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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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  1. Vidyasagar.Guru
    अपडेट 5 फरवरी 2019
    सागर केंद्रीय जेल में चल रहे हथकरघा का  निरीक्षण करने पहुंचे आचार्य श्री 
    सागर/  भाग्योदय तीर्थ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज दोपहर 1.30 बजे सागर केंद्रीय जेल में कैदियों द्वारा चलाए जा रहे हथकरघा के कार्य का निरीक्षण करने के लिए यहां से बिहार कर वर्णी कॉलोनी, तिलकगंज, कगरयाऊ घाटी होते हुए पीली कोठी गोपालगंज होकर केंद्रीय जेल 2:50 तक पहुंचेंगे। 
    केंद्रीय जेल में हथकरघा के माध्यम से कैदियों के द्वारा अहिंसक वस्त्रों का निर्माण कार्य चल रहा है। 
    उल्लेखनीय है आगामी 16 और 17 फरवरी को दो दिवसीय एक कार्यक्रम आयोजित किया गया है इस कार्यक्रम में अब तक पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी,प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ, अन्ना हजारे, उपराज्यपाल किरण बेदी कई अन्य नेताओं की आने की चर्चा है 
    अब तक श्री अन्ना हजारे और उप राज्यपाल किरण बेदी के आने की पुष्टि हो चुकी है आचार्य संघ शाम 5:00 बजे तक वापस भाग्योदय तीर्थ पहुंच जाएगा।
     
  2. Vidyasagar.Guru
    विहार अपडेट 
    आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज संसंघ का शान्तिधाम, बीनाबारह जी से हुआ मंगल विहार..!! सम्भावित दिशा - रहली पटनागंज  दिनांक - 13 मार्च 2019  रात्रि विश्राम - सिंगपुर गंजन 10 km कल की आहारचर्या - अनन्तपूरा  
    विश्व वंदनीय आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (ससंघ), बीना बारहा में विराजमान हैं। बीना बारहा सागर (Railway Station Code : SGO) से 45 किमी की दूरी पर है। 
     
    विहार अपडेट 
     
    दिनांक : 20 फरवरी 2019 2:00 p.m.
    संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ का विहार गौरझामर से देवरी की ओर हुआ|
     
    ◆रात्रि विश्राम - देवरी से 8 किलोमीटर पहले गोपालपुरा स्कूल में होगा | 
    21 फरवरी को देवरी में आहार चर्या होगी|
     
    दिनांक : 19 फरवरी 2019   1:35 p.m.
    आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का विहार गौरझामर की ओर हुआ। (दूरी 15 कि.मी.) 

    ◆ रात्रि विश्राम - बरकोटी तिग्गड़ा (दूरी - 11 कि.मी. गौरझामर) (5 कि.मी. बरकोटी से)
     
    दिनांक : 18 फरवरी 2019   1:50 p.m.
    आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी ससंघ का भाग्योदय तीर्थ सागर से अभी अभी विहार हुआ |
     
    ◆ रात्रिविश्राम- ग्राम-दून 18km
    ◆ कल की आहरचर्या- ग्राम- चितौरा 05km संभावित
  3. Vidyasagar.Guru
    भारत सरकार की कैबिनेट मंत्री *श्रीमती स्मृति ईरानी* जी ने लिया आचार्य श्री विद्यासागर जी  का आशिर्वाद
    *नेमावर पहुँची केंद्रीय मंत्री, किये आचार्यश्री के दर्शन, लिया आशीर्वाद।*

    _*सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र में विराजमान पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महामुनिराज* के दर्शन-वंदन की भावना से आज *केंद्रीय मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी* नेमावर पहुँची एवम पूज्य गुरुदेव को नमन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। श्रीमती ईरानी ने पूज्य आचार्यश्री से अहिंसा सहित अन्य विषयों पर चर्चाकर मार्गदर्शन भी प्राप्त किया।_
    _प्रबंधकारिणी समिति नेमावर द्वारा, ब्रह्मचारिणी बहनों के माध्यम से *केन्द्रीय मंत्री का सम्मान* भी किया गया। दर्शन उपरान्त उन्होंने अपनी प्रशन्नता व्यक्त कर अपने को अत्यन्त सौभाग्यशाली माना।_     
     
    सर्वोदयी  राष्ट्रीय महासन्त आचार्यश्री के श्रीचरणों में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी जी की भावाभिव्यक्ति
     
     
    हमें भारत को आगे बढ़ाने के साथ-साथ संस्कारित करने की दिशा में भी काम करना चाहिए.. 
    भारत तो विश्व गुरु था, है और रहेगा: आचार्यश्री विद्यासागरजी

    ✍🏻 पुनीत जैन, खातेगांव
    शनिवार को केंद्रीय महिला एवं बालविकास और कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज के दर्शन करने और हथकरघा के विषय पर विस्तृत चर्चा करने नेमावर आयी। हेलीकॉप्टर से अपने तय समय से 10 मिनट पहले पहुंची ईरानी लगभग ढाई घंटे तक नेमावर जैन मंदिर परिसर में रही। 
    ईरानी ने आचार्यश्री के आशीर्वाद से चलने वाले समाजसेवा के विभिन्न प्रकल्पों हथकरघा, हस्तशिल्प, प्रतिभास्थली, मातृभाषा हिन्दी जैसे अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर आचार्यश्री से लम्बी चर्चा की। इसके साथ ही बारीकी से हथकरघा से निर्मित वस्त्र, हस्तशिल्प से बनी विभिन्न वस्तुओं का अवलोकन किया। ईरानी ने आचार्यश्री से निवेदन किया कि वे ससंघ देश की राजधानी दिल्ली आएं।  

    सक्रिय सम्यक सहकार संघ की ओर से आरके मार्बल ग्रुप की सुशीला पाटनी एवं ब्रम्हचारी सुनील भैयाजी ने हथकरघा से बनी साड़ी ईरानी को भेंट की। 
    वहीं ट्रस्ट कमेटी की ओर से वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुरेशचंद काला, दिलीप सेठी, राजीव कटनेरा, महेंद्र अजमेरा ने कलश एवं आचार्यश्री द्वारा रचित जैन साहित्य भेंटकर स्मृति ईरानी को सम्मानित किया। 
    स्मृति ईरानी ने कहा-
    इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा आध्यात्म के मार्ग पर चलते हुए मानवता को परिभाषित करने वाले आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज और मुनिसंघ का आशीर्वाद आज प्राप्त हुआ। आचार्यश्री के प्रकल्प के माध्यम से हिंसा के अवगुणों को लेकर भी जेल में बंद कैदी आध्यात्म के मार्ग पर चलते हुए हथकरघा के माध्यम से संतों का सानिध्य प्राप्त कर रहे हैं। 
    अहिंसा को अपनाकर जीवन का उत्थान कैसे किया जाए इसका प्रतिबिम्ब आज तिहाड़ जेल में हथकरघा के वस्त्र बनाते कैदियों को देखने पर मिल रहा है।
    अहिंसा के मार्ग पर चलना, स्वावलंबन के साथ जीना और प्रभु का स्मरण करते हुए समाज के संरक्षण में अपने आप को समर्पित करने का भाव आपके माध्यम से जो जनमानस में जागृत हुआ है उसके लिए मैं आपके श्रीचरणों में सादर वंदन करती हूँ।  
    आपके शुभाशीष से ब्रम्ह्चारिणी बहिने शिक्षा का आशीर्वाद बेटियों को दे रही हैं, हथकरघा के माध्यम से सूत को काटकर संस्कार भरा वस्त्र निर्मित किया जा रहा है। आपके दिखाए मार्ग पर चलकर शिल्प की दुनिया के लोगों को जोड़कर भारत के भविष्य का वो अपने हाथों से निर्माण कर रहे हैं। राष्ट्र कीर्ति के पथ पर हम सभी सदैव चलें ऐसा आशीष आपसे मांगती हूँ। 
    आचार्य श्री ने अपने आशीर्वचन में कहा-
    विशेष रुप से विशेष विषय को लेकर जिज्ञासू (मंत्री महोदय) दूरी को दूर करते हुए आज यहां आए हैं। अपने व्यस्ततम समय से समय निकालकर जनता के कल्याण की भावनाओं को लेकर संस्कारित जीवन निर्मित हो देश के कल्याण के साथ राष्ट्र भाव सदैव बना रहे। यही भाव देश की जनता में भी आए, इन सब भावों को लेकर महोदया आई हैं। 
    आचार्यश्री ने राष्ट्र उत्थान पर केंद्रित करते हुए अपने उदगार में कहा कि भारत को स्वतंत्र हुए कई वर्ष होने के बावजूद पूर्व स्थिति में नहीं आए। 
    हमें भारत को आगे बढ़ाने के साथ-साथ संस्कारित करने की दिशा में भी काम करना चाहिए। 
    हमें अपनी संस्कृति में पुनः लौटना है। हमे अपनी संस्कृति के अनुसार ही विश्व पटल पर भारत को आदर्श बनाना चाहिए। 
    भारत तो विश्व गुरु था और रहेगा। भारत की जीवंत संस्कृति यदि कोई है तो वह अहिंसा ही है। 
    भारतीय अर्थशास्त्रियों के भरोसे ही अमेरिका अपनी मंदी से उबरने और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में लगा है।  
    हम राष्ट्र के प्रति आस्थावान और समर्पित होकर रहेंगे तो देश को कोई हिला नहीं पाएगा। भारत वासना, विलासिता को नहीं बल्कि उपासना और साधना को पूजने वाला देश है। हमारी दृष्टि अखंड भारत की ओर होना चाहिए।
    हथकरघा, अंबर चरखा और हस्तशिल्प के कारण तिहाड़ जेल में हुंकार भरने वाले कैदी प्रार्थना कर रहे हैं, हिंसा को भूल गए हैं। कैदियों के जीवन में परिवर्तन आ रहा है। 
    व्यापार से धन नहीं बढ़ता, श्रम करने से बढ़ता है। जो व्यक्ति श्रम करेगा, वो कभी भूखा नहीं सोएगा। श्रमण शब्द की उत्पत्ति श्रमदान से ही हुई है। 
    भारत हमेशा भगवान का भक्त रहा है। राम से नहीं राम नाम का सच्चा सुमिरन करने से ही सारे काम हो जाते हैं। श्रीराम के नाम के जाप के सहारे ही हनुमानजी ने कई बाधाओं को लांघकर अविस्मरणीय कार्य किए। उसी प्रकार देश के सैनिक भी सीमा पर अपनी जान की बाजी लगाए देशहित में अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं।
    ---------
    सादगी पूर्ण व्यवहार:
    केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी पूरे कार्यक्रम में बहुत ही सादगी में दिखी। उनके लिए ट्रस्ट ने सोफे पर बैठने की व्यवस्था की थी, ट्रस्ट द्वारा आग्रह करने पर ईरानी ने कहा भारतीय संस्कृति में संतों के सामने ऊँचे स्थान पर बैठना शोभा नहीं देता, और वह आमजन के बीच ही बैठी रहीं। चेहरे पर धूप आने के बावजूद भी अपनी जगह नहीं बदली।
     
     


     
     








  4. Vidyasagar.Guru
    कृत्रिमता, कुटिलता, जटिलता और कपट
    मैंने देखा एक साँप तेजी से लहराता हुआ चल रहा था और चलते-चलते जब अपने बिल में प्रवेश करने को हुआ तो एकदम सीधा हो गया और सीधे बिल में प्रवेश कर गया। मेरे मन में बात आई कि मनुष्य दुनिया में टेढ़े-मेढ़े तरीके से चल सकता है लेकिन भीतर वही प्रवेश करता है जो इकदम सीधा होता है। इसी सीध पन का नाम आर्जव है। सीधापन, सरलता बहुत कठिन है। देखा जाए तो आदमी डील-डोल से बहुत सीधा दिखता है लेकिन मनुष्य के भीतर बहुत टेढ़ापन है। किसी ने लिखा कि एक युग था जब लोग टेढ़े रास्तों पर भी सीधा चला करते थे और आज सीधे रास्तों पर भी लोग टेढ़े-मेढ़े चला करते हैं।
     
    ये टेढ़ापन क्या है? वक्रता, कुटिलता, मायाचारी हमारे जीवन का टेढ़ापन है। मैं अपनी बात गुरुदेव की एक बात से प्रारम्भ कर रहा हूँ। एक लुहार ने अपनी लौहशाला में प्रवेश किया और प्रवेश करते ही अपनी धोकनी को सुलगाने से पूर्व अर्गन को प्रणाम किया। धौंकनी सुलगाई और उसके बाद एक टेढ़े पड़े लोहे को उसमें डाला। लोहे की मोटी राड थी राड एकदम तप कर लाल हो गई। उसने उसे उठाया और उसके ऊपर घन का प्रहार करना शुरू कर दिया। जब उस लोहे पर और अर्गन पर घन का प्रहार हुआ तो अर्गन उचटकर उस लुहार से बोली कि ये क्या नाटक है थोडी देर पहले तो तुमने मुझे प्रणाम किया अब मुझ पर प्रहार हो रहा है, और जिस सेहन पर रखकर इस लोहे को पीटा जा रहा था लोहे ने कहा जब तुम आए तो सबसे पहले इस घन को और सेहन को प्रणाम किया, इससे ही तुम्हारी रोजी चलती है, जीविका चलती है तो आने पर तो मुझे प्रणाम किया था और अब मेरे ही ऊपर इतना प्रहार क्यों?
     
    तब शिल्पी ने कहा- अर्गन से लुहार ने कहा कि तुम्हें तो मैं अब भी प्रणाम करता हूँ लेकिन क्या करूं तुमने लोहे की संगति कर ली इसलिए तुम्हारी पिटाई होती है। शुद्ध अर्गन को तो मैं आज भी पूजता हूँ और लोहे को सम्बोधित करते हुए कहा कि मुझे तुम्हें पीटने का कोई चाव नहीं है लेकिन क्या करूं तुम सीधे होते तो बिल्कुल नहीं पीटता, टेढ़े हो इसलिए पिटाई हो रही है। तुम्हें सीधा करने के लिए मुझे पीटना पड़ रहा है।
     
    बंधुओं! बहुत गहरी बात है। समझने की है। जीवन को सीधा वही कर पाते हैं जो साधना के प्रहार को झेलने के लिए तत्पर रहते हैं। और सीधे का ही उपयोग होता है टेढ़े-मेढ़ों को कोई उपयोग नहीं होता। इसलिए जीवन में सीधापन आए टेढ़ापन मिटे ये प्रयास होना चाहिए। सीधापन का मतलब है सहजता और टेढ़ेपन का मतलब है कृत्रिमता। सहजता और कृत्रिमता जो मनुष्य समझ लेता है उसके जीवन में ही सीधापन या सरलता आती है। सहजता के लिए मनुष्य को कुछ अतिरिक्त प्रयत्न करने की जरूरत नहीं होती। आपने अनुभव किया। आप कब ज्यादा खुश रहते हो? जब सहज रहते हो तब या जब किसी प्रकार की कृत्रिमता को ओढ़ लेते हो तब?
     
    इस समय आप बैठे हैं। साधारण व्यक्ति भी उसी ड्रेस में हैं और हाई प्रोफाइल कहलाने वाले लोग भी उसी ड्रेस में हैं। आप को कैसा लग रहा है? कुछ अंतर महसूस हो रहा है? क्या ऐसा लग रहा है कि मेरा स्टेटस(प्रतिष्ठा) क्या है, मैं सबके बराबर हूँ? ऐसा कुछ इसलिए नहीं लग रहा क्योंकि इस घड़ी में आप सहजता को अपनाए हुए हो। लेकिन जब आप अपनों के सकिल में जाओ, तथाकथित बड़े लोगों के बीच में रहो और उस समय यदि आप के बीच में कोई दूसरा व्यक्ति आप से हीन स्टेटस(प्रतिष्ठा) वाला आए तो उस समय उसे क्या फीलिंग(अनुभूति) होगी और आप को क्या फीलिंग होती है? कदाचित कभी ऐसी स्थिति आ जाए कि ऐसे लोगों के बीच रहना पड़े और आपक पास ढंग की गाडी न हो, ढंग के कपड़े नहीं ढंग का चश्मा न हो तो आप अपने मन में क्या अनुभव करते ही इनफीरियारिटी (हीनभावना) की फीलिंग होती है। अरे! महाराज जी! कई बार ऐसा लगता है। कपड़े यदि ढंग से प्रेस नहीं हो पाया तो मन ऐसा होता है। क्यों तकलीफ क्यों? तन पर कपड़ा है, सब कुछ है, किसी प्रकार की कमी नहीं है, आप वही हो, आपके गुण वही हैं, आपका व्यवहार वही है और आपका जो वैभव है वह भी वहीं का वहीं हैं, कोई कमी नहीं है लेकिन फिर भी मन में तकलीफ होती है।
     
    एक बार प्रवचन चल रहा था। घडी नहीं थी। मैंने इशारा किया कि भाई घड़ी रखो। एक सज्जन ने घड़ी लाकर रख दी। प्रवचन खत्म हुआ मैं उठकर चला गया वह सज्जन मेरे पीछे-पीछे आ गए। पीछे-पीछे आने के बाद थोडी देर बाद उन्हें ख्याल आया कि घड़ी तो वहीं छूट गई। फौरन उठकर गए। संयोगत: घड़ी मिल गई। घड़ी लेकर आए, उन्होंने कहा महाराज घड़ी मिल गई। मैंने कहा- एक घड़ी गई, छोटी सी चीज गई तुम जैसे लोगों के लिए इतना विकल्प करने की क्या जरूरत? महाराज घडी में हीरे जड़े हुए हैं, ये साध |ारण घड़ी नहीं है, इसकी कीमत तीस लाख है। मैं बोला- तीस लाख की घड़ी कोई अलग समय बताती है क्या? बोले महाराज! सवाल उसका नहीं है। ये घडी हम समय देखने के लिए नहीं बांधते हैं; लोगों को अपना समय दिखाने के लिए बांधते हैं। इससे हमारा स्टेटस पता चलता है। उन्होंने अपना चश्मा दिखाया, बोले महाराज आप लोग तो जानते नहीं हो हम लोगों को बहुत कृत्रिमता ओढ़नी पड़ती है। ये जो मेरा चश्मा देख रहे हैं इसका फ्रेम तीन लाख का है। उस पर कोई ब्राण्ड का नाम लिखा था। बोले ये ब्राण्ड है। आम आदमी को इसका कोई पता नहीं लेकिन जब हम किसी बडी डील में बैठते हैं तो कई बार तो आदमी इसके आधार पर ही हमारे स्टेटस का पता लगाता है। मैंने कहा बहुत अच्छी बात कही। भैया! तुम तीन लाख का चश्मा और तीस लाख की घड़ी पहनते हो तो तुम्हारा स्टेटस है; मेरे पास कुछ भी नहीं है, तिल-तुष मात्र भी नहीं है। अब ये बताओ स्टेटस तुम्हारा बड़ा है कि मेरा? बोलो स्टेटस किसका बड़ा है? फिर तुमने ये धारणा क्यों बनाई कि बाहर के टिपटॉप से मेरा स्टेटस बढ़ता है। बात समझ में आ रही है? जो तुमने ओढ़ रखा है वह कृत्रिमता है। जहाँ कृत्रिमता है वहाँ जटिलता है, वहाँ कुटिलता है और वहाँ कपट है।
     
    आर्ट अपनायें आटोंफीसियल्टी भगायें
    कृत्रिमता, कुटिलता, जटिलता और कपट। आज की चार बातें। कृत्रिमता को तुम जितना ओढोगे तुम्हारे जीवन की सहजता नष्ट होगी, सरलता नष्ट होगी, सत्य खत्म होगा और शांति विनष्ट होगी। कृत्रिमता जीवन की सहजता को, सरलता को, सत्य निष्ठा को और शांति को लील लेती है। आज आदमी इसी कृत्रिमता के चक्कर में मरा जा रहा है। भैया! तुम स्टेटस की बात करते हो। आप कितने ही बड़े आदमी क्यों न हों, किसी के घर में चाहे जैसे घुस सकते हो क्या? नहीं घुस सकते और हम किसी के घर में जाएँ तो अहो भाग्य समझेंगे। समझोगे कि नहीं समझोगे? अगर मैं कहूँ कि ठीक है, आता हूँ चेहरे खिल जाएँगे। हमारे पास कुछ भी नहीं है फिर भी तुम स्वागत के लिए तैयार हो और कोई करोड़पति आदमी अननोन'(अनजान) है, तुम्हारे यहाँ आना चाह रहा है तुम उसके लिए तैयार नहीं क्यों? स्टेटस किसका बड़ा? स्टेटस जो नीचे बैठा है उसका या जो ऊपर बैठा है उसका? वस्तुत: जीवन की सहजता ही जीवन की सच्ची प्रतिष्ठा है। कृत्रिमता जीवन को उलझाती है। मन में द्वन्द्र क्यों होता है? क्योंकि है कुछ और दिखाना कुछ पड़ता है; इसी का नाम तो माया है। हो कुछ और दिखाओ कुछ ये माया जेजिंग का सफयाकत है। सारे गुणक नाटक हाल सन्त कहते हैं इस कृत्रिमता से बचो। कृत्रिमता से मन में द्वन्द्र कैसे होता है बताता हूँ।
     
    एक साहित्यकार प्रकृति का सामान्य व्यक्ति था। बीस वर्ष बाद अपने बचपन के मित्र से मिलने गया। उसका मित्र एक बड़ा उद्यमी और हाई प्रोफाइल व्यक्ति था। जैसे ही वह उसके घर पहुँचा वह कहीं जाने की तैयारी में था। बीस साल पुराने मित्र को देखकर उसे बड़ी प्रसन्नता हुई, उसने उसे गले से लगाया, स्वागत किया और कहा भाई! अच्छा होता कि तुम आने से पहले नुझे सूचना देते तो मुझे बहुत अच्छा लगता। आगन्तुक मित्र ने कहा नहीं मैंने तुम्हें सूचना केवल इसलिए नहीं दी क्योंकि मैं तुम्हें सरप्राइज देना चाहता था। बोला बहुत अच्छा लगा तुम मिले लेकिन क्या करूं आज मुझे मेरी किसी जरूरी मीटिंग में जाना है। टाइम हो गया है और तुमसे मिलने की भी इच्छा है। एक काम करो तुम मेरे साथ मेरी गाड़ी में बैठो और मेरे साथ मीटिंग अटैण्ड करो। वह साधारण सा आदमी कुर्ता-पैजामा पहना हुआ और कुर्ता भी फटा मित्र बोला- मेरी सब मीटिंग्स फाइव स्टार होटल्स में हैं। तीन-तीन मीटिंग हैं। तुम ऐसे चलोगे तो थोड़ा गड़बड़ होगा। बोले क्या करूं? मैं तो कपड़े लेकर आया नहीं। कपड़े की कोई चिंता नहीं मेरे कपड़े पहन लो। उसने अपने कपड़े पहना दिए। रास्ते भर बातें करते हुए गए। पहली मीटिंग में जब वह व्यक्ति पहुँचा तो अपने मित्र का परिचय इस प्रकार से दिया ये मेरे बचपन के मित्र हैं, बहुत अच्छे साहित्यकार हैं, इनकी किताबें लोग बहुत रस लेकर ते हैं, बहुत अच्छा इनका व्यक्तित्व है, बहुत अच्छे वक्ता भी आज मुझसे बीस वर्ष बाद मिले हैं। आज मैं इनको लेकर आया बहुत अच्छे हैं इनके पास बहुत सारी अच्छाईयाँ हैं। सब चीजें पास हैं, बस ये जो कपड़े आप देख रहे हैं न वह मेरे हैं। वे कपड़े मेरे हैं एक वाक्य में धो डाला। सामने वाला बड़ा शर्मिदा हुआ और बोला भाई! अब मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊँगा। बोले माफ इसलिए मैंने कह दिया कपड़े मेरे हैं। बोले इसकी क्या जरूरत थी? ठीक है, ठीक है अगली मीटिंग में ध्यान रखेंगा। दूसरी मीटिंग में , खूब प्रशंसा के पुल बांधे और बाद में कहा देख रहे हैं न ये इन्हीं के हैं। कपड़े इन्हीं के हैं अब क्या बोले भैया तुम फिर बाज नहीं आए। बोले मैंने क्या किया? मैंने तो यही बताया कि ये तुम्हारे हैं मेरे नहीं हैं। बोले इसकी भी कया ? बोला ठीक है अगली मीटिंग में मैं इसका भी ध्यान रखूँगा और तीसरी मीटिंग में गया। चर्चा पूरी कर लेने के बाद उसने कहा रहा सवाल कपड़ों का तो कपड़ो के बारे में कुछ नहीं कहूँगा इन्हीं से पूछ लो वे किसके हैं? ये क्या है? कृत्रिमताजन्य द्वन्द्र। आप सहज रहना सीखें, सरल बनें, सत्यनिष्ठ बनें तो जरूर शांति पाओगे। जहाँ कृत्रिमता को आप ओढ़ोगे जीवन में अशांति आएगी, कुटिलता आएगी, जटिलता आएगी, कपट आएगा।
     
    समाज में कई ऐसे लोग होते हैं जो होते कुछ हैं और दिखाना कुछ चाहते हैं। यहाँ बैठा हर कोई रोज दर्पण में अपना चेहरा देखता है किसलिए कि मैं अच्छा दिखें। मैं अच्छा दिखें इसकी चिंता हर कोई करता है पर मैं अच्छा बनूँ ऐसा प्रयास कोई नहीं करता। अच्छा दिखें ये सोच कृत्रिमता है और अच्छा बनूँ ये सोच सरलता है। अच्छा बनोगे दुनिया अपने आप अच्छा मानेगी और अच्छा दिखोगे या अच्छा दिखाने की कोशिश करोगे तो कोई गारंटी नहीं कि तुम अच्छा बन भी सके या नहीं। ऊपर से अच्छा बनने में कोई लाभ नहीं। भीतर से अच्छाई प्रकट करो सिवाय लाभ के और कुछ नहीं होगा। अपने भीतर अच्छाई की अभिव्यक्ति होनी चाहिए। अच्छाई अपने गुणों से प्रकट होती है। तुम जैसे हो वैसे ही रहो। साधारण हो तो साधारण ही बने रहो। अगर कोई साधारण व्यक्ति साधारण रूप से भी प्रस्तुत होता है तो कभी-कभी उसका असाधारण असर पड़ जाता है और कोई सामान्य व्यक्ति अपने आप को विशिष्ट बनाने की कोशिश करता है तो कभी-कभी उसकी बड़ी हास्यापद स्थिति बन जाती है। देखो साधारण आदमी भी कई बार कितना असाधारण काम कर देता है।
     
