Jump to content
मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता प्रारंभ ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

महाकविआचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के 46 वें समाधि दिवस पर शत शत नमन


Recommended Posts

ब्रह्मचारी विद्याधर को जिन पावन करकमलों ने मुनि - आचार्य विद्यासागर बनाया ऐसे दादागुरु महाकवि आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज का आज  46वां  समाधि दिवस पर शत शत नमन 

Link to comment
Share on other sites

आचार्य दादा गुरु श्री ज्ञानसागर जी महाराज के समाधि दिवस पर विशेष

              श्रद्धा और परिणाम
गुरु द्रोणाचार्य और उनका शिष्य बनने के इच्छुक तीन पात्र- अर्जुन, कर्ण और एकलव्य। गुरु द्रोणाचार्य को इनमें से केवल राजपुत्र अर्जुन शिष्य के रूप में स्वीकार। सूतपुत्र कर्ण और वनवासी एकलव्य का तिरस्कार। 
इस प्रसंग में गुरु द्रोणाचार्य के व्यवहार की व्याख्या तो प्रायः की जाती  रही है लेकिन मेरे मानस पटल पर तो द्रोणाचार्य के द्वारा तिरस्कृत दोनों पात्रों का व्यवहार बार-बार उभरता है। योग्यता रखते हुए भी गुरु के द्वारा तिरस्कृत कर्ण और एकलव्य के व्यवहार पर गौर करें तो जीवन के अद्भुत सूत्र हाथ लगते हैं। 
गुरु द्रोणाचार्य से तिरस्कृत होकर वीर कर्ण हीन भावना से ग्रस्त हो गया और अपनी योग्यता साबित करने के लिए, राजपुत्रों के समकक्ष होने के लिए वह दुराचारी दुर्योधन के हाथों बिक गया। अर्जुन का दुश्मन बना। परशुराम से छल पूर्वक विद्या प्राप्त कर शापित हुआ। परिणाम- युद्ध के समय विद्या विस्मृत हो गई और दारुण मृत्यु का वरण करना पड़ा। नरक के द्वार खुल गए। जीवन लांछित हो गया। 
इसके विपरीत एकलव्य ने गुरु के तिरस्कार के प्रति भी गजब की सकारात्मकता दिखाई। उसने प्रतिरोध नहीं किया। हीन भावना से ग्रस्त नहीं हुआ। उसमें राजपुत्रों के समकक्ष बैठने की, किसी से प्रतिस्पर्धा करने की, तिरस्कार का प्रतिशोध लेने की भावना ही नहीं जागी। उसे तो बस धनुर्विद्या सीखनी थी और गुरु द्रोणाचार्य  की योग्यता पर पूरा विश्वास था। गुरु से तिरस्कृत होकर भी कोई शिकायत नहीं की, प्रतिकार नहीं किया, जैसे तिरस्कार ने उसके हृदय को छुआ ही नहीं, जैसे उसने तिरस्कार को तिरस्कार माना ही नहीं। सिर झुका कर चला गया अपने जंगल में और गुरु के रेखाचित्र के समक्ष अभ्यास करता रहा। अभ्यास करते-करते एक दिन वह भी आया जब उसने अपने अभ्यास में व्यवधान डालने वाले भौंकते हुए कुत्ते को चुप करने के लिए जान से मारा नहीं उसकी जीभ पर सर संधान कर अपनी श्रेष्ठता उजागर कर दी। 
धनुर्विद्या में उसकी ऐसी अद्वितीय प्रवीणता देख अर्जुन की सर्वोच्चता को कायम रखने के लिए गुरु द्रोणाचार्य द्वारा दाएं हाथ का अंगूठा गुरुदक्षिणा में मांगने पर भी उसने कोई प्रतिकार किए बिना हंसते-हंसते अपने दाएं हाथ का अंगूठा गुरु चरणों में समर्पित कर दिया और इतिहास में श्रेष्ठतम शिष्य के रूप में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में अमर कर लिया। 
छोटी-छोटी असफलताओं से निराश होकर आत्महत्या को उन्मुख भारत के युवाओं के लिए कितना प्रेरक, अद्भुत,  अनुकरणीय है एकलव्य का यह व्यवहार। 
सफल कहलाने के लिए दो चीजें आवश्यक है- कुव्वत और भाग्य।
कुव्वत और भाग्य दोनों ही न हों, वह अभागा।
कुव्वत हो पर भाग्य नहीं, वह दुर्भाग्यशाली; जैसे- कर्ण।
कुव्वत और भाग्य दोनों हों, वह सौभाग्यशाली; जैसे- अर्जुन, आचार्य श्री विद्यासागर जी
कुव्वत न हो पर भाग्य हो, वह परम सौभाग्यशाली; जैसे- मैं।
असफल कहलाने का मतलब असफल होना नहीं होता; जैसे- एकलव्य।
कुव्वत होकर भी असफल कहलाने का बस इतना ही मतलब है कि हम मूल्यांकन करनेवाले की दृष्टि में असफल हैं या कि आज दिन हमारा नहीं था। 
पुरुषार्थ करते हुए धैर्य पूर्वक प्रतीक्षा कर सके तो कभी वह दिन भी आएगा जब तो मूल्यांकन करने वाले की दृष्टि बदल जाएगी। कोई अयोग्य और असफल घोषित कर दे तो उदास होकर मरना क्यों? 

 
 
 
 
Link to comment
Share on other sites

क्या महानता को शब्दो मे पिरोया जा सकता है? जी नहीं। 
तो शायद आंखो से देखने का विषय है ? ऐसा भी नही है। 
न यह आँखें देख सकती है न कान सुन कर महसूस कर सकते है ये तो अन्तरमन की अनुभुति का विषय है। 
अनुभुति किसी को भी हो सकती है? नही ऐसा नही है। 
महान जीव को पहचानने की शक्ती या तो वेरगी मे होती है , साधक में होती है या जो महान जीव के पूर्ण विरोधी होते हैं ।
विरोधी जीव अहंकार वश महानता को स्वीकार नही कर पाते हैं। 
ऐसे ही वेरागी और महान साधक आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने पावन और पवित्र जीव विध्याधर के भीतर की महानता को महसूस किया और उन्हे अपना शिष्य बना लिया।गुरु महान थे जो अपनी साधना के बल पर सही निर्णय कर पाये और शिष्य ने भी अपनी कठोर साधना से गुरु को सही साबित कर दिखाया नमन है ऐसे पारखी गुरु को ???और नमन है ऐसे अनुशासित शिष्य पर???इस युग के महावीर के चरणो मे शत शत नमन???

Link to comment
Share on other sites

गुरु के गुरुवर कोटि नमन है।

महागुरुवर कोटि नमन है।

भाग्य विधाता कोटि नमन है।

शांति प्रदाता कोटि नमन है

युग परिवर्तक कोटि नमन है।

हर्ष प्रदाता शत वंदन है।

आचार्य श्री को विद्या देकर,

युग संत बनाया कोटि नमन है।

अखिल विश्व में जन जन के मन,

संस्कार जगाया शत वंदन है।

 

 

Link to comment
Share on other sites

??? हमे अद्भुत ज्ञान समुद्र विध्यसागर जी जैसे आचार्य को देने वाले दादा गुरु ज्ञान सागर जी के चरण कमलो मे कोटि कोटि नमोसतु

Link to comment
Share on other sites

Create an account or sign in to comment

You need to be a member in order to leave a comment

Create an account

Sign up for a new account in our community. It's easy!

Register a new account

Sign in

Already have an account? Sign in here.

Sign In Now
×
×
  • Create New...