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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. आचार्य प्रणीत ग्रन्थ पढ़ने से स्वाध्यायशील व्यक्ति अनुभव की कसौटी पर स्वाध्यायी खरा उतरता है। पण्डितों के द्वारा रचित ग्रन्थ पढ़ने से कदाचित् स्वाध्यायी व्यक्ति दिशा विहीन होकर अपनी दशा को दुर्दशा में बदल सकता है। आचार्यों के ग्रन्थ आचार्य परम्परा से । बंधकर चलते हैं। सूत्रों के सही अर्थ को प्रदर्शित करते हैं, उन्हें सही प्ररूपित या उनका सही व्याख्यान करते हैं। अर्थ का गलत अर्थ होने से बचा लेता है। इसी दृष्टि को ध्यान में रखकर अध्ययन की गहनता के महापण्डित शिरोमणि आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज कहते थे साधक को, स्वाध्यायी को, मुमुक्षु को, आस्थावान-निष्ठावान को हमेशा आचार्य प्रणीत अध्यात्म ग्रन्थ को ही पढ़ना चाहिए। यदि बुद्धि ज्ञान ज्यादा है तो न्याय पढ़ना चाहिए लेकिन इसके लिए वैराग्य का होना आवश्यक है। ऐसा हमें उनके स्वाध्यायी जीवन से देखने, सीखने को या ग्रहण करने को मिलता था। मूलाचार प्रदीप की वाचना पर ०९.०७.१९९९, शुक्रवार, नेमावर
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