    एक जगह किसी फैक्ट्री की एक लाइन जा रही थी। उस लाइन में तार डालने थे। पूरी की पूरी लाइन ऊपर-नीचे जिग-जेग आकार में थी। अब उसमें तार कैसे डाला जाए? बड़े-बड़े इंजीनियर दिमाग लगा रहे कि इसमें तार कैसे डालें? कौन सा उपकरण लगाएँ जिससे ये तार इस पार से उस पार चला जाए। लगभग सौ मीटर की तार उस के अंदर डालनी थी। सभी उधेड़बुन में लगे थे। एक गाय चराने वाला बच्चा वहीं बैठा हुआ बहुत देर से देख रहा था कि ये लोग कुछ मशक्कत कर रहे हैं। उसने कहा आप लोग कहें तो मैं दो मिनट में आपकी तार बाहर निकाल दूँगा। सब हँसे बोले तुम गँवार आदमी हम इतने बड़े-बड़े इंजीनियर फैल हो गए। तुम क्या निकालोगे? बोला मुझे नहीं मालूम आपकी इंजीनियरिंग क्या होती है लेकिन आप अगर मुझसे कहो तो मैं आपकी तार दो मिनट में बाहर निकाल दूँगा। बोले कैसे करोगे? बोला कर दूँगा। करके बताओ।
     
    उसने एक चूहा पकड़ा। उसकी पूंछ में कसकर तार बाँध दिया और चूहे को उसके अंदर घुसा दिया। चूहा इस पार से घुसा उस पार से निकल गया और उस पार से तार बाहर आ गया। सब हतप्रभ रह गए। सामान्य आदमी ने भी असमान्य काम कर दिया और विशिष्ट आदमी भी फल हो गए तब उन्हें लगा कि हमें गुरूर है अपनी इंजीनियरिंग का। लेकिन ये इंजीनियरिंग भी भीतरी प्रतिभा के आगे केल है। हम पाँच साल पढ़ने के बाद भी जो नहीं सीख पाए वह एक निरक्षर आदमी ने हमें एक पल में सिखा दिया। टैक्नोलॉजी जो काम नहीं करती; जुगाड़ से वह काम हो जाता है।
     
    बंधुओं! ये बात केवल समझने के लिए मैं आपसे कह रहा हैं कि जीवन में सहजता को अंगीकार करोगे तो समुन्नति होगी और कृत्रिमता के रास्ते को अपनाओगे तो सदैव दुखी होओगे। जीवन में कृत्रिमता मत लाओ। जो तुम्हारी हस्ती है, जो तुम्हारी हैसियत है उसी के अनुरूप जिओ। कृत्रिमता अशांति को उत्पन्न करती है। कई लोग होते हैं जो सामान्य हस्ती और हैसियत के होते हैं लेकिन बडे-बड़े करोड़पतियों से होड़ करते हैं। मैं वैसा बनूँ, उनकी तरह सब कुछ करूं। क्षमता तो है नहीं और दिखावा सब करना है। कृत्रिमता ही दिखावा करती है। घर में शादी है, शादी में लगाने की ताकत दस लाख की है पर समाज में एक अपना रेपुटेशन बनाना चाहता है। मेरे अगल-बगल, आस-पड़ोस के लोग इतना लगाए मैं उससे ज्यादा लगाऊँ। ये दिखावा है। दस की ताकत है पचास का खर्चा सिर पर उठा लिया, होगा क्या? परेशानी ही होगी।
     
    मैं एक स्थान पर था। चातुमास में सब तरह के लोग होते हैं। शुरु-शुरु में तो पहचान में आते नहीं, आदमियों को पहचानना बड़ा मुश्किल होता है। पल-पल में रूप बदलते हैं। हमारे पास तो सब बड़े अच्छे भक्त बनकर आते हैं। एक लड़का था, गले में मोटी चैन डाले, हाथ में अंगूठियाँ पहने डील-डौल से दिखता था कि ये लडका सम्पन्न घराने का होगा। कोई भी आए उनके साथ खर्चा करे, जी भरकर करे। दो-ढाई महीना चतुर्मास के बीते तो मालूम पड़ा कि उस आदमी के ऊपर बीस लाख का कर्जा है और कर्जा भी किससे लिया है मुझसे जुड़े हुए लोगों से। लोग देख रहे हैं महाराज का बड़ा भक्त है, अच्छा खर्चा कर रहा है। किसी से लाख लिया, किसी से पचास हजार, किसी से दो लाख, ढाई लाख अधिकतम लिया। आपको चार दिन बाद लौटा देंगे, आठ दिन बाद लौटा देंगे, मेरा बिल आने वाला है, मेरा पैमेण्ट आने वाला है, मैं चुका दूँगा। लोगों के बीच अपने आप को ऐसे प्रस्तुत करता था कि मैं एक बड़ा कान्ट्रेक्टर और सप्लायर हूँ और डीलडौल देखकर लोग विश्वास कर लेते। अब उसकी स्थिति ऐसी हो गई कि इतने रुपये की देनदारी चुका नहीं सकता क्योंकि उसकी व्यवस्था नहीं। बात मेरे कान तक आई। मैंने उसे बुलाया। हम बोले- भैया! तुमने इतना कर्जा क्यों लिया? बोला- महाराज! गलती हो गई। बोले गलती क्यों हो गई? बोला- एक सनक चढ़ गई। क्या सनक चढ़ी? बोलेमहाराज! मैंने सोचा आप आ रहे हो, आपका सान्निध्य मिले और समाज में मैं अपनी रेपुटेशन बनाऊँ, सबके बीच करोड़पतियों की तरह जाना जाऊ, इस सनक को चक्कर म' में खचा करता रहा। सोचता था कहीं न कहीं से कमा लूँगा और सबको चुका दूँगा। आज मेरी हालत ऐसी है। मैंने कहा- तू अपने आप को करोड़पति के रूप में प्रतिष्ठित करना चाहता था, तूने जो हरकत की उससे तू रोड़पति के रूप में समाज में जाहिर होने जा रहा है। अब सोच तरी ये हरकत ठीक थी या नहीं। मैंने उसे समझाया और कहा अब अपनी प्रतिभा का सदुपयोग करो, अपने व्यापार-व्यवसाय में अपना चित्त लगाओ और साथ में जितना बने धर्म ध्यान करो। पहला लक्ष्य बनाओ जिनका पैसा लिया है उनको लौटाना है। उस आदमी ने अपने जीवन को बदला, अपनी असलियत पर आया। आज उसकी स्थिति बहुत अच्छी है। जीवन को मोड़ने के बाद बहुत तरक्की की, सबका पैसा चुका दिया और ये तय कर लिया कि आज के बाद मैं अपनी क्षमता से आगे कभी नहीं बढूँगा।
     
    बंधुओं मैं आपको पहला सूत्र देता हूँ आज की तारीख में अगर अपने जीवन में सरलता, शांति, सत्यनिष्ठा और सहजता को प्रकट करना चाहते हो, जीवन का रस लेना चाहते हो तो कृत्रिमता को तिलांजलि दे दो। किसी प्रकार की कृत्रिमता को अपने ऊपर हावी मत होने दो। ये एक माया है। माया का निकृष्ट रूप जो तुम्हारे मन की शांति को लील लेता है। जितने हो, जैसे ही वैसे ही रही चिंता की बात नहीं। लेकिन कृत्रिमता को अपनाओगे तो सिवाय चिंता के और कुछ नहीं होगा।
     
    सीधी-सच्ची बात में मत रख टेढ़े अर्थ
    दूसरी बात है कुटिलता। जीवन में कुटिलता का मतलब चालबाजी। लोग बड़े चालबाज होते हैं। हर जगह चालबाजियाँ करते हैं और बड़ी चालाकी से करते हैं। कई लोग ऐसे होते हैं जो सोचते हैं कि मुझसे बड़ा चालबाज कोई है ही नहीं। पर कई बार ऐसे लोगों को मुँह की खानी पड़ती है।
     
    एक आदमी ने अपना खेत बेचा। खरीदने वाले ने खेत खरीद लिया। उसमें कुआँ भी था। अब कुआँ सहित खेत खरीदा। फसल बोई और कुएँ से पानी लेने के लिए गया तो सामने वाला आदमी बड़ा कुटिल था। उसने कहा- भैया! हमने खेत बेंचा है, कुआँ बेचा है पर पानी नहीं बेंचा। तुम पानी नहीं ले सकते। अगर तुम पानी लोगो तो उसका टैक्स देना पड़ेगा, पैसा देना पड़ेगा। सामने वाला बड़ी उलझन में कि कुएँ को देखकर मैंने फसल बोई और ये पानी लेने से इनकार करता है। अगर पानी नहीं दूँगा तो फसल नष्ट हो जाएगी। एक दिन का काम नहीं है। हमेशा फसल को पानी देना पड़ेगा और अगर एक बार मैंने पानी के पैसे देना स्वीकार लिया तो हर बार पैसे देने पड़ेंगे। पैसे किस बात के दें? जब मैंने कुआँ खरीदा है तो पानी भी मेरा ही होना चाहिए। लेकिन वह कहता है कुआँ बेचा है, पानी नहीं बेचा।
     
    कई बार शेर को सवा सेर मिल जाता है। वह अपने मित्र के पास गया, अपनी व्यथा सुनाई कि सामने वाला मुझे बहुत परेशान करता है कोई उपाय बताओ। वह बोला ठीक है। चलो मैं चलता हूँ। मित्र वकील था। उसके पास एक नोटिस लेकर गया और कहा कि भैया! आपने कुआँ बेच दिया है न? तो कुआँ हमारा हो गया। अब आप अपना पानी निकालइए। आप जितने दिन पानी रखोगे उतने दिन का हजार रुपये रोज के हिसाब से किराया लगेगा। और सुनो पानी निकालते समय ध्यान रखना एक बूंद पानी भी मेरे खेत में नहीं गिरना चाहिए और सारा पानी निकाली। उसको समझ में आ गया कि कुटिलता का क्या फल मिलता है। हाथ जोड़कर बोलाभैया! कुआँ भी तुम्हारा और पानी भी तुम्हारा, हमें मुक्ति दो।
     
    बंधुओं! इस तरह की कुटिलता, इस तरह की चालबाजियाँ कई तरह से लोग करते हैं। कुटिलता शब्द बहुत व्यापक है। कुटिलता में व्यक्ति जालसाजी करता है, कुटिलता से ग्रस्त व्यक्ति कई तरह के प्रपंच रचता है, कुटिलता से ग्रस्त व्यक्ति कई तरह के षडयंत्र रचता है और फरेब करता है। ये सब कुटिलता के अंतर्गत आते हैं। एक बात मन में धार लो मैं अपने जीवन में किसी के साथ इस तरह की कुटिलता नहीं करूंगा जिससे उसे कोई हानि उठानी पडे। चाहे आर्थिक हानि हो, चाहे सामाजिक हानि हो या अन्य किसी प्रकार की हानि उठानी पड़ती हो। मैं ऐसी कुटिलता अपने जीवन में कभी नहीं करूंगा जिससे किसी को हानि उठानी पड़े। कुटिलता क्या है इसको बताने की ज्यादा जरूरत नहीं है। सब जानते हैं। एक नीतिकार ने लिखा
     
    कुटिलमतिः कुटिलगतिः कुटिलशील-सम्पन्नः।
    सर्वमप्यस्यास्ति कुटिल कुटिलस्य कुटिलभावेन।
    जिसकी चाल कुटिल, जिसकी ढाल कुटिल, जिसकी मति कुटिल यानि जिसकी बुद्धि कुटिल, जिसकी प्रवृत्ति कुटिल जो सब जगह केवल कुटिल, कुटिल, कुटिल यानि टेढ़ी दृष्टि से देखे वह कुटिल है। कुटिल व्यक्ति हर चीज में अपना उल्लू सीधा करना चाहता है। ऊपर से बड़ा अच्छा दिखता है लेकिन अंदर से बहुत कुटिल।
     
    सन्त कहते हैं किसी भी व्यक्ति के बाहरी आचरण से उसका अनुमान मत लगाना। वस्तुत: व्यक्ति का भीतरी अभिप्राय ही उसकी पहचान का आधार होता है। बाहर से मीठा आदमी अंदर से बहुत बड़ा धोखेबाज भी हो सकता है इसलिए उसे पहचानने की कोशिश करो और जब तक किसी को पूरी तरह पहचान न लो तब तक किसी पर भरोसा भी मत करो। पूरी तरह पहचानने के बाद ही किसी पर भरोसा करना चाहिए अन्यथा लोग कई बार धोखा खा जाते हैं। धोखा देने वाले लोग भी इस दुनिया में बहुत हैं और धोखा खाने वाले लोग भी इस दुनिया में बहुत हैं। इनसे अपने आपको बचाइए। जीवन में कभी किसी प्रकार की कुटिलता नहीं करें। कुटिलता का मतलब अगर किसी से कोई जमीन जायदाद आप खरीदना चाहते हो तो फर्जी दस्तावेज को आधार पर मत खरीदो। किसी की भूमि, भवन आदि पर अवैध कब्जा न करने का मन में संकल्प लो। किसी की संपत्ति हड़पने की कोशिश मत करो। किसी से नाजायज फायदा उठाने की कोशिश मत करो। ये कुटिलता है। व्यापार को व्यापार की नीति से करो। अपनी प्रामाणिकता को सुरक्षित रखते हुए जो मनुष्य जीता है उसके जीवन में कुटिलता कभी नहीं आती। और जिस मनुष्य के जीवन में कुटिलता होती है वह व्यक्ति कभी भी प्रामाणिक नहीं बन सकता इसलिए अपने आप को कुटिलता से बचाइए।
     
    अँधियारे चौराहे की खुद में उलझी गलियाँ
    तीसरी बात है जटिलता। जटिलता यानि जिसका जीवन उलझा हुआ है। जिस व्यक्ति को समझना बहुत कठिन हो। कुछ लोग होते हैं जिनका जीवन बहुत गूढ़ होता है उनके बारे में कुछ पहचानना ही मुश्किल होता है। वह क्या कह रहा है कोई पता नहीं। हम लोगों के सम्पक में भी बहुत से ऐसे लोग आते हैं जो सामने-सामने तो बहुत अच्छा बोलते हैं लेकिन उनके आशय को समझना बड़ा मुश्किल हो जाता है कि उनके मन में क्या है। व्यक्ति के मन की जो जटिलता है, वह बड़ी ग्रंथि है जैसे बांस की जड़ होती है। बांस की जड़ एक दूसरे से घुली-मिली रहती है उसकी भाल लेना मुश्किल है। ऐसे ही कुछ व्यक्ति इस मिजाज के होते हैं जिनके अंतर्मन को पढ़ पाना बहुत कठिन होता है। बाहर से देखने में बहुत अच्छे लगते हैं, मृदुभाषी, विनम्र दिखते हैं लेकिन अंदर से उनकी स्थिति बड़ी जटिल होती है। जिसे पहचान पाना मुश्किल हो जाए उसका नाम है जटिलता। ऐसा व्यक्ति बाहर से हँसता हुआ दिखता है पर अंदर से उसकी आत्मा सदैव रोती रहती है। जीवन में कभी ऐसी जटिलता मत लाओ।
     
    मैं आपसे कहता हूँ कि ठीक है आप इतने सरल न बनो कि आपकी सब बाते प्रकट हो जाएँ और आप परेशानी में आ जाओ लेकिन इतने जटिल भी मत बनो कि आपको समझ पाना ही मुश्किल हो जाए कि ये आदमी क्या है और कैसा है। अपने अभिप्राय को ज्यादा गूढ़ बनाना एक प्रकार की अज्ञानता है। ऐसा व्यक्ति अक्सर आर्तध्यान में निमग्न होता है। इसलिए अपने अभिप्राय को ज्यादा गूढ़ मत बनाओ। अभिप्राय स्पष्ट रखो।
     
    एक शब्द आता है स्ट्रेटफार्वड, साफ-सुथरा। ऐसे आदमी की बात बिल्कुल ठीक लगती है। लेकिन कुछ लोग होते हैं जो बोलते कुछ हैं और करते कुछ हैं।
     
    एक कुम्हार था। उसका गधा बीमार था। उसको गधे की आवश्यकता पड़ी तो पड़ोसी के घर गया और बोला- भैया! मेरा गधा बीमार है, मुझे मिट्टी लेने जाना है तुम अपना गधा दे दो। उसने बड़ा प्रेम प्रकट करते हुए कहा- क्या बताऊँ गधा तो मैं तुम्हें दे देता लेकिन मेरा गधा चरने के लिए जंगल गया हुआ है। उसने अपना वाक्य पूरा ही नहीं किया कि घर के पिछवाड़े में बंधा हुआ गधा जोर-जोर से रेंकने लगा। जब गधा रेंकने लगा तो कुम्हार बोलाभाई! तुम कह रहे हो गधा नहीं है और गधा भीतर बंधा हुआ है। वह रैंक रहा है। बोला कैसी बात करते ही जी आदमी की बात पर भरोसा नहीं, जानवर की बात पर भरोसा करते हो। ये प्रवृत्ति ठीक नहीं है।
     
    लूकिंग लन्दन, टाकिंग टोक्यो 
    बंधुओं! मैं आपसे कहना चाहता हूँ जटिल मत बनो। मन की गुत्थियाँ खोलो। कुटिलता और जटिलता दुनिया में कदाचित रखी तो रखो। पर चार जगह बिल्कुल मत रखो। कहाँ-कहाँ? माता-पिता के सामने कभी कुटिलता न लाओ। माँ-बाप के सामने कभी जटिल प्रति तुम्हें सारी जिंदगी कृतज्ञ रहना चाहिए। उनके सामने कुछ भी छिपाओ नहीं और उनसे कोई भी छल मत करो। आजकल ऐसे भी लोग हैं जो माता-पिता के सामने ही कुटिलता, जटिलता और कपटपूर्ण व्यवहार करते हैं। इसकी शुरुआत बचपन से ही हो जाती है। आज आप किसी भी बच्चे या बच्ची से उसका मोबाइल माँगों और मैसेज डिलीट किए बिना दे दे तो मुझे बताओ। सब अपना सिक्यूरिटी कोड डालकर (लगाकर) रखते हैं। आप उसके मोबाइल को खंगाल ही नहीं सकते। ये क्या है? किस बात का इन्डीकेशन (संकेत) है। ये जटिलता, ये कुटिलता तुम्हें कहाँ ले जाएगी? भटकाए बिना नहीं रहेगी।
     
    चार बाते मैंने कहीं। कृत्रिमता पूरे लोक में नहीं होनी चाहिए। कुटिलता से सब जगह बचना चाहिए। जटिलता जीवन में नहीं आने देनी चाहिए और कपट कभी नहीं करना चाहिए। जिन चार की बात मैं करने जा रहा हूँ इनके साथ तो कभी भी नहीं होनी चाहिए। माँ-बाप के साथ कुटिलता, उनके साथ छल.? आज दुनिया में ऐसे बहुत लोग हैं जो माता-पिता की सम्पति से उन्हें ही बेदखल कर देते हैं। फर्जी दस्तावेज बनाकर हड़प रहे हैं। जिनकी दृष्टि केवल सम्पत्ति पर होती है वे आत्मा को बेच देते हैं। उनकी अंतर-आत्मा मर चुकी होती है। वे किसी भी हद तक उतरने के लिए तैयार हो जाते हैं। मैं ऐसे अनेक लोगों को जानता हूँ जिन्होने माँ-बाप के साथ कुटिल व्यवहार करके उन्हें उनकी ही सम्पति से बेदखल कर दिया।
     
    मैं सम्मेद शिखर जी में था। देखो माँ क्या होती है? और आज की कलयुगी संतान की दशा क्या है। बड़ी मुश्किल से उसको अंदर आने का अवसर मिला। माँ ने मेरे कमरे में आकर मुझसे कहामहाराज जी! मैं आपसे दो बात करने के लिए आई हूँ। मैं रोज आपका शंका-समाधान सुनती हूँ और मेरी इच्छा है कि मैं गुणायतन में अपना कुछ योगदान दूँ। महाराज जी मैं ज्यादा तो नहीं दे सकती पर थोड़ी सी धनराशि देना चाहती हूँ। यदि गुणायतन में लग जाएगा तो मैं अपने आपको कृतार्थ समझेंगी। उसकी भाषा से मुझे लगा कि ये महिला पढ़ी लिखी है। उम्र सत्तर साल की थी। मैंने कहाठीक है, आपको जो देना है ऑफिस में दे दी। बोली नहीं महाराज! मैं अपने भाव आपके सामने निवेदन करना चाहती हूँ। मैं कुछ राशि अभी ढूँगी और बाकी राशि क्या दो-तीन साल में दे सकती हूँ? मैंने कहा- दान देना है तो दो। दान देने के लिए शर्त नहीं होती। तुम ऑफिस में जाकर सम्पर्क कर लो। उस महिला ने एक लाख की दान राशि बोली। उसके डीलडौल को देखकर लग रहा था कि बड़ी साधारण स्त्री है, इतनी राशि दे पाएगी या नहीं दे पाएगी। मैंने कहा- तुम क्या करती हो इतना पैसा कहाँ से दोगी? बोली कुछ नहीं महाराज मैं टीचर थी। मुझे पैशन मिलती है मैं इसे धीरे-धीरे चुका दूँगी।
     
    मैंने पूछा- तुम्हारे परिवार में और कौन है? बोली महाराज मेरे पति की मृत्यु हो गई और मेरी एक बेटी है। बेटी के पास रहती हूँ। तुम्हारा बेटा नहीं है क्या? बेटे की बात सुनते ही उसकी आँखों से आँसू आने लगे। मैंने केवल इतना पूछा तुम्हारा बेटा नहीं है और उसकी आँखों से आँसू आने लगे। मैंने पूछा क्यों क्या बात हो गई? बोली महाराज क्या बताऊँ? मेरे कर्म कैसे फूटे। एक बेटा है जब तक उसकी शादी नहीं हुई तब तक तो बहुत अच्छा था और सारे काम करता था। स्थान का नाम नहीं बता रहा हूँ उत्तरप्रदेश की घटना है। शादी से पहले सब कुछ अच्छा था पर महाराज बाद में उसने मेरी सारी सम्पत्ति पर अपना अधिकार जमा लिया, मुझे मेरे ही घर से निकाल दिया। पहले तो उसने यह कहकर मेरे खेत लिए कि मुझे दुकान में रुपयों की जरूरत है। मैंने खेत बेंच दिया। फिर उसने कहा मुझे मकान बैंक में रखकर अपनी सी.सी. लेना है। मैंने मकान भी उसको दे दिया। महाराज! उसके बाद मेरा उस घर में रहना भी उसे बहुत बुरा लगता था। धीरे-धीरे उसने मेरे साथ दुव्र्यवहार करना शुरु कर दिया, मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने उससे कहा बेटे ऐसा क्यों करते हो तो उसने मुझे घर से निकल जाने के लिए कहा। मैं अपने बेटे से यह कहकर घर से निकल आई कि बेटा अगर मेरे घर से निकलने से तुझे खुशी मिलती है तो तेरी खुशी के लिए मैं घर छोड़ने के लिए भी तैयार हूँ और महाराज जी! मैं उस दिन घर से निकल गई अब मैं मेरी बेटी के पास रहती हूँ। एक कमरे में अपना गुजारा कर लेती हूँ। ये तो अच्छा है कि मैं टीचर थी, आज मुझे पैशन मिलती है। अगर ये पैशन नहीं मिलती तो शायद मैं दाने-दाने को मोहताज हो जाती।
     
    बंधुओं! ये कोई उदाहरण नहीं; एक माँ की वेदना है। माँ कहते हुए निकल रही है कि मेरे घर से निकलने में तुझे खुशी मिलती है तो इससे अच्छी बात नहीं, चल मैं घर से निकल जाती हूँ। मैंने उससे कहा कि तुम्हारे मन में तुम्हारे बेटे के प्रति कोई शिकायत नहीं? वह बोली- महाराज! मैं बहुत खुश हूँ। मैं तो यही चाहती हूँ कि आप उसको ऐसा आशीर्वाद दें कि वह खूब फले-फूले, आगे बढ़े। ये है माँ जो उस बच्चे के प्रति भी ऐसी सद्भावना रखती है जिसने उसका सब कुछ छीन लिया।
     
    क्या ये कुटिलता का निकृष्ट रूप नहीं है? हो सकता है इस सभा में भी ऐसे कुटिल व्यक्ति बैठे हों या ऐसे कोई व्यक्ति इस कार्यक्रम को सुन रहे हों। मन से कुटिलता को निकाल डाली। आज पर्युषण पर्व के अवसर पर तुम यहाँ आए हो, तुम्हारे हृदय में सरलता है तो तय करो माँ-बाप से कभी कुटिलता नहीं करूंगा। ध्यान रखना भौतिक संयोगों की प्राप्ति कुटिलता से नहीं पुण्योदय से होती है। तुम्हारा पुण्योदय होगा तो सारे संयोग अनुकूल हो जाएँगे और पापोदय होगा तो तुम कितने भी खटकर्म करो तुम्हें सफलता नहीं मिलेगी। जिसका पुण्योदय है उसे इस कुटिलता की जरूरत नहीं। अपने जीवन को कुटिलता से बचाओ, जटिलता से बचो। माँ-बाप से कुछ मत छिपाओ। ये बात मैं खासकर कम उम्र के बच्चे-बच्चियों से कहना चाहता हूँ जो प्राय: अपने माता-पिता से बातें छिपाकर रखना चाहते हैं। छिपाइए मत उन्हें बताईए। आज कल बच्चे-बच्चियों की बातें सबको पता होती हैं माँ-बाप को छोड़कर। जब तक माँ-बाप तक बात पहुँचती है तब तक पानी सिर से ऊपर हो चुका होता है। चक्रव्यूह में फस जाते हैं जिससे बाहर निकलने का कोई उपाय शेष नहीं रहता।
     
