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  1. Vidyasagar.Guru
    अहंकार पतन और समर्पण उन्नति की ओर ले जाता है: आचार्यश्री
     
    अहंकार ही दुख का बड़ा कारण है, जीवन की मूलभूत समस्या अहंकार है। मैं भी कुछ हूं यह जो सोच है यही अहंकार है। अहंकार का जोर इतना जबरदस्त रहता है कि वह धर्म को भी अधर्म बना देता है। पुण्य को पाप में बदल देता है। अहंकार को सत्य समझाना अत्यंत कठिन कार्य है। यह बात नवीन जैन मंदिर में प्रवचन देते हुए आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कही। 

    उन्होंने कहा कि अहंकार अंधा है। अहंकारियों की स्थिति अंधों जैसी होती है। उनके पास आंखें होती हैं लेकिन फिर भी उन्हें दिखाई नहीं देता। रावण की पूरी लंका तबाह हो रही थी लेकिन रावण को लंका व अपने खानदान का तबाह होना कहां दिख रहा था। कंस की आंखें थीं लेकिन वह श्रीकृष्ण की शक्ति व सामर्थ्य को कहां देख सका। दुर्योधन आंखों वाला होकर भी क्या अहंकारी नहीं था। अहंकार विवेक का नाश कर देता है। अहंकार से ही क्रोध भी आ जाता है। अहंकार बड़ा खतरनाक है। अहंकार मीठा जहर है। अहंकार ठग है जो मानव को हर पल ठग रहा है। मानव में जो ’मैं’ और ’मेरापन’ है यही अहंकार की जड़ है। मैं ही परिवार का संरक्षक हूं। मैं ही समाज का कर्णधार हूं। मैं ही प|ी और बच्चों का भरण-पोषण कर रहा हूं। यही अहंकार मानव को दुखी बनाए हुए हैं। ऐसा झूठा अहंकार ही मानव को दुखी बना रहा है। उन्होंने कहा कि आज हमारे दांपत्य जीवन में, पारिवारिक व सामाजिक जीवन में जो संघर्ष, मनमुटाव, मनोमालिन्य दिख रहा है, उसका मूल कारण अहंकार है। 

    यदि प|ी पति के प्रति और पति-पत्नी के प्रति, बाप-बेटा के प्रति और बेटा-बाप के प्रति, शिष्य-गुरू के प्रति और गुरू-शिष्य के प्रति समर्पण व सहयोग का रुख अपनाएं तो जीवन में व्याप्त सारी विसंगतियां समाप्त हो जाएं। अहंकार का समाधान विनम्रता है, मृदुता है। जो सुख विनम्रता व मृदुता में है वह अकड़ने में नहीं है। जो मृदु होगा उसे मौत कभी नहीं मिटाएगी। वह देर-सबेर मरेगा तो वह मरकर भी अमर हो जाएगा। राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, क्राइस्ट ये ऐसे महापुरुष हुए हैं जो हमेशा विनम्रता में जिए हैं और अहंकार की गंध इनके किसी व्यवहार में कभी नहीं आई। मान करें तो विनय नहीं और विनय बिना विद्या भी नहीं आती है। 

    अहंकार पतन की ओर ले जाता है और समर्पण उन्नति की ओर। अहंकार मृत्यु की ओर एवं समर्पण परम सुख की ओर। कुतर्क नर्क है, समर्पण स्वर्ग है। आचार्यश्री के प्रवचन के पूर्व बांदरी में आयोजित पंचकल्याणक महामहोत्सव के प्रमुख पात्रों ने समस्त आचार्य संघ को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद लिया। आचार्यश्री की आहारचर्या सुभाषचंद्र संदीप रोकड़या के यहां संपन्न हुई । 
  2. Vidyasagar.Guru
    स्थान  एवं पता - वागवर सम्मेदशिखर सुखोदय तीर्थ नशिया जी नौगामा जिला बांसवाड़ा उदयपुर दाहोद मार्ग बसस्टेंड के पास                           
    साइज़ - 21 फीट
    पत्थर - मकराना संगमरमर  
    लोकार्पण तारीख - 11 नवम्बर 2018
    लोकार्पण सानिध्य पिच्छीधारी -  मुनि श्री 108 समतासागर जी, एलकश्री निश्चयसागर जी, आर्यिका 105 श्री लक्ष्मीभूषणमती माता जी                                        
    त्यागी व्रती - बा. ब्र. सुयश प्रदीप भैया अशोक नगर, बा. ब्रह्मचारिणी रिम्पी दीदी  
    लोकार्पण सानिध्य राजनेता - पु. उमड़ अध्यक्ष पी. मोहनलाल छगनलाल 
    लोकार्पण कर्ता - कैलाश मोदी, धनपाल मोतीलाल
    मुख्यकलश स्थापना करता - पिंडारमिया रतनलाला मीठालाल, केशुभाई खोडनिया, कान्तिलाल जी बडोदिया
     




  3. Vidyasagar.Guru
    स्थान  एवं पता - सर्किट हाउस के नीचे NH 75 जवहार रोड छतरपुर (म.प्र.)
    साइज़ - 21 फीट 
    पत्थर - मकराना 
    लागत - 5,51,000
    पुण्यार्जक का नाम - सकल दि. जैन समाज छतरपुर (म.प्र.)
    आर्थिक सहयोग - प्रेमचंद्र जैन कुपी
    शिलान्यास तारीख - 15 अगस्त 2017
    शिलान्यास सानिध्य प्रतिष्टाचार्य - बा. ब्र. अशोक भैया(लिधौरा), बा. ब्र. दीपक भैया(टेहरका)                                            
    शिलान्यास सानिध्य राजनेता - नगर पालिका अध्यक्ष श्री मति अर्चना सिंह                                                                                                                                            
    लोकार्पण तारीख - 10 अक्टूबर 2017
    लोकार्पण सानिध्य - बा. ब्र. पारस भैया जी भोपाल                                                                                           
    विशेष संयोजक - श्री अशोक जैन (बब्बू), महामंत्री (सिंघई सुदेश जैन)
     




  4. Vidyasagar.Guru
    स्थान  एवं पता - दयोदय धाम गौशाला धनौरा जिला सिवनी (म. प्र.)
    साईज - 21 फीट 
    पत्थर - सफ़ेद मार्बल 
    लागत - 1,51,000
    पुन्यार्जक का नाम - दयोदया पशु सेवा समिति, श्री दि. जैन स्या. गुरुकुल विद्या. समिति, त्रय मूर्ति जिनालय समिति धनौरा एवं समस्त समाज
    जी. पी. एस. लोकेशन - 22.31 47.582 N  79.50 13.824 E  (दि. जैन त्रय मूर्ति जिनालय धनौरा)
    शिलान्यास तारीख - 28 मार्च 2017
    शिलान्यास सानिध्य पिच्छीधारी -  श्री 108 विमल सागर जी महाराज एवं आ.श्री. 108 कंचन सागर जी महाराज 
    शिलान्यास सानिध्य प्रतिष्टाचार्य - स्थानीय पुजारी श्री जिनेश कुमार जी जैन 
    लोकार्पण तारीख - 2 से 8 अप्रैल 2018 गजरथ महोत्सव 
    लोकार्पण सानिध्य पिच्छीधारी -  आचार्य श्री विमर्श सागर जी महाराज (ससंघ)
     


