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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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Blog Entries posted by संयम स्वर्ण महोत्सव

  1. संयम स्वर्ण महोत्सव
    #केश्लोंचन
    #आचार्यश्रीविद्यासागरजीमुनिराज
    #जैनतीर्थबंधा
        प.पू. श्रीमद् जैनाचार्य विद्यासागर महामुनिराज जैन तीर्थ बंधा जी,जतारा, जिला-टीकमगढ,म.प्र. में 41 निर्ग्रन्थ बाल ब्रह्मचारी मुनियो के संघ सहित विराजमान है।
        आज आचार्यश्री विद्यासागर जी मुनिराज का व संघस्थ मुनिगणो  का आज #केश्लोंचन हुआ
    केश्लोंचन कर्ता मुनि
    आचार्यश्री विद्यासागर मुनिराज 
    मुनि योगसागर मुनिराज 
    मुनि सौम्यसागर मुनिराज 
    मुनि विनम्रसागर मुनिराज
    मुनि निरापदसागर मुनिराज 
    मुनि संधानसागर मुनिराज 
    मुनि श्रमणसागर मुनिराज
        केश्लोचन दिगम्बर जैन मुनि की तपस्या का मूलगुण है इसके अन्तर्गत मुनि अपने सिर व दाढी-मूँछ के बालो को बिना किसी उपकरण या औषधि के अपने ही हाथो से खींचकर तोड़ते है इस दिन मुनियो को निर्जल उपवास करना होता है,यह क्रिया 2,3 या अधिकतम 4 मास में एक बार करना अनिवार्य है, आचार्य विद्यासागर जी 2 माह से भी कम समय में केश्लोंचन करते है।
        बंधा जी 1500 साल पुराना जैन तीर्थ है जहाँ 900 वर्ष प्राचीन तीर्थंकर अजितनाथ जी की मनभावन दिगंबर मूर्ति है यहाँ इससे भी प्राचीन और कई मूर्तियाँ है।
       आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से व उनके शिष्य मुनि अभयसागर जी मुनिराज के निर्देशन में इस तीर्थ का जीर्णोद्धार हुआ और आज यह मध्यप्रदेश के प्रमुख जैन तीर्थो की पंक्ति में शुमार है।
    संस्कृति संरक्षक आचार्य विद्यासागर जी मुनिराज जयवंत हो
    तीर्थ जीर्णोद्धारक मुनि अभयसागर जी मुनिराज जयवंत हो
  2. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ???????????
    ??? संस्मरण क्रमांक 3 ???
      गुरु होकर भी लघु बने रहना
     एक बार  भोपाल में आचार्य श्री जी के दर्शन करके अत्यंत भावविभोर होकर किसी भक्त ने  कह दिया कि- पंचम काल की काया पर चतुर्थ काल की आत्मा।  
    जिसे सुनकर आचार्य श्री जी ने कहा कि- आप कह सही रहे हो , पर एक सुधार करना है कि पंचम काल की तो काया है , पर अनंत काल की आत्मा  ये आत्मा अनादि काल से संसार मे भटक रही है , फिर आप कैसे कह सकते है कि चतुर्थ काल की आत्मा 
    लोगो को सुनकर आश्चर्य हुआ और सभी गुरुजी के प्रति समर्पण भाव से भर गए ।
     वास्तव में आचार्य श्री जी हमेशा अपने आप को बहुत ही लघु मानते है , जब भी कोई कार्य करते है , तो कहते है , सब गुरुजी (ज्ञानसागर जी) की कृपा से हो गया। 
    धन्य है ऐसे गुरुजी के काल मे हमे जन्म लेने का अद्वितीय सौभाग्य मिला।
    ???????????  समस्त स्वर्णिमसंस्मरण परिवार
    ???????????
  3. संयम स्वर्ण महोत्सव
    काल की दूरी,
    क्षेत्र दूरी से और,
    अनिवार्य है।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  4. संयम स्वर्ण महोत्सव
    छाया का भार,
    नहीं सही परन्तु,
    प्रभाव तो है।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  5. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चलते फिरते तीर्थ गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणो में भावों की विशुद्धिपूर्वक प्रणाम करता हूं..... हे गुरूवर! किशनगढ़ चातुर्मास की एक विशेष बात आपको याद होगी कि-जब विद्याधर को आपने तीर्थ यात्रा जाने की बात कही थी, किंतु उन्होंने मना कर दिया था। इस संबंध में श्रीमती कनक जैन (दिल्ली)हाल निवासी ज्ञानोदय, अजमेर ने बताया- जब हम किशनगढ़ गुरु महाराज के दर्शन करने के लिए आए तब यह बात पता चली, वही बात मैं आपको लिख रहा हूं-
     
