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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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Blog Entries posted by संयम स्वर्ण महोत्सव

  1. संयम स्वर्ण महोत्सव
    प्रतिशोध में,
    ज्ञानी भी अन्धा होता,
    शोध तो दूर।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  2. संयम स्वर्ण महोत्सव
    @Rakesh Chougule @Arvind Jain आप दोनों  को पुरस्कार स्वरूप प्रदान की  जा रही हैं -हथकरघा निर्मित श्रमदान ब्रांड की हाफ शर्ट 
    आप अपना पता हमे मेसेज करें | अपना मोबाइल नंबर प्रोफाइल में अपडेट करें 
  3. संयम स्वर्ण महोत्सव
    शिव पथ के,
    कथक वचन भी,
    शिरोधार्य हो।
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  4. संयम स्वर्ण महोत्सव
    पक्ष व्यामोह,
    लौह पुरुष के भी,
    लहू चूसता।
     
    भावार्थ-मोह को संसार परिभ्रमण या सम्पूर्ण दुःखों का मुख्य कारण कहा गया है। श्री जिनेन्द्र भगवान् ने सुख - प्राप्ति के लिए मोह का विनाश करने को सर्वोत्तम तप बताया है। अरिहंतों की पूज्यता और सिद्धों का पद तथा आचार्यों, उपाध्यायों एवं साधुओं की गुरुता मोह के विनाश का फल है और शाश्वत एवं स्वाश्रित सुख का बीज है। पक्षपात से मोह (व्यामोह) का विकास होता है । आपसी सम्बन्धों में अविश्वास पैदा होता है । भव - भवान्तर में दुःख देने वाले कर्मों के बंधन मजबूत होते हैं । भीष्म पितामह जैसे महान् योद्धा को भी इस पक्ष व्यामोह का शिकार बनना पड़ा ।
    - आर्यिका अकंपमति जी 
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  5. संयम स्वर्ण महोत्सव
    शून्य को देखूँ,
    वैराग्य बढ़े-बढ़े,
    नेत्र की ज्योति।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  6. संयम स्वर्ण महोत्सव
    योग प्रयोग,
    साधन है साध्य तो,
    सदुपयोग।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  7. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ५ अक्तूबर २०१७.
    नई दिल्ली.
    *दिगंबर जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का नाम किसी परिचय का मुहताज नहीं है. शरद पूर्णिमा के दिन परम पूज्य गुरुदेव की जन्म जयंती देशभर में मनाई जा रही है. *
    ध्यातव्य है कि तीर्थंकर महावीर भगवान की महान दिगम्बर परंपरा के जीवंत प्रतिरूप आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज की मुनि दीक्षा के पचास वर्ष सन २०१८ में पूर्ण हो रहे हैं, इस अलौकिक अवसर को संयम स्वर्ण महोत्सव वर्ष के रूप में सम्पूर्ण भारत में वर्षभर में मनाया जा रहा है|
    *आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज* :
    आचार्यश्री का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को ‘शरद पूर्णिमा’ के पावन दिन कर्नाटक के बेलगाम जिले के सदलगा ग्राम में हुआ था। 22 वर्ष की उम्र में उन्होंने पिच्छि - कमण्डलु धारण कर संसार की समस्त बाह्य वस्तुओं का परित्याग कर दिया था। और दीक्षा के बाद से ही सदैव पैदल चलते हैं, किसी भी वाहन का इस्तेमान नहीं करते हैं. साधना के इन 49 वर्षों में आचार्यश्री ने हजारों किलोमीटर नंगे पैर चलते हुए महाराष्ट्र, गुजरात,मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार में अध्यात्म की गंगा बहाई, लाखों लोगों को नशामुक्त किया है और राष्ट्रीय एकता को मजबूती प्रदान की है.
    आचार्य श्री विद्यासागर जी से प्रेरित उनके माता, पिता, दो छोटे भाई अनंतनाथ व शांतिनाथ और दो बहन सुवर्णा और शांता ने भी दीक्षा ली।
    *कठोर जीवन चर्या*
    ७१ वर्षीय आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज लकड़ी के तख़्त पर अल्प समय के लिए ही सोते हैं, कोई बिछौना नहीं, न ही कोई ओढ़ना, न पंख, न वातानुकूलक (एसी) । वे जैन मुनि आचार संहिता के अनुसार 24 घंटे में केवल एक बार पाणीपात्र में निर्दोष आहार (भोजन) और एक बार ही जल ग्रहण करते हैं, उनके भोजन में हरी सब्जी,  दूध, नमक और शक्कर नहीं होते हैं।
    *जन कल्याण और स्वदेशी के प्रहरी*
    आचार्यश्री की प्रेरणा से देश में अलग-अलग जगह लगभग 100 गौशालाएं संचालित हो रही है ।उनकी प्रेरणा से अनेक तीर्थ स्थानों का पुनरोद्धार हुआ है और कला और स्थापत्य से सज्जित नए तीर्थों का सृजन हुआ है। सागर में भाग्योदय तीर्थ चिकित्सालय जैसा आधुनिक सुविधा संपन्न अस्पताल संचालित है.
    *स्त्री शिक्षा एवं मातृभाषा में शिक्षा के पुरजोर समर्थक*
