स्वार्थ की सिद्धि परमार्थ के मार्ग में बाधक हुआ करती है। आगम की आज्ञा ही सर्वोपरि परमार्थ का मार्ग है, एक अक्षर मात्रा को कम किये बिना, उसे पढ़ना-लिखना; उसी के अनुसार चलना भी आना चाहिए। यदि मानते हो तो सभी बातें मानो, अपने मतलब की बात, स्वार्थ सिद्धि की लाइन में खड़ा कर देती है।
आचार्य ज्ञानसागरजी स्वाध्याय कराते वक्त कहते थे, भईया! आगम में दोनों प्रकार के विषय का कथन आता है। यदि मानना ही है, आगम की बातें तो पूरी ही मानना चाहिए। नहीं तो अवज्ञा हो जायेगी। अवज्ञा से बचने का मार्ग, आगम की पूरी बातें मानना चाहिए।
आचार्य श्री जी के श्री मुख से
२६.०३.२००३, बुधवार
कुण्डलपुर सिद्धक्षेत्र (मध्यप्रदेश)