    सन 1967 में किशनगढ़ के कुछ सज्जनों ने ब्रह्मचारी विद्याधर को निवेदन किया कि- यात्रा के लिए बस जा रही है,आप भी चलिए, तीर्थ यात्रा हो जावेगी। तो ब्रम्हचारी विद्याधर जी ने मना कर दिया बोले- मुझे बहुत पढ़ना है। तो वह सज्जन आचार्य श्री ज्ञानसागर जी के पास आए और बोले- गुरु महाराज हम लोग यात्रा पर जा रहे हैं विद्याधर जी को चलने का निवेदन किया तो वह मना कर रहे हैं। तब गुरुवर ज्ञान सागर जी बोले- विद्याधर!तीर्थ यात्रा पर चले जाओ मना क्यों कर रहे हो ? तब विद्याधर बोले- "महाराज! मैंने आपके चरणों में वाहन का त्याग कर दिया है और मुझे ज्ञान तीर्थ की यात्रा करनी है, जो मैं कर रहा हूँ। आपके चरणो को छोड़कर मुझे कहीं नहीं जाना है।"

    इस प्रकार विद्याधर एक सच्चे  अन्तरयात्री थे, जो ज्ञान रथ पर सवार होकर गुरु के सम्यक् ज्ञान  तीर्थ की वंदना करने निकल पड़े थे। ऐसे सम्यक् ज्ञान तीर्थ की मैं वंदना करता हूं। अपने गुरु के रत्नत्रय तीर्थ की मैं सदा वंदना करता हूं इस भावना के साथ.......
  6. संयम स्वर्ण महोत्सव
    फूलों की रक्षा,
    काँटों से हो शील की,
    सादगी से हो।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  7. संयम स्वर्ण महोत्सव
    भोक्ता के पीछे,
    वासना, भोक्ता ढूँढे,
    उपासना को।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  8. संयम स्वर्ण महोत्सव
    20 जुलाई 18
    खजुराहो । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री जहां प्रदेश में चौथी बार सरकार बनाने के लिए जन आशीर्वाद यात्रा के माध्यम से मप्र की जनता का आशीर्वाद लेने में इन दिनों लगे हुए है। वहीं उन्हें अब एक नई जिम्मेदारी मिल गई है। लेकिन, वह जनता के आशीर्वाद से नहीं बल्कि गुरू के आशीर्वाद है। जी हां, गुरू की शरण में पहुंचे शिवराज को जो जिम्मेदारी मिली है, उससे शिवराज भी खुश है। दरअसल, सतना दौरे से लौटे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी पत्नी साधना सिंह के साथ रात में खजुराहो पहुंचे। जहां रात्रि विश्राम भी उन्होंने किया।
     
    इसके बाद शुक्रवार की सुबह वह यहां विराजमान जैन संत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के दर्शन करने पहुंचे थे। जहां आचार्यश्री के चरणों में जाकर जब शिवराज ने पुन: मध्यप्रदेश की जनता की सेवा करने का आशीर्वाद मांगा तो आचार्यश्री मुस्कराने लगते है। भरे कार्यक्रम के बीच आचार्य कहते है कि शिवराज अब आप सिर्फ मध्यप्रदेश नहीं, बल्कि भारत की १२१ करोड़ जनता के बारे में सोचना शुरू कर दीजिए।
     
    *कार्यक्रम के दौरान पहुंचे थे मुख्यमंत्री*
    खजुराहो से मिली जानकारी के अनुसार खजुराहो में जैन समाज द्वारा आयोजित कार्यक्रम में शुक्रवार को सुबह मुख्यमंत्री पहुंचे थे। जहां उन्होंने आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के चरणों का प्रच्छालन किया। साथ ही मध्यप्रदेश की उन्नति और खुशहाली का आशीर्वाद मांगा। शिवराज सिंह को खजुराहो प्रबंध समिति ने मंच पर स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। इस मौके पर मप्र शासन की राज्यमंत्री ललिता यादव भी मुख्यमंत्री के साथ थी। मुख्यमंत्री कार्यक्रम स्थल पर 30 मिनट तक रुकने के बाद सीधे खजुराहो विमानतल के लिए रवाना हो गए। यहां से वे भोपाल के चले गए।    

