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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

Mrs.Sukhada A Kothari

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  1. हे तपोमूर्ति !! हे आराधक !! हे जैन सरोवर के राजहंस!! इस युग के आराध्य गुरुवर, छोटे बाबा,महावीर के लघुनन्दन!! प्रणाम आपको कोटी कोटी, तव चरणोमेः शतशत् नमन!!
  2. पवित्र मानव जीवन प्रतियोगिता--- यह प्रतियोगिता बहुत सरल,अच्छी,और मानव जीवन कैसे जिये ये बतलाने वाली है.मानव जीवन से पवित्र मानव जीवन कैसे बनाये?अहिंसा,गौ सेवा,खेती ही स्वर्ग संपत्ती,निरौगी कैसे रहे? भोजन के नियम आदि की बहुत सरल,काव्य मे जानकारी मिली है.इस प्रतियोगिता से हम बहुत कुछ सीख पाये है.इसीलिये आपको और अर्थात् आचार्यश्री जी को बहुत बहुत धन्यवाद.ज्ञानदान ही सर्वश्रेष्ठ दान है जिसके द्वारा अनेक पिढियाँ सुसंस्कारित होती है."नमोस्तु आचार्यश्री" जयजिनेन्द्र !!
  3. गुरुनामगुरु आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज के जीवन से जुडनेवाली ज्ञानवर्धक प्रतियोगिता के लिये ,हमारी स्वाध्याय रुची बढानेके लिये धन्यवाद.आचार्यश्री के दिक्षा स्वर्ण महोत्सव वर्ष में उनके गुरु के बारेमे अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी आपने उपलब्ध करायी है.सच कहते है, "हीरे को परख लिया आचार्य ज्ञानसागरने, गुरु का मान बढाया आचार्यश्रीजी आपने! दोनों को शतशत वन्दन !! और आपका है अभिनन्दन!!
  4. आचार्यश्री कहते है आज्ञा देना आज्ञापालन से कठिण काम है.किसी को आज्ञा देने के लिये ,मजबूर होना पडता है.आज्ञा देने से शायद वो नाराज भी हो सकता है.मानो किसी को ये काम करो ऐसे कहा मगर उसकी इच्व्यछा से वो करता है तो ठीक मगर नाराजगी से करता है या आज्ञा पालन ही नही करता तो दोष तो आज्ञा देने वाले को ही लगेगा. कभी कभी मां जैसे बच्चोंपर गुस्सा करके मजबुरन अनुशासन के लिये काम करवाती है लेकिन उसे मनसे ये सब आच्छा नही लगता बस!! यही बातआचार्यश्री कहते है.
  5. जिसप्रकार तपती हुई धूप मे वृक्ष की छाया आनंद देती है,शीतलता प्रदान करती है.उसीतरह साधू भी इस दुःखमयी जीवनमे अपनी वाणी से, सुख और दुःख मे समता रखनेका उपदेश देते है.दुःखी मनुष्य के लिये वो वृक्ष जैसा काम करते है.दुःख से तरने का उपाय बताते है.उनके सान्निध्य मे बस सुख का ही अहसास होता है.साधू स्वयं चारित्ररुपी आग्निमे तपकर, भक्तोःको सुख की छा़व प्रदान करते है.शाश्वत सुखी होनेका मार्ग बताते है.मोक्ष का मुक्ति का रास्ता दिखाते है.
  6. आचार्यश्री कहते है,डूबना ध्यान है तैरना स्वाध्याय है मतलब जिनका स्वाध्याय चालू है,जो जिनवाणी की ज्ञानगंगा मे डूब गये है उन्हे तो तैरना आता ही है. मगर अब सिर्फ स्वाध्याय मे ही ना उलझकर आगे कि सीढीयाँ चढनी होगी.अपने आत्म कल्याण के लिये आत्मध्यान मे डूबना जरुरी हैध्यान करोगे तो स्वानुभूती मिलेगी.निजानन्द मे लीन रहोगे तभी तो चैतन्यस्वरुप आत्मा को देख सकोगे तभी तो निष्कर्म होकर स्वयं से जिन बनोगे.जयजिनेन्द्र .
