शान्त रस की उपयोगिता सिद्ध करते हुए माटी की रौंदन क्रिया पूर्ण होती है। शिल्पी घूमते चाक पर माटी के पिण्ड को रखता है चक्कर खाती माटी चाक से उतरने की बात कहती है, शिल्पी से। सो शिल्पी चक्कर का सही कारण बता, कुलाल चक्र की उपयोगिता समझाता हुआ माटी को घट का रूप प्रदान करता है, बीच में काल द्रव्य की अनिवार्यता की बात भी।
कुम्भ का गीलापन, ढीलापन कम होने पर दो-तीन दिन बाद कुम्भ की खोट को दूर करना तथा कुम्भ पर अंकन, चित्रण एवं काव्य सृजन-९९, ९ और ६३ की संख्या, सिंह, श्वान, कछुवा, खरगोश का चित्रण ‘ही ” और ‘भी ” का लेखन, कर पर कर दो, मर हम मरहम बनें, मैं दो गला काव्य पंक्तियों का सृजन एवं इन ७ सबकी भाव पूर्ण, शाब्दिक व्याख्या।