     
  5. Vidyasagar.Guru
    मोक्ष कोई दुकान पर तो मिलता नहीं कि जाओ और खरीद लाओ: आचार्यश्री
    नवीन जैन मंदिर परिसर में आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के प्रवचन
     

     
    जहां अग्नि प्रज्ज्वलित होगी वहां धुंआ तो उठेगा ही। मोक्ष चाहिए है तो मोह का त्याग करना ही पड़ेगा। मोह के त्याग करने के लिए मात्र ‘ह’ को हटाकर ‘क्ष’ ही तो लगाना है। 

    आत्मा अजर अमर है, इसका अस्तित्व भी कभी नष्ट नहीं होता, जो सोया हुआ है उसी को तो जगाना पड़ता है। जो मूर्त होता है वहीं तो मूर्तियों को विराजमान कर पाता है। मोक्ष कोई दुकान पर तो मिलता नहीं कि जाओ और खरीद लाओ। जिसके अंदर मुहर्त है मोक्ष जाने का उसका नाम ही तो अन्तर्मुहर्त है। व्यक्ति कितने भी मुर्छित अवस्था में क्यों न हो, न तो उसका मोह ही कम होता है और न ही खाने-पीने की वस्तुओं का त्याग कर पाता है। यह बात नवीन जैन मंदिर में प्रवचन देते हुए आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कही। उन्हाेंने कहा कि खाल का ख्याल कितना किया इसकी तरह तरह से हिफाजत की फिर भी खाल ने अपना स्वभाव दिखा ही दिया, हर पल पुरानी होती गई और तू मूढ़ बना इसे देख देखकर यही ‘मैं हूँ’ ऐसा भ्रमित हो गया। खाल को अपना मानना बालपन अर्थात् अज्ञानता है। जो पर से मिलता है वह बिछुड़ता ही है, जो अपना है वही शाश्वत रहता है। सोचो आत्मन! खाल को अपना मानते ही कितना संसार बढ़ जाता है। खाल पर लगे बाल से, खाल को ओढ़ाने वाली शाल से, इसे खिलाने वाले माल से न जाने कितनों से संबंध जुड़ जाता है, सारे बवाल ही खाल के प्रति राग से उत्पन्न होते हैं। इसलिए खाल का ख्याल छोड़, क्योंकि तेरी इस तन की खाल को पहले भी अनेक ने ओढ़ी है। आहारवर्गणा रूप पुद्गल परमाणुओं से बनी यह खाल की चादर अनंत जीवों ने ओढ़-ओढ़ कर छोड़ दी है अब तेरे पास आते ही तू इसे अपनी मान बैठा। 

    उन्हाेंने कहा कि क्या तुम दूसरों के उतरे वस्त्र पहनकर स्वयं को सुंदर दिखना चाहते हो। तुम यही कहोगे ना कि पहनना तो दूर, मैं पहनने के भाव भी नहीं करता, तो फिर एक तो विजातीय पर द्रव्य पुद्गल और उसमें भी अनंतों ने इन परमाणुओं को ग्रहण किया तो अब तुम इस देह को धारणकर क्यों इतना इतराते हो, यह क्या समझते हो कि मेरा जैसा कोई नहीं है। हां यदि कदाचित् तीर्थंकर की देह हो तो बात ही अलग है। उनके जैसा रूप धरती पर किसी का नहीं होता। मगर तुम्हारी खाल तो जूठन स्वरूप है कईयों ने धारण की हैं उतारन है फिर भी इसे पाकर इतना गुमान करते हो। आचार्यश्री ने कहा कि खाल को अपने ख्याल से भिन्न करो। खाल में रंग है उस रंग से भी राग-द्वेष आदि की तरंग उठती है जबकि तुम अरंग, निस्तरंग हो। इस पतली सी खाल से गाढ़ा राग न करो वैसे भी खाल के भीतर जो भरा है वह दर्शनीय नहीं है। खाल के भीतर मल, मूत्र, पीव, रक्त आदि दुर्गंधित पदार्थों को ढक रखा है। यह काया तो अपनी माया छिटकाती है जो इसके चक्कर में आया उसे भटकाती है, साथ रहने का भ्रम पैदा करती है पर अंत में खाल यहीं रह जाती है, तब कुछ लोग मिट्टी की देह वाले आते हैं इसे भी मिट्टी में मिलाने के लिए और चेतन हंसा खाली चला जाता है। जब अंततोगत्वा खाली जाना ही है तो खाल से इतना लगाव क्यों। लौकिक में भी जो साथ में रहते हैं उन्हीं से लगाव रखते हैं, परायों का क्या विश्वास। प्रवचन के पूर्व आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के पैर प्रक्षालन करने का सौभाग्य मलैया परिवार, सेठी परिवार एवं अन्य दानदाताओं को प्राप्त हुआ।
  6. Vidyasagar.Guru
    जरूरत से ज्यादा धन संचय, यश-कीर्ति की चाह हमें गर्त में ले जाती है : आचार्यश्री 
    व्यक्ति का संपूर्ण जीवन धन संपदा के संचय में ही निकल जाता है। वह कितना भी धन संचय कर ले उसको तृप्ति नहीं होती।...
     
    व्यक्ति का संपूर्ण जीवन धन संपदा के संचय में ही निकल जाता है। वह कितना भी धन संचय कर ले उसको तृप्ति नहीं होती। परिगृह के बिना संसारी प्राणी बिन जल के मछली की तरह तड़पता है। मछली तो प्राणवायु नहीं मिलने से तड़पती है परंतु यह जीव हवा, जल, वायु सबकुछ मिलने के बाद भी बैचेन रहता है। 

    हमें जितनी जरूरत हो उतना ही संचय करना चाहिए। जरूरत से ज्यादा धन संचय, यश कीर्ति की चाह भी हमें गर्त में ले जाती है। जरूरत से ज्यादा धन संचय चिंता का कारण तो बनता ही है इसके साथ अासक्ति का भाव रखना भी बहुत दुखदायी हो जाया करता है। यह बात नवीन जैन मंदिर में प्रवचन देते हुए अाचार्यश्री विद्यसागर महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि व्यक्ति यदि धन संचय करता भी है तो उसका एक भाग परोपकार के कार्यों, सुपात्र को दान आदि देकर सदुपयोग करते रहना चाहिए। 

