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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. ज्ञानरथ के सार्थवाह गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज को कोटिशः प्रणाम करता हूँ.... हे गुरुवर! आपके लाडले शिष्य ब्रम्हचारी विद्याधर जी आपको तो जवाब नही देते थे किन्तु अज्ञानियों के अज्ञान अंधकार को दूर करने के लिए कम शब्दों में, टू द पॉइंट बोलकर संतुष्ट करके निरुत्तर कर देते थे। इस सम्बन्ध में नसीराबाद के आपके। अनन्य भक्त रतनलाल पाटनी जी ने विद्याधर के हाजिर जवाबी का संस्मरण सुनाया- हाजिरजवाबी ब्रम्हचारी विद्याधर "१९६८ ग्रीष्मकालीन प्रवास के दौरान नसीराबाद में ज्ञानसागर मुनिराज ने अपने प्रिय मनोज्ञ शिष्य, ब्रम्हचारी विद्याधर जी को हिन्दि भाषा मे पारंगत बनाने हेतु राजकीय व्यापारिक स्कूल नसीराबाद के प्रधानाध्यापक श्री मोहनलाल जी जैन को कहा- आप विद्याधर जी को हिन्दी भाषा, लिपी, छन्द, व्याकरण सिखायें। तब मोहनलाल जी उन्हें हिन्दी का अध्ययन कराने लगे। इसके साथ ही विद्याधर जी की मनोभावना अंग्रेजी सीखने की भी हुई। तो मोहनलाल जी ने अपने ही राजकीय व्यापारिक स्कूल नसीराबाद के अंग्रेजी के अध्यापक श्रीमान् रामप्रसाद जी बंसल को अंग्रजी पढ़ाने का पुण्यार्जन दिया। इसके अतिरिक्त ज्ञानसागर गुरु महाराज ने छगनलाल पाटनी अजमेर को विद्याधर जी से धर्म-चर्चा के लिए समय दिया। साथ ही नसीराबाद के पण्डित चम्पालाल जी शास्त्री भी विद्याधर जी से धर्म-चर्चा करते थे। सुबह से लेकर रात्रि १० बजे तक विद्याधर जी ज्ञानाराधना में लीन रहते। एक दिन मजाक में हमने कहा- भैया जी! आप इतना पढ़कर क्या करोगे ? कोई नोकरी करना है क्या ? तो हँसते हुए बोले- 'क्या करना है- क्या नही करना है ? इसको जानने के लिए अध्ययन कर रहा हूँ।' यह जवाब सुनकर फिर कभी कोई प्रश्न करने की हिम्मत नही हुई।" इस तरह ब्रम्हचारी विद्याधर जी अपनी तार्किक बातों से संक्षिप्त में ही संतुष्ट कर देते थे। यह बुद्धिमत्ता बचपन से ही उनके व्यक्तित्व में झलकती है। सतत ज्ञानाराधना से प्रज्ञा को पैनापन प्रदान करने में पुरषार्थ करते रहते थे।उनका यह वैशिष्ट्य आज भी देखने को मिलता है की कम शब्दों में संतोषपूर्ण आनन्ददायक समाधान देते है। ऐसी प्रज्ञा को नमन करता हु.....आप सम ज्ञानसागर में गोता लगाना चाहता हूँ जिसमे अज्ञानता की श्वाँसे रंध जाएँ..... अन्तर्यात्री महापुरुष पुस्तक से साभार
  2. प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {30 नवंबर 2017} चन्द्रगिरि, डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने एक दृष्टांत के माध्यम से बताया कि एक पिता अपने बेटे को सही राह (धर्म मार्ग) बताता है, परंतु बेटे को पिता की बात कम ही समझ में आती है। वह केवल अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु प्रयत्न करता है और उसमें सफलता भी प्राप्त करता है। जब उसके पास उसकी इच्छा अनुरूप सभी साधन और सुविधाएं उपलब्ध हो जाती हैं तो वह बैठा सोचता है कि उसके पास आज सभी चीजें जो वो अपनी जिंदगी में चाहता है, उपलब्ध हैं किंतु मन मान नहीं रहा है। तब उसे अपने पिता की बात याद आती है और वह अगले दिन देश वापस आता है और अपने देश की मिट्टी को माथे से लगाता है और फिर अपने पिता से मिलता है। पिता उसे देखकर खुश हो जाते हैं और एक पिता अपने बेटे के कार्यानुसार उसके भविष्य को अच्छी तरह जानता है। उन्हें मालूम था कि एक दिन उनका बेटा सही राह (धर्म की राह) पर जरूर आएगा। यहां पर एक वाक्य चरितार्थ होता है कि ‘सुबह का भूला शाम को लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते।’ आज चन्द्रगिरि में भी जगदलपुर से आप लोग देव बनकर आए हैं। हमें यह देखकर प्रसन्नता हुई कि आप लोग अपनी मातृभूमि से जुड़े हुए हैं। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मातृभूमि से हमेशा जुड़े रहना चाहिए जिससे कि उसके संस्कार हमेशा बने रहें। जगदलपुर में पंचकल्याणक की भूमिका डोंगरगांव में मात्र 1 दिन में बनी थी। यह वहां के लोगों का पुण्य है और उनका प्रयास भी सराहनीय है, जो इतना बड़ा कार्य कर रहे हैं। जगदलपुर एक आदिवासी इलाका है। वहां जिन मंदिर होना अपने आप में एक अलग बात है। इससे वहां के आस-पास के लोग भी जुड़ सकेंगे, जैसे कोंडागांव, गीदम आदि। यह एक आदिवासी बहुल क्षेत्र प्रकृति की गोद में है, जो कि अपने आप में एक प्राकृतिक सुन्दरता धारण किए हुए है। यह जानकारी चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ से निशांत जैन (निशु) ने दी है।
  3. भवभव के नीरंध्र अज्ञान को ज्ञानप्रभा से भेदने वाले गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों में त्रिकाल प्रणति अर्पित करता हूँ..... हे गुरुवर! अब में नसीराबाद के कुछ संस्मरण आपको प्रेषित कर रहा हूँ। ब्र विद्याधर जी आपके साथ-साथ जहाँ भी जा रहे थे वहाँ के लोग उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होते और उनकी मधुर बातों से शिक्षा लेते। विद्याधर की साधना ऐसी साधना थी जिसको देखकर हर कोई अचम्भित हुए बिना नही रहता था। आज जब नसीराबाद के किसी भी समाज जन से उस समय की बात करते है तो वो ब्र विद्याधर के अनेकों संस्मरण सुनते हुए नही थकते। कुछ एक प्रसंग आपको लिख रहा हूँ। नसीराबाद के प्रवीण गदिया जी ने बताया.... ब्र विद्याधर जी ने पाप-पुण्य की समझाइस दी "अप्रैल-मई दो माह नसीराबाद में मुनि श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने संघ सहित विहार किया। उनके साथ बहुत सुन्दर ब्रम्हचारी भैया जी भी थे। नसीराबाद वालो को जब यह पता चला कि भैया जी कर्नाटक के है तो समाज के लोग ओर युवा लोग जो कभी मंदिर नही जाया करते थे। वे भी उनके दर्शन के लिए मंदिर जाने लगे थे, लेकिन ब्रम्हचारी जी अपनी क्रियाओं में दत्तचित्त रहते थे। किसी को भी मिंलने का समय नही दिया करते थे। एक बार हम कुछ युवा लोग सामयिक के समय पर गए। तो वह कमरा बंद करके सामायिक कर रहे थे। हम लोगो ने खिड़की से झाँक के देखा तो वो पूर्ण दिगम्बरावस्था में खड़े होकर सामायिक कर रहे थे। तब हमारे एक साथी ने जयकारा किया मुनि विद्याधर महाराज की जय और हम लोग वहां से चले गए। शाम को पुनः गए तो ब्रम्हचारी विद्याधर जी बोले दोपहर में आप लोगो ने ऐसा ... जय बोला था। ऐसा बोलने में पाप लगेगा ओर मुनि ज्ञानसागर जी महाराज की जय बोलोगे तो पुण्य लगेगा। अन्तर्यात्री महापुरुष पुस्तक से साभार
  4. प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {29 नवंबर 2017} चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की गायें होती हैं, उसके गले में रस्सी डाली जाती है और वह जब जंगल आदि जगह चरने जाती हैं तो वह रस्सी उसके गले में ही रहती है और वह चरने के बाद अपने यथास्थान पर आ जाती हैं किन्तु बछड़े के गले में रस्सी नहीं होती है, वह अपनी माता (गाय) के इर्द – गिर्द ही घूमता रहता है और दौड़कर दूर भी निकल जाये तो गाय की आवाज के संपर्क में रहता है और भागकर वापस अपनी माँ (गाय) के पास आ जाता है। इसी प्रकार भगवान् से भी हमारा कनेक्शन ऐसा ही होना चाहिये इसके लिए देव, शास्त्र और गुरु के संपर्क में रहकर उनके कनेक्शन से जुड़े रहना चाहिए। जिस प्रकार बल्ब जब तक तार से जुड़ा हुआ रहता है तो वह करंट मिलने से चालू रहता है और प्रकाश देता रहता है यदि तार का कनेक्शन कट जाये तो उसका प्रकाश खत्म हो जाता है। देव, शास्त्र और गुरु से जुड़े रहने से मन शांत