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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. जब कोई व्यक्ति ट्रेन से या बस से यात्रा करता है तो पहले टिकट ले लेता है। एक ईमानदार व्यक्ति कभी भी बिना टिकट के यात्रा नहीं करता है। टिकट लेने के बाद प्लेटफार्म पर गाड़ी का इंतजार करते रहते हैं। प्लेटफार्म पर आवाज आती है कि प्लेटफार्म नम्बर अमुक पर, पूर्व से पश्चिम की ओर या पश्चिम से पूर्व की ओर जाने वाली गाड़ी आने वाली है तब आप अपने सामान के साथ तैयार हो जाते हैं। जो इस आवाज को न सुनते हुए सोता रहता है। तो उसकी गाड़ी भी निकल जाती है एवं सामान भी चोरी हो जाता है। वह वहीं खड़ा रह जाता है। एक दिन आचार्य श्री जी ने कहा कि- मोक्ष की यात्रा करने वाले यात्री को आज ही अपना टिकट बुक करा लेना चाहिए। गुरु और प्रभु के चरण टिकट घर हैं और उनके प्रति सच्ची श्रद्धा अर्थात् सम्यग्दर्शन टिकट है। आप सम्यग्दर्शन रूपी टिकट के साथ रहेंगे तो आप जिस गति में जायेंगे तो आपकी अच्छी व्यवस्था होती चली जाएगी। एक बात हमेशा याद रखना- गाड़ी एवं डिब्बे भले ही बदल जाए लेकिन टिकट नहीं बदलना चाहिए एवं मंजिल पर पहुँचने तक टिकट खोना भी नहीं चाहिए। सभी को अपना अपना टिकट संभालकर रखना चाहिए। तब मैंने कहा- आचार्य श्री जी टिकट तो आपके चरणों में मिल गया है बीच-बीच में आप हमें जगाते एवं संभालते रहना। तब आचार्य श्री जी ने कहा कि- मैं तो संकेत भर दे सकता हूँ तुम लोग आपस में एक-दूसरे का ध्यान रखना सभी को अपने-अपने टिकट के अनुसार आनंद आता है। धन्य हैं हमारे गुरुवर, जो स्वयं सम्यग्दर्शन रूपी टिकट के साथ मोक्षमार्ग की यात्रा करते हुए हम सभी को समय-समय पर सम्यग्दर्शन रूपी टिकट को संभालने का उपदेश दिया करते हैं एवं समय-समय पर समयसार का सार बताते हुए आत्मोन्मुखी करते रहते हैं।
  2. सबसे बड़ी साधना है। आज वर्तमान में साधु अपने 28 मूलगुणों का निर्दोष पालन कर ले बस कल्याण हो जाएगा। आज वर्तमान में निर्दोष चर्या का पालन करने वाले साधु विरले ही मिलते हैं। कहीं न कहीं कुछ न कुछ कमी देखने में मिल ही जाया करती है। इसी बात को लेकर एक दिन आचार्य श्री ने कहा कि- पंचमकाल में धूप में, पहाड़ पर बैठकर एवं सर्दी में जंगल में रहकर साधना नहीं कर सकते तो कोई बात नहीं, लेकिन मंदिर एवं धर्मशाला में रहकर कषाय तो मत करो यही तब किसी श्रावक ने कहा कि- आचार्य श्री जी आप जैसे विरले साधु ही हैं जो शिथिलाचार को समाप्त कर सकते हैं। तब आचार्य श्री ने कहा कि- कुमार्ग (शिथिलाचार) में लोगों की संख्या सम्मूर्छन जन्म जैसी बड़ती है और सन्मार्ग में गर्भज जन्म की तरह। क्या करें सच्चा साधु कौवों के बीच में एक हंस के जैसा है। उस एक हंस की कोई मानने वाला नहीं है, क्योंकि कौवों का बहुमत है और बहुमत का जमाना है।
  3. संत शिरोमणि स्वर्णिम राष्ट्रीय संगोष्ठी (उत्तराध) आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से दिनांक 6 अप्रैल से 8 अप्रैल 2018 पावन सान्निध्य : पूज्य मुनि श्री १०८ समतासागर जी महाराज पूज्य ऐलक श्री १०५ निश्चय सागर जी महाराज सभी बाल ब्रम्हचारी, स्वाध्यायी, व्रती एवं बहनों की ऐतिहासिक संगोष्ठी स्थान : श्री १००८ दि. जैन मंदिर घाटोल जिला बांसवाड़ा (राज.) आयोजक : सकल दि. जैन समाज घाटोल
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