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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. वक्ता / गायक / प्रस्तुतकर्ता: मुनि श्री 108 भावसागर जी, मुनि श्री 108 धर्मसागर जी
    ।। संयम स्वर्ण महोत्सव कविताएँ। रचयिता : आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महराज के शिष्य मुनि श्री 108 धर्मसागर जी महाराज ।। आवाज़ : मुनि श्री 108 भावसागर जी महाराज संयोजना : सृजल जैन गोटेगांव
  2. आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के 'संयम स्वर्ण महोत्सव' के मौके पर अजमेर स्थित दीक्षास्थली के मुहाने पर ६५ फीट ऊंचे कीर्तिस्तंभ ने पूरा आकार ले लिया है। ?मार्बल व्यवसायी श्री अशोक जी पाटनी के अर्थ सहयोग से तैयार इस 'दीक्षायतन' पर ३० जून को मुनि सुधासागर महाराज के पहुंचने की संभावना है।करीब एक करोड़ की लागत से तैयार इस कीर्तिस्तंभ पर आचार्य श्री के दीक्षा पूर्व के चित्रों को उकेरा गया है। ?यह कीर्तिस्तंभ, पिच्छी व कमंडल राजस्थान के बयाना समीपस्थ पहाड़ी के लाल पत्थर से तैयार कराया गया है, जिस पर अब सामान्य कामों के अलावा पॉलिश का काम बाकी है। यह दीक्षायतन अजमेर के महावीर सर्किल स्थित पार्श्वनाथ कॉलोनी के शुरू मे स्थापित किया गया है।
  3. स्वार्थ की सिद्धि परमार्थ के मार्ग में बाधक हुआ करती है। आगम की आज्ञा ही सर्वोपरि परमार्थ का मार्ग है, एक अक्षर मात्रा को कम किये बिना, उसे पढ़ना-लिखना; उसी के अनुसार चलना भी आना चाहिए। यदि मानते हो तो सभी बातें मानो, अपने मतलब की बात, स्वार्थ सिद्धि की लाइन में खड़ा कर देती है। आचार्य ज्ञानसागरजी स्वाध्याय कराते वक्त कहते थे, भईया! आगम में दोनों प्रकार के विषय का कथन आता है। यदि मानना ही है, आगम की बातें तो पूरी ही मानना चाहिए। नहीं तो अवज्ञा हो जायेगी। अवज्ञा से बचने का मार्ग, आगम की पूरी बातें मानना चाहिए। आचार्य श्री जी के श्री मुख से २६.०३.२००३, बुधवार कुण्डलपुर सिद्धक्षेत्र (मध्यप्रदेश)
  4. निरीक्षण के बिना, परीक्षण के बिना वस्तु की परख श्रावक के गुणों की परख नहीं हो सकती। आहार शुद्धि, क्षेत्र की शुद्धि, मन की शुद्धि, वचन की शुद्धि, काया की शुद्धि ये सब साधक के निरीक्षण के बिन्दु हुआ करते हैं। आचार्य ज्ञानसागरजी कहते थे, मुनि महाराज जब भी चौके में आयेंगे या जायेंगे तो निरीक्षण के बिना दाता का दान स्वीकार नहीं करना चाहिए, यह क्रिया शुद्धि बुलवाने के पहले की क्रिया है। शुद्धि बुलवाने के बाद देखने और सोचने के लिए कोई गुंजाइश बाकी नहीं रह जाती है। इसलिए वे कहते थे पहले देख लो फिर शुद्धि बुलवाओ। आचार्यश्री जी के श्री मुख से २९.०३.२००३, शनिवार, कुण्डलपुर सिद्धक्षेत्र (मध्यप्रदेश)
  5. साधु के लिए ध्यान की प्राप्ति के लिए निरीहवृत्ति को धारण करना पड़ता है। बिना निरीहता के ध्यान की सिद्धि नहीं होती है। इसलिए आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज को निरीहता का गुण बहुत पसंद था, क्योंकि ध्यान के माध्यम से ही आत्मानुभूति के क्षण प्राप्त होते हैं, वे कहते थे यदि निरीहता नहीं है तो आचार्य पद का प्रभाव नहीं पड़ता इसलिए आचरण में निरीहता होना ही आचारत्व का कुछ मतलब सिद्ध करता है। आचार्यश्री के श्री मुख से १९.१२.२००३, शुक्रवार कसायपाहुड तीसरी पुस्तक वाचना, बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
  6. अंतरंग दृष्टि आत्मगत दृष्टि है, जो बाह्य जगत् से सम्बन्ध का विच्छेद करा देती है। निश्चय चारित्र की प्राप्ति का कारण मन; वह जगह है जहाँ बाह्य जगत् का प्रकाश नहीं पहुँचता है। केवल वहाँ अंतरंग अनुभूति का प्रकाश प्राप्त हो, अंतर्मुखी बना जगत् के प्रकाश को जीरो पर ले जाकर खड़ा कर देता है, जड़ और चैतन्य की भिन्नता यहाँ जान पड़ती है, यह अंतरंग सारे रंगों से रहित हो जाता है, करने की क्रिया एकदम दूर जाती है, जो आरम्भवर्धनी, पापवर्धनी मानी जाती है। साधक इस स्थिति में आने पर पाप एवं पुण्य से उठ जाता है, अनंतसुख, अनंतवीर्य, अनंतदर्शन, अनंतज्ञान, अव्याबाध से रहित अगुरुलघु के तत्त्व की ओर जाने के साधन की खोज में लग जाता है। व्यवहार जगत् उनके लिए शून्य हो जाता है। निश्चय जगत् से ही नाता रह जाता है। इसलिए शरीर की जीर्ण स्थिति का ज्ञान नहीं हो पाता, अंतरंग की शुद्धि काय की स्थिरता के प्रयोजन समाप्त हो जाते हैं, आचार्य ज्ञानसागरजी अपने जीवन काल में इतने सावधान थे, वे कहते थे दुनिया की कोई वस्तु इस मनुष्य जीवन में किसी को मिले या न मिले लेकिन संयम अवश्य सभी को मिले इसलिए उन्होंने सर्वप्रथम आठ वर्ष की उम्र में ब्रह्मचर्य रूपी संयम को प्राप्त किया, उसके बाद देशसंयम की प्रतिमा रूप में प्राप्त कर आचार्य कुन्दकुन्द के द्वारा कहे हुए श्रावक के क्षुल्लक, ऐलक लिंग को धारण किया। बाद में महाव्रतों को धारण कर मुनि पद को प्राप्त किया। इस संयम की प्राप्ति से वे आलम्बन से रहित हो, अंतरंग के रंग में समा जगत् को संयम का रूप, रंग का संदेश देकर चले गये। आचार्यश्री के मुख से, २९.९.२००४, गुरुवार, तिलवाराघाट, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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