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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. परिचित को, पीठ दिखा दे फिर !, सब ठीक है। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  2. तेरा सत्य है, भविष्य के गर्भ में, असत्य धो ले। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  3. देवों की छाया, ना सही पै हवा तो, लग सकती। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  4. दृष्टि पल्टा दो, तामस समता हो, और कुछ ना… हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  5. तटस्थ व्यक्ति, नहीं डूबता हो, तो, पार भी न हो। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  6. अर्ध शोधित, पारा औषध नहीं, पूरा विष है। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  7. बदलाव है, पै स्वरुप में न, सो, ‘था’ है ‘रहेगा’। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  8. गुब्बारा फूटा, क्यों, मत पूछो, पूछो, फुलाया क्यों था? हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  9. समझ न थी, अनर्थ किया आज, समझ, रोता। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  10. खाओ पीयो भी, थाली में छेद करो, कहाँ जाओगे ? हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  11. दुर्भाव टले, प्रशम-भाव से सो, स्वभाव मिले। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  12. परवश ना, भीड़ में होकर भी, मौनी बने हो। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  13. शिरोधार्य हो, गुरु-पद-रज, सो, नीरज बनूँ। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  14. स्वोन्नति से भी, पर का पराभव, उसे सुहाता… ! हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  15. जैसे दूध में, बूरा पूरा पूरता, वैसा घी क्यों ना…? हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  16. सिर में चाँद, अच्छा निकल आया, सूर्य न उगा। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  17. अनादिकाल से अनन्तकाल तक विद्यमान रहने वाला जैन धर्म है। पुरातत्व एवं वैष्णव धर्म के अनुसार इसकी प्राचीनता किस प्रकार सिद्ध होती है इसका वर्णन इस अध्याय में है। 1. जैन धर्म कब और किसके द्वारा स्थापित किया गया है? जैन धर्म अनादिनिधन है अर्थात् यह अनादिकाल से है एवं अनन्तकाल तक रहेगा। इसके संस्थापक तीर्थंकर ऋषभदेव, तीर्थंकर पार्श्वनाथ एवं तीर्थंकर महावीर भी नहीं हैं। इतना अवश्य है कि समय-समय पर तीर्थंकरों माध्यम से इसका प्रवर्तन होता रहता है एवं उन्हीं के माध्यम से यह धर्म आगे बढ़ता जाता है। जैसे-भारत का संविधान नहीं बदलता है। मात्र सरकार बदलती रहती है। उसी प्रकार जैनधर्म का सिद्धांत (संविधान) नहीं बदलता, मात्र सरकार (तीर्थंकर) बदलती रहती है। किन्तु जन सामान्य की धारणा से कोई इसे बौद्धधर्म की शाखा या बौद्धधर्म से उत्पत्ति मानते हैं कोई हिन्दूधर्म की शाखा मानते हैं। जबकि ऐसा नहीं है। 2. पुरातत्व विभाग के अनुसार जैनधर्म की प्राचीनता किस प्रकार सिद्ध होती है? पुरातत्व की दृष्टि से जैनधर्म की प्राचीनता इस प्रकार से सिद्ध होती है। प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता डॉ. राखलदास बनर्जी ने सिन्धुघाटी की सभ्यता का अन्वेषण किया है। यहाँ के उत्खनन में उपलब्ध सील (मोहर) नं. 