंधान नहीं,
    संधान साधो।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  15. संयम स्वर्ण महोत्सव
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    ? सुनो भाई खुशियां मनाओ रे
                         आयी संयम स्वर्ण जयंती?
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       ☀☀ संस्मरण क्रमांक 10☀☀
               ? अंतिम लक्ष्य सिद्धि ?
     अपने गुरु के समान ही आचार्य श्री विद्यासागर जी भी जीवन का अंतिम लक्ष्य समाधि मरणकी सिद्धि हेतु कृतसंकल्प है। इसका स्पष्ट चित्रण संघस्थ ज्येष्ठ साधु मुनि श्री योग सागर जी की आचार्य श्री जी से हुई चर्चा से स्पष्ट हो जाता है 
    आचार्य श्री विद्यासागर जी का भोपाल मध्यप्रदेश चातुर्मास सन 2016 के बाद डोंगरगढ़ राजनांदगांव छत्तीसगढ़ तक का लंबा बिहार हुआ इस दौरान आचार्य श्री जी अधिक कमजोर दिखने लगे थे ,डोंगरगढ़ पहुंचने से 1 दिन पूर्व 5 अप्रैल 2017को ईर्यापथ  भक्ति के पश्चात मुनि श्री योगसागर जी ने आचार्य श्री जी से कहा- *आपने अपने शरीर को पहले से ज्यादा बुड्ढा (वृद्ध) बना लिया है, पीछे से देखें तो ऐसा लगता है जैसे 80 साल के बुड्ढे जा रहे हैं संघस्थ साधुओं ने भी उनका समर्थन किया। तब आचार्य जी बोले तुम लोग मेरी भी तो सुनो मैं कहां कह रहा हूं कि मैं 80 का नहीं हूं I am running seventy ।  इसमें 70 से लेकर 80  तक का काल आ जाता है
    आचार्य श्री जी ने आगे कहा -  सल्लेखना के लिए 12 वर्ष क्यों बताएं मूलाचार प्रदीप,भगवती आराधना में क्या पढ़ा है,तैयारी तो करनी ही होगी मेरे पास जितना अनुभव है उसी आधार पर तथा गुरुजी से जो मिला उसी अनुभव के आधार पर तैयारी करनी होगी।
    अपने पास *आगम चक्खू साहूहै मैं उसी के अनुसार अपने शरीर को सल्लेखना के लिए तैयार कर रहा हूं, वैसे ही साधना चल रही है बहुत दुर्लभ है यह सल्लेखना।
    आप लोग इसको अच्छे तरीके से समझें , मिलेक्ट्री की तरह बस प्रत्येक समय तैयार रहो। i am ready to face it
    बस धीरे-धीरे उस ओर बढ़ते जाना है सतत अभ्यास से ही इस दुर्लभ लक्ष्य को साधा जा सकता है। प्रभु से यही प्रार्थना करता हूं कि एकत्वभावना का चिंतन करते हुए आयु की पूर्णता हो।
     इससे अधिक गुरु एवं शिष्य की क्षमता का उदाहरण और क्या हो सकता है यथा गुरु तथा शिष्य, कैसा दुर्लभ संयोग
    शिक्षा -  हमारे जीवन का अंत न जाने कब आ जाए,इसलिए जैसे आचार्य श्री जी सल्लेखना के प्रति  हर समय जाग्रत हैं , वैसे ही हम अपने जीवन के प्रत्येक क्षण में जाग्रत रहें, सतर्क रहें और एक ना एक दिन उस परम समाधि अवस्था को प्राप्त करें।
     ? आचार्य श्री विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम प्रणामाञ्जली भाग 1 से साभार
     प्रस्तुतिकर्ता -  नरेन्द्र जबेरा (सांगानेर)
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  16. संयम स्वर्ण महोत्सव
    दिनाँक  आज 27 जून 2018 को
    अतिशय क्षेत्र पपौरा जी में स्थित दयोदय गौशाला मे  हथकरघा भवन का शिलान्यास आचार्य श्री के मंगल सानिध्य में हुआ
      "मेरी आस्था का नाम" भाग्योदय,प्रतिभास्थली, मातृभाषा के उन्नायक,गोधन पालक, हथकरघा को जीवंत करने वाले तपस्वी श्रेष्ठ चर्या के धारी आचार्य "श्री १०८ विद्यासागर सागर जी महाराज जी" महा मुनिराज जैसे साक्षात तीर्थंकर जैन धर्म में है
    गुरुदेव नमन
    रजत जैन भिलाई
     
