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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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  1. Vidyasagar.Guru
    घर घर कुंडलपुर महामहोत्सव आह्वान के अंतर्गत प्रतियोगिता श्रंखला 
    आज ही पंजीकरण करें 
    https://forms.gle/ZBjvNcKZCWLS7Bs48
     
    पंजीकरण सूची मे अपना नाम देखें 
    https://docs.google.com/spreadsheets/d/1Cu6kuuhJnr-J9frVjj0s7AfRnjHd2YNXx5FDJFahadg/edit?usp=sharing
     
     
     
     

  2. Vidyasagar.Guru
    संत शिरोमणी परम् पूज्य आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ की चातुर्मास मंगल कलश स्थापना

    पावन वर्षायोग कलश स्थापना सूचना
    परम् पूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के 52 वें दीक्षा दिवस के अवसर पर पावन वर्षायोग 2019 सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र नेमावर जिला देवास म प्र कलश स्थापित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। 
     
    कलश स्थापना करने वाले महानुभाव 
    21 कलश की राशि के 52 कलश एवं 11 कलश की राशि के 52 कलश की स्थापना होगी।  21 कलशों की राशि एवं 11 कलशों की राशि में तीन-तीन कलश के लकी ड्रा निकाले जायेंगे जिसका भी नाम लकी ड्रा में आएगा उन तीन तीन महानुभाव को मुख्य कलश की राशि के समकक्ष वाले कलश दिए जाएंगे मुख्य कलश बोली के माध्यम से चयन किये जायेंगे   
    कलश का सौभाग्य प्राप्त करने हेतु आप शीघ्र नीचे दिए गये नम्बर पर सम्पर्क कर सकते है-
     
    संपर्क - 
    ब्र श्री सुनील भैया - 7999493692
     
    कार्य अध्यक्ष (सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र नेमावर)
    श्री संजय जैन मैक्स - 9425053521
     
    दिनाँक:- 14-7-2019 रविवार
    स्थान:- श्री सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र नेमावर जी
    समय:- दोपहर 1:00 बजे 
    नजदीकी रेल्वे स्टेशन:- हरदा 25 किमी● की दुरी पर स्थित है |
  3. Vidyasagar.Guru
    भारती विद्यापीठ (अभिमत विश्वविद्यालय), पुणे भारत
    द्वारा परम मनीषी, महाकवि, आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज
    को डॉक्टर ऑफ  लेटर्स (डी लिट) की मानद उपाधि प्रदान की जानी है
    🔅शनिवार 2 फरवरी 2019, समय 11:00🔅
     
    अत्यंत गौरव एवं हर्ष का विषय है की शनिवार 2 फरवरी 2019 को भारती विद्यापीठ (अभिमत विश्वविद्यालय), पुणे का 20 वा पदवीप्रदान समारंभ आयोजित होने जा रहा है | इस आयोजन में संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज (जैनाचार्य, महान विद्वान) को डॉक्टर ऑफ लेटर्स (डी. लिट.) की मानद पदवी प्रदान की जाएगी |
     
    आचार्यश्री द्वारा रचित साहित्य
    https://vidyasagar.guru/articles.html/jeewan-parichay/acharya-shri-dvara-rachit-sahitya/
     
    निमंत्रण पत्रिका संलग्न 
     

     
     

  4. Vidyasagar.Guru
    प्रतियोगिता लिंक (गूगल फ़ॉर्म)
     
    https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLScbi6foB2N6RyYlFZ4BCoItRIrch531HZeciSlQDG91Ad2g6w/viewform?usp=sf_link
     
     
    उत्तर प्राप्त सूची 
     
    https://docs.google.com/spreadsheets/d/1-448XO_AT9u-nl-9VmZnuqrq44JkRhesyfRx7WH6icg/edit?usp=sharing
  5. Vidyasagar.Guru
    पहचान, निष्ठा, आचरण और उपलब्धि
    बात सत्य की है। उस सत्य की जिसके विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता। सत्य अकथ्य है पर अलभ्य नहीं। सच के बारे में कहा नहीं जा सकता पर अनुभव जरूर किया जा सकता है। भारतीय परम्परा में सत्य को परम सत्ता कहा है। सत्य की परमेश्वर कहा है। हमारे तीर्थकर भगवन्तों ने भी कहा है कि सत्य ही परमेश्वर है, सत्य ही भगवान है। हर व्यक्ति के भीतर वह सत्य है। उस सत्य के विषय में क्या कहा जाए। सत्य को पहचानने की जरूरत है। जो मनुष्य सत्य को पहचानता है वही सत्य को प्राप्त कर पाता है। सत्य को पहचानें, सत्य पर निष्ठावान बनें और फिर सत्य का आचरण करें। तब हम परम सत्य को उपलब्ध कर सकेंगे। आज मैं आपसे सत्य की कोई बात नहीं करूंगा क्योंकि उसके बारे में कुछ कहा ही नहीं जा सकेगा। जो कुछ भी बात है वह सत्याचरण की है। सत्य की उपलब्धि के लिए किया जाने वाला आचरण सत्याचरण है। हमारे कदम सत्याचरण की ओर बढ़ने चाहिए। वस्तुत: जिसके हृदय में सत्य के प्रति प्रगाढ़ निष्ठा होती है वही सत्याचरणी होता है। जो सत्याचरणी होता है वही अपने जीवन का वास्तविक अर्थ में कल्याण कर सकता है। जीवन में सत्य का आचरण सत्य की निष्ठा के बाद ही संभव है।
     
    सोना नहीं सोने जैसी चमक
    बंधुओं! आज की चार बातें हैं- नम्बर 1- सत्य की पहचान। नम्बर 2– सत्य की निष्ठा, सत्यनिष्ठा। नम्बर 3– सत्य आचरण और नम्बर 4- सत्य की उपलब्धि। सबसे पहले जीवन में सच क्या है इसे पहचानो। सच की पहचान क्या है? आपको पता है सच क्या है?
     
    मैं आपसे सवाल करता हूँ- दो और दो कितने होते हैं? 2 और 2 चार ये सच है, और हाँ बाईस 22 ये भी सच है। 2 और 2 चार, 2 और 2, 22 और 2 और 2 जीरो। क्या हो गया? 2 माइनस 2 बराबर जीरो हुआ न? फिर सच क्या है? सच को पहचानना बहुत कठिन है। मनुष्य के जीवन में सबसे बड़ी विडम्बना ये है कि जो सामने दिखता है वह उसे ही सच मानता है। पर सन्त कहते है जो दिखता है वह सच नहीं वह तो सच का प्रतिबिम्ब मात्र है, असली सच तो अंदर है जो अदृश्य बना हुआ है। उसे पहचानो। तुम्हारी दृष्टि में सच क्या है? ये रूप-रंग, ये धन-वैभव, ये भोग-विलासता के साधन क्या यही सच है? यदि ये सच है, तुम्हें यही सच दिखता है तो समझना अभी तुमने सच को पहचाना नहीं। ये सब तो सपना है। सपने को सच मानने वाला अज्ञानी है। पर मुश्किल ये है कि जब तक मनुष्य नींद में रहता है तब तक उसे सपना ही सच दिखता है। नींद खुलने पर पता लगता है, अरे! ये तो सपना था, व्यर्थ का सपना था। नींद खुलने पर तुम्हें पता लगता है कि ये सपना था। सच तो अब जो सामने दिख रहा है; वह है। अभी तक मैं जिस दुनिया में था वह सब कुछ सपना था।
     
    बंधुओ! एक सपना आप नींद में देखते हैं जो घण्टे-आधघण्टे का होता है और एक सपना वह है जो सारी जिंदगी देखते हैं। जीवन पर्यन्त चलने वाला सपना तब टूटेगा जब तुम्हारे भीतर की नींद खुलेगी। नींद टूटेगी, तुम्हारी अंतर-आत्मा जागेगी तब तुम्हें सच की पहचान होगी। जो दिख रहा है वह सच नहीं है। अच्छा बताओ बाप बड़ा कि बेटा? कौन बड़ा है? बाप; पहले बाप पैदा हुआ बाद में बेटा। बेटा होने के पहले वह आदमी बाप था क्या? बोलो गणेश जी! कौन बड़ा? बेटे ने बाप को जन्म दिया कि बाप ने बेटे को? सोच कर बोलना। बेटे ने बाप को जन्म दिया और बाप ने बेटे को जन्म दिया इसलिए जो कुछ भी समझना सापेक्ष ढंग से समझना। बेटा नहीं होता तो बाप नहीं होता और बाप नहीं होता तो बेटा नहीं होता; ये जीवन की सच्चाई है।
     
    जीवन की सच्चाई को समझो। सच को जानने का मतलब है जीवन के यथार्थ को पहचानना। जब तक तुम्हारे अंतरंग में सत्य का ज्ञान नहीं होगा तब तक कल्याण नहीं हो सकता। सत्य क्या है इसको पहचानो। जो दिख रहा है वह सच नहीं। तुम कहते हो बाप बड़ा है झूठ, तुम कहते हो 2 और 2 चार झूठ, तुम्हें जो दिख रहा है सब झूठ। ये सारा संसार झूठ का पुलिन्दा है। सब झूठ है। महाराज! बात समझ में नहीं आ रही। अभी आ जाएगी। थोड़ी देर में आएगी। सच इतनी जल्दी समझ में आ जाए तो बात ही क्या है। अभी तक तो कल्याण हो गया होता। समझी जो दिख रहा है वह सच नहीं; जो देख रहा है वह सच है। कौन देख रहा है? आँखे। नहीं.आत्मा देख रहा है। बस उसे पहचान ली; सत्य का ज्ञान हो गया। सत्य का ज्ञान हो गया तो कल्याण हो गया।
     
    सम्यग्दर्शन : यथार्थ की अनुभूति
    इस सत्य के ज्ञान का नाम ही सम्यग्दर्शन है। अभी तुम्हें क्या सच लगता है? ईमानदारी से बोलो। जो तुमने जोड़ रखा है वह सच लगता है, तुम्हें पैसा सच दिखता है, पत्नी सच दिखती है, पुत्र सच दिखता है, परिवार सच दिखता है। यही सब सच दिखता है। पर परमात्मा का सच कभी तुम्हें दिखाई नहीं पड़ा। पैसा, पत्नी, पुत्र, परिवार और पाप ये तुम्हें सच दिखते हैं जो संसार में लुभाने वाले और भ्रमाने वाले हैं। तुम्हारे भीतर के परमात्मा का तुम्हें बोध ही नहीं, भान ही नहीं। जो तुम्हें संसार से पार लगाने वाला है उसे तो पहचानी। असत्य को सत्य मानना अज्ञान है। ये सब सच इसलिए नहीं हैं क्योंकि कोई भी टिकाऊ नहीं है। सच वह है जो शाश्वत हो, सच वह है जो स्थिर हो, सच वह है जो स्थायी हो। तुम्हारे पास ऐसा क्या है जिसे स्थायी माना जा सके, बोलो है कुछ भी? कोई एक वस्तु बता दो जो तुम्हारे पास हो और तुम गारंटी पूर्वक कह सको कि ये मेरी अनन्यनिधि है, शाश्वत है, कभी भी न छूटने वाली है। है एक भी चीज? तुमने जो भी जोड़ा है वह सब भंगुर है। बस जो तुम हो वह स्थायी हो। पर मुश्किल ये है कि भंगुर के व्यामोह में रात-दिन पागल होते हो और शाश्वत की तुम्हे पहचान ही नहीं। जब तक अपने भीतर के शाश्वत तत्व को नहीं पहचान लेते तब तक तुम्हारा कल्याण नहीं होगा। सत्य की बात करते हो, सत्य केवल बोलने तक सीमित नहीं है। जिस दिन तुम्हें समझ में आ जाएगा कि मेरे जीवन का सत्य क्या है, असत्य का व्यामोह छूट जाएगा। असत्य का व्यामोह छूटते ही तुम्हारे आचार, विचार और व्यवहार में आमूल-चूल परिवर्तन आ जाएगा। जब आचार, विचार और व्यवहार में परिवर्तन होगा तो तुम्हारे जीवन का आनंद ही कुछ और हो जाएगा।
     
    सत्य को पहचानना पहली बात है। बस! मैं सत्य हूँ, मेरे भीतर का तत्व सत्य है, मेरा स्वरूप सत्य है। वह सत्य है और बाकी सब कुछ असत्य है। जो स्थायी है वह सत्य, जो मिट जाए वह असत्य है। जो साथ रहे वह सत्य, जो छूट जाए वह असत्य है। जिसका स्वरूप निखरे वह सत्य, जिसका स्वरूप बिगड़े वह असत्य है। तुम क्या हो? सोचो! क्या तुम्हारा शरीर स्थायी है? तुमने जिसको सत्य मान रखा ये रूप असत्य है, स्वरूप सत्य है। स्वरूप को पहचानो। सत्य का ज्ञान होना, सत्य को पहचानना बड़ा कठिन है।
     
    मनुष्य के साथ एक बड़ी विडम्बना है उसे सारी दुनिया का ज्ञान है लेकिन खुद की पहचान नहीं। खुद की पहचान नहीं, खुद का ज्ञान नहीं, खुद से काफी दूर है। ये आँखें सारी दुनिया का दर्शन कराती हैं पर विडम्बना कुछ ऐसी है कि खुद को नहीं देख पातीं। देखो! हम लोग जो कुछ भी देखते हैं किस के बल पर देखते हैं? आँख के बल पर देखते हैं लेकिन हमारी आँखें खुद को नहीं देख पातीं। सारी दुनिया को देखने वाली आँखें खुद को देखने मे असमर्थ हैं। मनुष्य के पास सारी दुनिया की खबर है पर खुद की खबर नहीं। कुतुबमीनार में कितनी सीढ़ियाँ है ये उसे पता है पर मेरे घर में कितनी सीढ़ियाँ है शायद उसका पता नहीं। यही तो तुम्हारी अज्ञानता का उदाहरण है। सारी दुनिया में क्या है तुम्हें पता है पर तुम्हारे भीतर क्या है तुम्हें इसका पता नहीं। उसका पता करना ही सत्य की पहचान करना है। अपने भीतर के परम सत्य को पहचानो, अपने आप को जानो। मैं कौन हूँ और मेरा क्या है इसे पहचानोगे तभी अपने जीवन का कल्याण कर पाओगे।
     
    पहली बात सत्य का ज्ञान बहुत मुश्किल से होता है। आदमी की स्थिति सत्य के प्रति कैसी होती है। दो जुड़वाँ भाई थे। दोनों बिल्कुल एक जैसे दिखते। रूप, रंग, हाईट, हैल्थ सब कुछ एक जैसा। बोली भी एक जैसी। एक शरारती था और दूसरा सीधा था। मुश्किल ये कि शरारती लड़का उपद्रव करके भाग जाता और सीधे वाले की पिटाई हो जाती। ऊधम करता ऊधमी और पीटा जाता सीधा। अब रोज का क्रम बन गया। बेचारा परेशान रहता। बिना कुसूर उसकी पिटाई होती। एक दिन वह बहुत खुश दिख रहा था। बोला क्या बात है भाई। आज बहुत खुश हो। बोला आज हिसाब चुकता हो गया। पूछा क्या हिसाब चुकता हो गया? बोला आज तक मेरा भाई ऊधम करता था और पिटता मैं था। इसमें खुश होने की क्या बात? वह ऊधम करे और तुम्हें पीटा जाए तो इसमें खुश होने की बात क्या है? बोला भाई आज बात ऐसी हुई कि मरा मैं और दफना उसे दिया गया।
     
    'मरा मैं और दफनाया उसे गया' क्या ये सत्य है? ये लोगों के भीतर की गहन सुषुप्ति की अभिव्यक्ति है। तुम्हें अपने जीवन में सच का कुछ ज्ञान नहीं। सच को पहचानो और अपने हृदय में अवधारित करो कि दुनिया में जितनी भी चीजें हैं, भोग-विलास के साधन हैं, मकान हैं, दुकान हैं, कार है, बंगला है, फैक्ट्री है, गाड़ी है, सवारी है, सब असत्य हैं। ये रूप भी असत्य, ये रंग भी असत्य, ये भोग भी असत्य, ये विलासता के साधन भी असत्य हैं। कुछ भी सत्य नहीं, सब छूटने वाले हैं। टिकाऊ नहीं हैं, नष्ट हो जाने वाले हैं। यदि सत्य कुछ है तो मेरे भीतर का परम तत्व है।
     