    उन्हाेंने कहा कि धन संचय से रौद्र ध्यान अधिक होता है, धर्म ध्यान नहीं हो पाता। इसलिए हमें रौद्र ध्यान से बचने का सतत प्रयास करते रहना चाहिए। व्यक्ति को मांगने से कुछ नहीं मिलता। जब तक हमारे कर्मों का उदय न हो तब तक कुछ हासिल भी नहीं होता। हम जैसा सोचें या जो चाहें वह सबकुछ मिल जाए यह भी संभव नहीं। व्यक्ति को हमेशा परहित की बात ही सोचना चाहिए। ऐसा विचार करने से किसी का हित हो या न हो स्वयं का हित संवर्धन स्वमेव ही हो जाया करता है। उन्हाेंने कहा कि मन के विचारों को गहराने दो, अनुभूति के सरोवर में उतरने दो, कहने की उतावली मत करो, कहना सरल है सहना कठिन है कहने के बाद कुछ बचता नहीं और सहने के बाद कहने को कुछ रहता नहीं। सहने से आत्मा की निकटता बढ़ती है, कहने से वचनों का आलम्बन लेने से स्वयं से दूरियां बढ़ती है पर की निकटता रहती है फलतः जीवंतता समाप्त होती जाती है, औपचारिकताएं आ जाती हैं यह कोई जीवन नहीं और न ही जीवन का आनंद। 

    उन्हाेंने कहा कि यदि भीतरी जीवन का आनंद पाना है तो कहो नहीं, आते हुए कर्मों की परिणति को शांत भाव से, साक्षी भाव से सहो अर्थात प्रतिकार मत करो। प्रतिकार करने से द्वेष भाव उत्पन्न होगा फिर दोषों से द्वेष रखना भी तो दोषों का वर्द्धन करना ही है, प्रकारान्तर से राग का पोषण करना ही तो है। जिन-जिन ने कर्मोंदय शांत भाव से सहे वे संसार में नहीं रहे। कर्मों की तीव्र धार के क्षणों में भी वे ज्ञानधार में पूर्ण सजगता से बहते रहे-बहते रहे, आखिर वे किनारा पा गए। चाहे पाण्डव हो या गजकुमार मुनि हों, सुकौशल स्वामी हों या देश भूषण-कुलभूषण स्वामी हों कर्मों के तीव्र प्रहार के समय वे अपने आपे में रहे निजगृह से बाहर निकले ही नहीं, स्वरूप गुप्त हो गए, त्रिगुप्ति के सुरक्षित दुर्ग में गुप्त हो गए, फलतः विजयी हो गए। प्रवचन के पूर्व ब्रह्मचारी द्वय एवं दान-दाताओं ने आचार्यश्री विद्यासागर महाराज की पूजन संपन्न की।
  7. Vidyasagar.Guru
    स्थान एवं पता - श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर, बही चौपाटी, महू नीमच फोर लेन रोड, तहसील मल्हारगढ़, जिला मंदसोर, मध्य प्रदेश
    साइज़ -
    पत्थर - 
    लागत - 
    पुण्यार्जक का नाम - इंजीनियर मुकेश वैभव पिता स्व. डॉ. विजय कुमार संगाई ( गुण आयतन ट्रस्टी), श्री जय कुमार पिता शांतिलाल जी बड़जात्या, श्री यश कुमार पिता सूरजमल जी बाकलीवाल सभी निवासी मंदसोर मध्य प्रदेश
    जी पी एस लोकेशन - 24.178404 75.007215
    शिलान्यास तारीख - 03 मार्च 2018
    शिलान्यास सानिध्य (पिच्छीधारी) - मुनि. श्री विनीत सागर जी महाराज साहब, मुनि. श्री चंद्रप्रभ सागर जी महाराज साहब
    शिलान्यास सानिध्य प्रतिष्टाचार्य - बाल ब्रहमचारी संजय भैया जी मुरैना
    शिलान्यास सानिध्य - राजनेता जिला कांग्रेस उपाध्यक्ष श्री मंगेश जी संगई एवं भाजपा महामंत्री श्री बंसी लाल जी गुर्जर
    लोकार्पण तारीख - 01 जनवरी 2019
    लोकार्पण सानिध्य पिच्छीधारी एवं अन्य (त्यागी व्रती) - रीता दीदी, अपर्णा दीदी एवं बाल ब्रहमचारी संजय भैया जी मुरैना
    लोकार्पण सानिध्य राजनेता - जिला कांग्रेस महामंत्री श्री मंगेश जी संगई
     










     
  8. Vidyasagar.Guru
    स्थान एवं पता - ऐ. वी. रोड जगतपुरा चौराहा कोलारस जिला शिवपुरी मध्यप्रदेश
    साईज - 21 फीट
    लागत - 3 लाख
    पुन्यार्जक - सकल दिगंबर जैन समाज कोलारस 
    शिलान्यास तारीख़ - 5 अक्टूबर 2017 
    शिलान्यास सानिध्य पिच्छीधारी - मुनि श्री 108 सुवृतसागर जी महाराज 
    शिलान्यास सानिध्य त्यागी व्रती - बाल ब्र. अंसू  भैया जी
    शिलान्यास सानिध्य राजनेता - रविन्द्र शिवहरे नगर पंचायत कोलारस
    लोकार्पण तारीख - 6 जनवरी 2018
    लोकार्पण सानिध्य पिच्छीधारी - मुनि श्री 108 सुवृतसागर जी महाराज
    लोकार्पण सानिध्य त्यागी व्रती - बाल ब्र. अंसू  भैया जी
    लोकार्पण सानिध्य राजनेता - रविन्द्र शिवहरे नगर पंचायत कोलारस, अध्यक्ष रविन्द्र कुमार जैन, मंत्री अशोक जैन, कोषाध्यक्ष शान्ति सेठ
     


  9. Vidyasagar.Guru
    स्थान  एवं पता - मॉडल स्कूल के पास घटी के नीचे सागर रोड शाहगढ़  
    साईज - 15 फीट
    पत्थर - संगमरमर 
    लागत - 2,40,000
    पुन्यार्जक - श्री मान सेठ रणजीत जी, श्री मति अंगूरी जैन, ब्र. बहिन संगीता दीदी, अमित सेठ, श्री मति रत्ना सेठ, आकाश सेठ श्री मति रचना सेठ, आयुष सेठ
    शिलान्यास तारीख -  25 जून 2017
    शिलान्यास सान्निध्य प्रतिष्ठाचार्या - प. विनोद कुमार जी सेठलोकार्पण तारीख - 17 नवम्बर 2018
    लोकार्पण सान्निध्य -  श्री 108 मुनि योग्सागर जी मुनिराज ससंघ
    त्यागी व्रती - मुनि श्री रणजीत जी सेठ 10 प्रतिमाधारी शाहगढ़
     
     
     

  10. Vidyasagar.Guru
    ‘फास्ट फूड’ के चलन ने संसार को जकड़ लिया है जबकि इसमें शुद्धता की कोई गारंटी नहीं होती : आचार्यश्री
     
