🌿🌸शुभ हो प्रभात
हिन्दी की आत्मकथा
हिन्दी दिवस की
शुभकामनाओं के साथ...
*"हिंदी"*
मैं हिंदी हूँ,
कर्म से.. धर्म से,
नाम से अभिमान से...
अस्तित्व मेरा विचित्र सा,
निश्छल कभी
तो कभी अपवित्र सा..
कोई मिश्रित करे मुझे
अन्य भाषाओं से,
कोई तोड़ दे मुझको
मेरी ही शाखाओं से...
ख़ुद अपनी ही धरा पर
एक द्वन्द मैं लड़ती,
पीढ़ी दर पीढ़ी
मैं बनती बिगड़ती...
मैं अक्स तुम्हारी
इस संस्कृति को रचती,
यूँ भूल जाते
अभिज्ञान में बसती..
है आज दिवस
आज मुझको मनाओगे..
सांझ ढलने तो दो,
फिर भूल जाओगे.....
🌿🌸 अज्ञात