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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. ज्ञान का विकास ज्ञान के दान की ओर अग्रसर करता है। ज्ञानदान से ज्ञान वृद्धिंगत होता है, घटता नहीं बढ़ता ही है, ज्यों-ज्यों अध्यापन कराया जाता है, त्यों-त्यों ज्ञान मॅजता चला जाता है। यही ज्ञान के साधक की ज्ञान साधना का निखार है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए पण्डित भूरामल शास्त्री ने व्रती संघों को ज्ञान का अभ्यास कराना प्रारम्भ किया। चाहे वे आचार्य धर्मसागरजी ही क्यों न हों, आर्यिका सुपार्श्वमती, आर्यिका वीरमती, वीरसागरजी महाराज का संघ, इस प्रकार अनेक श्रमण संघों, गृहस्थ श्रावकों आदि को स्नकरण्डकश्रावकाचार, छहढाला, न्याय, सिद्धान्त, अध्यात्म एवं चारित्र परक ग्रन्थादि का अध्ययन कराया और अध्ययन कराते समय दिन-रात का भेद नहीं रखा। अध्ययन-अध्यापन ही उस समय उनकी खुराक बन गयी थी।
  2. गाय विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार https://vidyasagar.guru/quotes/anya-sankalan/gaay/
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