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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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  1. मुनि श्री समय सागर जी का सासंग प्रवेश कल प्रातः खजुराहो में बड़े ही हर्ष का विषय है कि आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महराज के शिष्य एवं गृहस्त जीवन के लघु भृाता आज शाम भियाताल गाँव पहुँच चुके है ससंघ मुनि श्ी १०८ समयसागर जी महराज कल प्रात:नगर प्रवेश कल की अहार चर्या खजुराहो मे होगी
  2. स्वयं का व्यवसाय (start up) प्रारंभ करने का दुर्लभ अवसर आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से संचालित महाकवि पंडित भुरामल सामाजिक सहकार न्यास के हथकरघा प्रशिक्षण केंद्रों मैं अहिंसक वस्त्र निर्माण प्रशिक्षण का नवीन सत्र (6 मासिक) प्रारंभ हो रहा है जिसको प्राप्त कर आप हथकरघा प्रशिक्षक की योग्यता प्राप्त कर लेंगे एवं तदुपरांत अपने गांव एवं शहर में अन्य दूसरे इच्छुक जनों को कपड़ा बनाने की विधि सिखा कर स्वयं एवं दूसरों को एक बेहतर व्यवसाय प्रदान कर सकते हैं।(हम हमारे छात्रों द्वारा निर्मित वस्त्र श्रमदान ब्रांड के अंतर्गत विक्रय करने की जिम्मेदारी भी लेते हैं) प्रशिक्षण के दौरान 6 महीने तक ₹9000 महीना एवं आवास + भोजन की व्यवस्था निःशुल्क प्रदान की जाएगी साक्षात्कार का दिनांक - रविवार, २ दिसंबर २०१८ स्थान - बीना बारह, जिला सागर मध्य प्रदेश समय - प्रातः ८ बजे (इच्छुक उम्मीदवार अधिक जानकारी प्राप्त करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर आवेदन करें एवं प्रशिक्षण की जानकारी प्रदान करें लिखकर इस व्हाट्सएप नंबर पर भेजें।) https://goo.gl/forms/6XTJFUNSOjZPfjRG2 📞 9981128662 (सजल गोयल)
  3. पत्र क्रमांक-२00 १०-०५-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर दीपक से सूर्य को, जल से समुद्र को, वाणी से जिनवाणी (सरस्वती) को, श्रद्धा से श्रद्धेय को लोग पूजते हैं तथा मैं भी हृदय के भावों से आपको पूजता हूँ... हे गुरुवर! जब मेरे गुरुदेव ब्यावर पहुँचे तब भव्य स्वागत हुआ। कारण कि ब्यावर में आचार्यश्री का प्रथम चातुर्मास होने की सम्भावना जो थी। इस सम्बन्ध में पदमकुमार जी एडव्होकेट अजमेर वालों ने मुझे ‘जैन सन्देश' १९ जुलाई ७३ की कटिंग दी जिसमें रतनलाल कटारिया का समाचार इस प्रकार प्रकाशित था- ससंघ पदार्पण व चातुर्मास स्थापना ‘‘दि. 0६ जुलाई शुक्रवार को पूज्य आचार्यश्री १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपने संघ के साथ ब्यावर नगर में पदार्पण किया। नगर निवासी सभी सम्प्रदाय के जैन भाई और बहिनों ने डेढ मील नगर सीमा पर जाकर बैण्ड-बाजों के साथ स्वागत किया। जुलूस नगर के प्रमुख बाजारों में होते हुए तथा मन्दिरों के दर्शन करते हुए सेठ जी की नसियाँ में आकर सभा के रूप में परिणत हो गया। नसियाँ के विशेष प्रांगण में बनाये गए मण्डप में आचार्यश्री का समाज के अध्यक्ष श्री धर्मचंद जी मोदी ने स्वागत किया और चातुर्मास ब्यावर में ही करने के लिए प्रार्थना करते हुए श्रीफल चढ़ाया। पं. हीरालाल जी शास्त्री ने आचार्यश्री का संक्षिप्त परिचय दिया और श्री गुमानमल जी गोधा ने कविता में अपनी श्रद्धांजलि प्रकट की। श्री १०५ क्षु. स्वरूपानंद जी ने धर्म की महत्ता बताते हुए श्रावकों को सम्बोधित किया। अंत में पूज्य आचार्यश्री ने अपने प्रभावक भाषण में धर्म की महिमा बताते हुए। श्रावकों के चातुर्मास कर्तव्यों के प्रति सजग किया। आचार्यश्री के संघ में दो क्षुल्लक एक ब्रह्मचारी हैं। अष्टाह्निका पर्वराज पर सिद्धचक्र विधान का भी आयोजन सेठ जी की नसियाँ में किया गया है। आषाढ़ सुदी १४ सं. २०३० को प्रातः ७:५० बजे नसियाँ जी के भव्य प्रांगण में आचार्यश्री ने ससंघ चातुर्मास संस्थापना की ब्यावर नगर में स्वीकृति प्रदान करते हुए मनुष्य जीवन व उसके कर्तव्य पर सारगर्भित प्रवचन किया। तदोपरान्त भक्ति पाठ बड़े सुन्दर स्वर में सम्पन्न कर जिनेन्द्र भगवान के स्मरण पूर्वक चातुर्मास योग संस्थापन समारोह सम्पन्न हुआ। इस तरह १४ जुलाई को आचार्यश्री एवं क्षुल्लक द्वय स्वरूपानंदसागर जी व मणिभद्रसागर जी ने उपवास करके विधिपूर्वक चातुर्मास की स्थापना की। ब्यावर नगर को यह आचार्य परमेष्ठी बनने के बाद प्रथम चातुर्मास का सौभाग्य प्राप्त हुआ। चातुर्मास के सम्बन्ध में दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने और भी बताया- १९७३ ब्यावर चातुर्मास ने देखी दैनन्दिनी अपर रात्रि ३ बजे शयन से उठ जाते थे आचार्यश्री जी। फिर प्रतिक्रमण-सामयिक करते, दिन निकलने के बाद देवस्तुति-देववंदना करके शौचक्रिया को जाते थे। वहाँ से आकर क्षुल्लक स्वरूपानंदसागर एवं अन्य संघ के क्षुल्लक