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संयम स्वर्ण महोत्सव

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Blog Entries posted by संयम स्वर्ण महोत्सव

  1. संयम स्वर्ण महोत्सव
    हमसे उन्हें,
    पाप बंध नहीं हो,
    यही सेवा है।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  2. संयम स्वर्ण महोत्सव
    हमारी आँखों देखी बात
     
    एक बहिनजी थीं जिनके विचार बड़े उदार थे। उनके यहां खेती का। धंधा होता था। सभी आवश्यक चीजें प्रायः खेती से प्राप्त हो जाया करती थीं। अतः प्रथम तो किसी सो चीज लेने की वहां जरूरत ही नहीं होती थी, फिर भी कोई चीज किसी से लेनी हो तो बदले में उससे भी अधिक परिणाम की कोई दूसरी चीज अपने यहां की उसे दिये बिना नहीं लेती थी। वह सोचती थी कि मेरी यहां की चीज मुझे जिस तरह से प्यारी है उसी प्रकार दूसरे को भी उसकी अपनी चीज मुझसे भी कहीं अधिक प्यारी लगती है। हां, जब कोई भी भाई आकर उसके पास मांगता था कि बहिनजी क्या आपके पास गेहूं हैं? यदि हो तो दे रुपये के मुझे दे दीजिये, इस पर बड़ी प्रसन्नता के साथ गेहूं उसे दे देती मगर रुपये नहीं लेती थी। कहती थी भाईजी रुपये देने की क्या जरूरत है, ये गेहूं आपके और मैं आपकी बहिन।
     
    आज आप मुझसे ले जाते हैं तो कभी यदि मुझे जरूरत हुई तो मैं आप से ले आ सकती हूं। मैं रुपये तो आप से नहीं लेऊंगी आप गेहूं ले जाइये और अपना काम निकालिये। आप मुझे रुपये दे रहे हैं इसका तो मतलब यह कि अपना आपस का भाईचारा ही आज से समाप्त करना चाहते हैं, मैं इसको अच्छी बात नहीं समझती, इत्यादि रूप से वह सभी के साथ वात्सल्यपूर्ण व्यवहार रखती थी। अब एक बार माघ के महीने की बात है कि बादल होकर वर्षा होने लगी। आसपास के सब खेत बरबाद हो गये मगर उपर्युक्त बहिन जी के चार खेत थे उनमें किसी में कुछ भी नुकसान नहीं हुआ, इसलिये मानना पड़ता है कि हमें जो कुछ भला या बुरा भोगना पड़ रहा है, वह सब हमारी ही करनी का फल है। 
  3. संयम स्वर्ण महोत्सव
    हमारे दोष,
    जिनसे फले फूले,
    वे बन्धु कैसे ?
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  4. संयम स्वर्ण महोत्सव
    हमारे दोष,
    जिनसे गले धुले,
    वे शत्रु कैसे ?
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  5. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ☀☀ संस्मरण क्रमांक 38☀☀
               ? हल ?
    आचार्य श्री जी विहार करते हुए नेमावर की ओर से जा रहे थे,आचार्य श्री जी से पूछा-आप तो आचार्य श्री जी नवमी कक्षा तक पढ़े हैं और हम लोगों को m.a. पढ़ने के लिए कहते हैं यदि आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज ने आपको m.a.करने को कहा होता तो आप हम लोगों को कहां तक पढ़ने को कहते पीएचडी लॉ आदि।
     आचार्य श्री जी हसंकर बोल उठे-नहीं पहले मल्लिसागर जी (मल्लप्पा जी) कहते थे- ज्यादा क्या पढ़ना, खेती किसानी तो करना ही है। मेन सब्जेक्ट तो कृषि ही है।यह हल चलाओ जो की समस्त समस्याओं का हल है। पहले लोग नौकरी को अच्छा नहीं मानते थे खेती को ही प्रधानता देते थे उत्तम खेती, मध्यम व्यापार, जघन्य नौकरी ऐसा मानते थे, इसलिए दक्षिण में आज भी नौकरी को अच्छा नही मानते है।
     (रेहटी 1/2/2002, बुधवार)
     ? संस्मरण पुस्तक से साभार ?
    ✍ मुनि श्री कुंथुसागर जी महाराज
     