    एगो मे सास्सदो आदा णाणदसणलक्खणो।
    सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा।
    मैं एक, शुद्ध, ज्ञान दर्शन स्वभाव वाला शाश्वत आत्म तत्व हूँ इसके अलावा सब अशाश्वत हैं, भंगुर हैं। संयोग से मेरे साथ जुड़े हैं पर मेरे नहीं हैं जैसे आसमान के चाँद का प्रतिबिम्ब किसी सरोवर पर पड़े और उसको देखकर कोई बालक ये सोच बैठे कि आह! वाह! क्या अद्भुत घटना घटी है, आसमान का चाँद धरती पर उतर आया है। चलो मैं इस चाँद को पकड़ लैं। ऐसे बालक को आप क्या कहोगे? क्या बालक उस चाँद को कभी पकड़ सकता है? कभीनहीं पकड़ सकता। संभव ही नहीं है। कोई लाख कोशिश करे पर चाँद को पकड़ पाना नामुमकिन है। वस्तुत: जब चाँद है ही नहीं तो पकड़ोगे कहाँ से। वह तो प्रतिबिम्ब है। कोई भी समझदार व्यक्ति चाँद को पकड़ने की कोशिश नहीं करता क्योंकि सबको पता है चाँद आसमान में ही है, ये तो प्रतिबिम्ब है।
     
    बंधुओं! सरोवर में उभरने वाले चाँद को पकड़ने के प्रति तो तुम कभी उत्कठित नहीं होते पर सच्चाई ये है कि जो कुछ भी तुमने पकड़ रखा है वह सब चाँद का प्रतिबिम्ब ही है। चाँद की तरफ तुम्हारी दृष्टि ही नहीं। चाँद के प्रतिबिम्ब को पकड़ने के लिए तुम पागल हो उठे हो। सावधान हो जाओ। वह केवल रिफ्लेक्शन है जो तुम्हे सत्य दिख रहा है, वह सत्य नहीं। असत्य को सत्य मानने वाले की दशा को अभिव्यक्त करती ये पंक्तियाँ बड़ी सार्थक हैं
     
    नाम तो उसके कई हैं,
    पर मैं उसे प्यार से
    आदमी कहता हूँ।
    आजकल उसकी दिनचर्या
    कुछ इस प्रकार है,
    वह सुबह से सोने तक,
    गंगा की बहती धार में
    खूटे गाढ़ता है,
    कभी-कभी बाएँ हाथ से
    खूटे को पकड़ कर,
    दाएँ हाथ से उस पर
    मुंगरी से ठोकता है,
    कि खूटा नीचे उतर आता है,
    और वह सोचता है
    कि चलो एक तो ठुका,
    अब वह आगे बढ़े कि तभी देखता है
    उसका खूटा कुछ दूर उचक कर बहा जा रहा है
    उसकी ये चाह है
    कि इस अनंत प्रवाह में उसके खूटे थमें ,
    और वह अपना तम्बू,
    उनके सहारे तान कर
    आराम से उसमें सोए
    सोए कि सोया ही रहे.
    बात समझ में आई कि नहीं? गंगा की बहती धार में खूंटा गाड़ने का कोई कितना भी प्रयास करे खूटा गड़ नहीं सकता। संसार के इस असत्य स्वरूप में तुम कुछ भी स्थायी बनाने का प्रयास करो स्थायी ही नहीं सकता, ये जीवन की सच्चाई है। 
     
    दवा हाँथ में पर विश्वास नहीं फल का
    दूसरी बात सत्य की निष्ठा। सत्य का ज्ञान होना मात्र पर्याप्त नहीं है जब तक कि तुम्हारे हृदय में उसके प्रति निष्ठा न हो। दुनिया में ऐसे बहुत सारे लोग हैं जिन्हें जीवन के सत्य का ज्ञान तथाकथित रूप से है। उनसे बोलो आत्मा परमात्मा की बड़ी गहरी चर्चा कर लेगें, बहुत अच्छा उपदेश दे देंगे, शास्त्रों का ज्ञान है, कई शास्त्रों को पढ़ लिया लेकिन आचरण शून्य है। निष्ठा ही नहीं है। ज्ञान है, वह जानकारी है। निष्ठा मतलब इसी में मेरा कल्याण है ऐसा श्रद्धान होना चाहिए। तुम्हारे हृदय में सत्य के प्रति निष्ठा है? ईमानदारी से बोलना सत्य के प्रति निष्ठा है कि असत्य के प्रति निष्ठा है। भरोसा किस पर है? टटोलो अपने मन की। टटोलकर देखो। तुम पर जब कुछ भी मुसीबत आती है तो तुम्हारा सबसे पहला भरोसा अपने पैसे पर होता है, अपने परिवार जन पर होता है, अपनी प्रतिष्ठा और ताकत पर होता है या अपने परमात्मा और अपनी आत्मा पर होता है।
     
    यथार्थ के ज्ञान के बाद यथार्थ के प्रति निष्ठा नहीं हुई तो सब व्यर्थ है। क्या तुम्हें ये पक्का विश्वास है कि मेरे आत्मा के अलावा संसार का एक परमाणु भी मेरा नहीं है। भरोसा शब्दों में नहीं हृदय में होना चाहिए। हृदय से आवाज निकलनी चाहिए कि संसार में जो कुछ है, एक संयोग है। ये परद्रव्य हैं, मेरा आत्म द्रव्य मेरा अपना है इसके अलावा एक परमाणु भी मेरा नहीं है। ये जितने भी बाह्य पदार्थ हैं वे सब मोह के प्रपंच हैं। जितने भी भोग-विलास के साधन हैं वे आत्मा के विनाश के कारण हैं। ये राग रंग जीवन का पतन कराने वाले हैं। बोलो क्या ऐसी निष्ठा है तुम्हारी? जिसकी झूठ पर निष्ठा हो वह झूठा है। अब तुम सच्चे हो कि झूठे स्वयं निर्णय करो। आज के सच्चे कैसे होते हैं; मैं बताता हूँ।
     
    एक लड़की के परिजन लड़का देखने के लिए गए। लड़के के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुए। लड़के के जीवन की बहुत सारी अच्छाईयाँ बता दी गई। अच्छाईयाँ बताने के बाद जब सब प्रभावित हो गए तो उन्होंने कहा- भाई! इनमें एक और विशेष गुण है। बोले क्या? बोले झूठ बोलने की आदत है। तुम कह रहे हो कि हम सच्चे हैं पर सच्चे अर्थों में यह भी झूठ है क्योंकि सच पर तुम्हारी निष्ठा अभी टिकी ही नहीं है। सत्यनिष्ठा की कसौटी है। सत्य पर निष्ठा होगी तो तुम फिर असत्य का आचरण नहीं कर सकते। निष्ठा सत्य में है तो आचरण असत्य क्यों है इस पर विचार करो। यदि सत्य पर निष्ठा है तो सत्य का आचरण होना चाहिए। सत्याचरण मतलब मन, वाणी और व्यवहार में सत्य की प्रतिष्ठा। मन, वाणी और व्यवहार में जब तक सत्य की प्रतिष्ठा न हो या जाए, जब तक व्यक्ति के अंत:करण में सत्य के प्रति प्रगाढ़ निष्ठा न हो तब तक वह व्यक्ति सत्याचरणी नहीं कहला सकता।
     
    मन में होय सो वचन उचरिये
    बंधुओं! अपने मन में, अपनी वाणी में और अपने व्यवहार में सत्य की प्रतिष्ठित करने की कोशिश करें। असत्य के प्रति हमारा चित्त क्यों भागता है? केवल इस वजह से कि हमें सत्य की महिमा का भान नहीं है। झूठ का आश्रय मनुष्य क्यों लेता है इसलिए कि उसे सत्य की शक्ति का भान नहीं है। तुम्हें जिस दिन सत्य की शक्ति का भान हो जाएगा, सत्य की महिमा का ज्ञान हो जाएगा उसी दिन तुम्हारे जीवन से असत्य दूर हो जाएगा। तुम्हें अभी भौतिक पदार्थ ही उपादेय दिखते हैं। झूठ, फरेब, भोगविलास, पाप, पाखण्ड, अनाचार, राग, द्वेष ये सारे विकार हैं जो अपनी ओर आकृष्ट करते हैं। इन सबसे रहित जो भीतर की शुद्ध परिणति है उधर तुम्हारा ध्यान ही नहीं है। जिस दिन तुम्हें ये लगने लगेगा कि ये सब हेय हैं, ये सब अकल्याणकारी हैं, ये सब जीवन की राह में रोडे हैं, अवरोध उत्पन्न करने वाले हैं तो तुम्हारा चित्त उधर नहीं जाएगा। तुम उनके बारे में सोचोगे तक नहीं। इनसे तात्कालिक लाभ भले मिल जाए लेकिन दूरगामी परिणाम अच्छे नहीं होते। दीर्घकालिक नुकसान भोगना पड़ता है। ऐसा कार्य मुझे नहीं करना।
     
    मन के स्तर पर सत्य है, भवना के स्तर पर सत्य है। कहते हैं जिस व्यक्ति के मन में सत्य नहीं तो वह अपने जीवन में चाहे कितना धर्म-कर्म करे, सब व्यर्थ हैं। जिसके हृदय में सत्य का वास है उसका सारे संसार पर निवास है। कुरल काव्य में लिखा है- जिस मनुष्य के हृदय में सत्य रूपी प्रहरी का शासन होता है वह सारी जनता के हृदय पर शासन करने में समर्थ होता है। मन में सत्य हो तो सब पर तुम्हारा असर होगा। मन में सत्य का मतलब मन में विकार न हो, दुर्भावना न हो, ईष्य न हो, छल-प्रपंच न हो, निश्छलता हो। क्या आप इस बात को गारंटी के साथ कह सकते हो कि अपने मन के स्तर पर मैं कभी किसी के साथ छल भरा व्यवहार नहीं करूंगा? यदि सत्य के प्रति निष्ठा होगी तो तुम कभी ऐसा असत्य व्यवहार कर ही नहीं सकते। एक बात बताऊँ। यदि मन में सत्य हो तो हमारे वचनो से बोला गया सत्य सच होता है और तभी हमारा व्यवहार सच कहलाता है। आजकल उल्टा होता है। लोग वाणी में बड़ी मिठास रखते हैं, व्यवहार में विनम्रता और मन में कड़वाहट घोले रहते हैं। ये सब सत्य नहीं असत्य है। मन में भी मिठास होनी चाहिए। वाणी में मिठास हो, व्यवहार में मिठास हो और यदि मन में मिठास नहीं तो सब व्यर्थ है।
     
    महापुरुषों के जीवन चरित्र को पलटकर देखें। महाभारत का एक प्रसंग मुझे याद आ रहा है। महाभारत का युद्ध शुरु हुए कई दिन हो गए। एक दिन दुर्योधन द्रोणाचार्य के पास पहुँचा और बोलाअबलाएँ विधवा हुई, अब क्या होगा? कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे मैं अजेय हो जाऊँ द्रोणाचार्य ने कहा इसका उपाय अगर कोई बता सकता है तो केवल युधिष्ठिर। युधिष्ठिर के पास इसका उपाय है। दुर्योधन ने कहा युधिष्ठर मुझे अजेय होने का उपाय क्यों बताएगा? वह तो हमारा शत्रु है। बोले नहीं. तुम युधिष्ठिर को नहीं जानते। युधिष्ठिर के लिए शत्रु तुम केवल युद्ध के मैदान में हो, बाद में आज भी तुम उसके भाई हो। जाओ, तुम युधिष्ठिर से मिलो। वह युधिष्ठिर से मिलने के लिए गया। युद्ध विराम की घड़ी में जब युधिष्ठिर से मिला और कहा- युद्ध प्रारंभ हुए बहुत दिन बीत गए, मुझे बड़ी चिंता है कि कल क्या होगा। युधिष्ठिर बोला- कल युद्ध में तुम मारे जाओगे और युद्ध का अंत हो जाएगा। और क्या होगा। नहीं. नहीं. ये तो बड़ा अनर्थ हो जाएगा। कोई ऐसा उपाय बताओ जिससे मैं अजेय बन जाऊँ) कहते हैं युधिष्ठिर ने कहा- उपाय है और तुम्हारे घर पर ही है। उसके लिए तुम्हें कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है। उपाय है मेरे घर पर है उसके लिए मुझे कहीं जाने की आवश्यकता नहीं, क्या उपाय है? बोले तुम्हारी माँ शीलवती रही है, उसने आज तक कभी किसी पुरुष को अपनी आँखों से देखा नहीं। आँखों पर पट्टी बंधी है। अगर एक बार तुम्हारी माँ अपनी तेजोमय दृष्टि से तुम्हें नीचे से ऊपर तक देख लेगी तो तुम्हारा सारा शरीर वज़मय हो जाएगा पर इसके लिए तुम्हें अनावरित होकर माँ के पास जाना होगा।
    दुर्योधन बहुत खुश हुआ। बहुत अच्छा उपाय बता दिया। वह घर से रात के अंधेरे में निर्वस्त्र होकर निकला। रास्ते में श्रीकृष्ण मिल गए। उन्होंने दुर्योधन से पूछा- कहाँ जा रहे हो? दुर्योधन ने सारी कहानी सुना दी। श्रीकृष्ण ने सोचा- ये तो गड़बड़ हो गई। दुर्योधन अगर अजेय बन गया तो मामला ही गड़बड़ हो जाएगा, कुछ करना चाहिए। उन्होंने दुर्योधन से कहा- दुर्योधन! माँ के पास जा रहे हो, थोडी तो शर्म करो। इस तरह पूर्णतः नग्न होकर जाना अच्छा होगा। क्या? कम से कम अपने गुप्तांग को तो आच्छादित कर लो। दुर्योधन को लगा कि बात तो बिल्कुल सही है। कहते हैं तुरंत दुर्योधन ने कले के पते से अपना गुप्तांग ढका और माँ के पास गया। माँ से कहा- माँ! तूने आज तक मुझे नहीं देखा, मेरी भावना है कि एक बार मुझे आँखें खोलकर देख ले अन्यथा तू जिंदगी में कभी नहीं देख पाएगी। तू क्या मुझे कोई भी नहीं देख पाएगा। दुर्योधन के ऐसा कहने पर गान्धारी ने अपनी आँख की पट्टी पहली बार उतारी और ऊपर से नीचे तक दुर्योधन को देखा। उसका सम्पूर्ण शरीर वज़मय हो गया। बस गुप्तांग वाला भाग जो केले के पते से ढका था वह बच गया और भीम ने वहीं गदा का प्रहार किया जिससे दुर्योधन की मृत्यु हुई।
     
    ये कथा जैन पाण्डव पुराण की नहीं महाभारत की है। मैं कथा के विस्तार पर नहीं जाना चाहता। कथा का अपना-अपना अर्थ है लेकिन मैं केवल एक बात बताना चाहता हूँ कि भावना का सत्य क्या होता है। जो शत्रु के साथ भी मित्रवत् व्यवहार करे वह भावना का सत्य है। मन में ऐसी पवित्रता हो तो सत्य हृदय में आए। वाणी का सत्य ही सबसे ज्यादा प्रचलित है। सच बोलने का मतलब सत्य नहीं है, सत्य अभिप्राय का मतलब सत्य है। कई बार लोग सच बोलते हैं पर अभिप्राय गलत होता है, वह असत्य है और कई जगह झूठ बोला जाता है पर आशय सही होता है तो वह सत्य है।
     
    सत्यं ब्रुयात्, प्रियं ब्रुयात्
    सत्यं प्रियं हितं चाहुः सुनृतं सुनृतव्रताः।
    तत्सत्यमपि नो सत्यमप्रियं चाहितं च यत्॥
    सत्य के व्रतियों ने उसे ही सत्य कहा है जिसमें सत्यता के साथ प्रियता और हित हो। जो अप्रिय और अहितकारी है वह सत्य होकर भी असत्य है। प्रिय और हितकारी होने पर असत्य भी सत्य है।
     
    बंधुओं! अपने मुख में मिठास रखो। मर्मघाती, ककश, कठोर और पापपूर्ण वचनों को अपने मुख से कभी मत निकालो। ये वाणी का असत्य है, इसे रोक, इस पर अंकुश रखें क्योंकि आप इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि शब्द का घाव शस्त्र के घाव से भी गहरा होता है। शस्त्र के आघात से उत्पन्न घाव तो कुछ दिनों में भर सकता है लेकिन शब्द के आघात से होने वाला घाव सारी जिंदगी रिसता रहता है, टीस मारता रहता है। अपने मुख से कभी किसी के दिल में घाव मत करो।
     
