पत्र क्रमांक-२00
१०-०५-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
दीपक से सूर्य को, जल से समुद्र को, वाणी से जिनवाणी (सरस्वती) को, श्रद्धा से श्रद्धेय को लोग पूजते हैं तथा मैं भी हृदय के भावों से आपको पूजता हूँ... हे गुरुवर! जब मेरे गुरुदेव ब्यावर पहुँचे तब भव्य स्वागत हुआ। कारण कि ब्यावर में आचार्यश्री का प्रथम चातुर्मास होने की सम्भावना जो थी। इस सम्बन्ध में पदमकुमार जी एडव्होकेट अजमेर वालों ने मुझे ‘जैन सन्देश' १९ जुलाई ७३ की कटिंग दी जिसमें रतनलाल कटारिया का समाचार इस प्रकार प्रकाशित था-
ससंघ पदार्पण व चातुर्मास स्थापना
‘‘दि. 0६ जुलाई शुक्रवार को पूज्य आचार्यश्री १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपने संघ के साथ ब्यावर नगर में पदार्पण किया। नगर निवासी सभी सम्प्रदाय के जैन भाई और बहिनों ने डेढ मील नगर सीमा पर जाकर बैण्ड-बाजों के साथ स्वागत किया। जुलूस नगर के प्रमुख बाजारों में होते हुए तथा मन्दिरों के दर्शन करते हुए सेठ जी की नसियाँ में आकर सभा के रूप में परिणत हो गया। नसियाँ के विशेष प्रांगण में बनाये गए मण्डप में आचार्यश्री का समाज के अध्यक्ष श्री धर्मचंद जी मोदी ने स्वागत किया और चातुर्मास ब्यावर में ही करने के लिए प्रार्थना करते हुए श्रीफल चढ़ाया। पं. हीरालाल जी शास्त्री ने आचार्यश्री का संक्षिप्त परिचय दिया और श्री गुमानमल जी गोधा ने कविता में अपनी श्रद्धांजलि प्रकट की। श्री १०५ क्षु. स्वरूपानंद जी ने धर्म की महत्ता बताते हुए श्रावकों को सम्बोधित किया।
अंत में पूज्य आचार्यश्री ने अपने प्रभावक भाषण में धर्म की महिमा बताते हुए। श्रावकों के चातुर्मास कर्तव्यों के प्रति सजग किया। आचार्यश्री के संघ में दो क्षुल्लक एक ब्रह्मचारी हैं। अष्टाह्निका पर्वराज पर सिद्धचक्र विधान का भी आयोजन सेठ जी की नसियाँ में किया गया है। आषाढ़ सुदी १४ सं. २०३० को प्रातः ७:५० बजे नसियाँ जी के भव्य प्रांगण में आचार्यश्री ने ससंघ चातुर्मास संस्थापना की ब्यावर नगर में स्वीकृति प्रदान करते हुए मनुष्य जीवन व उसके कर्तव्य पर सारगर्भित प्रवचन किया। तदोपरान्त भक्ति पाठ बड़े सुन्दर स्वर में सम्पन्न कर जिनेन्द्र भगवान के स्मरण पूर्वक चातुर्मास योग संस्थापन समारोह सम्पन्न हुआ।
इस तरह १४ जुलाई को आचार्यश्री एवं क्षुल्लक द्वय स्वरूपानंदसागर जी व मणिभद्रसागर जी ने उपवास करके विधिपूर्वक चातुर्मास की स्थापना की। ब्यावर नगर को यह आचार्य परमेष्ठी बनने के बाद प्रथम चातुर्मास का सौभाग्य प्राप्त हुआ। चातुर्मास के सम्बन्ध में दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने और भी बताया-
१९७३ ब्यावर चातुर्मास ने देखी दैनन्दिनी
अपर रात्रि ३ बजे शयन से उठ जाते थे आचार्यश्री जी। फिर प्रतिक्रमण-सामयिक करते, दिन निकलने के बाद देवस्तुति-देववंदना करके शौचक्रिया को जाते थे। वहाँ से आकर क्षुल्लक स्वरूपानंदसागर एवं अन्य संघ के क्षुल्लक मणिभद्रसागर जी को स्वाध्याय कराते और उसके बाद ७:४५-८:४५ बजे तक समाज के लिए प्रवचन देते थे, जिसमें श्वेताम्बर साधु भी नियमित प्रवचन सुनने आते थे। तदुपरान्त ९:३० बजे आहारचर्या के लिए जाते थे। ब्यावर में जो लोग दूर रहते थे वे सेठजी की नसियाँ में चौका लगाकर आहारदान देते थे और जो लोग आस-पास रहते थे। वे अपने घरों में ही आहारदान देते थे। आहार के पश्चात् दोनों क्षुल्लक महाराज आचार्य महाराज को आहारचर्या के सम्बन्ध में बताते थे और १२ बजे से सामयिक करते थे। २:३० बजे से स्वाध्याय चला करता था। ४ बजे से आचार्य महाराज अपना अलग से स्वाध्याय करते थे। उसके बाद प्रतिक्रमण, देव-दर्शन, सामयिक करते थे किन्तु आचार्य महाराज वैयावृत्य नहीं करवाते थे। वे उत्कृष्ट सामयिक करते थे और फिर १० बजे विश्राम में चले जाते थे।"
इस तरह हे दादागुरु! आपकी ही तरह आपके प्रिय आचार्य आगमयुक्त चर्या क्रिया करते और सतत अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी साधना करते। ऐसे गुरूणां गुरु के चरणों में नमोऽस्तु करता हुआ..
आपका शिष्यानुशिष्य