"व्यक्ति चाहे तो मुहूर्त, ग्रहण व नक्षत्र को देख अपनी सुरक्षा खुद कर सकता है'
"व्यक्ति चाहे तो मुहूर्त, ग्रहण व नक्षत्र को देख अपनी सुरक्षा खुद कर सकता है'
जब कहीं भी, किसी भी राष्ट्र में भूकम्प या कोई अन्य प्राकृतिक आपदा आती है तो उसका पूर्वानुमान खगोलशास्त्री लगाने से चूक भी सकते हैं, परन्तु पशु-पक्षियों के क्रियाकलापों, उनमें हो रही हलचल से जान कर समझ लेते हैं कि कोई प्राकृतिक आपदा आने वाली है। नन्हीं सी चिड़िया जब धूल में स्नान करने या जल में स्नान करने लगती है तब उसके हाव-भाव को देखकर भी अनुभवी कृषक सूखा एवं वर्षा का अनुमान लगा लेते हैं।
यह बात नवीन जैन मंदिर में बुधवार काे प्रवचन देते हुए अाचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कही। उन्हाेंने कहा कि सुनामी ने हजारों व्यक्तियों को प्रभावित किया, परन्तु उसका सटीक विश्लेषण करने से भी हमारे भूगर्भशास्त्री मौसम विशेषज्ञ, शोधकर्ता चूक गए। धरती हमेशा अकंप रहती है। वह घूमती भी नहीं है। यदि उसमें लेशमात्र भी कंपन आ जाए तो अनर्थ हो सकता है। कभी कभी हम किसी शांत एवं ज्ञानी व्यक्ति को देख कह देते हैं कि यह तो बिल्कुल बोलता ही नहीं। परन्तु हमको इसका आभास रहता है कि यदि वह बोलेगा तो भूकम्प आ जाएगा। व्यक्ति यदि चाहे तो मुहुर्त , ग्रहण एवं नक्षत्र को देख अपनी सुरक्षा स्वयं कर सकता है। द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव का प्रभाव जरूर पड़ता है। कर्म अपनी सत्ता में स्थिर रहते हैं।
उन्हाेंने कहा कि यह तो अटल सिद्धांत है कि कोई किसी प्रकार की किसी भी व्यक्ति की होनी या अनहोनी को टाल नहीं सकता, जो आया है वह जाएगा ही। आप अपने हृदय को पाषाण का बना लें। संपूर्ण मुनि संघ से जिसने जितना पाया उसका आनंद लें, जो नहीं मिला उसका क्षोभ दुःख कतई न करें, आना-जाना तो लगा ही रहता है। हमेशा वर्तमान में जियें। आने वाले सुप्रभात को अंगीकार करें। आपस में मैत्री भाव से रहें, प्राणी मात्र के प्रति करूणा भाव रखें, गरीब दीन दुखियाें की सेवा करते रहें। बड़ों का सम्मान छोटों से वात्सल्य भाव रखें। हमारा आशीर्वाद सदैव जन जन के साथ है।
उन्हाेंने कहा कि निश्चिंतता में भोगी सो जाता है वहीं योगी खो जाता है। अज्ञान दशा में जब जब भी तुम्हें लगा मेरा घर सुरक्षित है, मैं सुरक्षित हूँ, मेरा परिवार सुरक्षित है इस पर कोई वार करने वाला नहीं है तब तुम निश्चिंत होकर सो गए अर्थात् बाहर में पुण्य का घेरा जो सुविधा रूप में था उसमें तुम निश्चिंत हो गए वहीं तृप्त हो गए, चिंतन की बात तो बहुत दूर चिंता भी नहीं रही, क्योंकि मन को लगा कि बाहर में सब संभालने वाले हैं यही मिथ्याभ्रम तो तुझे तेरे स्वभाव को संभालने में असमर्थ रहा। तन भले ही निश्चिंत रहा किंतु चेतन इस मिथ्या सोच से निरंतर कर्म बांधता रहा।
आचार्यश्री ने कहा कि इस प्रसंग पर कबीरदास जी कहते हैं- ‘‘सुखिया सब संसार है खावे अरू सोवे, दुखिया दास कबीर है रोवे अरू जागे’’ प्रभु भक्त कभी भी निश्चिंत नहीं रह सकता उसे मालूम है कर्म कभी भी वार कर सकते हैं तभी तो साधक आत्मविशुद्धि के मार्ग में सदा जागृत रहता है वह जानता है कि सोना अर्थात् खोना है। अतः प्रथम भूमिका में वह चिंता तो नहीं करता किंतु आत्मचिंतन अवश्य करता है। खो जाता है अपने में, विलीन कर देता है स्वयं को स्वयं में। रहता संसार में है पर रमता स्वयं में है और उस खोने के काल में आनंद से तरबतर हो जाता है वह; क्योंकि उन क्षणों में कोई बाहरी विकल्प नहीं रहता, निस्तरंग शांत सरोवर की भांति प्रतीत होता है। कोई उसे देखता भी है तो वह भी आनंद से भर जाता है। पूछता है तुम कहां हो? तो वह स्वयं उत्तर नहीं दे पाता है; क्योंकि उत्तर देता है तो वह स्वभाव से हट जाता है। एकाकी होकर योगी अंदर के ज्ञानसरोवर में डूबता जाता है और असली स्वानुभूति के मोती बटोरता जाता है वहीं मोती आत्मा को श्रृंगारित करते हैं वह योगी किसी से कुछ कहते तक नहीं; क्योंकि कहने से संवेदन का आनंद खो जाता है इसीलिए वह तो स्वयं को स्वयं में डुबाए रखते हैं।
धन्य हैं वह आत्मचेता जो प्रतिकूलताओं में भी निश्चिंत होकर स्वयं में खो जाते हैं। धिक्कार का पात्र है वह भोगी, जो सुख सुविधाओं को पाकर भी सो जाता है। देह के लिए देह में सो जाना नहीं, आत्मा के लिए आत्मा में खो जाना है। जागृत रहना है अब सोना नहीं, समय अनमोल है उसे खोना नहीं। प्रवचन के पूर्व आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज की चरण वंदना कर गंधोदक लेने का परम सौभाग्य पीयूष जैन एवं स्वर्गीय सुभाषचंद जैन के परिवारजन विकास चौधरी को प्राप्त हुआ। आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज की आहारचर्या प्रतिभास्थली की बहिन रोहिता दीदी पुत्री अरूण बड्डे के यहां संपन्न हुई।
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