अद्भुत चर्या - 69 वां स्वर्णिम संस्मरण
जो जैसा स्वयं जीवन में जीते है,वही औरों को भी उपदेश देते हैं। उनकी कथनी हमेशा करनी से भरी होती है,जो कि हम सभी को अंदर से प्रभावित करती है उनके प्रति श्रद्धान को मजबूत बनाती है। गर्मी का समय था कुंडलपुर में ग्रीष्मकालीन वाचना प्रारंभ हो चुकी थीं। वहाँ पर विशेष रूप से चारों ओर कुंडालकर पहाड़ी होने से गर्मी ज्यादा पड़ती है,वहीं ऊपर पहाड़ पर शौच क्रिया के उपरांत आचार्य महाराज और हम कुछ महाराज पेड़ के नीचे बैठे हुए थे। चर्चा चल रही थी,चर्चा के दौरान आचार्य महाराज ने शिक्षा देते हुए कहा-ऐसे ही जंगलों में,पहाड़ों पर,गिरी-गुफाओं में रहा करते थे।आज हीन सहनन की वजह से नगरों में रहने लगे।आज हम इतनी साधना नहीं कर सकते कोई बात नहीं,लेकिन मौन की साधना एवं नासा दृष्टि रखे रहने की साधना अवश्य कर सकते हैं। नेत्र इन्द्रिय के व्यापार से,इधर-उधर देखने से, पर पदार्थ की ओर दृष्टि ले जाने से राग-द्वेष अधिक होता है एवं बोलने के माध्यम से ही पर का परिचय होता है। जिससे राग-द्वेष बढ़ता है मन में चंचलता आती है। इसलिए नेत्रेन्द्रिय एवं रस इन्द्रिय पर संयम रखना अनिवार्य है यदि हमने नेत्रेन्द्रिय एवं जिव्हा इन्द्रिय को संयत बना लिया तो समझना आज भी बहुत बड़ी साधना कर ली।
आचार्य महाराज प्रायः घण्टो-घण्टो नासा दृष्टि किये हुए,पद्मासन लगाकर ध्यान मुद्रा में मौन बैठे रहते है।और यही हम साधकों से भी उपदेश में रहते हैं। सच है इस कलि काल में भी ऐसी साधना करने वाले साधकों के चरणों में अपना मस्तक श्रद्धा से झुक जाता है। इनके दर्शन करने से उन जंगलों में रहने वाले मुनियों की याद आती है कि जैसे गुरुदेव हमेशा शहरों से,नगरों से दूर एकांत जंगली इलाके के क्षेत्रों पर जाकर साधना करते है,वे मुनिराज भी ऐसा ही करते होंगे।जैसे हमने शास्त्रों में सुना है,पढ़ा है वैसी ही साधु की अद्भुत चर्या के दर्शन उनके चरणों में आकर करने का सौभाग्य प्राप्त होता है।उन्हें देखकर आंखे तृप्त नहीं होती।ऐसा लगता है हमेशा उनकी वीतराग छवि के दर्शन करता रहूं।
(कुंडलपुर)
अनुभूत रास्ता पुस्तक से साभार
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.
Create an account or sign in to comment
You need to be a member in order to leave a comment
Create an account
Sign up for a new account in our community. It's easy!
Register a new accountSign in
Already have an account? Sign in here.
Sign In Now