    गुरुदेव की पावन प्रेरणा से उत्कृष्ट बालिका शिक्षा के केंद्र के रूप में प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ नाम के आवासीय कन्या विद्यालय खोले जा रहे हैं, जहाँ बालिकाओं के सर्वांगीण विकास पर पूरा ध्यान दिया जाता है, जिसका सुफल यह है कि सीबीएसई से संबद्ध इन विद्यालयों का परीक्षा परिणाम शत प्रतिशत होता है और सभी छात्राएं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होती हैं. विशेष बात यह है कि इन विद्यालयों में अंग्रेजी की धारा के विपरीत हिंदी माध्यम से शिक्षा दी जा रही है. आचार्य श्री का मानना है कि मातृभाषा में शिक्षा होने से बच्चों का मस्तिष्क निर्बाध रूप से पूर्ण विकसित होता है, उनमें अभिनव प्रयोग/नवाचार  करने की क्षमता और वैज्ञानिक दृष्टि विकसित होती है. सभी प्रमुख शिक्षाविद भी यही कह रहे हैं और यूनेस्को भी मातृभाषा में शिक्षा को मानव अधिकार मानता है.
    पूज्य गुरुदेव की प्रेरणा से देश भर के अनेक प्रबुद्धजन और युवा आज भारतीय भाषाओं के पुनरोद्धार के लिए अभियान चला रहे हैं.
    *हथकरघा से स्वाबलंबन और स्वदेशी*
    गुरुदेव की प्रेरणा से खादी का पुनरोद्धार हो रहा है और जगह-२ हथकरघा केंद्र खोले जा रहे हैं, जहाँ उच्चस्तरीय कपड़े का निर्माण किया जा रहा है,जिससे बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिल रहा है और स्वदेशी का प्रसार हो रहा है. यह हस्त निर्मित कपड़ा पूर्णतः अहिंसक एवं त्वचा के अनुकूल होता है. 
    पूज्य गुरुदेव की जयंती को देशभर में मनाया जा रहा है, जिसमें विशेष पूजन-अर्चना के साथ-२ वृक्षारोपण, निर्धन सहायता, फल-भोजन वितरण के कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं.
    मप्र के झाबुआ जिले के एसपी अधिकारी श्री महेश चन्द्र जैन ने तो एक बंजर पहाड़ को ही अथक प्रयासों से लाखों पेड़ लगाकर हरा-भरा कर दिया है और गुरुदेव की जयंती के इस पावन दिवस पर बड़ी-संख्या में वृक्षारोपण करवाया है और अपनी श्रद्धा का अर्घ गुरुदेव को समर्पित किया.
    मप्र के सागर, जबलपुर और दमोह, राजस्थान के उदयपुर, अजमेर, किशनगढ़, कोटा, जयपुर, उप्र के ललितपुर, दिल्ली, कोलकाता, गुजरात में अनेक स्थानों पर गुरुदेव की जन्म जयंती बड़ी धूमधाम से मनाई जा रही है.
    पूज्य गुरुदेव की जन्म जयंती के अवसर अनेक जैन-जैनेतर विद्वानों ने उनके प्रति अपनी श्रद्धा समर्पण रूपी शुभकामनाएँ प्रेषित की हैं.
    इस अवसर पर राष्ट्रीय संयम स्वर्ण महोत्सव के परामर्श मंडल के गणमान्य सदस्य सर्वश्री मप्र उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री कृष्ण कुमार लाहोटी, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य श्री सुनील सिंघी (केंद्रीय राज्य मंत्री दर्जा प्राप्त), मप्र के सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) श्री रामनिवास जी, पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री प्रदीप जैन आदित्य एवं मप्र के सेवानिवृत्त अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडिशनल डीजीपी)श्री प्रदीप रुनवाल जी ने *गुरुदेव की प्रेरणाओं को जन-जन तक पहुंचाने, देश का नाम इण्डिया से केवल भारत के रूप में स्थापित करने तथा भारतीय भाषाओं के संरक्षण करने के संकल्प को दुहराया है*.
  8. संयम स्वर्ण महोत्सव
    देखा ध्यान में,
    कोलाहल मन का,
    नींद ले रहा।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  9. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने मोह, राग और द्वेष की परिभाषा बताते हुए कहा की मोह हमें किसी भी वस्तु या मनुष्य आदि से हो सकता है जैसे दूध में एक बार जामन मिलाने पर वह जम जाता है फिर दोबारा उसी बर्तन पर दूध डालने पर दूध अपने आप जम जाता है उसमे दोबारा जामन नहीं डालना पड़ता।
    उसी प्रकार मनुष्य भी मोह में जम जाता है। राग और मोह में अंतर होता है। राग के कारण वस्तु का वास्तविक स्वरुप न दिखकर उसका उल्टा स्वरुप दिखने लगता है। जैसे कोई वस्तु है, यदि आपको उससे राग होगा तो आप कहोगे कि यह वस्तु बहुत अच्छी है और उसी वस्तु से किसी को द्वेष होगा तो वह कहेगा की यह वस्तु खराब है। बड़े – बड़े विद्वान्, श्रमण, श्रावक आदि भी इस मोह, राग और द्वेष से नहीं बच पायें हैं।
    आचार्य श्री ने कहा की वे आज पद्मपुराण पढ़ रहे थे तो उसमे बताया गया है की रावण बहुत विद्वान्, बहुत बड़ा पंडित, बहुत ज्ञानी, धनवान, ताकतवर था परन्तु श्रीराम की धर्म पत्नि सीता से उसे मोह होने के कारण उसका सर्वनाश हो गया एवं उसका भाई विभीषण ने भी उसका साथ छोड़ दिया था। आज बहुत से लोग शास्त्र, ग्रन्थ आदि पढ़कर पंडित, ज्ञानी हो गए हैं उन्हें इस ज्ञान का उपयोग पहले अपने कल्याण के लिए करना चाहिये फिर दूसरों का कल्याण करना तो अच्छी बात है ही।
  10. संयम स्वर्ण महोत्सव
    विद्या वाणी प्रतियोगिता 
    जैन आशिषकुमार    चांदखेड़ा अहमदाबाद    84xxxxx805
     