    वर्तमान समय में ‘फास्ट फूड’ के चलन ने संपूर्ण संसार को जकड़ लिया है। फास्ट फूड वह जहर है जिसमें शुद्धता की कोई गारंटी नहीं होती एवं साथ ही वह शाकाहारी है कि नहीं इसकी भी कोई प्रमाणिकता नहीं रहती।‘फास्ट फूड’ का असर सबसे ज्यादा बच्चों में देखा जाता है। उसकी मुख्य वजह हम बच्चों को समय से घर में ही बनी शुद्ध वस्तुओं को समय के अभाव में उपलब्ध नहीं करा पाते या आलस्य के कारण बच्चों को बिना देखे समझे कुछ भी खिलाते रहते हैं। 

    इससे बच्चों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसकी मानसिक स्थिति एवं याददाश्त पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। यह बात नवीन जैन मंदिर में अाचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने प्रवचन देते हुए कही। उन्हाेंने कहा कि ‘जैसा खाओ अन्न वैसा होवे मन’ इसको हम सभी ने चरितार्थ होते देखा है। राष्ट्र में व्याप्त जितने भी जघन्य कृत्य हिंसा, उपद्रव आदि होते हैं उनमें से अधिकांश मामलों में व्यक्ति की तामसिक प्रवृत्ति ही काम करती है। उन्हाेंने कहा कि स्वर्ण को शुद्धता के लिए एक बार नहीं अनेक बार तपाना पड़ता है। फिर उसे आप कहीं भी कैसे भी रखो या उपयोग करो उसकी शुद्धता में वर्षों बाद भी कोई फर्क नहीं पड़ता। इसके विपरीत लोहा में अवधि पर्यंत जंग भी लग सकती है और वह खराब भी हो सकता है। व्यक्ति का व्यक्तित्व एवं कृतित्व स्वर्ण की तरह ही खोट रहित होना चाहिए। उन्होंने कहा कि बुरी आदतों को त्याग करने के लिए हमें संकल्पित होने की महती आवश्यकता है। संकल्प शक्ति से ही इस जीव का कल्याण हो सकता है। व्यक्ति किसी भी नशे को त्याग करने के लिए एवं छोटे से नियम लेने के लिए भी समय सीमा में बांधना चाहता है। एेसा प्रतीत होता है, जैसे किसी वस्तु की नीलामी चल रही है। भैया! ऐसा नहीं होता, नियम तो पूर्ण संकल्प, भक्ति, समर्पित भावना के साथ ही लिया जाता है। यदि जबरदस्ती नियम दे भी दिया जाए तो वह अधिक समय तक कारगार सिद्ध नहीं हो सकता। आचार्यश्री ने कहा कि व्यक्ति को घर की बनी शुद्ध एवं पौष्टिक वस्तुएं या व्यंजन अच्छे नहीं लगते उसे तो होटल का खाना ही अच्छा लगता है यह धारणा ठीक नहीं है। शरीर के प्रति मोह का त्याग एवं जिव्हा इंद्रिय को वश में करने की कला से हमें पारंगत होना जरूरी है। बाहर के वस्तुओं के प्रति आकर्षण का भाव हमारे चारित्र पर भी दुष्प्रभाव डाल सकता है। हम जब फास्ट फूड के त्याग की बात करते हैं, तब तुम्हारी इसके प्रति अशक्ति के भाव दृष्टिगोचर होने लगते हैं। तरह-तरह के बहानेबाजी एवं तुम्हारे कंठ अवरूद्ध हो जाते हैं। कोई भी प्रिय वस्तु का त्याग करना या कोई छोटा सा नियम लेने में भी इस शीतकाल में भी व्यक्ति को पसीना आने लगता है। कर्मों की मुक्ति की बात करो तो कंपकपी छूटने लगती है, फिर हम कैसे कर्मों की निर्जरा कर पाएंगे। सच्चे देव, शास्त्र, गुरू के प्रति श्रद्धान जरूरी है। हमें यदि अपने शरीर को निरोग रखना है तो सात्विक भोजन ग्रहण करना होगा। गरिष्ट भोजन एवं प्रचुर मात्रा में तेल, घी की वस्तुओं के सेवन से बचना होगा, तब ही आत्म कल्याण कर पाओगे। 
  11. Vidyasagar.Guru
    मृत्यु कभी हमारी ओर आती दिखाई नहीं देती, लेकिन हर पल हमारे साथ खड़ी है: आचार्यश्री
     
    हमारा मन बंदर की तरह चंचल एवं उछालें भरता है, बंदर तो फिर भी अपने बच्चों के साथ एक डाल से दूसरी डाल पर उछल-कूद करता हुआ अपने लक्ष्य से विमुख नहीं होता परन्तु हमारा मन यदा-कदा कहीं भी चला जाता है। यह बात नवीन जैन मंदिर प्रांगण में प्रवचन देते हुए आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने कही। 

    उन्हाेंने कहा कि अपने मन पर निगरानी रखें। इस बात का पूरा ध्यान रखें, मन को सदा स्वच्छ रखें, क्योंकि परमात्मा भी स्वच्छ मन में ही प्रवेश करता है। मन में किसी के प्रति राग द्वेष के भाव न रखें। मन को पाप, वासना, क्रोध, अहंकार, कामना से दूर रखें। मन स्वार्थ में नहीं, परमार्थ में जिएं, इसका ख्याल रखेें। जिसका मन पवित्र है, वह सबके लिए सुख समृद्धि ही मांगता है। सबकी भलाई में ही अपनी भलाई है। उसका जीवन पत्थरों की तरह नहीं, फूलों की तरह होता है, फूलों में प्राण भी होते है और सौंदर्य भी होता है, उसके जीवन में होश और प्रसन्नता होती है। 

    उन्होंने कहा कि मन तो विचारों का विश्वविद्यालय है, कुंभ का मेला है। मन तो वह चाैराहा है, जहां से हर पल विचारों के यात्री गुजरते रहते हैं। बेहोशी और मूर्छा में जीने वाला मन ही दूसरों के प्रति अशुभ चिन्तन करता है। दुनिया में जितने पाप, अपराध, हत्याएं आदि होते हैं, वे सब बेहोशी में होते हैं, अतः मूर्छा से ऊपर उठें और होश में जीएं। मूर्छा ही मृत्यु है और होश ही जीवन है। होश में हम क्रोध नहीं कर सकते, होश में हम किसी को अपशब्द नहीं कह सकते। होश में हम किसी की हत्या अादि कुछ नहीं कर सकते, अतः पाप और अनर्थ से बचना है, तो जीवन में होश की साधना अनिवार्य है। जो हम अपने लिए चाहते हैं, वह दूसरों के लिए भी चाहें। 

