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कृत्रिमता, कुटिलता, जटिलता और कपट


Vidyasagar.Guru

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कृत्रिमता, कुटिलता, जटिलता और कपट

मैंने देखा एक साँप तेजी से लहराता हुआ चल रहा था और चलते-चलते जब अपने बिल में प्रवेश करने को हुआ तो एकदम सीधा हो गया और सीधे बिल में प्रवेश कर गया। मेरे मन में बात आई कि मनुष्य दुनिया में टेढ़े-मेढ़े तरीके से चल सकता है लेकिन भीतर वही प्रवेश करता है जो इकदम सीधा होता है। इसी सीध पन का नाम आर्जव है। सीधापन, सरलता बहुत कठिन है। देखा जाए तो आदमी डील-डोल से बहुत सीधा दिखता है लेकिन मनुष्य के भीतर बहुत टेढ़ापन है। किसी ने लिखा कि एक युग था जब लोग टेढ़े रास्तों पर भी सीधा चला करते थे और आज सीधे रास्तों पर भी लोग टेढ़े-मेढ़े चला करते हैं।

 

ये टेढ़ापन क्या है? वक्रता, कुटिलता, मायाचारी हमारे जीवन का टेढ़ापन है। मैं अपनी बात गुरुदेव की एक बात से प्रारम्भ कर रहा हूँ। एक लुहार ने अपनी लौहशाला में प्रवेश किया और प्रवेश करते ही अपनी धोकनी को सुलगाने से पूर्व अर्गन को प्रणाम किया। धौंकनी सुलगाई और उसके बाद एक टेढ़े पड़े लोहे को उसमें डाला। लोहे की मोटी राड थी राड एकदम तप कर लाल हो गई। उसने उसे उठाया और उसके ऊपर घन का प्रहार करना शुरू कर दिया। जब उस लोहे पर और अर्गन पर घन का प्रहार हुआ तो अर्गन उचटकर उस लुहार से बोली कि ये क्या नाटक है थोडी देर पहले तो तुमने मुझे प्रणाम किया अब मुझ पर प्रहार हो रहा है, और जिस सेहन पर रखकर इस लोहे को पीटा जा रहा था लोहे ने कहा जब तुम आए तो सबसे पहले इस घन को और सेहन को प्रणाम किया, इससे ही तुम्हारी रोजी चलती है, जीविका चलती है तो आने पर तो मुझे प्रणाम किया था और अब मेरे ही ऊपर इतना प्रहार क्यों?

 

तब शिल्पी ने कहा- अर्गन से लुहार ने कहा कि तुम्हें तो मैं अब भी प्रणाम करता हूँ लेकिन क्या करूं तुमने लोहे की संगति कर ली इसलिए तुम्हारी पिटाई होती है। शुद्ध अर्गन को तो मैं आज भी पूजता हूँ और लोहे को सम्बोधित करते हुए कहा कि मुझे तुम्हें पीटने का कोई चाव नहीं है लेकिन क्या करूं तुम सीधे होते तो बिल्कुल नहीं पीटता, टेढ़े हो इसलिए पिटाई हो रही है। तुम्हें सीधा करने के लिए मुझे पीटना पड़ रहा है।

 

बंधुओं! बहुत गहरी बात है। समझने की है। जीवन को सीधा वही कर पाते हैं जो साधना के प्रहार को झेलने के लिए तत्पर रहते हैं। और सीधे का ही उपयोग होता है टेढ़े-मेढ़ों को कोई उपयोग नहीं होता। इसलिए जीवन में सीधापन आए टेढ़ापन मिटे ये प्रयास होना चाहिए। सीधापन का मतलब है सहजता और टेढ़ेपन का मतलब है कृत्रिमता। सहजता और कृत्रिमता जो मनुष्य समझ लेता है उसके जीवन में ही सीधापन या सरलता आती है। सहजता के लिए मनुष्य को कुछ अतिरिक्त प्रयत्न करने की जरूरत नहीं होती। आपने अनुभव किया। आप कब ज्यादा खुश रहते हो? जब सहज रहते हो तब या जब किसी प्रकार की कृत्रिमता को ओढ़ लेते हो तब?

 

इस समय आप बैठे हैं। साधारण व्यक्ति भी उसी ड्रेस में हैं और हाई प्रोफाइल कहलाने वाले लोग भी उसी ड्रेस में हैं। आप को कैसा लग रहा है? कुछ अंतर महसूस हो रहा है? क्या ऐसा लग रहा है कि मेरा स्टेटस(प्रतिष्ठा) क्या है, मैं सबके बराबर हूँ? ऐसा कुछ इसलिए नहीं लग रहा क्योंकि इस घड़ी में आप सहजता को अपनाए हुए हो। लेकिन जब आप अपनों के सकिल में जाओ, तथाकथित बड़े लोगों के बीच में रहो और उस समय यदि आप के बीच में कोई दूसरा व्यक्ति आप से हीन स्टेटस(प्रतिष्ठा) वाला आए तो उस समय उसे क्या फीलिंग(अनुभूति) होगी और आप को क्या फीलिंग होती है? कदाचित कभी ऐसी स्थिति आ जाए कि ऐसे लोगों के बीच रहना पड़े और आपक पास ढंग की गाडी न हो, ढंग के कपड़े नहीं ढंग का चश्मा न हो तो आप अपने मन में क्या अनुभव करते ही इनफीरियारिटी (हीनभावना) की फीलिंग होती है। अरे! महाराज जी! कई बार ऐसा लगता है। कपड़े यदि ढंग से प्रेस नहीं हो पाया तो मन ऐसा होता है। क्यों तकलीफ क्यों? तन पर कपड़ा है, सब कुछ है, किसी प्रकार की कमी नहीं है, आप वही हो, आपके गुण वही हैं, आपका व्यवहार वही है और आपका जो वैभव है वह भी वहीं का वहीं हैं, कोई कमी नहीं है लेकिन फिर भी मन में तकलीफ होती है।

 

