आचार्य महाराज संघ सहित सदगुंवा ग्राम से चलकर खुरजाखेड़ा आए। संघ के सभी साधु निरन्तर विहार के कारण थकान महसूस कर रहे थे। सामायिक का समय होने वाला था। अचानक आचार्य महाराज बोले कि ‘मन कहता है शरीर को थोड़ा विश्राम दिया जाए' सभी शिष्यों ने एक स्वर में महाराज जी की बात का समर्थन किया और कहा कि ‘हाँ, महाराज जी ! आप थोड़ा विश्राम कर लें।” आचार्य महाराज हँसने लगे और तत्काल बोले कि 'मन भले ही विश्राम की बात करे, पर आत्मा तो चाहती है कि सामायिक की जाए।' और देखते-ही-देखते आचार्य महाराज दृढ़ आसन लगाकर सामायिक में लीन हो गए। सभी लोग यह देखकर दंग रह गए। आचार्य महाराज की यह आत्मानुशासित जीवनचर्या सचमुच अनुपम है।
खुरजाखेड़ा (दमोह) १९९५