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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - 197 - आचार्य श्री ने नसीराबाद से किया विहार

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    Vidyasagar.Guru

    पत्र क्रमांक-१९७

    ०७-०५-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर

    काल के प्रवाह में चक्रमण करने वाले गुरुवर परमपूज्य ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में त्रिकाल वंदन करता हूँ... हे गुरुवर! आप अनन्त की यात्रा पर निकल गए तब आपके प्रिय आचार्य मेरे गुरुवर ने ४ जून को नसीराबाद से विहार किया तब के बारे में नसीराबाद के सीताराम जड़िया ने ज्ञानोदय २०१८ में बताया-

     

    युवाओं के मध्य अपना उपयोग बदला

    ‘‘गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज की समाधि के बाद दूसरे दिन हम कुछ युवा लोग शाम को उनके पास बैठे थे। तब आचार्य महाराज विद्यासागर जी बोले-अब हम यहाँ नहीं रुकेंगे। १२-१३ माह हो गया, हमारी दुकान तो चली ही नहीं। नसीराबाद का कोई भी नहीं आया संयम लेने के लिए। तो हम लोगों ने हँसते हुए कहा-महाराज! यह नसीराबाद है यहाँ से कोई सरकता नहीं है। कहावत बनी हैन सरको आने के बाद नसीराबाद' यह सुन उनके चेहरे पर गम्भीर हास्य उभरकर रह गया और दो दिन बाद विहार कर दिया। हम युवा लोग भी बीर चौराहे तक साथ गए थे। चौराहे के पास एक तिवारा (बरामदा) बना हुआ था, वहाँ रुक गए। भयंकर गर्मी थी जैसे ही हम लोगों ने उनकी सेवा करनी चाही। हाथ लगाते ही अहसास हुआ शरीर तप रहा था। ठण्डी पट्टी लगाई तब भी कोई असर नहीं हुआ। अंधेरा होने से पहले वे ध्यान सामायिक में बैठ गए, १० बजे तक बैठे रहे। सामायिक में जब भी देखा तो वे ऐसे लगते जैसे मूर्ति हों बिल्कुल भी हिलते-डुलते नहीं थे। घण्टों खड़े रहते या बैठे रहते तब भी सामायिक से वे थकते नहीं थे। उनके चेहरे पर प्रसन्नता व्याप्त रहती थी। रात में हम लोग वहीं रुके। नींद खुली तो देखा वे ध्यान सामायिक में बैठे थे, घड़ी में उस वक्त तीन बज रहे थे। हमने इन्दरचंद जी पाटनी से भी उस नाजुक घड़ी के बारे में पूछा तो वे उस स्मृति में खो से गए, फिर बड़े भावुक होकर बताया-