एक बार प्रवचन चल रहा था। घडी नहीं थी। मैंने इशारा किया कि भाई घड़ी रखो। एक सज्जन ने घड़ी लाकर रख दी। प्रवचन खत्म हुआ मैं उठकर चला गया वह सज्जन मेरे पीछे-पीछे आ गए। पीछे-पीछे आने के बाद थोडी देर बाद उन्हें ख्याल आया कि घड़ी तो वहीं छूट गई। फौरन उठकर गए। संयोगत: घड़ी मिल गई। घड़ी लेकर आए, उन्होंने कहा महाराज घड़ी मिल गई। मैंने कहा- एक घड़ी गई, छोटी सी चीज गई तुम जैसे लोगों के लिए इतना विकल्प करने की क्या जरूरत? महाराज घडी में हीरे जड़े हुए हैं, ये साध |ारण घड़ी नहीं है, इसकी कीमत तीस लाख है। मैं बोला- तीस लाख की घड़ी कोई अलग समय बताती है क्या? बोले महाराज! सवाल उसका नहीं है। ये घडी हम समय देखने के लिए नहीं बांधते हैं; लोगों को अपना समय दिखाने के लिए बांधते हैं। इससे हमारा स्टेटस पता चलता है। उन्होंने अपना चश्मा दिखाया, बोले महाराज आप लोग तो जानते नहीं हो हम लोगों को बहुत कृत्रिमता ओढ़नी पड़ती है। ये जो मेरा चश्मा देख रहे हैं इसका फ्रेम तीन लाख का है। उस पर कोई ब्राण्ड का नाम लिखा था। बोले ये ब्राण्ड है। आम आदमी को इसका कोई पता नहीं लेकिन जब हम किसी बडी डील में बैठते हैं तो कई बार तो आदमी इसके आधार पर ही हमारे स्टेटस का पता लगाता है। मैंने कहा बहुत अच्छी बात कही। भैया! तुम तीन लाख का चश्मा और तीस लाख की घड़ी पहनते हो तो तुम्हारा स्टेटस है; मेरे पास कुछ भी नहीं है, तिल-तुष मात्र भी नहीं है। अब ये बताओ स्टेटस तुम्हारा बड़ा है कि मेरा? बोलो स्टेटस किसका बड़ा है? फिर तुमने ये धारणा क्यों बनाई कि बाहर के टिपटॉप से मेरा स्टेटस बढ़ता है। बात समझ में आ रही है? जो तुमने ओढ़ रखा है वह कृत्रिमता है। जहाँ कृत्रिमता है वहाँ जटिलता है, वहाँ कुटिलता है और वहाँ कपट है।

 

आर्ट अपनायें आटोंफीसियल्टी भगायें

कृत्रिमता, कुटिलता, जटिलता और कपट। आज की चार बातें। कृत्रिमता को तुम जितना ओढोगे तुम्हारे जीवन की सहजता नष्ट होगी, सरलता नष्ट होगी, सत्य खत्म होगा और शांति विनष्ट होगी। कृत्रिमता जीवन की सहजता को, सरलता को, सत्य निष्ठा को और शांति को लील लेती है। आज आदमी इसी कृत्रिमता के चक्कर में मरा जा रहा है। भैया! तुम स्टेटस की बात करते हो। आप कितने ही बड़े आदमी क्यों न हों, किसी के घर में चाहे जैसे घुस सकते हो क्या? नहीं घुस सकते और हम किसी के घर में जाएँ तो अहो भाग्य समझेंगे। समझोगे कि नहीं समझोगे? अगर मैं कहूँ कि ठीक है, आता हूँ चेहरे खिल जाएँगे। हमारे पास कुछ भी नहीं है फिर भी तुम स्वागत के लिए तैयार हो और कोई करोड़पति आदमी अननोन'(अनजान) है, तुम्हारे यहाँ आना चाह रहा है तुम उसके लिए तैयार नहीं क्यों? स्टेटस किसका बड़ा? स्टेटस जो नीचे बैठा है उसका या जो ऊपर बैठा है उसका? वस्तुत: जीवन की सहजता ही जीवन की सच्ची प्रतिष्ठा है। कृत्रिमता जीवन को उलझाती है। मन में द्वन्द्र क्यों होता है? क्योंकि है कुछ और दिखाना कुछ पड़ता है; इसी का नाम तो माया है। हो कुछ और दिखाओ कुछ ये माया जेजिंग का सफयाकत है। सारे गुणक नाटक हाल सन्त कहते हैं इस कृत्रिमता से बचो। कृत्रिमता से मन में द्वन्द्र कैसे होता है बताता हूँ।

 

एक साहित्यकार प्रकृति का सामान्य व्यक्ति था। बीस वर्ष बाद अपने बचपन के मित्र से मिलने गया। उसका मित्र एक बड़ा उद्यमी और हाई प्रोफाइल व्यक्ति था। जैसे ही वह उसके घर पहुँचा वह कहीं जाने की तैयारी में था। बीस साल पुराने मित्र को देखकर उसे बड़ी प्रसन्नता हुई, उसने उसे गले से लगाया, स्वागत किया और कहा भाई! अच्छा होता कि तुम आने से पहले नुझे सूचना देते तो मुझे बहुत अच्छा लगता। आगन्तुक मित्र ने कहा नहीं मैंने तुम्हें सूचना केवल इसलिए नहीं दी क्योंकि मैं तुम्हें सरप्राइज देना चाहता था। बोला बहुत अच्छा लगा तुम मिले लेकिन क्या करूं आज मुझे मेरी किसी जरूरी मीटिंग में जाना है। टाइम हो गया है और तुमसे मिलने की भी इच्छा है। एक काम करो तुम मेरे साथ मेरी गाड़ी में बैठो और मेरे साथ मीटिंग अटैण्ड करो। वह साधारण सा आदमी कुर्ता-पैजामा पहना हुआ और कुर्ता भी फटा मित्र बोला- मेरी सब मीटिंग्स फाइव स्टार होटल्स में हैं। तीन-तीन मीटिंग हैं। तुम ऐसे चलोगे तो थोड़ा गड़बड़ होगा। बोले क्या करूं? मैं तो कपड़े लेकर आया नहीं। कपड़े की कोई चिंता नहीं मेरे कपड़े पहन लो। उसने अपने कपड़े पहना दिए। रास्ते भर बातें करते हुए गए। पहली मीटिंग में जब वह व्यक्ति पहुँचा तो अपने मित्र का परिचय इस प्रकार से दिया ये मेरे बचपन के मित्र हैं, बहुत अच्छे साहित्यकार हैं, इनकी किताबें लोग बहुत रस लेकर ते हैं, बहुत अच्छा इनका व्यक्तित्व है, बहुत अच्छे वक्ता भी आज मुझसे बीस वर्ष बाद मिले हैं। आज मैं इनको लेकर आया बहुत अच्छे हैं इनके पास बहुत सारी अच्छाईयाँ हैं। सब चीजें पास हैं, बस ये जो कपड़े आप देख रहे हैं न वह मेरे हैं। वे कपड़े मेरे हैं एक वाक्य में धो डाला। सामने वाला बड़ा शर्मिदा हुआ और बोला भाई! अब मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊँगा। बोले माफ इसलिए मैंने कह दिया कपड़े मेरे हैं। बोले इसकी क्या जरूरत थी? ठीक है, ठीक है अगली मीटिंग में ध्यान रखेंगा। दूसरी मीटिंग में , खूब प्रशंसा के पुल बांधे और बाद में कहा देख रहे हैं न ये इन्हीं के हैं। कपड़े इन्हीं के हैं अब क्या बोले भैया तुम फिर बाज नहीं आए। बोले मैंने क्या किया? मैंने तो यही बताया कि ये तुम्हारे हैं मेरे नहीं हैं। बोले इसकी भी कया ? बोला ठीक है अगली मीटिंग में मैं इसका भी ध्यान रखूँगा और तीसरी मीटिंग में गया। चर्चा पूरी कर लेने के बाद उसने कहा रहा सवाल कपड़ों का तो कपड़ो के बारे में कुछ नहीं कहूँगा इन्हीं से पूछ लो वे किसके हैं? ये क्या है? कृत्रिमताजन्य द्वन्द्र। आप सहज रहना सीखें, सरल बनें, सत्यनिष्ठ बनें तो जरूर शांति पाओगे। जहाँ कृत्रिमता को आप ओढ़ोगे जीवन में अशांति आएगी, कुटिलता आएगी, जटिलता आएगी, कपट आएगा।