449 में कुछ लिखा हुआ है। इस लेख को प्रो. प्राणनाथ विद्यालंकार ने जिनेश्वर (जिन-इ-इ-इसर:) पढ़ा है। पुरातत्वज्ञ रायबहादुर चन्द्रा का वक्तव्य है कि सिन्धुघाटी की मोहरों में एक मूर्ति प्राप्त हुई है, जिसमें मथुरा की तीर्थंकर ऋषभदेव की खड्गासन मूर्ति के समान त्याग और वैराग्य के भाव दृष्टिगोचर होते हैं। सील क्र. द्वितीय एफ.जी.एच. में जो मूर्ति उत्कीर्ण है, उसमें वैराग्य मुद्रा तो स्पष्ट है ही, उसके नीचे के भाग में तीर्थंकर ऋषभदेव का चिह्न बैल का सद्भाव भी है। इन्हीं सब आधारों पर अनेक विद्वानों ने जैनधर्म को सिन्धुघाटी की सभ्यता के काल का माना है। सिन्धु घाटी की सभ्यता आज से 5000 वर्ष पुरानी स्वीकार की गई है। हड़प्पा से प्राप्त नग्न मानव धड़ भी सिन्धु घाटी सभ्यता में जैन तीर्थंकरों के अस्तित्व को सूचित करता है। केन्द्रीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक टी.एन. रामचन्द्रन् ने उस पर गहन अध्ययन करते हुए लिखा है— हड़प्पा की खोज में कायोत्सर्ग मुद्रा में उत्कीर्णित मूर्ति पूर्ण रूप से दिगम्बर जैन मूर्ति है। मथुरा का कंकाली टीला जैन पुरातत्व की दृष्टि से अतिमहत्वपूर्ण है। वहाँ की खुदाई से अत्यन्त प्राचीनदेव निर्मित स्तूप (जिसके निर्माण काल का पता नहीं है) के अतिरित एक सौ दस शिलालेख एवं सैकड़ों प्रतिमाएँ मिली हैं जो ईसा पूर्व दूसरी सदी से बारहवीं सदी तक की हैं। पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार उत्त स्तूप का ई.पू. आठ सौ वर्ष में पुनर्निर्माण हुआ था। डॉ. विन्सेन्ट ए. स्मिथ के अनुसार मथुरा सम्बन्धी अन्वेषणों से यह सिद्ध होता है कि जैनधर्म के तीर्थंकरों का अस्तित्व ईसा सन् से बहुत पूर्व से विद्यमान था। तीर्थंकर ऋषभदेव आदि चौबीस तीर्थंकरों की मान्यता प्राचीनकाल से प्रचलित थी। सम्राट खारवेल द्वारा उत्कीर्णित हाथी गुफा के शिलालेख से यह सिद्ध होता है- ऋषभदेव की प्रतिमा की स्थापना, पूजा का प्रचलन सर्व प्राचीन है। 3. वैष्णव धर्म के अनुसार जैनधर्म की प्राचीनता किस प्रकार से सिद्ध होती है? वैष्णव धर्म के विभिन्न शास्त्रों एवं पुराणों के अन्वेषण से ज्ञात होता है कि जैनधर्म की प्राचीनता कितनी अधिक है- जिसे हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं 1. शिवपुराण में लिखा है - अष्टषष्ठिसु तीर्थषु यात्रायां यत्फलं भवेत्। श्री आदिनाथ देवस्य स्मरणेनापि तदभवेत्॥ अर्थ - अड़सठ (68) तीर्थों की यात्रा करने का जो फल होता है, उतना फल मात्र तीर्थंकर आदिनाथ के स्मरण करने से होता है। 2. महाभारत में कहा है - युगे युगे महापुण्यं द्श्यते द्वारिका पुरी, अवतीर्णो हरिर्यत्र प्रभासशशि भूषणः । रेवताद्री जिनो नेमिर्युगादि विंमलाचले, ऋषीणामा श्रमादेव मुक्ति मार्गस्य कारणम् ॥ अर्थ-युग-युग में द्वारिकापुरी महाक्षेत्र है, जिसमें हरिका अवतार हुआ है। जो प्रभास क्षेत्र में चन्द्रमा की तरह शोभित है और गिरनार पर्वत पर नेमिनाथ और कैलास (अष्टापद) पर्वत पर आदिनाथ हुए हैं। यह क्षेत्र ऋषियों का आश्रय होने से मुक्तिमार्ग का कारण है। 