हाथ न मलो, हाथ न दिखाओ, हाथ मिला लो
अकलतरा: उक्त बातें जैन समाज के संत षिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए बालक प्राथमिक शाला में कही। उन्होंने कहा कि दूसरों का वैभव देखकर हम अपना हाथ मलते हैं तथा ईष्या करते हैं। हम पुरुषार्थ के द्वारा जीवन में तरक्की एवं आगे बढ़ सकते हैं। इससे हमें अपना हाथ नहीं मलना पड़ेगा। हम भाग्य भरोसे रहकर पुरुषार्थ पर विष्वास नहीं करते एवं दूसरों को अपनी हाथ की रेखा दिखाने का कार्य करते हैं एवं दूसरे व्यक्ति पर बातचीत से हल नहीं निकलने पर अपना हाथ उसपर छोड़ देते हैं, जो कि गलत है। मानव जीवन में मानव को दूसरों का हमेषा हाथ मिलाकर चलना चाहिए। हाथ मिलाकर चलने में ही मानव जीवन सफल है एवं मानव प्रगति कर सकता है। हाथ न मलो, हाथ न दिखाओ, हाथ मिला लो – ये तीन बातें मानव को हमेषा अपने जीवन में याद रखनी चाहिए। आचार्य विद्यासागर महाराज ने कहा कि डोंगरगढ़ से बस्तर, धमतरी, राजिम, रायपुर, भाठापारा, बलौदाबाजार, पामगढ़ होते हुए अकलतरा नगर तक लगभग 800 कि.मी. की पैदल यात्रा की। सड़क के दोनों ओर हरे भरे खेत दिखाई दिये। उन्होंने छत्तीसगढ़ को तरा, तर, तरी के रुप में संज्ञा देते हुए कहा कि यहां की खेत हमेषा पानी से भरे रहते हैं एवं हरियाली छायी रहती है। राज्य में धान का पैदावार अधिक होने के बाद भी धान की रक्षा न करना चिन्तनीय विषय है। विनिमय सिद्धांत के आधार पर छत्तीसगढ़ से अन्य राज्यों को धान भेजकर वहां से गेहूं एवं अन्य चीजों का आयात करना चाहिए। उन्होंने कहा कि शांति एवं लक्ष्मी एक दूसरे के शत्रु हैं। लक्ष्मी आने पर मानव के जीवन पर शांति समाप्त हो जाती है। सारा दिन उसका ध्यान तिजौरी पर रखे हुए पैसे पर रहता है तथा उसी के बारे में सोचने लगता है। लक्ष्मी कम होने से जीवन में शांति रहती है तथा मानव तनाव रहित जीवन जीता है। मानव जीवन में संतुष्ट नहीं होता। मानव की आवष्यकता दिन प्रतिदिन बढ़ती जाती है। हमें ऋण लेते समय बहुत आनन्द मिलता है, लेकिन उसे चुकाते समय पसीना आ जाता है। वर्तमान में दूध का स्वरुप ही खत्म हो गया है। पैसे में भी सही दूध नहीं मिलता। वहीं किसी जमाने में बिना पैसे का मिलने वाला पानी आज बोतल में पैसों में बिक रहा है। दूध और पानी का महत्व ही खत्म हो गया है।
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