 

समाज में कई ऐसे लोग होते हैं जो होते कुछ हैं और दिखाना कुछ चाहते हैं। यहाँ बैठा हर कोई रोज दर्पण में अपना चेहरा देखता है किसलिए कि मैं अच्छा दिखें। मैं अच्छा दिखें इसकी चिंता हर कोई करता है पर मैं अच्छा बनूँ ऐसा प्रयास कोई नहीं करता। अच्छा दिखें ये सोच कृत्रिमता है और अच्छा बनूँ ये सोच सरलता है। अच्छा बनोगे दुनिया अपने आप अच्छा मानेगी और अच्छा दिखोगे या अच्छा दिखाने की कोशिश करोगे तो कोई गारंटी नहीं कि तुम अच्छा बन भी सके या नहीं। ऊपर से अच्छा बनने में कोई लाभ नहीं। भीतर से अच्छाई प्रकट करो सिवाय लाभ के और कुछ नहीं होगा। अपने भीतर अच्छाई की अभिव्यक्ति होनी चाहिए। अच्छाई अपने गुणों से प्रकट होती है। तुम जैसे हो वैसे ही रहो। साधारण हो तो साधारण ही बने रहो। अगर कोई साधारण व्यक्ति साधारण रूप से भी प्रस्तुत होता है तो कभी-कभी उसका असाधारण असर पड़ जाता है और कोई सामान्य व्यक्ति अपने आप को विशिष्ट बनाने की कोशिश करता है तो कभी-कभी उसकी बड़ी हास्यापद स्थिति बन जाती है। देखो साधारण आदमी भी कई बार कितना असाधारण काम कर देता है।

 

एक जगह किसी फैक्ट्री की एक लाइन जा रही थी। उस लाइन में तार डालने थे। पूरी की पूरी लाइन ऊपर-नीचे जिग-जेग आकार में थी। अब उसमें तार कैसे डाला जाए? बड़े-बड़े इंजीनियर दिमाग लगा रहे कि इसमें तार कैसे डालें? कौन सा उपकरण लगाएँ जिससे ये तार इस पार से उस पार चला जाए। लगभग सौ मीटर की तार उस के अंदर डालनी थी। सभी उधेड़बुन में लगे थे। एक गाय चराने वाला बच्चा वहीं बैठा हुआ बहुत देर से देख रहा था कि ये लोग कुछ मशक्कत कर रहे हैं। उसने कहा आप लोग कहें तो मैं दो मिनट में आपकी तार बाहर निकाल दूँगा। सब हँसे बोले तुम गँवार आदमी हम इतने बड़े-बड़े इंजीनियर फैल हो गए। तुम क्या निकालोगे? बोला मुझे नहीं मालूम आपकी इंजीनियरिंग क्या होती है लेकिन आप अगर मुझसे कहो तो मैं आपकी तार दो मिनट में बाहर निकाल दूँगा। बोले कैसे करोगे? बोला कर दूँगा। करके बताओ।

 

उसने एक चूहा पकड़ा। उसकी पूंछ में कसकर तार बाँध दिया और चूहे को उसके अंदर घुसा दिया। चूहा इस पार से घुसा उस पार से निकल गया और उस पार से तार बाहर आ गया। सब हतप्रभ रह गए। सामान्य आदमी ने भी असमान्य काम कर दिया और विशिष्ट आदमी भी फल हो गए तब उन्हें लगा कि हमें गुरूर है अपनी इंजीनियरिंग का। लेकिन ये इंजीनियरिंग भी भीतरी प्रतिभा के आगे केल है। हम पाँच साल पढ़ने के बाद भी जो नहीं सीख पाए वह एक निरक्षर आदमी ने हमें एक पल में सिखा दिया। टैक्नोलॉजी जो काम नहीं करती; जुगाड़ से वह काम हो जाता है।

 

बंधुओं! ये बात केवल समझने के लिए मैं आपसे कह रहा हैं कि जीवन में सहजता को अंगीकार करोगे तो समुन्नति होगी और कृत्रिमता के रास्ते को अपनाओगे तो सदैव दुखी होओगे। जीवन में कृत्रिमता मत लाओ। जो तुम्हारी हस्ती है, जो तुम्हारी हैसियत है उसी के अनुरूप जिओ। कृत्रिमता अशांति को उत्पन्न करती है। कई लोग होते हैं जो सामान्य हस्ती और हैसियत के होते हैं लेकिन बडे-बड़े करोड़पतियों से होड़ करते हैं। मैं वैसा बनूँ, उनकी तरह सब कुछ करूं। क्षमता तो है नहीं और दिखावा सब करना है। कृत्रिमता ही दिखावा करती है। घर में शादी है, शादी में लगाने की ताकत दस लाख की है पर समाज में एक अपना रेपुटेशन बनाना चाहता है। मेरे अगल-बगल, आस-पड़ोस के लोग इतना लगाए मैं उससे ज्यादा लगाऊँ। ये दिखावा है। दस की ताकत है पचास का खर्चा सिर पर उठा लिया, होगा क्या? परेशानी ही होगी।

 

मैं एक स्थान पर था। चातुमास में सब तरह के लोग होते हैं। शुरु-शुरु में तो पहचान में आते नहीं, आदमियों को पहचानना बड़ा मुश्किल होता है। पल-पल में रूप बदलते हैं। हमारे पास तो सब बड़े अच्छे भक्त बनकर आते हैं। एक लड़का था, गले में मोटी चैन डाले, हाथ में अंगूठियाँ पहने डील-डौल से दिखता था कि ये लडका सम्पन्न घराने का होगा। कोई भी आए उनके साथ खर्चा करे, जी भरकर करे। दो-ढाई महीना चतुर्मास के बीते तो मालूम पड़ा कि उस आदमी के ऊपर बीस लाख का कर्जा है और कर्जा भी किससे लिया है मुझसे जुड़े हुए लोगों से। लोग देख रहे हैं महाराज का बड़ा भक्त है, अच्छा खर्चा कर रहा है। किसी से लाख लिया, किसी से पचास हजार, किसी से दो लाख, ढाई लाख अधिकतम लिया। आपको चार दिन बाद लौटा देंगे, आठ दिन बाद लौटा देंगे, मेरा बिल आने वाला है, मेरा पैमेण्ट आने वाला है, मैं चुका दूँगा। लोगों के बीच अपने आप को ऐसे प्रस्तुत करता था कि मैं एक बड़ा कान्ट्रेक्टर और सप्लायर हूँ और डीलडौल देखकर लोग विश्वास कर लेते। अब उसकी स्थिति ऐसी हो गई कि इतने रुपये की देनदारी चुका नहीं सकता क्योंकि उसकी व्यवस्था नहीं। बात मेरे कान तक आई। मैंने उसे बुलाया। हम बोले- भैया! तुमने इतना कर्जा क्यों लिया? बोला- महाराज! गलती हो गई। बोले गलती क्यों हो गई? बोला- एक सनक चढ़ गई। क्या सनक चढ़ी? बोलेमहाराज! मैंने सोचा आप आ रहे हो, आपका सान्निध्य मिले और समाज में मैं अपनी रेपुटेशन बनाऊँ, सबके बीच करोड़पतियों की तरह जाना जाऊ, इस सनक को चक्कर म' में खचा करता रहा। सोचता था कहीं न कहीं से कमा लूँगा और सबको चुका दूँगा। आज मेरी हालत ऐसी है। मैंने कहा- तू अपने आप को करोड़पति के रूप में प्रतिष्ठित करना चाहता था, तूने जो हरकत की उससे तू रोड़पति के रूप में समाज में जाहिर होने जा रहा है। अब सोच तरी ये हरकत ठीक थी या नहीं। मैंने उसे समझाया और कहा अब अपनी प्रतिभा का सदुपयोग करो, अपने व्यापार-व्यवसाय में अपना चित्त लगाओ और साथ में जितना बने धर्म ध्यान करो। पहला लक्ष्य बनाओ जिनका पैसा लिया है उनको लौटाना है। उस आदमी ने अपने जीवन को बदला, अपनी असलियत पर आया। आज उसकी स्थिति बहुत अच्छी है। जीवन को मोड़ने के बाद बहुत तरक्की की, सबका पैसा चुका दिया और ये तय कर लिया कि आज के बाद मैं अपनी क्षमता से आगे कभी नहीं बढूँगा।

