चेहरे पर वो बच्चों-सी हसीं , वो झुकी हुई नजर , वो झुकी हुई गर्दन जिनकी, वो प्रवचन का अनोखा तरीका, वो उनकी निराली चर्या, बस क्या कहने हमारे कविवर विद्याधर गुरुवर का तो, जितना भी कहूँ कम है, जो सिर्फ पढ़ा और सुना था, देख भी लिया, ऐसे चलते फिरते तीर्थंकर के चरणों में बार बार, नमोस्तु _/\_