साधु के लिए ध्यान की प्राप्ति के लिए निरीहवृत्ति को धारण करना पड़ता है। बिना निरीहता के ध्यान की सिद्धि नहीं होती है। इसलिए आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज को निरीहता का गुण बहुत पसंद था, क्योंकि ध्यान के माध्यम से ही आत्मानुभूति के क्षण प्राप्त होते हैं, वे कहते थे यदि निरीहता नहीं है तो आचार्य पद का प्रभाव नहीं पड़ता इसलिए आचरण में निरीहता होना ही आचारत्व का कुछ मतलब सिद्ध करता है।
आचार्यश्री के श्री मुख से
१९.१२.२००३, शुक्रवार
कसायपाहुड तीसरी पुस्तक वाचना, बिलासपुर (छत्तीसगढ़)