मणिभद्रसागर जी को स्वाध्याय कराते और उसके बाद ७:४५-८:४५ बजे तक समाज के लिए प्रवचन देते थे, जिसमें श्वेताम्बर साधु भी नियमित प्रवचन सुनने आते थे। तदुपरान्त ९:३० बजे आहारचर्या के लिए जाते थे। ब्यावर में जो लोग दूर रहते थे वे सेठजी की नसियाँ में चौका लगाकर आहारदान देते थे और जो लोग आस-पास रहते थे। वे अपने घरों में ही आहारदान देते थे। आहार के पश्चात् दोनों क्षुल्लक महाराज आचार्य महाराज को आहारचर्या के सम्बन्ध में बताते थे और १२ बजे से सामयिक करते थे। २:३० बजे से स्वाध्याय चला करता था। ४ बजे से आचार्य महाराज अपना अलग से स्वाध्याय करते थे। उसके बाद प्रतिक्रमण, देव-दर्शन, सामयिक करते थे किन्तु आचार्य महाराज वैयावृत्य नहीं करवाते थे। वे उत्कृष्ट सामयिक करते थे और फिर १० बजे विश्राम में चले जाते थे।" इस तरह हे दादागुरु! आपकी ही तरह आपके प्रिय आचार्य आगमयुक्त चर्या क्रिया करते और सतत अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी साधना करते। ऐसे गुरूणां गुरु के चरणों में नमोऽस्तु करता हुआ.. आपका शिष्यानुशिष्य
  4. पत्र क्रमांक-१९९ ०९-०५-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर आत्मस्वरूप में लीन दादागुरु परमपूज्य ज्ञानसागर जी मुनि महाराज के पावन चरणों में जीवन की अशेष श्वासों को समर्पित करता हुआ... हे गुरुवर! जिस प्रकार आपमें जैनधर्म-संस्कृति के संरक्षण सम्वर्द्धन की प्रबल भावना थी। इसी प्रकार आपके प्रिय आचार्य में भी यह संस्कार आ गया और जब कभी भी धर्म-संस्कृति की प्रभावना की बात आती तो वे निडरता निर्भीकता के साथ औचित्यपूर्ण कर्तव्य करते। आपकी समाधि के बाद नसीराबाद से विहार हुआ अजमेर गए फिर किशनगढ़ गए। किशनगढ़ से वापिस अजमेर आये और अजमेर से २ जुलाई को विहार किया। तो वे सराधना होते हुए जेठाना पहुँचे। तब के दो संस्मरण जेठाना निवासी बाबूलाल जी जैन पाटनी ने १८-०२-२०१८ को मुझे बताया- अंग्रेजों को अंग्रेजी में दिया उपदेश “आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज एवं उनके साथ में क्षुल्लक श्री स्वरूपानंदसागर जी जुलाई के प्रथम सप्ताह में अजमेर से विहार करके सराधना होते हुए जेठाना आये थे। जेठाना से पहले मांगलियावास चौराहे पर अंग्रेज यात्रियों से भरी बस रुकी और सभी लोग उतर के आचार्यश्री के सामने आकर फोटो खींचने लगे और अंग्रेजी में कुछ बोले। तब आचार्यश्री विद्यासागर जी ने उन्हें अंग्रेजी में जवाब दिया। इस दौरान जैन-अजैनों की काफी भीड़ हो गयी थी। अंग्रेजों ने बोला- 'आप नेकेड क्यों रहते हैं?' तब आचार्यश्री १५ मिनिट तक खड़े-खड़े अंग्रेजी में उपदेश देते रहे। उसका सार यही था कि ‘प्रकृति ने किसी को भी कपड़े दिये नहीं हैं और कपड़े वे पहनते हैं जिनके मन में विकार होता है, जिनको शर्म लगती है। भगवान महावीर ने कपड़े नहीं पहने थे। ईश्वर कभी कपड़ा नहीं पहनता । प्रकृति के साथ रहने में पवित्रता रहती है। अंत में वे सभी अंग्रेज हाथ जोड़कर नमस्कार करने लगे, तो आचार्यश्री आशीर्वाद देकर आगे बढ़ गए। हम सब लोग यह देख बड़े प्रसन्न हुए, खूब जयकारे लगाये। छोटू खाँ बोलता : जय गुरु विद्यासागर तीनों दिन आचार्यश्री के प्रवचन प्रातःकाल होते थे और दोपहर में क्षुल्लक जी के होते थे। आचार्यश्री के प्रवचन सुनने के लिए ग्रामवासी जैन-अजैन सभी आते थे। बहुत से अजैन परिवार के लोगों ने मांस-मदिरा का त्याग किया था। जिसमें छोटू खां (अजमेर रेल्वे के कर्मचारी) मुस्लिम समाज के थे, उन्होंने भी अण्डा-मांस आदि का आजीवन त्याग किया था और उन्होंने आचार्यश्री को आध्यात्मिक भजन सुनाये थे। एक भजन मारवाड़ी भाषा में सुनाया जिसका आशय यह था कि महारानी मंदोदरी रावण को समझाती है कि हे लंकेश ! मुझे रात्रि में एक स्वप्न आया है जिसमें अपना पूरा कबीला खत्म हो गया है, सोने की लंका भी नष्ट हो गयी है। अब जाग जाओ-हट छोड़ दो। यह भजन सुनकर आचार्यश्री खूब हँसे थे। छोटू खां जब तक जीवित था तो हम लोगों से जब भी मिलता तो आचार्यश्री को खूब याद करता था और मिलता था तो हाथ जोड़कर कहता था-‘जय गुरु विद्यासागर'।” इस तरह मेरे गुरुदेव की आपके बिना अन्तर्यात्री महापुरुषीय जीवन यात्रा प्रारम्भ हो गयी। हे गुरुदेव! आपका समागम पाकर मेरे गुरुदेव के अन्दर छिपी दिव्य शक्तियाँ प्रकट होने लगीं। जिनका प्रभाव समाज पर भी पड़ने लगा। ऐसे गुरु के निर्माता के चरणों में श्रद्धावनत होता हुआ... आपका शिष्यानुशिष्य