    हथकरघा का शुभारंभ
    अतिशय क्षेत्र श्री पपौरा जी मे, परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ सानिध्य में, आज प्रातः गौशाला परिसर में हथकरघा केंद्र का शुभारंभ हुआ। यहाँ पर 162 X 45 फ़ीट का विशाल भवन बनकर तैयार हो रहा है। इसमे 108 हथकरघा स्थापित किये जायेंगे।



  17. संयम स्वर्ण महोत्सव
    अदत्तादान का विवेचन
     
    बलात्कार या धोखेबाजी से किसी दूसरे के धन को हड़प जाना सो अदत्तादान है। बलात्कार से दूसरे के धन को छीन लेने वाला डाकू कहलाता है, तो बहानाबाजी से किसी के धन को ले लेने वाला चोर कहलाता है। चोरी या डकैती करना किसी का जातीय धन्धा नहीं है, जो ऐसा करता है वही वैसा बना रहता है। डाकू को तो प्रायः लोग जान जाते हैं अतः उससे सावधान होकर भी रह सकते हैं मगर चोर की कोई पहचान नहीं है। अत: उससे बचना कठिन है। जो कि चोर अनेक तरह का होता है जिसके प्रचलन को चोर्य कहना चाहिये। वह भी डाका डालने की तरह से अदत्तादान है, बिना दिये ही ले लेना है।
     
    जैसे किसी सुनार को जेवर बना देने के लिए सोना दिया गया तो वह जेवर बना देता है और उसकी उचित मजूरी लेता है वह तो ठीक, किन्तु उसमें थोड़ी बहुत खाद अपनी तरफ से मिला देता है और उसकी एवज में सोना जो रख लेता है वह उसका अदत्तादान हुआ, बिना दिये लेना हुआ, अत: चोर ठहरता है। दर्जी कोट वगैरह बनाकर देता है और उसकी उचित सिलाई लेता है, ठीक है; किन्तु जहाँ तीन गज कपड़ा लगता हो वहाँ बहाना बनाकर साढ़े तीन गज ले लेवे तो वह अदत्तादान है। ऐसे ही और भी समझ लेना चाहिये |
     
    और जैसा कि प्रायः यहां पर देखने में आ रहा है। कोई भी आदमी पूर्ण विश्वास के साथ में यह नहीं कह सकता कि बाजार में वह एक चीज तो ठीक मूल्य पर और सही सलामत मिल जायेगी। जीरे में गाजर का बीज, काली मिरचीं में एरण्ड ककड़ी के बीज, घी में डालड़ा इत्यादि हर एक चीज में कोई न कोई तत्सदृश अल्प मूल्य की चीज का सम्मिश्रण करके देना तो साधारण बात है। और तो क्या शरीर को स्वस्थ बनाने के लिए ली जाने वाली दवाओं तक में बनावटीपन होता है जिससे कि देश की परिस्थिति दिन पर दिन भयंकर से भयंकर बनती चली जा रही है। मैंने एक किताब में पढ़ा था कि एक हिन्दुस्तानी भाई विलायत में घूम रहा था सो क्या देखता है कि एक बहिन जिसके आगे दूध का बर्तन रखा हुआ है, फिकर में खड़ी है, अत: उसने पूछा कि बहिन तुम क्या सोच रही हो?
     