3. महाभारत में कहा है - आरोहस्व रथं पार्थ गांढीवं करे कुरु। निर्जिता मेदिनी मन्ये निर्ग्र्था यदि सन्मुखे || अर्थ-हे अर्जुन! रथ पर सवार हो और गांडीव धनुष हाथ में ले, मैं जानता हूँ कि जिसके सन्मुख दिगम्बर मुनि आ रहे हैं उसकी जीत निश्चित है। 4. ऋग्वेद में कहा है - ॐ त्रैलोक्य प्रतिष्ठितानां चतुर्विशति तीर्थंकराणाम् । ऋषभादिवर्द्धमानान्तानां सिद्धानां शरणं प्रपद्ये । अर्थ-तीन लोक में प्रतिष्ठित आदि श्री ऋषभदेव से लेकर श्री वर्द्धमान स्वामी तक चौबीस तीर्थंकर हैं। उन सिद्धों की शरण को प्राप्त होता हूँ। 5. ऋग्वेद में कहा है - ॐ नग्नं सुधीरं दिग्वाससं। ब्रह्मगर्भ सनातनं उपैमि वीरं। पुरुषमर्हतमादित्य वर्णं तसमः पुरस्तात् स्वाहा || अर्थ- मैं नग्न धीर वीर दिगम्बर ब्रह्मरूप सनातन अहत आदित्यवर्ण पुरुष की शरण को प्राप्त होता हूँ। 6. यजुर्वेद में कहा है - ॐ नमोऽर्हन्तो ऋषभो । अर्थ-अर्हन्त नाम वाले पूज्य ऋषभदेव को प्रणाम हो। 7. दक्षिणामूर्ति सहस्रनाम ग्रन्थ में लिखा है - शिव उवाच । जैन मार्गरतो जैनो जितक्रोधो जितामय:। अर्थ- शिवजी बोले, जैन मार्ग में रति करने वाला जैनी क्रोध को जीतने वाला और रोगों को जीतने वाला है। 8. नगर पुराण में कहा है - दशभिभोंजितैर्विप्रै: यत्फल जायते कृते । मुनेरहत्सुभक्तस्य तत्फल जायते कलौ। अर्थ- सतयुग में दस ब्राह्मणों को भोजन देने से जो फल होता है। उतना ही फल कलियुग में अहन्त भक्त एक मुनि को भोजन देने से होता है। 9. भागवत के पाँचवें स्कन्ध के अध्याय 2 से 6 तक ऋषभदेव का कथन है। जिसका भावार्थ यह है कि चौदह मनुओं में से पहले मनु स्वयंभू के पौत्र नाभि के पुत्र ऋषभदेव हुए, जो दिगम्बर जैनधर्म के आदि प्रचारक थे। ऋग्वेद में भगवान् ऋषभदेव का 141 ऋचाओं में स्तुति परक वर्णन किया है। ऐसे अनेक ग्रन्थों में अनेक दृष्टान्त हैं। 4. विद्वानों के अनुसार जैनधर्म की प्राचीनता किस प्रकार सिद्ध होती है? जर्मन विद्वान् डॉक्टर जैकोबी इसी मत से सहमत हैं कि ऋषभदेव का समय अब से असंख्यात वर्ष पूर्व का है। श्री हरिसत्यभट्टाचार्य की लिखी—"भगवान् अरिष्टनेमि नामक" अंग्रेजी पुस्तक में तीर्थंकर नेमिनाथको ऐतिहासिक महापुरुष स्वीकार किया गया है। डॉ. विन्सेन्ट एस्मिथ के अनुसार मथुरा सम्बन्धी खोज ने जैन परम्पराओं को बहुत बड़ी मात्रा में समर्थन प्रदान किया है। जो जैनधर्म की प्राचीनता और उसकी सार्वभौमिकता के अकाट्य प्रमाण हैं। मथुरा के जैन स्तूप तथा 24 तीर्थंकरों चिह्न सहित मूर्तियों की प्राप्ति ईसवी सन् के प्रारम्भ में भी जैनधर्म था यह सिद्ध करती है। मद्रास के प्रोफेसर चक्रवर्तीने 'वैदिक साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन' पुस्तक में यह प्रमाणित किया है कि 'जैनधर्म उतना ही प्राचीन है जितना कि हिन्दू धर्म प्राचीन है। डॉ. राधाकृष्णन् ने इंडियन फिलासफी पृ.287 में स्पष्ट लिखा है कि ईसा पूर्वप्रथम शताब्दी तक लोग तीर्थंकर ऋषभदेव की पूजा किया करते थे। 30 नवम्बर 1904 को बड़ौदा में श्री लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने व्याख्यान दिया था कि ब्राह्मण धर्म पर जैनधर्म ने अपनी अक्षुण्ण छाप छोड़ी है। अहिंसा का सिद्धान्त जैनधर्म में प्रारम्भ से है। आज ब्राह्मण और सभी हिन्दू लोग माँस भक्षण तथा मदिरापान में जो प्रतिबन्ध लगा रहे हैं, वह जैनधर्म की ही देन और जैनधर्म का ही प्रताप है। यह दया, करुणा और अहिंसा का ऐसा प्रचार-प्रसार करने वाला जैनधर्म चिरकाल तक स्थायी रहेगा। डॉ.