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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. बिना खिलौना, कैसे किससे खेलूँ, बनूँ खिलौना। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  2. ज़रा ना चाहूँ, अजरामर बनूँ, नज़र चाहूँ। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  3. नये सिरे से, सिर से उर से हो, वर्षादया की। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  4. धुन के पक्के, सिद्धांत के पक्के हो, न हो उचक्के ।(बनो मुनक्के) हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  5. सगा हो दगा, अर्थ विनिमय में, मूर्च्छा बढ़ती। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  6. जिसे सर्वत्र बुरा कहा जाता है ऐसा कार्य पाप कहलाता है। वे कितने होते हैं एवं उनका फल क्या है, इसका वर्णन इस अध्याय में है | पाप के बारे में इतना याद रखाना है कि पाप और पारा कभी पचता नहीं है। 1. पाप किसे कहते हैं एवं कितने होते हैं ? जिस कार्य के करने से इस लोक में एवं परलोक में अनेक प्रकार के दु:खों को सहन करना पड़ता है और निंदा एवं अपयश को सहन करना पड़ता है, उसे पाप कहते हैं। पाप 5 होते हैं - हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह। 2. पाप की शाब्दिक परिभाषा क्या है ? "पाति रक्षति आत्मानं शुभादिति पापम्"। "तदसट्टेद्यादि'। जो आत्मा को शुभ से बचाता है, वह पाप है। जैसे - असातावेदनीय आदि। 3. हिंसा किसे कहते हैं ? मन, वचन, काय से किसी भी प्राणी को मारना, दु:ख देना हिंसा कहलाती है एवं स्वयं का घात करना भी हिंसा कहलाती है। 4. हिंसा कितने प्रकार की होती है ? हिंसा चार प्रकार की होती है - संकल्पी हिंसा, आरम्भी हिंसा, उद्योगी हिंसा एवं विरोधी हिंसा। संकल्पी हिंसा - संकल्प पूर्वक किसी भी प्राणी को मारने का भाव करना यह संकल्पी हिंसा है। संकल्प करने के बाद जीव मरे या न मरे पाप अवश्य ही लगता है। किसी जीव की बलि चढ़ाना, पुतला दहन करना, काष्ठादि में बने चित्रों को मारना, चिड़िया आदि आकार के गोली बिस्कुट खाना, बूचड़खाने की हिंसा, कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग करना, वीडियो गेम में चिड़िया को मारना, लक्ष्मणरेखा, मच्छर मारने के बेट आदि का प्रयोग करना, एन्टी पेस्ट इमल्सन कराना संकल्पी हिंसा है। आरम्भी हिंसा - गृहस्थ को भोजन बनाने के लिए पानी भरना, अग्नि जलाना, हवा करना, वनस्पति छीलना, बनाना। घर की सफाई करना, शरीर की सफाई करना, वस्त्र की सफाई करना आदि में षट्काय जीवों की विराधना होती है। यह आरम्भी हिंसा कहलाती है। श्रावक के लिए यह हिंसा क्षम्य है, किन्तु विवेक पूर्वक करें। उद्योगी हिंसा - श्रावक का जीवन धन के बिना नहीं चल सकता है। धन प्राप्ति के लिए वह खेती, व्यापार, सरकारी सेवा आदि कार्य करता है। इसमें जो हिंसा होती है, वह उद्योगी हिंसा है, यह भी श्रावक के लिए क्षम्य है। उद्योगी हिंसा एवं हिंसा के उद्योग में स्वर्ग-पाताल का अंतर है। बूचड़खाने, मछली पालन, मुर्गी पालन आदि के करने में महापाप है, इसे उद्योगी हिंसा में नहीं ले