    आज प्रातः पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज को मप्र के मुखिया श्री शिवराजसिंह चौहान सहित अतिशय क्षेत्र खजुराहो सम्पूर्ण कमेटी ने श्रीफल समर्पित कर  खजुराहो में वर्षायोग हेतु आशीर्वाद माँगा, पूज्य आचार्य भगवन ने आशीर्वाद प्रदान किया। एक तरह से अब आचार्यश्री ससंघ का चातुर्मास खजुराहो में होना निश्चित हो गया है। इससे देश भर की समाज में उत्साह और हर्ष की लहर छा गई।
     
    संघस्थ बाल ब्र. सुनील भैया ने बताया कि माननीय मुख्यमंत्री जी ने आज पूज्य आचार्यश्री जी के समक्ष मंच से घोषणा भी की, कि मप्र शासन द्वारा दिया जाने जीव दया सम्मान, आगामी अगस्त माह में ही आचार्यश्री जी के पावन सान्निध्य में खजुराहो में ही प्रदान किया जाएगा । ज्ञातव्य है कि पूज्य आचार्यश्री जी की प्रेरणा एवम् आशीर्वाद से ही जीव दया के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य हेतु यह पुरस्कार मप्र शासन द्वारा घोषित किया गया है।
     
    अब 29 जुलाई को आयोजित होने बाले कलश स्थापना की तैयारियों की गति तेज़ हो गई है।

    समाचार एजेंसियां एवं अनिल जैन बड़कुल, ए बी जैन न्यूज़
  9. संयम स्वर्ण महोत्सव

     मन की कृति,
    लिखूँ पढ़ूँ सुनूँ पै,
    कैसे सुनाऊँ ?
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  10. संयम स्वर्ण महोत्सव
    माँगते हो तो,
    कुछ दो, उसी में से,
    कुछ देऊँगा।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  11. संयम स्वर्ण महोत्सव
    मुनि स्व में तो,
    सीधे प्रवेश करें,
    सर्प बिल में।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  12. संयम स्वर्ण महोत्सव
    मैं हट जाऊँ,
    किन्तु हवा मत दो,
    और न जले…!
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  13. संयम स्वर्ण महोत्सव
    श्रीक्षेत्र श्रवणबेलगोला
    द्वितीय दिवस - 7 जून,  2018
     
    श्रुतपंचमी महोत्सव प्रारम्भ - श्रवणबेलगोला में आज दिनांक 7 जून को दोपहर 2 बजे 12 दिवसीय श्रुतपंचमी महोत्सव प्रारम्भ हो गया। स्वस्तिश्री चारुकीर्ति भट्टारक महास्वामीजी की प्रेरणा और निर्देशन में विद्वानों को सम्मानित किया गया और उनकी भव्य शोभायात्रा निकाली गई। तत्पश्चात् आचार्यश्री वर्धमान सागर जी महाराज एवं समस्त मुनि-आर्यिका संघ के सानिध्य में शास्त्री परिषद् का अधिवेशन प्रारम्भ हुआ। इस सत्र में प्राचार्य ब्र. अनिल भैया, अन्तर्राष्ट्रीय जैन विद्वान डॉ. हम्पाना, गणिनी आर्यिका माताजी एवं मुनिश्री उत्तम सागर जी सहित तीन मुनिराजों और आचार्यश्री वर्धमान सागर जी एवं आचार्यश्री वासुपूज्य सागर जी ने सम्बोधित किया।

    संयुक्त मंत्री पं. विनोद कुमार जैन रजवांस ने शास्त्री परिषद् बुलेटिन के "संयम स्वर्ण विशेषांक" का विमोचन आचार्यश्री वर्धमान सागर जी, स्वस्तिश्री भट्टारक स्वामीजी एवं डॉ. श्रेयांस कुमार जी से करवाया। सभा का संचालन परिषद् के महामंत्री ब्र. जय कुमार जैन 'निशान्त' ने किया। रात्रिकालीन सत्र में विद्वानों की सभा में परम पूज्य स्वस्तिश्री भट्टारक चारुकीर्ति महास्वामीजी ने गोमट्टसार ग्रंथ का स्वाध्याय किया। उन्होंने तथा डॉ. श्रेयांस कुमार जी ने विद्वानों की अनेक जिज्ञासाओं का समाधान किया।
     