    मात–पिता से रक्खो मत पर्दा
    एक लड़की मेरे पास आई। उस लड़की को देखकर मेरे मन में आया कि जरूर इस लड़की के जीवन में कुछ गड़बड़ी है। मैंने बातचीत की तो पता चला लड़की सी.ए. कम्पलीट कर रही थी। उसका एक ग्रुप बचा था। दिल्ली में एक जगह पी. जी. में रहती थी। उस लड़की ने कहा महाराज जी! पाँच साल पहले मैं एक लड़के के चक्कर में फस गई और उस लड़के ने मुझे इस तरह फसाया कि हर तरह से ब्लैकमेल करता रहा। आज भी मुझे ब्लैकमेल कर रहा है। मैं उसके चुगल से बचना चाहती हूँ लेकिन मुझे कोई रास्ता नहीं दिखता, मैं किसे बताऊँ। उसने अपनी सारी बातें मुझे बताई। मैंने कहा- तुमने आपे माँ-बाप को क्यों नहीं बताया? बोली महाराज जी! माँ-बाप को बताने की हिम्मत नहीं। मैंने कहा- अपने भाई को बता देती। बोली भाई भी इस बात को बर्दाश्त नहीं कर सकता इसलिए नहीं बताया। माँ-बाप और भाई से छिपाने के चक्कर में सामने वाले ने जैसा कहा वैसा ही करती गई। पाँच साल तक उसका एक प्रकार से शोषण होता रहा। मैंने कहा ऐसा करोगी तो तुम्हारा जीवन ही नरक बन जाएगा। तुम्हें आगे आना चाहिए, तुम्हें ये सोचना चाहिए कि माता-पिता से बड़ा इस दुनिया में कोई नहीं होता। माँ-बाप, माँ-बाप होते हैं। उन्होंने तुम्हें जन्म दिया, जीवन दिया, संस्कार दिए। जिस दिन पहली गलती तुमसे हुई अगर उसी दिन अपने माँ-बाप से बता देती तो आज तुम्हारी इतनी भयानक स्थिति नहीं होती। मैंने उसे समझाया। उसके माता-पिता मुझसे परिचित थे। वह कह रही थी महाराज आप मत बताइएगा। आप तो मुझे कोई रास्ता बताइए कि इस चक्रव्यूह से कैसे निकल सकू? मैंने कहा- मैं तुम्हें चक्रव्यूह से नहीं निकाल सकता। तुम्हें चक्रव्यूह से अगर कोई निकाल सकता है तो तुम्हारे माँ-बाप ही निकाल सकते हैं। महाराज जी! वे बर्दाश्त नहीं कर पाएँगे। उनको बड़ी तकलीफ होगी। मैंने कहा- तुम चिंता मत करो मैं तुम्हारे ही सामने अपनी तरह से तुम्हारी बातें उनको बताऊँगा। जितनी बातें मुझे बतानी हैं उतनी ही बताऊँगा। लेकिन तुम ये जान लो कि मैं तुम्हारे पिताजी को जानता हूँ, वे इतने क्षमतावान हैं कि तुम्हें सब प्रकार के दुश्चक्र से बाहर निकाल सकते हैं। मैंने लड़की के पिता को बुलाया। पहले तो उसे समझाया। बेटी में जो अच्छाइयाँ भी वे बताई और एक बात के लिए संकल्पित कराया कि जो बातें मैं तुम्हें बता रहा हूँ उसके बारे में अपनी बेटी से कोई भी सवाल नहीं करोगे। बेटी तुम्हें जितना बता दे उतना सुन लेना। तुम्हें अपनी बेटी को कोई सजा नहीं देना है, सीख देना है। इस बात का हमेशा ध्यान रखना है तुम बेटी के पिता हो पुलिस नहीं। तुम पिता की भूमिका निभाना और अगर तुम्हारी बेटी से कोई गलती हो गई हो तो उसे रास्ते पर लाना तुम्हारा पहला दायित्व है। इस भय के कारण कि पापा डाटेंगे, बर्दाश्त नहीं कर पाएँगे इसलिए तुमसे छिपाया है। अगर उसके मन में यही बात बनी रहेगी तो बातें छिपाती रहेगी और बहुत गड़बड़ हो जाएगी।
     
    पिता ने अपनी बेटी को विश्वास दिलाया, बेटी ने अपने दिल की बात कही और उस पिता ने कुशलता से अपनी बेटी को पूरे चक्रव्यूह से बाहर निकाल लिया। आज खुशहाल जीवन जी रही है। मैं कहना चाहता हूँ चाहे लड़का हो या लड़की, कोई भी हो जीवन में कभी कोई गलती मत करो और अगर गलती हो जाए तो माँ-बाप से कभी मत छिपाओ। माता पिता को भी चाहिए कि बच्चे अगर कोई गलती करें तो वातावरण का प्रभाव मानकर उस गलती को माफ करो और उस बच्चे को साफ करने का रास्ता बताओ ताकि वह अपना शुद्ध जीवन जी सके, सार्थक जीवन जी सके। उसके हृदय में तुम्हारे प्रति भरोसा आ सके ये बहुत बड़ी जरूरत है।
     
    माँ-बाप के साथ कुटिलता मत रखो। माँ-बाप के साथ जटिलता मत रखो। माँ-बाप को साथ कपट मत करो। गुरु को सामने कुटिलता मत रखना। गुरु को समक्ष कुटिल बनोगे तो जीवन भर कुटिल ही बने रहोगे। गुरु के समक्ष सरल हृदय लेकर आओ। उनके सामने कुटिलता, जटिलता, कपट या कृत्रिमता लेकर जाओगे तो तुम धर्म से दूर हो जाओगे। कहावत है 
     
    गुरु से झूठ मित्र से चोरी।
    के ही निर्धन के हो कोरी।
    जिनके चरणों में अपना शीश झुकाते हो, जिनको तुम अपने जीवन का आदर्श मानते हो, जिनकी पूजा करते हो, उनके पास भी अगर तुम किसी तरह का दुराव-छिपाव रखोगे, उनसे झूठ बोलोगे तो जीवन में कभी सफल नहीं हो सकोगे। वहाँ निश्छल मन से जाओ क्योंकि गुरु भी निश्छल होते हैं। निश्छल व्यक्ति के पास जब निश्छल मन से जाओगे तभी अपने जीवन में सफल हो पाओगे। वहाँ छल लेकर जाओगे तो दुनिया भर में छले जाओगे। ध्यान रखना दूसरों को छलने वाला खुद को छलता है। हम दूसरों को कितनी बार छलेगे?
     
    जैसे हांडी काठ की चढ़े न दूजी बार।
    फिर न होवे कपट सों वर्षों मत कर बीती यार।
    जैसे काठ की हांडी दूसरी बार प्रयोग में नहीं आती वैसे ही छल-कपट किसी के साथ एक बार से दुबारा तो नहीं कर पाओगे। जिनके सम्मुख हम सरलता पाने के लिए जाते हैं अगर वहाँ भी कुटिलता करेंगे तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी। माता-पिता, गुरु, कल्याण मित्र, जो तुम्हारे हित का आकांक्षी हो ऐसा मित्र, जो तुम्हारे जीवन को आगे बढ़ाना चाहता हो ऐसा मित्र, जो तुम्हारे आत्मा के उत्थान की बात सोचता हो ऐसे मित्र के साथ कभी कृत्रिमता, कुटिलता, जटिलता और कपट का व्यवहार मत करना नहीं तो जीवन बर्बाद हो जाएगा। उनके साथ बहुत सजग रहो। अपने दिल की बात खुलकर बोलो और सच्चाई के साथ प्रस्तुत हो। कई बार लोग अपने थोड़े से स्वार्थ के कारण इस तरह का आचरण कर लेते हैं और जीवन बर्बाद कर डालते हैं। ऐसी दुष्प्रवृत्तियों से अपने आप को बचाइए।
     
    कौन सा मित्र? कई तरह के मित्र होते हैं। एक मित्र होता है जो चौबीस घण्टे आपके साथ रहता है। एक मित्र होता है जो कभी-कभी आप के साथ होता है और कोई मित्र होता है जो वक्त पर बुलाने पर आता है। सच्चा मित्र वही है जो विपत्ति में साथ देता हो, जो तुम्हें आगे बढ़ने और बढ़ाने की प्रेरणा देता हो। उस मित्र के साथ कभी धोखा नहीं करना चाहिए, उस मित्र के साथ कभी विश्वासघात नहीं होना चाहिए, उस मित्र के साथ कभी छल और फरेब नहीं होना चाहिए कम से कम इतना तो तुम सुनिश्चित कर ली।
     
    मुझे मालूम हैं। मेरे प्रवचन को सरलता से सुनोगे और जितनी सरलता से सुनोगे उतनी ही सरलता से भूल भी जाओगे। लेकिन जितना तुम कर सकते हो उतना तो तुम कर लो। कल्याण मित्र के साथ मैं ऐसा नहीं करूंगा।
     
    धर्मक्षेत्रे कृतं पापं, वज़लेपो भविष्यति
    नम्बर चार धर्म क्षेत्र में कृत्रिमता नहीं, धर्म क्षेत्र में कुटिलता नहीं, धर्म क्षेत्र में कपट नहीं और धर्म क्षेत्र में जटिलता नहीं इतना तय कर लो। धर्म क्षेत्र में भी लोग बहुत तरह की कुटिलता करते हैं।
     
    इन्द्रियार्थान् विमूढात्मा यो आस्ते मनसा स्मरन्।
    उभयेषाम् इन्द्रियार्थानां मिथ्याचारः स निगद्यते॥
    जिसने पाँच इन्द्रिय को विषयो को त्याग दिया हो लेकिन बार-बार मन में उन्हें याद करता हो तो ये एक प्रकार का मिथ्याचार है। ऐसा व्यक्ति दूसरों को धोखा नहीं देता स्वयं के साथ बहुत बड़ा धोखा करता है। स्वयं के साथ बहुत बड़ा छल करता है। ऐसे छल से अपने आप को बचाने की कोशिश करनी चाहिए। यदि ये कोशिश जारी रही तो जीवन निश्चयत: उत्कर्ष की ओर जाएगा, जीवन ऊँचा उठेगा।
     
    आज आर्जव धर्म के दिन चार ही बातें मैंने आप से कहीं हैं कि जीवन को कृत्रिमता से बचाएँ, जीवन को कुटिलता से बचाएँ जीवन को जटिलता से बचाएँ और जीवन में कपट कभी न पनपने दें। किसी के साथ धोखा, किसी के साथ विश्वासघात, किसी के साथ छल-फरेब न करें। ये घोर अनैतिक कृत्य हैं। इस प्रकार के कुकृत्यों से अपने आप को बचाना चाहिए। इसमें भी चार स्थल पर तो पूरे जीवन भर सावधान होना चाहिए। धर्म क्षेत्र से अपने आप को बचा लिया तो समझ लो तुमने अपने जीवन में बहुत कुछ पा लिया और अगर यहाँ फैल हो गए तो बड़ी गड़बड़ हो जाएगी।
     
    मनुष्य की स्थिति बड़ी विचित्र हो रही है। एक प्रसंग याद आ गया। सुनाकर बात को विराम दे रहा हूँ। एक युवक था। पढ़ा-लिखा बेरोजगार था। कोई रोजगार नहीं मिला तो क्या करे? एक सर्कस वालों से सम्पक किया। उनके यहाँ विकेन्सी निकली कि हमें कुछ लोगों की जरूरत है। सर्कस वालों के यहाँ गया तो सर्कस वालों ने उससे कहा कि भाई हमारे यहाँ जो वनमानुष था वह मर गया है। अपने चिड़ियाघर में हमें वनमानुष रखना है। तुम्हें कुछ नहीं करना है बस, वनमानुष की खाल पहनकर वनमानुष जैसी हरकतें करना है। अपनी हरकतों से आने वाले दर्शको का मनोरंजन करोगे तो हम तुम्हें उसके ऐवज में कुछ इन्सेन्टिव(प्रोत्साहन राशि) देंगे।
     
    मरता क्या नहीं करता? उसने वनमानुष की खाल पहनकर एक्टिंग करना शुरु कर दिया। दर्शक आते, देखते साक्षात वनमानुष बैठा है। वह अलग-अलग तरह की हरकतें करके दर्शकों का मनोरंजन करता। दर्शक उसको कुछ खाने-पीने के लिए देते तो उसे खाने-पीने में भी मजा आता। जहाँ इसका बाड़ा था उसके बगल में शेर का बाड़ा था। एक रोज ये ऊपर बैठकर अपनी हरकतें कर रहा था। दर्शक इसे रिझा रहे थे। ये कुछ ज्यादा झुक गया तो सीधे शेर के बाड़े में गिर गया। शेर के बाड़े में गिरा तो शेर एकदम घुर्राता हुआ सामने आ गया। शेर को देखकर इसकी घिघ्घी बंध गई। दोनों हाथ जोड़कर शेर को सामने बोला– भैया! माफ करो, बाल–बच्चो का ख्याल करो। मैं वनमानुष नहीं, मानुष हूँ। मेरे बाल-बच्चे हैं, नौकरी करने के लिए आया हूँ, मुझे बख्श दो। बड़ी कृपा होगी। कम से कम मेरे बाल-बच्चों पर रहम खाओ। शेर ने उसकी एक न सुनी। नजदीक आता गया और नजदीक आकर बिल्कुल उसकी गर्दन के पास आया तो इसकी हालत एकदम पतली हो गई। फिर कहा- भैया! माफ कर दो, मैं आदमी हूँ वनमानुष नहीं। शेर ने कहा- गनीमत है कि मैं भी असली शेर नहीं हूँ, मैं भी आदमी हूँ। जाओ अपना काम करो।
     
    ये हाल है आजकल। बड़ी विचित्रता है। छोड़िए इस प्रकार की कुटिलता को, इस प्रकार की जटिलता को और इस तरह की कृत्रिमता को। अपने मन को कपट को दूर भगाइए तभी आर्जव ध म आपके जीवन में प्रकट होगा।
  5. Vidyasagar.Guru
    पुरस्कार वितरण समारोह 5 सितंबर 2023
     
     

     
     

     
    वतन की उड़ान आमंत्रण सूची 
     
     
    यह सिर्फ आमंत्रण सूची हैं  प्रतियोगिता परिणाम (आपका स्थान) 5 सितंबर  कार्यक्रम में घोषित होगा                                 
    आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ 
    विजेता सूची डाउनलोड करें 
                                   👇👇👇👇
    https://vidyasagar.guru/files/file/384-1
     
     
     
     

  6. Vidyasagar.Guru
    #गुरुजी_का_दीक्षा_दिवस       
    #हरियाली_से_विनयांजलि

     
    कही ऐसा तो नही है हम जिन गुरु को मानते है उनकी कही बातों को नही मानते क्योंकि 5 जून पर्यावरण दिवस पर उन्होंने मड़िया जी मे विशेष प्रवचन देते हुए चिंता व्यक्त की थी कि आने वाले समय मे यदि सिर्फ बृक्षों की कटान होती रही लगाया नही गया तो वह दिन दूर नही जब हम हवा पानी छाया आदि के लिये तरस जाएंगे,,, चूंकि संत तो संत ही होते है वे तो मात्र हमे उपदेश दे सकते है निर्देश नही किन्तु उनके उपदेश में ही हमारा स्वार्थ निहित होता है इसलिये हमे चाहिये कि हम उनके उपदेशों को ही निर्देश मानते हुए कार्यो पर अमल करें और संतो को चिंता मुक्त रखें
     

                        जहाँ तक मुझे पता हैं विश्व पर्यावरण दिवस पर सरकार की ओर से बृक्षारोपण के बड़े बड़े आयोजन किये जाते है किंतु वे फिर भी नाकाफी होते है इसलिये हम सभी को चाहिये कि जैनाचार्य की बात को स्मरण रखते हुए अपने अपने जिले में बहुत बडे पैमाने पर पौधों को लगाकर उन्हें सरंक्षित करे और बड़े होने तक उनकी देखभाल अपने बच्चों की ही तरह करे,,, 
    वृक्षारोपण संकल्प पत्र

                      हिन्दू परम्पराओ के अनुसार हमारे मृत शरीर को अग्नि संस्कार के माध्यम से सुपुर्द ए खाक किया जाता है जिसमे मृत व्यक्ति के शरीर को जलाने लायक लकड़ी का उपयोग किया जाता है जो कम से कम 3 या 4 कुंतल तो होती ही है ,,, इसलिये यह मेरा निजी ख्याल भी है कि एक आदमी को अपने जीवनकाल में सिर्फ यही सोचकर एक बृक्ष लगाना चाहिये कि जितना बोझ लेकर उसे मरना है कम से कम उतना तो प्रकृति को देता जाय ताकि संतुलन बना रहे
                         आगामी 7 जुलाई को आचार्य गुरूदेव की दीक्षा के 51 वर्ष पूर्ण हो रहें है जिस दिन  हम अनगिनती पेड़ लगा कर इस धरती को हरीभरी करने का प्रयास करेंगे जिसके लिये एक संकल्प पत्र भी जारी किया गया है ताकि हम कुछ तो अनुमान लगा सके कि हमने कितने बृक्ष लगाए है और साथ ही साथ हमने सभी समाज के प्रमुख लोगो से भी निवेदन किया था कि वे भी अपने अपने जिले में एक ब्रह्द बृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन करें जिनकी जानकारी भी vidyaasagr.guru तक प्रेषित करें ,,, हम आशान्वित है कि समय रहते हमारे पास बहुत सारी प्रविष्टिया पहुचेगी और हमे उल्लासित करेंगी हम पुनः एक बार आप सभी को चेता रहे है कि संत की चिंता चिंतनीय होती है इसलिये हल्के में ना ले और विशाल आयोजन के साथ बृक्षारोपण का आयोजन करें
                     आचार्य गुरूदेव विद्यासागर जी महाराज की जय जय कार
    श्रीश ललितपुर
    🔔🚩 पुण्योदय विद्यासंघ🚩🔔
     
    वृक्षारोपण संकल्प पत्र
     
  7. Vidyasagar.Guru

    ऑनलाइन आर्डर
    राष्ट्रहित चिंतक, आचार्यश्री विद्यासागर जी महामुनिराज के आशीर्वाद, मार्गदर्शन  से सुशोभित पुस्तक 
     

     
     
    प्रस्तुती (संकलन): डॉ. ब्र● भरत भैया
    प्रकाशक: जैन विद्या पीठ 
    प्राप्ति स्थान  जैन विद्यापीठ
     
     
    पुस्तक मूल्य डाक खर्च के साथ इस प्रकार हें 
     
    1 पुस्तक         55/-
    2 पुस्तक          85/-
    3 पुस्तक         115/-
    5 पुस्तक         180/-
    10 पुस्तक        340/-
    20 पुस्तक       660/-
    30 पुस्तक       975/-
     
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    हमारी मातृभाषा, का अवलोकन करते पूज्य आचार्यश्रीजी
     
     
     
  8. Vidyasagar.Guru
    21 / 12 / 22 
     
     
    20 दिसम्बर 22 - 
     
     
     
     
     
     
     
     
     
    ⛳आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के गृहस्थ जीवन के ज्येष्ठ भ्राता श्री महावीरजी जैन अष्टगे की भी दीक्षा होने वाली है जो सलग्न वीडियो में गुलाबी रंग की पगड़ी में दिखाई दे रहे हैं
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     

    शिरपुर जैन में रचने जा रहे इतिहास में एक और इतिहास जुड़ गया 
     ✨☀️संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के गृहस्थावस्था के बड़े भाई ब्रा महावीर भैया अष्टगे की मुनि दीक्षा होने जा रही है
    साथ ही 21 ब्रह्मचारी भाईयो की क्षुल्लक दीक्षा होने जा रही है
    आज शाम 6 बजे सभी की बिनोली निकली जाएगी
    एवं कल दोपहर 2 बजे से दीक्षा समारोह आयोजित होगा
    ज्ञात हो अष्टगे परिवार के अंतिम सदस्य के रूप में महावीर भैया घर पर रहे , आप के तीनों अनुज भाई आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महाराज , निर्यापक श्रमण श्री समय सागर जी महाराज , निर्यापक श्रमण श्री योग सागर जी महाराज है 
    कुछ माह पूर्व निर्यापक श्रमण श्री वीरसागर जी महाराज के संघ में आप साधना रत थे ।
    ✍️✍️ शुभांशु जैन शहपुरा
     
     
    19 दिसम्बर 2022 
     शिरपूर जैन अपडेट🛕
    अंतरिक्ष पार्श्वनाथ शिरपूर जैन में प्रथम बार में युग श्रेष्ठ, संत शिरोमणि आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महामुनिराज के कर कमलों से बुधवार २१ दिसंबर २२ को दोपहर २ बजे दीक्षाएं होनी है। 
    📿संभावित दीक्षार्थियों के नाम📿
    १) ब्र. नितेश भैय्याजी, बागीदौरा
    २) ब्र. यशपाल (गोलू) भैय्याजी, दमोह
    ३) ब्र. सौरभ (गोलू) भैय्याजी, जबलपुर
    ४) ब्र. सौरभ (बम्बू) भैय्याजी, सिलवानी
    ५) ब्र. शुभम भैय्याजी, सागर
    ६) ब्र. श्रमण कुमार (लक्की) भैय्याजी, दमोह
    ७) ब्र. अंकित भैय्याजी, जबलपुर
    ८) ब्र. शेलू भैय्याजी, कटंगी
    ९) ब्र. स्वतंत्र (बौद्धिक) भैय्याजी, विदिशा
    १०) ब्र. संजय भैय्याजी, पटना
    ११) ब्र. किरीट (गोनू) भैय्याजी, खातेगाव
    १२) ब्र. अभिषेक भैय्याजी, गोटेगांव
    १३) ब्र. पुनीत भैय्याजी, सागर
    १४) ब्र. जयेश भैय्याजी, वर्धा
    १५) ब्र. चंद्रप्रकाश (C.P.) भैय्याजी, ग्वालियर
    १६) ब्र. मधुर भैय्याजी, गंज बासौदा
    १७) ब्र. विक्रम भैय्याजी, जबलपुर
    १८) ब्र. बृजेन्द्र भैय्याजी, भोपाल
    १९) ब्र. दीपक भैय्याजी, मड़ावरा
    २०) ब्र. महावीर भैय्याजी, सदलगा
    २१) ब्र. सोनू भैय्याजी( भूषण), कारंजा लाड
    २२) ब्र. खुशाल भैय्याजी, पथरिया
    २३) ब्र. गोल्डी भैय्याजी, सहरानपुर
    २४) ब्र. रोहित भैय्याजी, बडौत
    इसमें और भी नाम बढ़ने की संभावना है।
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    ✒️संकलन:-
    संतोष पांगळ जैन, मुरुड
    श्रीकांत संघई जैन, पुसद
    मयूर पांगळ जैन, सेनगाव
     
     
     
     
    18 दिसम्बर 2022 
    🔥🔥🔥शिरपुर जैन अपडेट
    🥁🥁शिरपुर में रचने जा रहा इतिहास🥁🥁
    21 दिसंबर 2022,बुधवार का दिन  होगा बेहद खास
    ☀️शिलान्यास एवं  गुरुदेव के कर कमलों से होगी दीक्षाएँ सम्पन्न☀️
    🌟युग शिरोमणि आचार्य गुरुदेव श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ के सान्निध्य में अतिशय क्षेत्र शिरपुर में रचने जा रहा है इतिहास , गुरुदेव के आशीर्वाद से🕢 प्रातः 7.30 बजे से भव्य🌟
    🛕त्रि मंजिला समवशरण एवं चतुर्दिक चार सहस्त्रकूट जिनालयों का होगा शिलान्यास🛕
    गुरुदेव के आशीर्वाद से पहली बार बनेंगे एक साथ चार सहस्त्र कूट जिनालय प्रतिष्ठाचार्य बा. ब्र. वाणीभूषण विनय भैय्याजी सम्राट का होगा निर्देशन
    🕑दोपहर 2 बजे से गुरुदेव के कर कमलों से होगी भव्य दीक्षायें हाेगीं
    अनुमान है यह दीक्षाएं दहाई के आंकड़े में हो सकती है, बाकी गुरुदेव के मन की कौन जाने 
    इस महा आयोजन में और और क्या होगा तो देखते रहिए
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    सूचना साभार:- .
    बा.ब्र. तात्या भैय्याजी

     
     

  9. Vidyasagar.Guru
    आज श्री क्षेत्रपाल मंदिर जी से दयोदय पशु संरक्षण केंद्र गौशाला ललितपुर पंचकल्याणक  स्थल पर जाते समय आचार्य भगवंत अचानक एक स्थान पर विश्राम हेतु रुक गए    वह स्थान एक बहुत ही गरीब  व्यक्ति की झोपड़ी थी वहां आचार्य भगवंत ने थोड़ी देर विश्राम किया उसी घर में एक 16 वर्षीय बालक जोकि विगत कई वर्षों से लकवा का शिकार था  दयानी हालत में जमीन पर लेटा हुआ था आचार्य भगवान जैसे ही उसके समीप गए उसने आचार्य भगवंत के चरण पकड़  लिए आचार्य श्री ने उसे संबोधन और ओम की ध्वनि का जाप करने का आशीर्वाद दिया गुरुदेव ने उसके साथ परिवार को आशीर्वाद दिया  बा उसकी झोपड़ी पर नजर डाली और पुणे आशीर्वाद देकर दयोदय गौशाला के लिए बिहार कर दिया गुरुदेव ने उस व्यक्ति की झोपड़ी में लगभग 20 मिनट का समय व्यतीत किया

  10. Vidyasagar.Guru
    विहार अपडेट
    30 नवंबर 2023 तिलदा नेवरा मे हुआ मंगल प्रवेश 
     

     
    29 नवंबर 23
     
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         🍄आज रात्री विश्राम🍄
                 🍄लांजा🍄  
            (मिडिल हायस्कुल )
             जि.बलौद बाजार (छ.ग.) 
    https://maps.app.goo.gl/oiRRvpBWJjLzEBgt7
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         🍁कल की आहार चर्या 🍁
               🍁सासाहोली🍁
                   (अरिहंत ट्रेडर्स)
                 जि.रायपुर(छ.ग.)
                     (संभावित)
    https://maps.app.goo.gl/TpFPvcRSRoPa7E1WA
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    28 नवंबर 23
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         🍄आज रात्री विश्राम🍄
                 🍄कठिया🍄  
          (श्री राजेश साहु मकान )
               जि.बलोदा बाजार(छ.ग.) 
    https://maps.app.goo.gl/sfqD2hNVivMU4pEf8
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         🍁कल की आहार चर्या 🍁
                 🍁सिंमगा🍁
                 जि.बलौदा बाजार
                     (संभावित)
    https://maps.app.goo.gl/x4o3tR3m35jjraXT8
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    27 नवंबर 23
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         🍄आज रात्री विश्राम🍄
                 🍄मटका🍄  
              (विभा राइस मिल)
                जि.बेमेतरा (छ.ग.) 
    https://maps.app.goo.gl/SeSiRv2EpHRTsTrY6
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         🍁कल की आहार चर्या 🍁
                  🍁जेवरा🍁
          (शासकिय प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक शाला) 
                  जि.बेमेतरा
                  (संभावित)
    https://maps.app.goo.gl/tRRZyX59rCnhHng68
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    26 नवंबर 23
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         🍄आज रात्री विश्राम🍄
              🍄कन्तेली🍄  
             (पूर्व माध्यमिक शाला)
               जि.कबिरधाम(छ.ग.) 
    https://maps.app.goo.gl/QCxDU41BcKygQx3g6
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         🍁कल की आहार चर्या 🍁
            🍁कोबिया बेमेतरा🍁
              (टावर -काशी राजपूत जी का परिसर) 
              जि.कबिरधाम
                (संभावित)
    https://maps.app.goo.gl/kvKT7r9xkAGYFF4g6
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    25 नवंबर 23
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         🍄आज रात्री विश्राम🍄
              🍄देवरवीजा🍄  
            (सेवा सहकारी समिती मर्यादित)
                   जि.दुर्ग(छ.ग.) https://maps.app.goo.gl/XXaZ8GVSgXpbz2am8
     ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
         🍁कल की आहार चर्या 🍁
                  🍁निनवा🍁
              (शासकिय प्राथमिक शाला) 
                     जि. दुर्ग
                   (संभावित)
    https://maps.app.goo.gl/qLb8acQLnufMHtfM9
    ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
     