    वाणी ऐसी बोलिए मन का आपा खोय।
    औरन को शीतल करे आपहुँ शीतल होय।
    वाचिक संयम, वाणीगत संयम। शब्द को बोलने से पहले तोलना। 'अप्रिय कटुक कठोर शब्द नहीं कोई मुख से कहा करे आप जो बोलते हैं उसे आत्मसात करें। ऐसे शब्द अपने मुख से कभी उच्चारित मत करें। ये वाणी का संयम है।
     
    एक राजा था। उसकी एक ऑख थी। उसे अपना चित्र बनवाने की सनक चढ़ी। चित्र बनवाएँ कैसे? अपना चित्र बनवाने के क्रम में उसने तीन चित्रकारों को बुलवाया और कहा मेरा खूबसूरत चित्र बनना चाहिए। तीन चित्रकारों में पहले चित्रकार ने राजा जैसा था वैसा चित्र बना दिया। राजा ने चित्र देखा तो काणा चेहरा देखकर कुपित हो गया। बोला- ये कोई चित्र बनाया। चित्रकार को जेल में डाल दिया। दूसरे चित्रकार के चित्र को देखा तो उसने सोचा राजा काना है तो ये ठीक नहीं होगा। उसने उसकी दोनों आँखें बना दीं। 
     
    राजा ने कहा ये चाटुकार है इसको भी हटाओ। पहला था स्पष्टवादी वह जेल चला गया। दूसरा चाटुकार निकला इसलिए वह भी काम का नहीं। तीसरे चित्रकार से बोला अपना चित्र दिखाओ। चित्रकार ने अपना चित्र दिखाया। उसने बहुत होशयारी से काम किया। उसने शिकारी मुद्रा में राजा का चित्र बनाया। एक तीर काणी आँख के पास लगा कर तान दिया। एक हाथ तीर पर और एक हाथ कमान पर इसप्रकार निशाना साधते हुए चित्र बनाया। राजा चित्र देखकर प्रमुदित हो गया। अपने गले का हार उसके गले में डाल दिया। बोला- तुम हो व्यवहार कुशल। अवसर के अनुरूप बात करने वाले।
     
    बंधुओं! पहला चित्र सत्य था पर प्रिय नहीं। दूसरा चित्र प्रिय था पर सत्य नहीं। पर तीसरा चित्र सत्य भी था और प्रिय भी था। बस जीवन व्यवहार में ऐसी सत्यता और प्रियता को प्रतिष्ठित करना चाहिए। वाणी का सत्य यानि कमिटमेंट का धनी। प्रामाणिकता जिसके वचनों की कीमत ही वह वाणी के सत्य का धारक होता है। आजकल लोगों के कमिटमेंट का कोई अता-पता नहीं। पल-पल। में व्यक्ति की जिह्वा के अर्थ बदल जाते हैं, भाषा बदल जाती है। अपनी कही बात से कब पलट जाए कोई पता नहीं। जैसे नेताओं के बयान रोज बदलते हैं वैसे ही लोगों के भी बदल जाते हैं। मनुष्य के जीवन में प्रामाणिकता होनी चाहिए। जो मैंने कह दिया सो कह दिया। अपने वचन को कभी काटो मत। यदि तुम वाणी के स्तर पर सत्य प्रतिष्ठापित करना चाहते ही तो जिस किसी को भी वचन मत देना। बहुत सारे लड़कियाँ और लड़के कहते हैं कि हमने अगले को कमिटमेंट कर दिया। भावुकता में किए गए कमिटमेंट बेकार होते हैं। ऐसे कमिटमेंट कभी मत करना। हर किसी के सामने अपनी प्रतिबद्धता जाहिर मत करना। हर किसी को वचन मत देना नहीं तो ठगे जाओगे। योग्य व्यक्तियों को वचन दो। या तो वचन दो ही नहीं और यदि वचन दे दिया तो उसको दृढ़ता से निभाओ तब तुम्हारे जीवन में वाणी का सत्य प्रतिष्ठित हो सकेगा।
     
    ज्ञान की आत्मीयता आचरण का संग
    तीसरे नम्बर पर व्यवहार का सत्य। सत्याचरण की बात हो रही है। अपने जीवन व्यवहार में सत्य का आचरण करने का मतलब है छल, फरेब, धोखा, विश्वासघात, एवं चोरी के कार्य से अपने आप को बचाओ। अपने आप को इन सब चीजों से बचाओगे तब तुम्हारे व्यवहार के स्तर पर सत्य होगा। जो व्यक्ति थोड़ी-थोड़ी बातों में अपना ईमान बेच दे वह व्यवहार में सच्चा नहीं कहला सकता। जो थोड़ी-थोड़ी सी बातों में बेईमान बन जाए वह व्यवहार में सत्याचरणी नहीं है। वह सच्चे अर्थों में धर्मात्मा ही नहीं है। धर्मात्मा होने का मतलब है सत्य का आचरणी होना। सत्य का आचरणी वही हो सकता है जो जीवन की सच्चाई को जानते हुए असत्य आचरण से विमुख होता है। ऐसा कोई कार्य मत करो जिससे तुम्हें कभी अपमानित होना पड़े, ऐसा कोई कार्य मत करो जिससे तुम्हें लोक-निंदा का पात्र बनना पड़े, ऐसा कोई कार्य मत करो जिससे तुम्हारी प्रतिष्ठा धूमिल होती हो और ऐसा कोई कार्य मत करो जिससे तुम्हें या किसी और को किसी संकट में फसना पड़े। सत्य आचरणी अपने जीवन में सदैव इन बातों का ध्यान रखता है।
     
    बंधुओं! मैंने देखा है, आजकल बड़े-बड़े लोग भी छोटी-छोटी सी बातों पर अपना ईमान बेच देते हैं। लेकिन सत्य के प्रति निष्ठावान रहने वाले साधारण व्यक्तियों में भी बड़े-बड़े सत्याचरण के उदाहरण प्रकट हो जाते हैं। एक व्यक्ति दिल्ली गया। फाइवस्टार होटल में ठहरा। सुबह उसने एक टैक्सी ली। सुबह से शाम तक कई लोगों से मिला, कई मीटिंग्स थीं, कई दफ्तरों में गया। दिन भर घूमने के बाद शाम को होटल वापस आया। रूम में आने के पन्द्रह मिनट बाद उसे ख्याल आया कि मैं अपना बैग तो गाड़ी में ही छोड़ आया। बैग में पूरे पाँच लाख रूपये थे। बैग गाड़ी में छोड़ आया अब क्या करे? टैक्सी का नम्बर पता नहीं, टैक्सी ड्राईवर का नाम पता मालूम नहीं। इधर टैक्सी ड्राईवर सुबह से शाम तक काफी घूमा था। उसने टैक्सी स्टैण्ड पर अपनी गाड़ी खड़ी की और थोड़ा सुस्ताने के लिहाज से जैसे ही गाड़ी के अंदर गया तो उसकी निगाह पीछे पड़े बैग पर पड़ी। उसने बैग खोला तो उसमें रूपये थे। उसने वापस बंद किया और तय कर लिया हो न हो ये सेठ जी का है क्योंकि उनके अलावा और कोई आज गाड़ी में बैठा ही नहीं। सेठ जी को खोजा जाए। सेठ जी को खोजने के लिए होटल पहुँचा तो पता चला सेठ जी नहीं है। सेठ जी तो टैक्सी ड्राईवर को खोजने के लिए गए हुए जी को खोज रहा है। दो घण्टे तक परेशान होकर सेठ जी वापस होटल आए। इधर भूल-भटक कर जब ड्राईवर वापस होटल आया तो उसकी नजर सेठ जी पर पड़ी। सेठ जी को देखा तो उनकी तरफ बैग बढ़ाते हुए कहा- लो सेठ साहब! सम्हालो अपनी धरोहर। खूब परेशान किया आपने। दो घण्टे से मैं आपको खोज रहा हूँ। सेठ जी को तो ऐसा लगा जैसे कोई सपना देख रहे हों। तत्परता से बैग को अपने हाथ में लेकर रूम में गया। रूम बंद किया और बैग खोलकर देखा तो रूपये पूरे थे। अपना पूरा पैसा सुरक्षित देखकर पाँच हजार रूपया ड्राईवर को इनाम देना चाहा तो उसने कहा- नहीं. मैं गरीब जरूर हूँ पर बेईमान नहीं हूँ। मैंने आपको सुबह से शाम तक अपनी टैक्सी में घुमाया, आपने उसका पूरा पैसा हमको दे दिया। मैं जिसका हकदार था, मैंने लिया। आपकी धरोहर मेरी गाड़ी में छूट गई थी। आपकी धरोहर आप तक पहुँचाना मेरा कर्तव्य था। मैंने आपका पैसा आपको दे दिया। पैसे ही लेने होते तो पूरे पैसे ही क्यों न रख लेता। आप मुझे कहाँ खोजते फिरते? लेकिन मैं हराम का खाना पसंद नहीं करता। सदैव मेहनत का खाता हूँ इसलिए मुझे इसकी कोई जरूरत नहीं। आप ये पैसे रख लें। मैं बहुत खुश हूँ कि मैंने आपकी धरोहर आपको लौटा दी। नहीं तो मैं तो आज सो नहीं पाता। आप सम्हाली मैं चलता हूँ। सेठ जी उसका चेहरा देखते रह गए और मन ही मन कहने लगे कि जिस आदमी को हम गरीब मानकर हेय दृष्टि से देखते हैं उस व्यक्ति के भीतर तो हम जैसे सेठों से भी बड़ा पराक्रम और क्षमता है।
     
    उपलब्धि का आनन्द
    बंधुओं! जिसके अंतरंग में सत्य के प्रति निष्ठा होती है उसके भीतर ऐसा ही पराक्रम प्रकट होता है। बंधुओं सत्य का ज्ञान, सत्य की निष्ठा और सत्य का आचरण तीन स्तर पर करना है- भावना के स्तर पर, वाणी के स्तर पर और व्यवहार के स्तर पर। जो कुछ भी हमारा धर्म आचरण है सब सत्य का आचरण है। जब सत्य का आचरण करोगे तभी सत्य की अनुभूति होगी। कुछ लोग असत्य का आचरण करके सत्य की अनुभूति करना चाहते हैं। असत्य का आचरण करके सत्य की अनुभूति आज तक किसी को हुई है क्या? न भूतो न भविष्यति। सत्य की अनुभूति केवल वही और वही कर सकते हैं जो सत्य का आचरण करते हों। इसलिए सत्य का आचरण करना शुरु कीजिए, धर्मनिष्ठ बनना शुरू कीजिए। लोग बड़ी-बड़ी बातें कर देते हैं लेकिन आचरण के क्षेत्र में प्राय: पिछड़ जाते हैं। आप कितनी ही बड़ी-बड़ी बातें कर लें, वह व्यर्थ है, आचरण के क्षेत्र में सम्हलने की कोशिश कीजिए। जब तक आचरण नहीं तब तक कल्याण नहीं। आत्मा के गीत गाने मात्र से आत्मा की अनुभूति नहीं होगी। आत्मा की अनुभूति तो उन्हें ही होती है जो अध्यात्म के सरोवर में डुबकी लगाते हैं।
     
    बंधुओं! सत्य का अनुभव तभी होगा जब सत्य का आचरण होगा। एक व्यक्ति तैरना सीखना चाहता था। वह तैराक के साथ नदी पर गया। तैराक ने पानी में पाँव रखा और उस व्यक्ति से कहाआओ भाई! तुम भी पानी में आओ और सीखी। वह सकपकाने लगा, पानी में पाँव कैसे रखें? हिम्मत न हो सकी। तैराक द्वारा प्रेरित करने पर उसने हिम्मत की और पानी की ओर जाने लगा। पहला कदम रखते ही वह फिसल गया और किनारे पर ही गिर गया। उठा और पाँव पटकते हुए बोला- भगवान कसम जब तक मैं तैरना न सीख लें तब तक क्या मजाल कि मैं भूलकर भी पानी में पाँव रखें। उसका तैराक मित्र तब तक पानी में काफी आगे निकल चुका था। उसने कहा- क्या बोल रहे हो? बोले बस! अब, जब मैं तैरना सीख जाऊँगा तभी पानी में पाँव रखेंगा। उसने कहा ठीक है, समझ में आ गया। तुम रेत में तैरना सीखकर पानी में उतरोगे क्या?
     
    दरा दरिया की तह तक तू पहुँच जाने की हिम्मत कर।
    तो फिर से डूबने वाले, किनारा ही किनारा है।
    बंधुओं! तैराक वही बन पाया है जिसने पानी में पाँव डाला है। पानी में पाँव डाले बिना न तो आज तक कोई तैर पाया है और न तैर पाएगा। जीवन की सच्चाई को समझिए और पानी में पाँव डालने के लिए तैयार हो जाइए। सत्य का आचरण कीजिएगा तभी सत्य की अनुभूति होगी। वही अनुभूति जीवन की परम अनुभूति है, वही अनुभूति जीवन की शाश्वत अनुभूति है, वही सार है बाकी सब असार है। आचार्य कुंदकुंद कहते हैं -
     
    एयत्तणिच्छयगओ समओ सव्वत्थ सुंदरो लोए।
    बंधकहा एयते तेण विसंवादिनी होई।
    उस एकत्व विभक्त जीवन के परम सत्य का अनुभव जिसने कर लिया फिर उसे किसी अनुभूति की जरूरत ही नहीं पड़ती। वह परम अनुभूति है, वह चरम अनुभूति है। उस अनुभूति का आनंद लेने का प्रयास करें तब आज के सत्य धर्म की आराधना सार्थक होगी।
     
    बातें तो बहुत कर लेते हैं लेकिन रहते हैं जहाँ के तहाँ। कई बार तो इन बातों के चक्कर में बड़ी गड़बड़ हो जाती है। 100वीं मंजिल पर एक ऑफिस था। अॉफिस के सारे ऑफिसर आए, उसका डायरेक्टर भी आया। पर संयोगत: लिफ्ट खराब हो गई। दो लिफ्ट थीं दोनों की दोनों लिफ्ट खराब। अब क्या करें? डायरेक्टर ने कहाभाई। लिफ्ट ठीक होने में दो घण्टे से कम नहीं लगेंगे तब तक हमारा बहुत समय चला जाएगा। चलो एक काम करते हैं हम लोग ऊपर चलते हैं और कुछ कहानियाँ कहते-कहते चलेंगे। एक दूसरे को कहानी सुनाएँगे और 100 मंजिलें चढ़ जाएँगे। सभी ने कहानियाँ कहते-सुनते चढ़ना शुरु किया। साथ में चपरासी भी था। तीस-चालीस मंजिल चढ़ने के बाद चपरासी ने कहा मैं भी कुछ कहना चाहता हूँ। अरे! तुम बीच में मत बोलो अभी तुम्हारी नहीं सुनेंगे। थोड़ा आगे बढ़े तो चपरासी फिर बोला- मेरी भी कुछ सुन ली। बोले तुम्हारी कुछ नहीं सुनेंगे अभी बीच में मत बोलो। चढ़ते-चढ़ते जब सौवीं मंजिल पर पहुँचे तो चपरासी फिर बोला- अब तो मेरी सुन ली। बोले क्या बोल रहे हो बोलो। सब लोग तो यहाँ आ गए पर चाबी तो नीचे ही पडी हुई है। बस यही हाल कई बार हो जाता है। बातें करते-करते जीवन बर्बाद हो जाता है। चाबी हाथ में होनी चाहिए। जब तक चाबी तुम्हारे पास नहीं होगी तब तक तुम अपने जीवन की गुत्थियों के ताले नहीं खोल पाओगे, तब तक अपने चिन्मयी वैभव का दर्शन नहीं कर पाओगे। जीवन को आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
  6. Vidyasagar.Guru
    प्रतियोगिता क्रमांक 1 लिंक 
     
    https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLScYH3dLtru0qQ2J-ecRVRpRU0jQjjOdzA3L03rbGWfma97O1Q/viewform?usp=sf_link
     
    उत्तर प्राप्त सूची 
    https://docs.google.com/spreadsheets/d/1x4jgLd0nmzK3hqwv9w5zxvKzj-Vdvdz9Gq0X20zKxqw/edit?usp=sharing
     
     

  7. Vidyasagar.Guru
    पूज्य मुनि श्री प्रमाणसागर महाराज की मंगल प्रेरणा व आशीर्वाद से भावना योग शिविर का आयोजन दिनांक 31 मई से 2 जून तक श्री दिगंबर जैन सिद्धक्षेत्र सिद्धवरकूट में आयोजित हुआ। शिविर के दौरान हुए भावना योग की विडियो नीचे संकलित हैं।
     
     
     