  14. संयम स्वर्ण महोत्सव
    सहानुभूति
     
    दृष्टिपथ में आने वाले शरीरधारियों को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं। (१) मनुष्य (२) पशु पक्षी। इनमें से पशु पक्षी वर्ग की अपेक्षा से आम तौर पर मनुष्यवर्ग अच्छा समझा जाता है, सो क्यों? उसमें कौनसा अच्छापन है? यही यहां देखना है। खाना-पीना, नींद लेना, डरना, डराना और परिश्रम करना आदि बातें जैसी मनुष्य में है वैसी ही पशु-पक्षियों में भी पाई जाती है। फिर ऐसी कौनसी बात है जिससे मनुष्य को पशु-पक्षियों से अच्छा समझा जाता है?
     
    बात यह है कि मनुष्य में सहानुभूति होती है, जिसका कि पशु-पक्षियों में अभाव होता है। पशु को जब भूख लगती है तो खाना चाहता है और खाना मिलने पर पेट भर खा लेता है। उसे अपने पेट भरने से काम रहता है और उसे अपने साथियों की कुछ फिकर नहीं होती। उसकी निगाह में उसका कोई साथी ही नहीं होता जिसकी कि वह अपने विचार में कुछ भी अपेक्षा रखे। मनुष्य का स्वभाव इससे कुछ भिन्न प्रकार का होता है। वह अपनी तरह से अपने साथी की भी परवाह करना जानता है। यदि खाना मिलता है तो अपने साथी को खिलाकर खाना चाहता है। वस्त्र भी मिलता है को साथी को पहनाकर फिर आप पहिनना ठीक समझता है। आप भले ही थोड़ी देर के लिये भूखा प्यासा रह सकता है परन्तु अपने साथी को भूखा प्यासा रखना या रहने देना इसके लिए अनहोनी बात है। बस इसी का नाम सहानुभूति है।
     
    जिसके बल पर मनुष्य सबका प्यारा ओर आदरणीय समझा जाता है। हां यदि मनुष्य में सहानुभूति न हो तो फिर वह पशु से भी भयंकर बन जाता है। क्रूर से भी क्रूर सिंह भी प्रजा में इतना विल्पव नहीं मचा सकता जितना कि सहानुभूति से शून्य होने पर एक मनुष्य कर जाता है। सिंह तो क्रूरता में आकर दो चार प्राणियों का ही संहार करता है किन्तु मनुष्य जब सहानुभूति को त्यागकर एकांत स्वार्थी बन जाता है। तो वह सैकड़ों, हजारों आदमियों का संहार कर डालता है। कपट वचन के द्वारा लोगों को भ्रम में डालकर बरबाद कर देता है। लोगों की प्राणों से प्यारी जीवन निर्वाह योग्य सामग्री को भी लूट खसोट कर उन्हें दुखी बनाता है। मनचलेपन में आकर कुलीन महिलाओं पर बलात्कार करके उनके शीलरत्न का अपहरण करता है। भूतलभर पर होने वाले खाद्य पदार्थ वगैरह पर अपना ही अधिकार जमाकर सम्पूर्ण प्रजा को कष्ट में डाल देता है।
  15. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ।। आज पूज्य आचार्य श्री के केश लौंच।।
    7 मार्च, बुधवार

    परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज जी आज सर्वोदय तीर्थ अमरकंटक में केश लौंच कर रहे है (उत्कृष्ट अवधि) । साथ ही संघस्थ 7 मुनि महाराज जी का भी आज केशलोंच है।
    नमोस्तु भगवन, नमोस्तु।
    सूचना साभार: ब्र. श्री सुनील भैया जी, इन्दोर।