 

बंधुओं मैं आपको पहला सूत्र देता हूँ आज की तारीख में अगर अपने जीवन में सरलता, शांति, सत्यनिष्ठा और सहजता को प्रकट करना चाहते हो, जीवन का रस लेना चाहते हो तो कृत्रिमता को तिलांजलि दे दो। किसी प्रकार की कृत्रिमता को अपने ऊपर हावी मत होने दो। ये एक माया है। माया का निकृष्ट रूप जो तुम्हारे मन की शांति को लील लेता है। जितने हो, जैसे ही वैसे ही रही चिंता की बात नहीं। लेकिन कृत्रिमता को अपनाओगे तो सिवाय चिंता के और कुछ नहीं होगा।

 

सीधी-सच्ची बात में मत रख टेढ़े अर्थ

दूसरी बात है कुटिलता। जीवन में कुटिलता का मतलब चालबाजी। लोग बड़े चालबाज होते हैं। हर जगह चालबाजियाँ करते हैं और बड़ी चालाकी से करते हैं। कई लोग ऐसे होते हैं जो सोचते हैं कि मुझसे बड़ा चालबाज कोई है ही नहीं। पर कई बार ऐसे लोगों को मुँह की खानी पड़ती है।

 

एक आदमी ने अपना खेत बेचा। खरीदने वाले ने खेत खरीद लिया। उसमें कुआँ भी था। अब कुआँ सहित खेत खरीदा। फसल बोई और कुएँ से पानी लेने के लिए गया तो सामने वाला आदमी बड़ा कुटिल था। उसने कहा- भैया! हमने खेत बेंचा है, कुआँ बेचा है पर पानी नहीं बेंचा। तुम पानी नहीं ले सकते। अगर तुम पानी लोगो तो उसका टैक्स देना पड़ेगा, पैसा देना पड़ेगा। सामने वाला बड़ी उलझन में कि कुएँ को देखकर मैंने फसल बोई और ये पानी लेने से इनकार करता है। अगर पानी नहीं दूँगा तो फसल नष्ट हो जाएगी। एक दिन का काम नहीं है। हमेशा फसल को पानी देना पड़ेगा और अगर एक बार मैंने पानी के पैसे देना स्वीकार लिया तो हर बार पैसे देने पड़ेंगे। पैसे किस बात के दें? जब मैंने कुआँ खरीदा है तो पानी भी मेरा ही होना चाहिए। लेकिन वह कहता है कुआँ बेचा है, पानी नहीं बेचा।

 

कई बार शेर को सवा सेर मिल जाता है। वह अपने मित्र के पास गया, अपनी व्यथा सुनाई कि सामने वाला मुझे बहुत परेशान करता है कोई उपाय बताओ। वह बोला ठीक है। चलो मैं चलता हूँ। मित्र वकील था। उसके पास एक नोटिस लेकर गया और कहा कि भैया! आपने कुआँ बेच दिया है न? तो कुआँ हमारा हो गया। अब आप अपना पानी निकालइए। आप जितने दिन पानी रखोगे उतने दिन का हजार रुपये रोज के हिसाब से किराया लगेगा। और सुनो पानी निकालते समय ध्यान रखना एक बूंद पानी भी मेरे खेत में नहीं गिरना चाहिए और सारा पानी निकाली। उसको समझ में आ गया कि कुटिलता का क्या फल मिलता है। हाथ जोड़कर बोलाभैया! कुआँ भी तुम्हारा और पानी भी तुम्हारा, हमें मुक्ति दो।

 

बंधुओं! इस तरह की कुटिलता, इस तरह की चालबाजियाँ कई तरह से लोग करते हैं। कुटिलता शब्द बहुत व्यापक है। कुटिलता में व्यक्ति जालसाजी करता है, कुटिलता से ग्रस्त व्यक्ति कई तरह के प्रपंच रचता है, कुटिलता से ग्रस्त व्यक्ति कई तरह के षडयंत्र रचता है और फरेब करता है। ये सब कुटिलता के अंतर्गत आते हैं। एक बात मन में धार लो मैं अपने जीवन में किसी के साथ इस तरह की कुटिलता नहीं करूंगा जिससे उसे कोई हानि उठानी पडे। चाहे आर्थिक हानि हो, चाहे सामाजिक हानि हो या अन्य किसी प्रकार की हानि उठानी पड़ती हो। मैं ऐसी कुटिलता अपने जीवन में कभी नहीं करूंगा जिससे किसी को हानि उठानी पड़े। कुटिलता क्या है इसको बताने की ज्यादा जरूरत नहीं है। सब जानते हैं। एक नीतिकार ने लिखा

 

कुटिलमतिः कुटिलगतिः कुटिलशील-सम्पन्नः।

सर्वमप्यस्यास्ति कुटिल कुटिलस्य कुटिलभावेन।

जिसकी चाल कुटिल, जिसकी ढाल कुटिल, जिसकी मति कुटिल यानि जिसकी बुद्धि कुटिल, जिसकी प्रवृत्ति कुटिल जो सब जगह केवल कुटिल, कुटिल, कुटिल यानि टेढ़ी दृष्टि से देखे वह कुटिल है। कुटिल व्यक्ति हर चीज में अपना उल्लू सीधा करना चाहता है। ऊपर से बड़ा अच्छा दिखता है लेकिन अंदर से बहुत कुटिल।

 