  6. संयम स्वर्ण महोत्सव
    हँसो-हँसाओ,
    हँसी किसी की नहीं,
    इतिहास हो।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  7. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ज्ञानरथ के सार्थवाह गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज को कोटिशः प्रणाम करता हूँ.... हे गुरुवर! आपके लाडले शिष्य ब्रम्हचारी विद्याधर जी आपको तो जवाब नही देते थे किन्तु अज्ञानियों के अज्ञान अंधकार को दूर करने के लिए कम शब्दों में, टू द पॉइंट बोलकर संतुष्ट करके निरुत्तर कर देते थे। इस सम्बन्ध में नसीराबाद के आपके। अनन्य भक्त रतनलाल पाटनी जी ने विद्याधर के हाजिर जवाबी का संस्मरण सुनाया- 
     
    हाजिरजवाबी ब्रम्हचारी विद्याधर
    "१९६८ ग्रीष्मकालीन प्रवास के दौरान नसीराबाद में ज्ञानसागर मुनिराज ने अपने प्रिय मनोज्ञ शिष्य, ब्रम्हचारी विद्याधर जी को हिन्दि भाषा मे पारंगत बनाने हेतु राजकीय व्यापारिक स्कूल नसीराबाद के प्रधानाध्यापक श्री मोहनलाल जी जैन को कहा- आप विद्याधर जी को हिन्दी भाषा, लिपी, छन्द, व्याकरण सिखायें। तब मोहनलाल जी उन्हें हिन्दी का अध्ययन कराने लगे। इसके साथ ही विद्याधर जी की मनोभावना अंग्रेजी सीखने की भी हुई। तो मोहनलाल जी ने अपने ही राजकीय व्यापारिक स्कूल नसीराबाद के अंग्रेजी के अध्यापक श्रीमान् रामप्रसाद जी बंसल को अंग्रजी पढ़ाने का पुण्यार्जन दिया। इसके अतिरिक्त ज्ञानसागर गुरु महाराज ने छगनलाल पाटनी अजमेर को विद्याधर जी से धर्म-चर्चा के लिए समय दिया। साथ ही नसीराबाद के पण्डित चम्पालाल जी शास्त्री भी विद्याधर जी से धर्म-चर्चा करते थे। सुबह से लेकर रात्रि १० बजे तक विद्याधर जी ज्ञानाराधना में लीन रहते। एक दिन मजाक में हमने कहा- भैया जी! आप इतना पढ़कर क्या करोगे ? कोई नोकरी करना है क्या ? तो हँसते हुए बोले- 'क्या करना है- क्या नही करना है ? इसको जानने के लिए अध्ययन कर रहा हूँ।' यह जवाब सुनकर फिर कभी कोई प्रश्न करने की हिम्मत नही हुई।"

    इस तरह ब्रम्हचारी विद्याधर जी अपनी तार्किक बातों से संक्षिप्त में ही संतुष्ट कर देते थे। यह बुद्धिमत्ता बचपन से ही उनके व्यक्तित्व में झलकती है। सतत ज्ञानाराधना से प्रज्ञा को पैनापन प्रदान करने में पुरषार्थ करते रहते थे।उनका यह वैशिष्ट्य आज भी देखने को मिलता है की कम शब्दों में संतोषपूर्ण आनन्ददायक समाधान देते है। ऐसी प्रज्ञा को नमन करता हु.....आप सम ज्ञानसागर में गोता लगाना चाहता हूँ जिसमे अज्ञानता की श्वाँसे रंध जाएँ.....
     