सकते हैं। यह संकल्पी हिंसा है। विरोधी हिंसा - स्वयं की रक्षा, परिवार की रक्षा, समाज की रक्षा, संस्कृति की रक्षा, धर्म आयतनों की रक्षा एवं राष्ट्र की रक्षा के लिए, किसी से युद्ध करना पड़ता है और युद्ध में कोई मर भी जाता है,तो वह विरोधी हिंसा है। जैसे - लक्ष्मण ने रावण को मारा था। यह हिंसा भी श्रावक के लिए क्षम्य है। श्रावक का मात्र संकल्पी हिंसा का त्याग होता है। आरंभी, उद्योगी एवं विरोधी हिंसा का नहीं। 5. हिंसा का समीकरण क्या है ? हिंसा न करते हुए हिंसक - जैसे - धीवर मछली पकड़ने गया। एक भी मछली जाल में नहीं फंसी फिर भी वह हिंसक कहलाएगा। कोई किसी को मारने के उद्देश्य से निकला और वह व्यक्ति नहीं मिला तो भी मारने का पाप लगेगा। हिंसा हो जाने पर भी हिंसक नहीं - जैसे - डॉक्टर रोगी का ऑपरेशन कर रोगी को बचाना चाह रहा था, किन्तु वह मरण को प्राप्त हो गया फिर भी डॉक्टर हिंसक नहीं। इसी प्रकार ईयसमिति से चलता साधु, फायर ब्रिगेड की गाड़ी, एम्बुलेंस आदि। हिंसा एक करे - फल अनेक भोगते हैं - बलि एक व्यक्ति चढ़ा रहा है, हजारों उसकी अनुमोदना (प्रशंसा) कर रहे हैं। सबको पाप लगेगा और सामूहिक पाप का फल भूकम्प, बाढ़, ट्रेन, प्लेन दुर्घटना में हजारों का मरण होना। इसी प्रकार पशु-पक्षियों की लड़ाई में आनंद मानना, पुतला दहन में आनंद मानना आदि । बहुत से हिंसा करें किन्तु फल एक को - एक राज्य का स्वामी दूसरे राज्य पर आक्रमण करके उसके साथ युद्ध छेड़ देता है। हजारों सैनिक एक-दूसरे को मारते हुए मर जाते हैं। सबका पाप राजा को लगेगा, सैनिक तो केवल अपनी आजीविका चलाने के लिए शस्त्र चलाते हैं। विवाह में जो भी आरम्भ होता है, उसका पाप दूल्हा एवं दुल्हन को लगता है। कार्य वही किन्तु परिणामों में अंतर - पहले कोई आलू-प्याज खाता था एवं स्वयं बनाता भी था।उसने अब आलू-प्याज खाना बंद कर दिया, किन्तु परिवार के लिए बनाना पड़ता है, मजबूरी है। पहले कषाय तीव्र थी, अब मंद कषाय है। 6. हिंसा किन-किन कारणों से होती है ? हिंसा मुख्य चार कारणों से होती है क्रोध के कारण - जैसे-द्वीपायन मुनि को क्रोध आने के कारण द्वारिका भस्म हो गई थी। तोताराजा की कहानी। सर्प - नेवला-बेटा, महिला की कहानी आदि। मान के कारण - भरतचक्रवर्ती ने बाहुबली पर चक्र चला दिया। माया के कारण - 1. कई ऐसे व्यक्ति मिलेंगे धन के कारण बालक का अपहरण किया था। पकड़ने के डर से लोग क्या कहेंगे हमारा मायाचार जान लेंगे इस कारण उसे मार देते हैं। 2. स्त्री का दुराचार ज्ञात हो गया तो पति वैराग्य धारण की बात घर में कहता है। स्त्री समझ जाती है, मेरा दुराचार ज्ञात हो गया। इससे दीक्षा ले रहे हैं। वह सोचती ये मेरा मायाचार प्रकट कर देंगे। अत: भोजन में विष मिला देती है और वही भोजन पति को दे देती है। जिससे पति का मरण हो जाता है। 3. गर्भपात भी मायाचार के कारण होता है। लोभ के कारण - पाण्डवों को लाक्षागृह में बन्द कर दिया और वहाँ आग लगा दी। भले ही वे सुरंग से निकल गए। बूचड़खाने में जो हिंसा हो रही है, वह भी लोभ के कारण हो रही है। 