उन्होंने कहा कि क्षुल्लक को उत्क्रष्ट श्रावक माना जाता है परन्तु बह मुनि के बीच भी रहकर श्रावक ही माना जाता है। आवरण सहित है तो बह निस्पृही नहीं हो सकता उसके लिए तो मुनि धर्म अंगीकार करना ही पड़ेगा । समुद्र भी अपने पास कुछ नहीं रखता लहरों और ज्वर भाता के माध्यम से छोड़ देता है जबकि आप परिग्रह के आवरण को छोड़ ही नहीं पा रहे हो। दूध में जब विजातीय बस्तु मिलायी जाती है तो उसका स्वरुप परिवर्तित हो जाता है। मीठे पकवान में थोडा सा नमक डालने पर स्वाद अच्छा हो जाता है दूध में डालो तो बो बिकृत हो जाता है उसी प्रकार साधक की साधना में कोई विकृत भाव आ जाता है तो उसकी साधना विकृति को प्राप्त हो जाती है। संस्कार के कारन ही जीवन में परिवर्तन की लहर दौड़ती है जैंसे संस्कार होंगे बैंसा ही परिवर्तन होगा।
उन्होंने आगे कहा की अच्छे कार्य के लिए धर्मादा निकालते हैं तो पुण्य का मंगलाचरण हो जाता है पहले गौ के लिए पहली रोटी निकाली जाती थी आज भी ये परम्परा सतत् होनी चाहिए क्योंकि यही दया का भाव होता है। आज दया की भावना का नितांत आभाव होता जा रहा है इसलिए महापुरूषोंं का आभाव धरती पर होता जा रहा है। धीरे धीरे परिग्रह को त्याग करते जाना ही आकिंचन धर्म की तरफ आरूढ़ होना माँना गया है। जो उपकरण मुनियों को दिए जाते हैं उनका धीरे धीरे त्याग करके ही बो उत्तम आकिंचन्य धर्म को धारण करते हैं और समाधि की तरफ बढ़ते हैं। जब हम चलते हैं तो पैरों में असंयम के छाले हो जाते हैं फिर भी ब्रती चलता जाता है तो छाले फुट जाते हैं और संयम रूपी नयी चमड़ी आ जाती है । मछली को जल से बाहर निकलते ही बह तड़पने लगती है क्योंकि बहार आक्सिजन ज्यादा होती और पानी में कम होती है जो उसके अनुकूल होती है। ऐंसे ही धन को ज्यादा मात्रा में रखने से बह भार बन जाता है इसलिए समय समय पर उसे सदुपयोग में लगाकर परिग्रह के भार से मुक्त हो जाना चाहिए।
आचार्य श्री ने कहा कि जगह जगह अन्न क्षेत्रों की स्थापना जैनोंं को करना चाहिए क्योंकि जैन समाज पहले भी इस तरह के सेवा के कार्य करता रहा है । जैनाचार्यों की प्रेरणा से ये कार्य होते रहे हैं और आज भी हो रहे हैं ताकि आपका परिग्रह का भार कम होता जाय और धन परोपकार में लग जाय। शाकाहार की तरफ ध्यान देना चाहिए आज सामूहिक रूप से बहार जो भोजन के होटल चल रहे हैं बो अशुद्धि के केंद्र हैं इसलिए ऐंसी परोपकार के शाकाहारी अन्न क्षेत्रों की स्थापना की सबसे ज्यादा आवश्यकता है तभी शिखर की चोटी को आप छु पाएंगे । आज शाकाहार की आवाज बुलंद करने के लिए सरकार तक भी अपनी बात जोरदार ढंग से रखना चाहिए । बैसे सरकार की तरफ से उच्च शिक्षा के केंद्रों में शाकाहार की भोजनशाला प्रथक रखने की अनुकरणीय पहल हो रही है जो सराहनीय है।
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