अहंकार ही दुख का बड़ा कारण है, जीवन की मूलभूत समस्या अहंकार है। मैं भी कुछ हूं यह जो सोच है यही अहंकार है। अहंकार का जोर इतना जबरदस्त रहता है कि वह धर्म को भी अधर्म बना देता है। पुण्य को पाप में बदल देता है। अहंकार को सत्य समझाना अत्यंत कठिन कार्य है। यह बात नवीन जैन मंदिर में प्रवचन देते हुए आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कही।
उन्होंने कहा कि अहंकार अंधा है। अहंकारियों की स्थिति अंधों जैसी होती है। उनके पास आंखें होती हैं लेकिन फिर भी उन्हें दिखाई नहीं देता। रावण की पूरी लंका तबाह हो रही थी लेकिन रावण को लंका व अपने खानदान का तबाह होना कहां दिख रहा था। कंस की आंखें थीं लेकिन वह श्रीकृष्ण की शक्ति व सामर्थ्य को कहां देख सका। दुर्योधन आंखों वाला होकर भी क्या अहंकारी नहीं था। अहंकार विवेक का नाश कर देता है। अहंकार से ही क्रोध भी आ जाता है। अहंकार बड़ा खतरनाक है। अहंकार मीठा जहर है। अहंकार ठग है जो मानव को हर पल ठग रहा है। मानव में जो ’मैं’ और ’मेरापन’ है यही अहंकार की जड़ है। मैं ही परिवार का संरक्षक हूं। मैं ही समाज का कर्णधार हूं। मैं ही प|ी और बच्चों का भरण-पोषण कर रहा हूं। यही अहंकार मानव को दुखी बनाए हुए हैं। ऐसा झूठा अहंकार ही मानव को दुखी बना रहा है। उन्होंने कहा कि आज हमारे दांपत्य जीवन में, पारिवारिक व सामाजिक जीवन में जो संघर्ष, मनमुटाव, मनोमालिन्य दिख रहा है, उसका मूल कारण अहंकार है।
यदि प|ी पति के प्रति और पति-पत्नी के प्रति, बाप-बेटा के प्रति और बेटा-बाप के प्रति, शिष्य-गुरू के प्रति और गुरू-शिष्य के प्रति समर्पण व सहयोग का रुख अपनाएं तो जीवन में व्याप्त सारी विसंगतियां समाप्त हो जाएं। अहंकार का समाधान विनम्रता है, मृदुता है। जो सुख विनम्रता व मृदुता में है वह अकड़ने में नहीं है। जो मृदु होगा उसे मौत कभी नहीं मिटाएगी। वह देर-सबेर मरेगा तो वह मरकर भी अमर हो जाएगा। राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, क्राइस्ट ये ऐसे महापुरुष हुए हैं जो हमेशा विनम्रता में जिए हैं और अहंकार की गंध इनके किसी व्यवहार में कभी नहीं आई। मान करें तो विनय नहीं और विनय बिना विद्या भी नहीं आती है।
अहंकार पतन की ओर ले जाता है और समर्पण उन्नति की ओर। अहंकार मृत्यु की ओर एवं समर्पण परम सुख की ओर। कुतर्क नर्क है, समर्पण स्वर्ग है। आचार्यश्री के प्रवचन के पूर्व बांदरी में आयोजित पंचकल्याणक महामहोत्सव के प्रमुख पात्रों ने समस्त आचार्य संघ को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद लिया। आचार्यश्री की आहारचर्या सुभाषचंद्र संदीप रोकड़या के यहां संपन्न हुई ।
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