  5. पत्र क्रमांक-१९८ ०८-०५-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर सदा दीक्षा के भावों की अनुभूति में निमग्न दादागुरु परमपूज्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों में त्रिकाल वंदन करता हूँ... हे गुरुवर! आपके प्रिय आचार्य मेरे गुरुवर के आकर्षक व्यक्तित्व के कारण लोग उनका अधिक से अधिक समागम चाहते थे। यह बात तो आप भी अनुभूत कर चुके होंगे। इसलिए जहाँ भी आप गुरुशिष्य जाते थे तो वहाँ पर किसी न किसी निमित्त के बहाने मनोज्ञ मुनिराज गुरुवर विद्यासागर जी महाराज का समागम प्राप्त कर लेते थे। अपरंच जब किशनगढ़ से लौटकर केसरगंज अजमेर आये तो समाज प्रमुखों ने केसरगंज में चातुर्मास करने हेतु निवेदन किया और ३० जून को पांचवाँ दीक्षादिवस मनाने हेतु निवेदन किया। इस सम्बन्ध में दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने बताया- गुरु उपकारों को जीवनभर नहीं भुला पाऊँगा ‘‘केसरगंज समाज ने दीक्षा महोत्सव आपके सान्निध्य में मनाने हेतु कई बार निवेदन किया, पर आचार्यश्री मौन रहे और ३० जून को आचार्य श्री के सान्निध्य में केसरगंज में दीक्षादिवस मनाया गया। प्रभुदयाल द्वारा रचित आचार्य विद्यासागर पूजा सभी ने मिलकर की और प्रतिष्ठित लोगों ने विनयांजलि अर्पण की, अंत में आचार्यश्री जी ने अपने प्रवचन में गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज के उपकारों का बखान करते हुए बोले- ‘मुझ पामर को जैनेन्द्र प्रक्रिया व्याकरण, प्रमेयकमल मार्तण्ड एवं अष्टसहस्री जैसे क्लिष्ट ग्रन्थ पढ़ाये जो कि उनके मुख पर थे। वे कभी ग्रन्थ लेकर नहीं पढ़ाते थे। उन्होंने हमें थोड़े से ही समय में आगम की दृष्टि दी। वे सच्चे मायने में आगमनिष्ठ, चरित्रनिष्ठ, रत्नत्रय धारी श्रमण थे। उनका अधिक समय त्रय गुप्ति अप्रमत्त अवस्था में ही निकलता था। उनके उपकारों को मैं जीवनभर नहीं भुला पाऊँगा। वे हर क्षण मेरे साथ रहते हैं।' दीक्षादिवस के समाचार ‘जैन गजट' ०५ जुलाई ७३ को प्रकाशित किए गए जिसकी कटिंग प्राचार्य निहालचंद जी बड़जात्या ने मुझे दी थी। जिसमें समाचार इस प्रकार है- दीक्षा दिवस अजमेर-स्थानीय श्री पार्श्वनाथ दि. जैन जैसवाल मन्दिर जी केसरगंज के विशाल भव्य प्रांगण में श्री परमपूज्य १०८ युवा मुनिराज श्री विद्यासागर जी का दीक्षा दिवस ३० जून ७३ को अपूर्व धर्मोत्साह के साथ सम्पन्न हुआ। पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के २७ वर्षीय महान् जीवन की प्रवेश बेला पर २७ युगल श्रावकों द्वारा श्री भगवज्जिनेन्द्रदेव की पूजन की गई। तदुपरांत ३ बजे से सभा की कार्यवाही प्रारम्भ हुई। सर्वप्रथम श्री पं. हेमचन्द्र जी शास्त्री एम.ए. ने मंगलाचरण करते हुए पूज्य महाराज श्री के निःशल्य वीतरागी जीवन की मंगलकामना की। श्री प्रभुदयाल जी जैन द्वारा सरस भजनोपरांत आचार्य श्री की पूर्वावस्था की बहिनद्वय ने स्तुतिगान किया। अनन्तर श्री निहालचन्द्रजी एम.ए. ने आचार्यश्री का संक्षिप्त जीवन परिचय पढ़ा। आचार्य श्री के गृहस्थ जीवन के अग्रज श्री महावीरजी ने सुललित अंग्रेजी में आचार्यश्री का अभिवंदन किया। श्रीमती कनकलता जैन के भजनोपरान्त भा. दि. जैन महासभा के महामंत्री श्री सेठ श्रीपति जी जैन ने अपनी श्रद्धा समर्पित करते हुए रत्नत्रय की समाराधना पर बल दिया। ‘महाराज जी दीक्षा दे दो, चलूंगी तुम्हारे साथ दो नन्हीं बालिकाओं द्वारा प्रस्तुत सुमधुर गायन के बाद श्री माणकचंद जी सोगानी विधायक का भाषण हुआ। पश्चात् समाज शिरोमणि श्री सेठ सर भागचंद जी सा. सोनी ने अपनी मार्मिक विनयांजलि समर्पित की। श्री १०५ क्षु. स्वरूपानन्दसागर जी के भाषणोपरान्त परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी का मार्मिक उद्बोधन हुआ। आपने दीक्षा गुरु स्व. आचार्य श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों में शतशः नमन करते हुए उनकी उत्कृष्ट समाधि का भव्य दृश्य प्रस्तुत किया। संघ का विहार ०२-०७-७३ को ब्यावर के लिए हो गया है हजारों भक्त-समुदाय ने अजमेर सीमान्त तक आचार्य श्री का दर्शन लाभ लिया। संघ का चातुर्मास ब्यावर में होने की पूर्ण सम्भावना है।" इस तरह आपके लाड़ले शिष्य प्रिय आचार्य यथायोग्य प्रभावना करते हुए और सबकी भावनाओं को ध्यान में रखते हुए बिना बंधे आपकी आज्ञा से बंधकर अनियत विहार करते थे। ऐसे अनियत विहारी गुरु-शिष्य के चरणों में त्रिकाल वंदन करता हुआ... आपका शिष्यानुशिष्य