    हायकू प्रतियोगिता 
    swati jain    Infront of government middle school,Abhana,Damoh,M.P.    95xxxxx578    76xxxxx565
     
    विचार सूत्र प्रतियोगिता 
    रतन लाल जैन    23 सी 55, चौपासनी हाउसिंग बोर्ड, जोधपुर, (राजस्थान), पिन कोड 342008    98xxxxx290
     
    पवित्र मानव जीवन प्रतियोगिता 
    लता उमाठे    299 नालन्दा विहार जे डी ए 2बी तिलवारा रोड जबलपुर 482003    97xxxxx617    89xxxxx878
     
    जैन पाठशाला प्रतियोगिता 
    Jyoti    Post, Kothali Maharashtra    88xxxxx639
     
    दिशा बोध प्रतियोगिता 
    Pragati jain    "Panchratna traders, dindori(m.p.)
    481880"    96xxxxx959    96xxxxx590
     
    आत्मान्वेषी संस्मरण प्रतियोगिता
    मेघा जैन    C/O अशोक कुमार जी दीपक जी सरावगी, जैन कबाड़, नेहरू उद्यान के पास, डिस्पोजल मार्केट, भवानी मण्डी, जिला झालावाड़, (राजस्थान), पिन कोड 326502    94xxxxx946    94xxxxx946
     
    ज्ञानसागर जी की ज्ञानसाधना प्रतियोगिता  
    Monika Jain    SPS residency,d-300, Indirapuram, Gaziabad    98xxxxx487
     
    आप सभी  को   पुरस्कार स्वरूप प्रदान की  जा रही हैं - हथकरघा निर्मित श्रमदान ब्रांड की चादर
     
  11. संयम स्वर्ण महोत्सव
    पूर्ण पथ लो,
    पाप को पीठ दे दो,
    वृत्ति सुखी हो।
     