7. हिंसा त्याग का फल क्या होता है ? खदिरसार भील (राजा श्रेणिक के जीव ने) मात्र कौवे के माँस का त्याग किया था। जिसके कारण अगले ही भव में तीर्थंकर पद को प्राप्त करने वाला होगा। यमपाल चाण्डाल ने भी एक दिन (चतुर्दशी) के लिए हिंसा का त्याग करके स्वर्गीय सम्पदा को प्राप्त किया था। 8. हिंसा करने का क्या फल है ? हिंसा ही दुर्गति का द्वार है,पाप का समुद्र है तथा माँसभक्षी जीव नरकों के दुखों को भोगते हैं एवं यहाँ भी जेल आदि में यातनाओं को सहन करते हैं। (ज्ञा, 8/17-18) 9. झूठ पाप किसे कहते हैं ? आँखों से जैसा देखा हो, कानों से जैसा सुना हो वैसा नहीं कहना झूठ है, जिससे किसी का जीवन ही चला जाए, ऐसा सत्य भी नहीं बोलना चाहिए एवं अंधे से अंधा, चोर से चोर, डाकू से डाकू कहना भी असत्य (झूठ) है। क्योंकि अंधे से अंधा कहने में उसे पीड़ा होती है। किसी ने कहा है - अंधे से अंधा कहो, तुरतई परहै टूट। धीरे-धीरे पूछ लो, कैसे गई है फूट॥ 10. झूठ बोलने के क्या-क्या कारण हैं ? अज्ञान, क्रोध, लोभ, भय, मान, स्नेह आदि के कारण झूठ बोला जाता है। लोभ - सत्यघोष नामक पुरोहित लोभ के कारण झूठ बोलता था। स्नेह - गुरु पत्नी से स्नेह होने के कारण राजा वसु झुठ बोला था। गुरु क्षीरकदम्ब का पुत्र पर्वत, सेठ का पुत्र नारद और राजा का पुत्र वसु की कहानी। 11. झूठ बोलने का फल क्या होता है ? सत्यघोष ने झूठ बोला। यहाँ अपमान को सहन किया और अब नरकों के दु:खों को सहन कर रहा है। 12. चोरी पाप किसे कहते हैं ? दूसरों की रखी हुई, गिरी हुई, भूली हुई अथवा नहीं दी हुई वस्तु को लेना या लेकर के दूसरों को देना चोरी कहलाती है। दस प्राण तो सभी जानते हैं, किन्तु 11 वाँ प्राण अन्न है। अन्न के बिना प्राण ठहरते नहीं है। अत: उसे भी प्राण कहा है। अन्न धन से प्राप्त होता है, अत: धन को बारहवाँ प्राण कहा है। अत: किसी के धन की चोरी करने का अर्थ है, उसके प्राण ही ले लेना। 13. चोरी करने के क्या कारण हैं ? गरीबी के कारण, धनवान बनने के लिए एवं कोई धनवान न रहे गरीब हो जाए, इन तीन कारणों से जीव चोरी करता है। 14. चोरी करने का क्या फल है ? जब पकड़े जाते हैं तो अनेक प्रकार के दण्ड भोगने पड़ते हैं और कभी किसी को फाँसी भी हो जाती हैं एवं परलोक में नरक आदि के दु:खों को सहन करना पड़ता है। 15. कुशील पाप किसे कहते हैं ? जिनका परस्पर में विवाह हुआ है, ऐसे स्त्री-पुरुष का एक दूसरे को छोड़कर अन्य स्त्री-पुरुष से सम्बन्ध रखना कुशील कहलाता है एवं गालियाँ देना भी कुशील पाप कहलाता है। 16. कुशील पाप क्यों होता है ? एक तो चारित्रमोहनीय का तीव्र उदय, दूसरा इन्द्रिय सुख मिले, इस कारण यह कुशील पाप होता है। 17. कुशील पाप का क्या फल है ? परस्त्री सेवन करने वालों को नरकों में लोहे की गर्म - गर्म पुतलियों से आलिंगन करवाया जाता है एवं यहाँ एड्स जैसी बीमारी भी इसी कारण से होती है। 18. परिग्रह पाप किसे कहते हैं ? क्षेत्र - वास्तु, हिरण्य - सुवर्ण, धन - धान्य, दासी - दास, और कुष्य - भाण्ड इन पदार्थों में मूच्छ (तीव्र लालसा) रखना परिग्रह पाप है। 19. परिग्रह क्यों इकट्ठा करते हैं ? दुनिया में सबसे बड़ा व्यक्ति बनूँ इस भावना को लोग परिग्रह को इकट्ठा करते हैं। 