  6. पत्र क्रमांक-१९७ ०७-०५-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर काल के प्रवाह में चक्रमण करने वाले गुरुवर परमपूज्य ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में त्रिकाल वंदन करता हूँ... हे गुरुवर! आप अनन्त की यात्रा पर निकल गए तब आपके प्रिय आचार्य मेरे गुरुवर ने ४ जून को नसीराबाद से विहार किया तब के बारे में नसीराबाद के सीताराम जड़िया ने ज्ञानोदय २०१८ में बताया- युवाओं के मध्य अपना उपयोग बदला ‘‘गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज की समाधि के बाद दूसरे दिन हम कुछ युवा लोग शाम को उनके पास बैठे थे। तब आचार्य महाराज विद्यासागर जी बोले-अब हम यहाँ नहीं रुकेंगे। १२-१३ माह हो गया, हमारी दुकान तो चली ही नहीं। नसीराबाद का कोई भी नहीं आया संयम लेने के लिए। तो हम लोगों ने हँसते हुए कहा-महाराज! यह नसीराबाद है यहाँ से कोई सरकता नहीं है। कहावत बनी हैन सरको आने के बाद नसीराबाद' यह सुन उनके चेहरे पर गम्भीर हास्य उभरकर रह गया और दो दिन बाद विहार कर दिया। हम युवा लोग भी बीर चौराहे तक साथ गए थे। चौराहे के पास एक तिवारा (बरामदा) बना हुआ था, वहाँ रुक गए। भयंकर गर्मी थी जैसे ही हम लोगों ने उनकी सेवा करनी चाही। हाथ लगाते ही अहसास हुआ शरीर तप रहा था। ठण्डी पट्टी लगाई तब भी कोई असर नहीं हुआ। अंधेरा होने से पहले वे ध्यान सामायिक में बैठ गए, १० बजे तक बैठे रहे। सामायिक में जब भी देखा तो वे ऐसे लगते जैसे मूर्ति हों बिल्कुल भी हिलते-डुलते नहीं थे। घण्टों खड़े रहते या बैठे रहते तब भी सामायिक से वे थकते नहीं थे। उनके चेहरे पर प्रसन्नता व्याप्त रहती थी। रात में हम लोग वहीं रुके। नींद खुली तो देखा वे ध्यान सामायिक में बैठे थे, घड़ी में उस वक्त तीन बज रहे थे। हमने इन्दरचंद जी पाटनी से भी उस नाजुक घड़ी के बारे में पूछा तो वे उस स्मृति में खो से गए, फिर बड़े भावुक होकर बताया- वे चल नहीं रहे थे जब आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने नसीराबाद से विहार किया तो समाचार द्रुतगति से फैल गये। समाजजन महिला-पुरुष-युवा-बालक-बालिकाएँ सभी दौड़-दौड़कर एकत्रित होते गए। अजैन बन्धु भी सम्मिलित हुए। सभी लोग मिलकर नारा लगाने लगे-हम सबकी है अभिलाषा - नसीराबाद में हो चौमासा । नगर के बाहर तक हजारों लोग छोड़ने गए। हम युवा लोग और समाज के बड़े लोग साथ-साथ बीर चौराहा तक गए। पूरे रास्ते आचार्यश्री की मुखमुद्रा पर गम्भीरता व्याप्त थी। उनके पैर तो चल रहे थे किन्तु वे नहीं । ऐसा लग रहा था मानों उनको जबरदस्ती पैर उठाना पड़ रहे हों। पूर्व में कभी ऐसे नहीं देखा था। सदा उनके चेहरे पर उत्साह, ताजगी, जोश, होश, प्रसन्नता देखते थे, किन्तु उस दिन विहार में उनका गुमसुम रहना हम लोगों को बहुत ही अखर रहा था। उनकी नीची आँखें गुरुवर ज्ञानसागर जी के पग चिह्नों को खोज रहीं थीं। उनका मौन गुरुदेव से वार्ता कर रहा था। उनका मन गुरुदेव की शिक्षाओं को स्मरण कर रहा था। उनका हृदय गुरु चरणों में चिपका हुआ था। उनका ध्यान गुरु मंत्रों में लगा हुआ था। उनकी श्वासे गुरु नाम जप रही थीं। उनकी यह अलौकिक स्थिति हम लोग भांप रहे थे। लोक में जब किसी के माता-पिता छोटी अवस्था में गुजर जाते हैं तो वे कितने भाव विह्वल हो जाते हैं, अपने आपको असहाय असक्षम एकाकी अनुभव करते हुए रोते हैं। कुछ इसी तरह की फीलिंग समाज के लोग कर रहे थे अतः चलते हुए आपस में वार्ता कर रहे थे कि अभी मुनि हुए ५-६ वर्ष ही तो हुए हैं और गुरु का वियोग हो गया और फिर इतनी लम्बी जिन्दगी पड़ी है कैसा क्या होगा? अभी तो जवान है, पता नहीं समाज वाले इनको किस रूप में स्वीकार करते हैं। अन्य राज्यों में गये तो वहाँ पर विहार कैसे क्या होगा? समाज सहयोग करेगी या नहीं? क्षुल्लक जी साथ में कब तक रहेंगे? आचार्य बन गए हैं, तो अन्य कोई भव्यात्मा संघ में आएँगे या नहीं? गुरुदेव ज्ञानसागर जी महाराज ने तो खूब दिया है, अब कौन देगा? जैसे ही बीर चौराहा आया तो हम लोगों ने कहा-महाराज! चौराहा आ गया, तो महाराज बोले- 'अच्छाअच्छा! आ ही गया', और चौराहे पर एक स्कूल में रात्रि विश्राम हेतु रुक गए और दूसरे दिन ५ जून को प्रातः विहार करके माखुपुरा पहुँचे वहाँ पर एक पाटनियों का चैत्यालय है वहाँ रुके और आहारचर्या की फिर ६ जून को प्रात: अजमेर में प्रवेश किया।'' इस सम्बन्ध में कैलाशचंद जी पाटनी ने मुझे ‘जैन गजट' o७ जून १९७३ की एक कटिंग दी थी जिसमें अभय कुमार जैन का समाचार इस प्रकार प्रकाशित है- पूज्य श्री विद्यासागर जी का अजमेर शुभागमन अजमेर-0६-0६-७३ श्री परमपूज्य १०८ आचार्य विद्यासागर जी महाराज नसीराबाद से विहार कर श्री पार्श्वनाथ दि. जैन मन्दिर जी केसरगंज के दर्शन करते हुए भव्य जुलूस के साथ आज प्रातः सवा आठ बजे श्री सर सेठ साहब की नसियाँ जी पधारे। मार्ग में स्थान-स्थान पर श्री सन्मति परिषद व युगवीर क्लब आदि संस्थाओं द्वारा भव्य स्वागत द्वार बनाये गए। पूज्य श्री के नसियाँ जी पधारते ही जुलूस एक भव्य विशाल सभा के रूप में परिणत हो गया। श्री प्रभुदयाल जी द्वारा मंगल गायन के बाद सर्व श्री सेठ श्रीपति जी, मिलापचंद जी पाटनी आदि वक्ताओं के स्वागत भाषण के बाद श्री धर्मवीर रा.