     
    24 नवंबर 23
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         🍄आज रात्री विश्राम🍄
              🍄राखी जोबा🍄  
             (मनोरमा इंटरनैशनल स्कुल)
                    जि.दुर्ग(छ.ग.)  
    https://maps.app.goo.gl/J8acTxU8bKfCPJ9p6
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         🍁कल की आहार चर्या 🍁
                  🍁कोदवा🍁
                   (राठी धर्म कांटा) 
                        जि. दुर्ग
                       (संभावित)
    https://maps.app.goo.gl/LV4Mjjw7FtjJHKdG6
    ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
     
     
    22 नवंबर  23

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         🍄आज रात्री विश्राम🍄
    🍄जैन विहार धाम मनोहर गौशाला 🍄  
              जि.दुर्ग(छ.ग.)  
    https://maps.app.goo.gl/2bYwtGca5tqyRSSP8
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      🍁कल की आहार चर्या 🍁
    🍁बाबा उमाकांत जी महाराज,आश्रम पेंडरी🍁
                     जि. दुर्ग
                   (संभावित)
    https://maps.app.goo.gl/eN3q6F5rtTagGffeA
    ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
     
     
    21 नवंबर  23
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        🍄आज रात्री विश्राम🍄
              🍄जोरातराई 🍄
           (रामकिशन वर्मा निवास)
              जि. खैरागढ़(छ.ग.)  
    https://maps.app.goo.gl/cxw4EqiLa4sGiiu99
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       🍁कल की आहार चर्या 🍁
                  🍁रौंदा🍁
                (शॉप कंपलेक्स)
                 जि. खैरागढ़
                   (संभावित)
    https://maps.app.goo.gl/DQQ7o79gfBd2dG3u8
    ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
     
    20 नवंबर 2023
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        🍄आज रात्री विश्राम🍄
              🍄 चंदैनी🍄
     (शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला)
           जिला खैरागढ़(छ.ग.)     https://maps.app.goo.gl/wCG2JQnZRGVXF1uA8
     ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
       🍁कल की आहार चर्या 🍁
           🍁बाजार अतरिया🍁
                   (जैन भवन)
                 जिला खैरागढ़
                   (संभावित)
    https://maps.app.goo.gl/kaSY2uf1asgTBGLe9
    ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
     
    19 नवंबर 2023
    🔻आज विश्राम धर्मपूरा🔻 
                  मे ही होगा।
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       🍄आज रात्री विश्राम🍄
              🍄धर्मपुरा🍄
    https://maps.app.goo.gl/igmZtgKQmHfYPGdr5       
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       🍁कल की आहार चर्या 🍁
              🍁मालूद🍁
           (प्राथमिक शाला मालूद) 
    https://maps.app.goo.gl/GqdkebK1YUWy8TmL6
     
    18 नवंबर 2023
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         🍄आज रात्री विश्राम🍄
              🍄अमलीडी🍄
             (राजेश फुटनी निवास) 
          https://maps.app.goo.gl/xzEYMwsSCPTjZtAA7
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       🍁कल की आहार चर्या 🍁
              🍁धर्मपुरा🍁
           (नरेश जी चोपडा निवास) 
                 (संभावित)
    https://maps.app.goo.gl/igmZtgKQmHfYPGdr5
     
    17 नवंबर 2023
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         🍄आज रात्री विश्राम🍄
            🍄खपरी सिरदार🍄
                  (ग्राम पंचायत)
    https://maps.app.goo.gl/iyv7YEYE5kWkGrbk6         
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       🍁कल की आहार चर्या 🍁
              🍁गढा़घाट🍁
           (शासकीय हाई स्कुल) 
                 (संभावित)
    https://maps.app.goo.gl/t3Z61ed34KYxKVvN9
     
    16 नवंबर 2023

         🍄आज रात्री विश्राम🍄
                 🍄ढारा🍄
             (नितीन किराना ढारा)
    https://maps.app.goo.gl/iCijkstpdVCBavVH7           
     ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
     🍁कल की आहार चर्या 🍁
            🍁भंडारपूर🍁
        (व्यायाम शाला एवं प्राथमिक शाला परिसर) 
                (संभावित)
    https://maps.app.goo.gl/FbAAAKuQ3CrvbvdPA
     
     
    15 नवंबर 2023 
    🪷युग श्रेष्ठ, संत शिरोमणि आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महामुनिराज
    🪷निर्यापक श्रमण मुनिश्री १०८ प्रसादसागर जी महाराज 
    🪷मुनि श्री १०८ चंद्रप्रभसागर जी महाराज
    🪷मुनि श्री १०८ निरामयसागर जी महाराज 
                ससंघ का
            आज दोपहर में
     💫सामयिक उपरांत💫
           👣मंगल विहार👣 
     🔻तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी डोंगरगढ🔻 
                  से हुआ।

    ➖➖➖➖➖➖➖
         🍄आज रात्री विश्राम🍄
              🍄 अछोली 🍄
                 ( साहूजी निवास) 
    https://maps.app.goo.gl/YUYbnVCyix7AQRrT9
     ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
     🍁कल की आहार चर्या 🍁
       🍁हायस्कुल देवकट्टा🍁 https://maps.app.goo.gl/uLEjcBabu9yRrEJN6
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  11. Vidyasagar.Guru
    आचार्य श्री की संयम की पीछीका लेने का सौभाग्य गोटे गावँ के निवासी श्री मान अभिषेक जैन(39वर्ष) दम्पति को प्राप्त हुआ,
     
     
     


     

     
    पिच्छिका परिवर्तन समारोह 2019 2.pdf
     
    प पु संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज की पिच्छी देने एवं लेने का सौभाग्य 
    श्रावक श्रेष्ठी श्री मान अभिषेक जी कामिनी जी  जैन गोटेगांव
    ◆प पु मुनि श्री 108 सम्भव सागर जी महाराज
    नवीन पिच्छी देने का श्री मान हितेश जी बड़जात्या अजनास 
    लेने वाले मनोज जी काला खातेगांव
    ◆प पु मुनि श्री 108 सौम्य सागर जी महाराज
    देने का श्री मान नीरज जी जैन इंदौर
    लेने का श्री मान मौसम जी लुहाड़िया खातेगांव
    ◆प पु मुनि श्री 108 दुर्लभ सागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान आदित्य जी सेठी खातेगांव
    लेने वाले श्री मान सौरभ जी रारा खातेगांव
    ◆प पु मुनि श्री 108 विनम्र सागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान प्रितेश जी बड़जात्या अजनास
    लेने वाले निशांक जी जैन खजुराहो
    ◆प पु मुनि श्री 108 निस्वार्थसागर जी महाराज
    देंने वाले सचिन जी जैन रामपुरा सागर
    लेने वाले नीरज जी जैन   सागर 
    ◆प पु मुनि श्री 108 निर्दोषसागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान डॉ ललित जी  पाटनी खारदा
    लेने वाले शेलेन्द्र जी जैन नेमावर
    ◆प पु मुनि श्री 108 निर्लोभसागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान कमलेश जी जैन भोपाल
    लेने वाले श्री मान आलोक जी जैन इंदौर
    ◆प पु मुनि श्री 108 नीरोगसागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान भरत जी जैन गुना
    लेने वाले श्री मान नितिन जी पाटनी खातेगांव
    ◆प पु मुनि श्री 108 निर्मोहसागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान सुधीर जी बजाज दमोह
    लेने वाले श्री मान प्रवेश जी सेठी खातेगांव
    ◆प पु मुनि श्री 108 निष्पक्षसागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान आनंद जी काला खातेगांव
    लेने वाले श्री मान राजेश जी जैन शाहगढ़
    ◆प पु मुनि श्री 108 निष्पृहसागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान आशीष जी जैन इटारसी
    लेने वाले श्री मान जिनेश जी काला बानापुरा
    ◆प पु मुनि श्री 108 निश्चलसागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान मनीष जी जैन इटारसी
    लेने वाले श्री मान जितेंद्र जी पाटनी खातेगांव
    ◆प पु मुनि श्री 108 निष्पन्दसागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान मनीष जी अजमेरा हरदा
    लेने वाले श्री मान नरेंद्र जी पोरवाल खातेगांव
    ◆प पु मुनि श्री 108 निरामयसागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान हितेश जी जैन कारंजा
    लेने वाले श्री मान गौरव जी जैन हरदा
    ◆प पु मुनि श्री 108 निरापदसागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान जिनेन्द्र ( नंदू ) जी काला खातेगांव
    लेने वाले श्री मान प्रकाश जी पाटनी खारदा
    ◆प पु मुनि श्री 108 निराकुलसागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान जंबू जी कासलीवाल खातेगांव
    लेने वाले श्री मान प्रफुल्ल जी पाटनी खातेगांव
    ◆प पु मुनि श्री 108 निरुपमसागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान सुनील जी जैन भोपाल
    लेने वाले श्री मान अनिल जी जैन आष्टा
    ◆प पु मुनि श्री 108 निष्कामसागर जी महाराज
    देने का श्री मान अक्षय जी अष्टांगे सदलगा
    लेने वाले श्री मान मनीष जी शाह अहमदाबाद

    ◆प पु मुनि श्री 108 निर्भीकसागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान राकेश जी बड़जात्या अजनास
    लेने वाले श्री मान संजय जी जैन भोपाल
    ◆प पु मुनि श्री 108 नीरागसागर जी महाराज
    देने वाले ब्र.भगवान दास जी नेमावर सभी भैया जी व्रती आश्रम नेमावर  
    लेने का श्री मान महेंद्र जी पाटनी हरदा
    ◆प पु मुनि श्री 108 नीरजसागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान रोशन जी बडजात्या अजनास
    लेने वाले श्री मान नितिन जी जैन छपारा 
    ◆प पु मुनि श्री 108 निर्मदसागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान निर्मल जी कासलीवाल खातेगांव
    लेने वाले श्री मान अरुण जी सेठी पानीगांव
    ◆प पु मुनि श्री 108 निर्सगसागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान शुभम जी रावका छीपानेर
    लेने वाले श्री मान जय जी बाकलीवाल खातेगांव
    ◆प पु मुनि श्री 108 निसंगसागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान विनीत जी बाकलीवाल खातेगांव
    लेने वाले श्री मान रजनीश जी बाकलीवाल खातेगांव
    प पु मुनि श्री 108 शीतलसागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान डॉ. ओमप्रकाश जी जैन नेमावर
    लेने वाले श्री मान राजेश जी जैन भोपाल
    ◆प पु मुनि श्री 108 समरससागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान मुकेश जी सेठी खातेगांव
    लेने वाले श्री मान राजेश जी जैन भोपाल
    ◆प पु मुनि श्री 108 श्रमणसागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान राकेश जी जैन लखनादौन
    लेने वाले श्री मान नीलेश जी जैन हरदा
    ◆प पु मुनि श्री 108 संधान सागर जी महाराज 
    देने वाले श्री मान विनय जी जैन हरदा 
    लेने वाले श्री मान राजेश जी पोरवाल खातेगांव
    ◆प पु मुनि श्री 108 संस्कार सागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान सुनील जी जैन खातेगांव
    लेने वाले श्री मान मुकेश जी जैन इंदौर
    ◆प पु मुनि श्री 108 ओमकार सागर जी महाराज
    देने वाले श्री मान जिनेश जी जैन भोपाल
    लेने वाले श्री मान संतोष जी जैन गंजबासौदा
    (31 मुनिराज) ससंघ 
    नेमावर में विराजमान है।
    पिच्छिका परिवर्तन समारोह
    चातुर्मास स्थान :- नेमावर
     
     
     
     


  12. Vidyasagar.Guru
    मंगल-भावना मंगल-मंगल होय जगत् में, सब मंगलमय होय। इस धरती के हर प्राणी का, मन मंगलमय होय।। कहीं क्लेश का लेश रहे ना, दु:ख कहीं भी ना होय। मन में चिंता भय न सतावे, रोग-शोक नहीं होय।। नहीं वैर अभिमान हो मन में, क्षोभ कभी नहीं होय। मैत्री प्रेम का भाव रहे नित, मन मंगलमय…
     
     
  13. Vidyasagar.Guru
    *संयम महोत्सव प्रतियोगिता श्रंखला* 
    आचार्य श्री विद्यासागर जी महराज के ५४ वें दीक्षा दिवस का पवन प्रकल्प 
    आचार्य श्री विद्यासागर जी महराज के साहित्य को जानने एवं स्वाध्याय करने का सुनहरा अवसर 
    जून 30, 2021 से 14 जुलाई 2021
     

     
    प्रतिदिन पूछे जायेंगे प्रश्न और आप बन सकते हैं आकर्षक उपहार के दावेदार 

    प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए *आज ही निम्न लिंक पर पंजीकरण कराये* 
    👇👇👇👇
    https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSeN92B_st12lkQiNVZT5F3XmGfUA2gKH9BRUca9OpjCWdfY0Q/viewform?usp=sf_link
    फॉर्म भरने के बाद आपको whatsapp एवं instagram लिंक प्राप्त होगा |
     
    आचार्य श्री विद्यासागर मोबाइल एप्प पर आपको मिलेंगे प्रतियोगिता की पल पल की जानकारी 
    https://play.google.com/store/apps/details?id=com.app.vidyasagar
     
    ५४ वां दीक्षा दिवस
    आषाढ़ शुक्ल-पंचमी : 14 जुलाई २०२१
     
    आपको यह प्रतियोगिता कैसी  लग रही हैं - कमेंट में जरूर बताएं 
     

     
  14. Vidyasagar.Guru
    प्रतियोगिता क्रमांक 1 

     
     
     
     
    प्रतियोगिता लिंक (गूगल फ़ॉर्म)
    https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSfJXDG_3DF-uXmt1I8hRF4aPzv99ooDRBLVKb_hojJLH9Vebg/viewform?usp=sf_link
     
    उत्तर प्राप्त सूची 
    https://docs.google.com/spreadsheets/d/1rsCzjGrkBKArMpe-C-se0ht8AcVTOAAvKc7cWm0hOlo/edit?usp=sharing
  15. Vidyasagar.Guru
    यहां पर हम अपडेट करते रहेंगे 
    आप भी अपने भाव नीचें कमेंट मे जरूर व्यक्त कीजिएगा 
    *मध्य प्रदेश शासन के 11 कैबिनेट मंत्री व इंदौर के 5 विधायकों ने आपार जनसैलाब के साथ की आचार्य भगवन विद्यासागर महामुनिराज की भव्य अगुवानी*
     
     
    LIVE समाप्त 
     
     
    इंदौर आगमन आचार्य श्री जी का
    WhatsApp Video 2020-01-05 at 2.56.19 PM.mp4
     
     
    VID-20200105-WA0029.mp4
     
     
    अभी लाइव  दर्शन
    WhatsApp Video 2020-01-05 at 11.14.07 AM.mp4
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    आचार्य श्री 108 विद्या सागर जी महाराज की मंगल अगवानी मार्ग का दोरा करते डिप्टी कलेक्टर बीबी एस तोमर, नगर निगम अपर आयुक्त रजनीश कसेरा, पुलिस विभाग से वरिष्ठ अधिकारी महेंद्र जैन जी, शहर कांग्रेस अध्यक्ष विनय बाकलीवाल, विधायक संजय शुक्ला, दिगम्बर जैन समाज सामाजिक संसद इंदौर के अध्यक्ष नरेंद्र वेद और युवा प्रकोष्ठ अध्यक्ष राहुल सेठी और मार्गदर्शक नकुल पाटोदी।
    फ़ोटो नीचें एल्बम मे देखे 
     
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    आहारचर्या- बड़जात्या फार्म हाउस इंदौर)
    🥀 5 जनवरी 2020,रविवार🥀
    🌈20 साल से राह देखते
          सजा के तोरणद्वार
    छोटी बिटिया के अँगना अब
          होंगे गुऱु आहार🌈
    🍁अध्यात्म सरोवर के राजहँस ,विश्व वन्दनीय ,संत शिरोमणि , बुन्देलखण्ड के छोटे बाबा , धरती के भगवान आचार्य भगवंत श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज का पड़गाहन एवं आहारदान देने का सौभाग्य
    श्रावक श्रीमान सनत कुमार जी ,राहुल जी ,सिद्धार्थ जी , आरव जी ,प्रकाश जी जैन 【बड़जात्या परिवार】 निवासी इंदौर के सम्पुर्ण परिवार को  प्राप्त हुआ
     
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    Whatsapp पर चल रहे हें 
     
    🥀आज है दीवाली इंदौर ही नही सम्पुर्ण भारत मे दीवाली ।। घर घर रोशन हो गया क्योकि आज वे विशेष दिन आ ही गया है जब अपनी सबसे छोटी बिटिया को दर्शन देने आरहे है पिच्छी कमंडल धारी राष्ट्र संत , आचार्य भगवन्त श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज🥀
     
    🥀रंग गया है सारा इंदौर🥀
    🥀रंग गया है सारा भारत🥀
    🥁क्योकि 20 वर्षो  बाद 2020 में आरहे है सदलगा के संत🥁
    🔔माँ अहिल्या की नगरी में श्रीमंत के लाल🔔
    हम सबके आराध्य का इंतज़ार था अब बस है और पूर्ण हो ही गया
    संपूर्ण इंदौर वासियो को इंतज़ार उस पल का
    जब सबसे छोटी बेटिया प्रतिभास्थली को मिलेगा गुरु आशीष
    आओ आओ नी पधारो गुरु मोरी नगरीय रे
    गुरुचरण में नमन🙏🏽
     
    आज कुछ अलग सा लग रहा है ,सार जगत डूबा है गुरु जी मंगल आगवानी में
    🥀जबलपुर क्या ,सागर क्या ,ललितपुर क्या आज एक नया कीर्तिमान स्थापित होगा वे है सबसे छोटी बेटिया प्रतिभास्थली में जब होगी पूज्यगुरुदेव की महा मंगल आगवानी बस इंतज़ार कुछ ही पलों का।।🥀
    उदयनगर से 2 km पूर्व पूज्य मुनिश्री १०८ विशद सागर जी महाराज करेंगे अपने आराध्य प्रभु की लग भाग 4 वर्षो बाद गुरुचरण वंदना
    जुड़े रहे पुण्योदय विद्यासंघ से इंतज़ार पल पल की खबरों का
     
     
  16. Vidyasagar.Guru
    प्रतियोगिता निम्न लिंक से खुलेगी 
    https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSe17gN1enrH6uwenEpJ6HJoj6KKMU1HBFponiYeo-B0FrRDXg/viewform?usp=sf_link
     
    सभी निर्देश पढ़ कर भाग ले 
    कुण्डलपुर महामहोत्सव प्रतियोगिता क्रमांक 1 के माध्यम से जो हम स्वाध्याय करने वाले हैं, इसका अवलोकन  करेंगे 
    प्रतियोगिता मे आप 28 जनवरी 22  रात्री 10 बजे तक दे सकते हैं उत्तर |
     
  17. Vidyasagar.Guru
    मुम्बई  24 नवम्बर रविवार के दिन कृष्णा रिकॉर्डिंग स्टूडियो गोरेगांव में दिगंबर जैन मुनि आचार्य विद्यासागर के आधयात्मिक जीवन पर आधारित हिंदी फिल्म ‘अन्तर्यात्री महापुरुष’ का संगीतमय मुहूर्त बड़े ही भव्यता के साथ संपन्न हुआ। इस फ़िल्म के लिए संगीतकार सतीश देहरा ने अमित कुमार और अनुराधा पौडवाल के स्वर में गीत रिकॉर्ड किया जिसे सुधाकर शर्मा ने लिखा है। इसके अलावा फ़िल्म में सुधाकर शर्मा द्वारा रचित 9 गाने होंगे जिसे अनूप जलोटा, अरविंदर सिंह, पामेला जैन, रामशंकर और अगम निगम अपनी सुमधुर स्वर में गाएंगे। यह फ़िल्म शिरोमणि क्रिएशन के बैनर तले निर्मित होगी जिसके लेखक निर्देशक अनिल कुलचैनिया, संवाद लेखक भरत बेनीवाल और सह निर्माता उमेश मल्हार हैं।
     

     

     

    इस फ़िल्म में गजेंद्र चौहान विद्यासागर के माता पिता की भूमिका में गजेंद्र चौहान और किशोरी शहाणे विज होंगे साथ ही अलाइना भी महत्वपूर्ण किरदार निभाएंगी। निर्देशक अनिल कुलचैनिया ने बताया कि फ़िल्म में आचार्य विद्यासागर के शुरुआती जीवन से दीक्षा ग्रहण तक की गाथा को दर्शाया जाएगा। मैंने इस फ़िल्म के लिए लगभग दो वर्षों तक शोध कार्य किया है साथ ही जैन धर्म के अनुसार अपना जीवन व्यतीत कर रहा हूँ। फ़िल्म की शूटिंग आचार्य की जन्मस्थली कर्नाटक राज्य के बेलगांव जिले स्थित सदलगा से लेकर उनकी दीक्षा स्थली अजमेर (राजस्थान) के अलावा कई हिस्सों में की जाएगी। किसी महान इंसान की बायोपिक बनाना बड़ा ही चुनौतीपूर्ण कार्य है जिसके लिए मुझे बहुत तैयारी करनी है। आचार्य जी के युवावस्था के समय को ध्यान में रखते हुए सेट तैयार करना बड़ी जिम्मेदारी होगी। इस फ़िल्म की शूटिंग भी पूरी तरह से सात्विक ढंग से निपटाई जाएगी।आचार्य विद्यासागर जी की भूमिका के लिए ऐसे सशक्त अभिनेता की तलाश जारी है जो संत प्रवृत्ति का हो।आपको बता दें कि दिगंबर जैन मुनि आचार्य विद्यासागर का बचपन का नाम विद्याधर था। उन्होंने हाई स्कूल की पढ़ाई के बाद मात्र 22 वर्ष में सन्यास ले लिया था। अजमेर में उन्होंने आचार्य ज्ञानसागर से दीक्षा ग्रहण किये और त्याग, तपोबल से ये महान साधक जैन समाज के लिए पूजनीय बन गए हैं।
     
     
    मुनि विद्यासागर की बायोपिक 'अन्तर्यात्री महापुरुष' का मुहूर्त
     
    राज एक्सप्रेस। हाल ही में दिगंबर जैन मुनि आचार्य विद्यासागर के आध्यात्मिक जीवन पर आधारित हिंदी फिल्म 'अन्तर्यात्री महापुरुष' का संगीतमय मुहूर्त मुंबई में किया गया। फिल्म के म्यूजिक डायरेक्टर सतीश देहरा ने लीजेंडरी सिंगर अमित कुमार और अनुराधा पौडवाल के स्वर में फिल्म का एक गाना रिकॉर्ड किया।
     
     
    सुधाकर शर्मा ने लिखा है गाना :
    फिल्म में पूरे 9 गाने हैं, जिसे सुधाकर शर्मा ने लिखा है। फिल्म के बाकी गानों को अनूप जलोटा, अरविंदर सिंह, पामेला जैन, रामशंकर और अगम निगम जैसे सिंगर्स अपनी आवाज से सजाएंगे। फिल्म में अभिनेता गजेंद्र चौहान और किशोरी शहाणे विज के अलावा अलाइना भी महत्वपूर्ण किरदार में नजर आएंगी। फिल्म के डायरेक्टर अनिल कुलचैनिया ने फिल्म के बारे में बात करते हुए बताया कि, हमारी फिल्म आचार्य विद्यासागर के शुरुआती जीवन से लेकर दीक्षा ग्रहण तक की कथा को दिखाएगी।
     
    दो साल किया गया रिसर्च :
    फिल्म के लिए लगभग मैंने दो साल रिसर्च की है। इसके अलावा जैन धर्म के अनुसार इन दिनों अपना जीवन बिता रहा हूं। इस फिल्म की शूटिंग आचार्य विद्यासागर के जन्मस्थल कर्नाटक के अलावा राजस्थान के कई हिस्सों में भी की जाएगी। बता दें कि, शिरोमणि क्रिएशन के बैनर तले निर्मित फिल्म अन्तर्यात्री महापुरुष के राइटर और डायरेक्टर अनिल कुलचैनिया है। इसके अलावा फिल्म के संवाद लेखक भरत बेनीवाल और सह निर्माता उमेश मल्हार हैं।
     
     
    A Grand Musical Muhurat Of 'Anteryatri Mahapurush', A Biopic On Digambar Jain Muni Vidyasagar Held
    The grand musical muhurat of the Hindi film 'Anteryatri Mahapurush', based on the spiritual life of Digambar Jain Muni Acharya Vidyasagar was held at Krishna Recording Studio Goregaon on Sunday, 24 November. The music composer of the film, Satish Dehra, recorded a song sung by famous duo of Amit Kumar and Anuradha Paudwal which was written by veteran lyricist Sudhakar Sharma. Apart from this, the film will have 9 songs composed by Sudhakar Sharma which will be sung by well known singers like Anup Jalota,
     
    Ramshankar,  Arvinder Singh, Pamela Jain and Agam Nigam. The casting of the film is under finalisation. 
    The film will be made under the banner of Shiromani Creation and will be produced and directed by Anil Kulchainiya. Veteran journalist Shyam Sharma is the publicity in charge of the film. The film stars Gajendra Chauhan, Kishori Shahane and Alaina. Rest of the cast will be finalised soon. The film is co produced by Umesh Malhar and Bharat Bheniwal has written the dialogues.






