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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - 199 - अंग्रेजों को अंग्रेजी में दिया उपदेश

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    Vidyasagar.Guru

    पत्र क्रमांक-१९९

    ०९-०५-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर

    आत्मस्वरूप में लीन दादागुरु परमपूज्य ज्ञानसागर जी मुनि महाराज के पावन चरणों में जीवन की अशेष श्वासों को समर्पित करता हुआ...

    हे गुरुवर! जिस प्रकार आपमें जैनधर्म-संस्कृति के संरक्षण सम्वर्द्धन की प्रबल भावना थी। इसी प्रकार आपके प्रिय आचार्य में भी यह संस्कार आ गया और जब कभी भी धर्म-संस्कृति की प्रभावना की बात आती तो वे निडरता निर्भीकता के साथ औचित्यपूर्ण कर्तव्य करते। आपकी समाधि के बाद नसीराबाद से विहार हुआ अजमेर गए फिर किशनगढ़ गए। किशनगढ़ से वापिस अजमेर आये और अजमेर से २ जुलाई को विहार किया। तो वे सराधना होते हुए जेठाना पहुँचे। तब के दो संस्मरण जेठाना निवासी बाबूलाल जी जैन पाटनी ने १८-०२-२०१८ को मुझे बताया-

     

    अंग्रेजों को अंग्रेजी में दिया उपदेश

    “आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज एवं उनके साथ में क्षुल्लक श्री स्वरूपानंदसागर जी जुलाई के प्रथम सप्ताह में अजमेर से विहार करके सराधना होते हुए जेठाना आये थे। जेठाना से पहले मांगलियावास चौराहे पर अंग्रेज यात्रियों से भरी बस रुकी और सभी लोग उतर के आचार्यश्री के सामने आकर फोटो खींचने लगे और अंग्रेजी में कुछ बोले। तब आचार्यश्री विद्यासागर जी ने उन्हें अंग्रेजी में जवाब दिया। इस दौरान जैन-अजैनों की काफी भीड़ हो गयी थी। अंग्रेजों ने बोला- 'आप नेकेड क्यों रहते हैं?' तब आचार्यश्री १५ मिनिट तक खड़े-खड़े अंग्रेजी में उपदेश देते रहे। उसका सार यही था कि ‘प्रकृति ने किसी को भी कपड़े दिये नहीं हैं और कपड़े वे पहनते हैं जिनके मन में विकार होता है, जिनको शर्म लगती है। भगवान महावीर ने कपड़े नहीं पहने थे। ईश्वर कभी कपड़ा नहीं पहनता । प्रकृति के साथ रहने में पवित्रता रहती है। अंत में वे सभी अंग्रेज हाथ जोड़कर नमस्कार करने लगे, तो आचार्यश्री आशीर्वाद देकर आगे बढ़ गए। हम सब लोग यह देख बड़े प्रसन्न हुए, खूब जयकारे लगाये।

     

    छोटू खाँ बोलता : जय गुरु विद्यासागर

    तीनों दिन आचार्यश्री के प्रवचन प्रातःकाल होते थे और दोपहर में क्षुल्लक जी के होते थे। आचार्यश्री के प्रवचन सुनने के लिए ग्रामवासी जैन-अजैन सभी आते थे। बहुत से अजैन परिवार के लोगों ने मांस-मदिरा का त्याग किया था। जिसमें छोटू खां (अजमेर रेल्वे के कर्मचारी) मुस्लिम समाज के थे, उन्होंने भी अण्डा-मांस आदि का आजीवन त्याग किया था और उन्होंने आचार्यश्री को आध्यात्मिक भजन सुनाये थे। एक भजन मारवाड़ी भाषा में सुनाया जिसका आशय यह था कि महारानी मंदोदरी रावण को समझाती है कि हे लंकेश ! मुझे रात्रि में एक स्वप्न आया है जिसमें अपना पूरा कबीला खत्म हो गया है, सोने की लंका भी नष्ट हो गयी है। अब जाग जाओ-हट छोड़ दो। यह भजन सुनकर आचार्यश्री खूब हँसे थे। छोटू खां जब तक जीवित था तो हम लोगों से जब भी मिलता तो आचार्यश्री को खूब याद करता था और मिलता था तो हाथ जोड़कर कहता था-‘जय गुरु विद्यासागर'।”

     

    इस तरह मेरे गुरुदेव की आपके बिना अन्तर्यात्री महापुरुषीय जीवन यात्रा प्रारम्भ हो गयी। हे गुरुदेव! आपका समागम पाकर मेरे गुरुदेव के अन्दर छिपी दिव्य शक्तियाँ प्रकट होने लगीं। जिनका प्रभाव समाज पर भी पड़ने लगा। ऐसे गुरु के निर्माता के चरणों में श्रद्धावनत होता हुआ...

    आपका शिष्यानुशिष्य


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