और अंतर्मन में दिव्य प्रकाश एवं अलौकिक सुख की प्राप्ति होती है। जिन लोगों के पास अधिक धन आ जाता है उन्हें उसे संरक्षित रखने का भय सताते रहता है वे लोग कहते हैं महाराज आशीर्वाद दो की हमारी धन-सम्पदा संरक्षित रहे। आचार्यश्री कहते हैं कि ‘मोल का त्याग करोगे को अनमोल की प्राप्ति होगी’ इसलिये समय-समय पर दान देने से परिग्रह का त्याग होता है और अंतर्मन प्रसन्न और अत्यंत सुख की अनुभूति होती है जो कि सहज ही उपलप्ध हो जाती है इसके लिये ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है। यह जानकारी चंद्रगिरि डोंगरगढ़ से निशांत जैन (निशु) ने दी है।
  5. सुधा की बूँदें पीयूष वाणी - परम पूज्य मुनिपुंगव श्री १०८ सुधासागर जी महाराज संकलन प्रस्तुति - मुनिश्री निष्कम्पसागर जी महाराज आमुख पूज्य गुरुदेव कहा करते है की दर्पण और दीपक कभी झूठ नहीं बोलते है | जलते हुए दीपक को कहीं भी ले जा सकते है, किन्तु अंधेरे को कहीं नहीं ले जा सकते है | अज्ञानी, ज्ञान दीपक का सामना नहीं कर सकता है | व्यसनी, दर्पण की झलक को सहन नहीं कर सकता है | जैसे दर्पण में हम जैसा देखते है, दर्पण वैसा ही स्वरूप हमें दिखाता है | ऐसे ही गुरु रूपी दर्पण में अपना चेहरा देखो तो सत्यता से परिचय हो जाता है | गुरु ऐसे ही पवित्र दीपक हैं जो भव्य जीवों को पाप रूपी अंधेरों से आत्मज्ञान रूपी प्रकाश की और ले जाते है | और हमारे जीवन को प्रकाशित करते हैं | ऐसे ही हमारा पूज्य बड़े महाराज परम पूज्य मुनिपुंगव श्री सुधासागरजी महाराज, जिन्होंने अपनी स्वरूप-बोधिनी, विद्वत्तापूर्ण, दिव्य वाणी से प्रत्यक्षाप्रत्यक्ष रूप से करोड़ों भव्य जीवों के जीवन को प्रकाशित किया है | पूज्य गुरु देव की वाणी सुनकर सारी शंकाओं का समाधान हो जाता है | मात्र मन में एक ही विकल्प रह जाता है की उनकी वाणी का हमेशा साक्षात पान करता रहता | परमोपकारी पूज्य गुरुदेव संतशिरोमणी आचार्य श्री विद्यासागरजी महारज ने अपना पावन आशीर्वाद प्रदान कर मुझे पूज्य मुनिपुंगव श्री के चरणो में भेजा जिसके लिए मैं अपने आपको सोभाग्यशाली मानता हूं की पूज्य गुरुदेव ने मुझ जेसे अल्पज्ञ शिष्य को ऐसे प्रबल तार्किक, अभिश्ना ज्ञानोपयोगी संत के चरणों में साधना करने योग समझा | परम पूज्य मुनिवर की दिव्यवाणी भव्यजीवों के चित्त को आह्नाद प्रदान करती है | आगम से अभिसिक्त उनके मुख से नि:सृत प्रत्येक वाक्य एक सूक्ति बन जाता है | जेसे क्षीरसागर में से एक दो अंजुलि पानी का रसास्वादन कर उसके नीर का लाभ ले लिया जाता है, इसी प्रकार मेने पुज्यश्री की सर्वकल्याणकारिणी दिव्यवाणी रूपी महासमुद्र में से कुछ सूत्रवाक्य रूपी बूँदो का संचय किया है | सुधा की ये बुँदे छोटी जरूर है किन्तु बूँद-बूँद से ही सागर बनता है | सुधामृत की ये बुँदे भव्यजीव रूपी चातकों की प्यास बुझाकर उनको अलौकिक आनंद का अनुभव करायेगी, ऐसी आशा के साथ वह प्रथम संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है | इस कृति को अपनी चंचला लक्ष्मी का उपयोग कर जयपुर निवासी श्री श्रीपाल, अजय, विजय, संजय एंव समस्त कटारिया परिवार ने सोभाग्य प्राप्त किया है ये भी साधुवाद और आशीर्वाद के पात्र है | परम पूज्य गुरुवर के प्रत्यक्ष रूप में दूर होने पर भी जो अपने वात्सल्य रुपी आशीष की छांव में सदैव मुझे गुरुवत पथप्रदर्शक बने हुए हैं, ऐसे उन परम पूज्य मुनिपुंगव सुधासागर जी महाराज के श्रीचरणों में उन्ही के उद्दारों के संचयन रूप में यह कृति उनको ही समर्पित है | मुनिश्री निष्कम्पसागर जी महाराज
  6. पीयूष वाणी - परम पूज्य मुनिपुंगव श्री १०८ सुधासागर जी महाराज संकलन प्रस्तुति - मुनि निष्कंपसागरजी महाराज
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