     

  18. Vidyasagar.Guru
    संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने भाग्योदय तीर्थ परिसर में शनिवार को धर्मसभा में कहा कि बच्चों में शुरू से ही संस्कार डालना चाहिए। फास्ट फूड के रूप में एक अजान फल जो पैकेट में बंद रहता है, उसके अंदर क्या है। यह मालूम नहीं तो भी उसका सेवन लगातार बढ़ता जा रहा है। ये ठीक नहीं है। इसकी जगह आप सभी को घर का भोजन करना चाहिए। 

    आचार्य श्री ने कहा पैकेट में अंदर क्या है। पैकेट में ना तो हवा जाती है और कैसे वह बना है यह भी नहीं मालूम, बस थोड़ा चटपटा और जीभ को अच्छा लगता है इसके चलते लोग इसे आंख बंद करके खा रहे हैं। जबकि इससे पेट नहीं भरता फिर भी बच्चे इसके दीवाने हैं और खा रहे हैं। घर का खाना खाने से आप स्वस्थ रहेंगे । क्योंकि फास्ट फूड कैंसर का सबसे बड़ा कारण है और आने वाले समय में हर घर में इस रोग से व्यक्ति पीड़ित रहेंगे। इस रोग से बचना है तो फास्ट फूड का त्याग करना होगा । 

    कई लोगों ने की सहस्त्र कूट जिनालय में प्रतिमा विराजमान कराने की घोषणा : वीरेंद्र जैन फैंसी ज्वेलर्स 11 मूर्ति,आनंद जैन बंटी राहतगढ़ ने एक बड़ी मूर्ति और कपिश जैन दिल्ली चार्टर्ड अकाउंटेंट ने आचार्य श्री के चरणों का पाद प्रक्षालन किया। आचार्य श्री की आहार चर्या राकेश जैन ,नमिता जैन, रितुल जैन और ईशु जैन के चौके में हुई।सहस्त्र कूट जिनालय में प्रतिमा विराजमान कराने की घोषणा डा. विनोद मीना जैन, अजय जैन शिखर चंद जैन, क्रांति जैन सुलोचना जैन,सरोज जैन, निशांत समैया ,प्रदीप जैन, संदीप जैन , कंछेदी लाल दाऊ, भागचंद जैन, अरविंद जैन, अखिलेश जैन, प्रियंका, आनंद जैन, राहुल जैन , हुकमचंद जय कुमार सुनील, जिनेंद्र जैन, सुनील जैन, सुशील जैन, वर्षा जैन ने एक- एक मूर्ति विराजमान कराने की घोषणा की। 

    जस्टिस, कुलपति, डीआईजी, एसपी ने लिया आर्शीवाद : शनिवार को मप्र मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एन के जैन, हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो राघवेंद्र प्रसाद तिवारी, डीआईजी पुलिस राकेश जैन, पुलिस अधीक्षक अमित सांघी आदि मुनिश्री के दर्शन कर आशीर्वाद लिया। भाग्योदय के डॉक्टरों ने आचार्य श्री को श्रीफल भेंट किया। 

    आचार्य श्री के रविवारीय प्रवचन आज : भाग्योदय तीर्थ परिसर में विराजमान आचार्य विद्यासागर महाराज के रविवार को दोपहर 2 बजे से होंगे। मुनि सेवा समिति के सदस्य मुकेश जैन ढाना ने बताया कि आचार्य श्री का पूजन सुबह 9 बजे से छोटे पंडाल में होगी। इसके बाद मंगल देशना सुबह 9:30 बजे, आहारचर्या सुबह 10 बजे और दोपहर 2 बजे से बड़े पंडाल में आचार्य श्री की मंगल देशना होगी। 

    ये है त्याग 

    आचार्य श्री ने कहा त्याग क्या है एक बार जंगल में दो लोग जा रहे थे उन्हें बहुत तेज भूख लग रही थी अचानक एक पेड़ ऐसा दिखा जहां पर बहुत अच्छे और रस भरे फल लगे हुए दिखाई दे रहे थे लेकिन उस फल का नाम किसी को नहीं मालूम था एक व्यक्ति ने कहा कि मैंने मुनि महाराज से नियम लिया है कि जिस फल का नाम नहीं मालूम हो ऐसे अजान फल को मैं नहीं खाऊंगा लेकिन दूसरे व्यक्ति को इतनी तेज भूख लगी थी तो उसने एक फल खाया और कुछ ही मिनटों में उसके प्राण निकल गए त्याग के कारण एक व्यक्ति की जान बच गई और दूसरे के प्राण चले गए।आचार्य श्री ने कहा देने वाले को अपना मोह कम करना चाहिए त्याग के भाव बनाना अच्छी बात है 

     
  19. Vidyasagar.Guru
    आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के मंगल चातुर्मास कलश की स्थापना पर नेमावर 
     
    प्रथम कलश..५०४ कलश..जय जय गुरुदेव🙏🙏🙏🙏
     
    आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज  के चातुर्मास स्थापना के
     
    प्रथम कलश की बोली  504  कलश  की  श्री  सुनील जी राजसमंद वाले को गई है  । द्वितीय कलश 153 कलश सुन्दर लाल जी बीड़ी वाले इन्दोर तीसरा कलश 99 कलश 99 श्रीफल  - ओनलाइन गुप्त हे नाम चतुर्थ कलश अरिहंत कैपिटल ५४ कलश ५४ श्रीफल ५ वाँ कलश ५४ कलश ५४ श्रीफल वंदना जी जैन Goel नगर इंदौर 6 षष्टम कलश श्री चिंतामणी जी कन्नोज  सप्तम कलश श्री  अशोक जी पाटनीR K मार्वल  अष्टम श्री तरुण जी काला मुम्बई नवम श्री राजा भेया सूरत  
     
     
     
    स्थान:- श्री सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र नेमावर जी
     
     
  20. Vidyasagar.Guru
    प्रमाणीकरण जारी किया गया है कि जैन पंचायत ललितपुर एवम पशु संरक्षण केंद्र द्वारा आयोजित आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज की अगवानी में 2 लाख से अधिक जैन समाज के लोग शामिल हुए।  21 नवम्बर 2018 को  यह जुलुश 12 किमी लम्बे मार्ग ग्राम विगा महाराज से क्षेत्रपाल जी स्टेशन रोड ललितपुर तक था। यह अब तक का बड़े जुलुश का विश्व रिकॉर्ड है। जारी किये गए प्रमाण पत्र की प्रति अवलोकनार्थ प्रस्तुत है।
     

     
     
     
  21. Vidyasagar.Guru
    शक्ति, अभिव्यक्ति, समस्या और तपस्या
    नदी के किनारे एक चट्टान थी। धोबी उस पर बैठकर कपड़े धोया करते थे, सैलानी उस पर बैठते और लहरों के साथ अठखेलियाँ खेला करते थे। पत्थर कई दिनों से नदी के किनारे था। जो भी वहाँ आता अपने-अपने हिसाब से उसका उपयोग करता। एक दिन किसी शिल्पी की नजर उस पत्थर पर पड़ी। शिल्पी ने उस पत्थर को वहाँ से निकाला, अपनी वकशाप पर लाया और उसे तरासना प्रारम्भ कर दिया। कुछ ही दिनों में उसमें एक सुंदर प्रतिमा का आकार प्रकट हो गया। कल तक साधारण पत्थर अब प्रतिमा का रूप धारण कर चुका था, पाषाण ने भगवान का रूप ले लिया था।
     
    बन्धुओं! इसी तरह पाषाण से भगवान की अभिव्यक्ति हमारी संस्कृति है। आज तप धर्म की बात है। शक्ति के रूप में हर प्राणी के अन्दर अनन्त सम्भावनाएँ हैं। जैसे हर पत्थर में प्रतिमा है वैसे हर आत्मा में परमात्मा है। 'अप्पा सो परमप्पा' ये जैनदर्शन का उद्घोष है। हर आत्मा परमात्मा है। आत्मा ही परमात्मा है। तुम्हारे भीतर वह शक्ति है पर तुम्हें उसका पता नहीं। जब तक हमें शक्ति की जानकारी नहीं होगी, हम उसका लाभ नहीं ले सकगे। तप धर्म के संदर्भ में चार बातें आप से कहना चाहूँगा।
     
    तुम अनन्त शक्ति के स्रोत
    आज की चार बातें- शक्ति, अभिव्यक्ति, समस्या और तपस्या। शक्ति. तुम्हारे पास जो शक्ति है पहले उसे पहचानो। जो प्राणी अपनी अन्तर्निहित शक्तियों की पहचानता है वही सच्चे अथों में अपना कल्याण कर सकता है। जानो तुम क्या हो। तुम्हारे पास अनन्त सम्भावनाएँ हैं। सच्चे अर्थों में देखा जाए तो तुम अनन्त शक्तियों के पुंज हो पर मुश्किल ये है कि इसका तुम्हें पता ही नहीं है। तुम क्या हो, तुम्हें पता नहीं है। ऊपर से देखने में हाड़-माँस का पुतला दिखता है लेकिन इसके भीतर जो आत्म-तत्व है वह अनन्त शक्तियों का पुंज है, उस शक्ति को पहचानो। जो उसे पहचानता है वही आगे जाकर अपने जीवन का कल्याण कर पाता है।
     
    पाषाणेषु यथा हेम दुग्धमध्ये यथा घृतम् |
    तिलमध्ये यथा तैलं देहमध्ये तथा शिव: ||
    स्वर्णपाषाण में जैसे सोना होता है, दूध के भीतर जैसे घी है. तिल के भीतर जैसे तेल व्याप्त होता है वैसे ही देह के भीतर तुम्हारा परमात्मा है जो अनन्त शक्तियों का भण्डार है, धाम है, निधान है। कभी उस शक्ति को पहचाना? स्वर्ण पाषाण में सोना है ऐसा हर कोई नहीं जान पाता, जिसे उसकी परख होती है वही जानता है और जानने के बाद जब प्रयत्न करता है तब उसमें से उस सोने की अभिव्यक्ति होती है।
     
    शक्ति की अभिव्यक्ति : तपस्या का बल
    पहले शक्ति को पहचानो फिर उसके बाद उसे पाने के लिए, उसकी अभिव्यवक्ति के लिए पुरुषार्थ करो। पहचान के बाद पुरुषार्थ होता है। शक्ति को जानने वाला ही अभिव्यक्ति कर पाता है। इस स्वर्ण पाषाण में सोना है, इसे जो जानता है वह उसे तपाता है, गलाता है, जिससे उसकी किट्ट-कालिमा नष्ट होती है, उसके अन्दर की शुं समाप्त होता हैं तथा उसे भीतर का शुद्ध स्वर्ण प्रकट होता है।
     
    सन्त कहते हैं इस शक्ति को तुम पहचानो। तुम्हारे भीतर सोना है पर अभी तुम सोने के पाषाण की भांति हो। सोने के पाषाण से सोने की अभिव्यक्ति करना ही हमारे जीवन का मूल लक्ष्य और ध्येय है। सच्चे अर्थों में यही साधना है, यही आराधना है। उस अभिव्यक्ति का साधन है तपस्या। जैसे सोने के ओर(स्वर्णपाषाण) को तपने पर उसके भतार का शुद्ध सोना निकलता है | वेसे ही तपस्या हमारी आत्मा की कुन्दन बना देती है, तपस्या से ही आत्मा परमात्मा बन पाता है। शक्ति को पहचानो। दूध में घी है, पर घी की अभिव्यक्ति कब होती है? अपने आप..? पता है दूध की बूंद-बूंद में घी समाहित है लेकिन दूध में रहने वाले घी की अभिव्यक्ति तब होती है जब दूध को जमाया जाता है, उसका मंथन किया जाता है, नवनीत निकाला जाता है और उसे तपाया जाता है तब कहीं जाकर दूध से घी निकलता है। तुम्हारे भीतर वह परमात्म तत्व है, देह के भीतर वह परमात्मा है पर उस परमात्मा की अभिव्यक्ति कब होगी? जब तुम साधना करोगे, साधना के बल पर अपनी आत्मा का अंथन-मंथन करोगे। उस अंथन-मंथन से जो नवनीत निकलेगा, उस अनुभूति के नवनीत को तपस्या की आंच में तपाओगे तब अपनी आत्मा को परमात्मा बना पाओगे।
     
    ये अभिव्यक्ति है। जैसे दूध से घृत की अभिव्यक्ति उसकी प्रोसेस(प्रक्रिया) से होती है, सोने के ओर(स्वर्णपाषाण) से सोने की अभिव्यक्ति उसकी प्रक्रिया से होती है, तिल को घानी में पेलने से तेल निकलता है वैसे ही जब आत्मा साधना और आराधना के रास्ते पर चलता है तब उसके अंदर का परमात्मा प्रकट होता है। तुम परमात्मा हो लेकिन उसकी तुम्हें पहचान नहीं है। परमात्मा हो लेकिन भिखारी बनकर जी रहे हो, तुम्हें उसका पता नहीं। तुम्हारे भीतर की शक्ति क्या है, तुम्हें पता नहीं। शक्ति को पहचानो।
     
    एक सेठ का बेटा पिता की मृत्यु को बाद गलत संगति का शिकार हो गया। व्यसन-बुराईयों में लिप्त होकर उसने अपनी सारी सम्पति का नाश कर दिया। सब कुछ खो दिया और स्थिति ऐसी हो गई कि वह दाने-दाने की मोहताज हो गया। एक दिन हारकर वह अपने पिता के मित्र के पास पहुँचा और कहा- मुझे कोई छोटी सी नौकरी दिला दें, अब जिन्दगी जीना मुहाल हो गया है, दाने-दाने के लिए मोहताज हो गया हूँ। उसने कहा- तुझे नौकरी करने की जरूरत नहीं है, तू आज भी करोड़पति है। अरे! चाचा! मजाक क्यों करते हो? सुबह खा लूँ तो शाम की जुगाड़ नहीं, शाम खा लें तो सुबह की जुगाड़ नहीं और आप कह रहे हो कि मैं आज भी करोड़पति हूँ। बेटे मैं तुझसे मजाक नहीं कर रहा हूँ, यथार्थ बता रहा हूँ।
     
    लड़का बोला- मुझे आप की बात समझ में नहीं आ रही। चाचा ने कहाये तेरे गले में क्या है, उसके गले में तांबे का एक ताबीज था। तुमने यह ताबीज कब से पहना है, तुझे पता है? लड़का बोला- बचपन से पहना हुआ है, मुझे याद है एक दिन मेरे पिता ने मुझे पहनाया था। बोले बस, मैं तुझसे कहता हूँ अब तू इसको खोल दे। मोटा सा ताबीज था, पहले ताँबे का एक कवर निकला, ताँबे का कवर निकलने के बाद उसमें चाँदी का कवर निकला। बोला- इसको भी खोल फिर उसके ऊपर सोने का कवर था, बोला- इसकी भी खोल और जैसे ही सोने का कवर खोला तो उसके भीतर एक बेशकीमती हीरा पड़ा था। बोला- देख तेरे पिता ने तेरे गले में कितना मंहगा हीरा डाल रखा है और तू भिखारी बना हुआ है। पहचान तेरे पास क्या है। वह निहाल हो गया।
    सन्त कहते हैं आज जितने लोग भी भिखारी बने हुए हैं और जो अपने दुखों का रोना होते हैं, जो अपने कष्टों का रोना रोते हैं, उन सब को समझने की जरूरत है कि तुम्हारे भीतर भी वह अनन्त उसका पता नहीं है, तुम्हें उसका ज्ञान नहीं है, उस पर अज्ञान का आवरण चढ़ा हुआ है, उस पर मिथ्यात्व का आवरण चढ़ा हुआ है, उस पर आसक्ति का आवरण चढ़ा हुआ है। ये आवरण जब तक नहीं हटाओगे तुम्हारे भीतर के उस तत्व की पहचान नहीं होगी। शक्ति को पहचानो, जो मनुष्य अपनी शक्ति को नहीं पहचानता वह कभी उसकी अभिव्यक्ति नहीं कर पाता। तुम्हारे पास कितनी शक्ति है, इसका उदाहरण बताऊँ।
     
    अभी यहाँ इस शिविर में बैठने वाले साठ-सत्तर लोग दस उपवास कर रहे हैं, दस दिन तक निराहार रहेंगे, कुछ लोग बत्तीस दिन तक भी निराहार उपवास कर रहे हैं। उनमें कुछ ऐसे भी लोग शुमार हैं जो एक घण्टे भी भूखे नहीं रह सकते। एक घंटे भूखा न रहने वाला व्यक्ति भी दस दिन तक और बत्तीस दिन तक निराहार रह सकता है। कहाँ से आई ये शक्ति? क्या हुआ, कहीं ऊपर से तो नहीं टपक रही? महाराज! आपके आशीर्वाद से शक्ति मिल गई।
     
    अगर मेरे आशीर्वाद से शक्ति मिले तो मैं तो एक-एक को पकड़ कर शक्तिपात कर दूँ। किसी के आशीर्वाद से शक्ति नहीं मिलती, शक्ति तो तुम्हारे भीतर छुपी थी पर तुम्हें उसकी पहचान नहीं थी, तुम्हारा आत्मविश्वास कमजोर था, तुम्हें पता ही नहीं था कि मैं क्या कर सकता हूँ। तुम्हें उसकी पहचान हुई, आत्मविश्वास जागा, तुम तपस्या में निरत हो गए और अब उस शक्ति की अभिव्यक्ति हो रही है। सब कुछ सामान्य चल रहा है बल्कि आम दिनों से ज्यादा उत्साह और जोश है, सुबह तीन बजे से लेकर रात के नौ बजे तक की ये अलविया का पाल कनेक शतकों से आई गुन्दे कहते हैं
     
    तन मिला तुम तप करो करो कर्म का नाश |
    रवि शशि से भी अधिक है तुममें दिव्य प्रकाश ||
    ये तन मिला है, इसके भीतर की शक्ति को पहचानो, इन्द्रियों का नियन्त्रण करो। ये तन तुम्हें भोगों का नाश करने के लिए मिला है, भोगों में रत रहने के लिए नहीं, कर्म का नाश करो। शक्ति को पहचानोगे, उसकी अभिव्यक्ति में लगोगे तो जीवन में कोई समस्या नहीं रहेगी और तपस्या बहुत सहज हो जाएगी, फिर कुछ कहने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी।
     
    एक व्यक्ति है जो तन को रात-दिन पीसने में लगा है, जो ये कहता है- मुझसे कुछ किया नहीं जाता, मुझसे कुछ ही नहीं सकता, मैं कुछ कर नहीं सकता, न भूख सहन हो सकती, न प्यास सहन हो सकती, न सदीं सहन कर सकता, न गर्मी सहन कर सकता, मैं कोई तपस्या-वपस्या नहीं कर सकता और एक व्यक्ति वह है जो शरीर को पाकर कठोर तपस्या करते हुए भी चौबीस घण्टे प्रसन्न है। आपके शिविर में एक माताजी आई हैं ललितपुर से, पाँच-छ: हजार उपवास कर चुकी हैं, उनके खाने के दिन कम और उपवास के दिन ज्यादा है। माता एक बार खड़े हो जाओ, तुम्हारे दर्शन करके लोग धन्य हो जाएँ। ये माता हैं इनको देखो, इनके चेहरे का तेज देखो, एक बार अभिनंदन तो करो। सत्तर-बहत्तर साल की उम्र और अपने जीवन में लगातार दो दिन भोजन नहीं करतीं, दो दिन उपवास हो जाता है। कल्पना कर सकते हैं? अभी बारह-तेरह उपवास के बाद पारणा करेंगी और वह भी अपने हाथ से बनाकर, दूसरों के हाथ से नहीं। हाड़-माँस तो वही है, जो हमारा-तुम्हारा है, सबका एक है लेकिन फिर भी इतनी शक्ति। शक्ति को पहचानो, आसक्ति को छोड़ो तब तुम उसकी अभिव्यक्ति के लिए तपस्या कर सकोगे। कुछ लोग हैं जिनको अपनी शक्ति की पहचान नहीं होती। जिन्हें शक्ति की पहचान नहीं होती वे कुछ कर नहीं सकते।
     
    कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें शक्ति की पहचान तो होती है पर आसक्ति इतनी होती है कि कुछ कर नहीं सकते। जब तक शरीर में आसक्ति होगी, तपस्या के नाम पर कपकपी आएगी, साधना कर ही नहीं सकते। आसक्ति मनुष्य को रोकती है, अवरोध पैदा करती है। उस शक्ति पर आसक्ति ने आवरण डाल रखा है, कुछ कर ही नहीं सकते, कैसे करेंगे? आसक्ति क्षीण होगी, विरक्ति का भाव होगा, विकृति का शोधन करोगे तब आत्मा की प्रकृति को प्राप्त कर सकोगे।
     
    प्रकृति की प्राप्ति : देहालय में मस्ती की स्थापना
    आज के चार शब्द साथ-साथ जोड़ लो। आसक्ति, विरक्ति, विकृति और प्रकृति। आसक्ति रोकती है, अवरोध पैदा करती है, विरक्ति प्रोत्साहित करती है, आगे बढ़ाती है। जब मनुष्य अपनी आसक्ति को मंद करता है तो भीतर में विरक्ति के संस्कार जगते हैं, विरक्ति के भाव बढ़ते हैं, आसक्ति मंद होती है और ऐसा व्यक्ति अपनी विकृतियों के शोधन में तत्पर हो जाता है, तब अपनी स्वाभाविक प्रकृति को प्राप्त कर पाता है। आसक्ति रोकती है, शक्ति के ऊपर आसक्ति हावी होने के बाद कुछ नहीं किया जा सकता।
     
    सुकुमाल मुनि का जीवन याद करो, जिन्हें सरसों का दाना भी चुभता था। सरसों का दाना जिन्हें चुभा करता था उन्हें श्यालिनी के दंश नहीं चुभे। तीन दिनों तक श्यालिनी अपने दो बच्चों के साथ जिन्हें खाती रही, कमर तक खा लिया लेकिन उन्होंने उफ तक नहीं किया। क्या शरीर बदल गया? सहनन बदल गया? क्या बदला? जब तक देह के प्रति आसक्ति थी तो सरसों का दाना भी चुभन पैदा करता था और देह से विरक्ति हो गई तो श्यालिनी के दंश तक नहीं चुभ सके, इतनी स्थिरता आ गई।
     
    बन्धुओं! मैं आप से भी कहता हूँ जब तक आसक्ति में जिओगे, रोते रहोगे और जब विरक्ति आएगी तो हँसना सीख जाओगे। ये शरीर है। शरीर को पाकर एक व्यक्ति अपने शरीर के पोषण में लगा रहता है, उसी में रत रहकर अपने संसार को बढ़ाता है और एक व्यक्ति उसी शरीर के माध्यम से संसार को पार कर लेता है, दृष्टि का खेल है। आसक्ति होगी तो संसार में घूमोगे, विरक्ति होगी तो संसार से पार हो जाओगे।
     
    येनैव देहेन विवेकहीनाः संसारबीज परिपोषयन्ति।
    तेनैव देहेन विवेकभाजः संसारबीजं परिशोषयन्ति॥
    विवेकहीन व्यक्ति जिस काया को पाकर संस्कार को बीज का संसार के बीज का शोषण करते हैं। एक संसार को पुष्ट करता है और एक संसार को सुखा डालता है। दृष्टि क्या है? विवेक जगाओ।
     
    काना पौड़ा पड़ा हाथ यह चूसे तो रोवै |
    फलै अनन्त जु धर्मध्यान की भूमि विषै बोवै ||
    इस शरीर को पौड़े की उपमा दी है। पौड़ा बोलते हैं गन्ने को। गन्ने में एक काना पौड़ा होता है जिसमें कोई रस नहीं होता, रेसे होते हैं, उसको चूसो तो मसूड़े और छिल जाते है पर हासिल कुछ भी नहीं होता। यदि उसी पौड़े को जमीन में बो दिया जाए तो वह बीज का काम करता है, उससे सरस गन्ना प्रकट हो जाता है। कवि कहता है- ये शरीर काने पौड़े की तरह है, इसका भोग करोगे तो दुखी होने के सिवाय कुछ भी नहीं होगा, 'चूसे तो रोवै'- इस शरीर का जितना भोग करोगे उतना दुख होगा और 'फले अनंत जु धर्म ध्यान की भूमि विषै बोवै'- इस शरीर को धर्म ध्यान में लगा दोगे तो कैवल्य का आनंद फल प्राप्त कर लोगे। इसलिए बन्धुओ! इस शरीर का उपयोग करो, उपभोग नहीं। ये शरीर कड़वी तुम्बी के समान है। कड़वी तुम्बी को खाओगे तो फूड पॉइंजन(बीमारी) हो जाएगी और चाहो तो उसी तुम्बी के सहारे उफनती नदी को भी पार किया जा सकता है। इसी प्रकार इस शरीर का उपभोग करोगे तो मर जाओगे और उपयोग करोगे तो तर जाओगे। अपनी शक्ति की पहचानें, उसकी अभिव्यक्ति करें तो हमारा जीवन आगे बढ़ेगा। आसक्ति अभिव्यक्ति में बाधा बनती है।
     
    एक शहर में बहुत सुंदर मंदिर था। उस भव्य मंदिर में मूल प्रतिमा को ठीक सामने एक स्तम्भ(खम्भा) था। एक दिन दोपहर को समय जब मंदिर में कोई नहीं था तब मूल प्रतिमा के सामने खड़े स्तम्भ ने प्रतिमा से कहा- अरी बहिन! देखो न लोगों का पक्षपात, तेरी-मेरी जाति एक अंश एक, वंश एक, जहाँ तू पैदा हुई वहाँ मैं पैदा हुआ, जिस खान से मैं निकला उसी से तू निकली लेकिन फिर भी देख न लोगों का कैसा पक्षपात है, जो आता है तुझे शीश नवाता है, तेरी पूजा करता है, आरती उतारता है पर मुझे पूजा करने, प्रणाम करने, आरती करने की तो बात तो दूर, जो आता है वह मुझसे टिककर बैठ जाता है ये कैसा पक्षपात है।
     
    खम्भे की पीड़ा सुनकर प्रतिमा मुस्कुराई और उसने खम्भे को सम्बोधते हुए कहा- भईया! तुम्हारी इस उपेक्षा से मुझे भी अच्छा नहीं लगता, तुम्हारे प्रति मेरी पूरी सहानुभूति है लेकिन मैं एक बात निवेदन करना चाहती हूँ। बोले क्या? इसमें कसूर तुम्हारा है, किसी का पक्षपात नहीं। प्रतिमा की बात सुनकर खम्भा तिलमिला गया। इसमें मेरा क्या कसूर? ये सरासर पक्षपात नहीं तो क्या है?
     
