कितने नमन करूँ मैं गुरुवर इन पावन चरणों में।
श्रद्धा व्यक्त करूँ मैं गुरुवर इन पावन चरणों में।
वेष दिगम्बर नमन है मेरा शीत, ग्रीष्म भीषणहो।
आहार चर्या नमन करूँ, रस विहीन उत्तम है।
मीठा, नमक,न मेवा फल हैं, फिर भी ऊर्जा पाते।
केशलोंच करते मुस्का कर,देख अश्रु भर आते।
कभी नहीं स्नान किया, काया कंचन सी न्यारी।
रज चरणों की दुर्लभ इतनी, दुनिया पीछे आती।
नहीं बताते कब आओगे, जग फिर भी दीवाना।
बिना बताए चल देते न निश्चित कोई ठिकाना।
सतयुग का अहसास कराते, तुमसे होते होंगे।
नयनामृत से देते सब कुछ, ऐसे ही होते होंगे।
कर आशीष भी जो मिलता तृप्ति मन आ जाती।
इन चरणों की छांव तले, हर निधि ही मिल जाती।
युगों युगों तक साथ रहे इन पावन चरणों का।
मेरे मन में सदा विराजे, आचार्य श्री