सन्त कहते हैं किसी भी व्यक्ति के बाहरी आचरण से उसका अनुमान मत लगाना। वस्तुत: व्यक्ति का भीतरी अभिप्राय ही उसकी पहचान का आधार होता है। बाहर से मीठा आदमी अंदर से बहुत बड़ा धोखेबाज भी हो सकता है इसलिए उसे पहचानने की कोशिश करो और जब तक किसी को पूरी तरह पहचान न लो तब तक किसी पर भरोसा भी मत करो। पूरी तरह पहचानने के बाद ही किसी पर भरोसा करना चाहिए अन्यथा लोग कई बार धोखा खा जाते हैं। धोखा देने वाले लोग भी इस दुनिया में बहुत हैं और धोखा खाने वाले लोग भी इस दुनिया में बहुत हैं। इनसे अपने आपको बचाइए। जीवन में कभी किसी प्रकार की कुटिलता नहीं करें। कुटिलता का मतलब अगर किसी से कोई जमीन जायदाद आप खरीदना चाहते हो तो फर्जी दस्तावेज को आधार पर मत खरीदो। किसी की भूमि, भवन आदि पर अवैध कब्जा न करने का मन में संकल्प लो। किसी की संपत्ति हड़पने की कोशिश मत करो। किसी से नाजायज फायदा उठाने की कोशिश मत करो। ये कुटिलता है। व्यापार को व्यापार की नीति से करो। अपनी प्रामाणिकता को सुरक्षित रखते हुए जो मनुष्य जीता है उसके जीवन में कुटिलता कभी नहीं आती। और जिस मनुष्य के जीवन में कुटिलता होती है वह व्यक्ति कभी भी प्रामाणिक नहीं बन सकता इसलिए अपने आप को कुटिलता से बचाइए।

 

अँधियारे चौराहे की खुद में उलझी गलियाँ

तीसरी बात है जटिलता। जटिलता यानि जिसका जीवन उलझा हुआ है। जिस व्यक्ति को समझना बहुत कठिन हो। कुछ लोग होते हैं जिनका जीवन बहुत गूढ़ होता है उनके बारे में कुछ पहचानना ही मुश्किल होता है। वह क्या कह रहा है कोई पता नहीं। हम लोगों के सम्पक में भी बहुत से ऐसे लोग आते हैं जो सामने-सामने तो बहुत अच्छा बोलते हैं लेकिन उनके आशय को समझना बड़ा मुश्किल हो जाता है कि उनके मन में क्या है। व्यक्ति के मन की जो जटिलता है, वह बड़ी ग्रंथि है जैसे बांस की जड़ होती है। बांस की जड़ एक दूसरे से घुली-मिली रहती है उसकी भाल लेना मुश्किल है। ऐसे ही कुछ व्यक्ति इस मिजाज के होते हैं जिनके अंतर्मन को पढ़ पाना बहुत कठिन होता है। बाहर से देखने में बहुत अच्छे लगते हैं, मृदुभाषी, विनम्र दिखते हैं लेकिन अंदर से उनकी स्थिति बड़ी जटिल होती है। जिसे पहचान पाना मुश्किल हो जाए उसका नाम है जटिलता। ऐसा व्यक्ति बाहर से हँसता हुआ दिखता है पर अंदर से उसकी आत्मा सदैव रोती रहती है। जीवन में कभी ऐसी जटिलता मत लाओ।

 

मैं आपसे कहता हूँ कि ठीक है आप इतने सरल न बनो कि आपकी सब बाते प्रकट हो जाएँ और आप परेशानी में आ जाओ लेकिन इतने जटिल भी मत बनो कि आपको समझ पाना ही मुश्किल हो जाए कि ये आदमी क्या है और कैसा है। अपने अभिप्राय को ज्यादा गूढ़ बनाना एक प्रकार की अज्ञानता है। ऐसा व्यक्ति अक्सर आर्तध्यान में निमग्न होता है। इसलिए अपने अभिप्राय को ज्यादा गूढ़ मत बनाओ। अभिप्राय स्पष्ट रखो।

 

एक शब्द आता है स्ट्रेटफार्वड, साफ-सुथरा। ऐसे आदमी की बात बिल्कुल ठीक लगती है। लेकिन कुछ लोग होते हैं जो बोलते कुछ हैं और करते कुछ हैं।

 

एक कुम्हार था। उसका गधा बीमार था। उसको गधे की आवश्यकता पड़ी तो पड़ोसी के घर गया और बोला- भैया! मेरा गधा बीमार है, मुझे मिट्टी लेने जाना है तुम अपना गधा दे दो। उसने बड़ा प्रेम प्रकट करते हुए कहा- क्या बताऊँ गधा तो मैं तुम्हें दे देता लेकिन मेरा गधा चरने के लिए जंगल गया हुआ है। उसने अपना वाक्य पूरा ही नहीं किया कि घर के पिछवाड़े में बंधा हुआ गधा जोर-जोर से रेंकने लगा। जब गधा रेंकने लगा तो कुम्हार बोलाभाई! तुम कह रहे हो गधा नहीं है और गधा भीतर बंधा हुआ है। वह रैंक रहा है। बोला कैसी बात करते ही जी आदमी की बात पर भरोसा नहीं, जानवर की बात पर भरोसा करते हो। ये प्रवृत्ति ठीक नहीं है।

 

लूकिंग लन्दन, टाकिंग टोक्यो 

बंधुओं! मैं आपसे कहना चाहता हूँ जटिल मत बनो। मन की गुत्थियाँ खोलो। कुटिलता और जटिलता दुनिया में कदाचित रखी तो रखो। पर चार जगह बिल्कुल मत रखो। कहाँ-कहाँ? माता-पिता के सामने कभी कुटिलता न लाओ। माँ-बाप के सामने कभी जटिल प्रति तुम्हें सारी जिंदगी कृतज्ञ रहना चाहिए। उनके सामने कुछ भी छिपाओ नहीं और उनसे कोई भी छल मत करो। आजकल ऐसे भी लोग हैं जो माता-पिता के सामने ही कुटिलता, जटिलता और कपटपूर्ण व्यवहार करते हैं। इसकी शुरुआत बचपन से ही हो जाती है। आज आप किसी भी बच्चे या बच्ची से उसका मोबाइल माँगों और मैसेज डिलीट किए बिना दे दे तो मुझे बताओ। सब अपना सिक्यूरिटी कोड डालकर (लगाकर) रखते हैं। आप उसके मोबाइल को खंगाल ही नहीं सकते। ये क्या है? किस बात का इन्डीकेशन (संकेत) है। ये जटिलता, ये कुटिलता तुम्हें कहाँ ले जाएगी? भटकाए बिना नहीं रहेगी।

 

चार बाते मैंने कहीं। कृत्रिमता पूरे लोक में नहीं होनी चाहिए। कुटिलता से सब जगह बचना चाहिए। जटिलता जीवन में नहीं आने देनी चाहिए और कपट कभी नहीं करना चाहिए। जिन चार की बात मैं करने जा रहा हूँ इनके साथ तो कभी भी नहीं होनी चाहिए। माँ-बाप के साथ कुटिलता, उनके साथ छल.? आज दुनिया में ऐसे बहुत लोग हैं जो माता-पिता की सम्पति से उन्हें ही बेदखल कर देते हैं। फर्जी दस्तावेज बनाकर हड़प रहे हैं। जिनकी दृष्टि केवल सम्पत्ति पर होती है वे आत्मा को बेच देते हैं। उनकी अंतर-आत्मा मर चुकी होती है। वे किसी भी हद तक उतरने के लिए तैयार हो जाते हैं। मैं ऐसे अनेक लोगों को जानता हूँ जिन्होने माँ-बाप के साथ कुटिल व्यवहार करके उन्हें उनकी ही सम्पति से बेदखल कर दिया।

