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वतन की उड़ान: इतिहास से सीखेंगे, भविष्य संवारेंगे - ओपन बुक प्रतियोगिता ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. नीर नहीं तो, समीर सही प्यास, कुछ तो बुझे। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  2. गुरू ने मुझे, प्रकट कर दिया, दीया दे दिया। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  3. ज्ञानी कहता, जब बोलूँ अपना, स्वाद छूटता। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  4. भूख लगी है, स्वाद लेना छोड़ दें, भर लें पेट। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  5. अधूरा पूरा, सत्य हो सकता है, बहुत नहीं। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  6. हायकू कृति, तिपाई सी अर्थ को, ऊँचा उठाती। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  7. मान शत्रु है, कछुवाबनूँ बचूँ, खरगोश से। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  8. सरोवर का, अन्तरंग छुपा है ? तरंग वश। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  9. जब आप ऑनलाइन पंजीकरण करेंगे वह पर २०० Rs जमा करने होंगे और पूरा पता भरना होगा
  10. श्रमण परम्परा के महाश्रमण : आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज मुनि अजितसागर जीवन का रहस्य क्या है ? इसमें रहस्य की बात है, जिसका कोई उत्तर ही नहीं, उसे तो बस खोजते चले जाओ जिसे खोजते-खोजते तुम स्वयं में खो जाओगे और तुम्हारी खोज जारी रहेगी। जो इस खोज में डूब गया वही स्वयं के परमात्मा को पा गया। ऐसा परमात्मा जिसका कोई अंत न हो, अनन्त की गहराई को लिये ऐसा परमात्मा ही होता है। इस परमात्मा की गहराई में डुबकी लगाने वाले और वर्तमान में श्रमण परम्परा को ज्योतिर्मय बनाने वाले एवं परमागम के रहस्य को समझने और समझाने वाले एवं एक नाव की तरह कार्य करने वाले जैसे-नाव कभी भी नदी के उस पार अकेली नहीं जाती अपनी पीठ पर बैठाकर अनेक व्यक्तियों को उस पार पहुँचाती है, वैसे ही अनेक व्यक्तियों को संसार सागर से निकालकर मोक्ष का मार्ग प्रदान करने वाले, अपनी अहनिश साधना के माध्यम से स्वकल्याण के साथ परकल्याण की भावना रखने वाले, जो स्वयं चलते हुए भव्य जीवों को चलाने वाले, ऐसे आचार्य परमेष्ठी आचार्य प्रवर संत शिरोमणि गुरुवर आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज जो एक प्रकाशमान दीप की तरह सबको प्रकाश देने, महान्योगी ज्योतिर्मय महाश्रमणका यह ५०वाँ मुनि दीक्षा का संयम स्वर्ण महोत्सव वर्ष : २०१७-१८, हम सबके लिये पावन पर्व के समान है। जैनाचार्यों ने जिनागम में आचार्य परमेष्ठी का लक्षण कहा है-जो मोक्षमार्ग पर स्वयं चलते हुए दूसरे भव्य जीवों को चलाते हैं। इसलिये आचार्यश्री कुन्दकुन्द महाराज ने आचार्य भक्ति में लिखा है "सिस्सानुग्गह्कुसले धम्माइरिए सदा वंदे" अर्थात् जो शिष्यों के अनुग्रह करने में कुशल होता है, उस धर्माचार्य की सदा वंदना करता हूँ। भारतीय संस्कृति में जिन शासन की गौरव गाथा गाने वाले और उसके रहस्य को बताने वाले महान्--महान् आचार्य हुए, जिन्होंने संयम का स्वरूप एवं यथाजात निग्रन्थ स्वरूप को धारण करके भटके-अटके अज्ञानी भव्य जीवों के लिये सही दिशा-बोध देकर श्रमण परम्परा की अखण्डधारा को भारत भूमि पर प्रवाहित किया। उसी श्रमण परम्परा को बीसवीं शताब्दी में महान् चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागरजी महाराज ने आगे बढ़ाया और क्रमशः आचार्य परम्परा को आचार्य श्री वीरसागरजी महाराज, आचार्य श्री शिवसागरजी महाराज के बाद क्रमश: साहित्य मनीषी वयोवृद्ध चारित्र शिरोमणि शातिमूर्ति आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज नेउस परम्परा को आगे बढ़ाते हुए अपने पद का त्याग कर अपने ही सुयोग्य प्रथम दीक्षित मुनि श्री विद्यासागरजी को अपना आचार्य पद प्रदान करके एक अद्भुत इतिहास रचा था। आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने इस बीसवीं एवं इक्कीसवीं शताब्दी में १२० मुनि, १७२ आर्यिका, २० ऐलक, १४ क्षुल्लक और ३ क्षुल्लिकायें आदि अनेक बालयति साधकों को मोक्षमार्ग पर लगाया। जो जिनशासन की शान हैं और वर्तमान युग में मूलाचार की जीवित पहचान हैं। जिनकी आशीष भरी छाँव में हजारों साधक मोक्षमार्ग पर अग्रसर हैं, ऐसे महाश्रमण आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज का ५०वाँ मुनिदीक्षा का संयम स्वर्ण महोत्सव वर्ष हम सबके लिये अति हर्ष का विषय बने। किसी कवि ने कहा है 'जो फरिश्ते कर सकते हैं, कर सकता इंसान भी। जो फरिश्ते से न हो, वह काम है इंसान का ॥' जो कार्य देव चाहते हुए भी नहीं कर सकता है, वह कार्य इंसान कर सकता है। इस मनुष्य पर्याय की दुर्लभता वह देवेन्द्र ही समझता है। वह भी तरसता है कि कुछ क्षण के लिये हमें यह मनुष्य पर्याय मिल जाये। इस मनुष्य पर्याय की दुर्लभता की एक युवा हृदय ने आज से ४९ वर्ष पूर्व २१ वर्षीय ब्रह्मचारी श्री विद्याधर जैन अष्टगे जी ने संयम को धारण कर अपनी इस पर्याय को धन्य किया था। जिसे घर के लोग प्यार से पीलू, गिनी, मरी, तोता आदि नाम से बचपन में पुकारा करते थे। कर्नाटक के दक्षिण भारत में बेलगाँव जिले के अन्तर्गत सदलगा ग्राम में आश्विन शुक्ल १५ (शरद पूर्णिमा) १० अक्टूबर, १९४६ के दिन श्रेष्ठीवर श्री मल्लप्पा जी अष्टगे मातु श्रीमति श्रीमंती जी अष्टगे की कुक्षी से आपका जन्म हुआ था। आप अपने गृह की द्वितीय संतान थे। आपका बाल्यकाल खेलकूद और अध्ययन के साथ सन्तदर्शन की भावना से ओतप्रोत रहता था। बालक विद्याधर प्रत्येक कार्य में निपुण थे एवं कृषि कार्य में कुशलता छोटी सी उम्र में प्राप्त कर ली थी। खेल में शतरंज और कैरम में आप मास्टर माने जाते थे। छोटी सी उम्र में बड़ों-बड़ों को पराजित कर देते थे। शिक्षा के क्षेत्र में हमेशा आगे रहने वाले और प्रथम स्थान प्राप्त करना सहज ही काम था। बाल्यकाल व्यतीत होते ही जवानी की ओर कदम बढ़े, उस भरी जवानी में जीवन के रहस्य को जानने की जिज्ञासा युवा मन में समाई। एक दिन सदलगा के समीप शेड़वाल ग्राम में आचार्यश्री शांतिसागरजी महाराज का ससंघ आगमन हुआ। आप पहुँच गये उनके वचनामृत को सुनने के लिये और मिल गया वह सूत्र जीवन के रहस्यमय दर्शन कराने वाला, उपजा हृदय में वैराग्य, छूटने लगा संसार का राग और चिंतन चलने लगा जिन्दगी का सही राज पाने के लिये। जीवन का रहस्य कैसे पाया जाता है किसी ने कहा है 'जिन्दगी का राज वह इंसान पा सकता है। जो रंज में भी खुशियों के गीत गाता है।॥” जीवन के रहस्य की खोज के लिये २० वर्ष की अल्पायु में बढ़ चले कदम संयम की ओर। सन् १९६७ में आचार्य देशभूषणजी महाराज से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लेकर कुछ समय उनके पास रहे, बाद में राजस्थान की ओर आ गये, वयोवृद्ध तपोनिधि मुनि श्री ज्ञानसागरजी महाराज के पास रहकर आपने जैन दर्शन, न्याय, अध्यात्म, ग्रंथों का अध्ययन किया। इतनी वृद्ध अवस्था में भी मुनि श्री ज्ञानसागरजी महाराज ने योग्य पात्र को पाकर अपना सारा ज्ञान का भण्डार दे दिया। एक दिन वह भी आ गया जो ज्ञान दान के साथ संयम का दान भी मुनि श्री ज्ञानसागरजी महाराज ने ब्रह्मचारी श्री विद्याधरजी को दिया। वह पावन दिन था आषाढ़ शुक्ल ५, वि० सं० २०२५, ३० जून, १९६८, रविवार। इस दिन राजस्थान के अजमेर में निग्रन्थ यथाजात रूप मुनि दीक्षा के संस्कार हुए। अपार