Jump to content
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

Administrators
  • Posts

    22,360
  • Joined

  • Last visited

  • Days Won

    895

 Content Type 

Forums

Gallery

Downloads

आलेख - Articles

आचार्य श्री विद्यासागर दिगंबर जैन पाठशाला

विचार सूत्र

प्रवचन -आचार्य विद्यासागर जी

भावांजलि - आचार्य विद्यासागर जी

गुरु प्रसंग

मूकमाटी -The Silent Earth

हिन्दी काव्य

आचार्यश्री विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम

विशेष पुस्तकें

संयम कीर्ति स्तम्भ

संयम स्वर्ण महोत्सव प्रतियोगिता

ग्रन्थ पद्यानुवाद

विद्या वाणी संकलन - आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के प्रवचन

आचार्य श्री जी की पसंदीदा पुस्तकें

Blogs

Events

Profiles

ऑडियो

Store

Videos Directory

Everything posted by संयम स्वर्ण महोत्सव

  1. परिचित भी, अपरिचित लगे, स्वस्थ ज्ञान को। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  2. पर की पीड़ा, अपनी करुणा की, परीक्षा लेती। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  3. सहजता औ, प्रतिकार का भाव, बेमेल रहे। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  4. बंदर कूंदे, अचूक और उसे, अस्थिर कहो। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  5. हाथ कंगन, बिना बोले रहे, दो, बर्तन क्यों ना? हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  6. कैदी हूँ, देह, जेल में जेलर ना, तो भी वहीं हूँ। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  7. भली नासिका, तू क्यों कर फूलती, मान हानि में। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  8. संसार में सबसे ज्यादा ईमानदार है तो वह है कर्म। मुनि हो, श्रावक हो, राजा हो या रंक, युवा हो या वृद्ध, कर्म किसी के साथ पक्षपात नहीं करता। जीव जैसा कर्म करता है वैसा ही उसे फल मिलता है। कर्म किसे कहते हैं, कितने होते हैं, उनका बन्ध किन कारणों से होता है, आदि का वर्णन इस अध्याय में है। 1. कर्म किसे कहते हैं ? जिसके द्वारा आत्मा पर तंत्र किया जाता है, उसे कर्म कहते हैं। 2. कर्म के अस्तित्व को कैसे जान सकते हैं ? जीव और कर्म का अनादिकाल से सम्बन्ध चला आ रहा है। मैं हूँ इस अनुभव से जीव जाना जाता है। संसार में कोई गरीब है, कोई अमीर है, कोई बुद्धिमान है, कोई बुद्धिहीन है, कोई रोगी है, कोई स्वस्थ है, इस विचित्रता से कर्म के अस्तित्व को जान सकते हैं। 3. कर्म किस प्रकार आते हैं ? जैसे अग्नि से गर्म किया हुआ लोहे का गोला पानी में डालते ही सब तरफ से पानी को ग्रहण करता है, वैसे ही संसारी आत्मा मन - वचन - काय की क्रियाओं से प्रति समय आत्म प्रदेशों से कर्म ग्रहण करता है, हमारे ही रागद्वेष परिणाम से कर्म आते हैं। 4. कर्म कितने प्रकार के होते हैं ? कर्म आठ प्रकार के होते हैं ज्ञानावरण कर्म - जो आत्मा के ज्ञान गुण को ढकता है, वह ज्ञानावरण कर्म है। दर्शनावरण कर्म - जो आत्मा के दर्शन गुण को ढकता है, वह दर्शनावरण कर्म है। वेदनीय कर्म - जो सुख-दुख का वेदन (अनुभूति) कराता है, वह वेदनीय कर्म है। मोहनीय कर्म - जो आत्मा के सम्यक्त्व और चारित्र गुण को घातता है, वह मोहनीय कर्म है। आयु कर्म - जो प्राणी को मनुष्य आदि के शरीर में रोके रखता है, वह आयु कर्म है। नाम कर्म - जो अच्छे - बुरे शरीर की संरचना करता है, वह नाम कर्म है। गोत्र कर्म - जिस कर्म के उदय से जीव को नीच व उच्च गोत्र की प्राप्ति होती है, वह गोत्र कर्म है। अंतराय कर्म - जो दान, लाभ, भोग, उपभोग एवं वीर्य में विध्न डालता है, वह अंतराय कर्म है। 