20. परिग्रह के बिना श्रावक का कैसे जीवनयापन होगा ? जितना आवश्यक है, उतना रखना तो ठीक है। कुछ ज्यादा भी रखते हैं तो समय पर राष्ट्र, धर्म, साधर्मी के लिए दान देना, यह तो संचय कहलाएगा, किन्तु आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह करना परिग्रह है। 21. परिग्रह पाप का क्या फल है ? बहुत परिग्रह जब नष्ट होता है तब मानव आकुल - व्याकुल हो जाता है एवं जब सरकार की ओर से छापे पड़ते हैं तब धन भी चला जाता है और बदनामी भी होती है एवं बहुत परिग्रह वाला नरक आयु का भी बंध करता है। 22. पाँच पापों में प्रसिद्ध होने वालों के नाम बताइए ? हिंसा पाप में धनश्री नाम की सेठानी, झूठ पाप में सत्यघोष नाम का पुरोहित, चोरी पाप में एक तापसी, कुशील पाप में यमदण्ड नाम का कोतवाल और परिग्रह पाप में श्मश्रुनवनीत नामक वणिक प्रसिद्ध हुए। (रक.श्रा., 65)
  7. संग्रह कहाँ, वस्तु विनिमय में, मूर्च्छा मिटती। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  8. तुम तो करो, हड़ताल मैं सुनूँ हर ताल को। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  9. ऊधमी तो है, उद्यमी आदमी सो, मिलते कहाँ ? हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  10. आँखों से आँखें, न मिले तो भीतरी, आँखें खुलेगी। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  11. काम चलाऊ, नहीं काम का बनूँ, काम हंता भी। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  12. द्वेष पचाओ, इतिहास रचाओ, नेता बने हो। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  13. पीछे भी देखो, पिछलग्गू न बनो, पीछे रहोगे। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  14. अपनी नहीं, आहुति अहं की दो, झाँको आपे में। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  15. सुना था सुनो, ”अर्थ की ओर न जा” डूबो आपे में। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  16. है का होना ही, द्रव्य का स्वभाव है, सो सनातन। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  17. अति संधान, अनुसंधान नहीं, संधान साधो। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  18. हँसो-हँसाओ, हँसी किसी की नहीं, इतिहास हो। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  19. बचो-बचाओ, पाप से पापी से ना, पुण्य कमाओ। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  20. परिधि में ना, परिधि में हूँ हाँ हूँ, परिधि सृष्टा। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  21. जो आत्मा को संसार में परिभ्रमण कराती है, वह कषाय कहलाती है, ऐसी कषाय कितनी होती हैं, उनका स्वरूय क्या है, उनका फल क्या है आदि का वर्णन इस अध्याय में है। 1. कषाय किसे कहते हैं ? जो आत्मा के चारित्र गुण का घात करे, उसे कषाय कहते हैं। कषाय शब्द दो शब्दों के मेल से बना है। ‘कष+आय'। कष का अर्थ संसार है क्योंकि इसमें प्राणी अनेक दु:खों के द्वारा कष्ट पाते हैं और आय का अर्थ है ‘लाभ'। इस प्रकार कषाय का अर्थ हुआ कि जिसके द्वारा संसार की प्राप्ति हो, वह कषाय है। आत्मा के भीतरी कलुष परिणामों को कषाय कहते हैं, इनके द्वारा जीव चारों गतियों में परिभ्रमण करता हुआ दु:ख प्राप्त करता है। कषाय चुम्बक के समान है, जिसके द्वारा कर्म चिपक जाते हैं। 