पत्र क्रमांक-१७७
०९-०४-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
सरलता की प्रतिमूर्ति ज्ञानमूर्ति गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में त्रिकाल कोटिकोटि नमोऽस्तु करता हूँ... हे गुरुवर! जब आपने आचार्यपद का गम्भीर जिम्मेदारानायुक्त दायित्व सौंपा तब आपके प्रिय आचार्य मेरे गुरुवर अपने आपको उस योग्य बनाने के लिए उसी क्षण से निरत हो गए। इस सम्बन्ध में दीपचंद जी छाबड़ा नांदसी ने ०८-११-२०१५ भीलवाड़ा में बताया
आचार्यत्व की विशेष साधना की प्रारम्भ
आचार्यपद का दायित्व आ जाने के कारण नव-नवोन्मेषी आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपने अंदर के आचार्यत्व को जागृत करने के लिए विशेष साधना शुरु कर दी । २२ नवम्बर को उपवास रखा और २३ नवम्बर को पारणा करके जब वापिस आये तो आहारदान देने वाले श्रावकों ने गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज को समाचार दिया कि आचार्य महाराज ने आहार में मात्र तीन चीज ली-पानी, दूध और थुली (गेहूँ का दलिया)। यह सुनकर हम सभी आश्चर्यचकित हो गए। फिर २-४ दिन बाद पता चला कि वे तो थुली लेते हैं या रोटी लेते हैं। ४ माह तक मैंने देखा कि आचार्य परमेष्ठी ने फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा १९-०३-१९७३ सोमवार तक यह इन्द्रियविजय रूप रसपरित्याग तप करके अपने आचार्यत्व के दायित्व को अहसास किया।" इसी प्रकार नसीराबाद के रतनलाल जी पाटनी ने सन् २०१५ भीलवाड़ा में बताया-
आचार्यत्व की दृढ़ता
चातुर्मास समाप्त होने के बाद आचार्य विद्यासागर जी महाराज संघ सहित विहारी रोड स्थित जैन धर्मशाला चले गए और वहाँ शीतकाल का प्रवास किया। शीतकाल के प्रवास में आचार्य विद्यासागर जी महाराज की आँखों में कुछ खराबी आयी। तब अजमेर से सर सेठ भागचंद जी सोनी जी आँखों वाले डॉक्टर को लेकर आये और आँख की जाँच करवायी। डॉक्टर साहब बोले चश्मा लगाना पड़ेगा, तो आचार्य श्री ने बड़ी दृढ़ता के साथ साफ मना कर दिया और अनुनय विनय करने के बाद भी दवा डालने के लिए भी मना कर दिया एवं डॉक्टर से पूछा-‘कोई प्राकृतिक इलाज हो तो बताएँ।' तब डॉक्टर साहब ने कहा-प्रतिदिन साफ ठण्डे जल से आँखें धोये, तो आचार्य श्री प्रतिदिन सुबह-दोपहर-शाम अपने कमण्डल के पानी से आँखें धोने लगे।"
इस प्रकार आपके प्रिय आचार्य-मेरे गुरु, आचार्य परमेष्ठी के ३६ मूलगुणों को अपने जीवन में उतारने लगे। आचार्य परमेष्ठी का स्वरूप धीर-वीर-गम्भीर हुआ करता है। अतः आचार्यपद लेते ही उनमें अनायास ही आपके किये हुए संस्कार से वह धीर-वीर-गम्भीरता प्रकट हो गई। इस सम्बन्ध में श्री दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने २६-११-२०१५ भीलवाड़ा में बताया-
धीर-वीर-गम्भीर नूतन आचार्य
‘‘वर्ष १९७२ दिसम्बर माह में परमपूज्य तपस्वी मुनिराज श्री १०८ विवेकसागर जी महाराज कुचामन सिटी में वर्षायोग सम्पन्न करके दीक्षा गुरु क्षपक मुनिराज परमपूज्य श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज एवं नवीन आचार्य परमेष्ठी परमपूज्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज के दर्शनार्थ-वंदनार्थ नसीराबाद पधारे। समाचार मिलने पर पूरी समाज ने भव्य आगवानी की तब शान्तिनाथ दिगम्बर जैन नसियाँ जी में क्षपक मुनिराज श्री ज्ञानसागर जी महाराज, नूतन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज, तपस्वी मुनिराज श्री विवेकसागर जी मुनिराज एवं संघस्थ ऐलक सन्मतिसागर जी, क्षुल्लक सुखसागर जी, क्षुल्लक सम्भवसागर जी, क्षुल्लक विनयसागर जी, क्षुल्लक आदिसागर जी, क्षुल्लक स्वरूपानंद जी और अनेकों पाक्षिक श्रावक-श्राविकाओं तथा अनेक भव्य आत्माओं का वह सम्मेलन अति आनंददायक बन पड़ा था।
तपस्वी मुनिराज विवेकसागर जी महाराज ने दीक्षा गुरु एवं नूतन आचार्य गुरु दोनों गुरुओं की भक्तिपूर्वक त्रय परिक्रमा पूर्वक नमोऽस्तु किया और कायोत्सर्ग पूर्वक सिद्ध-श्रुत-योगी-आचार्य भक्ति दी। फिर पुनः नमोऽस्तु करके द्वय गुरुओं के चरणस्पर्श किए और फिर सामने धरती पर ही बैठ गए। तब नूतन आचार्य परमेष्ठी ने उन्हें इशारा करके अपने बगल वाले पाटे पर बैठने के लिए बोला। तब मुनिराज विवेकसागर जी बोले-‘मुझे यहाँ धरती पर बैठकर आप दोनों गुरुओं को निहारने में जो आनंदानुभव हो रहा है। वह आपके पास बगल में बैठने से नहीं हो पायेगा।
अतः आप कृपा करके मुझे यहीं बैठने की आज्ञा प्रदान कीजिए।' तब आचार्यश्री मंद-मंद मुस्कुराकर रह गए। उस वक्त नूतन आचार्य की आयु २६ वर्ष, क्षपक मुनिराज ज्ञानसागर जी की आयु ८२ वर्ष, तपोधन मुनि विवेकसागर जी आयु ६१ वर्ष, ऐलक सन्मतिसागर जी की आयु ८0 वर्ष, क्षुल्लक सुखसागर जी की आयु ७५ वर्ष, क्षुल्लक सम्भवसागर जी की आयु ७७ वर्ष, क्षुल्लक विनयसागर जी की आयु ६० वर्ष, क्षुल्लक आदिसागर जी की आयु ६० वर्ष के ऊपर, क्षुल्लक स्वरूपानंद जी की आयु २१ वर्ष। इन सब वयोवृद्ध साधुओं के बीच नूतन आचार्य बड़ी गम्भीर मुद्रा को धारण किए हुए ऐसे बैठे थे मानो वर्षों से आचार्य परमेष्ठी हों।'' इस तरह उनके अंदर की योग्यताओं को देखते हुए ऐसा मालूम पड़ता है कि मानो पूर्व जन्म के संस्कार जागृत हो गए हों। ऐसे नवोदित आचार्य एवं क्षपक मुनिराज के चरणों में त्रिकाल वंदन करता हूँ।
आपका
शिष्यानुशिष्य