कालिदास नाग ने अपनी पुस्तक ‘डिस्कवरी ऑफ एशिया' में जो नग्न मूर्ति का चित्र प्रकाशित किया था वह दस हजार वर्ष पुराना है। उसे डॉक्टर साहब ने जैन मूर्ति के अनुरूप माना है। श्री चित्संग ने ‘उपाय हृदय शास्त्र' में भगवान् ऋषभदेव के सिद्धान्तों का विवेचन चीनी भाषा में किया है। चीनी भाषा के विद्वानों को भगवान् ऋषभदेव के व्यक्तित्व और धर्म ने बहुत प्रभावित किया है। इटली के प्रो. ज्योसेफ टक्सी को एक तीर्थंकर की मूर्ति तिब्बत में मिली थी, जिसे वह रोम ले गए थे। इस से स्पष्ट होता है कि कभी तिब्बत में भी जैनधर्म प्रचलित था। यूनानी लेखकों के कथन से यह सिद्ध होता है कि पायथागोरस डायजिनेश जैसे यूनानी तत्ववेत्ताओं ने भारत में आकर 'जैन श्रमणों' से शिक्षा, दीक्षा (नियम) ग्रहण की थी। यूनानी बादशाह सिकन्दर के साथ धर्म प्रचार के लिए कल्याण मुनि उनके देश में गए थे। जापान के प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता प्रो.हाजिमे नाकामुरा लिखते हैं कि बौद्ध धार्मिक ग्रन्थों के चीनी भाषा में जो रूपांतरित संस्करण उपलब्ध हैं, उनमें यत्र-तत्र जैनों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के विषय में उल्लेख मिलते हैं, तीर्थंकर ऋषभदेव के व्यतित्व से जापानी भी अपरिचित नहीं है। जापानी तीर्थंकर ऋषभदेव को 'राकूशव' कहकर पहचानते हैं। 5. जैनधर्म के बारे में बौद्धधर्म के ग्रन्थों में क्या लिखा है? 'बौद्ध महावग्ग में लिखा है'- वैशाली में सड़क सड़क पर बड़ी संख्या में दिगम्बर साधु प्रवचन दे रहे थे। 'अगुत्तर निकाय में लिखा है'- नाथपुत्र (तीर्थंकर महावीर) सर्वदृष्टा, अनन्तज्ञानी तथा प्रत्येक क्षण पूर्ण सजग एवं सर्वज्ञ रूप से स्थित थे। 'मंजूश्रीकल्प" में तीर्थंकर ऋषभदेव को निग्रन्थ तीर्थंकर व आप्त देव कहा है। 'न्यायबिन्दु' में तीर्थंकर महावीर को सर्वज्ञ अर्थात् केवलज्ञानी आप्त तीर्थंकर कहा है। "मज्झिमनिकाय" में लिखा है - तीर्थंकर महावीर सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, सम्पूर्ण ज्ञान व दर्शन के ज्ञाता थे। 'दीर्घ निकाय' में लिखा है - भगवान् महावीर तीर्थंकर हैं, मनुष्यों द्वारा पूज्य हैं, गणधराचार्य हैं। 6. वैष्णव धर्म के अनुसार विष्णु के 22 अवतारों में ऋषभावतार कौन-सा है? आठवाँ अवतार है।
  18. णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आाइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोएसव्वसाहूणं । असंख्यात गुणी कर्मो की निर्जरा कराने वाला, सातिशय पुण्य का संचय कराने वाला, रानी सती के अग्निकुंड को निर्कुंड मे बदलने वाला यदि कोई मंत्र है तो वह है णमोकार मन्त्र। यह मन्त्र प्रत्येक प्राणी का है। अत: प्रथम अध्याय में णमोकार मंत्र का वर्णन है| 1. मन्त्र किसे कहते हैं ? जिसमें अनन्त शक्ति और अनन्त अर्थ विद्यमान रहता है, उसे मन्त्र कहते हैं। जिसका पाठ करने मात्र से कार्य की सिद्धि होती है, उसे मन्त्र कहते हैं। 