2. कौन-सी गति में जीव के उत्पन्न होते समय कषाय कौन सी रहती है ? नरकगति में उत्पन्न जीवों के प्रथम समय में क्रोध का उदय, मनुष्यगति में मान का उदय, तिर्यञ्चगति में माया का उदय और देवगति में लोभ का उदय नियम से रहता है (आ. श्री यतिवृषभ के अनुसार) तथा इन गतियों में इन्हीं कषायों की बहुलता रहती है, किन्तु स्त्रियों में माया कषाय की बहुलता रहती है। 3. कषाय कितने प्रकार की होती हैं ? कषाय सामान्य से चार प्रकार की होती हैं। क्रोध, मान, माया, लोभ। इनमें अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ। अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ । प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ एवं संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ। 4. अनन्तानुबन्धी कषाय किसे कहते हैं ? अनन्त भवों को बाँधना ही जिसका स्वभाव है, वह अनन्तानुबन्धी कषाय कहलाती है। यह कषाय सम्यक्त्व और चारित्र दोनों का ही घात करती है। (गोक, 45) 5. अप्रत्याख्यानावरण कषाय किसे कहते हैं ? जो देशसंयम का घात करती है, वह अप्रत्याख्यानावरण कषाय है। अप्रत्याख्यान अर्थात् देशसंयम को जो आवरण करे, देशसंयम को न होने दे, वह अप्रत्याख्यानावरण कषाय है। (गोक,45) 6. प्रत्याख्यानावरण कषाय किसे कहते हैं ? जो सकल संयम का घात करती है, वह प्रत्याख्यानावरण कषाय है। प्रत्याख्यान अर्थात् संयम को जो आवरण करे, संयम को न होने दे, वह प्रत्याख्यानावरण कषाय है। (गोक,45) 7. संज्वलन कषाय किसे कहते हैं ? जिस कषाय के रहते सकल संयम तो रहता है किन्तु यथाख्यात संयम प्रकट नहीं हो पाता है, वह संज्वलन कषाय है। 8. कषायों की शक्तियों के दृष्टान्त व फल कौन-कौन से हैं ? निम्न तालिका में देखें - कषाय दूष्टान्त अनन्तानुबन्धी क्रोध अप्रत्याख्यानावरण क्रोध प्रत्याख्यानावरण क्रोध संज्वलन क्रोध अनन्तानुबन्धी मान अप्रत्याख्यानावरण मान प्रत्याख्यानावरण मान संज्वलन मान अनन्तानुबन्धी माया अप्रत्याख्यानावरण माया प्रत्याख्यानावरण माया संज्वलन माया अनन्तानुबन्धी लोभ अप्रत्याख्यानावरण लोभ प्रत्याख्यानावरण लोभ संज्वलन लोभ पत्थर की रेखा के समान। भूमि की रेखा के समान। (पानी से मिट जाती है) बालू की रेखा। (हवा से मिट जाती है) जल की रेखा। पत्थर का स्तम्भ। अस्थि स्तम्भ। (पुरुषार्थ से मुड़ जाती है) काष्ठ का स्तम्भ। (पिच्छी की डंडी) लता स्तम्भ। बाँस की जड। मेढ़े के सींग समान। (बांस की जड़ से कम टेढ़ी ) गोमूत्र के समान (गो के मूत्र की वक्र रेखा के समान) खुरपे के समान या लेखनी के समान। कृमिराग के रंग समान। गाडी का ऑगन। (केरोसिन से साफ हो जाता है) कीचड़ के समान। (जल से धुल जाता है) हल्दी का रंग। फल - अनन्तानुबन्धी कषाय का फल नरकगति, अप्रत्याख्यानावरण कषाय का फल तिर्यज्ञ्चगति, प्रत्याख्यानावरण कषाय का फल मनुष्यगति एवं संज्वलन