     
  8. Vidyasagar.Guru
    ?? खजुराहो की खबर??
     खजुराहो स्वर्णोदय तीर्थ क्षेत्र में विराजमान प.पु.आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज के दर्शन करने फ्रांस के राजदूत अलेक्सअंद्रे ज़िएगलेर
    ने आचार्य श्री के दर्शन कर कहा मेने god के बारे में सुना था आज तो साक्षात देख लिया में धन्य हु दिल्ली से सिर्फ आपके दर्शन करने आया हु
     आचार्य श्री से शाकाहार का नियम भी लिया 
       राजदूत ने आचार्य भगवन से कहा हमारे फ्रांस में शाकाहार का प्रचलन बहुत बढ़ रहा है आपके दर्शन कर में भी शाकाहारी हो गया महीने में ओर सप्ताह में नियम रखूंगा
        जाते जाते o माई god
    धन्य है गुरुवर आपकी महिमा
     
     
  9. Vidyasagar.Guru
    दिनांक 9 जून 2021
    दीक्षा प्रदाता : आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज 
     
    (1) खातेगांव - ब्र.फूलचंद लुहाड़िया 10 प्रतिमाधारी
    क्षुल्लक - स्वाध्याय सागर जी
    (2) ब्र. शांतिलाल जी बांसबाड़ा
    क्षुल्लक प्रशांतसागर जी
    (३) मंडीबामोरा -  ताराचंद जी 10 प्रातिमाधारी
    क्षुल्लक मोन सागर जी
    (4) रेबाड़ी - ब्र. सतेन्द्र जी 10 प्रतिमा धारी
    क्षुल्लक चिंतसंसागर जी
    (५) अशोक पांड्या बानापुरा बाले 10 प्रतिमाधारी
    क्षुल्लक अगम्य सागर जी
    (6) ब्र. राजेश जैसीनगर - 
    क्षुल्लक अटल सागर जी
    (7) भागचंद जी किशनगढ़
    क्षुल्लक वैराग्य सागर जी
    (8) संतोष पांड्या  इंदौर (गया)
    क्षुल्लक निकट सागर जी
    (9) बसंत जी बागीदौरा
    क्षुल्लक परीत सागर जी
     

  10. Vidyasagar.Guru
    ##भव्य पिच्छिका परिवर्तन समारोह##
    आचार्य भगवान श्री विद्यासागर जी महाराज ससंग का भव्य पिच्छिका परिवर्तन समारोह आज दोपहर ३:००बजे से
  11. Vidyasagar.Guru
    धरती के भगवान संत शिरोमणि 108 आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महामुनिराज के दर्शन वन्दन हेतु अन्तर्मना  आचार्य श्री 108 प्रसन्नसागर जी मुनिराज ससंघ का मंगल आगमन सिद्धवरकूट तीर्थ में आज प्रातः कालीन बेला में हुआ ।। 
     
     
     
     
     

    WhatsApp Video 2019-12-25 at 9.16.49 AM.mp4

  12. Vidyasagar.Guru
    हरदा - संत शिरोमणी आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महाराज  के आशीर्वाद और दर्शन के लिए आज लोकसभा अध्यक्ष ओम जी बिरला दिल्ली से विमान से इंदौर पहुंचे। 
           इंदौर से rk मार्बल ग्रुप के अशोक जी पाटनी, gma अध्यक्ष राकेश जी मडिया, पूर्व विधायक हीरालाल जी नागर,विशाल जी शर्मा इंदौर के साथ इंदौर से  हेलीकॉप्टर से सभी दोपहर 2 बजे नेमावर पहुचें और आचार्य भगवन के चरणो में पहुचकर उनके उपकार स्वरूप पूर्व में मिले आशीर्वाद से जो जिम्मेदारी बिरला जी को मिली है उसे किस तरह सम्पूर्ण राष्ट्र के हित के किये क्या किया जाये कि भारत विश्व गुरु बनकर भारतीय संस्कृति का डंका पूरे विश्व मे गूंजे हेतु आचार्य भगवन से दिशा निर्देश एवम आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आचार्य श्री से किया। 
         आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महाराज ने धर्म के मार्ग पर चलते हुए देश की सेवा करने का आशीर्वाद प्रदान किया। इसके पश्चात लोकसभा अध्यक्ष श्री बिरला ने सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र की भोजनशाला में प्रसादी ग्रहण की। सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र नेमावर के कार्यकारी अध्यक्ष संजय जैन मैक्स इंदौर ने उन्हें क्षेत्र का साहित्य और स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मान किया।
     
     
















  13. Vidyasagar.Guru
    प्रतियोगिता क्रमांक 1 में भाग लेने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें 
    https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLScXpBBk9V0hGqAY4nkO8C-RR8WaOVugINFnbGgkso2tlgLK5Q/viewform?usp=sf_link
     
     
    भाग लेने के बाद आप अपना नाम निम्न सूची मे देख सकते हैं 
    https://docs.google.com/spreadsheets/d/1cExfmK1MQlwQqPXbHzPqClVpZKM6Ov91snt3H_SPQwU/edit?usp=sharing
     

     
    तीन उपहार 
     

  14. Vidyasagar.Guru
    विद्यासागर डॉट गुरु वेबसाइट की स्टाल भाग्योदय तीर्थ सागर में 

    *क्या आप सागर आ रहे हैं, तो अब आप वेबसाइट के अनुभव हमसे साझा स्टाल पर आकर कर सकते हैं |
    अगर आप से  वेबसाइट पर अकाउंट नहीं बन रहा हैं तो आप इस स्टाल पर आकर सीख सकते हैं |
     
    स्थान - संत भवन के पास, भाग्योदय तीर्थ सागर 
    दिनांक 11 दिसम्बर से 13 दिसम्बर 2018
     
    *गुरु प्रभावन प्रतियोगिता, भाग्योदय तीर्थ सागर में* - जरूर भाग लें 
    *उपहार स्वरुप* हथकरघा निर्मित श्रमदान की साड़ी, कुर्ता एवं 10 सांत्वना पुरस्कार दिए जायेंगे|
     
     
     

  15. Vidyasagar.Guru
    🙏🏻बड़ी खबर🙏🏻
      श्रमण संस्कृति की सर्वोच्च साध्वी गणिनी प्रमुख आर्यिकाश्री ज्ञानमति माताजी का मंगल विहार श्रमण संस्कृति के सर्वोच्च आचार्य पूज्यपाद श्रमण चक्रवर्ती आचार्य श्री विद्यासागरजी महामुनिराज के प्रथम बार दर्शन हेतु राहतगढ से खुरई की ओर हुआ। 
    कल शाम को संभावित पूज्या माताजी खुरई में गुरुदेव के दर्शन करेंगी
     
     
  16. Vidyasagar.Guru
    आज 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के दिन तिलकनगर इंदौर की धरातल पर विराजमान राष्ट्रसंत श्री 108 विद्यासागर जी ससंघ (33 मुनिराजों) के दर्शन करने पहुँचे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ
     


     
  17. Vidyasagar.Guru
    26 november
    *आचार्य भगवन का हुआ विहार*
    अभी 1:30 बजे खातेगांव से नेमावर की और हुआ विहार.... 
    🙏🏻
    .   *
             *२३ नवम्बर २०२०*
       *
                         
                    *परम पूज्य*
    *आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज*
                       *ससंघ*
                         ■
             *आज रात्रि विश्राम*
           टांड़ा जी का वेयर हाउस
         एस आर पेट्रोल पंप के पास
                        ■
           *कल की आहार-चर्या*
        खातेगांव में प्रातः मंगल प्रवेश
    एवम आहार चर्या खातेगांव में होगी
                        ■
            *आगामी कार्यक्रम*
       कल रात्रि संभावित संदलपुर
                        ■
      *सम्भावित नेमाबर जी प्रवेश*
           25 नवम्बर प्रातःकाल  
    *
     
     
    २२ नवम्बर २०२०

                    परम पूज्य
    आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ
                         ■
             आज रात्रि विश्राम
           कन्नौद (परिणय गार्डन)
                        ■
           कल की आहार-चर्या
     सौभाग्य : कन्नौद की समाज को
                        ■
          मंगल विहार की दिशा
           खातेगांव : 20 किमी
          नेमाबर जी : 35 किमी
                        ■
      सम्भावित नेमाबर जी प्रवेश
           25 नवम्बर दोपहर बाद
                        या
           26 नवम्बर प्रातःकाल  

    *आचार्यश्री जी मंगल विहार अपडेट*
    21 नवम्बर, दोपहर बेला।

    *परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का मंगल विहार जारी-*
    ● *आज का संभावित रात्रि विश्राम-* कलवार पंचायत भवन।
    ● *कल की सम्भावित आहार चर्या-* बागन खेड़ा स्कूल भवन।
    ● *विहार की संभावित दिशा-* सिद्धक्षेत्र, सिद्धोदय तीर्थ श्री नेमाबर जी।
     

    *आचार्यश्री जी मंगल विहार अपडेट*
    20 नवम्बर, दोपहर बेला।

    *परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का मंगल विहार नेमावर की ओर...!!*
    ● *आज का रात्रि विश्राम-* बन उपज चेकिंग नाका, धन तलाव बन चौकी।
    ● *कल की सम्भावित आहार चर्या-* हथनोरी विद्यालय भवन ( 6 किमी)
     

    *आचार्यश्री जी मंगल विहार अपडेट*
    19 नवम्बर, दोपहर बेला।

    *परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का मंगल विहार जारी-*
    ● *आज का संभावित रात्रि विश्राम-* शासकीय माध्यमिक विद्यालय, अमरपुरा।
    ● *कल की सम्भावित आहार चर्या-* बाडमोर।
    ● *विहार की संभावित दिशा-* सिद्धक्षेत्र, सिद्धोदय तीर्थ श्री नेमाबर जी।
    *
    *

    *मंगल विहार अपडेट-*
    *पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ*

    कल की सम्भावित आहार चर्या-
    *संशोधित स्थल- बेड़ामऊ*
    (अमरपुरा से 6 किमी आगे)
     
     
     
     
     
    18 नवम्बर, दोपहर बेला।

    परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का मंगल विहार जारी-
    ● आज का संभावित रात्रि विश्राम- पशु आहार केंद्र (पेट्रोल पंप के बाजू में) कर्णावट ग्राम
    ● कल की सम्भावित आहार चर्या- चापड़ा , द्वारिकाधीश मांगलिक भवन।
    ● विहार की संभावित दिशा- सिद्धक्षेत्र, सिद्धोदय क्षेत्र श्री नेमाबर जी।
     
    *आचार्यश्री जी मंगल विहार अपडेट*
    17 नवम्बर, दोपहर बेला।

    *परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का मंगल विहार जारी-*
    ● *आज का संभावित रात्रि विश्राम-* मालवांचल स्कूल (इंडेक्स हॉस्पिटल के बाजू में)
    ● *कल की सम्भावित आहार चर्या-* डबल चौकी,  आइडियल स्कूल भवन।
    ● *विहार की संभावित दिशा-* सिद्धक्षेत्र, सिद्धोदय क्षेत्र श्री नेमाबर जी।
     
     
    *विहार अपडेट 16 नवंबर 20*
                    👣
              👣👣👣
           👣👣👣👣 
    *संत शिरोमणि आचार्य गुरुदेव श्री विद्यासागर महाराज का मंगल विहार आज महालक्ष्मी नगर इंदौर से नेमावर की ओर दोपहर 2 बजे हुआ।*
    *रात्रि विश्राम 9 किमी दूर गुराडिया मैं हो सकता है*
    *इंदौर से नेमावर की दूरी लगभग 130 किमी है*
     
     
     
     
     
    16 नवम्बर 2020
    पूज्य आचार्यश्री जी ससंघ का हुआ विहार
    अभी-अभी 
    परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ 7 मुनिराज का मंगल विहार विजयनगर से महालक्ष्मी नगर इंदौर की ओर हुआ ।
    1. मुनिश्री सौम्यसागर जी  2. मुनिश्री दुर्लभसागर जी  3. मुनिश्री नीरोगसागर जी  4. मुनिश्री निरामयसागर जी  5. मुनिश्री शीतलसागर जी  6. मुनिश्री श्रमणसागर जी 7. मुनिश्री संधानसागर जी
    (5 मुनिराज का उपसंघ विजयनगर में ही विराजमान हैं)
    मुनिश्री निर्दोषसागर जी  मुनिश्री निर्लोभसागर जी  मुनिश्री निरापदसागर जी  मुनिश्री निराकुलसागर जी मुनिश्री निरुपमसागर जी 
  18. Vidyasagar.Guru
    30 अक्टूबर 2018 - आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ के सान्निध्य व निर्देशन में दस प्रतिमाधारी श्री अनिल भाई खंधार मुंबई निवासी की सल्लेखना सानंद सम्पन्न हुई |
     

     
    गुरु चरणों में चल रही समता पूर्वक, प्रसन्नता पूर्वक सल्लेखना के अनमोल पल अत्यंत हर्ष का विषय है कि आदरणीय अनिल बाबा जी मुंबई जो १० प्रतिमा धारी है उनकी सल्लेखना गुरु चरणों में समता पूर्वक, प्रसन्नता पूर्वक चल रहीं है | जय हों जय हों जय हों
     
     
     

     
     

     
     
    sallekhana.mp4
  19. Vidyasagar.Guru
    15 साल 8 माह 23 दिन बाद गुरु के दर्शन कर चरण पखारे तो निकल गयी अश्रुधारा  गुरु-शिष्यों का महामिलन देखने देश-विदेश से पहुंचे 10 हजार से ज्यादा श्रद्धालु  गुरु की आज्ञा मिलते ही 15 दिन में 300 किमी का पदविहार कर बावनगजा से नेमावर पहुंचे मुनि प्रमाण सागर, पैरों में आ गए छाले फिर भी नहीं रुके कदम   
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
    ✍🏻 पुनीत जैन (पट्ठा) खातेगांव 
    रविवार को 15 साल 8 माह 23 दिन (5746 दिन) के लंबे इंतज़ार के बाद मुनिश्री प्रमाणसगारजी और 10 साल 8 माह 23 दिन (3920 दिन) बाद मुनिश्री विराटसागरजी ने सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र नेमावर में अपने गुरु आचार्यश्री विद्यासागरजी के दर्शन कर चरण पखारे तो दोनों की आंखों से आंसू बह निकले। अश्रुधारा और जल से दोनों ने अपने गुरु के पादप्रक्षालन किए और गंधोदक को अपने सिरमाथे पर लगाया। 
    दोनों मुनि बावनगजा में चातुर्मासरत थे। गुरु से आज्ञा मिलते ही उनके दर्शन के लिए 15 नवंबर को वहां से लगभग 300 किमी का पदविहार करते हुए रविवार को नेमावर पहुंचे। मुनिश्री प्रमाणसागरजी ने इसके पूर्व 8 मार्च 2004 को रामटेक और मुनिश्री विराटसागरजी ने 8 मार्च 2009 को जबलपुर में गुरू के दर्शन कर उनकी आज्ञा और आशीर्वाद से विहार किया था।   
    गुरु-शिष्यों के महामिलन के इन भावुक क्षणों में मुनिश्री प्रमाण सागरजी ने कहा जन्म तो सब लेते हैं, पर जय किसी विरले की हो होती है और जय उसी की होती है जो स्वयं को जीत लेता है। मेरे गुरुवर ने स्वयं को जीता है, इसलिए उनकी पूरी दुनिया में जय हो रही है। उनकी शरण में आने वाले की स्वतः ही विजय हो जाती है। गुरुदेव ने जिस त्याग और तपस्या से जिन ऊंचाई को छुआ है वह जैन समाज का पर्याय बन गया है। जैन धर्म की पहचान आज मेरे गुरुदेव से है।यह युग गुरुवर का युग है। मेरे गुरुदेव तो साक्षात अरिहंत की प्रतिकृति हैं। सम्पूर्ण श्रमण संस्कृति और सम्पूर्ण मानव समाज पर गुरुदेव की कृपा है। धरती पर बहुत से आचार्य हुए जिन्होंने जिनशासन के लिए बहुत कुछ किया लेकिन मेरे गुरुवर आचार्य विद्यासागरजी अपनी त्याग तपस्या और साधना के साथ-साथ मानवता के उत्थान के लिए, राष्ट्र के निर्माण के लिए, संस्कृति की रक्षा के लिए हर समय चिंतनमय रहते हैं। जिनके हर सांस में मानवता का हित दिखता हो। पंचम काल में मोक्ष की व्यवस्था तो नहीं पर जो सच्चे मन से इनकी शरण में आ जाता है उसका बेड़ा पार हो जाता है। गुरुदेव कहते हैं धन पाना, धन कमाना कोई बड़ी बात नही धन का सही नियोजन करके जीवन को धन्य बनाना सबसे बड़ी बात है। और आज पूरी दुनिया उनकी शरण में आकर जीवन को धन्य बना रही है। भक्तों के लिए तो गुरुकृपा और गुरुशरण ही सबसे बड़ा धन है।  सबको जो मिला वो मुकद्दर से मिला, मुझे तो मेरा मुक़द्दर ही गुरुवर के दर पर मिला।     
    इसी क्रम में मुनिश्री विराटसागरजी ने भी भजन- गुरु की छाया में शरण जो पा गया उसके जीवन में सुमंगल आ गया के माध्यम से अपने भाव प्रकट किए। गुरु को ब्रम्हा विष्णु महेश के समान बताते हुए कहा कि मैं आज जो कुछ गुरुकृपा से हूँ। 
    इस अवसर पर आचार्यश्री विद्यासागजी महाराज ने कहा शिष्य अपने गुरु से दूर रहने पर शिकायत करते हैं, लेकिन इन शिकायतों में भी कुछ ना कुछ सीख होती है। हम अपना संदेश भेजने के लिए दूरभाष, कोरियर या पत्र का प्रयोग नहीं करते फिर भी हमारे संदेश शिष्यों तक पहुंच जाते हैं, जिसके बारे में या तो सिर्फ वो जानते है या सिर्फ हम। 
     