5. आठ कर्मों के कार्यों को दर्शाने के लिए कौन-कौन से उदाहरण दिए गए हैं ? आठ कर्मों के कार्यों को दर्शाने के लिए निम्न उदाहरण दिए गए हैं ज्ञानावरण कर्म - देवता के मुख पर ढके वस्त्र के समान। दर्शनावरण कर्म - द्वारपाल के समान। वेदनीय कर्म - शक्कर की चाशनी से लपेटी तलवार के समान । मोहनीय कर्म - मदिरा के समान। आयु कर्म - बेडी के समान। नाम कर्म - चित्रकार (पेंटर) के समान। गोत्र कर्म - कुम्भकार के समान। अन्तराय कर्म - भण्डारी के समान। 6. इन आठ कर्मों में कितने घातिया और कितने अघातिया हैं ? घातिया कर्म भी चार हैं एवं अघातिया कर्म भी चार हैं - घातिया कर्म - जो जीव के गुणों को घातते हैं, वे घातिया कर्म हैं। वे चार हैं:- ज्ञानावरण कर्म, दर्शनावरण कर्म, मोहनीय कर्म और अन्तराय कर्म। (गी.क.,9) अघातिया कर्म - जो उस प्रकार से जीव के गुणों का घात नहीं करते हैं, वे अघातिया कर्म हैं। वे चार हैं :- वेदनीय कर्म, आयु कर्म, नाम कर्म और गोत्र कर्म। (गोक,9) 7. ज्ञानावरण कर्म का बंध किन-किन कारणों से होता है ? ज्ञानावरण कर्म का बंध निम्न कारणों से होता है - शिक्षा गुरु का नाम छिपाना। किसी के अध्ययन में बाधा डालना । जैसे - बिजली बंद कर देना, पुस्तक फाड़ देना, पुस्तक की चोरी कर लेना आदि। किसी के ज्ञान की महिमा को सुनने के बाद मुख से कुछ न कहकर अंतरंग में ईष्या भाव रखना। ज्ञान के साधनों का दुरुपयोग करना। किसी कारण से मैं नहीं जानता ऐसा कहकर ज्ञान का न देना। ज्ञान होने पर भी ईष्य के कारण ज्ञान न देना। दूसरे के द्वारा प्रकाशित ज्ञान को रोकना। (तसू, 6/10) शास्त्र विक्रय करना आदि कारणों से ज्ञानावरण कर्म का बंध होता है। (रावा, 6/10/20) 8. दर्शनावरण कर्म का बंध किन-किन कारणों से होता है ? दर्शनावरण कर्म का बंध निम्न कारणों से होता है - दर्शन मात्सर्य, दर्शन अन्तराय, आँखें फोड़ना, इन्द्रियों के विपरीत प्रवृत्ति, दृष्टि का गर्व, दीर्घ निद्रा, दिन में सोना, आलस्य, नास्तिकता, सम्यग्दृष्टि में दूषण लगाना, कुतीर्थ की प्रशंसा, हिंसा करना और यतिजनों के प्रति ग्लानि का भाव आदि दर्शनावरण कर्म के बंध के कारण हैं। (रावा, 6/10/20) 9. वेदनीय कर्म का बंध किन-किन कारणों से होता है ? वेदनीय कर्म का बंध निम्न कारणों से होता है - अपने में, दूसरे में, या दोनों में विद्यमान दु:ख, शोक, ताप, आक्रन्दन, वध और परिदेवन आदि असाता वेदनीय कर्म के बंध के कारण हैं तथा सभी प्राणियों पर अनुकम्पा रखने से, व्रतियों पर अनुकम्पा रखने से, दान देने से, सराग संयम, देशसंयम, बालतप, हृदय में शान्ति रखने से और लोभ का त्याग करने से, साता वेदनीय का बंध होता है। (तसू, 6/11-12) 10. मोहनीय कर्म का बंध किन-किन कारणों से होता है ? मोहनीय कर्म का बंध निम्न कारणों से होता है - केवली भगवान्, श्रुत, संघ,धर्म एवं देवों में झूठे दोष लगाने से दर्शनमोहनीय अर्थात् मिथ्यात्व