2. णमोकार मन्त्र किसे कहते हैं, यह किस भाषा एवं किस छंद में लिखा गया है? जिस मन्त्र में पाँचों परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया हो, वह णमोकार मन्त्र है। यह प्राकृत भाषा एवं आर्या छंद में लिखा गया है। 3. इस मन्त्र में किसी व्यक्ति विशेष को नमस्कार क्यों नहीं किया? इस मन्त्र में व्यक्ति विशेष को नहीं अपितु गुणों से युक्त जीवों को नमस्कार किया है, क्योंकि जैन दर्शन की यह विशेषता है कि इसमें व्यक्ति विशेष को नहीं बल्कि व्यक्तित्व को नमस्कार किया जाता है। 4. इस णमोकार मन्त्र की रचना किसने की? इस मन्त्र की रचना किसी ने भी नहीं की, यह अनादिनिधन मन्त्र है, अर्थात् यह अनादिकाल से है और अनन्तकाल तक रहेगा। 5. णमोकार मन्त्र को सर्वप्रथम किस आचार्य ने किस ग्रन्थ में लिपिबद्ध किया था? णमोकार मन्त्र को आचार्यश्री पुष्पदन्तजी महाराज ने षट्खण्डागम ग्रन्थ के प्रथम खण्ड में मङ्गलाचरण के रूप में द्वितीय शताब्दी में लिपिबद्ध किया था। 6. णमोकार मन्त्र के पर्यायवाची नाम बताइए? 1. अनादिनिधन मन्त्र यह मन्त्र शाश्वत है, न इसका आदि है और न ही अन्त है। 2. अपराजित मन्त्र यह मन्त्र किसी से पराजित नहीं हो सकता है। 3. महा मन्त्र सभी मन्त्रों में महान् अर्थात् श्रेष्ठ है। 4. मूल मन्त्र सभी मन्त्रों का मूल अर्थात् जड़ है, जड़ के बिना वृक्ष नहीं रहता है, इसी प्रकार इस मन्त्र के अभाव में कोई भी मन्त्र टिक नहीं सकता है| 5. मृत्युञ्जयी मन्त्र इस मन्त्र से मृत्यु को जीत सकते हैं अर्थात् इस मन्त्र के ध्यान से मोक्ष को भी प्राप्त कर सकते हैं। 6. सर्वसिद्धिदायक मन्त्र इस मन्त्र के जपने से सभी ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त हो जाती हैं। 7. तरणतारण मन्त्र इस मन्त्र से स्वयं भी तर जाते हैं और दूसरे भी तर जाते हैं। 8. आदि मन्त्र सर्व मन्त्रों का आदि अर्थात् प्रारम्भ का मन्त्र है। 9. पञ्च नमस्कार मन्त्र इसमें पाँचों परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया है। 10. मङ्गल मन्त्र यह मन्त्र सभी मङ्गलों में प्रथम मङ्गल है। 11. केवल ज्ञान मन्त्र इस मन्त्र के माध्यम से केवलज्ञान भी प्राप्त कर सकते हैं। 7. णमोकार मन्त्र से कितने मन्त्रों की उत्पत्ति हुई है? इस मन्त्र से चौरासी लाख मन्त्रों की उत्पति हुई है। 8. णमोकार मन्त्र कब और कहाँ-कहाँ पढ़ना चाहिए? दु:खे-सुखे भयस्थाने, पथि दुर्गेरणेऽपि वा। श्री पञ्चगुरु मन्त्रस्य, पाठः कार्यः पदे—पदे । (णमोकार मन्त्र माहात्मय, 12) अर्थ-दु:ख में, सुख में, डर के स्थान में, मार्ग में, भयानक स्थान में, युद्ध के मैदान में एवं कदम-कदम पर णमोकार मन्त्र का जाप करना चाहिए। 9. क्या अपवित्र दशा में णमोकार मन्त्र का जाप कर सकते हैं? अपवित्रः पवित्रोऽवा सुस्थितो दुःस्थितोऽपि वा। ध्यायेत्पञ्चनमस्कारं, सर्वपापैः प्रमुच्यते। (पूजा पीठिका) अर्थ-यह मन्त्र हमेशा सभी जगह स्मरण कर सकते हैं, पवित्र व अपवित्र दशा में भी, किन्तु जोर से उच्चारण पवित्र दशा में ही करना चाहिए। अपवित्र दशा में मात्र मन में ही पढ़ना चाहिए। 