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अदत्तादान का विवेचन


संयम स्वर्ण महोत्सव

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अदत्तादान का विवेचन

 

बलात्कार या धोखेबाजी से किसी दूसरे के धन को हड़प जाना सो अदत्तादान है। बलात्कार से दूसरे के धन को छीन लेने वाला डाकू कहलाता है, तो बहानाबाजी से किसी के धन को ले लेने वाला चोर कहलाता है। चोरी या डकैती करना किसी का जातीय धन्धा नहीं है, जो ऐसा करता है वही वैसा बना रहता है। डाकू को तो प्रायः लोग जान जाते हैं अतः उससे सावधान होकर भी रह सकते हैं मगर चोर की कोई पहचान नहीं है। अत: उससे बचना कठिन है। जो कि चोर अनेक तरह का होता है जिसके प्रचलन को चोर्य कहना चाहिये। वह भी डाका डालने की तरह से अदत्तादान है, बिना दिये ही ले लेना है।

 

जैसे किसी सुनार को जेवर बना देने के लिए सोना दिया गया तो वह जेवर बना देता है और उसकी उचित मजूरी लेता है वह तो ठीक, किन्तु उसमें थोड़ी बहुत खाद अपनी तरफ से मिला देता है और उसकी एवज में सोना जो रख लेता है वह उसका अदत्तादान हुआ, बिना दिये लेना हुआ, अत: चोर ठहरता है। दर्जी कोट वगैरह बनाकर देता है और उसकी उचित सिलाई लेता है, ठीक है; किन्तु जहाँ तीन गज कपड़ा लगता हो वहाँ बहाना बनाकर साढ़े तीन गज ले लेवे तो वह अदत्तादान है। ऐसे ही और भी समझ लेना चाहिये |

 

और जैसा कि प्रायः यहां पर देखने में आ रहा है। कोई भी आदमी पूर्ण विश्वास के साथ में यह नहीं कह सकता कि बाजार में वह एक चीज तो ठीक मूल्य पर और सही सलामत मिल जायेगी। जीरे में गाजर का बीज, काली मिरचीं में एरण्ड ककड़ी के बीज, घी में डालड़ा इत्यादि हर एक चीज में कोई न कोई तत्सदृश अल्प मूल्य की चीज का सम्मिश्रण करके देना तो साधारण बात है। और तो क्या शरीर को स्वस्थ बनाने के लिए ली जाने वाली दवाओं तक में बनावटीपन होता है जिससे कि देश की परिस्थिति दिन पर दिन भयंकर से भयंकर बनती चली जा रही है। मैंने एक किताब में पढ़ा था कि एक हिन्दुस्तानी भाई विलायत में घूम रहा था सो क्या देखता है कि एक बहिन जिसके आगे दूध का बर्तन रखा हुआ है, फिकर में खड़ी है, अत: उसने पूछा कि बहिन तुम क्या सोच रही हो?

 

उसने कहा भाई साहेब ! मैंने एक महाशय को 5 सेर दूध देना कह दिया और, और मेरी गाय ने आज जो दूध दिया वह पाँच कम पांच सेर है, अत: मैं सोच रही हूं कि क्या करूं? इसे पूरा कैसे किया जा सकता है? इस पर उसी हिन्दुस्तानी भाई ने तपाक से कहा कि वाह यह भी कोई फिकर की बात है क्या? इसका उपाय तो बहुत आसान है, इसमें से भले ही तुम पाव भर दूध और भी निकाल लो तथा इसमें आधासेर पानी मिलाकर दे आओ। उसने तो शाबाशी पाने के लिए ऐसा कहा था मगर उस बहिन ने कहा,छी! छी! यह तो बहुत बुरी बात है, ऐसा करने से हमारे देश के बाल बच्चे पोषण कैसे पा सकेंगे?

 

खैर ! कहने का मतलब यह है कि मिलावट बाजी ने बहुत तरक्की पाई है, जिससे हमारे देश का भारी नुकसान हो रहा है। सरसों के तेल में सियालकांटी का तेल मिलाकर दिया जाता है जिसको उपयोग में लाने वाले, उसको शरीर पर लगाने वालों के शरीर में फोड़े-फुन्सी हो जाते हैं, परन्तु देने वाले को इसकी कोई चिन्ता नहीं, उसे तो सिर्फ पैसा प्राप्त कर लेने की सूझती है। आज पैसा परमेश्वर बन रहा है किन्तु मनुष्य-मनुष्य भी नहीं रहा, कैसी दयनीय दशा है कहा नहीं जाता। मैं सोच ही रहा था कि एक आदमी बोला महाराज क्या आश्चर्य है? मिलावट में तो थोड़ी बहुत चीज रहती है। यहां तो चाय के बदले सर्वेसर्वा चनों के छिलके होते हैं और लेने वाले को पता भी नहीं पड़ता, हद हो गई।

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