  7. तेरी दो आंखे माने तेरे ही कर्म.शुभ कर्म और अशुभ कर्म.हे प्राणी तु कर्म करते समय सावधान हो जा!! तेरे कर्म काफल तो तुझे ही भुगतना है. तु जैसाबोयेगा वैसा ही फल पायेगा.ध्यान रखना कर्म करते समय कि तेरी ओर सबका ध्यान है. हजारोआँखे तुझे देख रही है.बुरे कर्मोंसे दूर रहकरशुभ कर्म करते जा.
  8. इसका उदाहरण सांप बाहर आने पर टेढा चलता है लेकिन भीतर बिल मेसीधा जाता है.अगर अपने भीतर झांककर देखोगे तो निजआत्मानुभूती का अनुभव करोगे.और अगर बाहरी दुनिया कि चकाचौंध मे भूलोगे तो टेढे ही रहोगे.कभी नही सुधरोगे.सीधा उर्ध्वगमन करके सिध्दात्मा बनना ही मेरा स्वभाव है.
  9. बाहर तेढा, मनुष्य अपने जीवनमे जैसा है वेसा नही दैखता.या दिखाता.वो अपने अहंकार से ,मान से फूल जाता है.बाहरी दुनियामे दिखावा करता है.ये उसका स्वभाव नही,विभावरुप परिणमन करता है.इसलिये उसे तेढा कहा है., इसीलिये कहते है इसे बाहरी बनावट पण को छोडो.इसोलिये आचार्यश्री कहते है.अपने भीतर आओ.निजस्वभाव को जानो.जैसे जैसे भीतर जाओगे ,सीधा रास्ता पाओगे. निज से जिन बननेका रास्ता - भीतर आत्मध्यान से ही मिलेगा.आओ भीतर आओ और स्वयं को पाओ.
  10. मोह से,राग से जुडो ना,वीतरागता से नाता जोडो, जो अबतक जोडा है कषायोंको उसे छोडो, और रत्नत्रय को ,सम्यक्त्व को धारण कर, मुनीपद से ऐसा जुडो कि आखिर तक सिध्दपद पानेतक ये हमारा साथ ना छोडे,ऐसे बेजोड जोडो.?????? *सौ.सुखदा अजितकुमार कोठारी*गुलबर्गा ,कर्नाटक*
  11. ??*स्वर्णिम दिक्षा महोत्सव* *"भाव - पुष्पांजली"* 28 June 2017 --------------??----------- *सौ.सुखदाअजितकुमार* *कोठारी.गुलबर्गा ,कर्नाटक* "नाम है तुम्हारा विद्यासागर," आया स्वर्णिम स्वर्ण दिक्षाजयंती अवसर, कब तेरा दर्शन होगा !! जिनकी चर्या इतनी सुंदर, वो कितना सुंदर होगा--2!! हो ?हो ? ज्ञान गुरुवर के ये लाडले, दिक्षा देके वो भी हर्षे, निग्रंथ दिगँबरता कि ये सुरत संयम,त्याग,तपस्या की ये मुरत, जैनागम के ये वटवृक्ष है, संग इनके सारा संघ है!! जिनकी शाखाये इतनी सुंदर, वो कितना सुंदर होगा!! नाम है तेरा विद्यासागर-- हो हो ?हो हो-- चतुर्थकालसा आचरण इनका, सदा सर्वदा खिलता चेहरा, सूरज भी इनके सामने लगे है फिका, झुका मस्तक,आशिश का हस्त जिनका आशिश इतना फलता, वो कितना फलदायी होगा-2 नाम है तुम्हारा विद्यासागर-- हो हो ?हो हो ? ना ये मंत्र देते है,ना ही तंत्र विद्या सिखाते, बस अपनेमे ही लीन है रहते, सबको मोक्षमार्ग दिखलाते!! जिसको अपना है कल्याण करना, वो इनका दिवाना होगा-2 नाम है तुम्हारा विद्यासागर--- हो हो ?हो हो? इस पंचम कालमे,आशावादी संसारमे, जैनेश्वरी दिक्षा लेकर, निर्दोषता से 50 वर्षोंसे पालन करके,चाहते बस इतना ही ये, खुद के साथसाथ औरोंका भी कल्याण हो जाये , जिनका चिंतन इतना सुंदर, वो कितना सुंदर होगा!! नाम है आपका विद्यासागर-- हो हो ?हो हो ? केवल जैनी ही नही अजैन बंधू भी मानते इन्हे प्रभूवर है, जो भी इनकी छत्रछाया मे रहता, वो खुद को सौभाग्यशाली समझता !! बस!!एक नजर ही पड जाये गुरुकी, धन्य धन्य जीवन होगा--2 नाम है तुम्हारा विद्यासागर--- हो हो ?हो हो ? इस स्वर्णिम दिक्षा महोत्सव के अवसर पर, मेरा ये सौभाग्य होगा, रहे आप सदा मेरे हृदय में, तभी ये मानव जीवन सार्थक होगा!! कोटी कोटी नमन है गुरुदेव को, सदा आपकी जयजयकार गुंजती रहे, आपके जैसा आदर्श गुरु पाकर, जैनधर्म की ध्वजा सदा लहराती रहे!! संयम पथ पर चलनेकी शक्ती आपसे मांग रही, वीतरागी बनू मै एक दिन, सिध्दशिला आवास रहे-2 देखके आपकी कठीण साधना, जैन धर्म को गर्व होगा, जिनवाणी माता को भी , आज इस सुपुत्र से नाज होगा!! सोचती हुँ आज मै गुरुवर, जिनका लाल है इतना सुंदर, वो मां जिनवाणी कितनी सुंदर होगी!!-2 नाम है तुम्हारा विद्यागुरुवर-- हो हो ?हो हो ? Mrs.Sukhada Kothari. ????????