10. क्या सभी जगह णमोकार मन्त्र जपने से एकसा फल मिलता है? नहीं। गृहे जपफलं प्रोक्तं वने शतगुणं भवेत्। पुण्यारामे तथारण्ये सहस्रगुणितं मतम्। पर्वते दशसहस्रं च नद्यां लक्षमुदाहृतं । कोटि देवालये प्राहुरनन्तं जिनसन्निधो। (णमोकार मन्त्र कल्प, पृ.1o5) अर्थ-घर में मन्त्राराधना करने से एक गुना, वन में सौ गुना, बगीचे तथा सघन वन में हजारगुना, पर्वत पर दस हजार गुना, नदी तट पर लाख गुना, देवालय में करोड़ गुना और जिनेन्द्रदेव के समक्ष अनन्त गुणा फल मिलता है। अत: मन्त्राराधना देवालय या जिनेन्द्र देव के समक्ष करना ही श्रेष्ठ है। 11. प्रयोग के द्वारा णमोकार मन्त्र कैसे श्रेष्ठ हुआ? ग्वालियर में णमोकार मन्त्र का अनुष्ठान हुआ, कोटि मन्त्र का जाप हुआ, वहाँ पर णमोकार मन्त्र की श्रेष्ठता देखने के लिए दो गमलों में दो पौधे रोपे गए एक पौधे के लिए साधारण जल प्रतिदिन डाला जाता था और दूसरे पौधे पर मन्त्र से मंत्रित जल डाला जाता था। कुछ दिनों बाद देखा गया कि मंत्रों से मंत्रित जल जिस पौधे पर डाला जाता था, वह पौधा बड़ी तेजी से विकसित हो रहा था तथा जिसमें सामान्य जल डाला जा रहा था, उसके बढ़ने की स्थिति बहुत कम थी। 12. णमोकार मन्त्र में कितने पद, अक्षर, मात्राएँ, व्यञ्जन एवं स्वर होते हैं? नोट- (1) स्वर सहित व्यञ्जन को ही यहाँ गिनना है। जैसे-णमो अरिहंताण में, ण, मो, रि, ह, ता, ण = 6 इसी प्रकार आगे भी। (2) 35 अक्षर किन्तु स्वर 34 हैं। मन्त्र शास्त्र के अनुसार णमो अरिहंताण पद में अ का लोप हो जाता है। मात्रा गिनना – । = एक (लघु) ऽ = दो (गुरु) vidyasagar.guru नोट- प्राकृत भाषा में ए, ऐ, ओ, औ, हृस्व, दीर्घ एवं प्लुत तीनों भेद होते हैं। (ध.पु. 13/247) अत: लोए में ए को हृस्व मानने से 58 मात्राएँ होंगी। 13. परमेष्ठियों के वाचक मन्त्र कितने-कितने अक्षर वाले हैं? पणतीस सोल छप्पण चदुदुगमेगं च जवहज्झाएह। परमेट्टिवाचयाण अण्ण च गुरूवएसेण। (द्र.सं., 49) अर्थ- परमेष्ठियों के वाचक 35, 16, 6, 5, 4, 2 और 1 अक्षर के मन्त्रों को जपो और ध्यान करो तथा गुरु के उपदेश के अनुसार अन्य भी मन्त्रों को जपो और ध्यान करो। 35 अक्षर वाला मन्त्र तो आप ऊपर पढ़ चुके हैं। आगे 16 अक्षर वाला—अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो नमः या अरिहन्त सिद्ध आइरियाउवज्झाया साधु। 6 अक्षर वाला मन्त्र अरिहंत सिद्ध और अरिहंत साधु । 5 अक्षर वाला असिआउसा और नमः सिद्धेभ्यः । 4 अक्षर वाला अरिहन्त और असिसाहू। 2 अक्षर वाला सिद्ध और अह। 1 अक्षर वाला अ, ओम, र्ह्रं, श्रीं और ह्रीं । 14. ‘ओम शब्द में पञ्च परमेष्ठी किस प्रकार गर्भित हो जाते हैं? अरहंता असरीरा आइरिया तह उवज्झया मुणिणो। पढमक्खरणिप्पणो ओोंकारो पञ्च परमेट्टी। (द्र.सं.टी.49) अर्थ-अरिहंत का 'अ', सिद्ध का अपर नाम अशरीरीका'अ', आचार्यका'आ', ध्यायका'उ' और साधु का अपर नाम मुनि का 'म' , इस प्रकार अ+अ+आ+उ+म इन सब अक्षरों की सन्धि कर देने से ‘ओम्’ बना। ‘ओम्’ की आकृति च 1भी लिखी जाती है। 15. णमोकार मन्त्र 9 बार या 108 बार क्यों जपते हैं? 9 का अङ्क शाश्वत है, उसमें कितनी भी संख्या का गुणा करें और गुणनफल को आपस में जोड़ने से 9 ही रहता है। जैसे 9x3=27 (2+7=9) अतः शाश्वत पद पाने के लिए 9 बार पढ़ा जाता है। कर्मो का आस्रव 108 द्वारों से होता है, उसको रोकने हेतु 108 बार णमोकार मन्त्र जपते हैं। प्रायश्चित में 27 या 108 श्वासोच्छवास के विकल्प में 9 बार या 36 बार णमोकार मन्त्र पढ़ सकते हैं। 