     
  16. संयम स्वर्ण महोत्सव
    रामटेक में विराजमान संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने प्रतिभा स्थली के बच्चों के सांस्कृतिक कार्यक्रम के पश्चात कहा कि – एक बालिका ने कहा कि भूगोल ही क्या हम इतिहास बदल देंगे तो हमें भूगोल में जो विक्रतियाँ आ गयी है उनको हटाना है। हमें सीखना है किसी कि शिकायत नहीं करना है। शिक्षा सिखने के लिये होती है और जो दिक्षित होते हैं उन्हे अंतरंग में उतारने में कारण होती है।
    ‘‘जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि और जहाँ न पहुँचे कवि वहाँ पहुँचे आत्मानुभवि’’।
    देश में परिवर्तन हो जाये, वेष में परिवर्तन हो जाये लेकिन उद्देश्य में परिवर्तन हो जाये तो कार्य नहीं होगा। बीच में कुछ ऐसी बच्चियाँ आयी जैसे कोई काव्य गोष्ठी हो रही हो, मंच का संचालन भी अच्छा हो रहा था। अभी – अभी डोंगरगढ़ में प्रतिभा स्थली खुली है उसकी खुशबू फैल रही है।
    आज वीर शासन जयंती है यह दिन बताता है कि केवल ज्ञान होने के उपरान्त भी दिव्य ध्वनि नहीं खिर पा रही थी। 66 दिन तक दिव्य ध्वनि नहीं खिरी, फिर खिरी। समवशरण तो खचाखच भरा था।
    बच्चे अपने साथ प्याऊ (बाटल) लेकर आये हैं। गाँधी जी चाहते थे कि इनकी शिक्षा ऐसी मटकी के जैसी हो जिसमें से सभी पी सके। यह बोतल की परंपरा बदलना होगी। भूगोल को बदलने की अपेक्षा बोतल को गायब कर दें। एक बार पीने के बाद प्यास बुझ जायेगी। आप बोतलों को समाप्त कर देंगे और सबकी प्यास बुझायेंगे। असर सर तक नहीं किन्तू हृदय तक पढ़ना चाहिये। कानों से जो सुनते हैं उसे हृदय की ओर ले जायें उसी का नाम वीर शासन जयंती है। वाचन की अपेक्षा पाचन महत्वपूर्ण होता है। स्वप्न यानि स्वपन को साकार करें। हम भी भगवान की तरह बनें स्वप्न तभी साकार होंगे। दुनिया में सब कुछ मिल सकता है लेकिन स्वप्न नहीं। एक दृष्टांत देते हुये कहा कि एक बच्चे की माँ गुम गई पिता कि अपेक्षा माँ अधिक आत्मीयता एवं संस्कार देती है। किसी रहस्य को समझने में शब्द ही काम में नहीं आते अन्य भी चीजें काम आती है। ‘‘जवाब नहीं देना भी लाजवाब है’’ शब्दों के साथ भाव प्रणाली भी होना चाहिये। आज की शिक्षा शब्दों की ओर ही जाती है। आज के दिन दिव्य ध्वनि खिरी और वीर शासन जयंती प्रसिद्ध हुई।
  17. संयम स्वर्ण महोत्सव
    अमरकण्टक में विराजमान सन्त षिरोमणि दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी ने कहा कि स्व प्रषंसा, पर आलोचना ध्यान में नहीं लाना एक साधना है। वचनों की व्याख्या करते हुए बताया कि वचन से विस्फोट हो जाता है, अप्रिय वचन अर्पित वचन नहीं है। परस्पर आरोप प्रत्यारोप में व्यस्त पक्ष विपक्ष से राष्ट्रीय पक्ष पीछे रह जाता है।
    आचार्य श्री विद्यासागर जी ने षिष्य, साधकों एवं श्रोताओं को समझाते हुए कहा कि कौन से वचन कथनीय है कौन से नहीं, वचन व्यक्त करने के पूर्व विचार कर लेना चाहिए। अपने कथन पर ध्यान नहीं पर कथन की समीक्षा कर रहें हैं। कठोर वचन सुनकर विचार करते हैं कि वह क्रोध शेष में दोष कर रहा है, आवेष का आवेग है। ज्ञानी आवेष के आवेग में नहीं आता। संसार में दोषों के उन्मूलन की व्यवस्था है। आचार्यों से पुराण ग्रन्थों से ज्ञान हो जाता है। संसारी प्राणी संयम के अभाव में आवेषित होकर कठोर व