    उन्होंने कहा कि जीवन के प्रति थोड़ा गंभीर होना आवश्यक है। किसी बहती नदी को देखकर सोचें कि जिस प्रकार नदी का जल बहता जा रहा है, उसी प्रकार मेरी जिन्दगी भी भागी जा रही है। नदी अन्ततः सागर में विलीन होने की अभिलाषा लेकर गतिमान है और मेरी जिन्दगी भी मृत्यु रूपी खाड़ी में गिरने को आतुर है। घड़ी के सेकंड के कांटे की तरह बचपन भाग रहा है, मिनट के कांटे की तरह जवानी बीत रही है और घंटे का कांटा बुढ़ापे का प्रतीक है। इसी प्रकार मृत्यु हमारी ओर कभी आती दिखाई नहीं देती है, लेकिन हर पल अपने साथ खड़ी है। डूबते सूरज को देखकर सोचें, एक दिन मेरा जीवन रूपी सूरज भी इसी प्रकार डूब जाएगा। जीवन क्षण मात्र का होता है, अतः यह नश्वर शरीर चिता पर पहुंचे, इससे पहले अपनी चेतना जगा लें। जो जीवन को उत्सव मानकर जीते हैं, उनकी मृत्यु ही महोत्सव का रूप ले पाती है।
  12. Vidyasagar.Guru
    स्थान एवं पता - श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पटेरिया जी, गढ़कोटा, जिला- सागर (म.प्र.)
    निकटतम प्रसिद्ध स्थान का नाम -  श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, पटनागंज, रहली,जिला- सागर (म.प्र.), श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, बीनाबारहा,देवरी, जिला- सागर (म.प्र.), श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर, जिला- दमोह (म.प्र.)
    साइज़ - 21 फुट
    पत्थर - वंडर मार्बल
    लागत - 5,54,878रूपये
    पुण्यार्जक का नाम - इंजी. आशीष - सुम्बुल, किंजल, रोणित, सानिया जैन व डॉ. मनीष - डियाना, बोधि जैन सुपुत्र श्रीमती सुषमा जैन निवासी टेक्सास ह्यूस्टन अमेरिका ने अपने पिताजी स्वर्गीय श्री रमेश चंद जैन सुपुत्र स्वर्गीय लाला मोतीलाल जैन (दूधाहेड़ी वाले ) की स्मृति मे बनवाया |
    शिलान्यास तारीख - 9 - जून - 2018
    शिलान्यास सानिध्य प्रतिष्टाचार्य - ब्र.प. सुभाषचन्द्र जैन दमोह म.प्र
    लोकार्पण तारीख - 16 - जुलाई - 2018
    लोकार्पण सानिध्य पिच्छीधारी - आर्यिका 105 कुशलमति माताजी ससंघ, बा.ब्र. राजकुमारी दीदी दमोह , बा.ब्र. सुनीता दीदी पिंडरई, बा.ब्र. सुनीता दीदी राहतगढ़, बा.ब्र. संगीता दीदी गढ़ाकोटा, ब्र. कमलादेवी जैन दमोह बा.ब्र. डॉ. सत्येन्द्र जैन दमोह
    लोकार्पण सानिध्य राजनेता - प. श्रेयांश शास्त्री सागर, क्षेत्र के पदाधिकारी, श्री अनिल सांघेलिया अध्यक्ष श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पटेरिया जी, गढ़ाकोटा, जिला- सागर (म.प्र.) 2-श्री अमित चौधरी महामंत्री, श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पटेरिया जी, गढ़ाकोटा
     

















     
     
     
  13. Vidyasagar.Guru
    आचार्य श्री ने कहा व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों में घबराना नहीं चाहिए
     
    व्यक्ति को कभी भी विपरीत परिस्थितियों में घबराना नहीं चाहिए। प्रतिकूलता में ही हमारी अग्नि परीक्षा होती है। लक्ष्य निर्धारण करने के बाद जब तक हम अपने लक्ष्य की पूर्ति न कर लें तब तक पथिक को विश्राम नहीं करना चाहिए। जो रुक गया, ठहर गया समझो वह अपने लक्ष्य से विमुख हो गया। चलने का नाम ही जिंदगी है। यह बात नवीन जैन मंदिर में प्रवचन देते हुए आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने कही। 

    उन्हाेंने कहा कि रुकने के बाद पुनः कार्य शुभारंभ करने में वह उत्साह नहीं रहता जो निरंतर कार्य करने में मिलता है। खरगोश एवं कछुआ की कहानी से हम भलीभांति परिचित हैं। नाव को पतवार के सहारे समुद्र पार किया जा सकता है। सच्चे देव, शास्त्र, गुरू का अवलंबन से ही व्यक्ति का मोक्षमार्ग प्रशस्त होता है। 

    उन्हाेंने कहा कि प्रभु जैसी महान हस्ती अनंत शक्तिशाली ने जब तुझे जाना माना किंतु नहीं स्वीकारा, तो तू अनंतकाल से अनंत पर द्रव्यों को जानता नहीं फिर भी इन्हें स्वीकार कर रहा है यह क्या हो गया तुझे। क्या स्वयं को प्रभु से भी अधिक शक्तिशाली मान बैठा है। यदि तूने स्वयं को जाना होता, आत्म सत्ता को माना होता तो पर को स्वीकारने का यह दुष्कृत्य कभी नहीं करता। धन्य हैं वह प्रभो! जिन्होंने तेरी अतीत-अनागत की अनंत पर्यायों को जाना और जैसा जाना वैसा ही माना, क्योंकि उनमें अनंत सहजता सरलता प्रकट हो जाने से जानने जैसा ही मानना हो गया परंतु उन्होंने तुझे स्वीकार नहीं किया, क्योंकि वे पहले ही स्वयं अपने को स्वीकार चुके हैं। किसी एक को ही उपयोग में स्वीकारना होता है, स्व को या पर को। किसे स्वीकारना चाहते हो। आचार्यश्री ने कहा कि कौरवों ने श्रीकृष्ण और समूची सेना इन दोनों में से सेना को चुना, आखिर हार गए किंतु पाण्डवों के पास श्रीकृष्ण जैसे सारथी थे वे जीत गए। हमारा सारथ्य हम अकेले ही कर सकते हैं पर को स्वीकारते ही परेशानी शुरू हो जाती है उसका ध्यान रखना होता है, क्योंकि उसे स्वीकारा है, संबंध जोड़ा है। यद्यपि स्वभाव में पर का संबंध है ही कहां, किंतु संबंध का भ्रम तो पाल ही लिया।
  14. Vidyasagar.Guru
    दिगम्बर जैन समाज बागीदौरा 
    जिला - बांसवाडा (राजस्थान) 
    संत शिरोमणि संयम कीर्ति स्तंभ
     
