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Blog Entries posted by राजेश जैन भिलाई
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_21 फरवरी को इंदौर में *अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस* पर *परमपूज्य आचार्यश्री ससंघ के सानिध्य* में विशेष आयोजन हुआ इस आयोजन में *अनेकों विख्यात शिक्षाविद, हजारों की संख्या में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के तीन सौ से अधिक विद्यालय के जैन अजैन संस्थापको, प्राचायो, विशिष्ट शिक्षकों* ने भाग लिया_ _इस अवसर पर *आचार्यश्री ने कहा कि हमारी मातृभाषा हमारी सम्वेदनाओं का माध्यम* है।_ _*आचार्यश्री ने अंग्रेजी माध्यम का भ्रमजाल नामक पुस्तक* का कई बार उल्लेख किया एवम इसे *सभी जनों को पढ़ने का संकेत* भी किया।_ _*प्रवचन के 19 वे मिनट* के बाद सुनें कि *चीन, जापान, जर्मनी, फ्रांस, इजरायल ने बिना अंग्रेजी का स्पर्श किये अपनी मातृभाषा में पूरे विश्व मे अपना ध्वज* लहराया।_ _इसी *प्रवचन 32 वे मिनट के बाद आचार्यश्री* ने बताया कि सौ डेढ़ सौ वर्ष पूर्व *भारतीय भाषा मे विज्ञान विषय पर शोध एवम अनुसन्धान हुआ था जिसमे 500 विमानों को तैयार किये जाने पर अनुसन्धान किया गया था इस शोध एवं अनुसन्धान की विशेषता थी कि प्रत्येक विमान को तीस से भी अधिक प्रकार से बनाया जा सकता है।*_ _प्रवचन के ठीक एक घण्टे बाद *मातृभाषा हिंदी को अपनाने वाले सी ए अध्ययन संस्थान के मुखिया का उल्लेख* किया जिसके *मात्र हिंदी में अध्ययन करवाने से उस संस्थान में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की एकाएक संख्या* बढ़ गई।_ _मैंने *इतने वर्षों बाद पहली बार देखा कि आचार्यश्री ने शिक्षाविदों, प्राचार्यो, शिक्षण संस्थान के संस्थापको संचालकों की जिज्ञासा का सारगर्भित समाधान* दिया।_ _मेरा *निजी आग्रह* है कि अपने व्यस्त समय मे से कुछ *समय निकाल* कर *आचार्यश्री के मातृभाषा पर ऐतिहासिक हृदयस्पर्शी प्रवचन अवश्य सुनें* न केवल सुने बल्कि सभी को सुनने का आग्रह भी इस आशा से करें कि हमारे एक छोटे से प्रयास से यदि *मातृभाषा को उच्च स्थान* मिलता है तो यह *हमारे लिये गर्व की बात* होगी_ _आपका अपना_ *_• राजेश जैन भिलाई •_* 21 फरवरी 2020 *अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस* आचार्यश्री विद्यासागरजी प्रवचन एवं कार्यक्रम (इन्दौर) आचार्य श्री विद्यासागर मोबाइल एप्प डाउनलोड करें | https://play.google.com/store/apps/details?id=com.app.vidyasagar -
कठिन परीक्षा और मोक्षपथ के कठोर परीक्षक...…..