    भावार्थ- आचार्य महाराज सुखी होने का सहज उपाय बताते हुए कहते हैं कि संसारी प्राणियों के हिंसा आदि पाँच पापों का त्याग करके सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूप रत्नत्रय अर्थात् मोक्ष के मार्ग का अवलम्बन लो, तभी शाश्वत सुख प्राप्त कर सकोगे । 
    - आर्यिका अकंपमति जी 
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  12. संयम स्वर्ण महोत्सव
    अर्ध शोधित,
    पारा औषध नहीं,
    पूरा विष है।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  13. संयम स्वर्ण महोत्सव
    उत्तर   whatspp पर दे - यहाँ नहीं लिखें - वेबसाइट से पढ़ के उत्तर दे - नकल न करें 
    दी हुई HINT - संकेत को पढ़े 
     

     

  14. संयम स्वर्ण महोत्सव
    गोबर डालो,
    मिट्टी में सोना पालो,
    यूरिया राख।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  15. संयम स्वर्ण महोत्सव
    कमल खिले,
    दिन के ग्रहण में,
    करबद्ध हों।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  16. संयम स्वर्ण महोत्सव
    जीवन में स्वयंभू, सत्यधर्मो का प्रकाश प्रकट करने वाले गुरूवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के प्रकाशवान् चरणो में वंदना करता हूँ.... हे गुरुवर! मेरे गुरु की साधना और वैराग्य को देखते हुए आप इतने प्रभावित हुए थे, कि आपने, उनको उदाहरण के रूप में उपस्थित किया था। वह वाकया पण्डित विद्याकुमार सेठी जी ने १९९४ अजमेर चातुर्मास में मुझे सुनाया। जिसे सुनकर हम शिष्यों को गौरव की अनुभूति होती है। वह संस्मरण हमने लिख लिया था, जो आपको प्रेषित कर रहा हूँ........
     
    गुरुदेव ने मुनि विद्यासागर जी को उदाहरण के स्वरूप प्रस्तुत किया
    " ज्ञानसागर जी महाराज बड़े ही शान्त प्रकृति के थे, वो कहते थे- सिद्धान्त तो निश्चयरूप है और व्यवहार प्रैक्टीकल रूप है। उत्सर्ग और अपवाद में विरोध नही है। उत्सर्ग मार्ग अपवाद सापेक्ष है। इस तरह वो जब भी किसी को समझाते थे तो पिता-पुत्र के समान समझाते थे या कोई ज्ञानी आता तो उसे मित्र के समान बोला करते थे। विद्याधर जी की मुनि दीक्षा होने के बाद एक दिन मुझको देख कर गुरूदेव ज्ञानसागर जी बोले- अरे पण्डित जी संयम के बिना जीवन अपूर्ण है। विद्यासागरजी जी को देखो ! कुछ तो शिक्षा लो। भारी जवानी में संयम की साधना कर रहे है और ज्ञान को अंदर उतार रहे है। जो उनके आचरण में प्रकट हो रहा है। उनसे कुछ शिक्षा ले लो, खाली पंडित बने रहने से कुछ नही होगा।
    आपको स्वस्थ शरीर मिला है तो इसको बाह्य उपकरण बनाओ। इसको स्वर्ण की पेटी बनाकर सम्यकदर्शनादि रत्न उसमें रखो। तभी वह सुरक्षित रह सकेगा। इतना सुनकर मेरा ह्रदय परिवर्तित हो गया और हमने तत्काल चार प्रतिमा के व्रत गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज से ले लिए।" इस तरह आपकी और आपके शिष्य, मेरे गुरुवर के कई विशेषताएं हम शिष्यों को प्रेरणा प्रदान करती है। ऐसे प्रेरक गुरुओं के उपकारों को कोटी-कोटी प्रणाम करता हुआ.....
     