    उसने कहा भाई साहेब ! मैंने एक महाशय को 5 सेर दूध देना कह दिया और, और मेरी गाय ने आज जो दूध दिया वह पाँच कम पांच सेर है, अत: मैं सोच रही हूं कि क्या करूं? इसे पूरा कैसे किया जा सकता है? इस पर उसी हिन्दुस्तानी भाई ने तपाक से कहा कि वाह यह भी कोई फिकर की बात है क्या? इसका उपाय तो बहुत आसान है, इसमें से भले ही तुम पाव भर दूध और भी निकाल लो तथा इसमें आधासेर पानी मिलाकर दे आओ। उसने तो शाबाशी पाने के लिए ऐसा कहा था मगर उस बहिन ने कहा,छी! छी! यह तो बहुत बुरी बात है, ऐसा करने से हमारे देश के बाल बच्चे पोषण कैसे पा सकेंगे?
     
    खैर ! कहने का मतलब यह है कि मिलावट बाजी ने बहुत तरक्की पाई है, जिससे हमारे देश का भारी नुकसान हो रहा है। सरसों के तेल में सियालकांटी का तेल मिलाकर दिया जाता है जिसको उपयोग में लाने वाले, उसको शरीर पर लगाने वालों के शरीर में फोड़े-फुन्सी हो जाते हैं, परन्तु देने वाले को इसकी कोई चिन्ता नहीं, उसे तो सिर्फ पैसा प्राप्त कर लेने की सूझती है। आज पैसा परमेश्वर बन रहा है किन्तु मनुष्य-मनुष्य भी नहीं रहा, कैसी दयनीय दशा है कहा नहीं जाता। मैं सोच ही रहा था कि एक आदमी बोला महाराज क्या आश्चर्य है? मिलावट में तो थोड़ी बहुत चीज रहती है। यहां तो चाय के बदले सर्वेसर्वा चनों के छिलके होते हैं और लेने वाले को पता भी नहीं पड़ता, हद हो गई।
  18. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ??????????    ☀☀ संस्मरण क्रमांक 49☀☀
               ? अद्भुत गुरु भक्ति ?
    आज सारे विश्व को एक अद्भुत हीरा,जो युगों-युगों तक चमकेगा, ऐसे आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज रूपी हीरे को देने का श्रेय पूज्य आचार्य भगवन श्री 108 ज्ञानसागर जी महाराजको जाता है।
       
    अध्यात्म सरोवर के राजहंस आगम की पर्याय संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी जैसे  महाश्रमण, जिन के चरणों में नतमस्तक होते हैं जिनका गुणानुवाद करते हुए भाव विभोर होते हो, अपनी ह्रदय वेदिका पर  उन्होंने जिन्हें प्रतिष्ठित कर रखा है।ऐसे पूज्य परम श्रद्धेय आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज महाराज के प्रति आचार्य श्री का अद्भुत समर्पण, असीम प्रेम और अद्वितीय गुरु भक्ति दिखाई देती है।
    एक बार पिच्छिधारी एक शिष्य ने आचार्य श्री जी से पूछा- "भगवन!आपको अपने गुरु (ज्ञान सागर जी)की याद आती होगी।" आचार्य श्री बोले- "आनी ही चाहिए,सपनों में खूब दिखते हैं।सल्लेखना वाला दृश्य भी दिखता है,मुझे तो लगता ही नहीं कि वह है ही नहीं। शिष्य ने कहा- यह आपकी आस्था की सघनता है आचार्य श्री जी बोले - "हमारी आस्था भी वह है, रास्ता भी वह है और शास्ता (गुरु) भी वो ही हैं।यह याददाश्त भी उन्हीं की है।"
      सच में आचार्य श्री जी अपने गुरु  ज्ञानसागर जी महाराज के अनंत उपकारों का हमेशा स्मरण करते रहते है।
     आचार्य श्री जी, ज्ञानसागर जी महाराज के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुए कहा करते है- वे तो धन्य थे ही, हम अपने आपको भी धन्य समझते हैं कि उन्होंने अपने पास रखते हुए हमें ऐसी उत्कृष्ट सल्लेखना भी दिखा दी।
     ? आचार्य श्री विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम प्रणामाञ्जली भाग 1 से साभार?
     