कड़कड़ाती, कम्पकपाती, सुई सी चुभोने वाली तुषार सी बर्फीली हवाओ की सहेली महारानी "ठंड" महादेवी जो हिमालय से उतर कर कुछ गिने चुने दिनो के लिए अपने मायके उत्तर भारत में आई है आरम्भ के कुछ दिनों में तो बड़ी संस्कारी आज्ञाकारी नई बहु सी लगती है लेकिन कुछ ही दिनों में अपने तेवर दिखाते दुर्दान्त आतंकवादी सी लगने लगती है यहां तक इसके रौब ख़ौफ़ देख बेचारे सूरजदादा भी से डरे सहमे से एक कोने में दुबके रहते है।
कल जब आधी रात में मेरी नींद खुली तो.…. दोहरे तिहरे कम्बलों की परतों से झांकते हुए.... डरते डरते मैंने ठंड से कहा हे माते! तू तो महीने भर से देश मे बढ़ती, महंगाई, आतंकवाद भ्रष्टाचार सी पसर कर बैठ ही गई।
तूने कभी विचार किया कि इस समय यथाजात दिगम्बराचार्य,आचार्यश्री लकड़ी के निष्ठुर पाटे पर अपनी आत्मा में लीन साधनारत विराजित है और तू अनुशासनहीन गुरुभक्त की तरह बिना अनुमति लिए बिना कपाट खटखटाए, खिड़की दरवाजो के छिद्रों से चोरों की तरह कक्ष में घुस जाती हो ऐसा पाप क्यो करती हो तुम उनके पास जाती ही क्यो??????.......।
मुझ पर तेज हवा के तीर फेकते हुये ठंड ने आंखे तरेरते हुए कहा हे! "कम बल " वाले "कंबल " के दास अरे बावले ! तुम क्या जानो....मैं तो सिर्फ उनके दुर्लभ दिव्य दर्शन करने आती हूँ..... मेरी परदादी परनानी बताया करती थी कि चौथे काल मे दिगम्बर मुनिराज कैसी तपस्या करते थे ऐसे चौथेकाल के ऋषिराज की तरह साक्षात आचर्यश्री के दिव्य दर्शन कर आंखे, मन, हृदय अतृप्त ही रहता है.... मैं तो ठगी ठगी सी वहीं ठहर जाती हूँ उनके दिव्य अतिशयकारी आभामंडल के समीप पहुच कर मेरा जीवन धन्य हो जाता है उनकी साधना तपस्या, कठोर परीक्षक की कठिन परीक्षा देख मैं खुद कांप जाती हूं।
और सुन! जब आचार्यश्री आत्मगुफ़ा में तपस्या साधना करने वाले आचार्यश्रेष्ठ जब बाहर आते है तब मुझ पर मोहक मुस्कानों से युक्त आशीषों की ऐसी वर्षा कर देते है मानो मैं उनके चरणों की शिष्या होऊ.....।
मैं तो उनके पावन पुनीत चरणों मे लज्जित सी सिर झुकाए बैठी रहती हूँ ऐसे दुर्लभ गुरुचरणों से वापस दूर जाने का मन ही नही करता भला कुछ दिनों के लिए पीहर आई बेटी अपने जगतपिता से इतनी जल्दी दूर कैसे जा सकती है।
और सुन तुम जैसे डरपोक भक्तो को डरा कर मुझे बड़ा ही आनन्द आता है।
भयानक सी ठंड भरी आधी रात में मुझे डराती कम्पाती वह देवी कब वापस लौट गई पता ही न चला सुबह सुबह बंद आंख नाक गले ने छीकते हुए शिकायत की और कहा ..... मालक इन ठंड देवी से पंगा आप लेते हो भुगतना हमे पड़ता है....
भावाभिव्यक्ति
◆ राजेश जैन भिलाई ◆
विनम्र अनुरोध :
कभी मध्यरात्रि में नींद खुल जाए तो हम आप ऐसे चरणों को साक्षात मान नमोस्तु अवश्य करें🙏🏻
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कुछ "बड़ा " होने की सुगबुगाहट या फिर अटकलें.......
विगत दिनों हमारे यहां पुलवामा में हुई अमानवीय आतंकी घटना की प्रतिक्रिया की आशंकाओं को देखते हुए विश्व की नज़र भारत की ओर लगी है शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका के मुखिया ट्रम्प भी कह चुके कि कुछ बड़ा होने जा रहा है।
इन दिनों सुख चैन सरिता तट पर अवस्थित अतिशयक्षेत्र बीना बारह में श्रमणोत्तम आचार्यश्री ससंघ विराजित है कुछ दिनों से इसी दिशा में पूज्यवर मुनिराजों सहित वन्दनीया आर्यिका संघो के सतत अनवरत सरितावत प्रवाहमान विहार आगामी दिनों में इस अतिशय क्षेत्र में महाकुम्भ का संकेत दे रहे है।
देश विदेशों के जैन समाज के बुजुर्गों से लेकर किशोरों तक और पढ़ी लिखी उच्चशिक्षित बिटिया लोगो से लेकर अनपढ़ या कम पढ़ी लिखी लेकिन अनुभवी माँ लोगो मे सुबह सन्ध्या एक ही चर्चा है कि आगामी इस महाकुम्भ में कुछ बड़ा होने जा रहा है।
एक ओर बहुसंख्यक वर्ग का मानना है कि बरसों से प्रतीक्षित दीक्षा के प्रत्याशियों को शुभ सूचना मिल सकती है और इस गुरुकुल और विशाल आकार ले सकता है।
वही दूसरी ओर कुछ लोग दबी जुबान से कहते पाए जा रहे है कि इन दिनों आचार्य प्रवर क्षमा, संयम, तपस्या के अस्त्र शस्त्र के संग बचे हुए कर्म सैन्यबल को नेस्तनाबूद करने की ठान चुके है सो सम्भव है कि कुछ उपसंघो को निर्यापक जिम्मेदारी मिल जाये।
अब ये तो बाते है और बाते तो बातों ही बातों में बनती रहती है इन बातों का क्या ठिकाना
इन ज्ञानविद्या के विशाल प्रशांत महासिंधु की थाह कोई जान पाया है
सुनते है कि इन दिनों अमरकंटक की मुडेरों में कौओं की टोलियों की कांव कांव बढ़ने लगी है सो छतीसगढ़ भी इसी आशा में हर्षित है कि हमारे यहां भी अच्छे दिन...... आ सकते है।
◆ राजेश जैन भिलाई ◆
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वज्र पाषाण हृदयी, निर्मोही, निर्दयी, निष्ठुर, निर्मम, आचार्यश्री......