    अन्तर्यात्री महापुरुष पुस्तक से साभार
  17. संयम स्वर्ण महोत्सव

    साधना छोड़,
    काय-रत होना ही,
    कायरता है।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  18. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ऊधम नहीं,
    उद्यम करो बनो,
    दमी आदमी |  
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  19. संयम स्वर्ण महोत्सव
    मन अपना,
    अपने विषय में,
    क्यों न सोचता ?
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  20. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ज्ञानरथ के सार्थवाह गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज को कोटिशः प्रणाम करता हूँ.... हे गुरुवर! आपके लाडले शिष्य ब्रम्हचारी विद्याधर जी आपको तो जवाब नही देते थे किन्तु अज्ञानियों के अज्ञान अंधकार को दूर करने के लिए कम शब्दों में, टू द पॉइंट बोलकर संतुष्ट करके निरुत्तर कर देते थे। इस सम्बन्ध में नसीराबाद के आपके। अनन्य भक्त रतनलाल पाटनी जी ने विद्याधर के हाजिर जवाबी का संस्मरण सुनाया- 
     
    हाजिरजवाबी ब्रम्हचारी विद्याधर
    "१९६८ ग्रीष्मकालीन प्रवास के दौरान नसीराबाद में ज्ञानसागर मुनिराज ने अपने प्रिय मनोज्ञ शिष्य, ब्रम्हचारी विद्याधर जी को हिन्दि भाषा मे पारंगत बनाने हेतु राजकीय व्यापारिक स्कूल नसीराबाद के प्रधानाध्यापक श्री मोहनलाल जी जैन को कहा- आप विद्याधर जी को हिन्दी भाषा, लिपी, छन्द, व्याकरण सिखायें। तब मोहनलाल जी उन्हें हिन्दी का अध्ययन कराने लगे। इसके साथ ही विद्याधर जी की मनोभावना अंग्रेजी सीखने की भी हुई। तो मोहनलाल जी ने अपने ही राजकीय व्यापारिक स्कूल नसीराबाद के अंग्रेजी के अध्यापक श्रीमान् रामप्रसाद जी बंसल को अंग्रजी पढ़ाने का पुण्यार्जन दिया। इसके अतिरिक्त ज्ञानसागर गुरु महाराज ने छगनलाल पाटनी अजमेर को विद्याधर जी से धर्म-चर्चा के लिए समय दिया। साथ ही नसीराबाद के पण्डित चम्पालाल जी शास्त्री भी विद्याधर जी से धर्म-चर्चा करते थे। सुबह से लेकर रात्रि १० बजे तक विद्याधर जी ज्ञानाराधना में लीन रहते। एक दिन मजाक में हमने कहा- भैया जी! आप इतना पढ़कर क्या करोगे ? कोई नोकरी करना है क्या ? तो हँसते हुए बोले- 'क्या करना है- क्या नही करना है ? इसको जानने के लिए अध्ययन कर रहा हूँ।' यह जवाब सुनकर फिर कभी कोई प्रश्न करने की हिम्मत नही हुई।"

    इस तरह ब्रम्हचारी विद्याधर जी अपनी तार्किक बातों से संक्षिप्त में ही संतुष्ट कर देते थे। यह बुद्धिमत्ता बचपन से ही उनके व्यक्तित्व में झलकती है। सतत ज्ञानाराधना से प्रज्ञा को पैनापन प्रदान करने में पुरषार्थ करते रहते थे।उनका यह वैशिष्ट्य आज भी देखने को मिलता है की कम शब्दों में संतोषपूर्ण आनन्ददायक समाधान देते है। ऐसी प्रज्ञा को नमन करता हु.....आप सम ज्ञानसागर में गोता लगाना चाहता हूँ जिसमे अज्ञानता की श्वाँसे रंध जाएँ.....
     
    अन्तर्यात्री महापुरुष पुस्तक से साभार
  21. संयम स्वर्ण महोत्सव
    जैन वीरों की देशभक्ति
     
    मुसलमानों ने गुजरात पर आक्रमण कर दिया। वहां के सेनापति आबूव्रती श्रावक थे। जो कि नित्य नियमपूर्वक प्रतिक्रमण किया करते थे। शत्रुओं से लड़ते-लड़ते उनके प्रतिक्रमण का समय हो गया जिसके लिए उन्होंने एकान्त स्थान पर जाना चाहा, परन्तु मुसलमानों की जबरदस्त सेना के सामने अपनी मुट्ठी भर फौज के पांव उखड़ते देखकर राष्ट्रीय सेवा के कारण रणभूमि को छोड़ना उचित न जाना और दोनों हाथों में तलवार लिए हौदे पर बैठे हुए बोलने लगें- ‘जे मे जीवा विराहिया एकगिन्दिया वा बे इन्दिया वा' इत्यादि जिसको सुनकर सेना सरदार चौंक उठे कि देखो ये रणभूमि में भी जहां तलवारों की खनाखन और मारो-मारो के भयानक शब्दों के सिवाय कुछ सुनाई नहीं देता, वहां एकेन्द्रिय दो इन्द्रिय जीवों तक से क्षमा चाह रहे हैं, ये नरम-नरम हलवा खाने वाले जैनी क्या वीरता दिखा सकते हैं।
     