    प्रतिमा ने कहा- भईया! इतने आवेश में मत आओ। तुम्हें ये दिखता है कि लोग मेरी पूजा करते हैं, आरती उतारते हैं, वन्दना करते हैं पर क्या तुम्हें ये पता है कि यहाँ तक पहुँचने के पीछे मैंने क्या-क्या सहा है? तुम उस दिन को भूल गए जिस दिन शिल्पी आया था और हमें अपने परिजनों से अलग करने की चेष्टा की थी। कितने हथौड़ों और घनों का प्रहार किया था याद है? एक बारगी तो मैं भी काँप गई थी पर तभी मैंने शिल्पी की आँखों में देखा तो मुझे लगा कि उसकी आँखों में बहुत प्यार है, वह मेरे भीतर कुछ अलग तैयार करना चाहता है, मैंने अपने आप को समर्पित कर दिया। उसने मुझे वहाँ से उठाकर अपनी कार्यशाला मे पटक दिया, मुझे लगा- हे भगवान! अब क्या होगा? फिर उसने मेरी छाती पर चढ़कर मेरे ऊपर छेनी और हथौड़ियों का लगातार प्रहार करना शुरु कर दिया, मेरा जी घबराया, मैंने फिर शिल्पी की आँखों में देखा तो उसमें वही प्यार उमड़ रहा था। तब मुझे लगा कि नहीं, ये शिल्पी मेरे भीतर कुछ घटित करना चाहता है, मुझे कोई सुन्दर आकार देना चाहता है। मैंने अपने आप को पूरी तरह समर्पित कर दिया। शिल्पी ने मुझे तरासना शुरु किया, मेरे अंदर के अवांछित और गलत तत्वों को उसने तरासकर अलग करना शुरु कर दिया और ज्यों ही उसने मुझे तरासना शुरु किया मेरे भीतर आकार बनना शुरु हो गया। तरासते-तरासते जब मेरे भीतर का अन्तिम अवांछित तत्व भी हट गया तो मेरे भीतर इस प्रतिमा का आकार बन गया। और अधिक मैं क्या कहूँ, जैसे ही मैं इस रूप में प्रकट हुई सबसे पहले उसी शिल्पी ने मुझे प्रणाम किया। पर उस दिन तुमने चलने से इंकार दिया। काश! तुम मेरे साथ आते तो तुम भी मेरी जगह समान स्थान पाते लेकिन उस दिन तुम वहीं रह गए इसलिए आज तुम्हारी दुर्दशा हो रही है।
     
    बंधुओं! मैं आपसे केवल इतना ही कहना चाहता हूँ संसार में दो तरह के प्राणी हैं- एक वे जो प्रतिमा की तरह पूजे जाने योग्य होते हैं और दूसरे वे जो खम्भे की तरह हमेशा खड़े रहते हैं। अपने भीतर झांककर देखो, तुम्हारा जीवन खम्भे जैसा है या प्रतिमा जैसा है? खम्भे को प्रतिमा बनाना है तो उसके लिए तुम्हें तपस्या करनी होगी, साधना करनी होगी, आराधना करनी होगी। अपने आपको निखारो, अपने भीतर की विकृतियों का शोधन करो। तुम्हारे भीतर के विकारों का जितना शमन होगा, जीवन में उतना निखार आएगा।
     
    बंधुओं! शक्ति, आसक्ति, विकृति और प्रकृति को साथ-साथ लेकर चलो। अपने लक्ष्य, प्रकृति तक जाना है तो अपनी शक्ति को पहचानी और उसकी अभिव्यक्ति का प्रयत्न करो। अभिव्यक्ति के प्रयत्न में सबसे बड़ी समस्या है हमारे भीतर का अज्ञान, हमारे भीतर का मोह, हमारे भीतर पलने वाली आसक्ति जो कुछ करने नहीं देती, उसका निवारण हो तो जीवन में कहीं कोई कठिनाई नहीं। तपस्या करने के लिए आसक्ति समस्या है, अज्ञान समस्या है। इस अज्ञान और आसक्ति से अपने आप को मुक्त करोगे तो तुम्हारा चित्त तप से निरत हो जाएगा। अपने जीवन को मोड़ सकते हो, उधर से मोड़ो।
     
    अपने अंदर की विकृति का शमन करना चाहते हो तो तपस्या करो, अपने भीतर के विकारों का शमन करना चाहते हो तो तपस्या करो और जीवन की समस्याओं का समाधान पाना चाहते हो तो तपस्या करो। आज मैं आप से कौन-सी तपस्या की बात करूं? उपवास करने की, ऊनोदर करने की, रस छोड़कर भोजन करने की, विविक्त शैय्यासन की, एकान्त में ध्यान लगाने की, शारीरिक कष्टों को सहन करने की? कौन सी तपस्या की बात करूं? अगर इस तरह की तपस्या की बात करूं तो कहोगे महाराज! हमारे वश में नहीं है। ये मुँह से कहते हो, तुम्हारे वश में क्या है तुम्हें पता नहीं। तुम्हारे वश में क्या है, इस बात का अंदाजा तो केवल इससे लगाया जा सकता है कि आधा किलोमीटर चलने में असमर्थ व्यक्ति जब सम्मेद शिखर जाता है तो सताईस कि.मी. की यात्रा कैसे कर लेता है?
     
    नौ किलोमीटर की पहाड़ी चढ़ते हो, नौ कि.मी. की वंदना करते हो फिर नौ कि.मी. उतरते हो, कहाँ से आती है शक्ति? वह वंदना कौन कराता है तुम्हारे पैर? पैर नहीं इरादे, तुम्हारी आस्था, तुम्हारी श्रद्धा। जिस दिन तुम्हारे मन में ये बात आ जाएगी उस दिन बड़ी से बड़ी तपस्या तुम्हारे लिए अति सामान्य बन जाएगी। चलिए आज मैं आप से उस तपस्या की बात नहीं करता जिसमें आप को कुछ छोड़ना पड़े। मैं आपको एक बहुत अच्छी तपस्या बताता हूँ जिसमें आपको कुछ नहीं छोड़ना पड़ेगा, खा-पीकर तपस्या करो। ऐसी कौन सी तपस्या है जो खा-पीकर की जाती है?
     
    समस्या ही समाधान है, समाधान का रास्ता है तपस्या
    सन्त कहते हैं जब भी जीवन को समस्या से ग्रसित पाओ, तपस्या करो। सच्चे अर्थों में समस्या का समाधान ही तपस्या है। क्या कह रहा हूँ? समस्या का समाधान ही तपस्या है। चलिए पहले समस्या देखें फिर उसका समाधान देखें, तपस्या अपने आप समझ में आ जाएगी। यदि आपके जीवन में कोई समस्या है तो आज सबका समाधान कर दूँगा। तप का दिन है, बोलो किसको क्या समस्या है? तुम्हारी समस्या कैसी भी हो हमसे ट्रीटमेन्ट(इलाज) लोगे तो समाधान लेकर ही जाओगे। बताओ क्या समस्या है? चलो अब तुम्हारी समस्या भी मैं ही बता देता हूँ। तुम लोग तो सब सामने वालों से ही कराना चाहते हो, खुद नहीं करना चाहते।
     
    समस्या है- मन में उद्वेग, आवेग, अशान्ति। मन में कभी उद्वेग आए, आवेग आए, अशान्ति आए तो मन खिन्न हो उठता है, समस्याग्रस्त हो जाता है। ये उद्वेग, आवेग, अशान्ति क्यों आती है? जीवन में कभी अनुकूल संयोग होते हैं, कभी प्रतिकूल संयोग होते हैं। अनुकूल संयोग होते हैं तो मन खुश रहता है, प्रतिकूल संयोग होते हैं तो मन खिन्न हो जाता है। कभी विषयों की लालसा मन में जागती हैं, उसे पा लेते हैं तो कुछ देर के लिए थोड़ी खुशी होती है और जब नहीं पा पाते हैं तो मन खिन्न हो उठता है। जो हम चाहते है वह मिल जाता है तो मन प्रसन्न होता है, नहीं मिलता है तो मन खिन्न होता है। संयोगो की अनुकूलता का न बन पाना एक बड़ी समस्या है, प्रतिकूल संयोगों का आ जाना एक बड़ी समस्या है, मन पर तनाव का हावी हो जाना एक बड़ी समस्या है और चित्त में चिंता का हावी हो जाना एक बड़ी समस्या है। सारी समस्याएँ इनमें समाहित हैं। अनुकूल संयोगों का अभाव होना, प्रतिकूल संयोगों का जुड़ जाना, मन में तनाव आ जाना, चित्त में चिन्ता का आना आपकी समस्या है।
     
    समस्याएँ दो प्रकार की हैं- शारीरिक समस्याएँ और मानसिक समस्याएँ। शारीरिक समस्या, समस्या नहीं है; असली समस्या मानसिक समस्या है। मैं आपसे कहता हूँ इस सारी समस्या का समाधान तपस्या है। कैसे? हमारे यहाँ तीन प्रकार के तप बताए हैं। महराज! हमने तो बारह तप सुने हैं। बारह तप भी हैं; मैं आपसे इन तपों से भिन्न बात करना चाहता हूँ। तप तीन प्रकार के हैं- 1. शारीरिक तप 2. वाचिक तप और 3. मानसिक तप। व्रत करना, त्याग करना,
     
    उपवास करना तपस्या करना आदि ये सब शारीरिक तप है। मैंने आपको छुट्टी दी तुमसे शारीरिक तप नहीं बनता तो मत करो। वाचिक तप करो। वाचिक तप मतलब वाक-संयम। तुमसे कोई अपशब्द बोले तो उस समय मौन रख ली; तपस्या हुई कि नहीं हुई? आप उपवास तो कर सकते ही पर किसी की बात की बरदाश्त (सहन) नहीं कर सकते। भोजन छोड़ना सरल है पर किसी के दुर्वचन को सहना बहुत कठिन है।
     
    सन्त कहते हैं ये तपस्या है। इस तपस्या से समस्या का समाधान है क्योंकि किसी ने आपसे अपशब्द कहा, उस अपशब्द ने आपके दिमाग में चक्कर काटना शुरु कर दिया, सौ प्रकार के विकल्प आने लगे, टेंशन हो गया, उसने मुझे ऐसा बोल दिया। उसने मुझे अपमानित कर दिया, वह मुझे नीचा दिखाने की सोचता है, देखता हूँ, बड़ी औकात बढ़ गई है उसकी। अच्छा! उसने मुझे गधा कह दिया, मुझे गधा कहता है, बहुत भाव बढ़ गए हैं, एक दिन में धूल चटा दूँगा। ऐसी पटकनी दूँगा कि उठ नहीं पाएगा; मुझे गधा कहता है। सामने वाले ने एक बार गधा कहा और तुमने खुद को कितनी बार गधा बना दिया? जैसे शान्त सरोवर में किसी ने एक ककड़ फेंका और वह ककड़ वलय दर वलय बनाते-बनाते पूरे सरोवर को घेर लेता है। तुम्हारे कान में एक शब्द पड़ा, तुम उसे पकड़कर बैठ गए और उसने तुम्हें नीचे से ऊपर तक हिला दिया। अशान्त बना दिया, उद्विग्न बना दिया, खिन्न बना दिया। यदि तुमने उस समय ये सोच लिया कि मुझे वाचिक तप करना है, कोई मुझे कुछ भी बोल दे लेकिन मुझे कोई भी उल्टी प्रतिक्रिया नहीं करना है, हँसकर टालना है। बोलो! इसमें कोई कठिनाई है।
     
    आज से नियम ले लो, अब मुझे कोई गाली भी देगा तो मैं कुछ नहीं बोलूँगा। कितने लोग इस सभा में हैं जो ये नियम लेने के लिए तैयार है? ये तपस्या के लिए एक अवसर है। ध्यान रखो! एकदिन गुरुदेव ने बहुत अच्छी बात कही थी– “प्रतिकूल प्रसंगो को समता से सहना बहुत बड़ी तपस्या है।” ध्यान से सुनो- "प्रतिकूल प्रसंगों को समता से सहना बहुत बड़ी तपस्या है।” सच्चे अर्थों में समता ही सबसे बड़ी तपस्या है। गुरुदेव ने लिखा-
     
    मासोपवास करना, तन को सुखाना,
    आतापनादि तपना, तन को तपाना।
    सिदद्वान्त का मनन, चिन्तन औ मौन धरना
    ये व्यर्थ हैं श्रमण के बिन साम्य पाना।

    तुम्हारे मन में समता नहीं तो तुम कितना कायक्लेश करो, कितना व्रत-उपवास करो, कितना अध्ययन करो, कितना मौन करो, ये सब व्यर्थ हैं यदि समता नहीं है। समता मूल है।
     
    एक बार की बात; हम लोग विहार कर रहे थे। विहार के क्रम में कई बार कच्चे रास्तों से जाना होता है। कई बार लोग गलत सूचनाएँ भी दे देते हैं। अठारह मील का अठारह किलोमीटर बता दिया, और उस पर भी दो पहाड़ी चढ़नी थी। एक पहाड़ी चढ़ो, उतरो, फिर दूसरी पहाड़ी चढ़ो, उतरो फिर उसके बाद चलना था, सड़क भी बहुत खराब, चुभने वाली। अब क्या हुआ? इतनी थकानभरी यात्रा में पैदल चलना। सब लोगों ने उस व्यक्ति को कोसना शुरु कर दिया जिसने रास्ता बताया था। उनमें हम लोग भी शामिल थे। अरे! कैसा रास्ता बता दिया, कितनी परेशानी हुई। उस दिन पूरा संघ तितर-बितर हो गया। सात स्थानों पर पहुँचा, तय स्थान तक कोई नहीं पहुँच पाया।
     
    हम सात साधु आचार्य महाराज को साथ; जिस जगह पहुँचना था वहाँ से तीन किलोमीटर पहले एक स्कूल में रुके। शाम हो गई थी, फरवरी का महीना था, शीतलहर तेज चल रही थी। सरकारी स्कूल था, खप्पर वाला, चौड़े वाले खप्पर (इंग्लिश खप्पर) लगे हुए थे जिनमें से पाँच-सात खप्पर गोल थे (नहीं थे)। खिड़की, रोशनदान वगैरह में भी बन्द करने के साधन नहीं लगे हुए थे, दरवाजे भी सरकारी ही थे। सांय-सांय हवा आ रही थी। सभी सात साधु बिना चटाई वाले और ऐसे ही रात काटनी थी। ठण्ड भी बहुत लग रही थी।
     
    हमारे साथ के एक-दो साधुओं ने कहा- आज तो परेड हो गई, खूब चलवा दिया, कैसा रास्ता बताया आदि-आदि उसको कोस रहे थे। आचार्य महाराज ने कहा- उसको कोसो मत; उसको धन्यवाद दो कि उसने तुम्हें तपस्या करने की अनुकूलता प्रदान कर दी, कर्म-निर्जरा का अवसर दे दिया। है इतना माद्दा तुम्हारे भीतर कि कोई तुम्हें गलत कहे और तुम उसे अच्छी नजर से देख सको वाचिक संयम लाओ। कह दिया, चलो कह दिया, ये मेरी कर्म निर्जरा का कारण हो गया। बरदाश्त कर ली, तपस्या हो गई। ऐसी तपस्या यदि तुम लोग कर लोगे तो तुम्हारे घर में कोई समस्या ही नहीं होगी।
     
    मन का संयम : प्रसन्नता का सूर्योदय
    रोज घरों में महाभारत क्यों छिड़ता है? इसी कारण से। वाणी के असंयम के कारण, एक दूसरे के वचनों को बरदाश्त न करने के कारण। बड़ी समस्या बन जाती है। मैं आपसे कह रहा हूँ छोटी सी तपस्या कर ली, सारी समस्याएँ हल हो जाएँगी। बोली समाधान का नुस्खा जाँचा कि नहीं जैंचा? अच्छा लगा हो तो एक बार ताली तो बजा दो (तालियों की गड़गड़ाहट)। अरे! इतनी बड़ी समस्या का समाधान बता दिया और तुम्हारी कोई प्रतिक्रिया ही नहीं। अरे! हमसे संवाद तो जुड़ा रहना चाहिए। महाराज! हम तो सुनते हैं जितनी देर आप सुना दो, यहाँ से जाने के बाद सब मामला साफ। वाणी के संयम में कुछ नहीं लगना है खा-पीकर तपस्या करना है।
     
    मन का संयम। मन की प्रसन्नता, शान्तभाव, मन का निग्रह और अन्त:करण के भावों की भलीभाँति पवित्रता -इस प्रकार यह मनसम्बन्धी तप है।
     
    मनःप्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः।
    भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते।
    मन को प्रसन्न रखना, मन को खिन्न नहीं होने देना। कितनी ही प्रतिकूलता आए, मन में समता। अनुकूल संयोग न रहें, मन में समता रख सकते हैं आप? कुछ भी प्रतिकूल हो, दस मिनट आपका पंखा बन्द हो जाए, बरदाश्त कर पाते हो? यहाँ तो कर लेते हैं, घर में नहीं होता। प्रतिकूल संयोग को सहन करो। कैसे? तत्वज्ञान के माध्यम से। क्या भावना रखो? क्या धारणा रखो? संसार के सारे संयोग मेरे अधीन नहीं, मेरे कमों के अधीन हैं। ये हकीकत है कि नहीं बोलो? तुम्हारी तिजोरी की चाबी तुम्हारे पास है पर तुम्हारी किस्मत की कुछ पता नहीं। किस्मत कब खुलेगी और कब बन्द हो जाएगी पता नहीं। कब तुम्हारे साथ अनुकूल संयोग घटेंगे और कब प्रतिकूल संयोग बन जाएँगे; तुम्हें इसका कोई पता नहीं। ये सच्चाई है जीवन की। तो फिर परेशान क्यों होते हो? खुल जाए तो भी आनन्द और बन्द हो जाए तो भी आनन्द। तपस्या है ये। कर्म-सिद्धान्त पर भरोसा रखो। अनुकूल का भी स्वागत करो, प्रतिकूल का भी स्वागत करो। अच्छे का भी साथ दो, बुरे को भी स्वीकार करो। कर सकते हो? महाराज! अच्छे में तो बहुत अच्छा लगता है पर बुरा आता है तो बुरा लगने लगता है। आप तो कुछ ऐसा बताओ कि बुरा आए ही नहीं।
     
    ध्यान रखो! सन्त कहते हैं बुरा न आए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं, लेकिन बुरा भी तुम्हें अच्छा लगने लगे, ऐसी व्यवस्था है। बुरे को टालने की ताकत धर्म के पास नहीं पर बुरे को अच्छा बनाने की सामथ्र्य धर्म के पास है। यदि अपना चिन्तन बदल लो तो बुरा भी अच्छा लगेगा। एक उदाहरण देता हूँ। आपके घर में कई मेहमान आते हैं, आप सबका स्वागत करते हो। उदाहरण के लिए बताऊँ घर में जमाई (दामाद) आता है, और घर में चाचा भी आते हैं। जिस दिन जमाई आता है उस दिन टेंशन आता है कि नहीं आता? आता है। जिस दिन जमाई आता है उस दिन आपको अतिरिक्त तैयारी करनी पड़ती है। चार प्रकार की मिठाईयाँ बनानी पड़ती हैं, पाँच प्रकार की सब्जियाँ बनानी पड़ती हैं, उसके स्वागत-सत्कार की व्यवस्था करनी पड़ती है और जाते समय टीका लगाकर कुछ भेंट भी देना पड़ता है। जमाई है ही ऐसा। जमाई के लिए एक कवि ने लिखा
     
    सदा वक्रः सदा क्र्कूरः सदा मानधनापहः।
    कन्याराशिस्थितो नित्यं जामाता दशमो ग्रहः॥
    नौ ग्रहों का नाम तो आपने सुना है। दसवाँ ग्रह है जमाई। उसका स्वभाव भी समझ लो। हमेशा वक्री रहता है, हमेशा क्रूर रहता है, हमेशा मान और धन को हरने वाला होता है और हमेशा कन्या राशि में बैठा रहता है। जमाई आता है तो आप इस प्रकार उसका स्वागत करते हो और घर में चाचा आएँ तो चाचा के आने पर आपको कुछ करना पड़ता है? कुछ नहीं। घर की जो सामान्य प्रक्रिया है वही खिला दो-पिला दी। चाचा एडजस्ट हो गए, आराम से चले जाते हैं और जाते समय कुछ देकर जाते हैं। जमाई लेकर जाता है और चाचा देकर जाते हैं। स्वागत दोनों का आप करते हैं। मैं आपसे यही कहता हूँ जब दु:ख आए तो समझ लो जमाई आया और जब सुख आए तो समझ लो चाचा आए।
     
    स्वागत करो। सबका स्वागत करो। मन में खेद-खिन्नता आएगी ही नहीं। यही तपस्या है। सन्त कहते हैं जो मनुष्य अपनी स्थिति से सन्तुष्ट नहीं वह कभी सुखी नहीं हो सकता और जो अपनी स्थिति से सन्तुष्ट है वह कभी दु:खी नहीं हो सकता। कोई भी समस्या शेष नहीं रहेगी। समाधान ही समाधान है। ये तपस्या है। व्रत-उपवास कर लेना सहज है पर ऐसे समय में अपने मन को समाधान देना बहुत कठिन है। यदि तुमने ऐसा कर लिया तो सब हो गया।
     
    तपस्या का फल : तनाव मुक्त जीवन
    तपस्या उसे कहते हैं जिससे कर्म की निर्जरा हो। तपस्या को कर्म की निर्जरा का साधन कहा। ‘तपसा कम्मं णिरज्जड़'। तपस्या से कर्म झड़ता है। आपने कभी कर्म को झड़ते हुए देखा? बोलो! उपवास करने वालों! कितने कर्म झड़ाए? निश्चित कर्म झड़ते हैं लेकिन कर्म झड़े इसकी पहचान क्या? मेरी भावदशा में अन्तर। जब भी कोई अशुभ संयोग आए सोचो मेरी कर्मनिर्जरा का समय आ गया। समता भाव रखेंगा तो कर्म झड़ जाएँगे, ये परिस्थितियाँ अपने आप बदल जाएँगी। मेरी मन:स्थिति शान्त हो जाएगी जीवन धन्य हो जाएगा। कर्म निर्जरा हो गई। समता से कमों की निर्जरा होती है। और जिससे निर्जरा होती है उसी का नाम तपस्या है। समस्या का निवारण किसमें है? तपस्या में है। आज से समस्या की बात करोगे कि तपस्या की बात करोगे? आज से तपस्या करना शुरु कर दो। कोई भी प्रतिकूल प्रसंग आएगा उसको समता से मैं सहूँगा। जीवन में कैसी भी विषमता आए समता से स्वीकार करो। जो तत्वज्ञानी होता है वह सहज भाव से स्वीकार कर लेता है। कितने भी उतार-चढ़ाव आ जाएँ लेकिन विचलित नहीं होता।
     
    देखो! धर्मात्माओं के जीवन में कैसी भी विपत्ति आई लेकिन वे टस से मस नहीं हुए। हम जहाँ हैं वहीं रहेंगे, हटेंगे नहीं ये धर्मात्मा की पहचान है। बात आप समझ रहे हैं तो अपने जीवन में कितना भी बड़ा झंझावात आ जाए कभी हिर.ना नही, घबराना नहीं। कर्म का उदय है स्वीकार करेंगे। प्रतिकूल संयोग मिलने पर समता, अनुकूल संयोग मिटने पर समता। अनिष्ट के संयोग में समता, इष्ट के वियोग में समता। चक्र है, चल रहा है, चलने दो मैं तो उसका एक पार्ट (हिस्सा/भाग) हूँ। यह मेरे हाथ में नहीं।
     
    मैं आपसे एक सवाल पूछता हूँ - आप किसी के घर गए। उसके घर में कुछ चीजें आपको अव्यवस्थित दिखीं। किसी के घर में अव्यवस्थित चीजें देखकर आपके मन में कुछ होता है क्या? ऐसा व्यक्ति है जिसकी चीजें अव्यवस्थित हैं उससे आपको क्या करना है। जीवन में भी ऐसे ही चलना चाहिए। एक परिवार की बात मैं बता रहा हूँ। एक सज्जन ने मुझे बताया- उनके घर में एक एम.बी. ए. पढ़ा हुआ लड़का था लेकिन उसका कमरा एकदम अव्यवस्थित। अच्छा पैकेज पाने वाले, एक बड़ी कम्पनी में बड़े पद पर काम करने वाले युवा का कमरा एकदम अव्यवस्थित। इस कारण कोई लड़की वाले आएँ तो उसे पसन्द न करें। वह सज्जन उनके परिचित थे उन्होंने कहा भाई! उसे कुछ समझाओ, लड़का माने तो कुछ रास्ता निकले। लड़के के कमरे में गए तो वहाँ हर चीज अव्यवस्थित देखकर लड़के से कहा- भैया! हर चीज व्यवस्थित होना चाहिए, व्यवस्थित जिन्दगी जीना चाहिए। उन्होंने कहा महाराज जी! उस लड़के ने मुझे बहुत बड़ा बोध दे दिया। उसने दरवाजा खोला और दरवाजे के पीछे तरफ ओट में लिखा हुआ था दिस इज माय रूम, यू लव इट और लीव इट (यह मेरा कमरा है आप चाहें तो इसे प्यार करें चाहें तो इसे छोड़ दें)। यह मेरा कमरा है आप इसे प्यार करो या छोड़ो, मैं जैसे चाहूँगा वैसे रहूँगा। वह सज्जन वापिस आ गए कि इसके कमरे पर मेरा कोई नियन्त्रण नहीं यह जैसे चाहेगा वैसे रहेगा।
     
    यह कर्म का संसार है, इसमें मेरा कोई रोल (भूमिका) नहीं, वह जैसा चाहे रहे, जैसा चाहे रखे। ऐसी दृष्टि अपने भीतर विकसित कर लो। तुम्हारे हाथ में कुछ है ही नहीं। तुम जिस चीज को जैसा मैन्टेन करना (बनाए रखना) चाहो, वैसा हो ही नहीं सकता। कर्म जैसे करोगे फल भी वैसे ही मिलेंगे और कर्म जैसा चाहेगा तुम्हें वैसा नचाएगा। जिस दिन इस बात पर विश्वास हो जाएगा जीवन धन्य हो जाएगा।
     
    मन में तनाव और चिन्ता, इससे अपने आपको मुक्त कर लेना एक तपस्या है। तनाव क्यों आता है? आजकल तो तनाव, टेंशन एक बहुत बड़ी समस्या है। महामारी बन गई है। बच्चे से लेकर बूढ़े तक। आठ साल का बच्चा हो या साठ साल का वृद्ध; सबको टेंशन है। बच्चों को शुरु से अपने पेपर के माक्र्स (अंको) की टेंशन हो जाती है, बड़ी को अपनी नौकरी-पेशे, व्यापार का टेंशन, बच्चों के विवाह का टेंशन और बूढ़ों को अपने बुढ़ापे का टेंशन। आदमी टेंशन में जन्मता है, टेंशन में ही मरता है और जितने दिन जीता है उतने दिन टेंशन में ही रहता है।
     
    ये तनाव क्यों आता है? कभी आपने विचार किया? परिस्थिति और मन:स्थिति के बीच जब असन्तुलन होता है तभी तनाव आता है। परिस्थितियाँ कुछ होती हैं, मन:स्थिति कुछ होती है, हम चाहते कुछ हैं और होता कुछ है, तो तनाव हो जाता है। मन के विरुद्ध हुआ, मन कुछ सोच रहा है, मन कुछ चाह रहा है और हो कुछ रहा है तो तनाव हो रहा है। सन्त कहते हैं अपने मन को प्रसन्न रखो क्योंकि मन के अनुकूल होगा ही नहीं। मनोऽनुकूल सब कुछ घटे ये शक्ति तुम्हारे पास नहीं है पर जो कुछ भी घटे उसे मनोऽनुकूल बना लेने की शक्ति तुम्हारे पास है। जो घट जाए, मन को उसके अनुकूल बना ली, उसे स्वीकार कर ली कर्म के उदय के रूप में। कर्म सिद्धान्त के ऊपर विश्वास करके। तुम्हारे जीवन की बड़ी तपस्या हो जाएगी। यदि ऐसी तपस्या करोगे तो न तनाव होगा, न चिन्ता होगी, नकारात्मक कुछ भी नहीं होगा। बस जीवन में निश्चिन्तता और आनन्द की अनुभूति होगी। ये एक ऐसी तपस्या है जिसमें कोई समस्या नहीं है।
     