    अन्तर्यात्री महापुरुष पुस्तक से साभार
  8. संयम स्वर्ण महोत्सव
    हाथ कंगन,
    बिना बोले रहे, दो,
    बर्तन क्यों ना?
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  9. संयम स्वर्ण महोत्सव
    हाथ तो डालो,
    वामी में विष को भी,
    सुधा दो हो तो।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  10. संयम स्वर्ण महोत्सव
    अकलतरा: उक्त बातें जैन समाज के संत षिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए बालक प्राथमिक शाला में कही। उन्होंने कहा कि दूसरों का वैभव देखकर हम अपना हाथ मलते हैं तथा ईष्या करते हैं। हम पुरुषार्थ के द्वारा जीवन में तरक्की एवं आगे बढ़ सकते हैं। इससे हमें अपना हाथ नहीं मलना पड़ेगा। हम भाग्य भरोसे रहकर पुरुषार्थ पर विष्वास नहीं करते एवं दूसरों को अपनी हाथ की रेखा दिखाने का कार्य करते हैं एवं दूसरे व्यक्ति पर बातचीत से हल नहीं निकलने पर अपना हाथ उसपर छोड़ देते हैं, जो कि गलत है। मानव जीवन में मानव को दूसरों का हमेषा हाथ मिलाकर चलना चाहिए। हाथ मिलाकर चलने में ही मानव जीवन सफल है एवं मानव प्रगति कर सकता है। हाथ न मलो, हाथ न दिखाओ, हाथ मिला लो – ये तीन बातें मानव को हमेषा अपने जीवन में याद रखनी चाहिए। आचार्य विद्यासागर महाराज ने कहा कि डोंगरगढ़ से बस्तर, धमतरी, राजिम, रायपुर, भाठापारा, बलौदाबाजार, पामगढ़ होते हुए अकलतरा नगर तक लगभग 800 कि.मी. की पैदल यात्रा की। सड़क के दोनों ओर हरे भरे खेत दिखाई दिये। उन्होंने छत्तीसगढ़ को तरा, तर, तरी के रुप में संज्ञा देते हुए कहा कि यहां की खेत हमेषा पानी से भरे रहते हैं एवं हरियाली छायी रहती है। राज्य में धान का पैदावार अधिक होने के बाद भी धान की रक्षा न करना चिन्तनीय विषय है। विनिमय सिद्धांत के आधार पर छत्तीसगढ़ से अन्य राज्यों को धान भेजकर वहां से गेहूं एवं अन्य चीजों का आयात करना चाहिए। उन्होंने कहा कि शांति एवं लक्ष्मी एक दूसरे के शत्रु हैं। लक्ष्मी आने पर मानव के जीवन पर शांति समाप्त हो जाती है। सारा दिन उसका ध्यान तिजौरी पर रखे हुए पैसे पर रहता है तथा उसी के बारे में सोचने लगता है। लक्ष्मी कम होने से जीवन में शांति रहती है तथा मानव तनाव रहित जीवन जीता है। मानव जीवन में संतुष्ट नहीं होता। मानव की आवष्यकता दिन प्रतिदिन बढ़ती जाती है। हमें ऋण लेते समय बहुत आनन्द मिलता है, लेकिन उसे चुकाते समय पसीना आ जाता है। वर्तमान में दूध का स्वरुप ही खत्म हो गया है। पैसे में भी सही दूध नहीं मिलता। वहीं किसी जमाने में बिना पैसे का मिलने वाला पानी आज बोतल में पैसों में बिक रहा है। दूध और पानी का महत्व ही खत्म हो गया है। 
  11. संयम स्वर्ण महोत्सव
    हाथ ना मलो,
    ना ही हाथ दिखाओ,
    हाथ मिलाओ।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  12. संयम स्वर्ण महोत्सव
    हायकू कृति,
    तिपाई सी अर्थ को,
    ऊँचा उठाती।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  13. संयम स्वर्ण महोत्सव
    संसारी प्राणी सुख चाहता है, दु:ख से भयभीत होता है। दु:ख छूट जावे ऐसा भाव रखता है। लेकिन दुःख किस कारण से होता है इसका ज्ञान नही रखा जावेगा तो कभीभी दुःख से दूर नही हुआ जा सकता। आचार्य कहते हैं - कारण के बिना कोई कार्य नही होता इसलिए दुःख के कारण को छोड़ दो दुःख अपने आप  समाप्त हो जायेगा। सुख के कारणों को अपना लिया जावे तो सुख स्वतः ही उपलब्ध हो जावेगा। दुःख की यदि कोई जड़(कारण) है तो वह है परिग्रह। परिग्रह संज्ञा के वशीभूत होकर यह संसारी प्राणी संसार मे रूल रहा है, दुःखी हो रहा है। पर वस्तु को अपनी मानकर उसे ममत्व भाव रखता है यही तो दुःख का कारण है।
     
    आचार्य महाराज ने परिग्रह त्याग के बारे में बताया कि एक बार कुम्हार गधे के ऊपर मिट्टी लाद कर आ रहा था। वह गधा नाला पार करते समय नाले में ही बैठ गया। मिट्टी धीरे-धीरे पानी मे गलकर बहने लगी। उसका परिग्रह कम हो गया ओर उसका काम बन गया, उसे हल्कापन महसूस होने लगा। फिर हँसकर बोलेc- जब परिग्रह छोड़ने से गधे को भी आनंद आता है तो आप लोगों को भी परिग्रह छोड़ने में आंनद आना चाहिए। वहाँ बैठे श्रावक आचार्य भगवन् के कथन का अभिप्राय समाज गये और सभी लोग आनंद विभोर हो उठे। हँसी-हँसी में गुरुदेव से इतना बड़ा उपदेश मिल गया कि - यदि इसे जीवन में उतारा जावे तो संसार से भी तरा जा सकता है और शाश्वत सुख को प्राप्त किया जा सकता है।
    छपारा पंचकल्याणक (20.1.2001)
    अनुभूत रास्ता पुस्तक से साभार
  14. संयम स्वर्ण महोत्सव
    हिन्दुस्थान में,
    सफल फिसल के,
    फसल होते।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  15. संयम स्वर्ण महोत्सव
    हिंसा का स्पष्टीकरण
     