ब. सेठ सर भागचंद जी सा. सोनी का ओजस्वी सारगर्भित भाषण हुआ। आपने आचार्य के रूप में प्रथम बार अजमेर आगमन पर पूज्य श्री विद्यासागर जी महाराज का श्रद्धावनत हो स्वागत किया। आपने सर्वप्रथम दिवंगत आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि समर्पित करते हुए कहा कि पूज्य आचार्य विद्यासागर जी महाराज ज्ञान-ध्यान में रत मेधावी साधुराज हैं आपकी प्रतिभा विश्रुत है। आपने संघ सेवा में समाज की ओर से चातुर्मास के लिए भी विनम्र निवेदन किया। श्री १०५ क्षु. स्वरूपानंदसागर जी महाराज के उपदेशोपरान्त पूज्य आचार्यश्री का संक्षिप्त सारगर्भित उपदेश हुआ। आपने कहा कि मेरी भावना है कि संयम में दृढ़ रहता हुआ स्व-पर कल्याण में सदैव रत रहूँ।' आपने दिवंगत आचार्यश्री के प्रति श्रद्धाञ्जलि समर्पित करते हुए कहा कि उन ज्ञाननिधि ने मेरा जो कल्याण किया है वह अनिर्वचनीय है।' इस तरह अजमेर में भव्य स्वागत हुआ और वहाँ पर १-२ दिन रुक कर किशनगढ़ की ओर विहार हो गया और किशनगढ़ में धर्म की प्रभावना की मदनगंज-किशनगढ़ समाज ने चातुर्मास करने हेतु कई बार निवेदन किया किन्तु गुरुदेव ने २५ जून को विहार कर दिया। इस सम्बन्धी ‘जैन मित्र' वीर संवत् २४९९ आषाढ़ सुदी ६ की एक कटिंग अतिशय क्षेत्र महावीर जी के पुस्तकालय से प्राप्त हुई। जिसमें रतनलाल कटारिया का समाचार इस प्रकार प्रकाशित है- ‘ब्यावर-पूज्य आ. श्री विद्यासागर जी महाराज का संघ किशनगढ़-मदनगंज से आषाढ़ वदी ९ सोमवार को विहार ब्यावर के लिए हो गया है तथा चातुर्मास यहाँ पर होने की पूर्ण सम्भावना है। संघ का अजमेर, जेठाना होकर ब्यावर पदार्पण आषाढ़ सुदी ७ को होगा।" इसके बाद जैन गजट' की २८ जून की कटिंग श्री कैलाशचंद जी पाटनी से प्राप्त जिसमें समाचार इस प्रकार प्रकाशित हैं- धर्म प्रभावना परमपूज्य श्री १०८ युवा मुनिराज श्री विद्यासागर जी महाराज का २६-0६-७३ को प्रातः अजमेर शुभागमन हुआ। भारी संख्या में भक्त समुदाय ने युवा मुनिराज श्री का भव्य स्वागत किया। विशाल जुलूस श्री पार्श्वनाथ दि. जैन जैसवाल मन्दिर जी में एक सभा के रूप में परिणत हो गया। जहाँ सर्व श्री सेठ श्रीपति जी पं. विद्याकुमार जी सेठी शास्त्री, निहालचंद्र जी बड़जात्या आदि ने महाराज श्री की सेवा में चातुर्मास के लिए विनम्र निवेदन किया। श्री प्रभुदयाल जी ने स्तुति पाठ किया। पूज्य क्षु. स्वरूपानंदसागर जी महाराज के प्रवचनोपरान्त पूज्य महाराज श्री का अतीव वैराग्यवर्द्धक ओजस्वी उपदेश हुआ। महाराज श्री का चातुर्मास ब्यावर में होने की सम्भावना है।" इस तरह आपके प्रिय आचार्य आपके समान ही किसी को वचन नहीं देते और पूर्व से कोई भी क्रिया-चर्या निश्चित नहीं करते थे। अतः लोग सम्भावना सत्य को देखते हुए समाचार प्रकाशित करते रहे। ऐसे गुरुवर के चरणों में त्रिकाल नमोऽस्तु... आपको शिष्यानुशिष्य
  7. पत्र क्रमांक-१९६ ०६-०५-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर श्रमणोत्तम अमरसाधक दादागुरु परमपूज्य ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु.. हे गुरुवर! जब गुरु से थोड़ा दूर हो जाते हैं तो शिष्य कैसे कुम्हला जाते हैं, इसका अनुभव आपको भी होगा। जिस प्रकार से सूरज के अभाव में कमल मुरझा जाता है, उसी प्रकार गुरुरूपी सूर्य के अभाव में शिष्यरूपी हृदय कमल कुम्हला जाता है, किन्तु गुरु की स्मृतिरूप शिक्षाओं से वह पुनः अपने आप में स्थिर होकर खिल जाता है। ठीक यही स्थिति आपके लाड़ले शिष्य प्रिय आचार्य मेरे गुरुवर की हुई । सुरेश जी जैन दिल्ली ने यह क्षण देखा, जब आप अस्ताचल की ओर चले गए तब गुरु वियोगरूपी वज्राघात होने के बावजूद भी व्यथित मन से आचार्य विद्यासागर जी अपूर्व धैर्य और गम्भीरता के साथ उन परिस्थितियों में अपने आप को सम्भाले हुए थे। शून्य को ताकतीं आँखें आलम्बन को खोजती हुईं लौटकर निज आश्रय में सहज हो पातीं, किन्तु एकान्त में तो पता नहीं उनकी मनःस्थिति कैसी रही होगी। इस सम्बन्ध में ब्राह्मीविद्या आश्रम जबलपुर की ब्रह्मचारिणी जयंती बहिन ने आचार्य श्री की पाण्डुलिपि में से लिखकर भेजा- “०१ जून १९७३ को गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज की समाधि हो जाने के बाद दूसरे दिन आचार्यश्री विद्यासागर जी ने अपनी अनुभूति अपनी कॉपी पर इस तरह लिखी (मुक्त छन्द में) गुरु के अभाव की प्रथम अनुभूति हो कृत-कृत्य स्वयंभू अथ च श्रीवर हरो मेरा गम। जो मुझे दुस्सह अरु भयानक दुख दे रहा हरदम ॥१॥ आस्रव रहित जिन मुनियों की शुभाराधना कर नित भाई। जिससे भयानक विपिन में भी पथ मिल जायेगा सच्चाई ॥२॥ अहो गुरुवर! अवगाह करने वाले सदा योगाब्धि में। नमोऽस्तु त्रि-बार नमोऽस्तु मम सदा तव चरणों में ॥३॥ क्रोधादि इन कषायों के कारण रह न सका समाधि में। अतः व्यस्त रहना पड़ा उसकी सामग्री जुटाने में ॥४॥ मन-वच-तन और कृत-कारितादिक से प्रमत्त अवस्था में। आहार-निहार में करूं विहार के साथ इस पक्ष में ॥५॥ कुछ दोष लगा होगा तुमसे प्राप्य बीस आठ गुणों में। अतः निर्दोष होने आया हूँ आपके सुसान्निध्य में ॥६॥ सुनो अब स्वामी देर मत करो प्रायश्चित्त देने में। ऐलकादिक प्रायश्चित्त प्यासी अभी हैं तव संघ में ॥७॥ इसके साथ ही आचार्यश्री जी ने आपके प्रति अपने समर्पण और श्रद्धा स्वरूप श्रद्धांजलि के रूप में २० मुक्त छन्दों में स्तुति की रचना की। जो सन् १९७३ में ब्यावर चातुर्मास स्मारिका में प्रकाशित हुई जो पुनः आपको प्रेषित कर रहा हूँ- मृत्युञ्जयी गुरु के चरणों में निर्यापकाचार्य की श्रद्धाञ्जलि गुरो ! दल दल में मैं था फंसा, मोह पाश से हुआ था कसा। बंध छुड़ाया दिया आधार, मम प्रणाम तुम करो स्वीकार ॥१॥ पाप पंक से पूर्ण लिप्त था, मोह नींद में सुचिर सुप्त था। तुमने जगाया किया उपचार, मम प्रणाम तुम करो स्वीकार ॥२॥ आपने किया महान् उपकार पहनाया मुझे रतन-त्रय हार। हुए साकार मम सब विचार, मम प्रणाम तुम करो स्वीकार ॥३॥ मैंने कुछ ना की तव सेवा, पर तुमसे मिला मिष्ट मेवा। यह गुरुवर की गरिमा अपार मम प्रणाम तुम करो स्वीकार ॥४॥ निज धाम मिला, विश्राम मिला, सब मिला, उर समकित पद्म खिला। अरे! गुरुवर का वर उपकार, मम प्रणाम तुम करो स्वीकार ॥५।। अंध था, बहिर था, था मैं अज्ञ, दिये नयन व करण बनाया विज्ञ। समझाया मुझको समयसार, मम प्रणाम तुम करो स्वीकार ॥६॥ मोह-मल घुला, शिव द्वार खुला, पिलाया निजामृत घुला, घुला। कितना था गुरुवर उर उदार, मम प्रणाम तुम करो स्वीकार ॥७॥ प्रवृत्ति का परिपाक संसार, निवृत्ति नित्य सुख का भण्डार।। कितना मौलिक प्रवचन तुम्हार, मम प्रणाम तुम करो स्वीकार ॥८॥ रवि से बढ़कर है काम किया, जन गण को बोध प्रकाश दिया। चिर ऋणी रहेगा यह संसार, मम प्रणाम तुम करो स्वीकार ॥९॥ स्व-पर हित तुम लिखते ग्रन्थ, आचार्य - उवझाय थे निर्ग्रन्थ। तुम सा मुझ बनाया अनगार, मम प्रणाम तुम करो स्वीकार ॥१०॥ इन्द्रिय दमण कर, कषाय शमण, करत निशदिन निज में ही रमण। क्षमा था तव सुरम्य श्रृंगार, मम प्रणाम तुम करो स्वीकार ॥११॥ बहु कष्ट सहे, समन्वयी रहे, पक्ष पात से नित दूर रहे। चूंकि तुममें था साम्य - संचार, मम प्रणाम तुम करो स्वीकार ॥१२॥ मुनि गावे तव गुण - गण - गाथा, झुके तुम पाद में मम माथा। चलते, चलाते समयानुसार, मम प्रणाम तुम करो स्वीकार ॥१३॥ तुम थे द्वादश - विध - तप तपते, पल, पल जिनप नाम जप जपते । किया धर्म का प्रसार, प्रचार, मम प्रणाम तुम करो स्वीकार ॥१४॥ दुर्लभ से मिली यह 'ज्ञान' सुधा, ‘विद्या' पी इसे, मत रो मुधा। कहते यों गुरुवर यही ‘सार', मम प्रणाम तुम करो स्वीकार ॥१५ ।। व्यक्तित्व की सत्ता मिटादी, उसे महासत्ता में मिलादी। क्यों न हो प्रभु से साक्षात्कार मम प्रणाम तुम करो स्वीकार ॥१६॥ करके दिखा दी सल्लेखना, शब्दों में न हो उल्लेखना। सुर नर कर रहे जय जयकार, मम प्रणाम तुम करो स्वीकार ॥१७॥ आधि नहीं थी, थी नहीं व्याधि, जब आपने ली, परम समाधि । अब तुम्हें क्यों न वरे शिवनार, मम प्रणाम तुम करो स्वीकार ॥१८॥ मेरी भी हो इस विध समाधि, रोष, तोष नशे, दोष उपाधि। मम आधार सहज समयसार, मम प्रणाम तुम करो स्वीकार ॥१९॥ जय हो! ज्ञान सागर ऋषिराज, तुमने मुझे सफल बनाया आज। और इक बार करो उपकार, मम प्रणाम तुम करो स्वीकार ॥२०॥ ज्ञानसागरेभ्यो नमः। इस तरह मेरे गुरु ने गुरु-शिष्य की समाधि कराकर एक महान् आत्मोपलब्धि की है और जन मानस की दृष्टि में एक ऐतिहासिक कीर्ति स्तम्भ खड़ा किया है। ऐसे इतिहास पुरुष एवं इतिहास लेखक के चरणों में हर्षपूर्वक स्वर्णिम नमस्कार करता हूँ... आपका शिष्यानुशिष्य
  8. प. पू. अभय सागर जी महाराज ससंद्य का बिहार बागरोद चौराहा से हुआ आज आहारचर्या ग्राम बागरौद में होगी । कल प्रातः राहतगढ़ में होगा मंगल प्रवेश
  9. पत्र क्रमांक-१९५ ०५-०५-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर आत्मजयी कर्मजयी सर्वजयी मृत्युंजयी दादागुरु परमपूज्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में अपनी विनम्र श्रद्धांजलि स्वरूप प्रणति निवेदित करता हूँ... | हे गुरुवर! आपकी समाधि के समाचारों ने चहुँ ओर समाज को शोकाकुल कर दिया। गाँव-गाँव, नगर-नगर श्रद्धांजलि सभा आयोजित हुईं। जिनकी कुछ बानगी प्रस्तुत कर रहा हूँ, समाधि दिवस के दिन ही १ जून १९७३ को जैन गजट' में समाचार प्रकाशित हुआ जिसकी कटिंग कैलाश जी पाटनी से मिली- परमपूज्य ज्ञानमूर्ति चारित्रविभूषण श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज का समाधिमरण ‘‘नसीराबाद-आज १ जून १९७३ को अजमेर से १६ मील दूर मध्याह्न साढ़े ग्यारह बजे नसीराबाद में चारित्र शिरोमणि ज्ञानमूर्ति श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज का लम्बी बीमारी के बाद देहावसान हो गया। परमपूज्य महाराज श्री के अंत समय में परिणाम अत्यन्त शान्त तथा निराकुलता पूर्ण थे। मुनि श्री