16. णमोकार मन्त्र को श्वासोच्छवास में किस प्रकार पढ़ते हैं? णमोकार मन्त्र को तीन श्वासोच्छवास में पढ़ते हैं। श्वास ग्रहण करते समय णमो अरिहंताण, श्वास छोड़ते समय णमो सिद्धाणं, पुनः श्वासग्रहण करते समय णमो आइरियाणं, श्वास छोड़ते समय णमो उवज्झायाणं और अन्त में पुनः श्वास लेते समय णमो लोए एवं श्वास छोड़ते समयसव्वसाहूर्ण बोलना चाहिए। 17. जाप करने की कौन-कौन सी विधियाँ हैं? जाप करने की तीन विधियाँ हैं- कमल जाप, हस्ताङ्गली जाप और माला जाप। 1.कमल जाप विधि :- अपने हृदय में आठ पाँखुड़ियों के एक श्वेत कमल का विचार करें। उसकी प्रत्येक पाँखुड़ी पर पीतवर्ण के बारह-बारह बिन्दुओं की कल्पना करें तथा - मध्य की गोलवृत-कर्णिका में बारह बिन्दुओं का चिन्तन करें। इन 108 बिन्दुओं के प्रत्येक बिन्दु पर एक-एक मन्त्र का जाप करते हुए 108 बार इस मन्त्र जाप करें। 2. हस्ताङ्गली जाप विधि :-तर्जनी, मध्यमा एवं अनामिका तीनों अंगुली का उपयोग करके जाप करना। चित्र में दिए गए एक-एक भाग के ऊपर अंगूठे को रखते हुए 9 बार मन्त्र जपते हुए बारह बार में 108 बार होते हैं। तब पूरी जाप होती है। 3. माला जाप :-108 दाने की मालाद्वारा जापकरें। (मङ्गल मन्त्र णमोकार एकअनुचिन्तन, पृ.72-74) 18. मन्त्रोच्चारण जाप एवं ध्यान किस दिशा में करना चाहिए? मन्त्रोच्चारण जाप एवं ध्यान के लिए पूर्व एवं उत्तरमुख होने को शुभ बताया है क्योंकि प्रत्येक दिशा का अलग-अलग फल है। पूर्व - मोहान्तक (मोह का नाश करने वाली है) दक्षिण - प्रज्ञान्तक (प्रज्ञा अर्थात् बुद्धि का नाश करने वाली है।) पश्चिम - पदमान्तक (हृदय की भावनाओं को नष्ट करने वाली है।) उत्तर - विध्नान्तक (विध्नों का नाश करने वाली है।) 19. आचार्यों ने उच्चारण के आधार पर मन्त्र जाप कितने प्रकार से कहा है? चतुर्विधा हि वाग्वैखरी मध्यमा पश्यन्ती सूक्ष्माश्चेति । (त.अ.पृ.66) वैखरी - जोर-जोर से बोलकर णमोकार मन्त्र का जाप करना जिसे दूसरे लोग भी सुन लें। मध्यमा - इसमें होठ नहीं हिलते किन्तु अन्दर जीभ हिलती रहती है। पश्यन्ति - इसमें न होठ हिलते हैं और न जीभ हिलती है, इसमें मात्र मन में ही चिन्तन करते हैं। सूक्ष्म - मन में जो णमोकार मन्त्र का चिन्तन था वह भी छोड़ देना सूक्ष्म जाप है। जहाँ पास्यउपासक भेद समाप्त हो जाता है। अर्थात् जहाँ मन्त्र का अवलम्बन छूट जाए वो ही सूक्ष्म जाप है। 20. णमोकार मन्त्र व्रत के कितने उपवास किए जाते हैं? णमोकार मन्त्र व्रत के 35 उपवास किए जाते हैं। 21. इस व्रत में कौन-कौन सी तिथि में कितने-कितने उपवास किए जाते हैं? इस व्रत में पञ्चमी के 5 , सप्तमी के 7, नवमी के 9 तथा चौदस के 14 उपवास किए जाते हैं। 22. यह व्रत कब प्रारम्भ किया जाता है? आषाढ़ शुक्ल सप्तमी से या किसी भी माह की पञ्चमी, सप्तमी, नवमी या चौदस से प्रारम्भ किया जाता है। 23. इस मन्त्र का क्या प्रभाव है? यह पञ्च नमस्कार मन्त्र सभी पापों का नाश करने वाला है तथा सभी मङ्गलों में प्रथम मङ्गल है। यथा एसो पञ्च णमोयारो सव्वपावप्पणासणो । मङ्गलाणं च सव्वेसिं पढमं होई मङ्गलं । मङ्गल शब्द का अर्थ दो प्रकार से किया जाता है। मङ्ग = सुख। ल = लाति, ददाति, जो सुख को देता है, उसे मङ्गल कहते हैं। मङ्गल-मम् = पापं । गल = गालयतीति = अर्थात् जो पापों का गलाता है नाश करता हैं, उसे मङ्गल कहते हैं। लौकिक मङ्गल में - कन्या, पीले सरसों, हाथी, जल से भरे कलश, दूध पीता बछड़ा आदि शुभ हैं। पारलौकिक मङ्गल में - अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधु परमेष्ठी शुभ हैं। 