    इससे पूर्व ज्येष्ठ मुनि प्रमाणसागरजी और मुनिश्री विराटसागरजी की आगवानी के लिए आचार्यश्री के संघस्थ मुनि और अपार जनसमुदाय गुराड़िया फांटे पर पहुंचा। धर्मध्वजा और जयकारों के बीच मुनिगणों की आगवानी हुई। सभी मुनि महाराजों ने आचार्यश्री की परिक्रमा लगाई। यह दृश्य देखकर देश-विदेश के आए हजारों श्रद्धालु भाव विभोर हो गए।



     
     
    1 dec 19 clipping 4.mp4 1 dec 19 clipping.mp4
  20. Vidyasagar.Guru
    जय जिनेन्द्र 
    आचार्य श्री विद्यासागर मोबाईल ऐप्प का प्रिन्ट (फ्लेक्स / पोस्टर ) निकालकर अपने मंदिर मे लगाए 
    जगह अनुसार ( बड़े से बड़ा पोस्टर लगाए )
    प्रिंट करने के लिए  पीडीएफ़ डाउनलोड कर सकते हैं। 
     
     
    पोस्टर के साथ अपनी फोटो  क्लिक कर यहाँ  अपलोड करें |
    https://vidyasagar.guru/gallery/category/76-1
     
     
     

     
    Achary shree app poster.pdf
  21. Vidyasagar.Guru
    22 दिसम्बर 22 
     
    आचार्य भगवंत विद्यासागर जी महामुनिराज जी ने कल सम्पन्न हुई क्षुल्लक दीक्षाओ में से 3 दीक्षार्थियों के नाम परिवर्तित किये है
    पूर्व नाम एवम नवीन नाम
    १) ब्र. अभिषेक भैय्याजी, गोटेगांव
    पूर्व नाम :- क्षुल्लकश्री उचितसागर महाराज
    नवीन नाम :- क्षुल्लक श्री १०५ चिद्रूपसागरजी महाराज
    २) ब्र. पुनीत भैय्याजी, सागर
    पूर्व नाम :- क्षुल्लकश्री समुचितसागर महाराज
    नवीन नाम :- क्षुल्लक श्री १०५ स्वरूपसागरजी
    ३) ब्र. जयेश भैय्याजी, वर्धा
    पूर्व नाम :- क्षुल्लकश्री औचित्यसागर महाराज
    नवीन नाम :- क्षुल्लक श्री १०५ सुभगसागरजी महाराज
     

     
     
     
     
     
     
     
     
    युगश्रेष्ठ, संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर जी महामुनिराज के कर कमलों से दीक्षाएं सम्पन्न हुई 
     
     
     
     
     
     
     
    दीक्षार्थियों के नाम व नवीन नाम
    🌟 ब्र महावीर भैया जी अष्टगे
    श्रमणश्री उत्कृष्टसागर मुनिराज

    १) ब्र. नितेश भैय्याजी, बागीदौरा 
    क्षुल्लकश्री  स्वागतसागर महाराज
    २) ब्र. यशपाल (गोलू) भैय्याजी, दमोह-
    क्षुल्लकश्री आगतसागर महाराज
    ३) ब्र. सौरभ (गोलू) भैय्याजी, जबलपुर -
    क्षुल्लकश्री भास्वतसागर महाराज
    ४) ब्र. श्रमण कुमार (लक्की) भैय्याजी, दमोह
    क्षुल्लकश्री स्वस्तिकसागर महाराज
    ५) ब्र. सौरभ (बम्बू) भैय्याजी, सिलवानी -
    क्षुल्लकश्री भारतसागर महाराज
    ६) ब्र. शुभम भैय्याजी, सागर -
    क्षुल्लकश्री जाग्रतसागर महाराज
    ७) ब्र. शैलेन्द्र (शेलू) भैय्याजी, कटंगी
    क्षुल्लकश्री उद्यमसागर महाराज
    ८) ब्र. स्वतंत्र (बौद्धिक) भैय्याजी, विदिशा
    क्षुल्लकश्री गरिष्ठसागर महाराज
    ९) ब्र. संजय भैय्याजी, पटना
    क्षुल्लकश्री आदरसागर महाराज
    १०) ब्र. किरीट (गोनू) भैय्याजी, खातेगाव
    क्षुल्लकश्री समादरसागर महाराज
    ११) ब्र. अभिषेक भैय्याजी, गोटेगांव
    क्षुल्लकश्री उचितसागर महाराज
    १२) ब्र. पुनीत भैय्याजी, सागर
    क्षुल्लकश्री समुचितसागर महाराज
    १३) ब्र. जयेश भैय्याजी, वर्धा
    क्षुल्लकश्री औचित्यसागर महाराज
    १४) ब्र. चंद्रप्रकाश (C.P.) भैय्याजी, ग्वालियर
    क्षुल्लकश्री अनुनयसागर महाराज
    १५) ब्र. मधुर भैय्याजी, गंज बासौदा
    क्षुल्लकश्री सविनयसागर महाराज
    १६) ब्र. विक्रम भैय्याजी, जबलपुर
    क्षुल्लकश्री समन्वयसागर महाराज
    १७) ब्र. ब्रजेन्द्र भैय्याजी, भोपाल
    क्षुल्लकश्री हीरकसागर महाराज
    १८) ब्र. दीपक भैय्याजी, मड़ावरा
    क्षुल्लकश्री निर्धूमसागर महाराज
    १९) ब्र. खुशाल भैय्याजी, पथरिया
    क्षुल्लकश्री वरिष्ठसागर महाराज
    २०) ब्र. जयंत (गोल्डी) भैय्याजी, सहारनपुर
    क्षुल्लकश्री गौरवसागर महाराज
    २१) ब्र. रोहित भैय्याजी, बडौत
    क्षुल्लकश्री विदेहसागर महाराज
    ➖➖➖➖➖➖➖➖
    सभी नवदीक्षित साधकों के चरणों नमोस्तु व इच्छामि👏🏻👏🏻👏🏻
     
  22. Vidyasagar.Guru
    26 December 2023
     
    *आज दोपहर  4 बजे होगा डोंगरगढ़ में प्रवेश*
     
    25 December 2023
    आज दोपहर में
        *💫सामयिक उपरांत💫*
             👣मंगल विहार👣
           *🔻राजनांदगाव🔻*
                    से हुआ।
    ➖➖➖➖➖➖➖
           *🍄आज रात्री विश्राम🍄*
           *🍄कोपेडीह रथ मंदिर🍄*
                जि.राजनांदगाव(छ.ग.)
    https://maps.app.goo.gl/QkQwURhnz5o46L447
    ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
      *🍁कल की आहार चर्या 🍁*
           *🍁रेंगाकठोरा🍁* 
       (शासकिय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय)
             जि. राजनांदगाव(छ.ग.)
                    (संभावित)
    https://maps.app.goo.gl/AKwwRiZAtiwaKqb96
    ➡️संभावित दीशा-- चंद्रगिरी डोंगरगढ
    ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
     
    23 December 2023
    ➖➖➖➖➖➖➖
           *🍄आज रात्री विश्राम🍄*
              *🍄ठाकुर टोला🍄*
                (कृषि फार्म हाउस)
                जि.राजनांदगाव(छ.ग.)
    https://maps.app.goo.gl/F6sni1gP1K4yXD7EA
    ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
       *🍁कल की आहार चर्या 🍁*
           *🍁राजनांदगाव🍁* 
       (श्री नेमिनाथ दिगंबर जैन मंदिर)
               राजनांदगाव(छ.ग.)
                    (संभावित)
    https://maps.app.goo.gl/Y1w47CH7sTpBQsha8
    ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
     
     
    21 दिसम्बर २०२३ 
    ➖➖➖➖➖➖➖
        🍄आज रात्री विश्राम🍄
       🍄प्रीस्म पब्लीक स्कुल🍄
         (महकाखुर्द, उटई गनियारी रोड)
                जि.रायपूर(छ.ग.) 
    https://maps.app.goo.gl/oecMtSLz57XFJbxX7
     ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
       🍁कल की आहार चर्या 🍁
             🍁भंडारपुरई🍁
              (प्रिंस नवीन जैन बीज)
                     जि.रायपूर
                     (संभावित)
    https://maps.app.goo.gl/kQykfqc2TpG3hKk48
    ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
     
    20 दिसम्बर २०२३ 
     
    🪷युग श्रेष्ठ, संत शिरोमणि
     आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महामुनिराज
    🪷निर्यापक श्रमण मुनिश्री १०८ प्रसादसागर जी महाराज 
    🪷मुनि श्री १०८ चंद्रप्रभसागर जी महाराज
    🪷मुनि श्री १०८ निरामयसागर जी महाराज 
          ससंघ विहार रायपुर से हुआ है
    ➖➖➖➖➖➖➖
        🍄आज रात्री विश्राम🍄
              🍄सांकरा🍄
          (शासकिय प्राथमिक शाला )
                जि.रायपूर(छ.ग.) 
    https://maps.app.goo.gl/hBW8B8GB8qUDrXjD8
     ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
       🍁कल की आहार चर्या 🍁
              🍁जामगांव-M🍁
       (जैन भवन,दौलत लॉन के पास)
                     जि.रायपूर
                     (संभावित)
    https://maps.app.goo.gl/56i5TtpxN5TsAobT8
    ➖➖➖➖➖➖➖
    संभावित विहार - दीशा- भिलाई- दुर्ग-
     
     

     
    19 december
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        🍄आज रात्री विश्राम🍄
             🍄 रायपूर🍄
           (बडा मंदिर मालवीय रोड )
                  रायपूर(छ.ग.) 
     ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
       🍁कल की आहार चर्या 🍁
                🍁रायपूर🍁
             (बडा मंदिर मालवीय रोड)
                        रायपूर
                     (संभावित)
    https://maps.app.goo.gl/2dLgyWVc2ycg3qAGA
     
    18 दिसंबर 2023
    संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आज 18 दिसंबर  मंगल प्रवेश 
    *स्थान* 
    मालवीय रोड रायपुर 4 बजे मंगल प्रवेश 
    सभी को यह सूचना शीघ्र प्रेषित करें
    https://vidyasagar.guru/current-location
     
    17 दिसम्बर 2023 

    ➖➖➖➖➖➖➖
        🍄आज रात्री विश्राम🍄
              🍄 बरबंदा🍄
            (स्वामी आत्मनंद स्कुल  )
              जि.रायपूर(छ.ग.)  
    https://maps.app.goo.gl/RptRwvpir4VgJQGK9
     ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
       🍁कल की आहार चर्या 🍁
                 🍁बरौदा🍁
           (शासकिय प्राथमिक शाला)
                 जि.रायपूर
                  (संभावित)
    https://maps.app.goo.gl/xDyyJkyXzdQcJeDA9
    ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
     
     
    16 दिसम्बर 2023 
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         🍄आज रात्री विश्राम🍄
                🍄कोनारी🍄
    (शासकिय पूर्व माध्यमिक विद्यालय )
           खरोरा तिल मार्ग
              जि.रायपूर (छ.ग.) 
    https://maps.app.goo.gl/z9sbunx33jJXTZ9B8
     ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
         🍁कल की आहार चर्या 🍁
               🍁कोदवा🍁
                 (प्रायमरी स्कुल)   
                 जि.रायपुर(छ.ग.)
                     (संभावित)
    https://maps.app.goo.gl/f82TvoUettZxcAfh6
    ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
     
     
    आचार्य श्री विद्यासागर जी ससंघ का तिलदा नेवरा से हुआ विहार
     
    आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के ससंघ सानिध्य में "तिल्डा-नेवरा" (छत्तीसगढ़) में नव निर्मित पत्थर के जिनालय का पंचकल्याणक गजरथ महामहोत्सव संपन्न करने के बाद "गुरूदेव" का ससंघ मंगल विहार तिल्दा नेवरा से हुआ
     
    संभावित दिशा रायपुर (दूरी लगभग 50 किमी)
     
     
     
  23. Vidyasagar.Guru
    आवश्यकता, आकांक्षा, आसक्ति और अतृप्ति
    एक राजा ने किसी सन्त के चरणों में उपस्थित होकर उनसे अपने राजमहल में भिक्षा ग्रहण करने का निवेदन किया। सन्त ने राजा का निवेदन स्वीकार कर लिया और कहा- ठीक है, कल मैं तुम्हारे राजमहल में भिक्षा ग्रहण करूंगा। संत का आश्वासन पाकर राजा फूला न समाया, सन्त के स्वागत में उसने पलक-पाँवड़े बिछा दिए। निश्चित समय पर सन्त का आगमन हुआ। राजा ने उनसे भिक्षा ग्रहण करने का अनुरोध किया तो सन्त ने कहा- मैं अपनी भिक्षा में ज्यादा कुछ नहीं लेता, मेरे पास एक कटोरा है, मैं उस कटोरे भर भिक्षा ही लेता हूँ तुम कोई भी चीज मेरे कटोरे में डाल दो। राजा ने कहा- ठीक, जैसी आपकी आज्ञा। संत ने अपना कटोरा राजा की ओर बढ़ा दिया।
     
    राजा ने सन्त के भोजन के लिए खीर तैयार करवाई थी। कटोरा देखने में छोटा सा ही था। राजा ने उसमें पूरी खीर उड़ेल दी फिर भी कटोरा खाली ही रहा। दो चम्मच खीर से भरने लायक कटोरे को पूरी खीर उड़ेलने के बाद भी नहीं भरा जा सका तो राजा के मन में बड़ी उथल-पुथल मचने लगी। आखिर बात क्या है? द्वार पर आए। सन्त का सत्कार न हो सका, अभ्यागत अतिथि का सम्मान न कर सका तो मुझसे बड़ा अभागा कौन होगा? इनकी एक छोटी सी रिक्वायरमेंट (आवश्यकता) भी मैं पूरी नहीं कर पा रहा हूँ, मेरे लिए इससे बड़ी विडम्बना की बात और क्या होगी? राजा ने दोबारा खीर बनवाई, वह भी उस कटोरे में समा गई। तीसरी बार खीर बनवाई, वह भी उसमें समा गई। अब राजा से रहा नहीं गया। वह सन्त के चरणों में गिर पड़ा और बोला- गुरुदेव! क्षमा करो। ये कटोरा कब भरेगा? संत ने कहा- ये कटोरा कभी नहीं भरेगा। संत की बात सुनकर राजा एकदम आश्चर्य में पड़ गया, आखिर ये कटोरा क्यों नहीं भरेगा? ये कटोरा किस धातु का बना है?
     
