Mrs.Sukhada A Kothari
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Blog Comments posted by Mrs.Sukhada A Kothari
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पवित्र मानव जीवन प्रतियोगिता---
यह प्रतियोगिता बहुत सरल,अच्छी,और मानव जीवन कैसे जिये ये बतलाने वाली है.मानव जीवन से पवित्र मानव जीवन कैसे बनाये?अहिंसा,गौ सेवा,खेती ही स्वर्ग संपत्ती,निरौगी कैसे रहे? भोजन के नियम आदि की बहुत सरल,काव्य मे जानकारी मिली है.इस प्रतियोगिता से हम बहुत कुछ सीख पाये है.इसीलिये आपको और अर्थात् आचार्यश्री जी को बहुत बहुत धन्यवाद.ज्ञानदान ही सर्वश्रेष्ठ दान है जिसके द्वारा अनेक पिढियाँ सुसंस्कारित होती है."नमोस्तु आचार्यश्री" जयजिनेन्द्र !!
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संयम स्वर्ण महोत्सव प्रतियोगिता क्रमांक 12 दिनांक 1 जुलाई 2018
A group blog by विद्यासागर डॉट गुरु टीम in General
गुरुनामगुरु आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज के जीवन से जुडनेवाली ज्ञानवर्धक प्रतियोगिता के लिये ,हमारी स्वाध्याय रुची बढानेके लिये धन्यवाद.आचार्यश्री के दिक्षा स्वर्ण महोत्सव वर्ष
में उनके गुरु के बारेमे अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी आपने उपलब्ध करायी है.सच कहते है,
"हीरे को परख लिया आचार्य ज्ञानसागरने,
गुरु का मान बढाया आचार्यश्रीजी आपने!
दोनों को शतशत वन्दन !!
और आपका है अभिनन्दन!!
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आज्ञा का देना - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू १०
In आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा हायकू छन्द और आपकी समझ
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आचार्यश्री कहते है आज्ञा देना आज्ञापालन से कठिण काम है.किसी को आज्ञा देने के लिये ,मजबूर होना पडता है.आज्ञा देने से शायद वो नाराज भी हो सकता है.मानो किसी को ये काम करो ऐसे कहा मगर उसकी इच्व्यछा से वो करता है तो ठीक मगर नाराजगी से करता है या आज्ञा पालन ही नही करता तो दोष तो आज्ञा देने वाले को ही लगेगा. कभी कभी मां जैसे बच्चोंपर गुस्सा करके मजबुरन अनुशासन के लिये काम करवाती है लेकिन उसे मनसे ये सब आच्छा नही लगता बस!! यही बातआचार्यश्री कहते है.
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साधु वृक्ष है - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू १२
In आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा हायकू छन्द और आपकी समझ
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जिसप्रकार तपती हुई धूप मे वृक्ष की छाया आनंद देती है,शीतलता प्रदान करती है.उसीतरह साधू भी इस दुःखमयी जीवनमे अपनी वाणी से, सुख और दुःख मे समता रखनेका उपदेश देते है.दुःखी मनुष्य के लिये वो वृक्ष जैसा काम करते है.दुःख से तरने का उपाय बताते है.उनके सान्निध्य मे बस सुख का ही अहसास होता है.साधू स्वयं चारित्ररुपी आग्निमे तपकर, भक्तोःको सुख की छा़व प्रदान करते है.शाश्वत सुखी होनेका मार्ग बताते है.मोक्ष का मुक्ति का रास्ता दिखाते है.
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डूबना ध्यान - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ३०
In आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा हायकू छन्द और आपकी समझ
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आचार्यश्री कहते है,डूबना ध्यान है तैरना स्वाध्याय है मतलब जिनका स्वाध्याय चालू है,जो जिनवाणी की ज्ञानगंगा मे डूब गये है उन्हे तो तैरना आता ही है. मगर अब सिर्फ स्वाध्याय मे ही ना उलझकर आगे कि सीढीयाँ चढनी होगी.अपने आत्म कल्याण के लिये आत्मध्यान मे डूबना जरुरी हैध्यान करोगे तो स्वानुभूती मिलेगी.निजानन्द मे लीन रहोगे तभी तो चैतन्यस्वरुप आत्मा को देख सकोगे तभी तो निष्कर्म होकर स्वयं से जिन बनोगे.जयजिनेन्द्र .
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तेरी दो आँखें - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ७
In आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा हायकू छन्द और आपकी समझ
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तेरी दो आंखे माने तेरे ही कर्म.शुभ कर्म और अशुभ कर्म.हे प्राणी तु कर्म करते समय सावधान हो जा!! तेरे कर्म काफल तो तुझे ही भुगतना है.
तु जैसाबोयेगा वैसा ही फल पायेगा.ध्यान रखना कर्म करते समय कि तेरी ओर सबका ध्यान है.
हजारोआँखे तुझे देख रही है.बुरे कर्मोंसे दूर रहकरशुभ कर्म करते जा.
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बाहर टेड़ा - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ४८६
In आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा हायकू छन्द और आपकी समझ
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इसका उदाहरण सांप बाहर आने पर टेढा चलता है लेकिन भीतर बिल मेसीधा जाता है.अगर अपने भीतर झांककर देखोगे तो निजआत्मानुभूती का अनुभव करोगे.और अगर बाहरी दुनिया कि चकाचौंध मे भूलोगे तो टेढे ही रहोगे.कभी नही सुधरोगे.सीधा उर्ध्वगमन करके सिध्दात्मा बनना ही मेरा स्वभाव है.
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बाहर टेड़ा - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ४८६
In आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा हायकू छन्द और आपकी समझ
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बाहर तेढा,
मनुष्य अपने जीवनमे जैसा है वेसा नही दैखता.या दिखाता.वो अपने अहंकार से ,मान से फूल जाता है.बाहरी दुनियामे दिखावा करता है.ये उसका स्वभाव नही,विभावरुप परिणमन करता है.इसलिये उसे तेढा कहा है., इसीलिये कहते है इसे बाहरी बनावट पण को छोडो.इसोलिये आचार्यश्री कहते है.अपने भीतर आओ.निजस्वभाव को जानो.जैसे जैसे भीतर जाओगे ,सीधा रास्ता पाओगे. निज से जिन बननेका रास्ता - भीतर आत्मध्यान से ही मिलेगा.आओ भीतर आओ और स्वयं को पाओ.
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जुड़ो ना जोड़ो - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू १
In आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा हायकू छन्द और आपकी समझ
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मोह से,राग से जुडो ना,वीतरागता से नाता जोडो,
जो अबतक जोडा है कषायोंको उसे छोडो,
और
रत्नत्रय को ,सम्यक्त्व को धारण कर, मुनीपद से ऐसा जुडो कि आखिर तक सिध्दपद पानेतक ये हमारा साथ ना छोडे,ऐसे बेजोड जोडो.??????
*सौ.सुखदा अजितकुमार कोठारी*गुलबर्गा ,कर्नाटक*- 1
नेमावर में #क्षुल्लक_दीक्षाएं
In सूचना पट्ट - आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज ससंघ
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हार्दिक अनुमोदना