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Blog Comments posted by Sakshi Jain Soni
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जय जिनेन्द्र
बिल्कुल सही है हमको आध्यात्मिक ग्रन्थों का स्वाध्याय करना चाहिए । तथा पूर्वाचार्यों कि जीवनी भी पढ़नी चाहिए ।
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सुई निश्चय - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू १४३
In आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा हायकू छन्द और आपकी समझ
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इस haiku के माध्यम से आचार्य श्री जी हमको यह समझाना चाहते हैं की जिस प्रकार से सुई निश्चय है, कैंची व्यवहार है और दर्जी प्रमाण है ठीक इसी प्रकार से निश्चय सम्यक दर्शन है , व्यवहार सम्यक ज्ञान है और प्रमाण सम्यक चारित्र है । इन तीनों की एकता का नाम ही मोक्ष मार्ग है ।
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रोगी की नहीं - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ५३
In आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा हायकू छन्द और आपकी समझ
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इस haiku के माध्यम से आचार्य श्री जी हमको यह समझाना चाहते हैं की जिस प्रकार से रोग की अर्थात बीमारी की चिकित्सा की जाती है रोगी की नहीं यदि चिकित्सक रोग को छोड़कर रोगी की चिकित्सा करेगा तो रोगी को रोग के दर्द को भोगना पड़ेगा ठीक इसी प्रकार से हमको हमारे मन अर्थात विचारों की शुद्धि करनी चाहिए ना कि पुदगल की यदि हमारे विचार शुद्ध हो जाएंगे तो हमारा शरीर स्वतः ही ठीक हो जाएगा ।
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मान शत्रु है - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ४२
In आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा हायकू छन्द और आपकी समझ
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इस haiku के माध्यम से आचार्य श्री जी हमको यह समझाना चाहते है की हमको कभी भी अपने आप पर अहंकार नहीं करना चाहिए तथा कभी भी किसी भी प्राणी को अपने से कमजोर नहीं समझना चाहिए । प्रत्येक प्राणी के अंदर अपार योग्यता समायी हुई है अर्थात प्रत्येक व्यक्ति अपनी कमजोरी को अपना पुरुषार्थ बना ले तो वह निश्चित ही अपने लक्ष्य तक पहुंचता ही है। तथा अहंकार ही हमारा शत्रु है हमे उसे त्यागना चाहिए ।
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योग साधन - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ३४
In आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा हायकू छन्द और आपकी समझ
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इस haiku के माध्यम से आचार्य श्री जी हम सभी भ्टके हुए जीवो को यह मार्ग दर्शन देना चाह रहे है की योग तो साधन है अर्थात रतनात्रय ,उपयोग शुद्धि है अर्थात इस जीव का लक्षण जानना और देखना तथा साध्य ही सिद्ध हो सकता है अर्थात साधक बने बिना यह जीव सिद्ध नहीं बन सकता है। मोक्ष मार्ग में चलने वाले जीव को सर्व प्रथम योग अर्थात रतनात्राय को धारण करना होगा तत पश्चात अपने उपयोग को भेद विज्ञान के माध्यम से जानकर अपने कर्मो की शुद्धि करनी होगी । तभी यह जीव जिसने योग को धारण किया है वहीं आगे चल कर सिद्ध बनेगा।
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प्रदर्शन तो - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ३३
In आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा हायकू छन्द और आपकी समझ
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इस haiku के माध्यम से आचार्य श्री जी हमको यह समझाना चाहते है कि बाहरी प्रदर्शन तो उथला है अर्थात दिखावा है हमको इस बाहरी दिखावे से बाहर निकल कर अपने आंतरिक आत्म रूपी दर्शन की गहराई में जाना चाहिए ।
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संघर्ष में भी - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ३२
In आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा हायकू छन्द और आपकी समझ
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इस haiku के माध्यम से आचार्य श्री जी हमको यह समझाना चाहते है कि जिस प्रकार से चन्दन को जलाने पर भी उसकी सुग्नधता चारो और महकती है ठीक इसी प्रकार से जो व्यक्ति अपने जीवन में पुरुषार्थ रूपी संघर्ष करता है । उस व्यक्ति का जीवन चन्दन की भांति महकता है। अर्थात संघर्ष किए बिना हम अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकते है।
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डूबना ध्यान - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ३०
In आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा हायकू छन्द और आपकी समझ
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इस haiku में आचार्य श्री जी ने स्वाध्याय को तेरने की उपमा दी है और ध्यान को डूबने की उपमा दी है।इस haiku के माध्यम से आचार्य श्री जी हमको यह समझाना चाहते है कि है जीव ! स्वाध्याय के माध्यम से तूने तेरना तो सीख ही लिया है । अब तू अपने आत्म स्वभाव में डूबने का प्रयास कर क्योंकि आत्मध्यान में डूबे बिना तू इस संसार के परिभ्रमण से छूट नहीं सकता है।
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बाहर टेड़ा - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ४८६
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इस haiku के माध्यम से आचार्य श्री जी हमको यह समझाना चाहते है कि कब तक बाहरी दुनिया में ही घूमते रहोगे । चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद में जाकर के तुमको यह मनुष्य पर्याय मिली है । अब तो इस बाहरी दुनिया के चक्कर लगाना छोड़ो और अपने आत्मा के स्वभाव में चक्कर लगाओ। तथा भीतर जाए बिना मुक्ति सम्भव नहीं है। अर्थात भीतर जाने का प्रयास करो।
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जुड़ो ना जोड़ो - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू १
In आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा हायकू छन्द और आपकी समझ
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इस haiku के माध्यम से आचार्य श्री जी हमको यह समझाना चाहते है कि हमको पुदगल पदार्थो के प्रति अपने राग द्वेष को छोड़ना है और अपने आत्म स्वभाव से जुड़ना है । और इस प्रकार जुड़ना है जब तक हमको मुक्ति ना मिले तब तक हम अपने आत्म स्वभाव से जुड़े रहे ताकि हमको हमारे जन्म - मरण से मुक्ति मिल सके।
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तेरी दो आँखें - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ७
In आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा हायकू छन्द और आपकी समझ
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इस haiku के माध्यम से आचार्य श्री जी हमे ये समझाना चाहते है की हमे कोई सा भी कार्य बहुत अच्छी तरह से सोच समझ कर के करना चाहिए क्योंकि हमारी तो दो आंखें है और हमको हजारों आंखें देखती है। हमें हर कार्य सतर्क होकर के करने चाहिए ।
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छोटी दुनिया - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ४
In आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा हायकू छन्द और आपकी समझ
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गुरुजी के चरणों में शत शत नमन। इस haiku Ka अर्थ है ये दुनिया बहुत छोटी है इस काया में सुख को खोजना नरक के समान है तथा सुख तो मात्र मोक्ष में ही है । काया में तो दुख ही दुख है ।
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सहजता औ - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ४६६
In आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा हायकू छन्द और आपकी समझ
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जय जिनेन्द्र ये सभी आचार्य श्री जी के द्वारा बताए गए haiku बहुत ही प्रेरणादायक है। एक एक हाइकु पर हम लोग चिंतन मनन कर सकते है। इन का हम मेडिटेशन भी कर सकते है ।
संयम स्वर्ण महोत्सव प्रतियोगिता क्रमांक 1 दिनांक 15 जून 2018
In प्रतियोगिता अपडेट
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C ) सर्वोदय शतक