का जन्म ग्राम राणौली (जिला सीकर) राजस्थान में दिगम्बर जैन खण्डेलवाल छाबड़ा कुल में वि. सम्वत् १९५१ के माघ मास में हुआ। आपका नाम भूरामल जी था। आपके पिता श्री का नाम श्री चतुर्भुज जी तथा मातृ श्री का नाम घृतवरी देवी था। बाल्यकाल से ही पुण्योदय से आपका उपयोग अति निर्मल रहा। प्रारम्भ में राणोली ग्राम में ही आपने धार्मिक एवं लौकिक शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा के प्रति अनुराग आपको वाराणसी (काशी) खींच ले गया और वहाँ पर स्याद्वाद महाविद्यालय में रुचि पूर्वक अध्ययन करके आपने संस्कृत क्वीन्स कॉलेज काशी से शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण की तथा अपने ग्राम आ गए। अपने ग्राम आकर आपने गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने में अरुचि दिखाई और कुटुम्बी जनों के सतत आग्रह और दबाव के उपरान्त भी आपने विवाह करना स्वीकार नहीं किया और आजीवन ब्रह्मचारी रहे। ब्रह्मचारी रहने का दृढ़ निश्चय कर आपने आजीविकोपार्जन से भी उदासीनता दिखाई और अपना सारा समय शिक्षा प्रसार, गहन अध्ययन एवं ग्रन्थरचना में लगाते रहे। बीच में कुछ साल के लिए आप दांता (रामगढ़) ग्राम में अध्यापन के लिए चले गए थे। पं. भूरामल जी के नाम से प्रसिद्ध पूज्य श्री अध्ययन करके आने के पश्चात् लगभग ५१ वर्ष की वय तक कौटुम्बिक जीवन से संलग्न रहकर भी पानी में कमलपत्र के समान अलिप्त रहे। एक समय शुद्ध एवं सात्विक भोजन करते और दत्तचित्त होकर अध्ययन व लेखन में तल्लीन रहते। आपने अपने जीवन में जिन ग्रन्थों की रचना संस्कृत में की है उनको देखकर संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् भी आश्चर्य चकित रह जाते हैं। वास्तव में उन ग्रन्थों की पाण्डित्यपूर्ण रचना एवं साहित्यिक छटा देखते ही बनती है। आचार्य श्री द्वारा रचित ग्रन्थों में से कतिपय ग्रन्थ जयोदय, वीरोदय, सुदर्शनोदय, दयोदय, भद्रोदय, सम्यक्त्वसार शतक एवं विवेकोदय मुख्य हैं। संस्कृत एवं प्राकृत भाषा के आप उद्भट विद्वान रहे हैं। क्लिष्ट धार्मिक एवं आध्यात्मिक विषयों को अत्यन्त सरल भाषा में सुस्पष्ट करने में आपका उपयोग आश्चर्य जनक रहा। इसी कारण अजमेर चातुर्मास के समय ज्ञान पिपासुओं द्वारा साग्रह प्रार्थना करने पर महाराज श्री ने अपने क्षीण स्वास्थ्य एवं अशक्ततावस्था की अपेक्षा करके भी समयसार ग्रन्थ पर जयसेनाचार्य द्वारा रचित संस्कृत टीका का अत्यन्त सरल हिन्दी में अनुवाद करके जन साधारण के लिए बोधगम्य बना दिया। इस तरह कुटुम्ब से अंशतः सम्बद्ध रहकर भी उदासीन व त्यागमय जीवन में अध्ययन, अध्यापन व ग्रन्थ लेखन का कार्य करने के पश्चात् लगभग ५१ वर्ष की आयु में आपने गृह त्याग कर दिया एवं ब्रह्मचारी, क्षुल्लक तथा ऐलक अवस्था में लगभग १४ वर्ष रहे। मुनि संघ में आकर भी आप आचार्य श्री १०८ श्री वीरसागर जी महाराज के समय से ही त्यागी एवं मुनि वर्ग को विधिपूर्वक शास्त्राध्ययन कराते रहे । वि. संवत् २०१६ में आपने आचार्य श्री १०८ श्री शिवसागर जी महाराज से जयपुर में मुनि दीक्षाग्रहण की । साधु अवस्था में आपको ज्ञानसागर जी नाम दिया गया। आपने स्वयं तो समाज का परम कल्याण किया ही, साथ ही साथ आपने अपने शिक्षण दीक्षण द्वारा समाज को ऐसे नर रत्न दिए हैं, जो समाज की अनुपम निधि बन गए हैं और जिनके द्वारा अनेक वर्षों तक ज्ञान ज्योति प्रज्ज्वलित होती रहेगी तथा मानव कल्याण होता रहेगा। आपके परम शिष्य श्री १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज ने २२ वर्ष की उम्र में मुनि दीक्षा लेकर जो अतिशय प्रदर्शित किया, उसका इसी प्रकार ‘जैन गजट' में o७ जून १९७३ को कई स्थानों के समाचार प्रकाशित हुए- “अजमेर में ०३-०६-७३ को धर्मवीर रायबहादुर सेठ सर भागचंद जी सा. सोनी की अध्यक्षता में परमपूज्य ज्ञानमूर्ति श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज के प्रति श्रद्धांजलि समर्पित करने हेतु एक सभा का आयोजन किया गया। “दांता-रात्रि में ८ बजे श्री मन्दिर जी के चौक में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन हुआ। ‘‘सीकर-०१-0६-७३ को दोपहर में आचार्य श्री धर्मसागर जी ससंघ के सान्निध्य में आचार्य ज्ञानसागर जी का समाधिदिवस मनाया गया। ‘सरवाड़-०१-०६-७३ को स्मारक में वयोवृद्ध चारित्र विभूषण ज्ञानमूर्ति परमपूज्य श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज का स्वर्गवास होने पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन हुआ। ‘‘मदनगंज-किशनगढ़-०२ जून ७३ को रात्रि ८ बजे दिगम्बर जैन समाज ने श्री कुन्थुसागर दिगम्बर जैन विद्यालय में श्री ताराचंद्र जी पाटोदी की अध्यक्षता में परमपूज्य चारित्र चक्रवर्ती ज्ञानमूर्ति आचार्य श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज