आप सभी को सविनय सादर जय जिनेन्द्र
संयम स्वर्ण महोत्सव के सभी सदस्यों का बहुत - बहुत आभार आप सभी ने मिलकर के एक बहुत ही अतुलनीय तथा अकथनीय कार्य किया है । जिसके लिए सकल जैन समाज एवम् अजैंन समाज आप लोगो के लिए अपना आभार व्यक्त करती है । युग युग तक गुरु जी को याद रखा जाए ताकि आगे आने वाली पीढ़ीयो को भी हम एक अपराजेय साधक के जीवन परिचय से अवगत करा सके । मेरा तो सभी लोगो से नम्र निवेदन है कि आप सभी लोग अधिक अधिक संख्या में विद्योदय फिल्म का लोकार्पण अपने अपने शहर और गावों के मन्दिरों में अवश्य करे तथा ये सूचना अधिक से अधिक लोगो तक पहुंचाए जाए ।
धन्यवाद
इस haiku के माध्यम से आचार्य श्री जी हमको यह समझाना चाहते हैं की जिस प्रकार से सुई निश्चय है, कैंची व्यवहार है और दर्जी प्रमाण है ठीक इसी प्रकार से निश्चय सम्यक दर्शन है , व्यवहार सम्यक ज्ञान है और प्रमाण सम्यक चारित्र है । इन तीनों की एकता का नाम ही मोक्ष मार्ग है ।
इस haiku के माध्यम से आचार्य श्री जी हमको यह समझाना चाहते हैं की जिस प्रकार से रोग की अर्थात बीमारी की चिकित्सा की जाती है रोगी की नहीं यदि चिकित्सक रोग को छोड़कर रोगी की चिकित्सा करेगा तो रोगी को रोग के दर्द को भोगना पड़ेगा ठीक इसी प्रकार से हमको हमारे मन अर्थात विचारों की शुद्धि करनी चाहिए ना कि पुदगल की यदि हमारे विचार शुद्ध हो जाएंगे तो हमारा शरीर स्वतः ही ठीक हो जाएगा ।
इस haiku के माध्यम से आचार्य श्री जी हमको यह समझाना चाहते है कि बाहरी प्रदर्शन तो उथला है अर्थात दिखावा है हमको इस बाहरी दिखावे से बाहर निकल कर अपने आंतरिक आत्म रूपी दर्शन की गहराई में जाना चाहिए ।
इस haiku के माध्यम से आचार्य श्री जी हमको यह समझाना चाहते है कि जिस प्रकार से चन्दन को जलाने पर भी उसकी सुग्नधता चारो और महकती है ठीक इसी प्रकार से जो व्यक्ति अपने जीवन में पुरुषार्थ रूपी संघर्ष करता है । उस व्यक्ति का जीवन चन्दन की भांति महकता है। अर्थात संघर्ष किए बिना हम अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकते है।