    स्थान - आचार्य विद्यासागर सर्कल बागीदौरा, बागीदौरा से बांसवाडा मुख्य सडक मार्ग पर
    साईज - 27.5 फीट
    पत्थर - संगमरमर
    लागत - 11 लाख रू.
    निर्माण पुण्यार्जक - 
    शाह प्रशीष/कन्हैयालालजी बागीदौरा मेहता अभिषेक/हीरालालजी बागीदौरा दोसी पुनमचन्दजी/दोवाचन्दजी बागीदौरा (पी. डी. परिवार) गॉधी वर्धमान/मगनलालजी (अनमोल पेट्रोल पंप बागीदौरा) दोसी मीठी बेन/रतनपालजी/नाथुलालजी बागीदौरा दोसी धीरज/राजेन्द्र कुमार बागीदौरा (मन मोबाईल) सवोत निखिल/रमेशचन्द्रजी बागीदौरा दोसी बसंती बेन/रतनलालजी बागीदौरा शाह जीतमल/नाथुलालजी A.V.S. परिवार बागीदौरा दिगंबर जैन समाज बागीदौरा जी.पी.एस. लोकेशन - https://goo.gl/maps/fEVpkYmUdZ42
    शिलान्यास तारीख -  16 जून 2018
    शिलान्यास-मार्गदर्शन प्रेरणा - परम पूज्य मुनि पुंगव श्री सुधासागरजी महाराज ससंघ, मुनि श्री समतासागरजी महाराज ससंघ
    लोकार्पण तारीख - 18 नवम्बर 2018
    लोकार्पण सान्निध्य - प.पू. वात्सल्य मूर्ति मुनिश्री समतासागरजी महाराज, प.पू. ऐलक श्री निश्चयसागरजी महाराज
    मुख्य अतिथि - श्री महावीरजी अष्टगे, श्रीमति अलका अष्टगे सदलगा, कर्नाटक
    लोकार्पण कर्ता का विवरण -  मास्टर अतिशय श्रीमति लीना - श्री सुलभ दोसी,  श्रीमति शैला - श्री अशोक कुमार दोसी हाल मुकाम मुम्बई (निवासी - बागीदौरा)
    कार्यकारिणी समिति - आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज 50वां संयम स्वर्णिम महोत्सव समिति दिगम्बर जैन समाज बागीदौरा
    अध्यक्ष - विनोद चन्द्र दौसी (मो. नं. - 7073549357)
    सदस्य - महेन्द्र दोसी, जयन्तिलाल मेहता, केसरीमल मेहता, दिलीप M. दोसी
     



     




  15. Vidyasagar.Guru
    स्थान एवं पता - खातेगॉव जिला- देवास म.प्र. (सिध्दोदय सिद्धक्षेत्र , नेमावर जिला- देवास म.प्र.)
    साइज़ -  27 फीट 
    पत्थर - वंडर मार्बल
    लागत - 6 लाख रुपये
    पुण्यार्जक का नाम - सकल दिगम्बर जैन समाज , खातेगाँव
    जी पी एस लोकेशन - नेशनल हाईवे एन एच 59 ऐ पोस्ट ऑफिस के सामने , खातेगॉव जिला- देवास (म.प्र.)
    शिलान्यास तारीख - 21 अक्टूबर 2017
    शिलान्यास सानिध्य (पिच्छीधारी) - परम पूज्य आर्यिका मां श्री आदर्शमति माताजी की संघस्थ आर्यिका 105 अन्तरमति जी (7 आर्यिका) संसघ के सानिध्य में समापन्न हुआ।
    शिलान्यास सानिध्य प्रतिष्टाचार्य - ब्रम्हचारी मनोज भैया (ललन भैया), जबलपुर
    शिलान्यास सानिध्य राजनेता -  डाली जोशी नरेन्द्र चौधरी (नंदू ) भाजपा जिला महामंत्री कमल कासलीवाल (भुरू) पार्षद
    लोकार्पण तारीख - 7 जुलाई 2018
    लोकार्पण सानिध्य पिच्छीधारी - परम पूज्य आर्यिका मां श्री आदर्शमति माताजी की संघस्थ, आर्यिका 105 दुर्लभमति माताजी, आर्यिका 105 अन्तरमति जी (19 आर्यिका) संसघ के सानिध्य में समापन्न हुआ।
    लोकार्पण सानिध्य राजनेता - नगर परिषद अध्यक्ष:- निलेश जोशी , उपाध्यक्ष:- दिनेश रावडिया , पार्षद:- कमल कासलीवाल (भुरू) भाजपा जिला महामंत्री:- नरेन्द्र चौधरी (नंदू )
     





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    "व्यक्ति चाहे तो मुहूर्त, ग्रहण व नक्षत्र को देख अपनी सुरक्षा खुद कर सकता है'


    जब कहीं भी, किसी भी राष्ट्र में भूकम्प या कोई अन्य प्राकृतिक आपदा आती है तो उसका पूर्वानुमान खगोलशास्त्री लगाने से चूक भी सकते हैं, परन्तु पशु-पक्षियों के क्रियाकलापों, उनमें हो रही हलचल से जान कर समझ लेते हैं कि कोई प्राकृतिक आपदा आने वाली है। नन्हीं सी चिड़िया जब धूल में स्नान करने या जल में स्नान करने लगती है तब उसके हाव-भाव को देखकर भी अनुभवी कृषक सूखा एवं वर्षा का अनुमान लगा लेते हैं। 

    यह बात नवीन जैन मंदिर में बुधवार काे प्रवचन देते हुए अाचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कही। उन्हाेंने कहा कि सुनामी ने हजारों व्यक्तियों को प्रभावित किया, परन्तु उसका सटीक विश्लेषण करने से भी हमारे भूगर्भशास्त्री मौसम विशेषज्ञ, शोधकर्ता चूक गए। धरती हमेशा अकंप रहती है। वह घूमती भी नहीं है। यदि उसमें लेशमात्र भी कंपन आ जाए तो अनर्थ हो सकता है। कभी कभी हम किसी शांत एवं ज्ञानी व्यक्ति को देख कह देते हैं कि यह तो बिल्कुल बोलता ही नहीं। परन्तु हमको इसका आभास रहता है कि यदि वह बोलेगा तो भूकम्प आ जाएगा। व्यक्ति यदि चाहे तो मुहुर्त , ग्रहण एवं नक्षत्र को देख अपनी सुरक्षा स्वयं कर सकता है। द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव का प्रभाव जरूर पड़ता है। कर्म अपनी सत्ता में स्थिर रहते हैं। 

    उन्हाेंने कहा कि यह तो अटल सिद्धांत है कि कोई किसी प्रकार की किसी भी व्यक्ति की होनी या अनहोनी को टाल नहीं सकता, जो आया है वह जाएगा ही। आप अपने हृदय को पाषाण का बना लें। संपूर्ण मुनि संघ से जिसने जितना पाया उसका आनंद लें, जो नहीं मिला उसका क्षोभ दुःख कतई न करें, आना-जाना तो लगा ही रहता है। हमेशा वर्तमान में जियें। आने वाले सुप्रभात को अंगीकार करें। आपस में मैत्री भाव से रहें, प्राणी मात्र के प्रति करूणा भाव रखें, गरीब दीन दुखियाें की सेवा करते रहें। बड़ों का सम्मान छोटों से वात्सल्य भाव रखें। हमारा आशीर्वाद सदैव जन जन के साथ है। 