 

मैं सम्मेद शिखर जी में था। देखो माँ क्या होती है? और आज की कलयुगी संतान की दशा क्या है। बड़ी मुश्किल से उसको अंदर आने का अवसर मिला। माँ ने मेरे कमरे में आकर मुझसे कहामहाराज जी! मैं आपसे दो बात करने के लिए आई हूँ। मैं रोज आपका शंका-समाधान सुनती हूँ और मेरी इच्छा है कि मैं गुणायतन में अपना कुछ योगदान दूँ। महाराज जी मैं ज्यादा तो नहीं दे सकती पर थोड़ी सी धनराशि देना चाहती हूँ। यदि गुणायतन में लग जाएगा तो मैं अपने आपको कृतार्थ समझेंगी। उसकी भाषा से मुझे लगा कि ये महिला पढ़ी लिखी है। उम्र सत्तर साल की थी। मैंने कहाठीक है, आपको जो देना है ऑफिस में दे दी। बोली नहीं महाराज! मैं अपने भाव आपके सामने निवेदन करना चाहती हूँ। मैं कुछ राशि अभी ढूँगी और बाकी राशि क्या दो-तीन साल में दे सकती हूँ? मैंने कहा- दान देना है तो दो। दान देने के लिए शर्त नहीं होती। तुम ऑफिस में जाकर सम्पर्क कर लो। उस महिला ने एक लाख की दान राशि बोली। उसके डीलडौल को देखकर लग रहा था कि बड़ी साधारण स्त्री है, इतनी राशि दे पाएगी या नहीं दे पाएगी। मैंने कहा- तुम क्या करती हो इतना पैसा कहाँ से दोगी? बोली कुछ नहीं महाराज मैं टीचर थी। मुझे पैशन मिलती है मैं इसे धीरे-धीरे चुका दूँगी।

 

मैंने पूछा- तुम्हारे परिवार में और कौन है? बोली महाराज मेरे पति की मृत्यु हो गई और मेरी एक बेटी है। बेटी के पास रहती हूँ। तुम्हारा बेटा नहीं है क्या? बेटे की बात सुनते ही उसकी आँखों से आँसू आने लगे। मैंने केवल इतना पूछा तुम्हारा बेटा नहीं है और उसकी आँखों से आँसू आने लगे। मैंने पूछा क्यों क्या बात हो गई? बोली महाराज क्या बताऊँ? मेरे कर्म कैसे फूटे। एक बेटा है जब तक उसकी शादी नहीं हुई तब तक तो बहुत अच्छा था और सारे काम करता था। स्थान का नाम नहीं बता रहा हूँ उत्तरप्रदेश की घटना है। शादी से पहले सब कुछ अच्छा था पर महाराज बाद में उसने मेरी सारी सम्पत्ति पर अपना अधिकार जमा लिया, मुझे मेरे ही घर से निकाल दिया। पहले तो उसने यह कहकर मेरे खेत लिए कि मुझे दुकान में रुपयों की जरूरत है। मैंने खेत बेंच दिया। फिर उसने कहा मुझे मकान बैंक में रखकर अपनी सी.सी. लेना है। मैंने मकान भी उसको दे दिया। महाराज! उसके बाद मेरा उस घर में रहना भी उसे बहुत बुरा लगता था। धीरे-धीरे उसने मेरे साथ दुव्र्यवहार करना शुरु कर दिया, मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने उससे कहा बेटे ऐसा क्यों करते हो तो उसने मुझे घर से निकल जाने के लिए कहा। मैं अपने बेटे से यह कहकर घर से निकल आई कि बेटा अगर मेरे घर से निकलने से तुझे खुशी मिलती है तो तेरी खुशी के लिए मैं घर छोड़ने के लिए भी तैयार हूँ और महाराज जी! मैं उस दिन घर से निकल गई अब मैं मेरी बेटी के पास रहती हूँ। एक कमरे में अपना गुजारा कर लेती हूँ। ये तो अच्छा है कि मैं टीचर थी, आज मुझे पैशन मिलती है। अगर ये पैशन नहीं मिलती तो शायद मैं दाने-दाने को मोहताज हो जाती।

 

बंधुओं! ये कोई उदाहरण नहीं; एक माँ की वेदना है। माँ कहते हुए निकल रही है कि मेरे घर से निकलने में तुझे खुशी मिलती है तो इससे अच्छी बात नहीं, चल मैं घर से निकल जाती हूँ। मैंने उससे कहा कि तुम्हारे मन में तुम्हारे बेटे के प्रति कोई शिकायत नहीं? वह बोली- महाराज! मैं बहुत खुश हूँ। मैं तो यही चाहती हूँ कि आप उसको ऐसा आशीर्वाद दें कि वह खूब फले-फूले, आगे बढ़े। ये है माँ जो उस बच्चे के प्रति भी ऐसी सद्भावना रखती है जिसने उसका सब कुछ छीन लिया।

 

क्या ये कुटिलता का निकृष्ट रूप नहीं है? हो सकता है इस सभा में भी ऐसे कुटिल व्यक्ति बैठे हों या ऐसे कोई व्यक्ति इस कार्यक्रम को सुन रहे हों। मन से कुटिलता को निकाल डाली। आज पर्युषण पर्व के अवसर पर तुम यहाँ आए हो, तुम्हारे हृदय में सरलता है तो तय करो माँ-बाप से कभी कुटिलता नहीं करूंगा। ध्यान रखना भौतिक संयोगों की प्राप्ति कुटिलता से नहीं पुण्योदय से होती है। तुम्हारा पुण्योदय होगा तो सारे संयोग अनुकूल हो जाएँगे और पापोदय होगा तो तुम कितने भी खटकर्म करो तुम्हें सफलता नहीं मिलेगी। जिसका पुण्योदय है उसे इस कुटिलता की जरूरत नहीं। अपने जीवन को कुटिलता से बचाओ, जटिलता से बचो। माँ-बाप से कुछ मत छिपाओ। ये बात मैं खासकर कम उम्र के बच्चे-बच्चियों से कहना चाहता हूँ जो प्राय: अपने माता-पिता से बातें छिपाकर रखना चाहते हैं। छिपाइए मत उन्हें बताईए। आज कल बच्चे-बच्चियों की बातें सबको पता होती हैं माँ-बाप को छोड़कर। जब तक माँ-बाप तक बात पहुँचती है तब तक पानी सिर से ऊपर हो चुका होता है। चक्रव्यूह में फस जाते हैं जिससे बाहर निकलने का कोई उपाय शेष नहीं रहता।

 