जनसमूह के सामने श्री विद्याधर जी को मुनि श्री ज्ञानसागरजी महाराज ने मुनिदीक्षा प्रदान कर उनके वस्त्रों का त्याग करा दिगम्बर निग्रंथ स्वरूप को धारण कराया था। देवों ने इस महोत्सव को मनाया और भीषण गर्मी के समय बादलों की एक घटा आई और जल वर्षा करने लगी। मुनि श्री ज्ञानसागरजी ने ब्रह्मचारी श्री विद्याधरजी को मुनि श्री विद्यासागर बनाया था। उनके द्वारा प्रथम दीक्षित मुनि श्री विद्यासागरजी महाराज संयम-साधना के साथ स्वाध्याय ध्यान करने लगे। इसके बाद आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज ने अपने प्रथम योग्य शिष्य को अपना आचार्य-पद त्याग कर मार्गशीर्ष कृष्ण २, वि० सं० २०२९, दिनांक २२ नवम्बर, १९७२ को नसीराबाद, जिला-अजमेर, राजस्थान में अपना आचार्य-पद देकर आचार्य विद्यासागर बना दिया और अपने ही शिष्य को निर्यापकाचार्य बनाकर समाधिमरण किया। ऐसे महान् योगी साधक का यह ५०वाँ मुनि दीक्षा का संयम स्वर्ण महोत्सव वर्ष हम सबके लिये वैराग्य का मार्ग दिखाने वाला है और संयम की ओर अग्रसर करने की प्रेरणा देने वाला है। श्रमण परम्परा के महान् श्रमण का यह स्वर्णिम मुनि दीक्षा वर्ष हम सबके लिये एक हर्ष का विषय बने। हमें जिनमें भगवान् महावीर स्वामी के शासन की चर्या दिखती है, और आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी का साक्षात् मूलाचार झलकता है, ऐसे गुरु महाराज के इस पावन मुनि दीक्षा वर्ष में हम सब यही मंगल भावना करते हैं कि जिनशासन के महानतम आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागरजी महाराज शतायु हों और हमारे कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते रहें, हम उनके अनुसार कल्याण के मार्ग पर चलते रहें। ऐसे गुरुवर सदा जयवंत रहें, उनके चरणों में हम सदा झुकते रहें। ॥ इति ॥ मुनि अजितसागर बमीठ, जिला-छतरपुर (म० प्र०) दिनांक-०९.०१.२०१७ दिन-सोमवार
  11. आचार्यश्री की प्रेरणा, प्रसाद व आशीष से संचालित प्रकल्प बुंदेलखण्ड का सिरमौर कुण्डलपुर में बड़े बाबा का विशाल पाषाण मंदिर निर्माण। नर्मदा के नाभि कुण्ड, रेवाप्तट नेमावर में सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र का निर्माण (पंच बालयति एवं त्रिकाल चौबीसी मंदिर)। अतिशय क्षेत्र रामटेक (नागपुर,महाराष्ट्र) में विशाल पंचबालयति व चौबीसी पाषाण जिनालय। नर्मदा नदी का उद्गम स्थल अमरकंटक में सर्वोदय तीर्थ २४ टन वजन की धातु प्रतिमा व विशाल पाषाण मंदिर निर्माण चंद्रगिरि डोंगरगढ (छ, ग०) में विशाल पाषाण प्रतिमा व त्रिकाल चौबीसी का पाषाण युक्त मंदिर। परवारपुरा नागपुर (महाराष्ट्र) में विशाल पाषाण जिनालय। संस्कारधानी जबलपुर की पिसनहारी मढ़िया जी में भव्य नंदीश्वर रचना (१९९३ में पूर्ण)। रामपुरा, गोपालगंज व भाग्योदय तीर्थ सागर में पाषाण मंदिर निर्माण। बीना बारहा, कोनीजी (पाटन), बहोरीबंद, पनागर, थूवौन जी, ईशुरवारा एवं पजनारी आदि तीर्थ क्षेत्रों का विकास। सिलवानी (जिला-रायसेन) एवंटडा (जिला-सागर) में पाषाण निमित जिनालय। शीतलधाम विदिशा (पाषाण निर्मित समवसरण जिनालय), हबीबगंज भोपाल व पटनागंज (रहली में पाषाण मंदिर निर्माण कार्य प्रगति पर)। मानव सेवा का चिकित्सा संस्थान भाग्योदय तीर्थ सागर जहाँ सर्वसुविधा युक्त वार्ड, २५० बिस्तर अस्पताल, नर्सिग कॉलेज, फार्मेसी कॉलेज, डी० एम० एल० टी० कॉलेज, एम० आर० आई० व सीटी स्केन, कैथलैब आदि की सुविधा। ज्ञान संस्कारों की स्थली, प्रतिभास्थली में बी० एड०वस्नातकोत्तर उपाधि उच्च शिक्षा सम्पन्न बाल ब्रह्मचारिणी बहिनों द्वारा बालिकाओं का अध्यापन कार्य। आवासीय सुविधा युक्त-१,तिलवाराघाट जबलपुर (लगभग ८०० बालिकायें), २. रामटेक महाराष्ट्र (लगभग २०० बालिकायें) ३. चंद्रगिरि