  19. संयम स्वर्ण महोत्सव
    जो जैसा स्वयं जीवन में जीते है,वही औरों को भी उपदेश देते हैं। उनकी कथनी हमेशा करनी से भरी होती है,जो कि हम सभी को अंदर से प्रभावित करती है उनके प्रति श्रद्धान को मजबूत बनाती है। गर्मी का समय था कुंडलपुर में ग्रीष्मकालीन वाचना प्रारंभ हो चुकी थीं। वहाँ पर विशेष रूप से चारों ओर कुंडालकर पहाड़ी होने से गर्मी ज्यादा पड़ती है,वहीं ऊपर पहाड़ पर शौच क्रिया के उपरांत आचार्य महाराज और हम कुछ महाराज पेड़ के नीचे बैठे हुए थे। चर्चा चल रही थी,चर्चा के दौरान आचार्य महाराज ने शिक्षा देते हुए कहा-ऐसे ही जंगलों में,पहाड़ों पर,गिरी-गुफाओं में रहा करते थे।आज हीन सहनन की वजह से नगरों में रहने लगे।आज हम इतनी साधना नहीं कर सकते कोई बात नहीं,लेकिन मौन की साधना एवं नासा दृष्टि रखे रहने की साधना अवश्य कर सकते हैं। नेत्र इन्द्रिय के व्यापार से,इधर-उधर देखने से, पर पदार्थ की ओर दृष्टि ले जाने से राग-द्वेष अधिक होता है एवं बोलने के माध्यम से ही पर का परिचय होता है। जिससे राग-द्वेष बढ़ता है मन में चंचलता आती है। इसलिए नेत्रेन्द्रिय एवं रस इन्द्रिय पर संयम रखना अनिवार्य है यदि हमने नेत्रेन्द्रिय एवं जिव्हा इन्द्रिय को संयत बना लिया तो समझना आज भी बहुत बड़ी साधना कर ली।

    आचार्य महाराज प्रायः घण्टो-घण्टो नासा दृष्टि किये हुए,पद्मासन लगाकर ध्यान मुद्रा में मौन बैठे रहते है।और यही हम साधकों से भी उपदेश में रहते हैं। सच है इस कलि काल में भी ऐसी साधना करने वाले साधकों के चरणों में अपना मस्तक श्रद्धा से झुक जाता है। इनके दर्शन करने से उन जंगलों में रहने वाले मुनियों की याद आती है कि जैसे गुरुदेव हमेशा शहरों से,नगरों से दूर एकांत जंगली इलाके के क्षेत्रों पर जाकर साधना करते है,वे मुनिराज भी ऐसा ही करते होंगे।जैसे हमने शास्त्रों में सुना है,पढ़ा है वैसी ही साधु की अद्भुत चर्या के दर्शन उनके चरणों में आकर करने का सौभाग्य प्राप्त होता है।उन्हें देखकर आंखे तृप्त नहीं होती।ऐसा लगता है हमेशा उनकी वीतराग छवि के दर्शन करता रहूं।
    (कुंडलपुर)
    अनुभूत रास्ता पुस्तक से साभार
  20. संयम स्वर्ण महोत्सव
    अधम-पत्ते,
    तोड़े, कोंपलें बढ़े,
    पौधा प्रसन्न !
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  21. संयम स्वर्ण महोत्सव
    अंधाधुँध यूँ,
    महाबंध न करो,
    अंधों में अंधों।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
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