    इस जीव को मार दें, पीट दें या यह मर जावे, पिट जावे, दु:ख पावे इस प्रकार के विचार का नाम भावहिंसा है और अपने इस विचार को कार्यान्वित करने के लिये किसी भी तरह की चेष्टा करना द्रव्यहिंसा है। भावहिंसा पूर्वक ही द्रव्यहिंसा होती है। बिना भाव हिंसा के द्रव्यहिंसा नहीं होती और जहां भावहिंसा होती है वहां द्रव्यहिंसा यदि न भी हो तो भी वह हिंसक या हत्यारा ही रहता है। उदाहरण के लिये मान लीजिये कि
     
    एक शस्त्रचिकित्सक है, डॉक्टर है और वह किसी घाव वाले रोगी को नीरोग करने के लिये उसके घाव को चीरता है। घाव के चीरने में वह रोगी मर जाता है तो वहां डॉक्टर हिसंक नहीं होता। परन्तु पारधी शिकार खेलने के विचार को लेकर जंगल में जाता है। और वहां उसकी निगाह में कोई भी पशु पक्षी नहीं आता और लाचार होकर उसे यों ही अपने घर को लौटना पड़ता है, फिर भी वह हिंसक है, हत्यारा है। भले ही उसने किसी जीव को मारा नहीं है, फिर भी वह हिंसा से बचा हुआ नहीं है। क्योंकि प्राणियों को मारने के विचार को लिये हुये है। ऐसा हमारे महर्षियों का कहना है।
     
    इसी को स्पष्ट समझने के लिये हमारे यहां एक कथा है कि - स्वयं भूरमण समुद्र में एक राघव मच्छ है, जो बहुत बड़ा है। वह जितनी मछलियों को खाता है, खा लेता है, और पेट भर जाने के बाद भी मुँह में अनेक मछलियां जाती हैं और वापिस निकलती रहती हैं। उन मछलियों को जीवित निकली देखकर उस मच्छ की आंखों पर जो एक तन्दुल मच्छ होता है वह सोचता है। कि मच्छ बड़ा मूर्ख है जो इन मछलियों को जीवित ही छोड़ देता है, और यदि मैं इस जैसा होता तो सबको हड़प जाता। बस इसी दुर्भाव की वजह से वह मरकर घोर नरक में जा पड़ता है।
  16. संयम स्वर्ण महोत्सव
    हिंसा के रूपान्तर
     
    चीन देश में बौद्धों का निवास है, उन लोगों को विश्वास है कि किसी भी प्राणी को मार कर नहीं खाना चाहिये। मुर्दा माँस के खाने में कोई दोष नहीं है। वहां ऐसी प्रवृत्ति चल पड़ी है कि जिस बकरे वगैरह को खाने की जिसकी दृष्टि होती है वह उसके मकान में ढकेल कर कपाट बन्द कर देता है और दो चार दिन में तड़फड़ा करके जब वह मर जाता है तो उसे खा लिया जाता है। कहने को कहा जाता है कि मैंने इसे नहीं मारा है, यह तो अपने आप मर गया हुआ है। परन्तु उस भले आदमी को सोचना चाहिए कि यदि वह उसे बन्द न करता तो वह क्यों मरता? अत: यह तो उस प्राणी को मारने के साथ-साथ अपने आपको धोखा देना है, सो बहुत बुरी बात है।
     
