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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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कठिन परीक्षा और मोक्षपथ के कठोर परीक्षक...…..


राजेश जैन भिलाई

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कठिन परीक्षा और मोक्षपथ  के कठोर परीक्षक...…..

 

कड़कड़ाती, कम्पकपाती, सुई सी चुभोने वाली तुषार सी बर्फीली हवाओ की सहेली   महारानी "ठंड"  महादेवी  जो हिमालय से उतर कर कुछ गिने चुने दिनो के लिए अपने मायके उत्तर भारत में आई  है आरम्भ के कुछ दिनों  में तो  बड़ी संस्कारी आज्ञाकारी नई बहु सी लगती है लेकिन कुछ ही दिनों में अपने तेवर दिखाते  दुर्दान्त आतंकवादी सी लगने लगती है यहां तक इसके रौब ख़ौफ़ देख बेचारे सूरजदादा भी से डरे सहमे से एक कोने में दुबके रहते है।
कल जब आधी रात में मेरी नींद खुली तो.…. दोहरे तिहरे कम्बलों की परतों से झांकते हुए.... डरते डरते मैंने ठंड से कहा हे माते! तू तो महीने भर से देश मे  बढ़ती, महंगाई, आतंकवाद भ्रष्टाचार सी पसर कर बैठ ही गई।
तूने कभी विचार किया कि इस समय यथाजात  दिगम्बराचार्य,आचार्यश्री लकड़ी के निष्ठुर पाटे पर अपनी आत्मा में लीन साधनारत विराजित है  और तू  अनुशासनहीन  गुरुभक्त की तरह बिना अनुमति लिए  बिना  कपाट खटखटाए, खिड़की दरवाजो  के छिद्रों से चोरों की तरह  कक्ष में घुस जाती हो ऐसा पाप क्यो करती हो  तुम उनके पास जाती ही क्यो??????.......।
मुझ पर तेज हवा के तीर फेकते  हुये ठंड ने  आंखे तरेरते हुए कहा हे!  "कम बल "  वाले "कंबल " के दास  अरे बावले ! तुम क्या जानो....मैं तो सिर्फ उनके दुर्लभ दिव्य दर्शन करने आती हूँ..... मेरी परदादी परनानी बताया करती थी कि चौथे काल मे दिगम्बर मुनिराज कैसी तपस्या करते थे ऐसे चौथेकाल के ऋषिराज की तरह साक्षात आचर्यश्री के दिव्य दर्शन कर आंखे, मन, हृदय अतृप्त ही रहता है.... मैं तो ठगी ठगी सी वहीं ठहर  जाती हूँ उनके दिव्य अतिशयकारी आभामंडल  के समीप पहुच कर मेरा जीवन  धन्य हो जाता है उनकी साधना तपस्या, कठोर परीक्षक की कठिन परीक्षा देख मैं खुद कांप जाती हूं।
और सुन! जब आचार्यश्री आत्मगुफ़ा में तपस्या साधना करने वाले आचार्यश्रेष्ठ जब बाहर आते है तब मुझ पर मोहक मुस्कानों से युक्त आशीषों की ऐसी  वर्षा कर देते है मानो मैं उनके चरणों की शिष्या होऊ.....।
मैं तो उनके पावन पुनीत चरणों मे लज्जित सी सिर झुकाए बैठी रहती हूँ  ऐसे दुर्लभ गुरुचरणों से वापस दूर जाने का मन ही नही करता भला कुछ दिनों के लिए पीहर आई  बेटी अपने जगतपिता से इतनी जल्दी दूर कैसे जा  सकती है।
और सुन तुम जैसे डरपोक भक्तो को डरा कर मुझे बड़ा ही आनन्द आता है।
भयानक सी ठंड भरी आधी रात में मुझे डराती कम्पाती  वह देवी कब वापस लौट गई पता ही  न चला सुबह सुबह बंद आंख नाक गले ने छीकते हुए शिकायत की और कहा ..... मालक इन ठंड देवी से पंगा आप लेते हो भुगतना हमे पड़ता है....

भावाभिव्यक्ति
◆ राजेश जैन भिलाई ◆

विनम्र अनुरोध :

कभी मध्यरात्रि में नींद खुल जाए तो हम आप ऐसे चरणों को साक्षात मान नमोस्तु अवश्य करें🙏🏻
🌈🌈🌈🏳‍🌈🏳‍🌈🌈🌈🌈🌈

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