प्राणिमात्र के हितंकर, दयावन्त, श्रमणेश्वर,साक्षात समयसार, मूलाचार के प्रतिबिम्ब समस्त चर ,अचरो के प्रति आपकी दया, करुणा, हम मानवों में ही नही स्वर्गों के इंद्रो देवताओं में भी जगजाहिर है आप अनुकम्पा के विशाल महासागर अथवा चारित्र के उत्तुंग हिमालय जाने जाते हो ऐसे में उपरोक्त शीर्षक में आपके प्रति कठोर सम्बोधन लिखते समय मेरी उंगलियां कांप रही है लेकिन मैं क्या करूं जो है, सो है...... मेरे आपके हम सबके सामने है।
भला कभी ऐसा होता है क्या..... जो पूज्यवर, यतिवर, गुरुदेव अपने दिव्यदेह के प्रति कर रहे है......
अक्सर कहा जाता है कि जो अपने प्रति सहयोग करे उसका ध्यान रखना चाहिये अपने अनुचर, सहयोगी, उपकारी पर भी करुणा करना चाहिए लेकिन पिछले इक्यावन वर्षो से आचार्यश्री अपनी दिव्यदेह के प्रति ज़रा से भी करुणावान, दयालु नही दिखते चाहे ग्रीष्मकाल में सूरजदादा 48 डिग्री तापमान पर भी कीर्तिमान गढ़ने ततपर हो वह आपके सामने पानी पानी हो जाता है | लेकिन आप अपने करपात्र में दूध, फल, मेवा तो बड़ी दूर की बात, कुछ ही अंजुली जल और कुछ गिने नीरस ग्रास का आहार उदर तल तक तो दूर कंठ से उदर तक ही नही पहुचता और आपके आहार सम्पन्न हो जाते है।
शीतकालीन तुषारी ठंड में भी आप अपनी दिव्यदेह को 3 से चार घण्टे विश्राम करने निष्ठुर पाटा ही देते हो। हम सभी पथरीले, हठीले, कटीले तपते विहार पथ में आपके कोमल कोमल लाल लाल, मृदुल पावन चरणयुगलो को छालों युक्त, रक्तरंजित देख चुके है और आप ऐसे निर्दयी है कि उनकी ओर नज़र तक नही उठाते और आज हम सबने देख और सुन भी लिया कि पिछले दिनों से आपकी दिव्यदेह जर्जर हो चुकी है सप्ताह हो चुके दिव्यदेह के अस्वस्थ हुए और आपके निराहार के लेकिन आप तो ठहरे निर्मोही, अनियतविहारी, वीतरागी महासन्त आपको भला कोई रोक पाया है और वह बेचारा रोकने का विचार ही कैसे कर सकता है...... क्योंकि इन दिव्यदेहधारी ने अपनी दिव्यदेह के माता पिता भैया बहनों की नही मानी तो फिर हम दूसरों की क्या बिसात....