    हां, माता अपने पुत्र में कोई बुरी आदत देखती है तो उसको छोड़ने को कहती है, और नहीं मानता है तो धमकाने के लिये कभी-कभी उसे रस्से वगैरह से भी कुछ देर के लिये बांध देती है या मकान के अन्दर बन्द कर देती है, सो ऐसा करना हिंसा में शुमार नहीं होना चाहिये क्योंकि यह तो उसको सुधारने के लिये किया जाता है। अन्तरंग में उसके प्रति उसका करूणाभाव ही होता है। देखो ! माता अपने बच्चे को जब चपेट मारने लगती है तो दिखती बड़े जोर से है किन्तु बच्चे के गाल के समीप आते ही उसका वेग बिल्कुल धीमा पड़ जाता है क्योंकि उसके दिल में दया और प्रेम का भाव होता है ताकि वह सोचती है कि यह डर कर सुधर जावे जरूर, किन्तु इसके चोट नहीं आने पाये। सो ऐसा तो करना ही पड़ता है, परन्तु कभी-कभी ऐसा होता है कि मनुष्य अपना बैर-भाव निकालने के लिए अपने कमाजोर पड़ोसी को मुक्कों ही मुक्कों की मार से घायल कर डालता है। या कोई पशु उसकी धान की ढेरी में मुँह दे जावे तो रोष में आकर ऐसी लाठी वगैरह की चोट मारता है कि उसकी टांग वगैरह टूट जाती है तो ऐसा करना बुरा है।
     
    पशु पालक लोग बैलों को बधिया कर लेते हैं या उनके नाक में नथ डालते हैं। वनचर लोग सुरभि गाय की पूंछ तरास लेते हैं या हाथी के दांत काट लेते हैं यह भी एक तरह की हिंसा है। क्योंकि ऐसा करने में उस पशु को पूरा कष्ट होता है और काटने वाले की केवल स्वार्थपूर्ति है। हां, किसी भी रोगी को डाह वगैरह दिया जाता है वह बात दूसरी है। किसी से भी शक्ति से अधिक काम लेना सो अतिभारारोपण है जिस पशु पर पांच मन वजन लादा जा सकता है, उस पर लोभ-लालच के वश हो छ: मन लाद देना। जो चलते-चलते थक गया है, चल नहीं सकता है, उसको जबरन हण्टर को जोर से चलाते ही रहना। किसी भी नौकर-चाकर से रुपये की एवज में सत्रह आने का काम लेने का विचार रखना इत्यादि सब बातें ही हिंसा से खाली नहीं हैं।
     
    हम देखते है कि प्रायः भले-भले रईस लोग भी, जब उनका नौकर बीमार हो जाता है और काम नहीं आता है तो उसका इलाज कराने की सोचना तो दूर किनार रहा प्रत्युत उसकी उस दिन की तनखा भी काट लेते हैं। भला जरा सोचने की बात है, अगर आपकी मोटर या बाइसिकल खराब हो जावे तो उसकी मरम्मत करावेंगे या नहीं? यदि कहें कि उसको को दुरुस्त कराना ही होगा तो फिर नौकर जो आप ही सरीखा मानव है वह उस निर्जीव बाइसिकल से भी गया बीता हो गया है? ताकि आप उसकी परवाह न करें। इसको काम रते-करते कितनी देर हो गयी है, भोजन का समय हो गया है, भूख लग आयी होगी, इस बात पर कोई ध्यान न देकर सिर्फ अपना काम हो जाने की ही सोचते रहना निर्दयता से खाली नहीं है। परन्तु इसके साथ में हम यह भी देखते हैं कि अधिकांश नौकर लोग भी मुफ्त की नौकरी लेना चाहते हैं। काम करने से भी जी चुराते हैं, मालिक का काम भले ही बिगड़े या सुधरे इसकी उन्हें कोई परवाह नहीं होती है। बल्कि यही सोचते हैं कि कब समय पूरा हो और कब मैं यहां से चलू सो यह भी बुरी बात है और पाप है। सिद्धान्त तो यह कहता है। मालिक और नौकर में परस्पर पिता पुत्र का सा व्यवहार होना चाहिये।
  17. संयम स्वर्ण महोत्सव
    किञ्च जीव मरना हिंसा हो, तो वे कहाँ नहीं मरते।
    ऋषियों के भी हलन चलन में, भूरि जीव तनु संहरते॥
    कहीं जीव मारा जाकर भी, हिंसा नहीं बताई है।
    यतना पूर्वक यदि मानव, कर्तव्य करे सुखदाई है ॥४७॥
     