की दिव्य सल्लेखना मरण पर सादर श्रद्धांजलि अर्पित की। ‘‘कुचामन-आचार्य श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज के निधन के समाचार रेडियो द्वारा जानकर समस्त दिगम्बर जैन समाज की मीटिंग यहाँ श्री नागौरी रोड के मन्दिर जी में की गयी और उद्भट विद्वान् व त्यागी तपस्वी साधु की हानि हुई इस हेतु श्रद्धांजलि समर्पित की गयी। ‘जैन गजट' २८ जून १९७३ ‘‘कुचामन श्री १०८ श्री विजयसागर जी महाराज की उपस्थिति में तथा श्री सेठ पूनमचंद जी पाण्ड्या के सभापतित्व में ज्ञानमूर्ति श्री १०८ श्री आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज के स्वर्गवास होने पर समस्त दिगम्बर जैन समाज की ओर से श्रद्धांजलि सभा की गयी।" इसी प्रकार ‘जैन मित्र' वीर सं. २४९९ ज्येष्ठ सुदी १४ में मारोठ का समाचार प्रकाशित है- १ जून को आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज के समाधिमरण के समाचार सुनकर मुनि श्री विवेकसागर जी महाराज के सान्निध्य में श्रद्धांजलि सभा आयोजित हुई, जिसमें उन्होंने अपने गुरु के विषय में बड़ा ओजस्वी भाषण दिया और समाधिमरण का महत्त्व बताया।'' इस तरह कई स्थानों पर आपकी उपस्थिति की हानि होने पर और आपके प्रति श्रद्धा-भक्तिसमर्पण के प्रतीक के रूप में श्रद्धांजलि सभाएँ आयोजित की गयीं। ‘जैन गजट' ०७ जून ७३ को एक श्रद्धालु गीतकार ने भक्तिगीत लिखा- परमपूज्य प्रातः स्मरणीय बाल ब्रह्मचारी सौम्यमूर्ति परम तपस्वी चारित्र चक्रवर्ती श्री १०८ आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के महाप्रयाण के पुनीत अवसर पर विनम्नश्रद्धाञ्जलि हे ज्ञान सिन्धु! हे ज्ञानदीप! शत शत वन्दन, शत शत वन्दन। हे बाल ब्रह्मचारी मुनीश! शत शत वन्दन, शत शत वन्दन ॥ निज ज्ञान ज्योति द्वारा मेटा, फैला जो अज्ञानान्धकार। इस हेतु तजा गृह से ममत्व, बस किया लोक हित का विचार । भोगों में सुख का लेश नहीं, यह जान त्याग का मार्ग लिया। फिर परम दिगम्बर दीक्षा ले, निज-औ-पर का कल्याण किया ॥ हे त्यागमूर्ति ! हे धर्म दीप! चहुं ओर हुआ तव अभिनन्दन । हे ज्ञान सिन्धु! हे ज्ञानदीप! शत शत वन्दन, शत शत वन्दन ॥१॥ वह दुर्धर तप, इन्द्रिय संयम, वह परिग्रह जय कषाय छेदन। तुमने कर डाला हे गुरुवर! उन जड़ कर्मों का उच्छेदन ॥ दश धर्म और व्रत समिति गुप्ति, का सदा किया तुमने पालन। द्वादश अनुप्रेक्षा चिन्तन कर, कीना अन्तर्मल प्रक्षालन ॥ हे परम तपोनिधि गुरु! तुम्हें, भाया जीवन भर आकिंचन । हे ज्ञान सिन्धु! हे ज्ञानदीप! शत शत वन्दन, शत शत वन्दन ॥२॥ तुम रहे सदा करुणा सागर, पर राग-द्वेष से दूर रहे। तुम रहे सदा सिद्धान्त निष्ठ, पर पक्ष-पात से दूर रहे ॥ थी अनेकान्त पर दृष्टि सदा, था गहन अध्ययन आगम का।। तुम थे ऐसे दृष्टा चेता, था लेश नहीं संशय भ्रम का ॥ हे सत्य धर्म के उन्नायक! जीवन भर किया तत्त्व चिन्तन । हे ज्ञान सिन्धु! हे ज्ञानदीप! शत शत वन्दन, शत शत वन्दन ॥३॥ सब आधि-व्याधियाँ उदित हुई जब जरा जन्य कृशता फैली। तब शान्त निराकुल रह तुमने, अति तीव्र वेदना भी सहली ॥ त्यागे तुमने अन्नादि भोज्य, पेयों पर ही कर अवलम्बन। काया से भी ममता त्यागी, धारा व्रत उत्तम सल्लेखन ॥ हे वीर सन्त! कर वीर मरण, तड़ तड़ तोड़े भव के बन्धन। हे ज्ञान सिन्धु! हे ज्ञानदीप! शत शत वन्दन, शत शत वन्दन ॥४॥ इस तरह आपकी ज्ञान-तप-साधना की सुगन्धि दिग्दिगन्तों में फैली हुई थी। ऐसे यशोविजयी गुरुवर के चरणों का स्मरण हृदय को आह्लादित करता है, मन को शान्ति प्रदान करता है, भावों को पवित्रता देता है, उपयोग को स्थिर करता है और श्वासों को सफल करता है। ऐसे पावन चरणों को हर पल स्मरण करता हुआ... आपका शिष्यानुशिष्य
  10. ? *विहार अपडेट* ? पूज्य श्री प्रशांत सागर जी ससंघ का विहार शुजालपुर की ओर चल रहा है ! आज आहार चर्या ग्राम मैना में सम्पन्न हुआ ! आहारदान पुण्यार्जक - ,श्री वीरेन्द्र कुमार संतोष कुमार श्री राजेश कुमार बाबू लाल जी जैन मैना ! सामयिक के उपरांत मुनि संघ का वहाँ से जामनेर अतिशय क्षेत्र के लिए विहार हो गया ! *रात्रि विश्राम वड़ा अरनिया ग्राम है* ! *आहार चर्या संभवत जामनेर में हो सकती है* !
  11. श्री 1008 सिद्धचक्र महामण्डल विधान विश्वशांति महायज्ञ एवं भव्य पिच्छिका परिवर्तन समारोह दिनांक - 17 नवम्बर से 25 नवम्बर 2018 स्थान - जैन बोर्डिंग परिसर, कटनी
  12. दिनांक - 15 नवंबर 2018 कोपरगाँव से हुआ मंगल विहार- संतशिरोमणि पूज्य आ.विद्यासागरजी महाराज के परम शिष्य मुनिश्री108 अक्षयसागरजी महाराज मुनिश्री 108नेमिसागरजी महाराज क्षुलक105 समताभुषणजी महाराज का विहार कोपरगाव से कोकमठाण की ओर हुआ मुनिश्री के सानिध्य मे पंचकल्याणक प्रतिष्ठा होने वाली है
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