मात–पिता से रक्खो मत पर्दा

एक लड़की मेरे पास आई। उस लड़की को देखकर मेरे मन में आया कि जरूर इस लड़की के जीवन में कुछ गड़बड़ी है। मैंने बातचीत की तो पता चला लड़की सी.ए. कम्पलीट कर रही थी। उसका एक ग्रुप बचा था। दिल्ली में एक जगह पी. जी. में रहती थी। उस लड़की ने कहा महाराज जी! पाँच साल पहले मैं एक लड़के के चक्कर में फस गई और उस लड़के ने मुझे इस तरह फसाया कि हर तरह से ब्लैकमेल करता रहा। आज भी मुझे ब्लैकमेल कर रहा है। मैं उसके चुगल से बचना चाहती हूँ लेकिन मुझे कोई रास्ता नहीं दिखता, मैं किसे बताऊँ। उसने अपनी सारी बातें मुझे बताई। मैंने कहा- तुमने आपे माँ-बाप को क्यों नहीं बताया? बोली महाराज जी! माँ-बाप को बताने की हिम्मत नहीं। मैंने कहा- अपने भाई को बता देती। बोली भाई भी इस बात को बर्दाश्त नहीं कर सकता इसलिए नहीं बताया। माँ-बाप और भाई से छिपाने के चक्कर में सामने वाले ने जैसा कहा वैसा ही करती गई। पाँच साल तक उसका एक प्रकार से शोषण होता रहा। मैंने कहा ऐसा करोगी तो तुम्हारा जीवन ही नरक बन जाएगा। तुम्हें आगे आना चाहिए, तुम्हें ये सोचना चाहिए कि माता-पिता से बड़ा इस दुनिया में कोई नहीं होता। माँ-बाप, माँ-बाप होते हैं। उन्होंने तुम्हें जन्म दिया, जीवन दिया, संस्कार दिए। जिस दिन पहली गलती तुमसे हुई अगर उसी दिन अपने माँ-बाप से बता देती तो आज तुम्हारी इतनी भयानक स्थिति नहीं होती। मैंने उसे समझाया। उसके माता-पिता मुझसे परिचित थे। वह कह रही थी महाराज आप मत बताइएगा। आप तो मुझे कोई रास्ता बताइए कि इस चक्रव्यूह से कैसे निकल सकू? मैंने कहा- मैं तुम्हें चक्रव्यूह से नहीं निकाल सकता। तुम्हें चक्रव्यूह से अगर कोई निकाल सकता है तो तुम्हारे माँ-बाप ही निकाल सकते हैं। महाराज जी! वे बर्दाश्त नहीं कर पाएँगे। उनको बड़ी तकलीफ होगी। मैंने कहा- तुम चिंता मत करो मैं तुम्हारे ही सामने अपनी तरह से तुम्हारी बातें उनको बताऊँगा। जितनी बातें मुझे बतानी हैं उतनी ही बताऊँगा। लेकिन तुम ये जान लो कि मैं तुम्हारे पिताजी को जानता हूँ, वे इतने क्षमतावान हैं कि तुम्हें सब प्रकार के दुश्चक्र से बाहर निकाल सकते हैं। मैंने लड़की के पिता को बुलाया। पहले तो उसे समझाया। बेटी में जो अच्छाइयाँ भी वे बताई और एक बात के लिए संकल्पित कराया कि जो बातें मैं तुम्हें बता रहा हूँ उसके बारे में अपनी बेटी से कोई भी सवाल नहीं करोगे। बेटी तुम्हें जितना बता दे उतना सुन लेना। तुम्हें अपनी बेटी को कोई सजा नहीं देना है, सीख देना है। इस बात का हमेशा ध्यान रखना है तुम बेटी के पिता हो पुलिस नहीं। तुम पिता की भूमिका निभाना और अगर तुम्हारी बेटी से कोई गलती हो गई हो तो उसे रास्ते पर लाना तुम्हारा पहला दायित्व है। इस भय के कारण कि पापा डाटेंगे, बर्दाश्त नहीं कर पाएँगे इसलिए तुमसे छिपाया है। अगर उसके मन में यही बात बनी रहेगी तो बातें छिपाती रहेगी और बहुत गड़बड़ हो जाएगी।

 

पिता ने अपनी बेटी को विश्वास दिलाया, बेटी ने अपने दिल की बात कही और उस पिता ने कुशलता से अपनी बेटी को पूरे चक्रव्यूह से बाहर निकाल लिया। आज खुशहाल जीवन जी रही है। मैं कहना चाहता हूँ चाहे लड़का हो या लड़की, कोई भी हो जीवन में कभी कोई गलती मत करो और अगर गलती हो जाए तो माँ-बाप से कभी मत छिपाओ। माता पिता को भी चाहिए कि बच्चे अगर कोई गलती करें तो वातावरण का प्रभाव मानकर उस गलती को माफ करो और उस बच्चे को साफ करने का रास्ता बताओ ताकि वह अपना शुद्ध जीवन जी सके, सार्थक जीवन जी सके। उसके हृदय में तुम्हारे प्रति भरोसा आ सके ये बहुत बड़ी जरूरत है।

 

माँ-बाप के साथ कुटिलता मत रखो। माँ-बाप के साथ जटिलता मत रखो। माँ-बाप को साथ कपट मत करो। गुरु को सामने कुटिलता मत रखना। गुरु को समक्ष कुटिल बनोगे तो जीवन भर कुटिल ही बने रहोगे। गुरु के समक्ष सरल हृदय लेकर आओ। उनके सामने कुटिलता, जटिलता, कपट या कृत्रिमता लेकर जाओगे तो तुम धर्म से दूर हो जाओगे। कहावत है 

 

गुरु से झूठ मित्र से चोरी।

के ही निर्धन के हो कोरी।

जिनके चरणों में अपना शीश झुकाते हो, जिनको तुम अपने जीवन का आदर्श मानते हो, जिनकी पूजा करते हो, उनके पास भी अगर तुम किसी तरह का दुराव-छिपाव रखोगे, उनसे झूठ बोलोगे तो जीवन में कभी सफल नहीं हो सकोगे। वहाँ निश्छल मन से जाओ क्योंकि गुरु भी निश्छल होते हैं। निश्छल व्यक्ति के पास जब निश्छल मन से जाओगे तभी अपने जीवन में सफल हो पाओगे। वहाँ छल लेकर जाओगे तो दुनिया भर में छले जाओगे। ध्यान रखना दूसरों को छलने वाला खुद को छलता है। हम दूसरों को कितनी बार छलेगे?