डोंगरगढ (छ. ग०) (लगभग २५० बालिकायें)। मध्यप्रदेश व अन्य प्रांतों में लगभग ३५० जैन पाठशालाओं में लगभग २५००० बालक/बालिकाओं को धार्मिक ज्ञान संस्कार पाने हेतु आशीष प्राप्त। दिल्ली में अनुशासन नाम से भाईयों के लिए प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान । इंदौर में प्रतिभा प्रतीक्षा (कन्या आवासीय छात्रावास) । प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान, मढ़िया जी जबलपुर को शुभाशीष व मार्गदर्शन । शांतिधारा दुग्ध योजना, बीना बारहा (सागर) में ५०० देशी गिर गाय का पालन व दुग्ध उत्पादन।। जीवदया के अभ्यारण्य दयोदय नाम से लगभग १३० गौशालाओं में एक लाख से ऊपर पशुधन शरण व संरक्षण प्राप्त तथा भोपाल में गोबर गैस फिलिंग प्लांट घरेलू रसोई गैस सिलेण्डर में। मूकमाटी महाकाव्य पर देश/विदेश से लगभग १००० समीक्षायें प्राप्त भारतीय ज्ञानपीठ दिल्ली से प्रकाशित पी-एच० डी शोध प्रबंध सहित। हथकरघा विकास व स्वरोजगार हेतु देश के ३५ स्थानों में १००० से अधिक भाई-बहिनों को प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। अशुद्ध डिब्बा बंद हानिकारक खाद्य सामग्री से जनता की बचाने हेतु ‘पूरी मैत्री' का निर्माण। अतिशयक्षेत्र बहोरीबंद कटनी में श्री शांतिनाथ विद्यासागर आरोग्य केन्द्र की स्थापना, जिसमें लाखों गरीब मरीज नि:शुल्क स्वास्थ्य लाभ ले चुके हैं।
  12. फूल खिला पै, गंध न आ रही सो, काग़ज़ का है| हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  13. प्रश्नों से परे, अनुत्तर है उन्हें, मेरा नमन। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  14. सीना तो तानो, पसीना तो बहा दो, सही दिशा में। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  15. पर पीड़ा से, अपनी करुणा सो, सक्रिय होती। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  16. धर्म का फल, बाद में न अभी है, पाप का क्षय। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  17. योग प्रयोग, साधन है साध्य तो, सदुपयोग। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  18. योग साधन, है उपयोग शुद्धि, साध्य सिद्ध हो। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  19. प्रदर्शन तो, उथला है दर्शन, गहराता है। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  20. संघर्ष में भी, चंदन सम सदा, सुगन्धि बाटूँ। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  21. गुरु मार्ग में, पीछे की वायु सम, हमें चलाते। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
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    01 आलाप पद्वति [Alaap Padhvti.pdf] इस ग्रन्थ का नाम यद्यपि आलापपद्वति (बोलचाल की रीति ) है तथापि इसका अपरनाम ' द्रव्यानुयोग प्रवेशिका ' है | इसमें द्रव्य, गुण, पर्याय, स्वभाव, प्रमाण ओर नय आदि का कथन है | द्रव्यानुयोग के स्वाध्याय से पूर्व आलापपद्वति का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि इसके बिना द्रव्यानुयोग में प्रवेश तथा उसका यथार्थ बोध नहीं हो सकता है |
  23. डूबना ध्यान, तैरना स्वाध्याय है, अब तो डूबो। भावार्थ-ध्यान में डूबना होता है और स्वाध्याय तैरने के समान है। स्वाध्याय में प्रवृत्ति है और ध्यान में निर्वृत्ति । रत्नाकर में स्थित रत्नों को गोताखोर ही प्राप्त कर सकते हैं इसलिए अपने आत्मा में डूबो और अनंत चतुष्टय रूप रत्नों की उपलब्धि करो । आचार्य महाराज ने लिखा है- डूबो मत, लगाओ डुबकी। - आर्यिका अकंपमति जी हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
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