अप्रिय वचनों का उपयोग करता है किन्तु मोक्ष मार्ग का साधक प्रत्येक अवस्था में व्यवस्थित रहता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी ने कहा कि आवेग पर नियंत्रण रखने का पुरूषार्थ करें। विस्फोटक पदार्थों में अग्नि के सम्पर्क से भयंकर विस्फोट हो जाता है। ऐसे ही क्रोध के आवेग में कठोर वचनों से भी स्थिति विस्फोटक हो जाती है। हिंसा उत्पन्न करने वाले वचनों का प्रयोग मत करो। संयम धारण करने वाला विस्फोट से स्वयं की रक्षा करने के साथ – साथ अन्य को भी बचा लेता है। यही मोक्षमार्ग है।
    सरल शब्द नरम होकर भीतर तक प्रभाव डालते हैं, शब्दों के प्रभाव को समझाते हुए आचार्य श्री विद्यासागर जी ने कहा कि महान तपस्वी स्वयं के दोष देखता है, कोई सुने या न सुने, स्वयं सुनता है एवं प्रायष्चित करता है। दूसरे के गुस्से को पियो और पचाओ। सामने वाला उबाल में और दूसरा उससे अधिक उबल जाता है। ईंट का जवाब पत्थर से देने की योजना बनाते हैं, इससे स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है। दो युद्ध हो चुके यदि तीसरा हुआ तो सब समाप्त हो जाएगा तब चैथा तो पाषाण युद्ध ही होगा। संयम और शीतलता ही शांति की धारा है यह बताते हुए कहा कि साबुन से नहीं जल से ही निर्मलता आती है। आचार्य श्री ने कहा कि प्रष्न को उपयुक्त बनाओ तब ही सार्थक उधार मिलेगा। निरर्थक प्रष्न स्वयं प्रष्न वाचक है! हित की विवक्षा में कदाचित कभी अप्रिय वचन की आवष्यकता एक विरेचन की भांति की जा सकती है जिसमें पर का अहित हो ऐसा प्रिय वचन वर्जित है। विरेचन क्रिया का एक सुनिर्धारित क्रम है ऐसा ही क्रम वचनों के प्रयोग के लिए भी प्रयुक्त किया जाता है। स्वयं की प्रषंसा पर की आलोचना संसार की बीमारी है यह असंयम की पहचान है। निष्ठुर वचन से तोबा करने की सीख देते हुए कहा कि अधिक बोलना दण्डनीय होता है, अभिव्यक्ति आवष्यकतानुसार अल्प शब्दों से की जाती है। ऐसे वचनों का प्रयोग हो जिससे पर दोष भी दूर हो जाए।
  18. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरि , डोंगरगढ़ में 23 नवं.दोपहर दो से तीन "प्रतिक्रमण ग्रंथ त्रयी" का स्वाध्याय संघस्थ साधुओं के लिए प्रारम्भ हुआ |
  19. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ☀☀ संस्मरण क्रमांक 37☀☀
               ? "बचो शराबी से" ?
    एक दिन आचार्य श्री मोहनीय कर्म एवं मोही प्राणी के बारे में समजा रहे थे। उन्होंने कहा कि  मोह को सबसे बड़ा शत्रु कहा है, क्योंकि यह मोह ही संसारी प्राणी को चारों गतियों में भटकाता रहता है। ऐसे मोह की संगित से बचो औऱ जो मोह से बच कर निर्मोही, साधु त्यागीवार्ति बन गए है,  उन्हें मोहियों से भी बचना चाहिए, दूर रहना चाहिए। मोह को महामद यानि शराब की उपमा दी गयी है तो मोह को शराबी की उपमा दी।जा सकती है।
         आचार्य श्री ने आगे कहा- जैसे सभ्य लोग शराब पीने से तो बचते ही है, लेकिन शराबी की संगित से भी बचते है। शराबी से बात करना भी पसंद नही करते , वैसे ही साधुजनों को मोह तो करना ही नही चाहिए और हमेशा मोहि श्रावकों से भी बचना चाहिए। उनसे ज्यादा बात नही करनी चाहिए । अंत मे उन्होंने कहा कि मोह ओर मोहियों से दूर रहना ही।मोक्ष मार्ग हैं।
    ? अनुभूत रास्ता ?
     ? मुनि श्री कुंथुसागर  महाराज
     