 

जैसे हांडी काठ की चढ़े न दूजी बार।

फिर न होवे कपट सों वर्षों मत कर बीती यार।

जैसे काठ की हांडी दूसरी बार प्रयोग में नहीं आती वैसे ही छल-कपट किसी के साथ एक बार से दुबारा तो नहीं कर पाओगे। जिनके सम्मुख हम सरलता पाने के लिए जाते हैं अगर वहाँ भी कुटिलता करेंगे तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी। माता-पिता, गुरु, कल्याण मित्र, जो तुम्हारे हित का आकांक्षी हो ऐसा मित्र, जो तुम्हारे जीवन को आगे बढ़ाना चाहता हो ऐसा मित्र, जो तुम्हारे आत्मा के उत्थान की बात सोचता हो ऐसे मित्र के साथ कभी कृत्रिमता, कुटिलता, जटिलता और कपट का व्यवहार मत करना नहीं तो जीवन बर्बाद हो जाएगा। उनके साथ बहुत सजग रहो। अपने दिल की बात खुलकर बोलो और सच्चाई के साथ प्रस्तुत हो। कई बार लोग अपने थोड़े से स्वार्थ के कारण इस तरह का आचरण कर लेते हैं और जीवन बर्बाद कर डालते हैं। ऐसी दुष्प्रवृत्तियों से अपने आप को बचाइए।

 

कौन सा मित्र? कई तरह के मित्र होते हैं। एक मित्र होता है जो चौबीस घण्टे आपके साथ रहता है। एक मित्र होता है जो कभी-कभी आप के साथ होता है और कोई मित्र होता है जो वक्त पर बुलाने पर आता है। सच्चा मित्र वही है जो विपत्ति में साथ देता हो, जो तुम्हें आगे बढ़ने और बढ़ाने की प्रेरणा देता हो। उस मित्र के साथ कभी धोखा नहीं करना चाहिए, उस मित्र के साथ कभी विश्वासघात नहीं होना चाहिए, उस मित्र के साथ कभी छल और फरेब नहीं होना चाहिए कम से कम इतना तो तुम सुनिश्चित कर ली।

 

मुझे मालूम हैं। मेरे प्रवचन को सरलता से सुनोगे और जितनी सरलता से सुनोगे उतनी ही सरलता से भूल भी जाओगे। लेकिन जितना तुम कर सकते हो उतना तो तुम कर लो। कल्याण मित्र के साथ मैं ऐसा नहीं करूंगा।

 

धर्मक्षेत्रे कृतं पापं, वज़लेपो भविष्यति

नम्बर चार धर्म क्षेत्र में कृत्रिमता नहीं, धर्म क्षेत्र में कुटिलता नहीं, धर्म क्षेत्र में कपट नहीं और धर्म क्षेत्र में जटिलता नहीं इतना तय कर लो। धर्म क्षेत्र में भी लोग बहुत तरह की कुटिलता करते हैं।

 

इन्द्रियार्थान् विमूढात्मा यो आस्ते मनसा स्मरन्।

उभयेषाम् इन्द्रियार्थानां मिथ्याचारः स निगद्यते॥

जिसने पाँच इन्द्रिय को विषयो को त्याग दिया हो लेकिन बार-बार मन में उन्हें याद करता हो तो ये एक प्रकार का मिथ्याचार है। ऐसा व्यक्ति दूसरों को धोखा नहीं देता स्वयं के साथ बहुत बड़ा धोखा करता है। स्वयं के साथ बहुत बड़ा छल करता है। ऐसे छल से अपने आप को बचाने की कोशिश करनी चाहिए। यदि ये कोशिश जारी रही तो जीवन निश्चयत: उत्कर्ष की ओर जाएगा, जीवन ऊँचा उठेगा।

 

आज आर्जव धर्म के दिन चार ही बातें मैंने आप से कहीं हैं कि जीवन को कृत्रिमता से बचाएँ, जीवन को कुटिलता से बचाएँ जीवन को जटिलता से बचाएँ और जीवन में कपट कभी न पनपने दें। किसी के साथ धोखा, किसी के साथ विश्वासघात, किसी के साथ छल-फरेब न करें। ये घोर अनैतिक कृत्य हैं। इस प्रकार के कुकृत्यों से अपने आप को बचाना चाहिए। इसमें भी चार स्थल पर तो पूरे जीवन भर सावधान होना चाहिए। धर्म क्षेत्र से अपने आप को बचा लिया तो समझ लो तुमने अपने जीवन में बहुत कुछ पा लिया और अगर यहाँ फैल हो गए तो बड़ी गड़बड़ हो जाएगी।

 

मनुष्य की स्थिति बड़ी विचित्र हो रही है। एक प्रसंग याद आ गया। सुनाकर बात को विराम दे रहा हूँ। एक युवक था। पढ़ा-लिखा बेरोजगार था। कोई रोजगार नहीं मिला तो क्या करे? एक सर्कस वालों से सम्पक किया। उनके यहाँ विकेन्सी निकली कि हमें कुछ लोगों की जरूरत है। सर्कस वालों के यहाँ गया तो सर्कस वालों ने उससे कहा कि भाई हमारे यहाँ जो वनमानुष था वह मर गया है। अपने चिड़ियाघर में हमें वनमानुष रखना है। तुम्हें कुछ नहीं करना है बस, वनमानुष की खाल पहनकर वनमानुष जैसी हरकतें करना है। अपनी हरकतों से आने वाले दर्शको का मनोरंजन करोगे तो हम तुम्हें उसके ऐवज में कुछ इन्सेन्टिव(प्रोत्साहन राशि) देंगे।

 

मरता क्या नहीं करता? उसने वनमानुष की खाल पहनकर एक्टिंग करना शुरु कर दिया। दर्शक आते, देखते साक्षात वनमानुष बैठा है। वह अलग-अलग तरह की हरकतें करके दर्शकों का मनोरंजन करता। दर्शक उसको कुछ खाने-पीने के लिए देते तो उसे खाने-पीने में भी मजा आता। जहाँ इसका बाड़ा था उसके बगल में शेर का बाड़ा था। एक रोज ये ऊपर बैठकर अपनी हरकतें कर रहा था। दर्शक इसे रिझा रहे थे। ये कुछ ज्यादा झुक गया तो सीधे शेर के बाड़े में गिर गया। शेर के बाड़े में गिरा तो शेर एकदम घुर्राता हुआ सामने आ गया। शेर को देखकर इसकी घिघ्घी बंध गई। दोनों हाथ जोड़कर शेर को सामने बोला– भैया! माफ करो, बाल–बच्चो का ख्याल करो। मैं वनमानुष नहीं, मानुष हूँ। मेरे बाल-बच्चे हैं, नौकरी करने के लिए आया हूँ, मुझे बख्श दो। बड़ी कृपा होगी। कम से कम मेरे बाल-बच्चों पर रहम खाओ। शेर ने उसकी एक न सुनी। नजदीक आता गया और नजदीक आकर बिल्कुल उसकी गर्दन के पास आया तो इसकी हालत एकदम पतली हो गई। फिर कहा- भैया! माफ कर दो, मैं आदमी हूँ वनमानुष नहीं। शेर ने कहा- गनीमत है कि मैं भी असली शेर नहीं हूँ, मैं भी आदमी हूँ। जाओ अपना काम करो।

 

ये हाल है आजकल। बड़ी विचित्रता है। छोड़िए इस प्रकार की कुटिलता को, इस प्रकार की जटिलता को और इस तरह की कृत्रिमता को। अपने मन को कपट को दूर भगाइए तभी आर्जव ध म आपके जीवन में प्रकट होगा।

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