    उन्हाेंने कहा कि निश्चिंतता में भोगी सो जाता है वहीं योगी खो जाता है। अज्ञान दशा में जब जब भी तुम्हें लगा मेरा घर सुरक्षित है, मैं सुरक्षित हूँ, मेरा परिवार सुरक्षित है इस पर कोई वार करने वाला नहीं है तब तुम निश्चिंत होकर सो गए अर्थात् बाहर में पुण्य का घेरा जो सुविधा रूप में था उसमें तुम निश्चिंत हो गए वहीं तृप्त हो गए, चिंतन की बात तो बहुत दूर चिंता भी नहीं रही, क्योंकि मन को लगा कि बाहर में सब संभालने वाले हैं यही मिथ्याभ्रम तो तुझे तेरे स्वभाव को संभालने में असमर्थ रहा। तन भले ही निश्चिंत रहा किंतु चेतन इस मिथ्या सोच से निरंतर कर्म बांधता रहा। 
     
    आचार्यश्री ने कहा कि इस प्रसंग पर कबीरदास जी कहते हैं- ‘‘सुखिया सब संसार है खावे अरू सोवे, दुखिया दास कबीर है रोवे अरू जागे’’ प्रभु भक्त कभी भी निश्चिंत नहीं रह सकता उसे मालूम है कर्म कभी भी वार कर सकते हैं तभी तो साधक आत्मविशुद्धि के मार्ग में सदा जागृत रहता है वह जानता है कि सोना अर्थात् खोना है। अतः प्रथम भूमिका में वह चिंता तो नहीं करता किंतु आत्मचिंतन अवश्य करता है। खो जाता है अपने में, विलीन कर देता है स्वयं को स्वयं में। रहता संसार में है पर रमता स्वयं में है और उस खोने के काल में आनंद से तरबतर हो जाता है वह; क्योंकि उन क्षणों में कोई बाहरी विकल्प नहीं रहता, निस्तरंग शांत सरोवर की भांति प्रतीत होता है। कोई उसे देखता भी है तो वह भी आनंद से भर जाता है। पूछता है तुम कहां हो? तो वह स्वयं उत्तर नहीं दे पाता है; क्योंकि उत्तर देता है तो वह स्वभाव से हट जाता है। एकाकी होकर योगी अंदर के ज्ञानसरोवर में डूबता जाता है और असली स्वानुभूति के मोती बटोरता जाता है वहीं मोती आत्मा को श्रृंगारित करते हैं वह योगी किसी से कुछ कहते तक नहीं; क्योंकि कहने से संवेदन का आनंद खो जाता है इसीलिए वह तो स्वयं को स्वयं में डुबाए रखते हैं। 

    धन्य हैं वह आत्मचेता जो प्रतिकूलताओं में भी निश्चिंत होकर स्वयं में खो जाते हैं। धिक्कार का पात्र है वह भोगी, जो सुख सुविधाओं को पाकर भी सो जाता है। देह के लिए देह में सो जाना नहीं, आत्मा के लिए आत्मा में खो जाना है। जागृत रहना है अब सोना नहीं, समय अनमोल है उसे खोना नहीं। प्रवचन के पूर्व आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज की चरण वंदना कर गंधोदक लेने का परम सौभाग्य पीयूष जैन एवं स्वर्गीय सुभाषचंद जैन के परिवारजन विकास चौधरी को प्राप्त हुआ। आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज की आहारचर्या प्रतिभास्थली की बहिन रोहिता दीदी पुत्री अरूण बड्डे के यहां संपन्न हुई।
  17. Vidyasagar.Guru
    स्थान एवं पता - भ . पार्श्वनाथ चौक, एन-9 अहिंसा मार्ग सिडको औरंगाबाद - 431003  
    साईज - 21 फीट
    पत्थर - मार्बल 
    लागत - लगभग 2,60,000 
    पुन्यार्जक - 1. ध. ध. बा. ब्र. सुकुमार धनराज साहूजी एवं श्री राकेश प्रेमचंद साहूजी सराफा औरंगाबाद, 
    2.  ध. ध. श्री वीतराग जी प्रदीप जी सिंगरे, एवं श्री राजेश प्रदीप जी सिंगरे जामखेड निवासी 
    शिलान्यास तारीख - 10 जून 2017 
    शिलान्यास सान्निध्य (पिच्छिधारी) - मुनि श्री 108 अक्षयसागर जी महाराज, मुनि श्री नेमिसागर जी महाराज 
    शिलान्यास सान्निध्य (प्रतिष्ठाचार्य) - पंडितजी श्री सुरेशराव जी चन्द्रनाथ जी वायकोस औरंगाबाद
    शिलान्यास सान्निध्य (राजनेता) - श्री नितिनजी चित्ते, सौ. ज्योतिताई पिंजरकर
    लोकार्पण तारीख - 28 जून 2017 
    लोकार्पण सान्निध्य (पिच्छिधारी) - मुनि श्री 108 अक्षयसागर जी महाराज, मुनि श्री नेमिसागर जी महाराज 
    लोकार्पण सान्निध्य (प्रतिष्ठाचार्य) - बा. ब्र. अजय भैय्या एवं श्री सुरेशराव जी चन्द्रनाथ जी वायकोस, बा. ब्र. सुकुमार भैय्या एवं बा, ब्र. संदिप भैय्या, बा. ब्र. विकास भैय्या
    लोकार्पण सान्निध्य (राजनेता) - मा. श्री हरिभाऊजी बागडे, मा. श्री चंद्रकांतजी खैरे सांसद,  मा. श्री अतुलजी सावे, मा. श्री बापुसाहेब घडमोड़, मा. श्री डि. एम. मुगलीकर,
    मा. श्री राजेंद्रबाबुजी दर्डा, मा. श्री प्रशांत जी देसरडा, श्री विकास जैन, श्री नितिनजी चित्ते, सौ. ज्योतिताई पिंजरकर
     










  18. Vidyasagar.Guru
    स्थान एवं पता - श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन नंसिया , रामगंज मंडी
    साइज़ - 27 फिट
    पत्थर - लाल बंसी पहाड़पुर पत्थर
    पुण्यार्जक का नाम - सुरेश कुमार जैन - रेखा जैन, प्राची जैन, सिद्धार्थ कुमार जैन बाबरिया ( दौतड़ा वाले ) सपरिवार
    जी पी एस लोकेशन - 24.6375942, 75.9356577
    शिलान्यास तारीख - 17 जुलाई 2018
    शिलान्यास सानिध्य प्रतिष्टाचार्य - अनिल भैया
    लोकार्पण तारीख - 25 नवम्बर 2018
    लोकार्पण सानिध्य पिच्छीधारी - मुनि श्री विनीत सागर जी महाराज, मुनि श्री चन्द्रप्रभ सागर जी महाराज
     

