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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. सर्व रसों में प्रधान, आनन्द रस से भरा शान्त रस ही जीवन में आदरणीय, ग्रहण करने योग्य है, इस बात को सिद्ध करते हुए माटी की रौदन क्रिया पूर्ण होती है, शिल्पी की। जमीन में पर्वत शिखर की भाँति शंकु के आकार वाली एक लकड़ी गड़ी है। जिस पर चक्र रखा है। दो हाथ की लम्बी लकड़ी ले शिल्पी चक्र को घुमाता है फिर घूमते चक्र पर माटी का लौंदा रख देता है जिससे लौंदा भी चक्र के समान तेजगति से घूमने लगता है कि तभी माटी शिल्पी से कुछ कहती है - जो अच्छी तरह से सरकता है, चलता रहता है, संसार कहलाता है - काल स्वयं चक्र नहीं है संसार-चक्र का चालक होता है वह यही कारण है कि उपचार से काल को चक्र कहते हैं। (पृ. १६१) यद्यपि काल स्वयं चक्र नहीं है किन्तु संसार चक्र के घूमने में उदासीन निमित्त होता है इसलिए उपचार (परिपाटी के अनुसार किया जाने वाला व्यवहार) से काल को चक्र कहा जाता है। इस कारण आज तक मैं चार गतियो और चौरासी लाख योनियों में चक्कर खाती आ रही हूँ | आज आपने भी इसे कुम्भकर के चक्र पर रख दिया, मेरा तो माथा ही घूमने लगा है। इसे इस चक्र से नीचे उतार दो तार दो अर्थात् संसार-चक्र के उस पार पहुँचा दो। इतना सुनते ही शिल्पी की मुद्रा माटी को कुछ समझाती हुई कहती है - अनेक प्रकार के चक्र संसार में हुआ करते हैं, संसार-चक्र तो राग-द्वेष, मोह आदि विकृतियों को जन्म देने वाला होता है। चक्रवर्ती का चक्र संसारी प्राणियों के भौतिक जीवन, देह को नष्ट करने में कारण बनता है। किन्तु यह कुलाल चक्र उस कसौटी के पत्थर' के समान है जिस पर चढ़कर जीवन में नई-नई उपलब्धियाँ होती हैं, जीवन श्रेष्ठ प्रकाशवान बनता है, यह चक्र जीवन की पवित्र, गौरव-गाथा बनाने में निमित्त बनता है।
  2. शान्त रस की उपयोगिता सिद्ध करते हुए माटी की रौंदन क्रिया पूर्ण होती है। शिल्पी घूमते चाक पर माटी के पिण्ड को रखता है चक्कर खाती माटी चाक से उतरने की बात कहती है, शिल्पी से। सो शिल्पी चक्कर का सही कारण बता, कुलाल चक्र की उपयोगिता समझाता हुआ माटी को घट का रूप प्रदान करता है, बीच में काल द्रव्य की अनिवार्यता की बात भी। कुम्भ का गीलापन, ढीलापन कम होने पर दो-तीन दिन बाद कुम्भ की खोट को दूर करना तथा कुम्भ पर अंकन, चित्रण एवं काव्य सृजन-९९, ९ और ६३ की संख्या, सिंह, श्वान, कछुवा, खरगोश का चित्रण ‘ही ” और ‘भी ” का लेखन, कर पर कर दो, मर हम मरहम बनें, मैं दो गला काव्य पंक्तियों का सृजन एवं इन ७ सबकी भाव पूर्ण, शाब्दिक व्याख्या।
  3. सत् शिव सुन्दर 2 - धर्मनीति विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार https://vidyasagar.guru/quotes/sagar-boond-samaye/sat-shiv-sundar-dharmniti/
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