    अस्त्र चिकित्सक घावविदारण करता हो सद्भावों से।
    मर जावे रोगी तो भी वह, दूर पाप के दावों से॥
    अगर किसी की गोली से भी, जीव नहीं मरने पाता।
    फिर भी अपने दुर्भावों से वह है हिंसक बन जाता ॥४८॥
  18. संयम स्वर्ण महोत्सव
    हीरा, हीरा है,
    काँच, काँच है किन्तु,
    ज्ञानी के लिए…
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  19. संयम स्वर्ण महोत्सव
    सागर - दमोह से जैन तीर्थक्षेत्र पपौरा जी की ओर बिहार कर रहे आचार्य श्री विद्यासागर महाराज की हीरापुर में हजारों लोगों ने भव्य अगवानी की और उन्हें श्रीफल अर्पित कर आशीर्वाद लिया
    मुनि सेवा समिति के सदस्य मुकेश जैन ढाना ने बताया कि आचार्य श्री का 30 मार्च से लगातार बिहार डिंडोरी जबलपुर दमोह होकर चल रहा है आचार्य श्री अब तक लगभग 350 किलोमीटर का पदबिहार कर चुके हैं
    हीरापुर में सुबह 8:30 बजे आचार्य संघ की आगवानी की गई। इस अवसर पर क्षेत्रीय भाजपा विधायक हरवंश राठौर, पूर्व विधायक नारायण प्रजापति, जिला पंचायत सदस्य गुलाबचंद गोलन, अशोक जैन ठेकेदार, अभय जैन ठेकेदार, भाजपा नेता मुकेश जैन हीरापुर आदि सहित छतरपुर ललितपुर टीकमगढ़ सागर बंडा शाहगढ़ बक्सवाहा बड़ा मलहरा घुवारा सहित छोटे छोटे कस्बों से आचार्य संघ की एक झलक पाने के लिए लोग उत्साहित थे
      इस अवसर पर आचार्य श्री के पाद प्रक्षालन अवसर भाजपा नेता मुकेश जैन हीरापुर गजाधर जैन,संजय जैन बाँदा के परिवार को प्राप्त हुआ आचार्य संघ की आहारचर्या अभय सांदेलिया ठेकेदार के चौके में हुई
       इस अवसर पर आचार्य श्री ने प्रवचन के दौरान कहा कि फास्ट फूड खाओगे तो दुनिया से जल्दी निकल जाओगे अब समय फास्ट फूड खाने का नहीं है घरों में भी बहुत अच्छे-अच्छे व्यंजन बनते हैं लेकिन लोगों को फास्ट फूड अब सब कुछ लगने लगा है फास्ट फूड से छोटे-छोटे बच्चों को अभी से दूर कीजिए ताकि भविष्य में कोई इससे जुड़ ना पाए आचार्य श्री जी ने कहा इस ग्राम का नाम हीरापुर जरूर है क्योंकि इस क्षेत्र में हीरे की खदानें भी हैं 
    हथकरघा राष्ट्रीय क्षितिज पर उभरे रोजगार के साधन ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ेंगे और पुनर्वास की व्यवस्था भी होगी हथकरघा से निर्मित होने वाला कपड़ा अहिंसा के वस्त्र के रुप में जाना जाएगा धीरे धीरे हथकरघा योजना पूरे देश में अपना एक अलग परचम फहरायेगी
     इस अवसर पर सागर जैन समाज की ओर से आचार्यश्री को श्रीफल अर्पित कर वर्षा कालीन चातुर्मास सागर में हो ऐसा निवेदन सागर समाज की ओर से महेश बिलहरा मुकेश जैन ढाना राकेश जैन पिडरुआ, पी सी नायक, पप्पू पड़ा, ऋषभ जैन, राजेश जैन रोड लाइंस, सट्टू जैन कर्रापुर, श्रीकांत जैन सहित बड़ी संख्या में सागर से गए समाज के लोगों ने किया
     इस अवसर पर भोपाल के पत्रकार रविंद्र जैन ने भी भोपाल में कमला पार्क में बनने वाले Ⓜकीर्ति स्तंभ की रूपरेखा आचार्य श्री को बताईⓂ 
        आचार्य श्री का दोपहर बाद बिहार इंदौरा की ओर हो गया। 17 अप्रेल को आचार्यसंघ की आहारचर्या घुबारा में होगी। आचार्य संघ 18 अप्रैल कि शाम या 19 अप्रैल को सुबह जैन तीर्थ क्षेत्र पपौरा जी टीकमगढ़ मे प्रवेश करेगा।यहां पर आचार्यश्री के आशीर्वाद से चौथी प्रतिभास्थली की स्थापना हो रही है 
    उल्लेखनीय लड़कियों की संस्कारित शिक्षा हेतु आचार्यश्री के आशीर्वाद से जबलपुर डोंगरगढ़ और रामटेक के बाद क्षेत्र में इसकी स्थापना की जा रही है
    ⓂⓂⓂⓂⓂⓂⓂⓂ
     बंडा शाहगढ़ की गौशाला के लिए बंडा विधायक निधि 5 लाख रूपये की घोषणा
     सागर हीरापुर में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के दर्शन करने पहुंचे बंडा क्षेत्र के युवा भाजपा विधायक हरवंश राठौर ने आचार्य श्री को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद लिया और विधायक निधि से बंडा शाहगढ़ में स्थापित गौशाला के लिए ₹5 लाख रुपए देने की उन्होंने घोषणा की
    एमड़ी न्यूज़ सागर
    16 अप्रेल 2018
  20. संयम स्वर्ण महोत्सव
    है का होना ही,
    द्रव्य का स्वभाव है,
    सो सनातन।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  21. संयम स्वर्ण महोत्सव
    है का होना ही,
    द्रव्य का प्रवास है,
    सो सनातन।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  22. संयम स्वर्ण महोत्सव
    होगा चाँद में,
    दाग चाँदनी में ना,
    ताप मिटा लो ।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  23. संयम स्वर्ण महोत्सव
    २४ जून २०१८
     
