जब कोई व्यक्ति ट्रेन से या बस से यात्रा करता है तो पहले टिकट ले लेता है। एक ईमानदार व्यक्ति कभी भी बिना टिकट के यात्रा नहीं करता है। टिकट लेने के बाद प्लेटफार्म पर गाड़ी का इंतजार करते रहते हैं। प्लेटफार्म पर आवाज आती है कि प्लेटफार्म नम्बर अमुक पर, पूर्व से पश्चिम की ओर या पश्चिम से पूर्व की ओर जाने वाली गाड़ी आने वाली है तब आप अपने सामान के साथ तैयार हो जाते हैं। जो इस आवाज को न सुनते हुए सोता रहता है। तो उसकी गाड़ी भी निकल जाती है एवं सामान भी चोरी हो जाता है। वह वहीं खड़ा रह जाता है।
एक दिन आचार्य श्री जी ने कहा कि- मोक्ष की यात्रा करने वाले यात्री को आज ही अपना टिकट बुक करा लेना चाहिए। गुरु और प्रभु के चरण टिकट घर हैं और उनके प्रति सच्ची श्रद्धा अर्थात् सम्यग्दर्शन टिकट है। आप सम्यग्दर्शन रूपी टिकट के साथ रहेंगे तो आप जिस गति में जायेंगे तो आपकी अच्छी व्यवस्था होती चली जाएगी। एक बात हमेशा याद रखना- गाड़ी एवं डिब्बे भले ही बदल जाए लेकिन टिकट नहीं बदलना चाहिए एवं मंजिल पर पहुँचने तक टिकट खोना भी नहीं चाहिए। सभी को अपना अपना टिकट संभालकर रखना चाहिए। तब मैंने कहा- आचार्य श्री जी टिकट तो आपके चरणों में मिल गया है बीच-बीच में आप हमें जगाते एवं संभालते रहना। तब आचार्य श्री जी ने कहा कि- मैं तो संकेत भर दे सकता हूँ तुम लोग आपस में एक-दूसरे का ध्यान रखना सभी को अपने-अपने टिकट के अनुसार आनंद आता है।
धन्य हैं हमारे गुरुवर, जो स्वयं सम्यग्दर्शन रूपी टिकट के साथ मोक्षमार्ग की यात्रा करते हुए हम सभी को समय-समय पर सम्यग्दर्शन रूपी टिकट को संभालने का उपदेश दिया करते हैं एवं समय-समय पर समयसार का सार बताते हुए आत्मोन्मुखी करते रहते हैं।