    सन्त ने राजा को सम्बोधित करते हुए कहा- राजन! किसी धातु से बना कटोरा भर सकता है पर ये कटोरा कभी नहीं भरेगा। क्यों नहीं भरेगा? दुनिया के सब कटोरे भर सकते हैं पर मानव के मन का कटोरा कभी नहीं भर सकता। वह हमेशा खाली का खाली ही रहता है, उसे जितना-जितना भरने का प्रयास किया जाता है वह उतना ही रिक्त होता जाता है।
     
    आज का शौच धर्म हमें यही प्रेरणा देता है। "प्रकर्षप्राप्तलोभान्निवृित्तिः शौचम्" उत्कृष्टता को प्राप्त लोभ की निवृत्ति का नाम शौच है। शौच का शाब्दिक अर्थ होता है पवित्रता। बाहर की पवित्रता का ध्यान हर कोई रखता है लेकिन यहाँ आतरिक पवित्रता से प्रयोजन है। आांतरिक पवित्रता तभी घटित होती है जब मनुष्य लोभ से मुक्त होता है। हमारे मन में पलने वाला लोभ ही हमारे मन में अपवित्रता उत्पन्न करता है। आचार्य कार्तिकेय स्वामी ने इस अपवित्रता के प्रक्षालन का उपदेश देते हुए कहा है -
     
    सम-संतोस-जलेण जो धोवदि तिव्वलोह-मलपुंजं |
    भोयण-गिद्धि-विहीणो तस्स सउच्च हवे विमल|| 
    जो समता और संतोष के जल से लोभ रूपी तीव्र मल के पुंज का प्रक्षालन करता है उसके अन्तरंग में शौच धर्म प्रकट होता है। लोभ व्याकुलता को उत्पन्न करने वाला तत्व है तो संतोष के बल पर लोभ का शमन किया जा सकता है।
     
    आज मैं आपसे संतोष की बात करूंगा। एक बार मैं संतोष की चर्चा कर रहा था। एक युवक ने मुझसे कहा- महाराज! आप संतोष की बात तो करते हैं लेकिन आपको शायद दुनिया का पूरा अनुभव नहीं। यदि हम लोग संतोष धारण करके बैठ जाएँ तो जीना ही मुश्किल हो जाएगा क्योंकि हमारा सम्पूर्ण जीवन धन-पैसे की बदौलत ही चलता है, बिना पैसे के हमारी गृहस्थी की गाड़ी एक कदम भी नहीं चल सकती, जीवन की सारी जरूरतों की पूर्ति हम पैसे से करते हैं, बिना पैसे के हमें कोई पूछता तक नहीं, पैसों से ही हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है, हमारी पूछ-परख होती है, हमारी पहचान बनती है और आप कहते हो संतोष करके बैठ जाओ तो फिर बिना पैसे के जीवन में क्या होगा? मैं समझता हूँ ये प्रश्न कभी आपके मन में भी आया होगा या आता होगा। मैंने उस युवक को जो जवाब दिया आज मैं उसी को अपने प्रवचन का आधार बनाकर बात आगे बढ़ाता हूँ। मैंने कहा- जीवन में पैसे की आवश्यकता है, मैं उसे नकारता नहीं पर कुछ बातों पर विचार करो। पैसा तुम्हारे जीवन में आवश्यक है लेकिन क्या पैसे से ही सब कुछ उपलब्ध हो सकता है? पैसा जीवन में कितना आवश्यक है इसका विचार करो। इस बात का विचार करो कि जीवन के लिए पैसा है या पैसे के लिए जीवन? यदि जीवन के लिए पैसा है तो तुम्हारे मन में तीव्र लोभ और लिप्सा के भाव पैदा नहीं होंगे और यदि पैसे के लिए जीवन है तो तुम्हारी लोभ, लालच, लिप्सा का कभी अंत नहीं होगा।
     
    जरूरी नहीं सभी जरूरतें
    आज की चार बाते हैं- आवश्यकता, आकांक्षा, आसक्ति और अतृप्ति। आवश्यकता.......हर प्राणी के जीवन के लिए कुछ आवश्यक साधन चाहिए, उनकी आवश्यकता है। आवश्यकता भी दो प्रकार की है- एक अनिवार्य आवश्यकता जिसके बिना आपका जीवन नहीं चल सकता। जीवन जीने के लिए श्वास की आवश्यकता है, प्राण वायु न हो तो जीवित नहीं रह सकोगे। पानी की आवश्यकता है, पानी न मिले तो जीवन न टिकेगा। भोजन की आवश्यकता है, भोजन न मिले तो तुम्हारा जीवन नहीं टिकेगा। रहने के लिए घर की आवश्यकता है, घर न मिले तो आप ठीक से जी नहीं सकते और पहनने के लिए वस्त्र की आवश्यकता है इसके बिना आपका जीवन नहीं गुजर सकता -ये अनिवार्य आवश्यकताएँ हैं।
     
    सन्त कहते हैं धर्म तुम्हें तुम्हारी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए कतई मनाही नहीं करता। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करो। रहने के लिए घर चाहिए; एक घर बना लो, पहनने के लिए वस्त्र चाहिए; वस्त्र ले ली, खाने के लिए भोजन चाहिए; दो जून की रोटी की व्यवस्था कर लो, इसमें तुम्हें ज्यादा समय नहीं लगता, इसके लिए तुम्हें ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है। तुम्हें अपने रहने के मकान के लिए कितने पैसों की आवश्यकता है, तुम्हें अपना पेट भरने के लिए कितने पैसों की आवश्यकता है, तुम्हें अपना तन ढकने के लिए कितने पैसों की आवश्यकता है? तय करो और उसकी पूर्ति कर लो। आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ज्यादा प्रयत्न करने की जरूरत नहीं होती। हर कोई अपनी आवश्यकता की पूर्ति करता है।
     
    एक है अनिवार्य आवश्यकता और दूसरी है विलासितापूर्ण आवश्यकता। महाराज! अब हम लोगों की लाइफ स्टाइल (जीवन शैली) थोड़ी अलग हो गई है, लग्जीरियस टाइप (सुविधावादी)। रहने के लिए घर चाहिए तो ऐसा-वैसा घर नहीं, शहर के किसी पॉश एरिया में घर होना चाहिए, देखने में आकर्षक होना चाहिए, बढ़िया फर्नीचर होना चाहिए, ये सब हो तो घर, घर है। महाराज साधारण सा मकान तो साधारण ही होता है। ये बात और है कि जब तुम्हारा अपना घर नहीं था तब तुमने सोचा था कि कैसे भी हो, अपनी पक्की छत हो जाए। अब समर्थ हो गए, घर बन गया तो अब मन में विचार आता है कि किसी पॉश एरिया में घर होना चाहिए, बढ़िया घर, अच्छा फ्लैट होना चाहिए, उसका अच्छा फर्नीचर होना चाहिए -ये लग्जीरियस (सुविधावादी) में आ गया।
     
    भोजन की आवश्यकता है, दो वक्त की रोटी आप कभी भी खा सकते हो लेकिन नहीं, हमारा भोजन और अच्छा होना चाहिए, अच्छे से अच्छा भोजन होना चाहिए। चलो इसको भी मान लिया। कपड़े चाहिए लेकिन कपड़े भी ऐसे-वैसे नहीं होने चाहिए, ब्राण्डेड होने चाहिए, इसको भी मान लिया। ये आवश्यकता नहीं है, ये सब इच्छा से प्रेरित परिणति है। इच्छा से प्रेरित होने के कारण मनुष्य उसमें उलझ जाता है। संत कहते हैं इस पर भी यदि तुम एक जगह थम जाओ तो तुम्हारे जीवन में अशांति नहीं होगी लेकिन आप कभी थमते ही नहीं। आवश्यकताओं की पूर्ति करो पर कितनी आवश्यकता इसका विचार करो। कितनी भूख लगी है? भोजन की आवश्यकता है तो हो सकता है किसी का पेट दो रोटी में भर जाए और किसी का पेट बीस रोटी में भरे। पेट भर जाने के बाद अगर उस व्यक्ति से कुछ कहा जाए, चाहे आग्रह किया जाए, मनुहार किया जाए कि कुछ और खा लो तो वह साफ इन्कार कर देता है कि भाई! पेट भर गया, अब मैं रसगुल्ला भी स्वीकार नहीं कर सकता, मुझे इसकी जरूरत नहीं क्योंकि मेरी आवश्यकताओं की पूर्ति हो गई। पेट भर जाने के बाद कोई भी व्यक्ति कुछ भी खाने को तैयार नहीं होता, भूख की एक आवश्यकता थी, पेट भर गया।
     
    बंधुओं! ये पेट तो आप फिर भी भर लेते हो पर मन का पेट कभी नहीं भरता। कितनी आवश्यकता है ये तय करो। मनुष्य तब का निर्धारण नहीं कर लेता। तय कीजिए मेरे जीवन में क्या आवश्यक है। पैसा कमाना आवश्यक है, कमाइए, कोई निषेध नहीं, पर कितना कमाना है? कितना जरूरी है? कितने में आपकी पूर्ति हो जाएगी? पैसे की कहानी बड़ी विचित्र है। किसी को आठ रोटी की भूख हो और उसे चार रोटी खाने को मिल जाएँ तो भूख आधी हो जाती है। आठ रोटी की भूख हो और चार खा लीं तो भूख आधी हो गई, किसी को दस लाख की चाहत हो और पाँच लाख मिल जाएँ तो क्या चाहत आधी होती है? क्या हो गया? आठ रोटी की चाहत में चार मिलने से भूख आधी हो जाती है तो दस लाख की चाहत में पाँच लाख मिलने पर भी तुम्हारी भूख आधी होनी चाहिए। महाराज! पाँच लाख मिलने के बाद दस लाख की चाहत बीस लाख में परिवर्तित हो जाती है, रोज का अनुभव है। आवश्यकता कितनी है इसे ध्यान में रखो। मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उत्साहित कम होता है, आवश्यकताओं के साथ जुड़ी हुई इच्छाओं की परिपूर्णता में रात-दिन पीड़ित रहता है। जो अपनी आवश्यकताओं को सामने रखकर चलता है वह कभी दुखी नहीं होता और जिसके मन में आकांक्षाएँ हावी हो जाती हैं वह कभी सुखी नहीं होता। 
     
    आकांक्षा नहीं लोभ का विस्तार
    शौच धर्म कहता है- आवश्यकता और आकांक्षा के बीच की भेदक रेखा को समझकर चली। कितनी आवश्यकता है? कितने में तुम्हारा काम चल सकता है? कितने में अच्छे से जी सकते हो, मौजपूर्वक जी सकते हो? आदमी जब व्यापार की शुरुआत करता है तो ये सोचकर करता है कि ये मेरे कैरियर के लिए जरूरी है। पैसा कमाना शुरु करता है तो सोचता है कि जब मैं पैसा कमाऊँगा तभी अपने घर परिवार को चला पाऊँगा, ये मेरी जिम्मेदारी है। अपनी जिम्मेदारियों का पालन कर सकेंगा, अपने कर्तव्य का निर्वाह कर सकेगा। ठीक है, पैसा कमाना तो तुमने शुरु कर दिया लेकिन जिसके लिए पैसा कमाना शुरु किया था क्या वह कर पाए? पैसा कमाना आवश्यक है, मैं निषेध नहीं करता। आवश्यकता है क्योंकि मुझे परिवार को देखना है, अपने बच्चों के भविष्य को संवारना है, खुद की जिम्मेदारियों को पूरा करना है, अपने सामाजिक और धार्मिक कर्तव्यों का भी धर्मपूर्ण अनुपालन करना है। आप पैसा कमाने के साथ इस बात का विचार करो कि जिस उद्देश्य से पैसा कमाने के लिए उत्साहित हुए थे, उस उद्देश्य की पूर्ति हो भी रही है या नहीं? रात-दिन पैसे के ही पीछे पागल हो जाना कतई समझदारी नहीं है। दुनिया में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो पहले जरूरत के लिए ही पैसा कमाते थे, अब कमाने के लिए कमाते हैं। शुरुआत में पैसा उनकी जरूरत थी, अब पैसा कमाना एक नशा हो गया। ऐसा नशा जिसका कोई अंत नहीं, जिसका कोई ओर-छोर नहीं। जहाँ से भी अवसर मिले दौड़ जाओ।
     
    एक बड़ा उद्यमी था। वह बहुत व्यस्त रहता था। अक्सर रात के ग्यारह बजे के पहले घर आना नहीं होता था और सुबह नौ बजे के आसपास उठता और नहा-धोकर सीधे अपने ऑफिस के काम में लग जाता। सुबह उठे तो बच्चे अपने स्कूल चले जाते और रात को आता तो बच्चे सो जाते। बच्चों के लिए कभी उसके पास टाइम ही नहीं रहता, समय ही नहीं निकाल पाता। बच्चे इस बात से बड़े आहत रहते थे कि पापा अपने बिजनिस (व्यापार) में ही इतने मग्न रहते हैं कि हम लोगों के लिए उनके पास कोई समय ही नहीं है। एक दिन उस उद्यमी के बच्चे ने उससे पूछा- पापा! आप एक घण्टे में कितना कमा लेते हो? पिता ने पूछा क्यों? बच्चा बोला- बस यूँ ही पूछ रहा हूँ, आप बताइए न। उसने कहा- यूँ समझ लो कोई पाँच हजार। वह बच्चा तुरंत अपनी माँ के पास गया और बोला- माँ! क्या आप मुझे दो हजार रुपये दोगी? माँ ने पूछा क्यों? बच्चा बोला- आप दीजिए तो सही फिर बताता हूँ। माँ ने बच्चे को दो हजार रुपये दे दिए, उसकी गुल्लक में तीन हजार थे, कुल मिलाकर पाँच हजार हो गए। बच्चे ने रुपये अपने पिता के आगे रखते हुए कहा- पापा। ये लो पूरे पाँच हजार रुपये और प्लीज हमें एक घण्टे का समय देने की कृपा करो। कितना बड़ा प्रहार है? सोचो! पैसे हैं पर समय नहीं है। क्या ये लोभ की पराकाष्ठा नहीं है? आसक्ति का चरम नहीं है? विचार करने की आवश्यकता है कि हम क्या कर रहे हैं? क्या हो रहा है इस पर गम्भीरता से विचार कीजिए। सोचिए आवश्यकता की सीमा क्या और कितनी है? रात-दिन दौड़ते ही रहना अगर तुम्हारे जीवन की जरूरत बन गई है तो दौड़ते रहो।
     
    एक युवक ने अल्प उम्र में बहुत अच्छा कारोबार बढ़ाया, पैसा कमाया, सेल्फ मेड व्यक्ति था। आज उसकी उम्र 38-40 साल के बीच है। एक दिन उसकी धर्मपत्नी ने उसके सामने मुझसे शिकायत की कि महाराज जी! इनको समझाओ, केवल पैसा कमाना ही जीवन नहीं है, जीवन में और भी बातों का ध्यान रखें। परिवार के लिए सोचें, पत्नी के लिए सोचें, बच्चों के लिए सोचें, धर्म के लिए सोचें, खुद के लिए सोचें। मैंने उसकी तरफ देखा कि भाई! क्या बात है? वह बोला- महाराज! बस थोड़े ही दिन की बात और है, मैं सोच रहा हूँ कि थोड़े दिन और कमा लें फिर आप लोगों के रास्ते पर लगूँगा। मैंने पूछा- थोड़े दिन और क्यों कमाना चाहते हो? उसने कहा- महाराज! बस इतना हो जाए कि कल हमारे बच्चों को शिकायत न हो, पर्याप्त हो जाए। मैंने कहा- पर्याप्त की कोई सीमा होती है क्या? पर्याप्त किसे बोलते हैं? है किसी के पास पर्याप्त की सीमा? कितने को तुम पर्याप्त कहोगे बताओ? कई बार लोग सोचते हैं कि इतना मेरे लिए सफिसिएण्ट (पर्याप्त) है। उतना आते ही वह इनसफिसिएण्ट (अपर्याप्त) हो जाता है। जब तक नहीं है तब तक सफिसिएण्ट (पर्याप्त) और उतना मिल गया तो और पाने की चाहत होती है, पर्याप्त कभी होता ही नहीं है। पर्याप्त कभी नहीं होगा। आज जग जाओ तो पर्याप्त है। तुम बताओ आज जो तुम्हारे पास है, क्या वह तुम्हारे जीवन-निर्वाह के लिए कम है? तुम्हें कितना चाहिए? अपने बच्चों के लिए तुमने जो जोड़कर रखा है क्या वह कम है? आज तुम सारा काम बन्द कर दो तो क्या तुम अपनी हुकोचता ह सक्ते महाज से ते आक आदिसे बहुत है।
     
    मैंने पूछा- फिर क्या बात है? महाराज! थोड़ा समय और चाहिए। पत्नी ने शिकायत की इनका बीडी के पत्तों का काम है, जगलों में फिरते रहते हैं, महीनों घर से बाहर रहते हैं, इनको बोली इसकी जरूरत क्या है? हमें ऐसा पैसा नहीं चाहिए। हमें पैसा नहीं चाहिए, हमें अपना पति चाहिए। बच्चे कहते हैं हमें अपने पिता चाहिए और ये कहते हैं अभी कमाने दो। अब बताओ इस स्तर से पैसा कमाना जरूरत है या पागलपन? मैंने उसे समझाया- भाई! तुमने इतनी हाय-हाय क्यों लगा रखी है? तुम्हारे पिता जी ने तुम्हें जो सम्पति दी थी, तुमने उसका क्या किया? उसको घटाया या बढ़ाया? महाराज! पिता जी ने जो सम्पति दी थी, मैंने उसे कई गुना बढ़ाया। मैंने कहा- मतलब तुम्हारे पिताजी की सम्पत्ति तुम्हारे काम नहीं आई? बोला- हाँ महाराज! मैं उसे भोग नहीं सका। तब मैंने उससे कहा कि जब तुम्हारे पिता की सम्पति तुम्हारे काम नहीं आई तो तय मानना तुम्हारी सम्पत्ति भी तुम्हारे बेटे के काम में नहीं आने वाली, अगर बेटे में हुनर होगा तो जो तुम छोड़ोगे, उससे कई गुना बढ़ा लेगा और अगर तुम्हारा बेटा हुनरशून्य होगा तो तुम कितना भी छोड़ जाना, वह सब मटियामेट कर देगा, सत्यानाश कर देगा। किसके लिए जी रहे हो?
     