    On June 24, Sunday we conducted  a 90 minute very informative program at the Jain temple in Houston, Texas, USA to commemorate the 50th year of  Acharya Vidya Sagar jis Dixa. Nearly 150 people participated. There were several speakers; 2 Jain  samanis, Ajit Sangave, myself and others. It was very well organized.
    Dr. Sulekh C. Jain
     
     
     
     
     
     
     
     
     

     
  24. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ⛳ संत शिरोमणि आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज ससंघ का  अतिशय क्षेत्र पपौरा जी में  हुआ भव्य मंगल प्रवेश⛳
     
    mangal pravesh.mp4
    पूज्य आचार्यश्री जी विहार अपडेट
              18 अप्रैल, अपरान्ह काल
    परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का बड़ागाँव से हुआ, मंगल विहार.....!!
    ■ आज रात्रि विश्राम- अमरपुर (5.5 किमी)
    ■ कल की आहारचर्या- समर्रा ग्राम (अमरपुर से 6 किमी) सम्भावित।
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     विशेष- 20 अप्रैल को प्रातःकाल 7:30 बजे पूज्य आचार्यसंघ का, अतिशय क्षेत्र श्री पपौरा जी मे भव्य मंगल प्रवेश।
     
     
     
    ■ 17 अप्रैल, मंगलवार।
    ◆ परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ की आज प्रातः घुवारा में भव्य अगवानी हुई। अगवानी की वन्दनीय आर्यिकाश्री प्रशन्नमती माताजी एवम आर्यिकाश्री गरिमा मति माताजी ससंघ ने एवम घुवारा तथा वाहर से पधारे सेकड़ो भक्तो ने।
    ◆ पूज्य आचार्यसंघ की आहार चर्या घुवारा में सम्पन्न हुई।
    ◆ आज दोपहर बाद पूज्य आचार्यसंघ का मंगल विहार हुआ।
    ◆ आज का रात्रि विश्राम घुवारा से 8 किमी दूर ग्राम में होगा।
    ◆ कल की आहार चर्या- बड़ागाँव मे होगी।
     
     
     
    ।। आचार्यश्री की मंगल विहार अपडेट ।।
    16 अप्रैल, सोमवार।
    अतिशय क्षेत्र श्री पपौरा जी की ओर बढ़ते कदम।

    परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ-
    ◆ आज रात्रि विश्राम- दलीपुर ग्राम 11 किमी ।
    ◆ कल की संभावित आहार चर्या- घुवारा।
    अब एक बड़ा सवाल, सभी के मन मे ? आचार्य भगवन का पपौरा जी मे मंगल प्रवेश कब होगा?
    हमे लगता है, 18 अप्रैल को होगा भव्य मंगल प्रवेश।
    बाकी गुरुवर के मन की कौन जाने ?
     
     
    पूज्य गुरुदेव का हुआ मंगल विहार
    ■ 15 अप्रैल, रविवार।
    परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का चल रहा मंगल विहार। कदम बड़े अतिशय क्षेत्र श्री पपौरा जी की ओर।
    ◆ आज रात्रि विश्राम- ग्राम गढ़ोही।
    ◆ कल आहार चर्या : हीरापुर।
     
    12 अप्रैल
    पूज्य गुरुदेव का हुआ मंगल विहार दमोह से

    परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का दमोह से मंगल विहार आज दोपहर की बेला में हुआ। अब कदम बड़े अतिशय क्षेत्र श्री पपौरा जी की ओर।
    ◆ आज रात्रि विश्राम- ग्राम उमरी
    ◆ कल आहार चर्या : नरसिंहगढ़।
    【  बड़े दिनों से प्रतीक्षारत दमोह समाज उदास, केवल कुछ घण्टे का ही मिला सानिध्य। सायद पूज्य गुरुदेव को निर्धारित समय पर ही पपौरा जी पहुचने का लक्ष्य। मौसम भी चल रहा अनुकूल】
     