  12. *मेरे गुरुवर विद्यासागर* ----------?------------ *सौ.सुखदा अजितकुमार कोठारी*गुलबर्गा ,कर्नाटक "मेरे गुरुवर विद्यासागर , का है दिक्षादिन 50 वाँ, मनाये अहोभाग्य है मेरा!! संयम स्वर्णिम महोत्सव का उत्सव अदभूत न्यारा !!-2 बात पुरानी है, त्याग की कहाणी है!! ग्राम सदलगा मे जन्मे, मल्लप्पा ,श्रीमती के ये लाडले, पिलू ,मरी ,विद्याधर ये, जाने कितने नाम है प्यारे!! विद्याधर से विद्यासागर बनने की कहाणी है-2 मेरे गुरुवर विद्यासागर ---- का है दिक्षादिन 50वां , मनाये अहोभाग्य है मेरा--- ब्रम्हचारी व्रत आचार्य देशभूषणजी से पाया, आचार्य ज्ञानसागर से निग्रँथ मुनीव्रत धारा!! संयम त्याग तपस्या से ही, अपना तन चमकाया, रत्नत्रय से ही मनका मैल धुलाया!! जिनआगम के रखवाले ये, आगमप्रमाण ही आचरण धारा!! जाने कितनोके दिलमे समायी इनकी परम दिगंबर छाया !!-2 मेरे गुरुवर विद्यासागर --- का है दिक्षादिन 50 वां, मनाये अहोभाग्य है मेरा--- आजीवन ही चीनी, नमक,हरी,दही तेल को त्यागा, ना सुखामेवा,ना भौतिक साधन, चटई को भी त्यागा!! एक करवट पर करते शयन, पहाडों,नदियाँ किनारे या घने जंगल मे करते अपनी साधना, चल पडते ये बिना बताये, रहते अपनेमेँ मस्त मौला-2 ऐसे मेरे गुरुवर विद्यासागर --- का है दिक्षादिन 50 वां, मनाये अहोभाग्य है मेरा-- जाने कितने लोग तरसते, इनकी नजर पानेको, जाने कितने दीदी -भैय्या, बैठे आस लगाये कि कब ये मौका आये, आचार्य भगवन से हम भी पिच्छी कमण्डलु पाये!! इतना विशाल,इतना सुंदर है ये सँघ निराला, आत्मोन्नती कर मोक्षमार्ग का गाते है तराना--2 मेरे गुरुवर विद्यासागर - का है दिक्षादिन 50वाँ, मनाये अहोभाग्य है मेरा---2 गो रक्षा प्रतिपालक,जीवदया के सागर,मानव जीवन के उध्दारक,करुणा के धारक, चा़द और सूरज भी जिनके आगे लगते है फिके -फिके, ऐसे तेजपुँःज चलते फिरते ,साक्षात तीर्थंकर के लघुनन्दन संतशिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी के चरणोमे सदा सदा ही कोटी कोटी वन्दन,कोटी कोटी वन्दन!!?????? *नमोस्तु गुरुदेव* Mrs.Sukhada kothari. ?????????????
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