कषाय का फल देवगति है। (गोजी, 284-287) 9. कषायों का संस्कार काल कितना है ? अनन्तानुबन्धी कषाय का संस्कार काल छ: माह से ज्यादा तथा संख्यात-असंख्यात एवं अनंत भवों तक रहता है। अप्रत्याख्यानावरण का संस्कार काल छ: माह तक है। प्रत्याख्यानावरण का संस्कार काल एक पक्ष अर्थात् 15 दिन तक है एवं संज्वलन का संस्कार काल अन्तर्मुहूर्त है। (गोजी,46) 10. क्रोध कषाय किसे कहते हैं ? अपने और पर के उपघात या अनुपकार आदि करने के क्रूर परिणाम क्रोध हैं। इससे किसी का अहित हो या न हो, स्वयं का अवश्य हो जाता है। क्रोध जलते हुए अंगारे की तरह है, जिसे दूसरों पर फेंकने से वह जले या न जले, स्वयं का हाथ जल ही जाता है। इसमें हृदय की धड़कन बढ़ जाती है। हाथ-पैर कांपने लगते हैं, आँखें लाल हो जाती हैं, हित-अहित का विवेक समाप्त हो जाता है। 11. क्रोध कषाय के कौन-कौन से कारण हैं ? क्रोध कषाय के निम्न कारण हैं- कषाय का उदय होना, भूख-प्यास के कारण, इच्छा पूर्ति नहीं होना, मेरे सही को कोई गलत कहे, अज्ञान के कारण। 12. क्रोध कषाय का फल बताइए ? द्वीपायन मुनि क्रोध के कारण अग्नि कुमार देव हुए। क्रोध के समय किया गया भोजन-पानी भी विष बन जाता है। राजा अरविन्द क्रोध के कारण नरक गया। 13. क्रोध कषाय से कैसे बच सकते हैं ? क्रोध कषाय से निम्न प्रकार से बच सकते हैं पर की वेदना को अपनी वेदना समझे। वस्तु स्थिति जानें। नेवला-सर्प-बालक-महिला की कहानी। स्थान परिवर्तन कर देना चाहिए। जैसे-श्रवणकुमार ने किया था। जवाब न देना-मौनेन कलहो नास्ति। कुछ क्षण के लिए ऊपर आकाश की ओर देखें। 14. किसका क्रोध कब तक रहता है ? गुरुजनों का क्रोध प्रणाम करने पर्यन्त रहता है, प्रणाम करने के पश्चात् नष्ट हो जाता है। क्षत्रियों का क्रोध मरण पर्यन्त अर्थात् चिरकाल तक रहता है अथवा उनका क्रोध प्राणों को नष्ट करने वाला होता है। ब्राह्मणों का क्रोध दान पर्यन्त रहता है, दान मिलने से शांत हो जाता है। वणिकों का क्रोध प्रियभाषण पर्यंत होता है, ये लोग मीठे वचनों द्वारा क्रोध को त्यागकर शांत हो जाते हैं। जमींदारों (साहूकारों) का क्रोध उनका कर्जा चुका देने से शांत हो जाता है। (नीतिवाक्यामृत) विद्वानों का क्रोध तब तक रहता है, जब तक वह अपनी प्रशंसा नहीं सुन लेता। प्रशंसा सुनते ही क्रोध शांत हो जाता है। बच्चों का क्रोध तब तक रहता है, जब तक उन्हें उनकी प्रिय वस्तु नहीं मिलती। वह वस्तु मिलते ही क्रोध शांत हो जाता है। महिलाओं का क्रोध तब तक रहता है, जबतक उन्हें मन पसन्द साड़ी और आभूषण नहीं मिलते। ये मिलते ही क्रोध शान्त हो जाता है। 15. मान कषाय किसे कहते हैं ? रोष से अथवा विद्या, तप और जाति आदि के मद से दूसरों के प्रति नम्र न होने को मान कहते हैं। (ध.पु., 1/351) 16. मान कषाय का क्या फल है ? रावण विद्याधर मान के कारण नरक गया, दुर्गन्धा नामक बालिका ने अनेक दु:ख भोगे तथा मरीचि को अहंकार के कारण अनेक दुर्गतियों में भटकना पड़ा। 17. मान कषाय को कैसे रोक सकते हैं ? 