    रुको, थमो, सोचो कितनी आवश्यकता है? आकाक्षा का कोई अन्त नहीं है। रिक्वयॉरमेण्ट (जरूरत) को पूरा किया जा सकता है, लग्जीरियस रिक्वयॉरमेण्ट (सुविधाभोगी जरूरत) भी पूरी की जा सकती है लेकिन डिजायर (इच्छा) ऐण्डलेस (अन्तहीन) है। भईया! कहीं तो ऐण्ड (अन्त) करो। रिक्वयॉरमेण्ट (जरूरत) का ऐण्ड (अन्त) है लेकिन डिजायर एण्ड (और) वाली है। इस एण्ड -एण्ड((और-और-और) के चक्कर में तुम्हारी साडी जिन्दगी बैण्ड हो गई है | सम्हालो अपने आपको | इच्छाओं का कोई अंत नहीं है |
     
    'जहा लाहो तहा लोहो लोहो लाहेन वड्ढड़।'
    जैसे-जैसे लाभ होता है वैसे-वैसे लोभ बढ़ता है। लोभ लाभ से बनता है। इच्छा को आकाश के समान अनन्त माना है। अनन्त आकाश को देखते हैं तो दूर क्षितिज पर ऐसा नजर आता है कि दो, चार, दस मील चलेंगे तो क्षितिज को छू लेंगे। वहाँ पर धरती आकाश मिलकर एक हो गए हैं। लेकिन दुनिया के किसी कोने में ऐसा छोर नहीं जहाँ धरती और आकाश मिलकर एक होते हों। हम दो-चार कदम चलते हैं; क्षितिज भी हमसे उतना ही दूर भागता रहता है। मनुष्य के मन में उत्पन्न होने वाली इच्छा इस भाव से प्रकट होती है कि इसके बाद ये हो जाएगा तो काम खत्म लेकिन वह काम होते ही मन में दूसरी इच्छा उत्पन्न हो जाती है। दूसरी के बाद तीसरी उत्पन्न हो जाती है। उनका अन्त कभी नहीं होता। भगवान महावीर ने कहा है-
     
    सुवण्णरुप्पस्स उ पव्वया भवे, सिया हु केलाससमा असंखया।
    नरस्स लुद्धस्स न तेहि किचि इच्छा हुआगाससमा अणन्तिया।
    सोने चाँदी के कैलाश की तरह असंख्यात पर्वत हो जाएँ तो भी लुब्ध मनुष्य को संतोष नहीं हो सकता क्योंकि इच्छा आकाश के समान अनन्त है।
    बन्धुओं! आवश्यकता-मूलक जीवन जिएँ, आकांक्षा-मूलक जीवन मत जियो। अपने मन में अतिरिक्त आकांक्षा को पनपने मत दीजिए, ये तुम्हारे जीवन की शान्ति को खण्डित करने वाली है। जिसके मन में आकांक्षाएँ होती हैं वह जिन्दगी भर दौड़ता रहता है। ये आकांक्षाएँ दौड़ाती हैं। एक आचार्य ने लिखा -
     
    आशा नाम मनुष्याणा काचिदाश्चर्य-श्रृंखला।
    यया बद्धाः प्रधावन्ति मुक्तास्तिष्ठन्ति पंगुवत्॥
    सामान्यत: कोई व्यक्ति किसी के बन्धन में बंध जाए तो वहीं ठहर जाता है लेकिन ये आशा-आकांक्षा का बंधन, एक ऐसा बंधन है जिससे बंधने वाला मनुष्य सारी जिन्दगी दौड़ता रहता है और उससे जो मुक्त हो जाता है वह पंगु(लंगड़े व्यक्ति) की तरह कीलित हो जाता है। तुम्हारे मन की इच्छाएँ तुम्हें दौड़ाती हैं। इच्छा कई प्रकार की होती हैं- धन की आकांक्षा, यश की आकांक्षा, काम की आकांक्षा, सत्ता की आकांक्षा -ये सारी आकांक्षाएँ मनुष्य को बर्बाद करती हैं, इन पर अंकुश होना चाहिए। धनाकांक्षा पर अंकुश, यश-आकांक्षा पर अंकुश, सत्ता की आकांक्षा पर अंकुश और काम की आकांक्षा पर अंकुश इन चार बातों को ध्यान में रखी। मुझे कितना धन चाहिए इस पर भी नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है। यदि मनुष्य यहाँ नहीं जगता तो वह मनुष्य अन्धा ही बना रहता है, वह दौड़ता ही रहता है।
     
    सम्राट सिकन्दर विश्वविजयी बनने का सपना लेकर भारत आया। सत्ताईस वर्ष की उम्र में उसने सारी दुनिया पर फतह पाने की शोहरत पाई लेकिन जब वह भारत से यूनान लौट रहा था तब अपने जीवन के अंतिम दिनों में गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। उसकी उस बीमार दशा में वैद्यों ने तरह-तरह के उपचार किए लेकिन कोई भी उपचार उस पर असर नहीं छोड़ सका तब सिकन्दर ने कहा कि मैं तुम लोगों से एक ही निवेदन करता हूँ, मेरी एक छोटी सी गुजारिश है कि किसी भी तरह मुझे मेरी माँ तक पहुँचा दो। मैं अपनी माँ से बहुत मोहब्बत करता हूँ। परिचारकों ने कहा- सम्राट! आपके शरीर की स्थिति ऐसी नहीं है कि आपको आपकी माँ तक पहुँचाया जा सके। सिकन्दर ने कहा- मुझे मेरी माँ तक नहीं ले जा सकते तो कोई बात नहीं, मेरी माँ के यहाँ आने तक मुझे बचा लो, मैं तुम्हें अपना आधा साम्राज्य दे दूँगा। परिचारकों ने कहा- सम्राट! आधा क्या आप पूरा साम्राज्य भी दे दें तो भी हम इस बात की गारंटी नहीं ले सकते कि आपकी माँ के यहाँ आने तक आपको बचाया जा सके।तब सिकन्दर ने कहा- धिक्कार है उस साम्राज्य और उस सम्पदा को सब को दाँव पर लगाने के बाद भी वह मुझे एक साँस के लिए बचाने में असमर्थ है।
     
    अब मैं चाहूँ भी तो रुक सकता नहीं दोस्त,
    कारण मंजिल ही खुद ढिंग बढ़ती आती है।
    मैं जितना पाँव जमाने की कोशिश करता हूँ,
    उतनी ही माटी और धसकती जाती है।
    मेरे अधरों में घुला हलाहल है काला,
    नयनों में नंगी मौत खड़ी मुस्काती है।
    है राम नाम ही सत्य, असत्य और सब कुछ,
    बस यही ध्वनि कानों से आ टकराती है।
    सिकन्दर ने कहा- मेरे मरने के बाद जब तुम लोग मेरा जनाजा उठाओ तो मेरे दोनों हाथ जनाजे से बाहर निकाल देना। परिचारकों ने कहा- जनाजे से हाथ निकालना तो कायदे के खिलाफ होगा। तब सिकन्दर बोला- हाँ, सिकन्दर का जनाजा उठेगा और कायदे के विरुद्ध ही उठेगा ताकि दुनिया के लोग इस बात को जान सक कि सारे कायदों का उल्लंघन करके विश्वविजेता बनने वाला सिकन्दर भी दुनिया से खाली हाथ ही जा रहा है।
     
    बन्धुओं! सिकन्दर को तो जीवन की आखिरी घड़ी में याद आ गया कि राम नाम सत्य है बाकी सब असत्य है। आप को कब याद आएगा? लोगों का राम नाम सत्य भी हो जाता तब भी "राम नाम सत्य है" याद नहीं आता। लोग मुदों को 'राम नाम सत्य है' सुनाते हैं, अरे जीते जी सुनो। अगर जीते जी 'राम नाम सत्य है' इस बात को समझ गए तो तुम्हारा राम नाम सत्य होने से पहले जीवन को सत्य को प्राप्त कर लोगे।
     
    आसक्ति खुद को खा लेगी
    आकांक्षाओं से अपने आपको बचाओ। आसक्ति से बचो। आवश्यकता के ऊपर जब आकांक्षा हावी होती है तो मनुष्य बहुत कुछ उपार्जित और संग्रहीत करने के पीछे लग जाता है। संग्रह करते-करते उसके प्रति आसक्ति इतनी प्रगाढ़ हो जाती है कि न तो वह उसका उपभोग कर पाता है और न ही उसका उपयोग कर पाता है। संग्रहीत करके रखता जाता है। ये आसक्ति बड़ी खतरनाक है। ऐसा आदमी पैसे का कीड़ा बन जाता है।
     
    सन्त कहते हैं आवश्यकता के अनुरुप संग्रह करो। अपनी आकांक्षाओं को सीमित करने की कोशिश करो और जो तुम्हारे पास संग्रहीत है उसमें आसक्त मत हो, अनासक्त भाव रखो, उसका सदुपयोग करो, उसे अच्छे कार्य में लगाने की कोशिश करो, गलत रास्ते में अपने पैसे को कभी मत लगाओ। ये दृष्टि और भावना तुम्हारे हृदय में विकसित हो गई तो जीवन में कभी गड़बड़ नहीं होगी। कबीर ने कहा -
     
    बेड़ा दीनो खेत को बेड़ा खेती खाय।
    तीन लोक संशय पड़ा काहो करे समझाय।
    हमारी संस्कृति कहती है कि तुम्हारे जीवन में धन पैसे की वैसी ही भूमिका है जैसे खेत में फसल की सुरक्षा के लिए चारों तरफ लगाई जाने वाली बाड। बाड़ लगाने से खेत की फसल सुरक्षित होती है। बाड़ केवल इस ख्याल से लगाया जाता है कि बाड़ न होने पर मवेशी चरकर उस फसल को नष्ट कर सकते हैं इसलिए बाड़ लगाओ। बाड़ बाहर होती है। बाड़ अगर खेत में प्रवेश कर जाए तो खेती कहाँ करोगे? ये धन पैसा तुम्हारे जीवन के निर्वाह के लिए साधन है, साध्य नहीं है। ये बाड़ है, उससे मूल्यवान जीवन है। जीवन के लिए पैसा है, पैसे के लिए जीवन नहीं है। आप किसके लिए जीते हो? जीवन के लिए पैसा कमाते हो या पैसे के लिए जीवन जीते हो? जीवन के लिए पैसा कमाना बुरा नहीं है, साथ जीना और पैसे के लिए जीना, दोनों में बहुत अंतर है।
    हमारे पास शरीर है, हम शरीर के लिए नहीं जीते, शरीर साथ जीते हैं, शरीर का उपयोग अपनी साधना के लिए करते हैं आप पैसे वाले हो, किसके लिए जीते हो? पैसे के लिए जीते हो या पैसे के साथ जीते हो? तय करो। पैसे के लिए जीते हो तो जीवन का दुरुपयोग कर रहे हो और यदि पैसे के साथ जीते हो तो फिर भी उपयोग हो सकता है। पैसे के साथ जीने वाला मौके पर पैसे का सदुपयोग करता है और पैसे के लिए जीने वाला सारी जिन्दगी उससे चिपककर रहता है, छूटता ही नहीं, अगाढ़ आसक्ति होती है। मरणासन्न स्थिति में भी उसके हाथ से पैसा निकलना बड़ा मुश्किल हो जाता है। ऐसे लोभी आसक्त मनुष्य कृपण-कजूस बन जाते हैं, उनके हाथ से कुछ भी निकलता नहीं।
     
    एक कजूस सेट मरणासन्न था। बार-बार उसके मुख से ब, ब, ब निकल रहा था। उसके बेटे उसकी सेवा में लगे थे। उन्होंने सोचाब, ब क्यों बोल रहे हैं, कुछ समझ में नहीं आ रहा। कहीं कुछ बक्से-अक्से की बात तो नहीं है, कहीं रखा हो तो माल-वाल मिल जाए। बेटों ने डॉक्टर से कहा- डॉक्टर साहब! कुछ ऐसा उपाय करो जिससे ये कुछ बोलें। डॉक्टर ने कहा- देखो भईया! एक इंजेक्शन तो कुछ बात बन सकती है। पचास हजार वाला इंजेक्शन देने से एक-दो वाक्य बोल सकते हैं। बेटों ने सोचा- बूढ़ा मर रहा है अगर एकाध बक्सा बता देगा तो पचास लाख की जुगाड़ हो जाएगी। ऐसा थोड़ी ताकत आई तो बोला- ब, ब बछड़ा कितनी देर से झाडू खाए जा रहा है, उसको तो बचाओ। कब्र में पाँव लटके हैं पर आसक्ति झाडू पर है। इस खतरनाक आसक्ति से बचो। मैं ऐसे कई लोगों को बढ़ाते जाते हैं। अक्सर सूदखोर न खा पाता है और न खिला पाता है।
     
    बुंदेलखण्ड की बात है। मेरा विहार चल रहा था। जंगलों में विहार था। वहाँ हर जगह गाँव मिलते हैं। सर्दी का समय, शाम को पहुँचते-पहुँचते रात हो जाए, मेरे साथ के लड़के कुछ खा नहीं पाते। जगलों में होटल वगैरह तो मिलता नहीं। तीन दिन से बेचारे एक समय खाकर काम चला रहे थे, शाम को तो भोजन मिलता ही नहीं था। चौथे दिन एक गाँव में पहुँचा, उस गाँव के प्रमुख व्यक्ति के घर उनका निमंत्रण हुआ। लड़कों ने सोचा कोई अच्छी व्यवस्था होगी। रोज तीस-पैतीस किलोमीटर चल रहे थे, ढंग से भोजन-पानी भी नहीं हो पा रहा था। मैं आहार करके आया तब उन बच्चों को भोजन का निमन्त्रण मिला। लड़के भोजन करने गए और तुरंत ही लौटकर आ गए। मैंने पूछा- तुम लोग जल्दी क्यों लौट आए? लड़कों ने कहा- कोई बात नहीं, भोजन हो गया। उनमें से एक लड़का बड़ा मजाकिया था। वह बोला- महाराज! दूसरे कपड़े लेकर नहीं गए थे नहीं तो दाल में डुबकी लगा लेते। घुटनों तक दाल में पानी था और उबली हुई लौकी उठाकर दे दी, हमने तो सोचा था कि आज सिंघई जी के घर भोजन है तो अच्छा होगा लेकिन वह तो और गया बीता निकला। मैंने पूछा- ये आदमी ब्याज-बट्टे का तो काम नहीं करता? पता चला ब्याज-बट्टे का काम करता है तो मैंने कहा- वह न खा पाएगा, न खिला पाएगा, वह पैसे का आसक्त ही बना रहेगा। है अपार वैभव लेकिन भोग नहीं करता। आसक्ति मनुष्य को भोगने बनी। आसक्त रहोगे तो धनांध बनोगे और यदि तुम्हारे अंदर अनासक्ति होगी तो उदारता आएगी।
     
    आज का शौच धर्म कहता है आसक्त नहीं, अनासक्त बनो। मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जिसके एक शहर के हर प्रमुख चौराहे पर एक मकान है। हर प्रमुख चौराहे पर मकान है और वह आदमी खुद दो कमरे के टूटे से मकान में रहता है। उस आदमी का काम है हर महीने की पहली तारीख को साइकिल लेकर किराया वसूलना और साइकिल भी कौन सी? हरक्यूलिस का पहला संस्करण। दूर से ही आवाज आ जाए, घंटी बजाने की भी जरूरत न पड़े। वह आदमी केवल पैसा इकट्ठा करने में लगा है, आज भी इस दुनिया में है।
     