का बंध होता है तथा कषायों की तीव्रता से, किसी को चारित्र लेने से रोकने में, चारित्र से भ्रष्ट करने आदि से चारित्र मोहनीय का बंध होता है। (तसू, 6/13-14) 11. आयु कर्म का बंध किन-किन कारणों से होता है ? आयु कर्म का बंध निम्न कारणों से होता है - नरकायु - बहुत आरम्भ एवं बहुत परिग्रह से। (तसू,6/15) तिर्यञ्चायु - मायाचारी, अतिसंधान, विश्वासघात, विपरीत मार्ग का उपदेश देने से, (ससि,6/1660) किसी का कर्ज न चुकाने आदि से। मनुष्यायु - स्वभाव से मृदुस्वभावी हो, पात्रदान में प्रीति युक्त हो, अल्प आरम्भ, अल्प परिग्रह वाला हो आदि से। (रावा, 6/17) 4. देवायु - संयम पालन करने से, कषाय की मंदता से, दान देने से, तीर्थों की सेवा से, अकामनिर्जरा, बालतप आदि से। (त.सू, 6/20) 12. नाम कर्म का बंध किन-किन कारणों से होता है ? नाम कर्म के बंध के निम्न कारण हैं - मन, वचन, काय की कुटिलता अर्थात् सोचना कुछ, बोलना कुछ और करना कुछ, चुगलखोरी, चित्त की अस्थिरता, झूठे मापतौल का प्रयोग करने से, किसी को धोखा देने से, अशुभ नाम कर्म का बंध होता है। (रावा, 6/22/1-4) इसके विपरीत मन, वचन, काय की सरलता, चुगलखोरी का त्याग, चित्त की स्थिरता आदि से शुभ नाम कर्म का बंध होता है तथा सोलहकारण भावना से तीर्थंकर शुभ नाम कर्म का बन्ध होता है। (तसू, 6/23) 13. गोत्र कर्म का बंध किन-किन कारणों से होता है ? गोत्र कर्म के बंध के निम्न कारण हैं - परनिंदा, आत्म प्रशंसा, दूसरे के विद्यमान गुणों को ढकना तथा अपने अविद्यमान गुणों को प्रकट करना, अरिहंत आदि में भक्ति का न होना आदि से नीच गोत्र का बंध होता है तथा इससे विपरीत अपनी निंदा, दूसरे की प्रशंसा, अपने गुणों का आच्छादन (ढकना) तथा पर के गुणों का उद्भावन (प्रकट) करना, अरिहंत आदि में भक्ति युक्त होना, आदि से उच्च गोत्र का बंध होता है। (त.सू., 6/25-26) 14. अन्तराय कर्म का बंध किन-किन कारणों से होता है ? अन्तराय कर्म के बंध के निम्न कारण हैं - दान आदि में बाधा उपस्थित करने से, जिन पूजा का निषेध करने से, निर्माल्य द्रव्य का सेवन करने से तथा अपनी शक्ति को छिपाने से अंतराय कर्म का बंध होता है। (त.सू, 6/27) 15. द्रव्य कर्म, भावकर्म एवं नोकर्म किसे कहते हैं ? द्रव्य कर्म - पुद्गल पिण्ड को द्रव्य कर्म कहते हैं। (गोक,6) या सब शरीरों की उत्पत्ति के मूल कारण कार्मण शरीर को कर्म (द्रव्य कर्म) कहते हैं। (रा.वा,2/25/3) भाव कर्म - पुद्गल पिण्ड में जो फल देने की शक्ति है वह भाव कर्म है (गोका,6)अथवा राग-द्वेष आदि परिणामों को भाव कर्म कहते हैं। नोकर्म - औदारिक, वैक्रियिक, आहारक और तैजस नाम कर्म के उदय से चार प्रकार के शरीर होते हैं। वे नोकर्म शरीर हैं। पाँचवाँ जो कामणि शरीर है, वह तो कर्म रूप ही है। (गो.जी.244) 16. ज्ञानावरणादि कर्म क्या कहते हैं ? ज्ञानावरण कर्म - ज्ञानावरण कर्म कहता है, मैंने बाहुबली जैसे महापराक्रमी को एक वर्ष तक खड़ा रखा केवल ज्ञान नहीं होने दिया। दर्शनावरण कर्म - दर्शनावरण कर्म कहता है मैंने यथाख्यात चारित्र वाले को भी आत्मा का दर्शन नहीं होने दिया और उसे नरक निगोद की यात्रा पुन: करा दी। वेदनीय कर्म - वेदनीय कर्म कहता है मैंने सनतकुमार मुनिराज के शरीर में सात सौ वर्ष तक कुष्ठ रोग कराया। मुनि वादिराज के