8 मदों में से जिसका भी मद हो तो अपने से बड़ों को देखो तो मद अपने आप नहीं होगा। ज्ञान का मद है तो केवलज्ञानी को देखें। धन का मद है तो चक्रवर्ती को देखें। रूप का मद है तो कामदेव को देखें। बल का मद है तो भीम, रावण को देखें। इसी प्रकार और भी जानना चाहिए। 18. माया कषाय किसे कहते हैं ? दूसरे को ठगने के लिए जो कुटिलता या छल आदि किए जाते हैं, वह माया कषाय है। अपने हृदय में विचार को छुपाने की जो चेष्टा की जाती है, उसे माया कषाय कहते हैं। मन, वचन, काय की प्रवृत्ति में एकरूपता नहीं होने को मायाचार कहते हैं। ऐसे व्यक्ति ठगी या मायावी कहलाते हैं। माता-पिता, भाई-बहिन तक उसकी बातों का विश्वास नहीं करते हैं। 19. माया कषाय का क्या फल है ? मायाचार के कारण मृदुमति महाराज भी हाथी की पर्याय में गए। युधिष्ठिर के नाम पर कलंक लगा क्योंकि उन्होंने युद्ध में कहा था ‘अश्वत्थामा हतो नरो वा 20. माया कषाय को कैसे रोक सकते हैं ? आज तक किसी का मायाचार छिपा नहीं है, वह प्रकट हो ही जाता है। अत: सादगी, सरलता, ईमानदारी, स्पष्टवादिता, कथनी-करनी में एकरूपता, अपने गुणों को छिपाना और दोषों का निकालना आदि के प्रयोग करने से तथा हमेशा याद रखना, दगा किसी का सगा नहीं। 21. लोभ कषाय किसे कहते हैं ? धन आदि की तीव्र आकांक्षा को लोभ कषाय कहते हैं। बाह्य पदार्थों में जो यह मेरा है, इस प्रकार अनुराग रूप बुद्धि होती है, वह लोभ है। इसे पाँचों पापों का बाप (पिता) कहा है- लोभी कभी सुखी नहीं होता है, सदा और मिले- सदा और मिले वह चाह की आग में जलता रहता है, न स्वयं भोग पाता है न दूसरों को भोगने देता है। 22. लोभ कषाय का फल क्या है ? लोभ के कारण कौरवों को भी नरक जाना पड़ा। पाप का बाप कौन है, इस प्रश्न के उत्तर में पंडित जी को नगरनारी के द्वारा अपमानित होना पड़ा। वह किसान जिसे 1000 रूबल (रूस की मुद्रा) में इच्छित भूमि मिलने वाली थी लोभ में दौड़-दौड़ कर मर गया । 23. लोभ कषाय से कैसे बच सकते हैं ? हजारों नदियों से समुद्र की तृप्ति नहीं हुई, हजारों टन ईंधन से अग्नि की तृप्ति नहीं हुई। सागरोपम काल तक स्वर्गों में भोग भोगने से तृप्ति नहीं हुई तो यहाँ 60-70 वर्ष की उम्र में क्या हो सकता है ? भरत चक्रवर्ती भी भाई से लड़े अंत में राज्य छोड़ना पड़ा तो हम सब इसके पीछे क्यों पड़े हैं और अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं। ऐसा विचार करें। 24. नो कषाय किसे कहते हैं ? नो अर्थात् ईषत् (किंचित्) कषाय का वेदन करावे, उसे नोकषाय या अकषाय कहते हैं। 25. नो कषाय कितनी होती हैं ? नो कषाय 9 होती हैं -हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद एवं नपुंसकवेद।
  22. झूठ भी यदि, सफ़ेद हो तो सत्य, कटु क्यों न हो ? हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  23. उड़ना भूली, चिड़िया सोने की तू, उठ उड़ जा। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  24. आँखें देखती, हैं मन सोचता है, इसमें मैं हूँ। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  25. ठण्डे बस्ते में, मन को रखना ही, मोक्षमार्ग है। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
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