     

     

  19. Vidyasagar.Guru
    स्थान एवं पता - श्री विज्ञान फिलिंग स्टेशन बोराव ग्राम - बोराव तहसील - रावतभाटा जिला - चित्तौड़गढ़ (राज.)
    साइज़ - 30 फिट 
    पत्थर - मकराना मार्बल
    लागत - 300001/-
    पुण्यार्जक का नाम - प्रभुलाल , ज्ञानचंद , कैलाशचंद , चांदमल एवं समस्त ठग परिवार बोराव
    शिलान्यास तारीख - 15 अगस्त 2017
    शिलान्यास सानिध्य पिच्छीधारी - मुनि श्री 108 विनीत सागर जी महाराज , मुनि श्री 108 चन्द्र प्रभ सागर जी महाराज
    शिलान्यास सानिध्य प्रतिष्टाचार्य - प. धरणेन्द्र जी शास्त्री
    लोकार्पण तारीख - 5 अक्टुबर 2017
    लोकार्पण सानिध्य राजनेता - प्रभुलाल जी , ज्ञानचंद जी , कैलाश चंद जी , चांदमल जी ठग
     

     

     

     

     

     

     

     

     
     
  20. Vidyasagar.Guru
    स्थान  एवं पता - अहिंसा सर्किल, बेगूं , चितोरगढ़
    साइज़ - 21 फीट 
    पत्थर - सफ़ेद मार्बल  
    लागत - 9 लाख
    पुण्यार्जक का नाम - नगर पालिका और दिगंबर जैन समाज बेगूं
    शिलान्यास तारीख - 25 जुलाई 2018
    शिलान्यास सानिध्य प्रतिष्टाचार्य - धर्नेन्द्रा शास्त्री
    शिलान्यास सानिध्य राजनेता - MLA बेगूं (सुरेश धाकड) और नगरपालिका चेयरमैन (पूजा सोनी) 
    लोकार्पण तारीख - 5 अक्टूबर 2018
    लोकार्पण सानिध्य राजनेता - MLA बेगूं (सुरेश धाकड) और udh state minister (श्री चंद कृपलानी) और चेयरमैन (पूजा सोनी)
     
     


  21. Vidyasagar.Guru
    स्थान - श्री दिगम्बर जैन पंचायती नसियां जी ब्यावर
    प्रसिद्ध स्थान - (नारेली जिला अजमेर)
    साइज - 16*16*31
    पत्थर - सफेद मकराना मार्बल 
    लागत - ₹ 27 लाख
    पुण्यार्जक का नाम - श्री दिगम्बर जैन पंचायत के सदस्यों द्वारा ब्यावर
    शिलान्यास तारीख - 13 मई 2018 (रविवार)
    शिलान्यास सानिध्य पिच्छीधारी - प्रेरणा श्री 108 मुनि पुंगव सुधा सागर जी महाराज, श्री 108 मुनि प्रमाण सागर जी महाराज
    शिलान्यास सानिध्य प्रतिष्टाचार्य - श्री प.घनश्यामदास जी जैन शास्त्री/श्री प.अभिषेक जैन शास्त्री
    जी पी एस लोकेशन - श्री दिगम्बर जैन पंचायती नसिया सूरज पोल गेट बहार ब्यावर राजस्थान 305901- https://maps.google.com/?cid=4874196284490782414
     

     
     

     



     
     
     
     
  22. Vidyasagar.Guru
    स्थान  एवं पता - जीवाजी विश्व विद्यालय मार्ग एवं उच्च न्यायालय मार्ग  गोविन्द पुरी चौराहा
    निकटतम प़सिध्द स्थान - सचिन तेन्दूलकर मार्ग ग्वालियर
    पत्थर/साइज़ (माप) - मकराना व्हाईट KS2 4 - 10/4 - 10/21,1 फीट
    लागत - लगभग 10 लाख
    लोकार्पण दिनांक - महावीर जयन्ती 29/3/2018
    पुण्यार्जक - सकल जैन समाज ठाटीपुर ,भारतीय जैन मिलन,जैन मिलन ठाटीपुर,जैन मिलन महिला ठाटीपुर एवं डा०विनोद जैन परिवार
    अध्यक्ष - ज्ञानचन्द् जैन
    अध्यक्ष - जेनमिलन ठाटीपुर, अतिवीर ज्ञानचन्द् जैन
    अध्यक्ष - जैन मिलन महिला ठाटीपुर वीरागंना उर्मिला जैन पुण्याजृक
    उपाध्यक्ष - हरीश चन्द् जैन
    सचिव - प्रमोद जैन दिगम्बर जैन समाज ठाटीपुर गुलाब चन्द की बगीची,ठाटीपुर ग्वालियर
     
     

     

     
     
     
     










     
     

     
     
  23. Vidyasagar.Guru
    स्थान एवं पता - दयोदय महातीर्थ श्री आदिनाथ दिगंबर मंदिर बोरगांव (खंडवा)
    साइज़ (माप) - 21 फीट   
    पत्थर -  सफ़ेद मार्बल 
    लागत  - 600000
    पुण्यार्जक का नाम - समस्त दिगंबर जैन समाज बोरगांव खंडवा
    शिलान्यास तारीख - 9/6/2017
    शिलान्यास सान्निध्य राजनेता - विधायक श्री देवेन्द्र जी वर्मा सचिव सुनील जी गदिया, प्रदीप जी कासलीवाल, सतीश कुमार काला, सुभाष जी गदिया, दिलीप पहाड़िया एवं समस्त गणमान्य अध्यक्ष बोरगांव तीर्थ कमेठी
    लोकार्पण तारीख - 26/06/2018
    लोकार्पण सान्निध्य - आचार्य श्री अनेकांतसागर जी महाराज ससंघ
     


  24. Vidyasagar.Guru
    प्रश्न 1 - कातंत्र रूपमाला जो दो तीन वर्ष में पढ़ी जाती है, उसे आचार्य श्री ने कितने दिन में पढ़ी?
    प्रश्न 2 - आचार्य श्री विद्यासागर जी दीक्षार्थी से क्या कहते है?
    प्रश्न 3 - "साधुओं पर जिसकी श्रद्धा हट गई वह आचार्य श्री विद्यासागर जी के दर्शन अवश्य करें" ये किसने कहा है?
    प्रश्न 4 - संयमोत्सव वर्ष के समापन पर दूरदर्शन पर आचार्य श्री विद्यासागर जी मौन साधना की परछाइयाँ किसने प्रसारित की?
     
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