    ये क्या है? ये आसक्ति है। ऐसी आसक्ति को अपने जीवन में हावी मत होने दो, उपयोग करो, उपभोग करो, गलत उपयोग मत करो, सही उपयोग करो, जितना आवश्यक है उतना खर्च करो, व्यर्थ के कायों में लगाने की वजह परमार्थ के कार्य में लगाओ तभी जीवन में उन्नति होगी। मैंने आप लोगों से पहले कहा था धनाढ्य बनना बुरा नहीं है, धनान्ध बनना बुरा है। आज का शौच धर्म तुम्हें धनाढ्यता की ओर ले जाने की बात करता है, धनान्ध बनने की प्रेरणा नहीं देता।
     
    अतृप्ति के अन्तहीन मरुस्थल
    आसक्ति पर अंकुश रखना परम आवश्यक है। आसक्ति पर अंकुश नहीं रखोगे तो अतृप्त बने रहोगे। अतृप्ति मतलब प्यास, पीड़ा आतुरता, परेशानी। जो मनुष्य गाढ़ आसक्त होता है वह अतृप्त भी होता है, उसे तसल्ली नहीं मिलती। चाहे कितना भी हो जाए, तृप्त नहीं होगा, उसके मन में कुछ न कुछ कमी लगी ही रहेगी कि ये और हो जाता तो अच्छा था। अरे भईया! ये और, और, और कब तक चलेगा? कभी-कभी इस और-और के चक्कर में आदमी को मुँह की खानी पड़ती है।
     
    एक आदमी अमेरिका गया। पैसे जुगाड़ करके अमेरिका गया था। अमेरिका में खाने की बात आई तो सोचा यहाँ अमेरिका में तो बहुत महँगाई है, क्या किया जाए? वह इण्डियन मार्केट (भारतीय बाजार) में गया। इण्डियन माकट (भारतीय बाजार) में एक रेस्टोरेंट में गया तो देखा वहाँ पर दो अलग-अलग केबिन थे। एक तरफ वेज(शाकाहारी) और एक तरफ नॉनवेज(मांसाहारी) था। वह वेज वाले केबिन में घुसा तो फिर दो कबिन मिले। उनमें से एक पर लिखा था देसी और एक पर लिखा था डालडा। उसने सोचा देसी मंहगा होगा, डालडा में घुस गया। फिर दो केबिन मिले, एक पर लिखा था ताजा, एक पर लिखा था बासी। उसने सोचा ताजा स्वभाविक रूप से मंहगा होगा, वह बासी में घुस गया। वह जब और आगे गया तो फिर दो केबिन मिले, जिनको देखकर उसकी वांछे खिल गई। एक पर लिखा था नगद और एक पर लिखा था उधार। अमेरिका में उधार मिल जाए तो इससे अच्छी बात और क्या होगी? वह उधार वाले केबिन में घुसा तो देखता है कि वह सड़क पर आ गया।
     
    बंधुओं! इस अन्तहीन लालसा से प्रेरित होने वाला मनुष्य एक दिन सड़क पर आ जाता है। अतृप्ति से बचना चाहते हो तो अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करो। ये सब तभी होगा जब आवश्यकता-मूलक जीवन हो, आकांक्षाएँ हावी न हों, आसक्ति को मंद करो, अतृप्ति से बचो। कहते हैं सारी नदियों के जल से भी सागर कभी तृप्त नहीं होता, अनगिनत शवों से शमशान कभी तृप्त नहीं होता। इसी तरह मनुष्य के मन की इच्छापूर्ति से इच्छाएँ कभी पूर्ण नहीं होतीं। इच्छाओं का नियंत्रण ही इच्छाओं की तृप्ति का साधन है। इच्छाओं का नियंत्रण कैसे करें? अपने अंदर संतोष के से धारण करें?
     
    यथार्थ को अपनी आँखों के सामने रखी। जीवन का यथार्थ क्या है इस पर हमेशा दृष्टि रखो। मैं कितना भी जोड़ लुं, एक दिन सब का सब छोड़कर चला जाऊँगा -ये जीवन का यथार्थ है। दुनिया में आज तक एक भी आदमी ऐसा हुआ जो अपने साथ अपना एक भी कण ले जा सका हो? नहीं. तुम जीवन में कितना भी जोड़ो एक दिन सब छोड़कर जाना है, इसका भरोसा है? विश्वास है? अभी मुँह से कह रहे हो, अंदर से कही। जब लेकर नहीं जाना है तो जोड़ क्यों रहे हो?
     
    भार कम : मज़ा ज्यादा
    एक बात और बोलता हूँ- आप लोगों को जब यात्रा करनी होती है तो जितना अच्छा साधन होता है आप उतना लगेज(सामान) कम रखते हो। ट्रक से जाना हो तो भरपूर लगेज, कार में जाना हो तो दो-चार अटेची और प्लेन में जाना हो तो एक बैग। जितना लगेज साथ में रखते हो उतनी परेशानी होती है। अगर पूरा ट्रक लेकर जाओ तो उसे उतरवाना भी पड़ता है, उसकी बिल्टी मिलानी पड़ती है, सब देखना पडता है। यदि आप दो-चार अटेची लेकर जाते हैं तो उसको भी उठवाना पड़ता है, कुली ढूंढ़ना पड़ता है और यदि आपके पास पड़ता है, आप आनंद से आगे बढ़ जाते हैं।
     
    बंधुओं! जीवन के इस सफर(यात्रा) में आनंद की अनुभूति तो परेशान हो जाओगे। ये जीवन की सच्चाई है जितना अपने पास भार जोडोगे जाते वक्त उतने परेशान होगे। दिमाग को निर्भार रखो,अपनी आसक्ति को मंद करो, जीवन का पथ तभी और केवल तभी प्रशस्त होगा, नहीं तो क्या भरोसा कहाँ ब्रेनस्टोक हो जाए, कोमा में चले जाओ, पैरालिसिस का अटैक हो जाए, बिस्तर पर सड़ते रहो और न जाने क्या-क्या परेशानियाँ तुम पर हावी हो जाएँ।
     
    आसक्ति-मुक्त जीवन जियो। कर्म का कब कैसा उदय आ जाए, पता नहीं। न लेकर आए हो, न लेकर जाओगे ये यथार्थ है। जीवन में जो मेरे कर्म के अनुकूल होगा वही संयोग मुझे मिलेगा, ये जीवन का यथार्थ है। मैं अपने बाल-बच्चों की बात सोर्चे तो आज मैं अपने पुण्य का खाता हूँ, मेरे बच्चे भी अपने पुण्य का खाएँगे। मैं किसके लिए परेशान हूँ? पूत सपूत तो का धन संचय। पूत कपूत तो का घन संचय। यदि ये बात तुम्हारे मन में बैठ गई तो सन्तोष स्वभावत: प्रकट होगा।
     
    दूसरी बात भावोन्मुखी दृष्टि रखो। भावोन्मुखी दृष्टि यानि जो तुम्हारे पास है बस तुम उसे देखो, जो नहीं है उसे मत देखो। सुखी होने का एक ही रास्ता है- जो है उसे पसंद करो और दुखी होने का एक ही रास्ता है जो नहीं है उसकी देख लो।
     
    तुम्हारे पास जो है यदि तुम उसे देखना शुरु कर दो तो मन में असंतोष नहीं आएगा और जो नहीं है उसे देखोगे तो मन में कभी सन्तोष नहीं आएगा। अगर तुम्हारे पास लाख हैं और तुम्हारे लिए सामने वाले का दस लाख दिखता है। दस लाख पाने की आकांक्षा में वह एक लाख का सुख भोगने की जगह नौ लाख के अभाव का दुख भोगना शुरु कर देता है। अभाव को मत देखो, भाव को देखो। जो तुम्हारे पास है उसे देखो। भावोन्मुखी दृष्टि होते ही संतोष की सृष्टि होगी और अभावोन्मुखी दृष्टि में दुःख आता है, असंतोष आता है |
     
    सन्त कहते हैं तुम सड़क पर नंगे पाव चल रहे हो और कोई दूसरा व्यक्ति जूता पहनकर गुजर रहा है तो सामने वाले के जूतों को देखकर अपने मन में मलिनता मत लाओ, उस व्यक्ति को देखी जो बिना पाँव के चल रहा है और अपने आपको भाग्यशाली मानो कि मेरे पास जूते नहीं है तो क्या, मेरे पास पाँव तो हैं, मेरे पाँव अच्छे हैं। लेकिन मनुष्य की स्थिति ये है कि उसे अपने पाँवों का मूल्य और महत्व समझ में नहीं आता वह हमेशा दूसरे के जूतों पर नजर गडाये रखता है। ध्यान रखना। जूतों पर नजर गड़ाये रखने वाले जूते ही खाएँगे। दुखों के जूते खा रहे हो, अपनी अज्ञानता के कारण खा रहे हो।
     
    सम्हलो, यहीं थमकर चिंतन करने की आवश्यकता है, विचार करने की आवश्यकता है कि मेरे जीवन का लक्ष्य आखिर है क्या? जो मेरे पास है वह सफिसिएण्ट(पर्याप्त) है। पर्याप्त की तो कोई परिभाषा है ही नहीं। अगर आपकी दृष्टि भावोन्मुखी बनेगी तो मन कभी इधर-उधर नहीं डगमगाएगा और यदि भावोन्मुखी दृष्टि नहीं होगी तो जीवन कभी सही रास्ते पर नहीं आएगा। लेकिन क्या करें? आज के लोग बस अभाव को देख-देखकर दुखी होते हैं। एक बार कोयल के बच्चे ने मोर को देखा और मचल उठा। उसने अपनी माँ से कहा- माँ मेरे ये काले-काले पंख बड़े खराब लगते हैं, मुझे मोर जैसे सुन्दर-सुन्दर पंख चाहिए। कोयल ने अपने बेटे से कहा- बेटा! अपने पंख अच्छे हैं। उसने अपनी माँ से कहानहीं माँ! मुझे तो मोर जैसे ही पंख चाहिए। बच्चा जो मचला सो मचला। बच्चे तो बच्चे होते हैं, जब एक बार मचलते हैं तो मचलते ही जाते हैं, उन्हें माँ-बाप की मजबूरी का कोई आभास ही नहीं होता। बच्चे के मचल जाने पर कोयल मोर के पास गई और मोर से बोली- मोर भाई! ये तुम्हारे पंख बहुत सुंदर हैं, मेरा बच्चा तुम्हारे पंख के लिए मचल रहा है यदि तुम अपना एक पंख दे दोगे तो बड़ी कृपा होगी, मेरे बच्चे का मन रह जाएगा।
     
    कोयल की प्रार्थना सुनकर मोर ने अपने पंख झड़ा दिए। कोयल ने उनमें से एक पंख उठाया और अपने बच्चे के पंखों में लगा दिया। मोर का पंख पाकर कोयल का बच्चा हर्ष से कुकने लगा। जैसे ही कोयल की बच्चे ने मधुर कंक लगाई तो पास बैठा मोर का बच्चा रोने लगा, उसने अपनी माँ से कहा- माँ! मेरी आवाज बड़ी भौड़ी है, मुझे कोयल जैसी मधुर आवाज चाहिए। 
     
    बंधुओं! क्या कहें? कोयल का बच्चा मोर के पंख के पीछे परेशान है और मोर का बच्चा कोयल की आवाज के पीछे परेशान है। जब तक इधर-उधर देखते रहोगे, तुम्हारे जीवन की यही दशा होगी। रवीन्द्रनाथ टेगौर की ये पंक्तियाँ बहुत सार्थक हैं
     
    छोड़कर नि:श्वास कहता है नदी का यह किनारा
    उस पार ही क्यों बह रहा है जगत भर का हर्ष सारा।
    किन्तु लम्बी श्वास लेकर वह किनारा कह रहा है
    हाय ये हर एक सुख उस पार ही क्यों बह रहा है।
    इस पार वाले को उस पार अच्छा लगता है और उस पार वाले को इस पार अच्छा लगता है इसलिए दोनों मझधार में हैं। जो तुम्हारे पास है उसे देखने की कोशिश करो, तुम्हारे जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा।
     
    नम्बर तीन संयमी प्रवृत्ति अपनाओ, जीवन में संयम रखो, संयमः से ही संतोष आता है। जीवन में संयम आना चाहिए, संयम संतोष का जन्मदाता है। संयम को अपनाओगे; अपने आप सब कुछ ठीक हो जाएगा। चौथी बात आप अपने जीवन को स्वाभाविक तरीके से जीना शुरु करें, कृत्रितमता को न अपनाएँ। स्वाभाविकता और कृत्रिमता में क्या अन्तर है? जब व्यक्ति स्वाभाविक जीवन जीता है तो उसकी दृष्टि अपनी आवश्यकता पर होती है और जब उसके जीवन में कृत्रिमता आती है तो दूसरों को देखकर चलना शुरु कर देता है, उसके हिसाब से अपना जीवन जीना शुरु कर देता है। कपड़ा चाहिए, ये आपकी एक आवश्यकता है। स्वाभाविक जीवन जीने वाला कोई भी कपड़ा पहन लेगा लेकिन जब कृत्रिमता उस पर हावी का कपड़ा चाहिए। मेरी आवश्यकता है ये स्वाभाविक है लेकिन जब उसमें कृत्रिमता आती है तो अमुक चीज चाहिए। ये कन्ज्यूमरिज्म (उपभोक्तावाद) का युग है, इसमें मनुष्य के जीवन की स्वाभाविकता नष्ट हो रही है, कृत्रिमता हावी हो रही है। इसी कृत्रिमता के हावी होने के कारण मनुष्य का आंतरिक जीवन तहस-नहस हो रहा है। स्वाभाविकता को अपनाइए।
  24. Vidyasagar.Guru
    💲®
                 *समाधि मरण सूचना*
    *🦚परम पूज्यनीय आचार्य भगवन श्री विद्यासागर🦚* जी महामुनिराज के संघस्थ *ब्र. सुनील भैया अनंतपुरा इंदौर के परम् पूज्यनीय पिताजी श्री शिखर चंद नायक जी ने १:४५ पर सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र नेमावर में देह त्याग दिया है पूज्य आचार्य श्री जी अपने मुखारविंद से कल दो बार सम्बोधन किया और चारों प्रकार के आहार का त्याग किया ने आज प्रातः ही णमोकार का उच्चारण सुनते सुनते देह को त्याग दिया*
    *२७ सितंबर २०१९ को प्रातः ७:३० बजे सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र नेमावर में उठावनी होगी* 
    *ॐ शान्ति*
    *✏सौमिल जैन ललितपुर*
    *📲9793633522*
    💲®
     
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    24 se 19
     
    संघस्थ ब्र. सुनील भैया अनंतपुरा इंदौर के पिताजी श्री शिखर चंद जी नायक की  सल्लेखना प्रारम्भ नेमावर में
     
     
    सल्लेखना प्रारम्भ नेमावर में
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    परम पूज्यनीय आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महामुनिराज के संघस्थ ब्र. सुनील भैया अनंतपुरा इंदौर के पिताजी श्री शिखर चंद जी नायक की समाधि सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र नेमावर में प्रारंभ हुई आज आचार्य भगवन ने अपने पवित्र मुख से ओम ओम ओम ओम का उच्चारण किया
     










  25. Vidyasagar.Guru
    *⛳कल  दिनाँक 5/06/2022 रविवार को मुंबई में अंतर यात्री महापुरुष आचार्य श्री पर आधारित एक फिल्म का ट्रेलर एवम गीत-संगीत का विमोचन(लॉन्च) आदरणीय महावीर जी अष्टगे (आचार्य श्री के ग्रहस्थ जीवन के भाई), प्रभात जी ,इंदु भाभी जी ,किरीट भाई दोशी गोरेगॉव सभी के हस्ते  उनकी गरिमामयी उपस्थिति में किया गया।
    ⛳ पिक्चर बेहद ही खास पिक्चर संत शिरोमणि आचार्य श्री की जीवनी पर आधारित है पूरी फिल्म की कास्टिंग भी वहां पर उपस्थित थी,आचार्य श्री के जीवन पर आधारित यह पिक्चर 26 जून को प्रदर्शित की जा रही है..... फिल्म के प्रोडक्शन में वंडर सीमेंट का भी सहयोग मिला है  डायरेक्टर अनिल कुलचानिया ने बताया कि पिक्चर का दूसरा पार्ट भी बनेगा।
     
     




     
     
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