जिन क्रियाओं से हिंसा हो उन्हें आरम्भ कहते हैं। गृहस्थ जब तक घर में है उसकी यह क्रियायें छूट ही नहीं सकती। किसान भी कभी आरम्भ नहीं छोड़ सकता। कृषि से भी ज्यादा आरम्भ कभी-कभी संकेत (हस्ताक्षर) से भी हो जाता है। आरम्भ का परिधि क्षेत्र बहुत बड़ा है। किसी ने आचार्य श्री जी से पूछा कि- आरम्भ और सावद्य में क्या अंतर है? तब आचार्य श्री ने कहा कि- कुंआ खोदना आरम्भ है और उसमें से एक बाल्टी पानी निकालना सावद्य में आयेगा। इसी विषय को आगे बढ़ाते हुए आचार्य श्री जी ने कहा कि- पटाके की दुकान खोलना महान् आरम्भ (पाप) है। हिंसादान नाम के अनर्थदण्ड से भी अधिक पाप लगता है। पटाके की दुकान खोलने वाले को घोर पाप बंध होता है जिससे दुर्गति में जाना पड़ता है। इसलिए दुर्गाति में ले जाने वाले इस प्रकार के धंधे श्रावकों को कभी नहीं करना चाहिए। जिससे संकल्पी हिंसा हो ऐसी कीटनाशक दवाईयाँ भी नहीं बेचना चाहिए। गर्भपात की दवाईया भी नहीं बेचनी चाहिए। प्रत्येक श्रावक का संकल्पी हिंसा का मन, वचन, काय एवं कृतकारित अनुमोदना से त्याग होना चाहिए।
इस संस्मरण से बड़े लोगों को तो शिक्षा मिलती ही है, लेकिन छोटे बच्चों को भी यह शिक्षा ले लेनी चाहिए कि उन्हें कभी भी पटाके नहीं चलाना चाहिए। पटाके चलाने से जीव हिंसा का पाप लगता है, प्रभु एवं गुरु की आज्ञा का उल्लंघन होता है, नरक गति में जाकर दुःख भोगना पड़ता है एवं जन, धन की हानि होती हैं। किसी का भी पुतला जलाने, जलवाने या उसकी प्रशंसा करने से भी संकल्पी हिंसा का दोष लागता है। वीडियोगेम खेलने में एवं मछली, चीड़िया, हाथी, गाय आदि के आकार में ढली हुई मिठाईयों का सेवन करने से भी पाप लगता है। मनुष्यों एवं पशुओं के चित्रों से चित्रित वस्त्र भी नहीं पहनना चाहिए। जमीन पर रंगोली आदि में भी पशु-पक्षियों के चित्र नहीं बनाना चाहिए। क्रोध में आकर किसी की तस्वीर भी नहीं फाड़ना चाहिए। क्योंकि इन सब क्रियाओं के करने से व्यर्थ में ही घोर पाप का बंध होता है।