    बन्धुओ! अपने मन को प्रसन्न रखें, सौम्य भाव रखें, पवित्रता को अपने हृदय में विकसित करें, इन्द्रियों का निग्रह करें, अपनी विषयों की आसक्ति को नियन्त्रित करें, इच्छाओं का शमन करें -ये सब तपस्या है। ऐसी तपस्या सबके जीवन में प्रकट हो तो फिर कोई समस्या शेष नहीं रहेगी, हमारे जीवन का निश्चयत: उद्धार होगा। आज तप धर्म के दिन ये नई तपस्या जो आप सबको बताई है, मुझे विश्वास है कि ये आप सबको पसन्द आएगी और आज से आप सबके जीवन में घटित हो जाएगी।
  22. Vidyasagar.Guru
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    नवदीक्षित मुनि महाराजों के नाम-
    ब्र.श्रेयांश भैया बुढ़ार - परम पूज्य मुनि श्रीनिर्ग्रन्थसागर जी महाराज ब्र.मोनू भैया पनागर - परम पूज्य मुनि श्रीनिर्भ्रांतसागर जी महाराज ब्र.मोनू भैया पथरिया - परम पूज्य मुनि श्रीनिरालससागर जी महाराज ब्र.नितेन्द्र भैया नरसिंहपुर - परम पूज्य मुनि श्रीनिराश्रवसागर जी महाराज ब्र.पिंकेश भैया हाटपिपल्या - परम पूज्य मुनि श्रीनिराकारसागर जी महाराज ब्र.आकाश भैया सागर - परम पूज्य मुनि श्रीनिश्चिंतसागर जी महाराज ब्र.दीपक भैया संदलपुर - परम पूज्य मुनि श्रीनिर्माणसागर जी महाराज ब्र.सतीश भैया खुरई - परम पूज्य मुनि श्रीनिशंकसागर जी महाराज ब्र.मनीष भैया इंदौर - परम पूज्य मुनि श्रीनिरंजनसागर जी महाराज ब्र.अर्पित भैया इंदौर - परम पूज्य मुनि श्रीनिर्लेपसागर जी महाराज
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    संग्रह, अनुग्रह, परिग्रह और विग्रह
    एक बार धरती ने वृक्ष से कहा कि मैं तुम्हें अपना रस पिलाती हूँ और तुम अपने फल-फूल औरों को लुटा देते हो; ऐसा करना तुम बंद करो। पेड़ ने धरती से विनम्रता से कहा- नहीं माता: मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि मेरा तो जन्म ही औरों के उपकार के लिए हुआ है। पेड़ के इस उत्तर से धरती रूठ गई। पतझड़ आया, पेड़ का एक-एक पता झड़ गया। कल तक हरा-भरा दिखाई देने वाला पेड़ आज सूखे लूठ के रूप में परिवर्तित हो गया। धरती ने कहा अब भी चेत जाओ। पेड़ ने कहा नहीं मैं तो चाहता हूँ कि इस घड़ी में भी मेरी सूखी लकड़ियाँ भी किसी के काम में आ जाएँ तो मैं अपने जीवन को सार्थक समझेंगा। पेड़ के इस व्यवहार से धरती का हृदय पसीज गया। बसंत आया और पेड़ पहले से सौ गुना ज्यादा वैभव-सम्पन्न हो गया।
     
    एक रोज हिमालय ने गंगा से कहा कि तुम नीचे क्यों उतरती हो? तुम यहीं रहो; अपना पानी यूँ न लुटाओ। गंगा ने हिमालय की बात को अनसुना कर नीचे बहना शुरु कर दिया। वह प्यासी धरती और सूखी खेती को हरा-भरा बनाते हुए लाखों-करोड़ों लोगों की व्याकुलता नष्ट कर प्रवाहित होने लगी। गंगा की इस वृत्ति से हिमालय द्रवीभूत हो उठा और उसने उसे जी भरकर पानी देना शुरु कर दिया। नतीजा: गंगा गंगोत्री में जितनी थी उससे हजार गुनी गंगासागर में बन गई।
     
    आज के संदर्भ में ये दोनों रूपक बहुत सार्थक हैं। जो निरंतर देता है वह निर्बाध पाता है। अगर हम सृष्टि के समस्त क्रम को देखें तो सारी सृष्टि ग्रहण और त्याग से जुड़ी है। हमारा सम्पूर्ण जीवन ग्रहण और त्याग से जुड़ा है। हम श्वास लें और नि:श्वास न हो,श्वास भीतर लें और बाहर न निकालें तो क्या होगा? घुटन होगी। भोजन करें और शौच न हो तो क्या होगा? पीड़ा होगी। भोजन करना जितना जरूरी है मल का विसर्जन भी उतना ही आवश्यक है। श्वास लेना जितना जरूरी है श्वास छोड़ना भी उतना ही जरूरी है। ये प्रकृति का नियम है।
     
    बहुत जरूरी जानना, त्याग/दान सम्बन्ध
    बादल समुद्र से पानी सोखते हैं और वर्षा के रूप में हमें लौटा देते हैं। समुद्र यदि बादल को पानी न दे तो नदियाँ समुद्र को पानी नहीं दे सकेंगी; ये एक क्रम है। पेड़ धरती से रस लेता है तो हमें फल, फूल और छाया प्रदान करता है। गाय घास खाती है तो हमें अमृतोपम दूध पिलाती है। ये प्रकृति की व्यवस्था है जहाँ ग्रहण है वहाँ त्याग जरूरी है। जीवन का संतुलन तभी बनेगा जब ग्रहण के साथ त्याग होगा।
     
    आज त्याग धर्म का दिन है। त्याग की व्याख्या कई प्रकार से की गई है। मुनियों को केन्द्र बनाकर जब त्याग की बात की गई तो कहा गया-‘परिग्रहनिवृत्तिः त्यागः' परिग्रह की निवृत्ति का नाम त्याग है। अर्थात् मुनियों का जो त्याग है वह सर्वस्व का त्याग है। अपने सर्वस्व का त्याग ही परिग्रह की निवृत्ति है। गृहस्थों के लिए जब बात कही गई तो कहा गया- 'त्यागो दानम्' त्याग का मतलब दान।
     
    दान अंश का होता है त्याग सर्वस्व का होता है। गृहस्थ सर्वस्व को नहीं त्याग सकता। उसके पास जो है उसका एक अंश ही त्यागेगा। त्यागी का स्थान बहुत उच्च होता है। साधु सर्वस्व को त्यागता है, अपने पास कुछ भी नहीं रखता। तिल-तुष मात्र भी नहीं रखता। साधु त्याग की प्रतिमूर्ति होते हैं। गृहस्थ दानी अंश दान देता है। दान देने के लिए गृहस्थों को कहा गया है क्योंकि वह जो कुछ भी धन सम्पत्ति कमाता है उसमें पाप का उपार्जन होता है। बिना पाप के पैसा कमाना संभव नहीं है। अनीति के बिना पैसा कमाया जा सकता है पर बिना पाप के नहीं। क्योंकि धनार्जन में प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा षट्काय जीवों की विराधना होती है। अपने द्वारा अर्जित धन का कुछ अंश में भोग भी कर लेंगे और शेष एक दिन छोड़कर चले जाएँगे लेकिन उसके साथ जो उपार्जित पाप है वह कहाँ जाएगा। उस पाप को साफ करने के लिए गृहस्थों के लिए दान की प्रेरणा दी गई। सारा मत करो, अंश में दान करो, कुछ भाग दान करो जिससे वह पाप बैलेन्स (बराबर) हो जाए।
     
    बंधुओं! जब त्याग और दान की बात आती है तो दान की अपेक्षा त्याग का स्थान ऊँचा है क्योंकि दान अंश का और त्याग सर्वस्व का होता है इसलिए हमारे देश में त्यागी की पूजा होती है और दानी की प्रशंसा। जो सब त्याग दे वह पूज्य हो जाता है और जो अंश में त्यागे वह प्रशंसा का पात्र बनता है। आज तुम्हारे द्वारा दिया गया अंश-दान कल तुम्हारे कल्याण का कारण बनेगा। आज का ये दान कल तुम्हें त्यागी बनने का पुण्य प्रदान करेगा। जिससे त्याग के बल पर अपने सर्वस्व को प्राप्त कर सकी।
     
    संग्रह नहीं परिग्रह बुरा 
    बंधुओं! दान के सन्दर्भ में आज की चार बातें- संग्रह, अनुग्रह, परिग्रह और विग्रह। आप गृहस्थ हो; धन का संग्रह करते हो का संग्रह कतई बुरा नहीं है। कुछ लोग धनी-मानी लोगों को अलग दृष्टि से देखते है | ऐसी अवधारणा बनाकर रखते है कि जिनके पास पैसा है वे सब पापी ही है, अनाचारी ही है, पाखण्डी है,  अनेतिकता से जीवन जीते है | ऐसा नहीं है; ग्रहस्थ जीवन में धन- संग्रह का उपदेश हमारे तीर्थकर भगवन्तो ने दिया है |
     
    वे कहते है - धन का संग्रह करो | संग्रह करो मतलब पैसा इकट्ठा करके रखो, जोड़ते जाओ और जोड़-जोड़कर रखते जाओ। नहीं; जोड़ना संग्रह है और जोड़कर उससे चिपक जाना परिग्रह है। क्या कहा? जोड़ना संग्रह है और जो जुड़ा है उससे चिपक जाना परिग्रह है। संग्रह से अनुग्रह होता है और परिग्रह से विग्रह। विग्रह यानि झगड़ा। तुमने संग्रह किया; अनुग्रह करो और संग्रह नहीं करोगे तो अनुग्रह नहीं कर सकोगे। लोकोपकार के जितने भी कार्य हैं बिना धन के संभव नहीं होते। धन कहाँ से आएगा? जब संग्रह करोगे, अर्जन करोगे तभी तो आएगा। इसलिए हमारी संस्कृति कहीं धन का निषेध नहीं करती। धन का संग्रह करो पर किसके लिए? अनुग्रह के लिए। अनुग्रह मतलब उपकार, परोपकार। स्व-पर के कल्याण के लिए धन का संग्रह करो।
     
    धन को जल की तरह कहा गया है। जल का स्वभाव होता है बहना। आज की भाषा में धन को लिक्वड (तरल पदार्थ) बोलते हैं। लिक्वड द्रव (तरल पदार्थ) है जल। जल जितना बहेगा उतना बढ़ेगा। लेकिन पानी कहाँ बहता है नीचे की ओर बहता है। जहाँ उसकी आवश्यकता है वहाँ पानी को बहाओ। पर पानी को बेवजह मत बहाओ। जब जरूरत है तब बहाओ, जहाँ जरूरत है वहाँ बहाओ। स्टोरेज (संग्रहण) की व्यवस्था करो। संग्रह करो ताकि आवश्यकता पर काम आए। जरूरत मंदों के काम आए, देश, संस्कृति, समाज और मानवता के कल्याण में काम आए।
     
    संग्रह करना मतलब नदी में बाँध बनाना | नदी में बाँध क्यों बनाते हैं? पानी को रोकने के लिए। पानी को रोकोगे नहीं तो सारा पानी समुद्र में जाकर वेस्ट (बर्बाद) हो जाएगा। वेस्ट (बर्बाद) होगा तो काम कैसे होगा? बारिश तो चार महीने ही होनी है और चार महीने भी सब जगह हो ही यह भी कोई जरूरी नहीं। कहीं कम, कहीं अधिक और कहीं बिल्कुल भी नहीं। इसलिए एक व्यवस्था बनाई कि पानी को रोको, बाँध बनाकर रखो। पानी को रोकने को लिए बाँध बनाते हैं पर बाँध बनाने के बाद पानी रोके ही रखो तो खतरनाक हो जाएगा। बाँध टूटेगा, जल-प्रलय आ जाएगा, बाढ़ की विभीषिका में परिवर्तित हो जाएगा। सबका सत्यानाश कर देगा।
     
    बाँध तो आप लोगों ने देखा होगा। राजस्थान में भी बाँध हैं। बाँध में गेट बनाए जाते हैं। गेट कब खोले जाते हैं? जब जरूरत होती है। कितना खोलते हैं? जितनी आवश्यकता होती है। नदी पर बाँध बनाते हैं, बाँध में गेट लगाते हैं और गेट लगाने के बाद जब आवश्यकता प्रतीत होती है तो उसे खोलते हैं, गेट खोलने के बाद उस पानी को जहाँ उसकी आवश्यकता होती है वहाँ पहुँचाते हैं। बाँध बनने के बाद नहरों और नालों के माध्यम से उस पानी को वहाँ पहुँचाया जा सकता है जहाँ सूखा मचा हुआ है। बाँध के पानी से सूखी धरती में भी हरियाली फैलाई जा सकती है इसलिए बाँध बनाते हैं। बाँध नहीं बनाएँ तो क्या ऐसा हो सकता है? कभी भी नहीं हो सकता। गेट कब खोलते हैं? जब पानी का फ्लो बढ़ जाता है तब। पानी का जितना फ्लो आता है उतना ही बहाया जाता है।
     
    सन्त कहते हैं धन का संग्रह करना भी समाज के कल्याण के लिए बाँध का निर्माण करने के समान है। बिना धन संग्रह के समाज-कल्याण नहीं होता। महाराज हम तो सोचे थे आज आप दान करने की बात करोगे; आपने तो संग्रह की बात कर दी। हमको ऐसा पता होता तो बाल-बच्चों को लेकर आते। बिल्कुल, मैं अपनी बात को दुहरा रहा हूँ। धन को संग्रह को बिना समाज का कल्याण नहीं होगा, संस्कृति की रक्षा नहीं होगी, देश का उत्थान नहीं होगा, पिवता की सेवा न हो। इसकल धनाक सहजताते बाँध बनाओ लेकिन ध्यान रखो बाँध बनाते समय सर्वे होता है कितना पानी ये इोल सकेगा, कितने पानी को रोकने की क्षमता है और इस पानी को कन्ज्यूम (उपयोग) करके कितनी धरती को हम सिंचित कर सकेंगे। ये पूरा सर्वे होता है फिर उसी हिसाब से पानी को वहाँ रखा जाता है। ये तय किया जाता है किस माह में हमें कितना पानी रखना है और कितना पानी छोड़ना है। जितना क्यूसेक (पानी की मात्रा को मापने की इकाई) पानी आता जाता है उसी हिसाब से छोड़ते भी जाते हैं। डेट्स (तारीख) फिक्स (निश्चित) रहती है। जितना पानी आया उतना खाली करो नहीं तो बाँध टूट जाएगा।
     
    मैं आपसे कहता हूँ धन का संग्रह करो, पर बाँध की भाँति करो। जितना पैसा आए उतना बहाते भी जाओ। जीवन में सदैव कल्याण बना रहेगा। जिस अनुपात से कमाओ उसी अनुपात से खर्च करो। संग्रह करो लेकिन अनुग्रह के लिए। इसी अनुग्रह का नाम दान है। आचार्य उमास्वामी ने दान के स्वरूप का विवेचन करते हुए लिखा
     
    "अनुग्रहार्थ स्वस्यातिसगों दानम्"
    स्व-पर के अनुग्रह के लिए अपने ‘स्व' यानि धन का अतिसर्ग अर्थात् त्याग करना; दान है। अनुग्रह के लिए धन का त्याग करना दान है। तुमने धन संग्रह किया अब उसका क्या करना है? अनुग्रह करना है। किसका अनुग्रह? स्व का और पर का। धन के त्याग से स्व का अनुग्रह। धन का त्याग करने से पहले स्व का अनुग्रह होगा। धन की आसक्ति कम होगी, अभिमान घटेगा, तुम्हारे अन्दर उदारता आएगी, करुणा आएगी और पाप का प्रक्षालन होगा। ये स्व का अनुग्रह है। तुम्हारी प्रतिष्ठा बढ़ेगी ये स्व का अनुग्रह है, कीर्ति बढ़ेगी ये स्व का अनुग्रह है।
     
    समाजवाद का विरोधी है, परिग्रह
    जो धनवान व्यक्ति कजूस होता है दुनिया उसको गाली देती है और जो धन-सम्पन्नता के साथ उदारता अपनाता है दुनिया उसे अपने हृदय में विराजती है। क्या चाहते हो स्व का अनुग्रह और पर का अनुग्रह? तुम्हारे द्वारा जोड़े गए धन से समाज का कल्याण हो, धर्म की प्रभावना हो, संस्कृति की रक्षा हो, राष्ट्र का उत्थान हो और मानवता की सेवा हो। ये पर का अनुग्रह किससे हुआ? संग्रह से अनुग्रह। अगर संग्रह किया है तो अनुग्रह करो। अगर संग्रह ही करके रख लोगे तो वह परिग्रह बन जाएगा।
     
    परिग्रह क्या है? पाप। पाप ही नहीं ‘परिग्रहो विग्रहहेतु:"। परिग्रह सारे झगड़ों का मूल है, जड़ है। जहाँ परिग्रह है वहाँ झगड़ा है, झंझट है, अशांति है, दु:ख है, उद्वेग है, पीड़ा है और परिताप है। तुम जितना परिग्रही बनोगे तुम्हारे जीवन में उतनी जटिलता और अशांति आएगी।
     
    मैं एक बात कहता हूँ संग्रह के साथ जहाँ वितरण है वहाँ आनन्द है और जहाँ केवल संग्रह है वहाँ बहुत गड़बड़ है। आप देखो नदियों का पानी मीठा होता है और सागर का पानी खारा। आखिर ऐसा क्यों कभी आपने विचार किया? नदियों का पानी मीठा और सागर का पानी खारा केवल इसलिए होता है क्योंकि नदियाँ अपने पास कुछ भी संग्रहित करके नहीं रखतीं, सब बाँट देती हैं और सागर सब कुछ अपने पास संग्रहित करके रखता है।
     
    मैं एक सूत्र देता हूँ जहाँ केवल संग्रह है वहाँ खारापन है और जहाँ वितरण है वहाँ मिठास है। जीवन में मिठास लाना चाहते हो तो संग्रह के साथ वितरण करना प्रारम्भ करो नहीं तो परिग्रह बनकर विग्रह हो जाएगा। ऐसा व्यक्ति न भोग पाता है न किसी को दे पाता है। बंधुओं! मेरे सामने अनेक संग्रही भी हैं और अनेक परिग्रही भी हैं। मैंने संग्रह करने वालों की उदारता और अनुग्रह को भी देखा है और परिग्रह का संचय करके विग्रह में उलझकर अपने जीवन को बर्बादी के कगार पर पहुँचाने वालों को भी देखा है।
     
    धन-सम्पति के प्रति मनुष्य के मन में बहुत मोह होता है, लगाव होता है। कहावत है "चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय"। दान जैसे सत्कृत्य के प्रति हर किसी के मन में भाव नहीं जगता। जिसका भवितव्य अच्छा होता है वही अपने द्रव्य का सही उपयोग कर पाता है। आचार्य गुरुदेव ने एक बार कहा कि सम्पत्ति का मिलना तो कदाचित पुण्य का उदय हो सकता है पर उसका सदुपयोग तो तप का फल समझना चाहिए। पिछले जीवन में तुमने कोई अच्छा कर्म किया होगा जिससे तुम्हें आज ऐसी सम्पति मिली कि सम्पत्ति पाकर उसका सदुपयोग करने का भाव मिला। धन को संग्रहित करने वाले कजूस लोग और धन-संग्रह के बाद सुरा-सुंदरी में बहाने वाले लोग दुनिया में बहुतायत में और सरलता से मिल जाएँगे लेकिन धन के संग्रह के बाद उससे अनुग्रह करने वाले लोग बहुत कठनाई से और बहुत कम मिलते हैं।
     
    लक्ष्मी के चार रूप
    आज की चार बातें लीजिए- भाग्यलक्ष्मी, पुण्यलक्ष्मी, पापलक्ष्मी और अभिशप्तलक्ष्मी। यहाँ लक्ष्मी का मतलब सम्पदा से है। लोक में लक्ष्मी को सम्पदा कहा जाता है। यहाँ लक्ष्मी से तात्पर्य सम्पदा-सम्पति से लेना। सम्पति कभी किसी की नहीं रही। कहा जाता है कि कीर्ति कुंवारी है और लक्ष्मी यानि सम्पत्ति को वेश्या के समान कहा है। यहाँ किसी देवी की बात नहीं; धन-पैसे को लेना। सम्पदा को वेश्या और कीर्ति को कुंवारी कहा गया क्योंकि जो कीर्ति को चाहते हैं कीर्ति उसे नहीं चाहती, इसलिए उसका ब्याह ही नहीं हो पाया और जो सम्पदा को चाहते हैं सम्पदा उसको नहीं चाहती; सम्पदा रोज अपना पति बदलती है, अपना स्वामी बदलती है इसलिए सम्पदा की वेश्या बताया गया। वह किसी एक की नहीं होती इसलिए वेश्या है और कीर्ति किसी को चाहती नहीं इसलिए वह कुंवारी है।
     
    ये जीवन की स्थिति है। चार प्रकार की सम्पदा में सबसे पहली भाग्यलक्ष्मी। भाग्यलक्ष्मी का मतलब ऐसे लोगों की सम्पदा जिन्हें बिना प्रयास के सारी सम्पति मिल गई। एक बच्चे ने किसी करोड़पति के घर में जन्म लिया उसको भाग्यलक्ष्मी विरासत में मिल गई। उसके लिए उसे कोई प्रयास-पुरुषार्थ करने की आवश्यकता नहीं हुई। जिस दिन जन्म लिया उसी दिन वह करोड़ों का स्वामी बन गया। ये है भाग्यलक्ष्मी।
     
    एक बालक भिखारी के घर पैदा हुआ। उसी दिन से भिखारी हो गया। ये उसके दुर्भाग्य की सम्पदा है। दुर्भाग्य व्यक्ति को भिखारी बनाता है तो सौभाग्य व्यक्ति को करोड़पति, अरबपति, राजा भी बना देता है। जो लक्ष्मी तुम भाग्य में लेकर आए वह भाग्यलक्ष्मी है। निश्चित रूप से तुम सब लोग भाग्यशाली हो क्योंकि तुम में से कोई भी भिखारी के घर पैदा नहीं हुआ। भाग्य की सराहना करो। बहुत ऊँचा भाग्य है तुम्हारा, कुछ न कुछ लेकर ही आए हो, ये भाग्यलक्ष्मी है 
     
    दूसरे क्रम पर है पुण्यलक्ष्मी। पुण्यलक्ष्मी का मतलब जिस लक्ष्मी को तुमने पुण्य के कार्य में लगा दिया, जिस सम्पदा को तुमने पुण्य के कार्य में लगा दिया, जिस सम्पत्ति को तुमने सत्कार्य में लगा दिया वह भाग्यलक्ष्मी पुण्यलक्ष्मी में परिवर्तित हो जाती है। तुमने अपार दौलत पाई। उस दौलत का उपयोग किसमें किया? जितना तुमने पुण्य में लगाया वह है पुण्यलक्ष्मी। अर्थात् सम्पत्ति का जो पुण्य में वियोजन है वह भाग्य को पुण्य लक्ष्मी में परिवर्तित करने की कला है। इतना ही नहीं विरासत में तुमने सम्पत्ति पाई, कुछ पुण्य भी लेकर आए; उस पुण्य ने तुमको अनुकूल संयोग दिया, उस पुण्य की बैकिग में तुमने जो पैसा कमाया (अच्छा कार्य करके, बुरा कार्य करके नहीं) वह भी पुण्यलक्ष्मी है। सत्कर्म में लगाया गया द्रव्य पुण्यलक्ष्मी और सत्कर्म करके कमाई गई सम्पति भी पुण्यलक्ष्मी।
     
    अनैतिकता, अप्रामाणिकता और गलत हथकण्डे अपनाकर पैसा कमाने वाले अलग लोग हैं लेकिन दुनिया में ऐसे लोग भी हैं जो सही रास्ते पर चलकर पैसा कमाते हैं और उसे सही रास्ते पर ही लगाते हैं। सही रास्ते से पैसा कमाना और सही रास्ते पर पैसा लगाना दोनों बहुत महत्वपूर्ण हैं। ऐसा कौन करते हैं जो पुण्यलक्ष्मी के धनी होते हैं। आपके पास पुण्य है; भाग्य लेकर आए और पुण्य भी साथ में है। अब क्या कर रहे हो? पुण्य से कमा रहे हो या पुण्य कमा रहे हो? दोनों चीजें है पुण्य से कमाओ और कमाने के बाद पुण्य कमाओ। ये पुण्यलक्ष्मी का प्रतीक है।
     
    मतलब समझ में नहीं आया। अभी समझ में आ जाएगा। पुण्य से कमाओ यानि अच्छा कार्य करको कमाओ, बुरा कार्य करको मत कमाओ। अनैतिकता, अप्रमाणिकता, हिंसा, शोषण आदि के रास्ते से पैसा कभी मत कमाओ। क्रूर कर्म करके पैसा कभी अर्जित न करो। अनैतिक कृत्य करको पैसा कभी अर्जित न करो। पुण्य से कमाओ और बिना पुण्य के कमा भी नहीं सकोगे। एक ग्लास दूध में आपने एक चम्मच चीनी डाली; दूध मीठा हो जाएगा क्या? नहीं; दूध को मीठा करने के लिए चीनी डालना मात्र पर्याप्त नहीं है। आपने चीनी डाली और तुरंत पी लिया तो दूध फीका ही लगेगा। चीनी डालने के साथ चम्मच से उसको घोलना भी पड़ेगा तब कहीं जाकर दूध मीठा होगा। बंधुओं दूध को मीठा करने के लिए चीनी डालना जितना जरूरी है उसको घोलना भी उतना ही जरूरी है। अपने जीवन में जो कुछ भी प्राप्त करना चाहते हो उसके लिए तुम्हारा पुरुषार्थ भी जरूरी है और साथ में पुण्य भी जरूरी है।
     
    खाली दूध में चम्मच घुमाओगे तो क्या हाथ आएगा। हाथ आएगा कुछ बिना पुण्य के? बिना चीनी डाले चम्मच घुमाने से दूध मीठा नहीं होगा। मानते हो कि नहीं? खाली दूध में चम्मच घुमाते हो कभी? महाराज! इतना बेवकूफ समझ रखा है क्या हम जयपुर वालों को, हम इतने बेवकूफ नहीं हैं। खाली दूध में कोई चम्मच नहीं घुमाता, दूध में चीनी डाली जाती है तब चम्मच घुमाते हैं तब उसमें मिठास आती है। ध्यान रखना! कोरे पुरुषार्थ से जीवन में कभी सफलता नहीं मिलती। सफलता तभी मिलती है जब पुण्य की बैंकिग होती है। यदि तुम्हारे पल्ले पुण्य होगा और सारी दुनिया तुम्हारे खिलाफ होगी तो भी तुम्हारी बुद्धि इतनी निर्मल और कुशल होगी कि तुम अपना रास्ता निकाल लोगे और आगे बढ़ते जाओगे, तुम्हें कोई रोक नहीं पाएगा। इसलिए पुण्य से कमाओ और पुण्य से कमाने के बाद पुण्य कमाओ।
     