हमने माना कि चौथेकाल में ऐसे ही श्रमण होते थे उस काल मे वज्र सहनन क्षमता भी होती थी लेकिन इस महा पंचमकाल में जर्जर, वार्धक्य, दिव्यदेह के संग आपकी यह साधना, तपस्या सन्देश दे रही है कि कुछ ही भवों में दिव्यदेह धारी आचार्यश्री तीर्थंकर बन समोशरण में विराजित होंगे ऐसे कालजयी महासन्त के पावन चरणयुगलो में हृदय, आत्मा की असीम गहराइयों से कोटि कोटि नमोस्तु....... हे गुरुदेव! मेरी भी सुबुद्धि जागे काश..... मैं भी आपके समोशरण बैठ अपना भी कल्याण कर सकू..... क्षमाभावी एक नन्हा सा गुरुचरण भक्त.....
राजेश जैन भिलाई
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यूं तो जब जब आचार्यश्री के पावन चरण चलायमान होते है अधिकांश तीर्थो, समाजों, गुरुभक्तों की धड़कनें बढ़ जाती है
अमरकंटक में जन्मी मेकल कन्या कही जाने वाली नर्मदा रेवा नदी की अविरल धारा और गुरुचरणों की दिशायें सदा एक सी रही है।
फिर चाहे अमरकंटक हो जबलपुर या नर्मदा का नाभिकेंद्र नेमावर ही क्यों न हो
वही आचार्यश्रेष्ठ के सानिध्य में बहुत कुछ पाने वाले सागर का भी अपना गौरवशाली इतिहास है
सन 1980 के पूर्वतक तक हम जैसे साधारण श्रावकों की छोड़ो बड़े बड़े पण्डित विद्वान भी ग्रँथराज षट खण्डागम के ग्रन्थ धवलाजी के मात्र दर्शन कर अतृप्त रहते थे
लेकिन जब 1980 में अक्षय तृतीया से प्रारंभ होकर श्रुत पंचमी तक सागर के मोराजी में षट खण्डागम धवला जी की वाचना में देश के मूर्धन्य विद्वान पण्डित जन अपने को पुण्यशाली मान उपस्थित रहते थे जन समुदाय के समक्ष जब जैनागम के इन ग्रन्थों का वाचन होता तब सभी आत्मविभोर हो कर झूम उठते
इन युवाचार्य की निर्दोष, त्याग, तपस्या, साधना देख सागर एवम आस पास के युवा युवतियां ऐसे रीझे कि सब कुछ छोड़ इनके संग हो लिए
और दर्जनों मुनिराज अर्धशतक आर्यिका माताएं आचार्यश्री के संघ में सुशोभित है
संत शिरोमणि आचार्य गुरुदेव श्री विद्यासागर महाराज का बिहार इन दिनों रेहटी, सलकनपुर के पास चल रहा है रविवार को सागर के सैकड़ों श्रद्धालुओं ने गुरुदेव के दर्शन किए और श्रीफल समर्पित किया।
भाग्योदय और ऐतिहासिक सर्वतोभद्र जिनालय सागर के लिये आचार्यश्री के अतिशयकारी,आशीर्वाद की अनमोल भेंट है
जहां एक ओर पिछले 22 वर्षों से चातुर्मास की आस लगाए प्यासा सागर चातक वत शरदपूर्णिमा के चंदा के सानिध्य पाने लालायित है
आचार्यश्री के चरणों की आहट से इनदिनों सागर के गुरु भक्तों के गुरुचरणों के सानिध्य के भावों के ज्वार का उफान चरम पर है।
लेकिन नर्मदा तट पर अवस्थित तिलवारा जबलपुर के नए नवेले पूर्णायु को लगता है कि पूर्णायु इतिहास के पन्नो पर हजारों वर्ष तक चिरायु बने रहने के लिये आचार्यश्री के चातुर्मास छत्रछाया जरूर मिलेगी
वैसे इन अनियत विहारी श्रमणेश्वर के चलायमान चरणों की थाप का कोई आंकलन नही कर सकता
बड़े बाबा के नेटवर्क से सीधे जुड़े इन छोटे बाबा के चरण किस ओर बढ़ जाए कहा नही जा सकता...
भाव शब्द प्रस्तुति
●राजेश जैन भिलाई ●
*क्या कहता हैं आपका आनुमान - कहाँ होगा संतशिरोमणि का चातुर्मास*
सुन लो सुन लो गुरुवर, कर रहे भक्त यही पुकार, इस बार हमारे नगर में हु गुरु आपका चातुर्मास |
अपनी भक्तिमय भावना कमेंट में जरूर प्रकट करें ( लिंक में लिखें )
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