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    वे चल नहीं रहे थे

    जब आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने नसीराबाद से विहार किया तो समाचार द्रुतगति से फैल गये। समाजजन महिला-पुरुष-युवा-बालक-बालिकाएँ सभी दौड़-दौड़कर एकत्रित होते गए। अजैन बन्धु भी सम्मिलित हुए। सभी लोग मिलकर नारा लगाने लगे-हम सबकी है अभिलाषा - नसीराबाद में हो चौमासा । नगर के बाहर तक हजारों लोग छोड़ने गए। हम युवा लोग और समाज के बड़े लोग साथ-साथ बीर चौराहा तक गए। पूरे रास्ते आचार्यश्री की मुखमुद्रा पर गम्भीरता व्याप्त थी। उनके पैर तो चल रहे थे किन्तु वे नहीं । ऐसा लग रहा था मानों उनको जबरदस्ती पैर उठाना पड़ रहे हों। पूर्व में कभी ऐसे नहीं देखा था। सदा उनके चेहरे पर उत्साह, ताजगी, जोश, होश, प्रसन्नता देखते थे, किन्तु उस दिन विहार में उनका गुमसुम रहना हम लोगों को बहुत ही अखर रहा था। उनकी नीची आँखें गुरुवर ज्ञानसागर जी के पग चिह्नों को खोज रहीं थीं। उनका मौन गुरुदेव से वार्ता कर रहा था। उनका मन गुरुदेव की शिक्षाओं को स्मरण कर रहा था। उनका हृदय गुरु चरणों में चिपका हुआ था। उनका ध्यान गुरु मंत्रों में लगा हुआ था। उनकी श्वासे गुरु नाम जप रही थीं। उनकी यह अलौकिक स्थिति हम लोग भांप रहे थे। लोक में जब किसी के माता-पिता छोटी अवस्था में गुजर जाते हैं तो वे कितने भाव विह्वल हो जाते हैं, अपने आपको असहाय असक्षम एकाकी अनुभव करते हुए रोते हैं। कुछ इसी तरह की फीलिंग समाज के लोग कर रहे थे अतः चलते हुए आपस में वार्ता कर रहे थे कि अभी मुनि हुए ५-६ वर्ष ही तो हुए हैं और गुरु का वियोग हो गया और फिर इतनी लम्बी जिन्दगी पड़ी है कैसा क्या होगा? अभी तो जवान है, पता नहीं समाज वाले इनको किस रूप में स्वीकार करते हैं। अन्य राज्यों में गये तो वहाँ पर विहार कैसे क्या होगा? समाज सहयोग करेगी या नहीं? क्षुल्लक जी साथ में कब तक रहेंगे? आचार्य बन गए हैं, तो अन्य कोई भव्यात्मा संघ में आएँगे या नहीं? गुरुदेव ज्ञानसागर जी महाराज ने तो खूब दिया है, अब कौन देगा? जैसे ही बीर चौराहा आया तो हम लोगों ने कहा-महाराज! चौराहा आ गया, तो महाराज बोले- 'अच्छाअच्छा! आ ही गया', और चौराहे पर एक स्कूल में रात्रि विश्राम हेतु रुक गए और दूसरे दिन ५ जून को प्रातः विहार करके माखुपुरा पहुँचे वहाँ पर एक पाटनियों का चैत्यालय है वहाँ रुके और आहारचर्या की फिर ६ जून को प्रात: अजमेर में प्रवेश किया।''

    इस सम्बन्ध में कैलाशचंद जी पाटनी ने मुझे ‘जैन गजट' o७ जून १९७३ की एक कटिंग दी थी जिसमें अभय कुमार जैन का समाचार इस प्रकार प्रकाशित है-

     

    पूज्य श्री विद्यासागर जी का अजमेर शुभागमन

    अजमेर-0६-0६-७३ श्री परमपूज्य १०८ आचार्य विद्यासागर जी महाराज नसीराबाद से विहार कर श्री पार्श्वनाथ दि. जैन मन्दिर जी केसरगंज के दर्शन करते हुए भव्य जुलूस के साथ आज प्रातः सवा आठ बजे श्री सर सेठ साहब की नसियाँ जी पधारे। मार्ग में स्थान-स्थान पर श्री सन्मति परिषद व युगवीर क्लब आदि संस्थाओं द्वारा भव्य स्वागत द्वार बनाये गए। पूज्य श्री के नसियाँ जी पधारते ही जुलूस एक भव्य विशाल सभा के रूप में परिणत हो गया। श्री प्रभुदयाल जी द्वारा मंगल गायन के बाद सर्व श्री सेठ श्रीपति जी, मिलापचंद जी पाटनी आदि वक्ताओं के स्वागत भाषण के बाद श्री धर्मवीर रा.ब. सेठ सर भागचंद जी सा. सोनी का ओजस्वी सारगर्भित भाषण हुआ। आपने आचार्य के रूप में प्रथम बार अजमेर आगमन पर पूज्य श्री विद्यासागर जी महाराज का श्रद्धावनत हो स्वागत किया। आपने सर्वप्रथम दिवंगत आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि समर्पित करते हुए कहा कि पूज्य आचार्य विद्यासागर जी महाराज ज्ञान-ध्यान में रत मेधावी साधुराज हैं आपकी प्रतिभा विश्रुत है। आपने संघ सेवा में समाज की ओर से चातुर्मास के लिए भी विनम्र निवेदन किया।

