मेरे गुरुवर विद्यासागर शिल्पकार हो तुम।
हम मिट्टी को रूप दिया है कुम्भकार हो तुम ॥
बागों के हम फूल हैं, बागवान हो तुम।
इस युग के भगवान हो, महावीर हो तुम-2॥
रूखा-सूखा लेकर भी, झरता अमृत ज्ञान।
एक शिकन मुख पर नहीं, फिर भी है मुस्कान-2॥
मैं चर्या आपकी, जो है अनकही।।
गुरुदेव तपस्या से, ये धरती है थमीं ॥
मेरे गुरुवर विद्यासागर शिल्पकार हो तुम
स्वाश्रित जीने की कला, तेरा ही उपहार।।
हथकरघा उद्योग है, जीवन का आधार-2॥
इस स्वर्णिम भारत को प्रतिभारत बनाया है।
गुरु आपने हमें जीना सिखाया है॥
मेरे गुरुवर विद्यासागर शिल्पकार हो तुम
दे दो संबल गुरु हमें, मानव सेवा कर पाएँ।
दिखलाया जो आपने, उस पथ पर हम चल पाएँ-2॥
हो आशीष आपका, जो सर पर हैं सदा।
हम दर्पण बन रहें, गुरु आपकी कृपा॥
मेरे गुरुवर विद्यासागर शिल्पकार हो तुम
चरण जन्नत ढूंढ़ते सात समंदर पार।
पाया तेरे चरणों में, जन्नत का शुभ द्वार-2॥
ये जमीं है आपकी, कण-कण में आप हैं।
मेरे गुरुवर आप ही मेरे भगवान हैं।
मेरे गुरुवर विद्यासागर शिल्पकार हो तुम.....
मेरे आतम के प्रदेश में, छवि आपकी अंकित हैं।
श्वासों की साजों पर गुरुवर,गीत आपके गुजित है -2 ॥
मेरी आन अब तुम्हीं हो, पहचान अब तुम्हीं हो।
मेरा सब कुछ तुम्हीं हो, बस तुम्हीं तो हो॥
मेरे गुरुवर विद्यासागर शिल्पकार हो तुम......
बागों के हम फूल हैं, बागवान हो तुम।
इस युग के भगवान हो, महावीर हो तुम-2॥