24. णमोकार मन्त्र की क्या महिमा है? यह मन्त्र सभी मन्त्रों का राजा माना जाता है, इसके स्मरण से पूर्वोपार्जित कर्म नष्ट हो जाते हैं, जिससे अनेक प्रकार के शारीरिक, मानसिक कष्ट दूर हो जाते हैं। सिंह, सर्प आदि भयंकर जीवों का भय नहीं रहता है। भूत, व्यंतर आदि भाग जाते हैं। हलाहल विष भी अपना असर त्याग देता है। इस मन्त्र के सुनने मात्र से अनेक जीवों ने उच्च गति एवं विद्याओं को प्राप्त किया था। जिसके अनेक उदाहरण शास्त्रों में आते हैं। जैसे- पद्मरुचि सेठ ने बैल को णमोकार मन्त्र सुनाया तो वह सुग्रीव हुआ था। विशेष-बैल पहले राजा वृषभध्वज बना बाद में सुग्रीव तथा पद्यरुचि रामचन्द्र जी हुए। रामचन्द्र जी ने जटायु पक्षी को णमोकार मन्त्र सुनाया तो वह स्वर्ग में देव हुआ था। जीवन्धर कुमार ने कुत्ते को णमोकार मन्त्र सुनाया तो वह यक्षेन्द्र हुआ। अञ्जनचोर ने णमोकार मन्त्र पर श्रद्धा रखकर आकाशगामी विद्या को प्राप्त किया। 25. णमोकार मंत्र की महिमा का कोई दूसरा दृष्टान्त बताइए? आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज एक शहर से गुजर रहे थे। एक मुस्लिम भाई का मात्र एक बेटा था। उस बेटे को सर्प ने काट लिया था। जिसे उस शहर के जो भी तन्त्रवादी, मन्त्रवादी थे, सब उसके बेटे का इलाज कर चुके थे, लेकिन उसका जहर नहीं उतार पाए। अकस्मात् आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज उस रास्ते से गुजर रहे थे। उनको देख मुस्लिम भाई ने उनके पैर पकड़ लिए और कहने लगा, आप पहुँचे हुए फकीर हैं, आपके पास जरूर कोई मन्त्र सिद्धि है, कृपया मेरे बेटे का जहर उतार दीजिए। मेरा यह इकलौता बेटा है, मैं आपका जन्म भर उपकार मानूँगा। आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज श्रेष्ठ साधक थे, उनके पास सिद्धियाँ थी। उन्होंने तुरन्त अपने कमण्डलु से जल लेकर मंत्रित किया और उसके ऊपर छींटा तो वह बेटा ठीक हो गया। 26. मन्त्रों में और भी कोई चमत्कारिक शक्तियाँ हैं? मन्त्रों में अनेक चमत्कारिक शक्तियाँ हैं। जिनसे महाशक्तिशाली देवों को भी वश में किया जाता है। वर्षा, तूफान आदि को भी रोका जाता है और यह मन्त्र सर्प-विष दूर करने में जगत् प्रसिद्ध है। 27. चतारि दण्डक में आचार्य, उपाध्याय क्यों नहीं लिए? आचार्य और उपाध्याय विशेष पद हैं, जो कि संघ के संचालन हेतु दीक्षा, प्रायश्चित और शिक्षा आदि की अपेक्षा निश्चित किए हैं। अत: इन्हें साधुपरमेष्ठी में ही गर्भित किया है। जैसे - लोकव्यवहार की संस्थाओं में अध्यक्ष, मन्त्री, कोषाध्यक्ष आदि हुआ करते हैं व्यवस्था के लिए। 28. णमोकार मन्त्र के उच्चारण करने से कितने सागर के पाप कट जाते हैं? णमोकार मन्त्र के एक अक्षर का भी भक्ति पूर्वक नाम लेने से सात सागर के पाप कट जाते हैं, पाँच अक्षरों का पाठ करने से पचास सागर के पाप कट जाते हैं तथा पूर्ण मन्त्र का उच्चारण करने से पाँच सौ सागर के पाप कट जाते हैं। (त.अ.उद्धृत 63)
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