     

    श्री १०५ क्षु. स्वरूपानंदसागर जी महाराज के उपदेशोपरान्त पूज्य आचार्यश्री का संक्षिप्त सारगर्भित उपदेश हुआ। आपने कहा कि मेरी भावना है कि संयम में दृढ़ रहता हुआ स्व-पर कल्याण में सदैव रत रहूँ।' आपने दिवंगत आचार्यश्री के प्रति श्रद्धाञ्जलि समर्पित करते हुए कहा कि उन ज्ञाननिधि ने मेरा जो कल्याण किया है वह अनिर्वचनीय है।'

     

    इस तरह अजमेर में भव्य स्वागत हुआ और वहाँ पर १-२ दिन रुक कर किशनगढ़ की ओर विहार हो गया और किशनगढ़ में धर्म की प्रभावना की मदनगंज-किशनगढ़ समाज ने चातुर्मास करने हेतु कई बार निवेदन किया किन्तु गुरुदेव ने २५ जून को विहार कर दिया। इस सम्बन्धी ‘जैन मित्र' वीर संवत् २४९९ आषाढ़ सुदी ६ की एक कटिंग अतिशय क्षेत्र महावीर जी के पुस्तकालय से प्राप्त हुई। जिसमें रतनलाल कटारिया का समाचार इस प्रकार प्रकाशित है-

     

    ‘ब्यावर-पूज्य आ. श्री विद्यासागर जी महाराज का संघ किशनगढ़-मदनगंज से आषाढ़ वदी ९ सोमवार को विहार ब्यावर के लिए हो गया है तथा चातुर्मास यहाँ पर होने की पूर्ण सम्भावना है। संघ का अजमेर, जेठाना होकर ब्यावर पदार्पण आषाढ़ सुदी ७ को होगा।" इसके बाद जैन गजट' की २८ जून की कटिंग श्री कैलाशचंद जी पाटनी से प्राप्त जिसमें समाचार इस प्रकार प्रकाशित हैं-

     

    धर्म प्रभावना

    परमपूज्य श्री १०८ युवा मुनिराज श्री विद्यासागर जी महाराज का २६-0६-७३ को प्रातः अजमेर शुभागमन हुआ। भारी संख्या में भक्त समुदाय ने युवा मुनिराज श्री का भव्य स्वागत किया। विशाल जुलूस श्री पार्श्वनाथ दि. जैन जैसवाल मन्दिर जी में एक सभा के रूप में परिणत हो गया। जहाँ सर्व श्री सेठ श्रीपति जी पं. विद्याकुमार जी सेठी शास्त्री, निहालचंद्र जी बड़जात्या आदि ने महाराज श्री की सेवा में चातुर्मास के लिए विनम्र निवेदन किया। श्री प्रभुदयाल जी ने स्तुति पाठ किया। पूज्य क्षु. स्वरूपानंदसागर जी महाराज के प्रवचनोपरान्त पूज्य महाराज श्री का अतीव वैराग्यवर्द्धक ओजस्वी उपदेश हुआ। महाराज श्री का चातुर्मास ब्यावर में होने की सम्भावना है।"

     

    इस तरह आपके प्रिय आचार्य आपके समान ही किसी को वचन नहीं देते और पूर्व से कोई भी क्रिया-चर्या निश्चित नहीं करते थे। अतः लोग सम्भावना सत्य को देखते हुए समाचार प्रकाशित करते रहे। ऐसे गुरुवर के चरणों में त्रिकाल नमोऽस्तु...

    आपको

    शिष्यानुशिष्य

     

     

     


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