    मैं आपसे एक बात पूछता हूँ रामलाल का पैसा आप रामलाल को दोगे कि श्यामलाल को? (श्रोताओं के जबाब की आवाज आती है)हाँ.....मुझे सुनाई नहीं पड़ा जोर से बोलो। रामलाल का पैसा रामलाल को ही देते हो, कभी भूलकर भी श्यामलाल को दिए क्या? हाँ अगर कहीं धोखे से श्यामलाल के पास चला गया तो? धोखे से चला जाता है तो क्या करते हो? महाराज! बहुत तकलीफ होती है, सोचते हैं कैसे इसकी भरपाई करूं। आप सब रामलाल का पैसा रामलाल को ही देते ही श्यामलाल को देना कभी नहीं चाहते। यदि तुम समझदार हो तो मैं तुमसे कहता हूँ पुण्य का पैसा भी पुण्य को दो, पाप में न देने का संकल्प ले लो। पुण्य का पैसा है तो उसको पुण्य में लगाओ पाप में क्यों लगाते हो? बोलो रामलाल का पैसा श्यामलाल को दोगे तो रामलाल नाराज होगा कि नहीं होगा? टीक है श्यामलाल को तुमने ऑवलाईज कर लिया (मना लिया) लेकिन वह धोखेबाज है, अंगूठा दिखा देगा तो रामलाल नाराज हो जाएगा और तुमको नुकसान पहुँचा देगा और हो सकता है कि तुम्हारे ऊपर मुकदमा भी कर दे क्योंकि उससे ऐग्रीमेन्ट (वायदा) किया हुआ है। रामलाल को नाराज करोगे तो तुम परेशान हो जाओगे।
     
    बंधुओ! मैं आपसे कहता हूँ पुण्य का पैसा अगर पाप में लगाओगे तो तुम्हारा पुण्य नाराज हो जाएगा और तुम पर पाप हावी हो जाएगा। पुण्य है इसलिए सुरक्षित हो। इसलिए पुण्य से उपार्जित धन को पुण्य में लगाओ, पाप में मत लगाओ। संकल्प लो आज के त्याग धर्म के दिन कि मैं अपनी सम्पदा का सही उपयोग, सही विनियोजन करूंगा। मैंने जो पैसा कमाया है उसमें कुछ न कुछ पाप जरूर हुआ है तो उस पैसे को भोगने में पाप न करूं, पैसे को परमार्थ में लगाकर कुछ पुण्य कमाऊँ। पुण्य से कमाओ और कमाने के बाद पुण्य कमाओ। देखो आपको कमाई की बात कितनी अच्छी लगी। मैं दान की बात तो करता नहीं, आप लोग बहुत कजूस हो। आपके पास इतनी कमाई का ऑफर है, आपको समझ में ही नहीं आ रहा। ऑफर दे रहा हूँ कि नहीं दे रहा हूँ? ऐसे लोक में कोई थोड़ा सा ऑफर देता है तो तुरंत मुँह में पानी आ जाता है। अभी तो आपके मुँह सूखे दिख रहे हैं, ये कमाई का अवसर है पुण्य कमाओ, पाप नहीं।
     
    बंधुओं! थोड़ा विचार करो, धन सम्पति का अंत क्या है? पैसा कमाओगे उसके बाद क्या होगा? तुमने पैसा कमाया, जिंदगी भर जोड़ा, उसके बाद एक दिन छोड़कर जाओगे। है और कोई उपाय? या तो देकर जाओगे या छोड़कर जाओगे, लेकर जाने की कोई व्यवस्था तो है नहीं। भैया! छोड़कर जाने से अच्छा है देकर जाना। किसको देना है? अपने बाल-बच्चों को दोगे जो जिंदगी भर गाली दिए, जिन्होंने तुम्हें कोसा, जिन्होंने तुम्हारी उपेक्षा की; उनको दोगे? यदि देकर जाना है तो अच्छे कार्य में लगाकर जाओ। अच्छा! ईमानदारी से बोलना, आप लोगों से एक सवाल करता हूँ- आप अपने बाल बच्चों को अपनी सम्पति देते हो; ये आपकी भावना है या मजबूरी? क्या हो गया? अपनी संतान को आप अपनी सम्पत्ति सौंपते हो, ये तुम्हारी भावना है या मजबूरी? कुछ लोग बोल रहे भावना, कुछ लोग बोल रहे मजबूरी। जिनकी भावना है तो अच्छी बात है। जो लोग भावना बोल रहे हैं मैं उनसे पूछता हूँ अगर ऐसी कोई व्यवस्था हो कि सारी सम्पत्ति अपने साथ लेकर जा सको तो क्या करोगे? अपने बेटे को दोगे या खुद लेकर जाओगे?
     
    क्या हो गया? अगर ऐसा कोई सिस्टम(व्यवस्था) हो कि अपने साथ लेकर जाया जा सकता है तो एक आदमी भी अपने बच्चों को नहीं देगा, सब लेकर जाएँगे, जाएँगे कि नहीं जाएँगे? सब लेकर जाएँगे कि चलो परलोक में काम में आएगा। आप सबने अभी सहमति दी कि हम सारी सम्पति अपने साथ ले जाते तो पक्का बताओ अगर ले जाने की व्यवस्था ही तो आप लेकर जाओगे कि नहीं? हाथ उठाओ, नहीं लेकर जाओगे यहीं छोड़ जाओगे। गजब! तो छोड़ो फिर, अभी छोड़ दी, फिर आगे की बात क्या करना। आज आप लोगों को मजा नहीं आ रहा होगा। एक लड़के ने एक दिन कहा महाराज! आपके सारे प्रवचनों में मजा आता है लेकिन जिस दिन आप पैसे पर प्रवचन करते हैं न तो तकलीफ होती है, छुड़वा न दें, ये हजम नहीं होता। मैं आपसे पूछ रहा हूँ कि ऐसी कोई व्यवस्था हो कि तुम्हारे द्वारा जोड़ी गई सारी सम्पत्ति तुम ले जा सकते हो तो ये बताओ कौन-2 है जो अपनी सम्पत्ति को अपने साथ ले जाने के लिए तैयार है? हाथ उठाओ। कल्पना करो अभी थोड़ी देर के लिए मैं प्रावधान बनाता हूँ। अगर ऐसा प्रावधान हो तो हाथ उठाओ कौन-कौन लेकर जाएँगे? अपना हाथ उठाओ। बंधुओं मैं आपको अपनी सम्पति अपने साथ ले जाने की व्यवस्था देता हूँ, ले जाना चाहते हो? बहुत समझदार हो कोई हाथ नहीं उठा रहा है। आप अपनी सम्पति को अपने साथ ले जा सकते हो। बताओ भारत की करैन्सी (मुद्रा) अमेरिका में काम में आती है क्या? क्या करते हो उसके लिए? आपको रुपयों को डॉलर में एक्सचैन्ज करना (बदलना) होता है। करैन्सी को एक्सचैन्ज करते (बदलते) हैं तो यहाँ का पैसा वहाँ काम में आता है। मैं आपसे कहता हूँ तुम्हारी ये करैन्सी वहाँ काम में नहीं आएगी। यहाँ का पैसा वहाँ काम में नहीं आएगा उसके लिए करैन्सी चैन्ज करना (बदलना) होगी। करैन्सी को चैन्ज करने (बदलने) की प्रक्रिया का नाम ही दान है। तुम दान कर दो सब तुम्हारे साथ जाएगा। बात समझ में आई कि नहीं। अगर तुम लोग वहाँ फटे हाल जाओगे तो भूखों मरोगे।
     
    तुम लोग जब एक देश से दूसरे देश जाते हो तो उस देश की करेंसी लेकर जाते हो कि नहीं? सारी व्यवस्था करके जाते हो। एक-दो महीने के लिए देश से विदेश जाते हो तो पहले पासपोर्ट करते हो। ये तय है कि कुछ दिनों के लिए जाना है फिर भी उसके लिए इतनी तैयारी, पर भैया जो पक्की यात्रा है उसके लिए तुम्हारी झोली में क्या है? अन्टी में कुछ लेकर जाओगे तो वहाँ मालामाल रहोगे नहीं तो भिखारी बने रहोगे। अब बताओ क्या करना है पर लोक में भिखारी बनना है या यहाँ जैसा सेठ बनना है? क्या बनना है बोलो। बोलती बंद हो गई? अरे हम तुमको बनाना चाहते हैं सम्राट पर तुम्हारी मानसिकता इतनी खराब है कि सारे सपने ही मर चुके हैं। तुम भिखारी हो और सारी जिंदगी भिखारी बने रहना चाहते हो। भीतर के साम्राज्य को वे ही अभिव्यक्त कर पाते हैं जो अपने भीतर की उदारता को प्रकट करते हैं। जिनकी विचारधारा उदार होती है वे सम्राट होते हैं और जिनके विचारों में कृपणता होती है वे भिखारी बने रहते हैं। वैचारिक द्ररिद्रता ही भिखारीपन है। अपने हृदय को उदार बनाओ। पुण्यलक्ष्मी को जुटाओ, वह कहाँ से आएगी? दान से आएगी। आज धरती पर तुम्हें जितने भिखारी दिखाई पड़ते हैं वे भिखारी क्यों बने और तुम सेठ क्यों बने कभी विचार किया? वे भिखारी बने तुम सम्पन्न बने क्यों? एक कवि ने लिखा
     
    शिक्षन्ते न हि याचन्ते भिक्षाचरा: गृहे गृहे।
    दीयतां दीयतां नित्यम् अदातुः गतिः ईदृशी॥
    तुम्हारे दरवाजे पर आने वाला भिखारी तुमसे भीख नहीं माँगता, सीख देता है कि भैया! दान दो-दान दो, मैंने दान नहीं दिया इसलिए मेरा ये हाल हो गया। तुम अपने हाल का ख्याल करो, ये सीख है। ये सीख लो, नहीं तो भीख माँगनी पड़ेगी। अपनी अन्टी भरकर, अपनी झोली भरकर जाओ। अपनी सारी करैन्सी एक्सचैन्ज कर ली अभी व्यवस्था है। जिंदगी भर जितना बदलते जाओगे, वह सब निहाल करेगा।
     
    अन्यायोपार्जितं वित्तं स्व जीवनं विनश्यति
    तीसरी है पापलक्ष्मी। पाप और अनाचार करके जो सम्पति कमाई जाती है वह पापलक्ष्मी कहलाती है। गलत कार्य करके, अनैतिकतापूर्ण आचरण करके, हिंसा और हत्या का रास्ता अपनाकर, शोषण करके या अन्य तरह के पापमय रास्ते से जो पैसा कमाते हैं वह पापलक्ष्मी कहलाती है। वह लक्ष्मी इस जीवन में भी दुखी बनाती है और भावी जीवन को भी दुर्गति का पात्र बना देती है। पापलक्ष्मी कभी अनुकरणीय नहीं है। सट्टा, जुआ के माध्यम से, तस्करी के माध्यम से, अन्य प्रकार के अनाचारों से, हिंसा के रास्ते को अपनाकर, और जीव हत्या के माध्यम से कमाया गया पैसा; ये सब पापलक्ष्मी है। जीवन में निर्धनता को स्वीकार कर लेना लेकिन पाप से पैसे का उपार्जन करने की कोशिश कभी मत करना। यहाँ पाप से अभिप्राय है अनैतिकता। नैतिकता से धन सम्पन्नता हो सकती है; ऐसा जरूरी नहीं कि आपको अनैतिकता का ही रास्ता अपनाना पड़े। अनैतिकता के रास्तों को अपनाने वालों की सम्पत्ति पापलक्ष्मी होती है। पापलक्ष्मी कमाने वालों को जब भण्डाफोड़ होता है तो वे कहीं के नहीं रहते। आदमी के साथ बड़ी मुश्किल है। आदमी को पैसा बहुत अच्छा लगता है।
     
    एक बार लक्ष्मी और द्ररिद्रता के बीच एक दूसरे से श्रेष्ठता साबित करने की होड़ हो गई। लक्ष्मी कहे कि मैं पावरफुल(ताकतवर) और द्ररिद्रता कहे मैं पावरफुल। लक्ष्मी ने कहा- मैं जहाँ रहती हूँ सब लोग उसकी पूजा करते हैं और द्ररिद्रता कहे कि सारी दुनिया पर मेरा साम्राज्य है। दोनों में बहस छिड़ गई। तय हुआ कि चलो नगरसेठ से पूछा जाए, वह तय करेगा कि दोनों में कौन सही है, कौन ज्यादा बलशाली है। लक्ष्मी और द्ररिद्रता दोनों सेठ के पास पहुँचीं और पूछा- ये बताओ हम दोनों में किसका बल अधिक है? सेठ ने सोचा बड़ा विचित्र मामला है, एक का पक्ष लिया तो दूसरा नाराज। किसी से भी पंगा लेना ठीक नहीं। उसने बनिया-बुद्धि लगाई और कहाठीक है, मैं निर्णय देता हूँ। सामने जो पेड़ है दोनों उसे छूकर आओ फिर मैं बताऊँगा कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। दोनों पेड़ छूने के लिए गई और दोनों ने एक साथ पेड़ को छू लिया। जब दोनों लौटकर आई तो सेठ ने कहा- तुम दोनों अच्छी हो, तुम दोनों सुंदर हो। उन्होंने पूछा कैसे? तो सेठ ने लक्ष्मी से कहा- लक्ष्मी! जब तुम आती हो तो सुंदर लगती हो और द्ररिद्रता से कहा- तुम जब जाती ही तो सुंदर दिखती हो। लक्ष्मी आती हुई सुंदर दिखती है और द्ररिद्रता जाती हुई सुंदर दिखती है। बंधुओं! गलत रास्ते से धन उपार्जित करने का कभी मत सोची, ये पापलक्ष्मी है। इसे पास मत फटकने दो।
     
    चौथी है अभिशप्तलक्ष्मी। अभिशप्तलक्ष्मी मतलब वह लक्ष्मी जो केवल संग्रहित होकर पड़ी है, जिसका न भोग है न त्याग; बस जोड़-जोड़कर रखी हुई है। ऐसे लोग महाकजूस होते हैं। उनसे धर्मकार्य के लिए एक पैसा भी नहीं निकलता। वे पैसे को परमार्थ के कार्य में लगाना ही नहीं जानते। बड़ी सार्थक पंक्तियाँ हैं -
     
    कजूस बाप को मरता हुआ देखकर,
    बेटे ने बनवा लिया दोगुना बड़ा कप्फन,
    सोचा- मेरे पिता ने
    ठीक से न कुछ खाया, न पहना,
    कम से कम मैं उढ़ा तो सक्यूंगा
    दोगुना बड़ा कफन।
    देखते ही बाप जी चिल्लाया (अभी मरा नहीं था)
    और कहा
    बेटे! ठीक नहीं है तेरी मजी,
    क्यों करता है फिजूलखची?
    कपड़ा; आखिर कपड़ा है, बेकार नहीं जाएगा
    आधा मुझे उढ़ा दे, आधा तेरे काम आ जाएगा।
    ये अभिशप्तलक्ष्मी है जो किसी के काम की नहीं। ऐसी लक्ष्मी से अपने आपको बचाओ। मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जो आज दुनिया में नहीं हैं। मध्य प्रदेश के गंजबासौदा शहर में एक घटना घटी। घटना लगभग 25-30 वर्ष पुरानी है। वहाँ एक पंजाबी दम्पती थे। 'मुन्ना पंजाबी' उनका नाम था। घर में तीसरा कोई नहीं था; नि:संतान थे। ब्याज-बट्टे का काम था। पैसा अपार था। तीन दिन तक उनके घर का दरवाजा नहीं खुला। लोगों ने सोचा- कहीं बाहर गए होंगे। लेकिन देखा तो घर अंदर से बंद है, दरवाजा खुला नहीं। तीन दिन में बदबू आने लगी।
     
    लोगों को संशय हुआ। प्रशासन की उपस्थिति में दरवाजा तोड़ा गया। अंदर गए.....। देखते क्या हैं.....दोनों बूढ़ा-बूढ़ी अपनी सारी सम्पत्ति को फैलाए हुए हैं और दोनों छाती पर हाथ रखकर बैठे हैं। दोनों के प्राण एक साथ निकल गए। अपार सम्पत्ति......। उनको घर की सामग्री को हटाने में, उठाने में नगर पालिका को सात दिन लग गए। जिस आदमी ने जिन्दगी भर केवल पैसा जोड़ा, खाया भी नहीं; खिलाया भी नहीं; एक दिन सब छोड़ कर चला गया। ये है अभिशप्तलक्ष्मी। जिस सम्पत्ति को उन्होंने जीवन भर जोड़ा उसी के पास बैठकर वे चल दिए। ये अभिशप्तलक्ष्मी है जिसका वे भोग नहीं कर सके। वह इतना धनलोलुपी था कि बैण्डवालों का एक बैण्ड भी रख ले, अगर कोई एक जूता भी गिरवी रखना चाहे तो रख ले, इस स्तर का आदमी, सम्पत्ति को भोगे बिना ही मर गया। यदि तुमने धन-सम्पति जोडी और जोड़कर रख ली, उसको स्व-पर के कल्याण में नहीं लगाया तो वह अभिशप्त लक्ष्मी है, वह पैसा तुम्हारे लिए अभिशाप है, तुम्हारे जीवन को बर्बादी के कगार पर पहुँचा देगा। इसलिए पुण्यलक्ष्मी को भागी बनो। भाग्यलक्ष्मी तो जो आ गया सो आ गया वह तुम्हारे हाथ में नहीं, पुण्यलक्ष्मी तुम्हारे हाथ में है। पुण्य से पैसा कमाना और कमाए हुए पैसे को पुण्य में लगाना ये तुम्हारे हाथ में है। तुम जोड़-जोड़ कर रखोगे तो कोई काम नहीं होगा। आचार्य कुमारस्वामी ने स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा में बहुत अच्छी बात लिखी, पहले के जमाने में लोग पैसा जमीन के अंदर गाड़कर रखा करते थे। उन्होंने लिखा-
     
    जो संचिऊण लच्छि धरणियले संठवेदि अइदूरे।
    सो पुरिसो तं लच्छि पाहाण-समाणियं कुणदि।
    जो धन-सम्पति को संगृहीत करके धरती के नीचे गाड़कर रखते हैं वे अपनी सम्पत्ति को पाषाण बना देते हैं। हम लोग कहानियाँ सुनते हैं कि किसी व्यक्ति ने सम्पत्ति कमाकर धरती के अंदर गाडुकर रखा और जरूरत पडने पर निकालना चाहा तो पता चला कि सम्पत्ति वहाँ से कहाँ खिसक गई, कोई पता नहीं। अथवा वह सम्पति कोयला बन गई, कोई पता ही नहीं। अभिशप्तलक्ष्मी के भागी मत बनो। सम्पत्ति पाई है तो उसका लाभ लो। अपनी सम्पदा को अपने जीवन का वरदान बनाओ अभिशाप नहीं। जो अपनी सम्पदा को परमार्थ में लगाते हैं उनकी सम्पदा वरदान बन जाती है और जो सम्पत्ति को संग्रहित करके रख लेते हैं उनकी सम्पति अभिशाप बन जाती है। हमारे यहाँ परिग्रह को पाप कहा है। आपकी जेब में सौ का नोट पड़ा है; जब तक जेब में है तब तक क्या है? परिग्रह है। जेब में पड़ा सौ या दो हजार का नोट परिग्रह है, पैसा जब तक जेब मे पड़ा है तब तक परिग्रह है। परिग्रह क्या है? परिग्रह पाप है। अंदर से बोल रहे हो कि हमको बोलने के लिए बोल रहे हो? महाराज ! बोल नहीं रहे है, बोलना पड़ रहा है, मज़बूरी है सामने बैठे हैं। परिग्रह पाप है, कोई दो मत तो नहीं? अगर उसी पैसे को निकालकर मंदिर की गुल्लक में डाल दिया तो वही पैसा क्या हो गया? दान हो गया। समझ में आया? जोड़कर रखना पाप है और ध म में लगा देना पुण्य है। बस आपकी करैन्सी चैन्ज करने का यही उपाय है। यहाँ से उठाकर यहाँ डाल दो करैन्सी चैन्ज हो जाएगी। पाप को पुण्य में बदल डालने की क्षमता तुम्हारे पास है पर तुम लोग बड़े कजूस हो, पुण्य की बात करते हो और पाप से प्यार करते हो, ये गड़बड़ी है। इस गड़बड़ी से अपने आप को मुक्त कर लो। एक दिन तो दुनिया से जाना ही है।
     
    दो धनपति के बेटे आपस में बात कर रहे थे। एक ने कहा मेरा पिता अपने पीछे दस करोड़ छोड़ गया दूसरे ने कहा मेरे पिता ने मरते समय बीस करोड़ छोड़े। दो भिखारी के बच्चे उनकी बात सुन रहे थे दोनों ने आपस में बात करते हुए कहा- दोनों उल्लू के पट्ठे हैं एक कह रहा है दस करोड़ छोड़ गया दूसरा कह रहा है बीस करोड़ छोड़ गया। 'ये दोनों उल्लू के पट्ठे हैं" ये बात दोनों सेठपुत्रों ने सुन ली, दोनों को बुरा लगा। उन्होंने भिखारी के बेटों से पूछा- ये क्या बोल रहे हो? बोले कुछ नहीं। कैसे कुछ नहीं, हम लोगों को उल्लू का पट्ठा बोला है। बोला- मैंनें कोई गलत नहीं बोला। बोले क्यों? तब बोले- आप में से एक कहता है कि मेरे पिता अपने पीछे दस करोड़ छोड़ कर गए और इनके पिता बीस करोड़ छोड़कर गए; अरे! हमको देखो, हमारे पिता तो अपने पीछे पूरी दुनिया छोड़कर गए हैं। दस-बीस करोड़ की बात तो मामूली है, पूरी दुनिया छोड़कर गए हैं। जीवन की ये सच्चाई जिस दिन समझ में आ जाएगी; उस दिन तुम्हारा जीवन धन्य हो जाएगा। दुनिया छोड़कर जाना है, दस-बीस करोड़ तो बहुत मामूली सी बात है।
     
    बंधुओं! आज मौका है करेंसी एक्सचैन्ज करने का। खुला ऑफर है अच्छी कमाई का। ऑफर का लाभ उठाकर भरपूर कमाओ और अपने जीवन को धन्य करो। अपनी सम्पत्ति परमार्थ के कार्य में लगाओ। जो लगाओगे वही तुम्हारा है बाकी तो सब व्यर्थ है।
     
    जो दे सके
    व्यर्थ को अर्थ।
    वही सिद्ध,
    वही समर्थ।
    व्यर्थ को अर्थ दो तब तुम सिद्ध बनोगे, तब तुम समर्थ बनोगे अन्यथा सब ऐसे ही चला जाएगा। आज की तिथि में अपनी शक्ति के अनुसार कुछ न कुछ दान सबको करना है। हर व्यक्ति को दान करना है चाहे एक बच्चा भी क्यों न हो अपनी पॉकिट मनी से कुछ न कुछ दान जरूर करे। आप सब बहुत ध्यान से इस बात को सुनें, इसे हल्केपन में न लें। ये जीवन के निर्माण का सूत्र है। सूत्र लीजिए संग्रह; अनुग्रह के लिए, परिग्रह: विग्रह के लिए। भाग्यलक्ष्मी के साथ पुण्यलक्ष्मी को बढ़ाना है। पापलक्ष्मी के रास्ते पर कतई नहीं जाना है। अभिशप्तलक्ष्मी के अधिकारी तो हमें कभी बनना ही नहीं ये बात ध्यान में रखना है।
  24. Vidyasagar.Guru
    नई दिल्ली,11 मई (वीएनआई) देश और दुनिया भर में जहा कोरोना महामारी के इस चुनौती भरें काल में महामारी का ईलाज खोजने के साथ साथ लॉक डाउन की वजह से घरों  के अंदर रह कर दुआयें, प्रा्र्थनायें की जा रही हैं, वहीं तपस्वी दार्शनिक संत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की प्रेरणा से कोरोना महामारी से विश्व शान्ति हेतु 72 घंटे के णमोकार महामंत्र के अखंड जाप का आयोजन ऑनलाइन किया गया जिसने 23 देश के 22 हज़ार श्रावको ने संकल्प लेकर जाप किया.पहली बार हुए इस तरह के जाप  के आयोजन  में इन देशों के बुजुर्गों, युवाओं और बच्चों ने भारी उत्साह और भक्तिभाव से  हिस्सेदारी की.
     
     
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    इस  कार्यक्रम के आयोजक विद्यासागर डॉट गुरु के संचालक सौरभ जैन  ने बताया की तीन दिनों को आधा आधा घंटे के 144 स्लॉट में विभाजित कर जाप कराया गया.देश विदेश के समय अनुसार जाप के लिये टाईम स्लॉट तय किये गये. विदेशों में रहे जैन श्रावको ने उन समय के स्लॉट लिए जब भारत में रात थी. इस प्रकार 72  घंटे का अखंड  जाप सरलता पूर्वक संपन्न हुआ.वेबसाइट पर संकल्प एवं  जाप सम्पूर्ण होने के  लाइव डैशबोर्ड बनाये गए, जिस पर तुरंत नाम , संकल्प संख्या इत्यादि की जानकारी सभी को मिलती रही.

     
     देश भर में भी जैन श्रावक अन्य धर्मों के भक्तों की तरह  मंदिरों के बंद होने की वजह से घरों के अंदर रह कर इसी तरह से सामूहि्क रूप से णमोंकार मंत्र और भक्तामर स्तोत्र जैसे धार्मिक अनुष्ठान  सामूहि्क रूप से कर रहे हैं.इसी श्रंखला में गत रविवार को बीकानेर स्थित दिगंबर जैन मंदिर नसियॉ जी के जैन श्रद्धालुओं ने एक नियत समय में अपने अपने घरों में बैठ कर  णंमोंकार मंत्र का पाठ किया, जिस में बड़ी तादाद में श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया. इस सामूहिक पाठ मे सपरिवार हिस्सा लेने वाली श्रीमति साधना अग्रवाल के अनुसार लॉक डाउन की वजह से मंदिर के दर्शन ्नहीं हो पाते हैं, निश्चित तौर पर इस तरह के सामूहिक भक्ति पाठ से ऐसे कठिन समय में एकजुटता बढती हैं, बल मिलता हैं.

    तपस्वी संत  आचार्य विद्या सागर संत इस समय इंदौर प्रवास में हैं. उन्होंने सभी श्रद्धालुओं से लॉक डाउन के सरकारी निर्देशों का पालन कर घरों मे  ही रहने और घरों में ही रह कर पूजा पाठ करने का संदेश दिया हैं. आचार्यश्री ने विशेष तौर से  श्रद्धालुओं को डॉक्टरो, स्वास्थय कर्मियों, पुलिस, सफाई कर्मचारी जैसे कोरोना योद्धाओं का सम्मान करने और उन्हें काम करने के लिये अनुकूल माहौल दिये जाने का संदेश दिया हैं.आचार्यश्री और संतों के आह्वान के चलतें इस माह महावीर जयंती के अवसर पर  देश भर में जैन श्रद्धालुओं ने घरों में रह कर पूजा पाठ की और जरूरत मंदों की मदद की, लंगर आयोजित कियें.
     
    Source http://www.vniindia.com/news-hindi-online-international-namokar-jap
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