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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. कर्मो का बन्ध जीव स्वयं करता है, स्वयं ही भोगता है, कर्मो की अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं, इसका वर्णन इस अध्याय में है। 1. कर्मो की दस अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं ? कर्मों की दस अवस्थाएँ इस प्रकार हैं बंध - (अ) "बंधो णाम दुभाव परिहारेण एयत्तावत्तो" द्वित्व का त्याग करके एकत्व की प्राप्ति का नाम बंध है। (ब) पुद्गल द्रव्य (कार्मण वर्गणा) का कर्म रूप होकर आत्मप्रदेशों के साथ संश्लेष सम्बन्ध होना बंध है। कर्मो की दस अवस्थाओं में यह प्रथम अवस्था है। बंध के बाद ही अन्य अवस्थाएँ प्रारम्भ होती हैं गुणस्थान 1 से 13 तक। सत्त्व - कर्मबंध के बाद और फल देने से पूर्व बीच की स्थिति को सत्व कहते हैं। सत्व काल में कर्म का अस्तित्व रहता है पर सक्रिय नहीं होता है। जैसे-औषध खाने के बाद वह तुरन्त असर नहीं करती है किन्तु कुछ समय बाद प्रभाव दिखाती है, वैसे ही कर्म भी बंधन के बाद कुछ काल तक सत्ता में बना रहता है बाद में फल देता है। गुणस्थान 1 से 14 तक। उदय - (अ) द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के अनुसार कर्मो का फल देना उदय कहलाता है। (ब) आबाधा पूर्ण होने पर निषेक रचना के अनुसार कर्मो का फल प्राप्त होना उदय कहलाता है। गुणस्थान 1 से 14 तक। उदीरणा - (अ) उदयावली के बाहर स्थित द्रव्य का अपकर्षण पूर्वक उदयावली में लाना उदीरणा है। (ब) आबाधा काल के पूर्व कर्मो का उदय में आ जाना उदीरणा है। जैसे- कोर्ट में गए आपकी फाइल नीचे रखी थी उसका नम्बर शाम तक आता आपने 50 रुपए दिए (पुरुषार्थ किया) आपकी फाइल 12 बजे ही आ गई। गुणस्थान 1 से 13 तक। उत्कर्षण - पूर्व बद्ध कर्मो की स्थिति और अनुभाग में वृद्धि हो जाना उत्कर्षण है। जिस प्रकृति का जब बंध होता है तभी उत्कर्षण होता है। गुणस्थान 1 से 13 तक। जैसे- खदिरसार का उदाहरण चारित्रसार गत श्रावकाचार 17 की टीका में आता है। अपकर्षण - पूर्वबद्ध कर्मो की स्थिति व अनुभाग में हानि का होना अपकर्षण है। यह अपकर्षण कभी भी हो सकता है, जैसे- राजा श्रेणिक ने 33 सागर की आयु का बंध किया था। बाद में क्षायिक सम्यकदर्शन के परिणाम से 84,000 वर्ष की आयु कर ली अर्थात् शेष आयु का अपकर्षण कर लिया।गुणस्थान 1 से 13 तक। संक्रमण - जिस प्रकृति का पूर्व में बंध किया था, इसका अन्य प्रकृति रूप परिणमन हो जाना संक्रमण है। गुणस्थान 1 से 10 तक किन्तु 11 वें गुणस्थान में मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व का संक्रमण होता है। उपशम -जो कर्म उदयावली में प्राप्त न किया जाए अथवा उदीरणा अवस्था को प्राप्त न हो सके वह उपशम करण है। गुणस्थान 1 से 8 तक। निधति - कर्म का उदयावली में लाने या अन्य प्रकृति रूप संक्रमण करने में समर्थ न होना निधति है। गुणस्थान 1 से 8 तक। निकाचित - कर्म का उदयावली में लाने, अन्य प्रकृति रूप संक्रमण करने में, उत्कर्षण एवं अपकर्षण करने में असमर्थ होना निकाचित है। गुणस्थान 1 से 8 तक। विशेष - मूल प्रकृतियों का परस्पर में संक्रमण नहीं होता है। जैसे- मोहनीय कर्म का संक्रमण वेदनीय में नहीं होता है इसी प्रकार और भी। दर्शनमोहनीय का चारित्रमोहनीय में संक्रमण नहीं होता है। आयु कर्म में संक्रमण नहीं होता है। 