  20. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ??? *बटियागढ़ में आचार्य श्री के पास लगा जेल विभाग पुलिस अधिकारियों का समागम हथकरघा कार्य के लिए
     
    कल दिनांक 14 अप्रैल को बटियागढ़ में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के पास मध्य प्रदेश जेल विभाग के डीआईजी श्री गोपाल ताम्रकार, जेल अधीक्षक सागर श्री राकेश भांगरे, जेल अधीक्षक उज्जैन श्रीमती अलका सोनकर, जिला जेल अधीक्षक इंदौर सुश्री अदिति तिवारी, जेल अधीक्षक नरसिंहपुर श्रीमती शेफाली तिवारी, जिला जेल अधीक्षक दमोह श्री राणा की टीम ब्रह्मचारिणी रेखा दीदी DSP पूर्व एवं डॉ नीलम दीदी शिशु रोग विशेषज्ञ एवं डॉ अमित जैन राजा भैया, श्री मनोज सिलवानी गुड़ वाले, एडीजे श्री अरविंद जैन, पूर्व डीएसपी श्री विनोद श्रीवास्तव, श्री श्रेयांश सेठ पूर्व DSP एवं कारपेट एक्सपोर्ट व्यापारी श्री ऋषभ jain मिर्जापुर के साथ बटियागढ़ आचार्य श्री जी के दर्शन करने पहुंचे जेल विभाग की टीम ने सर्वप्रथम सागर जेल में बंदियों द्वारा बनाया गया सिंहासन आचार्य श्री जी को भेंट किया बाद डीआईजी गोपाल ताम्रकार जी ने सागर जेल के बंदियों द्वारा लगातार हाथकरघा से बनाई साड़ियों को दिखाया और 1 मई से सागर जेल में ग्वालियर, जबलपुर, भोपाल, इंदौर जेल से भेजे जा रहे पांच पांच कैदियों को जो कि सागर जेल में रेखा दीदी DSP द्वारा हथकरघा में प्रशिक्षित किए जाएंगे यह प्रशिक्षण 3 माह के लिए रहेगा जानकारी दी मिर्जापुर से आए हुए कारपेट एक्सपोर्ट व्यापारी श्री ऋषभ जैन जी ने आचार्य श्री जी को शुद्ध अहिंसक कारपेट्‍स, कालीन, दरी दिखलाएं और उन्होंने मध्य प्रदेश जेल की 13 सेंट्रल जेलों में बंदियों को सिखाने के लिए रॉ मटेरियल और उपकरण दान में देने की बात कही जेल विभाग के अधिकारियों और रेखा दीदी द्वारा आश्वासन दिया कि 6 माह के अंदर बंदियों को दरी, कालीन शटल लूम और जाकार्ड लूम के द्वारा बनाना सिखाया जाएगा और एक्सपोर्ट क्वालिटी का बनाना जब बंदी सीख जाएंगे तो सारा माल ऋषभ जैन जी के द्वारा विदेशों में एक्सपोर्ट किया जाएगा इस प्रकार का अनुबंध आचार्य जी के सामने हुआ जेल विभाग द्वारा किया गया l आगामी समय में सागर जेल एवं अन्य केंद्रीय जेलो में 108 हाथकरघा लगने और इन हथकरघा के लिए टीन शेड लगाने का प्रावधान किया गया है बंदियों के लिए गर्मी के दिनों में ठंडे पानी हेतु वाटर कूलर का निवेदन किया जो तत्काल 15 दान दाता द्वारा वाटर कूलर देने की घो
     
  21. संयम स्वर्ण महोत्सव
    *संयम स्वर्ण महोत्सव प्रतियोगिता क्रमांक 5* 
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    https://vidyasagar.guru/quizzes/quiz/4-1
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    आज की प्रश्नोत्तरी में 5 प्रश्न हैं, समय होगा 5 मिनिट 
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    सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाला विजेता चुना जायेगा - एक से अधिक होने पर लक्की ड्रा द्वारा विजेता चुने जायेंगे |
    नोट - यह एक गुरु प्रभावना का प्रयास हैं - टेक्नोलॉजी फेलियर जैसे इन्टरनेट बंद होना मोबाइल hang होना इत्यादि व्यवधान हो सकता हैं 
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  22. संयम स्वर्ण महोत्सव
    *परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज* 
               के ससंघ सानिध्य में
         *चार दिवसीय भव्य कार्यक्रम* 
                     14 अगस्त 
            24 मुनिराजों का दीक्षा दिवस 
           
    15 अगस्त  -   स्वतंत्रता दिवस 
    16 अगस्त  - 25 मुनिराजो  का दीक्षा    
                             दिवस  
    17 अगस्त - मुकुट सप्तमी निर्वाण लाडू
                     एवं भगवान पार्श्वनाथ मोक्ष
                      कल्याणक महोत्सव 
    निवेदक -- श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र  प्रबंध समिति खजुराहो जिला छतरपुर
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