आचार्य महाराज उन दिनों फिरोजाबाद में थे। उनके प्रतिदिन होने वाले प्रवचनों की सूचना लोगों को दे दी जाती थी और विषय भी बता दिया जाता था। एक दिन आयोजकों ने सूचना-पटल पर लिखा कि कल महाराज के प्रवचन 'अतिथि' से सम्बन्धित विषय पर होंगे। दूसरे दिन जब प्रवचन के समय लोग सभा-भवन में पहुँचे तब मालूम पड़ा कि महाराज का तो विहार हो गया।
सभी लोग अपने-अपने वाहनों से उनके पीछे भागे। दो-तीन मील जाकर जब महाराज से मिले तो सभी ने कहा महाराज आपका तो आज 'अतिथि' पर प्रवचन होना था, आपने अचानक विहार कर दिया। महाराज जी हँसने लगे, बोले - ‘भैया! वही तो कर रहा हूँ। अतिथि का अर्थ ही यह होता है कि जिसके आने व जाने की तिथि निश्चित नहीं होती।' लोग समझ गए कि आज तो अतिथि की तरह स्वयं आचरण करके महाराज ने हमें उपदेश दिया है कि जो कुछ कहो, उसे चरितार्थ भी करो। स्वयं जी कर कहना ही सच्चा उपदेश है।
फिरोजाबाद (१९७५)