शरीर में सौ वर्ष तक कुष्ठ रोग कराया। श्रीपाल जैसे कोटिभट्ट को कोढ़ी बनाकर निकलवाया। मोहनीय कर्म - मोहनीय कर्म कहता है मैंने राम जैसे महान् पुरुष को लक्ष्मण के मृतक शरीर को लेकर 6माह तक कंधे पर रखकर घुमवाया। सीता की जंगलो-जंगलो में खोज कराई। उपशम श्रेणी तक के मुनिराज को भी प्रथम गुणस्थान में भिजवाया। आयुकर्म - आयु कर्म कहता है मैंने राजाश्रेणिक जैसे क्षायिक सम्यकद्रष्टि को एवं रावण, सुभौमचक्रवर्ती आदि जीवों को भी नरक में रोक रखा है। नाम कर्म - नाम कर्म कहता है, मैंने अनेक को गूँगा, कुबड़ा, काला, अष्टावक्र (आठ अंग टेडे) बनाया । गोत्र कर्म - गोत्र कर्म कहता है, मैंने बहुतों को ऊँच - नीच कुल में डाला। अंतराय कर्म - अंतराय कर्म कहता है, मैंने आदिनाथ मुनि को 7 माह 9 दिन तक आहार नहीं मिलने दिया। 17. एक जीव के कितने कर्मों का उदय होता है ? प्रथम गुणस्थान से दसवें गुणस्थान तक आठों कर्मों का तथा ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थान में मोहनीय कर्म के अलावा सात कर्मों का एवं तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान में चार कर्मों का उदय रहता है।
  9. तुम्बी तैरती, तारती औरों को भी, गीली क्या सूखी? हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  10. रोते को देख, रोते तो कभी और, रोना होता है। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  11. जल में नाव, कोई चलाता किंतु, रेत में मित्रों। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  12. कोहरा को ना, को रहा कोहरे में, ढली मोह है। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  13. ज्ञानी बने हो, जब बोलो अपना, स्वाद छूटता। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  14. मरघट पे जमघट है शव, कहता लौटूँ। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  15. बहुत सोचो, कब करो ना सोचे, करो लुटोगे। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  16. किस मूढ़ में, मोड़ पे खड़ा सही, मोड़ा मुड़ जा। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  17. मण्डूक बनो, कूप मण्डूक नहीं, नहीं डूबोगे। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  18. किसे मैं कहूँ, मुझे मैं नहीं मिला, तुम्हें क्या (मैं) मिला। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  19. असत्य बचे, बाधा न सत्य कभी, पिटे न बस। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  20. शब्दों में अर्थ, है या आत्मा में इसे, कौन जानता। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  21. बड़ों छोटो पे, वात्सल्य विनय से, एकता पाये। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  22. एक से नहीं, एकता से काम लो, काम कम हो। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  23. कटु प्रयोग, उसे रूचता जिसे, आरोग्य पाना। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  24. व्यंजन छोडूँ, गूंग है पढूँ है सो, स्वर में सनूँ। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  25. शब्दों में अर्थ, यदि भरा किससे, कब क्यों बोलो। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
×
×
  • Create New...