     
    12 अप्रैल
     हुआ भव्य मंगल प्रवेश दमोह नगरी में।

    पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का प्रातःकालीन विहार आज बड़ी लम्बी दूरी का चला। पहले दमोह से 4 किमी दूर आहार चर्या की योजना बनी थी, फिर आज प्रातः योजना में बदलाव कर, सागर नाका दमोह में आहार चर्या की योजना बनी। बाद में पूज्य गुरुदेव के कदम लगातार दमोह सिटी में बढ़ते ही चले गए और नन्हे मन्दिर जी पहुचकर ही कदमो को विराम दिया और इसी मन्दिर से ही आहारचर्या के लिए निकले।
    ◆ आज पूज्य गुरुदेव को पड़गाहन कर आहारदान का सौभाग्य प्राप्त किया  ब्र. श्री स्वतंत्र भैया दमोह को। उनके पुण्य की अनुमोदना।
     
     
    पूज्य गुरुदेव के बढ़ते कदम..!!
    11 अप्रैल, बुधवार।

    परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का मंगल विहार- 
    ◆ आज का रात्रि विश्राम- लखनपुरा (8 किमी)
    ◆ कल की आहार चर्या- मरुताल (9 किमी) दमोह यहाँ से मात्र 4 किमी
     
     
    आज १०/०४/२०१८ को आचार्यश्री ससंघ की आहार चर्या जबेरा में सम्पन्न हुई।
    ?
    आज १०/०४/२०१८ आचार्यश्री ससंघ का रात्रि विश्राम कलहरा (जबेरा से ६.५ km) में हो रहा है।
    ?
    कल ११/०४/२०१८ को आचार्यश्री ससंघ की आहार चर्या नोहटा में होने की सम्भावना है (कलहरा से ११.५ km)
     
     
     
    *पूज्य गुरुदेव के बढ़ते कदम..!!*
    8 अप्रैल, रविवार।
    *_परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का मंगल विहार-_* 
    ◆ *आज का रात्रि विश्राम-* जमुनिया ग्राम (कटंगी से 7 किमी)
    ◆ *कल की आहार चर्या-* सिंगरामपुर। (जमुनिया से 8 किमी)
    ◆ *10 और 11अप्रैल को जवेरा और नोहटा बालों का जागेगा पुण्य। संभावित आहार चर्या।*
     
     
    अनियत विहारी गुरुदेब का मंगल विहार
    7 अप्रैल, शनिवार।
    परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का मंगल विहार- 
    आज 7 अप्रैल को प्रातः लगभग 6 बजे शिवनगर से मंगल विहार हुआ।
    ◆ आज की आहारचर्या- बेलखाडू ग्राम।
    ◆ आज दोपहर बाद, मंगल विहार, लगभग 9 किमी पर रात्रि विश्राम।
    ◆ कल 8 अप्रैल को कटंगी बालों का जागेगा पुण्य। होगी आहार चर्या।
    साभार: ब्र श्री सुनील भैया, इन्दोर।
     
     
    ।। आचार्यश्री जी का मंगल विहार अपडेट।।
     5 अप्रैल, गुरुवार

    पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का मंगल विहार चल रहा, जबलपुर की ओर।
    ◆ आज रात्रि विश्राम- पिपरिया-उमरिया गांव
    ◆ कल की आहार चर्या- रांझी (जबलपुर)
    ◆ यदि विहार हुआ तो कल का संभावित रात्रि विश्राम- शिवनगर जबलपुर।

     
     
    2 अप्रैल, सोमवार, संध्याकाल

    परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महामुनिराज ससंघ का मंगल विहार, आज शहपुरा(डिण्डोरी) से हुआ।
    ◆ आज रात्रि विश्राम- खुरइया ग्राम।
    ◆ कल की आहारचर्या- देवरी में संभावित।
    ◆ आगामी संभावित दिशा-
    कुण्डम (24 किमी), रांझी होकर जबलपुर (कुंडम से 45 किमी)
     
     
    परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का होने जा रहा मंगल विहार, डिण्डोरी से जबलपुर मार्ग पर।
    ● आज का रात्रि विश्राम- नवोदय विद्यालय (9 किमी)
    साभार सूचना- ब्र.श्री सुनील भैया जी, इन्दोर
     
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