    प्रतिक्रमण का समय समाप्त होने पर सेनापति ने शत्रुओं के सरदार को ललकारा कि ओ! इधर आ, हाथ में तलवार ले, खांडा संभाल। अपनी वीरता दिखा, होश कर मन की निकाल। धर्म का पालन किया हो तो धर्म की शक्ति दिखा वरना जान बचाकर फौरन यहां से भाग जा। इस पर शत्रुओं सरदार उत्तर भी देने न पाया था कि जैन सेनापति आबू ने इस वीरता और योग्यता से हमला किया कि शत्रुओं के छक्के छूट गये और मुसलमान सेनापति को मैदान छोड़ कर भागना पड़ा। फिर क्या था, गुजरात का बच्चा-बच्चा आबू की वीरता के गीत गाने लगा। उसको अभिनन्दन पत्र देते हुए रानी ने हंसी में कहा कि सेनापति। जब युद्ध में एकेन्द्रिय दो इन्द्रिय जीवों तक से क्षमा मांग रहे थे तो हमारी फोज घबरा उठी थी कि एकेन्द्रिय जीव से क्षमा मांगने वाला पंचेन्द्रिय मनुष्य को युद्ध में कैसे मार सकेगा। इस पर व्रती श्रावक आबू ने उत्तर दिया कि महारानीजी ! मेरे अहिंसा व्रत का संबंध मेरी आत्मा के साथ है। एकेन्द्रिय दोइन्द्रिय जीवों तक को बाधा न पहुंचाने का जो नियम मैंने ले रखा है वह मेरे व्यक्तिगत स्वार्थ की अपेक्षा से है। देश की सेवा अथवा राज्य की आज्ञा के लिए यदि मुझे युद्ध अथवा हिंसा करनी पड़े तो ऐसा करने में मैं मेरा धर्म समझता हूं क्योंकि मेरा यह शरीर राष्ट्रीय सम्पत्ति है। इसका उपयोग राष्ट्र की आज्ञा और आवश्यकता के अनुसार ही होना उचित है परन्तु आत्मा और मन मेरी निजी सम्पत्ति है। इन दोनों को हिंसा भाव से अलग रखना मेरे अहिंसा व्रत का लक्षण है। ठीक ही है, ऐसा किये बिना गृहस्थों का निर्वाह नहीं हो सकता। गृहस्थ ही क्या, कभी-कभी तो साधु महात्माओं तक को भी ऐसा करने के लिए बाध्य होना पड़ता है।
     
    पद्मपुराण में एक जगह वर्णन आता है कि रावण पुष्पक विमान में बैठकर आकाश मार्ग से कहीं जा रहा था तो रास्ते में कैलाश पर्वत पर आकर उसका विमान रुक गया। मेरे विमान को किसने रोक लिया, इस विचार से वह इधर-उधर देखने लगा तो नीचे पर्वत पर बाली मुनि को तपस्या करते हुए पाया और विचार किया कि इन्हीं ने मेरे विमान को रोका है। अतः रोष में आकर सोचने लगा कि मैं मेरे इस अपमान का इनसे बदला लूंगा, पर्वत सहित इनको उठाकर समुद्र में डाल दूंगा। और जब वह अपने इस विचार को कार्य रूप में परिणत करने के लिए पहाड़ के मूल भाग में पहुंच गया तो महर्षि ने सोचा यदि कहीं यह सफल हो गया तो बड़ा अनर्थ हो जावेगा। भरत चक्रवर्ती के बनाये हुए बहुमूल्य और ऐतिहासिक जिनायतन भी नष्ट हो जायेंगे तथा पर्वत में निवास करने वाले पशु-पक्षी भी मारे जावेंगे। उन्होंने अपने पैर के अंगूठे से जरा सा दबा लिया तब रावण दब कर रोने लगा। तब मन्दोदरी ने आकर महिर्ष से अपने पति की भिक्षा मांगी तो महर्षि ने पैर को ढीला किया।
  22. संयम स्वर्ण महोत्सव
    स्वानुभव की,
    प्रतिक्षा स्व करे तो,
    कान देखता।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
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