2. दस कर्मो के उदाहरण बताइए ? बन्ध - 17 अगस्त 2005 को किसी फैक्ट्री में 10 वर्ष के लिए नौकरी पक्की हो जाना। सत्व - 17 अगस्त 2005 से 1 अक्टूबर 2015 तक का समय। उदय - 2 अक्टूबर 2005 से नौकरी पर जाना प्रारम्भ हो जाना। उपशम - फैक्ट्री तो पहुँच गए किन्तु फैक्ट्री के ताले की चाबी न मिलने से कुछ समय रुकना पड़ा । उदीरणा - 1अक्टूबर 2005 को ही फैक्ट्री पहुँच जाना। अपकर्षण - 10 वर्ष के लिए नौकरी मिली थी, किन्तु बाद में 9 वर्ष के लिए कर दी। उत्कर्षण - 10 वर्ष के लिए नौकरी मिली थी, किन्तु बाद में 11 वर्ष के लिए हो गई। संक्रमण - फैक्ट्री मालिक ने दूसरी फैक्ट्री में भेज दिया। निधति - न 1 अक्टूबर 2005 से नौकरी पर गए न मालिक ने दूसरी फैक्ट्री भेजा यथासमय गए यथास्थान पर रहे। निकाचित - न 1 अक्टूबर 2005 से नौकरी पर गए न मालिक ने दूसरी फैक्ट्री भेजा, न ही नौकरी 9 वर्ष की और न ही नौकरी 11 वर्ष की। अर्थात् कार्य सही समय पर सही स्थान में सही समय तक चलता रहा। 3. क्या निधति निकाचित का फल भोगना ही पड़ता है ? नहीं। जिस प्रकार किसी को मृत्यु दण्ड मिला हो तो राष्ट्रपति उसे अभयदान दे सकता है अर्थात् मृत्युदण्ड को वापस ले सकता है। उसी प्रकार आचार्य श्री वीरसेनस्वामी, श्री धवला, पुस्तक 6 में कहते हैं जिणबिंबदंसणेण णिधक्तणिकाचिदस्स वि मिच्छतादिकम्मकलावस्स खय दंसणादो। अर्थात् जिनबिम्ब के दर्शन से निधति और निकाचित रूप भी मिथ्यात्वादि कर्मकलाप का क्षय होता देखा जाता है तथा नौवें गुणस्थान में प्रवेश करते ही दोनों प्रकार के कर्म स्वयमेव समाप्त हो जाते हैं। 4. संक्रमण को भी एक प्रकार से बंध कहा है, क्यों ? बंध के दो भेद हैं - अकर्म बंध - जो कार्मण वर्गणाओं में अकर्मरूप से स्थित परमाणुओं का ग्रहण होता है, वह अकर्म बंध है। कर्मबंध - कर्मरूप से स्थित पुद्गलों का अन्य प्रकृति रूप से परिणमन होना कर्म बंध है। इसी से संक्रमण को भी बंध कहा है। जैसे - साप्तावेदनीय का असाता वेदनीय हो जाना। 5. अपकर्षण एवं उत्कर्षण को भी संक्रमण में क्यों गर्भित किया है ? अपकर्षण एवं उत्कर्षण में भी कर्म, कर्मरूपता का त्याग किए बिना ही स्थिति अनुभाग रूप से पुन: बंधते हैं, अत: अपकर्षण, उत्कर्षण को भी संक्रमण में गर्भित किया है।
  2. उत्साह बढ़े, उत्सुकता भगे तो, अगाध धैर्य |(गाम्भीर्य बढ़े) हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  3. मनोनुकूल , आज्ञा दे दूँ कैसे दूँ, बँधा विधि से | हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  4. बाहर आते, टेड़ी चाल सर्प की, बिल में सीधी | हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  5. सब अपने, कार्यों में लग गये, मन न लगा। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  6. सन्निधिता क्यों, प्रतिनिधि हूँ फिर, क्या निधि माँगू। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  7. है का होना ही, द्रव्य का प्रवास है, सो सनातन। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  8. दर्पण कभी, न रोया श्रद्धा कम, क्यों रोओ हँसो। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  9. धनिक बनो, अधिक वैधानिक, पहले बनो। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  10. मैं क्या जानता, क्या क्या न जानता सो, गुरु जी जानें। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  11. प्रतिशोध में, बोध अंधा हो जाता, शोध तो दूर। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  12. पगडंडी में, डंडे पड़ते तो क्या, राजमार्ग में? हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  13. कर्त्तव्य मान, ऋण रणांगन को, पीठ नहीं दो। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  14. पक्की नींव है, घर कच्चा है छांव, घनी है बस। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
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